Issue BriefsPublished on Jul 24, 2024
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हिंद-प्रशांत का कूटनीतिक तानाबाना: विकास और सहयोग की बढ़ती पैठ

  • Swati Prabhu
  • Pratnashree Basu

    महामारी के पश्चात आर्थिक विकास के रफ़्तार की लड़खड़ाहट और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक वित्त पोषण में कमी को देखते हुए विकास के मुद्दे पर सहयोग और भी ज़रूरी हो गया है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हो रहे भौगोलिक रणनीतिक विस्तार को देखते हुए यहां सहयोग कार्यक्रम में तेजी देखी जा रही है. यह सहयोग विभिन्न तरीकों से किया जा रहा है, जिसमें उत्तर-दक्षिण, दक्षिण और दक्षिण के साथ त्रिस्तरीय विकास सहयोग कार्यक्रम शामिल हैं. यह पेपर व्यापक विदेश नीति परिप्रेक्ष्य में विकास को लेकर हो रहे सहयोग को एक साधन के रूप में उपयोग करने की बात का विवेचन करता है. इसके साथ ही इस पेपर में हिंद-प्रशांत में स्थित वैश्विक उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच मौजूदा विकास सहयोग रणनीतियों पर नज़र भी डाली गई है. यह पेपर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकास कूटनीति को सहयोग ढांचे को बढ़ावा देने वाला मुद्दा बताने को लेकर चल रही चर्चा पर भी नज़र डालता है.

Attribution:

स्वाति प्रभु और प्रतनश्री बासु, "हिंद-प्रशांत का कूटनीतिक तानाबाना: विकास और सहयोग की बढ़ती पैठ," ORF इश्यू ब्रीफ नं.703, अप्रैल 2024, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

अपने मानक स्वरूप में विकास सहयोग, जिसे विकास साझेदारी भी कहा जाता है में, "विकासशील  देशों में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए", सहयोग का एक ढांचा विकसित किया जाता है.[1] अब पारंपरिक दानदाता और दान स्वीकार करने वाले संबंधों की व्यवस्था की जगह साझेदारियों ने ले ली है जिसमें शामिल खिलाड़ियों यानी देशों को बराबरी का दर्जा दिया जाता है. निश्चित ही विकास साझेदारियां अब संसाधनों को उत्प्रेरित करने और वैश्विक सार्वजनिक सामग्री को लेवरेज करने यानी उसका लाभ लेने में अहम भूमिका अदा करती है.[2] अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था वर्तमान में विभिन्न बहुआयामी संकटों का सामना कर रही है.[a] परस्पर जुड़ी हुई ये चुनौतियां अब एकजुट होकर 'पॉलीक्राइसिस' बन गई हैं.[3] इस तरह की स्थिति में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को लेकर प्रगति निरंतर लेकिन नाजुक बनी हुई है और इस वजह से ही सतत् विकास लक्ष्य महत्वपूर्ण और निरंतर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.[4] एजेंडा 2030 के लिए वित्त पोषण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरा है. इसकी वजह से अनेक विकासशील अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से लिस्ट डेवलप कंट्रीज यानी न्यूनतम विकसित राष्ट्र (LDCs), लो-इनकम कंट्रीज यानी कम आय वाले राष्ट्र तथा छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) को सबसे ज़्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. SDGs के वित्त पोषण में 2020 में 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी थी, जो 2023 में बढ़कर 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई.[5] वित्त पोषण के बाहरी स्रोतों जैसे निजी एजेंसीज, विदेश से आने वाले धन और विदेशी निवेश में कमी के साथ-साथ मौजूदा संसाधनों का महामारी से निपटने के लिए उपयोग किए जाने से विकासशील देशों में पूंजी का आउटफ्लो यानी पूंजी का विदेश जाना प्रभावित हुआ है.

हालांकि इन बहुआयामी आर्थिक और राजनीतिक झटकों का अंतरराष्ट्रीय सहयोग ढांचे पर मिश्रित प्रभाव ही पड़ा है. वैश्विक GDP में भारी गिरावट के बाद भी परंपरागत दाताओं यानी- आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) [b] के तहत द डेवलपमेंट एसिस्टेंस कमेटी (DAC) - की ओर से दी जाने वाली ऑफिशियल डेवलपमेंट एसिस्टेंस (ODA) यानी अधिकृत विकास सहायता में 2020 के दौरान सर्वाधिक वृद्धि दर्ज़ की गई और यह बढ़कर 161 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गई. [c],[6] 2022 में DAC दाताओं ने 204 बिलियन अमेरिकी डॉलर मुहैया करवाए, जो 2021 के मुकाबले रियल टर्म यानी असल मायने में 13.6 प्रतिशत की वृद्धि थी.[7] यह बात ODA की एक महत्वपूर्ण विशेषता - संकट के दौरान इसे बर्दाश्त करने की क्षमता - पर प्रकाश डालती है. आर्थिक मंदी के बावजूद DAC दाताओं की ओर से ODA में सबसे ज़्यादा वृद्धि दर देखी गई. यह वृद्धि OECD देशों में 'धीमी लेकिन सकारात्मक GDP वृद्धि' के साथ हुई थी. (चित्र 1 देखें)


चित्र 1 : OECD-DAC देशों की ओर से ODA

स्रोत: OECD-DAC रिपोर्ट, 2021[8]


OECD के अनुसार 1960 में उसकी स्थापना के बाद से ही ODA, विकासशील देशों के लिए बाहरी वित्तीय सहायता पाने का एक सशक्त और स्थायी स्रोत बन गया है.[9] लेकिन जैसा कि महामारी के दौरान देखा गया था ODA का आपात स्थिति में उपयोग करने की वजह से दीर्घ अवधि के विकास लक्ष्यों के लिए निधि की कमी हो जाती हैं. इतना ही नहीं कर्ज़ का स्तर और बढ़ते कर्ज़ को लौटने पर होने वाला ख़र्च भी LDCs तथा अन्य विकासशील देशों पर अतिरिक्त दबाव डालता है. ODA चैनल के मार्फत मिलने वाली राशि में कर्ज़ शामिल हो ये ज़रूरी नहीं है, लेकिन इसकी वजह से रियायती संसाधन हासिल करने की बढ़ती मांग उजागर हो जाती है. विकास सहयोग के पीछे एक मजबूत आर्थिक पहलू भी है जो गरीबी, जलवायु संकट, खाद्यान्न तथा जल संकट समेत अन्य मुद्दों से निपटने के लिए बेहद ज़रूरी होता है.[10] निश्चित ही अनेक कम आय वाले देश अपने आर्थिक संघर्षों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की ओर से मिलने वाली राशि पर निर्भर होते हैं. इसी प्रकार अनेक विकास प्रदाता भी विदेशी व्यापार को अपने ODA प्रतिबद्धताओं के साथ जोड़ कर देखा करते हैं ताकि इसके परिणाम को प्रभावी बनाया जा सके. उदाहरण के लिए डच सरकार विकासशील देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए इन देशों में अपने स्थानीय कारोबारियों को संचालन केंद्र खोलने को कहती है. इस मामले में विकास सहयोग को आर्थिक साधन के रूप में देखा जा सकता है.[11] विशेषज्ञों का मानना है कि विकास सहयोग में विभिन्न समुदायों के हितधारकों (जैसे कि निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी और सब नेशनल एजेंसीज ) के बीच व्यवहार्य साझेदारी स्थापित करने की क्षमता है. इस वजह से निवेश का प्रवाह शुरू होता है और कमज़ोरों में लचीलापन आता है.[12] उदाहरण के लिए SDG वित्त पोषण में 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी को निजी क्षेत्र को ज़्यादा अवसर देकर दूर किया जा सकता है.[13]

OECD के अनुसार 1960 में उसकी स्थापना के बाद से ही ODA, विकासशील देशों के लिए बाहरी वित्तीय सहायता पाने का एक सशक्त और स्थायी स्रोत बन गया है.  लेकिन जैसा कि महामारी के दौरान देखा गया था ODA का आपात स्थिति में उपयोग करने की वजह से दीर्घ अवधि के विकास लक्ष्यों के लिए निधि की कमी हो जाती हैं. 


महत्वपूर्ण यह है कि ODA भी भू-राजनीतिक प्रभाव से अछूता नहीं है.[14] यह सच है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद US के नेतृत्व वाले मार्शल प्लान[d] के माध्यम से ही 'ऐड' यानी सहायता की संकल्पना उपजी थी. लेकिन यह संकल्पना परस्पर रूप से जुड़ी हुई आर्थिक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जाल का एक अभिन्न हिस्सा भी है.  हालांकि आधुनिक दौर में अंतरराष्ट्रीय सहायता का अर्थ केवल एक देश द्वारा दूसरे देश को संसाधन उपलब्ध करवाना ही नहीं है. यह अब एक बेहद उच्च दर्ज़े का राजनीतिक दांव-पेंच का साधन बन चुका है, जिसमें अनेक उद्देश्य और हित शामिल होते हैं. इन उद्देश्यों और हितों का अपना अपना प्रभाव होता है और कभी-कभी इनके हानिकारक परिणाम भी दिखाई देते हैं. निश्चित ही महान शक्ति स्पर्धा अब अंतरराष्ट्रीय विकास परिदृश्य को भेदने  लगी है, जिसकी वजह से विकासशील अर्थव्यवस्थाएं बदलते भू-राजनीतिक माहौल में ख़ुद को संचालित करने में दबाव का सामना कर रही हैं.[15]


इस दृष्टिकोण से हिंद-प्रशांत महत्वपूर्ण हो गया है. भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मजबूरियों की वजह से वैश्विक ध्यान अब इस क्षेत्र की ओर मुड़ने लगा है. इसी वजह से हिंद-प्रशांत एक अनूठे मामले का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें अहम सुरक्षा और सस्टेनेबिलिटी यानी वहनीयता संबंधी गंभीर मुद्दों का मिश्रण दांव पर है. इस क्षेत्र में सुरक्षा आधारित चर्चा की अधिकता को देखते हुए इस बात को लेकर चिंताएं उभर रही है कि कैसे विभिन्न देश आपस में सहयोग कर SDGs को हासिल करने की दिशा में काम करेंगे. क्योंकि इन देशों के पास संसाधन कम हैं और इन संसाधनों तक पहुंच भी सीमित ही है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आने वाले 40 देशों [e] में विश्व की 35 फ़ीसदी आबादी रहती है. वैश्विक GDP में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 63% की है जबकि वैश्विक कारोबार में इस क्षेत्र का योगदान दो- तिहाई है.[16] हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ध्यान में रखकर अनेक नई विकास नीतियां/रणनीतियां बनाई जा रही हैं. ताकि विभिन्न देश इस क्षेत्र तक अपनी पहुंच मजबूत कर सकें. इस प्रकार क्षेत्र में आने वाले देश भी इन प्रयासों के बीच अपने हितों की रक्षा को लेकर प्रबंधन की कोशिश कर रहे हैं.[17]

यह पेपर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक विदेश नीति परिप्रेक्ष्य में विकास को लेकर हो रहे सहयोग को एक साधन के रूप में उपयोग करने की बात का विवेचन करता है.

हिंद-प्रशांत में विकास साझेदारियां

अनेक ग्लोबल नॉर्थ और साउथ यानी वैश्विक उत्तर एवं दक्षिण के सहयोगियों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम हस्तक्षेप शुरू किए हैं. विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे ये हस्तक्षेप गुणवत्तापूर्ण बुनियादी सुविधाओं, सामुदायिक लचीलेपन, जैवविविधता संरक्षण और स्वास्थ्य के मामलों में देखे जा सकते हैं.

 
ग्लोबल नॉर्थ


वैश्विक उत्तर में आने वाले अनेक विकसित देशों ने दशकों से विकासशील अर्थव्यवस्था की सहायता की है. उनके हस्तक्षेप आरंभिक दौर में गरीबी उन्मूलन और भूख़ से मुक्ति पर ही केंद्रित थे, लेकिन अब ये हस्तक्षेप वैश्विक दक्षिण के लिए चुनौती बन रहे सस्टेनेबिलिटी संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं. 


जापान:  वैश्विक विकास परिदृश्य में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को भले ही हाल ही में महत्वपूर्ण माना गया हो, लेकिन OECD-DAC के दाता इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं. जापान इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ही 2007 में पहली बार हिंद-प्रशांत क्षेत्र के "इंडियन तथा पैसिफिक ओशन अर्थात हिन्द और प्रशांत महासागर में आने वाले लोकतांत्रिक देशों के साथ राजनीतिक और आर्थिक कड़ी को मज़बूत करते हुए समुद्री मार्ग को सुरक्षित कर आर्थिक उन्नति को बढ़ावा देने" का विचार आगे किया था.[18]  'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक' यानी मुक़्त एवं ख़ुले हिंद-प्रशांत के हिस्से के रूप में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी के माध्यम से जापान इस क्षेत्र में क्षमता वृद्धि, [f] गुणवत्तापूर्ण बुनियादी सुविधा निवेश तथा हार्ड एंड सॉफ्ट कनेक्टिविटी को मजबूती देकर प्रशासन को पुख़्ता करने पर ध्यान केंद्रित करता है.[19] उदाहरण के रूप में जापान - ASEAN कनेक्टिविटी[20] पहल के तहत बने द सदर्न इकोनामिक कॉरिडोर और ईस्ट- वेस्ट इकोनामिक कॉरिडोर और पापुआ न्यू गिनी इलेक्ट्रिफिकेशन पार्टनरशिप, जिसमें US, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल है को देखा जा सकता है. इस पार्टनरशिप की वजह से पापुआ न्यू गिनी की 70 प्रतिशत आबादी को 2030 तक लगने वाली ऊर्जा आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाएगा.[21]


आस्ट्रेलिया: आस्ट्रेलियाई विदेश मामलों तथा व्यापार विभाग के 2023- 24 के ODA बजट में हिंद-प्रशांत क्षेत्र, विशेष रूप से ब्लू पैसिफिक, को दीर्घ अवधि में शांति, स्थिरता और संपन्नता के लिए निर्णायक बताते हुए प्राथमिकता दी गई है.[22] प्रशांत तथा दक्षिणपूर्व एशिया में ख़ासकर रिकवरी और लचीलापन बनाने के लिए साझेदारी बनाने को प्राथमिकता देते हुए आस्ट्रेलिया अपने ODA को स्वास्थ्य, जल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था की ओर मोड़ रहा है.[23] पैसिफिक के लिए ऑस्ट्रेलियन इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांसिंग फैसिलिटी के तहत उसने पैसिफिक के लिए 2022-23 के बजट में अपनी प्रतिबद्धता को 9.9 बिलियन अमेरिकी डालर से दुगना करते हुए 19.87 बिलियन अमेरिकी डालर कर दिया है. उसने अपने अक्टूबर 2022 के बजट में ODA में अतिरिक्त 900 मिलियन अमेरिकी डालर देने की भी घोषणा की है, जो प्रशांत में जलवायु लचीलेपन और लक्ष्यों को कम करने पर ख़र्च किए जाएंगे. इसी प्रकार आस्ट्रेलिया ने फिजी में जलवायु लचीले बुनियादी ढांचे, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का समावेश है, से स्कूलों के पुनर्निर्माण के लिए 25.5 मिलियन अमेरिकी डालर देने का भी निर्णय किया है. इसी प्रकार आस्ट्रेलिया-किरिबाती जलवायु सुरक्षा पहल के तहत 5.6 मिलियन अमेरिकी डालर की लागत से आपादाओं की स्थिति से निपटने में तटीय लचीलेपन को मज़बूत किया जाएगा. इसके अलावा पापुआ न्यू गिनी की जलवायु वित्त तक पहुंच में सुधार और वहां के कार्बन मार्केट से संबंध बढ़ाने पर ख़र्च के लिए 20 मिलियन अमेरिकी डालर की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही आस्ट्रेलिया क्षेत्रीय समावेशी पहलों जैसे ASEAN के साथ भी काम कर रहा है, ताकि कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए रणनीति विकसित कर कौशल प्रशिक्षण एवं तकनीकी सहायता कार्यक्रम चलाए जा सकें.[24] 

फ्रांस: फ्रांस को हिंद-प्रशांत क्षेत्र की निवासी शक्ति कहा जा सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में उसके तीन विदेशी क्षेत्र (फ्रेंच पॉलिनेशिया, रीयूनियन तथा न्यू कैलेडोनिया) है.[25] 2023 में फ्रेंच डेवलपमेंट एजेंसी ने इस क्षेत्र के लिए अगले पांच वर्षों में 222.5 मिलियन अमेरिकी डालर की फंडिंग देने की घोषणा की.[26] वह इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसी पहलों के साथ भी विस्तृत रूप से काम कर रहा है. इस पहल के माध्यम से वह जापान के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत और अफ्रीका में संयुक्त रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर सहयोग को बढ़ावा दे रहा है.[27] फ्रांस दक्षिणपूर्व एशिया में अन्य सामग्रियों के साथ सोलर उत्पाद और प्रणाली उत्पादन करने वाले छोटे और मध्यम प्रतिष्ठानों की सहायता के लिए भी प्रोपार्को [i] के माध्यम से 200 मिलियन अमेरिकी डालर की फंडिंग उपलब्ध करवा रहा है.[28] जुलाई 2023 में इंडिया-फ्रांस इंडो-पैसिफिक ट्रायंगुलर डेवलपमेंट को-ऑपरेशन फंड का गठन भी एक लचीले और सस्टेनेबल/वहनीय/सतत भविष्य की दिशा में, विशेषत: SIDS में, एक अहम कदम कहा जा सकता है.[29] 2021 में एक मल्टी-डोनर कार्यक्रम-किवा/Kiwa इनिशएटिव की शुरुआत की गई. इसमें यूरोपियन यूनियन (EU), आस्ट्रेलिया के विदेश मामलों एवं व्यापार विभाग, ग्लोबल अफेयर्स कनाडा तथा न्यूजीलैंड का विदेश मामलों एवं व्यापार विभाग शामिल हैं. इसका उद्देश्य पैसिफिक द्वीपों के पारिस्थितिकी तंत्र के जलवायु लचीलेपन, समुदाय, अर्थव्यवस्थाओं को प्रकृति आधारित उपायों के माध्यम से मजबूती प्रदान करना है. यह मजबूती जैवविविधता को सुरक्षा मुहैया करवाकर, उसका स्थायी रूप से प्रबंधन कर उसे पुर्नस्थापित कर प्रदान की जाएगी. यह पहल भी उल्लेखनीय ही कही जाएगी.[30] 2023 में फ्रांस ने 19.7 मिलियन अमेरिकी डालर की अतिरिक्त फंडिंग देते हुए अपनी कुल फंडिंग को बढ़ाकर 82 मिलियन अमेरिकी डालर कर दिया है.

यूरोपियन यूनियन: 2021 में अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति लांच करने के बाद से ही विकास सहयोग के अहम प्रदाताओं में से एक यूरोपियन यूनियन (EU) और उसके संस्थान (विशेषत: डायरेक्टोरेट-जनरल फॉर इंटरनेशनल पार्टनरशिप्स) ने हिंद-प्रशांत में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.[31] EU ने प्रशांत क्षेत्र को 2021-2027 की अवधि के लिए 820 मिलियन अमेरिकी डालर की फंडिंग देना तय किया है. इसमें प्रशांत द्वीपीय देशों [PICs], [j],[32] तिमोर-लेस्त तथा विदेशी देश एवं क्षेत्रों का समावेश हैं. [k],[33] हिंद-प्रशांत में EU की मौजूदगी को मुख्यत: ग्लोबल गेटवे इनिशिएटिव के रूप में देखा जा सकता है. इसके तहत जलवायु लचीलेपन, हरित संक्रमण/ग्रीन ट्रांजिशन (ग्रीन क्लायमेट फंड के माध्यम से), ओशन गर्वनंस, डिजिटल कनेक्टिविटी, बुनियादी सुविधा विकास और मानवीय सहायता कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रीत किया जाता है. यह पहल एक ऐसी ‘सस्टेनेबल/वहनीय तथा भरोसेमंद संबंधों का एक ढांचा तैयार करने की कोशिश कर रही है, जो लोगों के साथ इस ग्रह के लिए काम करेगी’. यह पहल डिजिटल, जलवायु, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा क्षेत्रों में 328 बिलियन अमेरिकी डालर का निवेश जुटाना चाहती है.

 

US: द यूनाइटेड स्टेट्‌स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने हिंद-प्रशांत में आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य, जल, लोकतंत्र एवं प्रशासन के मामले में विकास पहलों को सहयोग दिया है.[34] उदाहरण के लिए 2021 में USAID ने 2030 तक पैसिफिक में जलवायु वित्त मुहैया करवाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से 150 बिलियन अमेरिकी डालर जुटाने की महत्वाकांक्षी घोषणा की थी.[35] इतना ही नहीं उसने जलवायु वित्त में आ रही कमी से निपटने के लिए प्रोत्साहन और ज़ोख़िम बंटावरे का प्रस्ताव देते हुए ग्रीन रिकवरी इंवेस्टमेंट प्लेटफॉर्म भी लांच किया, ताकि 2.5 बिलियन अमेरिकी डालर जुटाए जा सके. इस राशि को जुटाने का उद्देश्य 2027 तक इस जलवायु वित्त की कमी के साथ अनुकूलन और शमन करना था. ट्राइएंगुलर डेवलपमेंट फॉर्मेट यानी त्रिकोणीय विकास ढांचे के तहत USAID और भारतीय विदेश मंत्रालय डेवलपमेंट पार्टनरशीप एडमिनिस्ट्रेशन II के साथ मिलकर काम कर रहा है. ये दोनों एजेंसियां फिजी के साथ आपदा से निपटने और उसके बाद की स्थिति का मुकाबला करने के लिए टेलीमेडिसिन और देखभाल क्षमता विकसित कर रही है.[36] इसके अलावा जुलाई 2018 में लांच किए गए इंफ्रास्ट्रक्चर ट्रांजैक्शन एंड असिस्टेंट नेटवर्क के तहत USAID और उसके अन्य सहयोगी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी सुविधा परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्र से निवेश को उत्प्रेरित करना चाहते हैं.[37]

ट्राइएंगुलर डेवलपमेंट फॉर्मेट यानी त्रिकोणीय विकास ढांचे के तहत USAID और भारतीय विदेश मंत्रालय डेवलपमेंट पार्टनरशीप एडमिनिस्ट्रेशन II के साथ मिलकर काम कर रहा है. ये दोनों एजेंसियां फिजी के साथ आपदा से निपटने और उसके बाद की स्थिति का मुकाबला करने के लिए टेलीमेडिसिन और देखभाल क्षमता विकसित कर रही है.

जर्मनी: जर्मनी ने 2020 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को तय करने वाले नीति संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए थे.[38] इस क्षेत्र के बढ़ते महत्व और यहां चीन के प्रभाव में वृद्धि के कारण ही जर्मनी को हिंद-प्रशांत में अपने हित और विदेश नीति हस्तक्षेपों को लेकर नए सिरे से विचार करने की नौबत आयी है.[39] जर्मनी यहां अनेक कार्यक्रमों से जुड़ा है, जैसे जलवायु चुनौती वित्त पोषण, पर्यावरणय एवं मरीन प्रोटेक्शन, जैवविवधता, सहयोगी देशों की सुरक्षा को लचीला बनाने, साइबर सुरक्षा, मानवाधिकार सहायता, कृषि, स्वास्थ्य और सतत शहरी विकास. उदाहरण के लिए जर्मन सरकार, PICs के बीच सकारात्मक बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई, ‘पार्टनर्स इन द ब्लू पैसिफिक’ पहल के साथ भी जुड़ी हुई है.[40]  जलवायु परिवर्तन को लेकर अपने लचीलेपन को मजबूत करने के लिए जर्मनी ने ग्लोबल शील्ड अगेंस्ट क्लायमेट रिस्कस्‌ के माध्यम से PICs की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर व्यापक सुरक्षा पैकेज मुहैया करवाने का भी वादा किया है. इसी प्रकार प्रशांत द्वीपों में जैवविविधता को होने वाली क्षति, जलवायु कार्रवाई और अनुकूलन परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए इंटरनेशनल क्लायमेट इनिशिएटिव के तहत उसने 76.2 मिलियन अमेरिकी डालर मंजूर किए हैं. जर्मनी ने हिंद की ओर से आरंभ की गई पहल इंडो-पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव को भी 21.7 मिलयन अमेरिकी डालर देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है. इस पहल का उद्देश्य PICs को जलवायु अनुकूलन, जैवविविधता संरक्षण, ऊर्जा कुशलता हासिल करने और बार-बार आने वाली आपदाओं से निपटने के लिए लचीला बनाना है. इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में अपनी पहुंच में विस्तार करने के लिए जर्मनी विकास सहयोग की त्रिस्तरीय प्रणाली अपनाकर हस्तक्षेप कर रहा है. उदाहरण के लिए इंडो-जर्मन त्रिकोणीय सहयोग ने आलू, बांस की खेती को लेकर पायलट परियोजनाएं शुरू की हैं. इसके साथ ही मलावी, घाना तथा कैमरुन में महिला उद्यमियों के लिए एग्रीबिजनेस शुरू किया गया है. L,[41] पेरु में भी एक त्रिकोणीय प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें कृषि सांस्कृतिक सामाजिक कार्यक्रम पर ध्यान दिया जा रहा है.[42]  

UK: यूक्रेन संकट की वजह से बढ़ी शरणार्थियों की समस्या का सामना करने वाले UK ने 2021 में राजनीतिक और आर्थिक कारणों की वजह से सहायता के लिए किए गए बजटीय प्रावधान में कटौती का फ़ैसला किया था तो इसकी काफ़ी चर्चा हुई थी.[43] 2023 में अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग को लेकर जारी अपने श्वेतपत्र में UK सरकार ने माना था कि जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों की वजह से अत्यधिक गरीबी को ख़त्म करने की चुनौती और भी गहरा जाएगी.[44] फॉरेन, कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने एक UK-ASEAN प्लान ऑफ एक्शन (2022-2026) की घोषणा की, जो हिंद-प्रशांत में समुद्री/मरीटाइम, कनेक्टिविटी, SDGs और आर्थिक विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा.[45]  FCDO विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के ऊर्जा संक्रमण को भी जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशीप्स के माध्यम से बढ़ावा देना चाहता है. जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशीप्स विकसित देशों, विकास वित्त संस्थानों, नागरिक समाज अर्थात सिविल सोसाइटी, निजी क्षेत्र तथा अन्य प्रासंगिक हितधारकों के देश विशेष के साथ की गई साझेदारी है. G7 के माध्यम से UK ने इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ JETPs पर हस्ताक्षर किए है. इसके सहयोग से तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जाएंगे. जैसा कि UK-इंडिया रोडमैप 2030 में दर्ज़ है UK सरकार हिंद की जलवायु परिवर्तन से निपटने और SDGs को हासिल करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा पहलों का समर्थन करती है.[46] 2021 में वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रीड के तहत लांच किए गए ग्रीन ग्रीड्‌स इनिशिएटिव (GGI) को इस संदर्भ में उदाहरण माना जा सकता है. GGI का उद्देश्य ऊर्जा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना है. इसका लक्ष्य ‘‘विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के पास मौजूद इलेक्ट्रिसिटी ग्रीड्‌स, जिसमें मिनी-ग्रीड्‌स और ऑफ़ ग्रीड्‌स सोल्यूशंस शामिल हैं, के इंटरकनेक्शन की सहायता से वैश्विक स्तर पर स्वच्छ उर्जा की क्षमता का प्रस्तुतिकरण/अनावरण करना है.’’ UK सरकार SDGs के लिए वित्त पोषण में वृद्धि करने के लिए त्रिकोणीय सहयोग ढांचे जैसे UK-इंडिया ग्लोबल इनोवेशन पार्टनरशीप प्रोग्राम के भी पक्ष में है. इस प्रोग्राम की कोशिश विस्तृत सस्टेनेबिलिटी नैरेटिव के लिए ‘‘हिंद से अन्य देशों में क्लायमेट-स्मार्ट इनोवेशंस को प्रोत्साहन देने, स्थानांतरण और प्रदर्शन करते हुए वहां लचीलापन लाना है.’’[47]

ग्लोबल साउथ

विकास की गाथा में 2000 के दशक से दक्षिण प्रेरित साझेदारियों का दबदबा रहा है. वैश्विक दक्षिण के अनेक देशों जैसे हिंद, चीन, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका विकास साझेदारियों को लेकर हो रही चर्चा के संचालक है और वे OECD-DAC दाता मॉडल को विकल्प पेश कर रहे हैं. दक्षिण-दक्षिण सहयोग के तहत अनेक देश बड़े पैमाने पर कनेक्टिविटी मॉडल्स स्थापित करते हुए प्रमुख खिलाड़ी बन रहे हैं. ये देश बहुसदस्यीय मंचों में शामिल होकर विविध साझेदारियों को बढ़ावा दे रहे हैं.[48] निश्चित रूप से वैश्विक दक्षिण की ओर से अपनाई गई भूमिका के कारण वैश्विक एजेंडा में कुछ संशोधन होने के साथ ही अधिक समावेशी वैश्विक हस्तक्षेप की राह खुल रही है. इन परिवर्तनों की बुनियाद में वर्तमान सहायता रूढ़िवादिता को पेश होने वाली चुनौतियां  शामिल हैं. [m],[49]

 

भारत: भारत का डेवलपमेंट पार्टनरशीप एडमिनिस्ट्रेशन यानी विकास सहयोग प्रशासन (DPA)-जो उसका विकास सहयोग के मामलों पर अमल करने वाली मुख्य संस्था है-मुख्यत: अपनी गतिविधियां तीन प्रमुख स्तंभों के तहत चलाता है. ये तीन प्रमुख स्तंभ हैं-लाइन ऑफ क्रेडिट यानी कर्ज़ देने की व्यवस्था (LOCs), अनुदान एवं कर्ज़ तथा इंडियन टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक को-आपरेशन प्रोग्राम यानी भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग कार्यक्रम. 2023 में किए गए बजटीय प्रावधान के अनुसार हिंद ने मालदीव को 48.3 मिलियन अमेरिकी डालर देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है. इसी प्रकार सेशल्स को 12.09 मिलियन अमेरिकी डालर, श्रीलंका को 18.1 मिलियन अमेरिकी डालर तथा मारिशस को 10.88 मिलियन अमेरिकी डालर का अनुदान और कर्ज़ देने की प्रतिबद्धता जताई गई है. हिंद ने फिजी को भी 55.78 मिलियन अमेरिकी डालर, पापुआ न्यू गिनी को 100 मिलियन अमेरिकी डालर, वियतनाम को 691.6 मिलियन अमेरिकी डालर तथा लाओस को 226.23 मिलियन अमेरिकी डालर सितंबर तक देने की व्यवस्था की है.[50] हाल ही में PICs की ओर भारत का झूकाव ध्यान देने योग्य है. 2023 में भारत के किसी प्रधानमंत्री की पापुआ न्यू गिनी का पहला ऐतिहासिक दौरा बेहद अहम वक़्त पर हुआ था.[51]

 

भारतीय विदेश नीति के उद्देश्यों को नए सिरे से तय किया जा रहा है और इसमें अब प्रशांत द्वीप देशों को शामिल किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर मई 2023 में भारत ने पापुआ न्यू गिनी के साथ मिलकर फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड कोऑपरेशन के तीसरे शिखर सम्मेलन की संयुक्त मेज़बानी की थी. इस शिखर सम्मेलन में भारत ने PICs के साथ अपनी विकास साझेदारी को पुख़्ता करने के लिए 12-चरणीय कार्य योजना प्रस्तुत की थी. इसके माध्यम से स्वतंत्र, खुले और संपन्न भारत-प्रशांत को लेकर हिंद अपना साझा दृष्टिकोण भी पुख़्ता करना चाहता है.[52] पैसिफिक आइलैंड फोरम में हिंद एक डायलॉग पार्टनर है. अनेक भारतीय संस्थान भी बुनियादी स्तर पर नागरिक-केंद्रीत परियोजनाओं पर अमल कर रहे हैं. उदाहरण के लिए भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति (जयपुर फूट ऑर्गनाइजेशन) ने 2011 में फिजी में एक कृत्रिम अंग फिटमेंट युनिट का आयोजन किया था, जिसमें फिजी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी सहयोग किया था. इसके अलावा सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड एडवांस्ड कम्युटिंग,[n] की ओर से किए जा रहे प्रयासों में निउए की राजधानी अलोफ़ी में यूनिर्वसिटी ऑफ़ साउथ पैसिफिक में सेंटर ऑफ़ एक्सलेंस इन IT की स्थापना शामिल है. इसकी स्थापना में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस्ड कम्युटिंग ऑफ़ इंडिया ने सहयोग किया था. इसी प्रकार नेशनल यूनिर्वसिटी ऑफ़ समोआ, एपिया में सेंटर फॉर एक्सलेंस इन इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी की स्थापना; सोलोमन आइलैंड नेशनल यूनिर्वसिटी में सेंटर ऑफ़ एक्सलेंस इन IT की स्थापना; तिमोर लेस्त के ओक्सेस/ Oẻ-Cusse क्षेत्र में इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी इनोवेशन लैब की स्थापना और फिजी को महात्मा गांधी स्मृति हाईस्कूल में IT की सुविधा को उन्नत करने के लिए दिया गया 150,000 अमेरिकी डालर का अनुदान (इंडिया-UN डेवलपमेंट पार्टनरशीप फंड के हिस्से के रूप में) भी शामिल है .[53]

 भारतीय विदेश नीति के उद्देश्यों को नए सिरे से तय किया जा रहा है और इसमें अब प्रशांत द्वीप देशों को शामिल किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर मई 2023 में भारत ने पापुआ न्यू गिनी के साथ मिलकर फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड कोऑपरेशन के तीसरे शिखर सम्मेलन की संयुक्त मेज़बानी की थी. इस शिखर सम्मेलन में भारत ने PICs के साथ अपनी विकास साझेदारी को पुख़्ता करने के लिए 12-चरणीय कार्य योजना प्रस्तुत की थी. 

चीन : हिंद-प्रशांत में चीन सबसे बड़ा कारोबार सहयोगी है.[54] इस भौगोलिक क्षेत्र में उसके बढ़ते प्रभुत्व के लिए दो कारणों को ज़िम्मेदार माना जा सकता है : पहला कारण यह है कि US की शक्ति कम होने की वजह से शक्ति संतुलन में बदलाव देखा जा रहा है और इस क्षेत्र में विकास को लेकर चुनौतियां बढ़ती जा रही है. विभिन्न बहुराष्ट्रीय संगठनों, जिसमें UN भी शामिल हैं, के साथ चीन अपने संबंधों को बढ़ावा देना चाहता है. ऐसा करते हुए वह अपने विकास सहयोग मॉडल के साथ एजेंडा 2030 को संरेखित करना चाहता है. सस्टेनेबिलिटी/स्थिरता के नक्शे पर हिंद-प्रशांत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. चीन का विकास सहयोग मॉडल अफ्रीका, दक्षिण एशिया, दक्षिणपूर्व एशिया, यूरोप के हिस्सों तथा हिंद-प्रशांत के विभिन्न विकासशील क्षेत्रों में उसकी दर्शनीयता बढ़ाने में अंतर्निहित है. इसके लिए चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को एक अहम माध्यम की भूमिका अदा करता है. मुख्यत: बीजिंग के रणनीतिक इरादे को प्रोत्साहित करने वाले BRI को ‘‘कर्ज़-जाल’’ कूटनीति का साधन कहा जाता है. BRI अब ‘‘विवादों और आलोचनाओं का चुंबक’’ बन गया है. इस बुनियादी सुविधा परियोजना के झंडे तले चीनी विकास सहयोग मॉडल, अनेक कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के भारी कर्ज़ के बोझ का अंतरराष्ट्रीयकरण करने को बेताब दिखाई देता है.[55] उसकी इस कोशिश के लिए उदाहरण के रूप में श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह का जिक्र किया जाता है. इसके अलावा 22 अफ्रीकी देशों में भी चल रहे भारी वित्तीय संकट का भी उदाहरण सबके सामने है.[56] ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव एंड ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव [o] यानी वैश्विक विकास पहल तथा वैश्विक सुरक्षा पहल की शुरुआत को एक ‘‘नए विकास आदर्श’’ की दिशा में बढ़ने का संकेत माना जा सकता है.[57] लेकिन चीन का विकास सहयोग मॉडल BRI के माध्यम से ‘‘मार्केट इम्पीरियलिस्ट डिजाइंस’’ यानी बाज़ार साम्राज्यवादी योजना को प्रदर्शित करते हुए फैक्टर यानी कारक और प्रोडक्ट्‌स अर्थात उत्पाद बाज़ार पर कब्ज़ा करना चाहता है.[58]

 

इंडोनेशिया : इंडोनेशियाई विकास सहयोग के प्रयासों को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के परिप्रेक्ष्य में देखकर समझा जा सकता है. उदाहरण के लिए इंडोनेशिया ने 1946 में अकाल का सामना कर रहे हिंद के लिए लगभग 500,000 टन चावल भेजा था.[59] इस आरंभिक मानवीय सहायता के कारण ही इंडोनेशिया को अपने दक्षिणी सहयोगियों से मान्यता मिली और वह वैश्विक नक्शे पर अपना स्थान पुख़्ता करने में सफ़ल हुआ. नॉन-अलाइंड मूवमेंट (NAM) यानी गुटनिरपेक्ष आंदोलन के एक संस्थापक के रूप में इंडोनेशिया को विकासशील देशों के साथ कृषि, मत्स्यपालन और परिवार नियोजन जैसे क्षेत्रों में अपने तकनीकी सहयोग को पुख़्ता करने के लिए भी जाना जाता है. 1995 में इंडोनेशिया ने NAM सेंटर फॉर साउथ-साउथ टेक्नीकल कोआपरेशन यानी दक्षिण-दक्षिण तकनीकी सहयोग के लिए NAM केंद्र स्थापित किया. इसका मुख़्य ध्यान गरीबी उन्मूलन और छोटे एवं मध्यम उद्यम स्थापित करने, कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों पर था. इतना ही नहीं इंडोनेशिया लंबे समय से सहयोग की त्रिकोणीय प्रणाली को अपनाता आया है.[60] वह इसके लिए विभिन्न विकसित देशों के साथ बहुराष्ट्रीय मंचों के साथ नज़दीकी काम करते हुए ज्ञान हस्तांतरण, विशेषज्ञता साझा करने, क्षमता विकास और संबंधित गतिविधियों से जुड़ी परियोजनाओं का समर्थन करता आया है. 2000 से 2013 के बीच इंडोनेशिया ने दक्षिण-दक्षिण एवं त्रिकोणीय सहयोग के लिए लगभग 49.8 मिलियन अमेरिकी डालर का योगदान दिया.[p],[61] हिंद-प्रशांत में इस मॉडल को बढ़ावा देकर इंडोनेशिया ने PICs के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर बल दिया है. उसने ऐसा दिसंबर 2022 में हुए इंडोनेशिया-पैसिफिक फोरम में घोषित ‘बाली मैसेज फॉर डेवलपमेंट कोआपरेशन’ यानी विकास सहयोग के लिए बाली का संदेश को माध्यम बनाकर किया है.[62] 

विकास सहयोग के रणनीतिक मूल सिद्धांत

विदेश नीति का संचालन शून्य में नहीं किया जा सकता. वह एक जटिल जाल में काम करती है, जहां उसे असल और काल्पनिक रणनीतिक हितों का संचालन करना होता है, असल और सुनियोजित दबावों के ख़िलाफ़ क्षमता निर्मित करनी होती है और वैश्विक राजनीति में दोस्ताना व्यवस्था को बनाए रखना होता है. विदेश नीति को राजनीतिक और आर्थिक लाभ पाने के लिए शक्ति का प्रदर्शन भी करना होता है. अंतरराष्ट्रीय विकास क्षेत्र में देश अपनी स्थिति और पहचान की व्याख्या करने के लिए बातचीत करते हुए सीधी कार्रवाई करके अथवा वैश्विक मानक और विनियमनों को आकार देकर अपने हितों को आगे बढ़ाते है.[63] कोई भी राजनायिक बातचीत रणनीतिक हितों से अलग नहीं रह सकती. इसी वजह से विकास सहयोग समान एजेंडा यानी कार्यसूची को आगे बढ़ाकर पुख़्ता करने से जुड़ा हुआ है. 

 

रणनीतिक एजेंडे को प्रतिकूल मानने की बजाय मूल्यवान और व्यवहारिक समझना ज़रूरी है. क्योंकि ऐसा होने पर ही विकास सहयोग की प्रेरणाओं और उसकी प्रभावशीलता का बेहतर आकलन किया जा सकेगा. यह आकलन संबंधित रणनीतिक अनदेखे प्रभाव की सूक्ष्म समझ से किया जा सकेगा. राजनीतिक संचालक (या राजनीतिक क्षेत्र के तहत आने वाले कारक और प्रभाव जो निर्णय लेने को आकार देते हैं और सरकार की ओर से की गई कार्रवाईयां, राजनेता अथवा संस्थान) दुष्ट अथवा अनैतिक नहीं होते और इसकी वजह से सहायता अप्रभावी नहीं हो जाती. इसके विपरीत वे सहायता की प्रभावशीलता को तय करने में अहम होते है. वे यह भी तय करते हैं कि ये सहायता अपने लक्षित लक्ष्यों को पूर्णत: हासिल करेगी या नहीं. विकास सहयोग तथा भू-राजनीतिक हितों का इंटरसेक्शन/प्रतिच्छेदन जटिल होता है, लेकिन यह समकालीन अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अहम पहलू भी होता है. विकास सहयोगी- दाता और प्राप्तकर्ता- दोनों ही विदेशी सहायता को माध्यम बनाकर अपने भूरणनीतिक और वाणिज्यिक हितों का पीछा करते हैं.[64] दरअसल भू-रणनीतिक एजेंडा में ये बातें शामिल होती है. ‘‘सहयोग में शामिल संस्थानों एवं संगठनों का विस्तृत ज्ञान, परियोजनाओं के पैमाने को कौन शुरू करेगा और इस पैमाने को लेकर बातचीत करने के लिए गहराई भरे सवाल पूछना. साझेदारी के विभिन्न साइट्‌स यानी स्थलों के भीतर और बाहर कौन से वित्तीय, प्रबंधकीय और प्रशासनिक व्यवस्थाएं स्थापित की गई है. निगरानी और मूल्यांकन की कौन सी व्यवस्था तय की गई है और ये व्यवस्था किसकी शर्तों पर तय की गई है.’’[65] यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की एक व्यापक या विस्तृत समझ मुहैया करवाता है, जहां हितों का पारस्परिक प्रभाव विकास सहयोग के परिदृश्य को तय करता है.  

अत: विकास सहयोग के मामले में सभी को बराबरी का अवसर उपलब्ध करवाने में रणनीतिक आधार अनेक तरीकों से सहायक साबित होता है. पिछले एक दशक के दौरान हुई भू-राजनीतिक घटनाओं/गतिविधियों, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र जैसे भौगोलिक क्षेत्रों में, की वजह से साझेदारी और सहयोग प्रणाली के स्तर में वृद्धि करना ज़रूरी हो गया है. इस इलाके में भिन्नताओं को लेकर एक संतुलन साधने की आवश्यकता दिखाई दे रही है. यह संतुलन साधने का एक रास्ता विकास सहयोग प्रणाली है. यह रास्ता इसकी गहरी राजनीतिक प्रकृति को उजागर करता है. 1996 में OCED ने एक रणनीति अपनाई जिसे ‘‘शेपिंग द 21st सेंचुरी: द कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ डेवलपमेंट को-ऑपरेशन’’[66] यानी 21वीं सदी को आकार देने में विकास सहयोग का योगदान कहा गया था. इस रणनीति में इस बात को स्वीकार किया गया था कि दाता देशों के ‘‘मजबूत आत्म-हित’’ की विकास एजेंडा में अहम भूमिका होती है. इसने इस बात को रेखांकित किया कि विकास सहयोग का केवल प्राप्तकर्ता देश को ही लाभ नहीं मिलता, बल्कि विकास सहयोग दाता और प्राप्तकर्ता देश दोनों ही के लिए लाभकारी होता है.

 

हाल के वर्षों में विकास सहयोग की प्रकृति बदली है. ख़ासकर विकास लक्ष्यों की बात को लेकर नीति निर्माताओं के बीच होने वाली चर्चा और विकासशील देशों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के मामले में यह बदलाव देखा जा रहा है. अहम बात यह है कि अब विकासशील देशों की सहायता करने के बजाय इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि कैसे यह बात इसमें शामिल सभी देशों के लिए लाभदायक साबित होने वाली है. ऐतिहासिक रूप से विकास सहयोग करने के मूल में अनेक प्रोत्साहन रहे है, लेकिन वर्तमान ट्रेंड इस वजह से अलग दिखता है कि इस बार इन प्रोत्साहनों को लेकर स्वीकृति दिखाई देती है. फ़लस्वरूप अब समकालीन नीतियों को कुछ इस तरह तैयार किया जाता है कि इसमें शामिल विभिन्न हितधारकों को ‘‘विन-विन यानी लाभ-लाभ’’ की स्थिति दिखाई देती है. इसमें स्वार्थपूर्ण अथवा विपरीत हित नहीं दिखाई देते, जिसकी वजह से विकास एजेंडा से दाता और प्राप्तकर्ता दोनों को ही लाभ होने की बात कहकर इस एजेंडा को आगे बढ़ाया जाता है. कानूनी ढांचे और जवाबदेही व्यवस्था को आकार देने वाली राजनीतिक बातचीत में आया यह बदलाव सार्वजनिक निगरानी और स्वतंत्र आकलन को प्रभावित करता है. इसके पहले सार्वजनिक निगरानी और स्वतंत्र आकलन में केवल विकासशील देश को होने वाले लाभ के मूल्यांकन को ही प्राथमिकता दी जाती थी. 

 हाल के वर्षों में विकास सहयोग की प्रकृति बदली है. ख़ासकर विकास लक्ष्यों की बात को लेकर नीति निर्माताओं के बीच होने वाली चर्चा और विकासशील देशों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के मामले में यह बदलाव देखा जा रहा है. अहम बात यह है कि अब विकासशील देशों की सहायता करने के बजाय इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि कैसे यह बात इसमें शामिल सभी देशों के लिए लाभदायक साबित होने वाली है. 

इस उभरते संदर्भ में विकास सहयोग के भीतर ही संपूर्ण लक्ष्यों को लेकर किया जाने वाला विस्तृत विचार मूल्यांकन प्रक्रिया को बढ़ा सकता है. इस दृष्टिकोण से पहले पारंपारिक विकास उद्देश्यों के संदर्भ में जिन परिणामों को ‘अनायास’ (केवल दाता देश को होने वाले लाभ) निरुपित किया जाता था, इन परिणामों को जब साझा हितों के चश्मे से देखा जाए तो यह इच्छानुरुप या पहले से समझा हुआ या पूर्वाभासयोग्य माना जा सकता है. जैसे कि US विकास नीति को गरीबी से लड़ने की व्यवस्था, द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने और अपने सुरक्षा और वाणिज्यिक हितों को सुरक्षित करने का साधन मानता है.[67] यही तर्क अन्य दाता देशों के बारे में भी लागू होता है, जहां उन्हें हितों में अंतर की रक्षा करनी होती है. 

 

दूसरे साझा हितों को मिलने वाली स्वीकृति के साथ ही विकास सहयोग नैरेटिव में उपयुक्त होने वाली भाषा में आया बदलाव सहयोग की विशेषताओं को लेकर संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है. यह दाता की अगुवाई वाले पारंपरिक मॉडल में दिखाई देने वाले वर्गीकृत संकेतों के प्रति आगाह भी करता है. विकास सहयोग के उद्भव के साथ ही यह संवेदनशीलता मजबूत हुई है. उदाहरण के लिए अब ‘डोनर/दाता’ या ‘रिसिपियंट/प्राप्तकर्ता’ जैसे शब्दों की जगह मुख्यत: ‘पार्टनर’ यानी साझेदार देश ने ले ली है. अब सहायता उपलब्ध करवाने और सहायता पाने वाले दोनों ही देशों की पहचान ‘पार्टनर’ शब्द से ही की जाती है. मसलन, हिंद बेहद सख़्ती के साथ ‘डोनर/दाता’ शब्द का उपयोग करना टालता है, क्योंकि उसे लगता है कि यह शब्द ‘‘पाश्चात्य’’ और ‘‘पैतृक” प्रवृत्ति आशय को दर्शाता है. [68] इसी प्रकार ‘फॉरेन एड’ यानी विदेशी सहायता की जगह ‘डेवलपमेंट पार्टनर’ यानी विकास सहयोगी शब्द का उपयोग किया जाता है. यह बात वैश्विक दक्षिण में ख़ासतौर पर लागू होती है. निश्चित ही विकास सहयोगी शब्द अब व्यापक रूप से उन साझेदारी या प्रक्रियाओं की ओर इशारा करता है, जिसमें व्यापार, निवेश और भू-राजनीतिक हित समाहित है. इसका कभी-कभी विदेशी सहायता के बेहद अलग वैचारिक और असंबद्ध ढांचे में उपयोग किया जाता है.[69]

 

तीसरी बात यह है कि वैश्विक मामलों में अब मध्यम शक्ति वाले देश अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के इच्छुक दिखाई देते है. इसी वजह से दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में अब ताकत की नए सिरे से अभिव्यक्ति होने लगी है. ये देश महत्वाकांक्षी है और वे अपने अनूठे अनुभव और विशेषज्ञता को अन्य संक्रमणकारी देशों के साथ साझा करना चाहते हैं. मसलन दक्षिण कोरिया और ताइवान का मानना है कि एक लोकतांत्रिक देश के रूप में उनका संक्रमण और उनके यहां हुए औद्योगिक आधुनिकीकरण की वजह से अन्य देश लाभान्वित हो सकते है.[70] इस तरह का आदान-प्रदान ज़रूरी है. लेकिन महत्वाकांक्षी देश यह भी चाहेंगे कि सहयोग व्यवस्था को उनकी विदेश नीति की पहुंच के विस्तार में भी सहायता करनी चाहिए. यह ठीक उसी तरह होगा जैसे रंगभेद से लोकतांत्रिक प्रशासन अपनाने वाले दक्षिण अफ्रीका ने ख़ुद को अब शांति-स्थापना और संघर्ष के बाद पुनर्निर्माण के क्षेत्र में बतौर नेता स्थापित कर लिया है. इसी प्रकार हिंद भी अन्य विकासशील देशों को कम लागत वाले विकास समाधान मुहैया करवाने का प्रस्ताव दे रहा है और अपनी तकनीकी और क्षमता वृद्धि के अनुभव को इन देशों के साथ साझा कर रहा है. इस तरह के मामलों में त्रिकोणीय साझेदारी ज़रूरी है. विकास साझेदारी का स्वरूप महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इससे रणनीतिक चिंताओं को अलग नहीं किया जा सकता. ऐसी साझेदारी असमान शक्ति संबंधों को प्रदर्शित करती है, जिसकी वजह से प्राप्तकर्ता देश की बजाय दाता देश के ही हितों की सुरक्षा और वृद्धि होती है.[71]

 

विकास कूटनीति दृष्टिकोण पर चर्चा

 

विकास सहयोग का मतलब केवल नीति ही नहीं होता , बल्कि राजनीति भी इससे जुड़ी हुई होती है.[72] विस्तृत वैश्विक भलाई के लिए विकास सहयोग को कूटनीति के साधन के रूप में उपयोग करने से विकास लक्ष्यों को हासिल करने का एक रोडमैप बन जाता है. विकास लक्ष्यों को हासिल करना विशेषत: वैश्विक दक्षिण के देशों को अपनी विकास आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए बेहद आवश्यक है. ऐसे में विकास साझेदारी स्थापित करने में भूरणनीतिक और भूआर्थिक हितों को शामिल करना अविभाज्य हो गया है. यह साझेदारी वैश्विक स्तर पर संबंधों को बढ़ावा देकर एक-दूसरे के हितों को आगे करने का प्रभावी साधन हो सकती है. लेकिन भूरणनीतिक और भूआर्थिक हितों का उपयोग करने को लेकर अनेक चर्चाएं हिंद-प्रशांत के संदर्भ में प्रासंगिक मानी जाती है.

 

सबसे पहली बात तो सार्वभौमिकता/संप्रभुता को लेकर जुड़ी शर्तों और सीमाओं की चिंता है. दाता देशों की ओर से अपनी सहायता देने के बदले में प्राप्तकर्ता देश पर चुनिंदा नीति सुझाव थोपे जा सकते हैं. [q] शर्तों से बेहतर प्रशासन और जवाबदेही को बढ़ावा दिया जा सकता है, लेकिन शर्तों के कारण ही संप्रभु देशों को अपनी नीति और प्राथमिकता तय करने के अधिकार को लेकर सवालिया निशान भी लग सकते है. दाता की उम्मीदों और प्राप्तकर्ता की संप्रभुता को लेकर इस मुद्दे पर होने वाला तनाव कूटनीतिक संघर्ष का कारण बन सकता है. इसका एक प्रमुख उदाहरण चीन का BRI है, जिसमें बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी अनेक परियोजनाएं शर्तों, कर्ज़ निरंतरता और संप्रभुता से जुड़ी हुई हैं. 2018 में मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद की सरकार ने उच्च लागत और राष्ट्रीय कर्ज़ संबंधी चिंताओं की वजह से चीन समर्थित अनेक परियोजनाओं की समीक्षा की. इसमें ईस्ट कोस्ट रेल लिंक (ECRL) और दो गैस पाइपलाइनों से जुड़ी परियोजनाओं का भी समावेश था. अंतत: मलेशिया ने इन परियोजनाओं से जुड़े नियम एवं शर्तों को अपने राष्ट्रीय हितों के साथ एकजुट करने के लिए दोबारा बातचीत की.[73] इसी प्रकार अनेक PICs को भी चीनी सहायता मिली है, जिसकी वजह से उनके यहां बुनियादी सुविधाओं में इज़ाफ़ा हुआ है. लेकिन इस सहायता के दीर्घकालीन प्रभाव और कर्ज़ स्थिरता एवं संप्रभुता को लेकर कुछ सवाल खड़े हो गए हैं.[74] उदाहरण के लिए 2023 में संघीय राज्य माइक्रोनेशिया के तत्कालीन निर्वतमान राष्ट्रपति डेविड पैनुएलो ने प्रशांत द्वीपों के ताइवान में चीन की ओर से भड़काए ‘‘राजनीतिक युद्ध’’ की ओर ध्यान आकर्षित करवाया था. इस बात से साफ़ हो जाता है कि हिंद-प्रशांत को लेकर चीन का विकास साझेदारी संबंधी दृष्टिकोण यहां के छोटे द्वीप देशों की निष्ठा हासिल करने की रणनीति के एजेंडे को आगे बढ़ाता है.[75]

 

दूसरी बात विदेशी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता की वजह से प्राप्तकर्ता देश की अपने दम पर आत्मनिर्भर और स्वतंत्र अर्थव्यवस्था विकसित करने की क्षमता क्षीण या खोखली हो जाती है. बाहरी सहायता पर भारी निर्भरता के कारण लंबी अवधि में विकास के लिए आवश्यक घरेलू उद्योगों एवं संस्थानों का विकास प्रभावित हो सकता है. इसकी वजह से एक ऐसी आश्रित होने वाली स्थिति पैदा हो जाती है, जो सहायता बंद होने के बाद भी बनी रहती है. श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह इसका सटीक उदाहरण है. इस परियोजना के कारण श्रीलंका पर कर्ज़ का बोझ काफ़ी बढ़ गया और इसकी वजह से श्रीलंका को 2017[76] में यह बंदरगाह एक चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी को लीज़ पर देने का निर्णय लेकर कर्ज़ को हल्का करना पड़ा. इस उदाहरण से यह साफ़ हो जाता है कि कैसे आर्थिक उन्नति का सपना दिखाने वाली बड़े स्तर की परियोजनाएं बाद में वित्तीय सहायता के लिए बाहर के खिलाड़ियों पर आश्रित बनाने का काम करती है. यह बात कर्ज़ स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों को भी उजागर करती है कि कैसे इसकी वजह से किसी देश की आर्थिक स्थिरता दीर्घावधि में प्रभावित होती है. BRI के माध्यम से अपने यहां हाई-स्पीड रेलवे जैसी बुनियादी सुविधा विकसित करने की इंडोनेशिया के प्रयासों ने भी आर्थिक विकास और दीर्घकालीन स्थिरता के बीच संतुलन साधने की आवश्यकताओं पर चर्चा छेड़ दी है.[77]

 

तीसरा, बड़ी मात्रा में मिलने वाली विदेशी सहायता के कारण प्रभावी अमल करने में देरी होती है. इसके साथ ही प्राप्तकर्ता देश में यह सहायता देने के वित्तीय ढांचे को लेकर स्पष्टता समेत अन्य प्रशासनिक चुनौतियां खड़ी हो जाती है. इसी प्रकार कुप्रबंधन अथवा गलत आवंटन की वजह से संसाधनों को लक्षित कार्यों के बजाय अन्य कार्य की ओर मोड़ा भी जा सकता है. ऐसा होने पर विकास परियोजना की उपयोगिता और प्रभाव घटता है और दाता तथा प्राप्तकर्ता देश के बीच भरोसे में भी कमी आती है. ऐसे में त्रिकोणीय साझेदारी का ढांचा इसका एक उदाहरण कहा जा सकता है. विकास के विभिन्न क्षेत्रों मे तीन साझेदारों को शामिल करने की वजह से त्रिकोणीय ढांचे में अक्सर समन्वय का अभाव देखा जा सकता है. इसके अलावा सरकारी ख़रीद को लेकर स्पष्टता के अभाव में लेनदेन की लागत बेहद ज़्यादा हो सकती है.[78] 

 

चौथे, कुछ मामलों में विकास सहयोग का रणनीतिक साधन के रूप में उपयोग को नवउपनिवेशवाद के चश्मे से भी देखा जा सकता है, जिसकी वजह से शक्ति असंतुलन बना रहता है. ऐसे में प्राप्तकर्ता देश पर दाता देश अधिक प्रभाव डालता दिखाई देते हैं. इस धारणा के कारण राजनायिक संबंधों पर दबाव पड़ता है और सार्वजनिक तौर पर विदेशी सहायता का विरोध होने लगता है. उदाहरण के लिए BRI का उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच बुनियादी सुविधा परियोजनाओं के माध्यम से आर्थिक उन्नति और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है, लेकिन अपने उपनिवेशवाद आशय के चलते इसे आलोचना भी झेलनी पड़ी है.[79] आलोचकों का कहना है कि BRI की वजह से चीन पर आर्थिक निर्भरता बढ़ेगी. क्योंकि प्राप्तकर्ता देशों पर चीनी वित्त प्रदाताओं का भारी कर्ज़ा चढ़ जाएगा. ऐसे में चीन को प्राप्तकर्ता देशों के राजनीतिक और आर्थिक मामलों में दख़ल देने का बेवजह हक़ हासिल हो जाएगा. यह स्थिति नवउपनिवेशवाद जैसे ही है, जहां शक्तिशाली देश कम शक्तिशाली देश को नियंत्रित करते हैं.

 

इसी प्रकार COVID-19 महामारी के दौरान ड्राइंग अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से दिए गए स्पेशल ड्राइंग अधिकार (SDRs) यानी विशेष आहरण अधिकार ने भी नवउपनिवेशवाद प्रवृत्तियों को लेकर कुछ चिंताएं पैदा की है. कुछ लोगों का तर्क है कि SDRs के वितरण से कुछ शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाएं असमान रूप से लाभान्वित होगी और इसके चलते वर्तमान में मौजूद वैश्विक आर्थिक असंतुलन की स्थिति और भी ख़राब होने की संभावना है.[80] इस धारणा की वजह से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग को अधिक न्यायोचित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. इसके साथ ही प्राप्तकर्ता देश भी अब विकास सहयोग के संभावित नवउपनिवेशवाद पहलू को लेकर सतर्क हो गए है. उदाहरण के लिए वैश्विक वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत के दौरान ब्राजील और हिंद[81] ने अब अधिक न्यायोचित शर्तों को अपनाने की वकालत करते हुए विकास परियोजनाओं की योजना और उसके अमल में ज़्यादा दख़ल मुहैया करवाने की बात कही है. वे ये सुनिश्चित करना चाहते है अनुदान और सहयोग समझौते आपसी सम्मान और साझा लाभों को ध्यान में रखकर किए जाएं. इन्हें अब उपनिवेशवाद काल के दौरान शक्ति असंतुलन को ध्यान में रखकर नहीं किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए 2021 में हुए BRICS अकादमिक फोरम के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने महामारी के बाद की वैश्विक व्यवस्था में ‘‘मानव केंद्रीत वैश्विकरण’’ स्थापित करने पर बल दिया था. उन्होंने कहा था कि, ‘‘भारत इस तरह की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने के प्रयासों में रचनात्मक योगदान देना चाहता है. वह वैश्विक दक्षिण के सहयोगी देशों के साथ अपने विकास अनुभव को साझा करते हुए यह योगदान देगा. भारत न केवल मानवीय सहायता देगा, बल्कि महामारी के दौरान आपदा राहत कार्यक्रम भी चलाएगा. इसके लिए भारत इंटरनेशनल सोलर अलायंस यानी अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ (ISA) और कोलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर यानी आपादा लचीले बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों को माध्यम बनाएगा. इसी प्रकार वह फर्स्ट रिस्पांडर (वैक्सीन मैत्री के माध्यम से) की भूमिका अदा करते हुए अपने कूटनीतिक माहौल में समग्र सुरक्षा मुहैया करवाएगा.’’[82]

 

पांचवे, विकास सहयोग के माध्यम से होने वाला हस्तक्षेप कुछ मामलों में अनपेक्षित रूप से प्रशासन संबंधी चुनौतियां पेश करने वाला साबित हो जाता है. अच्छे इरादे लेकर तैयार की गई परियोजना के सामने अनपेक्षित स्थितियां पैदा हो जाती है, जिसकी वजह से प्राप्तकर्ता देश के समक्ष मौजूद तनाव में इज़ाफ़ा हो जाता है या फिर कोई नया मुद्दा विवाद का कारण बन जाता है. इसी प्रकार अगर पहले से मौजूद राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रुकावटों का ध्यान नहीं रखा गया तो विकास सहयोग से मिलने वाली सहायता का प्रभाव घट जाता है. इसे लेकर PICs[83] का विचार किया जा सकता है जो लंबे समय से अपनी विकास आवश्यकताओं के लिए बाहरी सहायता पर ही निर्भर करते हैं. लेकिन प्रभावी सहायता की आपूर्ति लोकतंत्र में कमी, उच्च नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता समेत व्यापक प्रशासनिक स्थिति जैसे कारणों पर निर्भर होती है. आश्रितता और स्थिरता संबंधी चिंताओं का निराकरण करने के लिए आर्थिक विविधिकरण को बढ़ावा देकर PICs की स्थानीय क्षमताओं में वृद्धि करने पर बल दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए नागरिक समाज संगठनों का मजबूतीकरण और स्थानीय समुदाय को निगरानी एवं निरीक्षण प्रक्रिया में शामिल करना प्रभावी सहायता आपूर्ति की राह में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए ज़रूरी है.

 2021 में हुए BRICS अकादमिक फोरम के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने महामारी के बाद की वैश्विक व्यवस्था में ‘‘मानव केंद्रीत वैश्विकरण’’ स्थापित करने पर बल दिया था. उन्होंने कहा था कि, ‘‘भारत इस तरह की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने के प्रयासों में रचनात्मक योगदान देना चाहता है. वह वैश्विक दक्षिण के सहयोगी देशों के साथ अपने विकास अनुभव को साझा करते हुए यह योगदान देगा. भारत न केवल मानवीय सहायता देगा, बल्कि महामारी के दौरान आपदा राहत कार्यक्रम भी चलाएगा. 

इन चुनौतियों के बावजूद जब विकास सहयोग का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाता है तब यह सतत आर्थिक विकास को उत्प्रेरित करने का अहम साधन बन जाता है. मानव कल्याण को बढ़ावा देने के लिए अपने लाभकारी असर की वजह से ही विकास सहयोग आवश्यक हो जाता है. इसकी वजह से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक न्याय हासिल कर वैश्विक स्थिरता को मजबूती दी जा सकती है. ऐसा विभिन्न देशों के विकास में आने वाली रुकावटों से निपटने की क्षमता देकर किया जा सकता है. जैसे विभिन्न देश 21 वीं सदी की जटिल चुनौतियों से जूझ रहे हैं वैसे ही विकास सहयोग को लेकर प्रतिबद्धता को जारी रखना और इसका विस्तार करना न केवल नैतिक रूप से आवश्यक है, बल्कि परस्पर रूप से जुड़ी हुई दुनिया को इन संकट की बारिकियों से सुचारु रूप से निकालने के लिए भी यह एक चतुर कूटनीतिक ज़रूरत बन गया है. 

 

अपने भौगोलिक विस्तार की वजह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र प्राकृतिक आपदा, आर्थिक झटको एवं सुरक्षा संबंधी ख़तरों से जुड़ी चुनौतियों को लेकर बेहद नाजुक या अतिसंवेदनशील दिखाई देता है. ऐसे में विकास सहयोग इन कमज़ोरियों को दूर करने के लिए बेहद आवश्यक है. विकास सहयोग का उपयोग करते हुए आपदा प्रबंधन को पुख़्ता किया जा सकता है और बुनियादी सुविधाओं में विस्तार के साथ क्षमता वृद्धि की कोशिशों को बढ़ाने में कामयाबी मिल सकती है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समक्ष अनेक ट्रांसनेशनल यानी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां जैसे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय हानि और अवैध व्यापार भी खड़ी हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए विकास सहयोग आवश्यक है ताकि इस क्षेत्र के देशों को एकजुट होकर जवाबी कार्रवाई करने में सहायता की जाए. विकास सहयोग से ही इस तरह की जटिल लेकिन पारस्परिक रूप से जुड़ी हुई चुनौतियों को निपटने की क्षमता को बढ़ाया जा सकेगा.

 

अत: प्राप्तकर्ता देशों की राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों को समझने की समग्र कोशिश करने के लिए संघर्ष आकलन किया जाना चाहिए. इसमें स्थानीय हितधारकों को शामिल किया जा सकता है. इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विकास पहल समावेशी और चिरस्थायी हो.

निष्कर्ष

विकास सहयोग की राजनीति में साझेदार देशों के हितों का जटिल पारस्परिक प्रभाव, विचारधारा तथा शक्ति गतिविज्ञान शामिल होता है. यह एक बहुआयामी क्षेत्र है, जिसमें भू-राजनीतिक, भूआर्थिक और भू-रणनीतिक विचार वैश्विक चुनौतियों का निराकरण करने के लिए एकजुट होते हैं.

 

विकास सहयोग को किसी देश की व्यापक विदेश नीति दृष्टिकोण का वास्तविक इज़हार कहा जा सकता है. विभिन्न देश अपने रणनीतिक और राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए अपनी निधि का उपयोग करते हैं. वित्तीय सहायता मुहैया करवाने से अनेक कार्य किए जा सकते हैं. इसका उपयोग करते हुए राजनायिक संबंध मजबूत होते हैं, आर्थिक संबंध को बढ़ावा मिलता है और अनेक रणनीतिक क्षेत्रों में देश के प्रभाव का विस्तार किया जा सकता है. सहायता का उपयोग तटस्थ कार्रवाई नहीं है. इसके साथ राजनीतिक इरादों का वजन भी होता है जो किसी देश की ख़ुद को सॉफ्ट पॉवर के रूप में पेश करने की महत्वाकांक्षा की झलक भी दिखलाता है.

 

हिंद-प्रशांत जैसे भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में विकास सहयोग के पीछे छुपी राजनीतिक बारिकियां स्पष्ट दिखाई देती हैं. भारत जैसा देश यहां की समुद्री जटिलताओं से जुड़ी भूराजनीति में विकास सहयोग के माध्यम से ही अपनी राह बनाते हुए ख़ुद को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में पुख़्ता रूप से स्थापित करता है. वह ऐसा इस क्षेत्र की स्थिरता और संपन्नता में योगदान देते हुए अपना रास्ता तय कर रहा है. 

 

COVID-19 महामारी की वजह से अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग के गतिविज्ञान में महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है. यह बदलाव विशेषत: वैश्विक दक्षिण के उभरने के कारण देखा जा रहा है. इस बदलाव से अब ताकत और प्रभाव का धीरे-धीरे विकेंद्रीकरण होने का संकेत मिल रहा है. इसमें वैश्विक दक्षिण के देश प्राप्तकर्ता, दाता और विकास में साझेदार बन रहे हैं. इस उभरते परिदृश्य में विकास सहयोग की राजनीति को विभिन्न कारक प्रभावित करते है. सहायता की प्रभावशीलता पर अब इसके असर और स्थिरता के चश्मे से जांच की जाती है. क्योंकि प्राप्तकर्ता देश में मौजूद प्रशासन संबंधी चुनौतियां पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर कुछ सवाल खड़े करते हैं. इसी प्रकार सहायता के बदले में नवउपनिवेशवाद का ख़तरा भी मंडराता रहता है, क्योंकि प्राप्तकर्ता देशों के ऊपर बाहरी मूल्यों और प्राथिकमताओं को थोपे जाने लेकर चिंताएं भी बनी रहती हैं. अंतत: इन सहायताओं के साथ जोड़ी जाने वाली शर्तों की वजह से यह बहस छिड़ जाती है कि ये शर्तें संप्रभुता का उल्लंघन करती हैं और इन देशों के विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए सहायता को लेकर उनकी स्वायत्तता भी प्रभावित होती है.

 

ये सिद्धांत इस वास्तविकता पर बल देते हैं कि विकास सहयोग एक ऐसा क्षेत्र है, जहां व्यापक सहयोग आदेश के तहत समझौता तथा प्रतिवाद होता है. अत: यह साफ़ है कि विकास सहयोग अंतरराष्ट्रीय संबंधों की व्यापक परस्पर क्रिया का एक सूक्ष्म रूप है, जो परस्पर रूप से जुड़े विश्व की महत्वाकांक्षा, चुनौतियों और जटिलता की झलक दिखलाता है. 

Endnotes

[a] Crises such as the COVID-19 pandemic, climate change impacts, and conflicts in Gaza and Ukraine have resulted in food and energy insecurity, surging inflation, and increased debt burdens.

[b] The DAC was formed in 1960 as an international grouping of traditional development providers. Currently, it consists of 32 countries/unions: Australia, Austria, Belgium, Canada, Czechia (or Czech Republic), Denmark, the European Union, Estonia, Finland, France, Germany, Greece, Hungary, Iceland, Ireland, Italy, Japan, Lithuania, Luxembourg, the Netherlands, New Zealand, Norway, Poland, Portugal, Slovak Republic, Slovenia, South Korea, Spain, Sweden, Switzerland, the UK, and the US.

[c] Notably, although there is no automatic relationship between ODA levels and GDP growth, it has been used for the purpose of explanation by the OECD.

[d] Notably, the International Bank for Reconstruction and Development, an arm of the World Bank, Oxfam, the Centre for American Relief in Europe, and the United Nations Relief and Rehabilitation Agency.

[e] Since there is no commonly agreed-upon definition of the Indo-Pacific, it is difficult to state the exact number of countries in the region. Each country defines and demarcates the region according to its own geographical interests and territorial positioning. Geospatially, the Indo-Pacific is broadly understood to cover the interconnected space between the Indian and Pacific Oceans.

[f] In 2020, Japan announced capacity-building projects for 1,000 individuals over the next three years.

[g] This corridor involves the refurbishment of the national road No. 5 crossing Cambodia and the construction of a highway crossing southern Vietnam.

[h] This corridor involves the construction of roads and bridges between Mawlamyaing and Kawkareik in southeast Myanmar and the refurbishment of national road no. 9 in central Laos.

[i] Proparco is a subsidiary agency of the French Development Agency, focusing on private sector development.

[j] Cook Islands, Federated States of Micronesia, Fiji, Kiribati, Nauru, Niue, Palau, Republic of Marshall Islands, Samoa, Solomon Islands, Tonga, Tuvalu, and Vanuatu.

[k] The overseas countries and territories are in the Atlantic, Antarctic, Arctic, Caribbean, and Pacific regions. They include Aruba, Bonaire, Curaçao, French Polynesia, French Southern and Antarctic Territories, Greenland, New Caledonia, Saba, Saint Barthélemy, St. Eustatius, Sint Maarten, St. Pierre and Miquelon, Wallis, and Futuna. Although not completely sovereign, they depend, to varying degrees, on Denmark, the Netherlands, and France. They also have wide-ranging autonomy in areas of health, economics, home affairs, and customs.

[l] Germany has included Malawi, Ghana, Cameroon, and Peru in its Indo-Pacific strategy and these initiatives fall under its Indo-Pacific programmes.

[m] Aid orthodoxies refer to the systemic flaws observed in the traditional development cooperation models led by the advanced economies. These include inherent biasness and inequalities towards certain interventions which aim to leverage the interests of the development provider. One of the major loopholes include treating the beneficiary as a subsidiary rather than as an equal or partner in a development cooperative framework.

[n] A research and development wing of India’s Ministry of Electronics and Information Technology.

[o] Launched in 2021, the Global Development Initiative and the Global Security Initiative aim to recalibrate and redefine China’s outlook towards development cooperation and sustainable development.

[p] This is the latest figure available on the public portal.

[q] For the purposes of distinguishing between countries providing aid and those receiving it, the terms ‘donor’ and ‘recipient’ are used in this section.

[1] Sachin Chaturvedi et al., The Palgrave Handbook of Development Cooperation for Achieving the 2030 Agenda (Palgrave Macmillan, 2021).

[2] Department of Economic and Social Affairs, “International Development Cooperation,” United Nations, https://financing.desa.un.org/topics/international-development-cooperation

[3] Kate Whiting and HyoJin Park, “This is Why ‘Polycrisis’ is a Useful Way of Looking at the World Right Now,” World Economic Forum, 2023, https://www.weforum.org/agenda/2023/03/polycrisis-adam-tooze-historian-explains/

[4] United Nations Sustainable Development Goals, “Partnerships: Why They Matter,” United Nations Office of Sustainable Development, 2020, https://www.un.org/sustainabledevelopment/wp-content/uploads/2019/07/17_Why-It-Matters-2020.pdf

[5] Organization for Economic Cooperation and Development, “Closing the SDG Financing Gap in the COVID-19 Era,” United Nations Development Programme, https://www.oecd.org/dev/OECD-UNDP-Scoping-Note-Closing-SDG-Financing-Gap-COVID-19-era.pdf

[6] Yasmin Ahmad and Eleanor Carey, “Development Co-operation During the COVID-19 Pandemic: An Analysis of 2020 Figures and 2021 Trends to Watch,” OECD Library, https://www.oecd-ilibrary.org/sites/e4b3142a-en/index.html?itemId=/content/component/e4b3142a-en

[7] Eleanor Carey, Harsh Desai, and Yasmin Ahmad, “Tracing the Impacts of Russia’s War of Aggression Against Ukraine on Official Development Assistance (ODA),” OECD, 2023, https://www.oecd-ilibrary.org/sites/5096b978-en/images/pdf/dcd-2023-413-en.pdf

[8] OECD, “Shaping a Just Digital Transformation”

[9] Ahmad and Carey, “Development Co-operation During the COVID-19 Pandemic”

[10] “Dutch Development Policy,” Development Cooperation, Government of the Netherlands, https://www.government.nl/topics/development-cooperation/the-development-policy-of-the-netherlands

[11] Kristalina Georgieva, “The Time is Now: We Must Step Up Support for the Poorest Countries,” International Monetary Fund, March 31, 2023, https://www.imf.org/en/Blogs/Articles/2023/03/31/the-time-is-now-we-must-step-up-support-for-the-poorest-countries

[12] Jorge A. Perez-Pineda and Dorothea Wehrmann, “Partnerships with the Private Sector: Success Factors and Levels of Engagement in Development Cooperation,” in The Palgrave Handbook of Development Cooperation for Achieving the 2030 Agenda (Palgrave Macmillan, 2020), https://link.springer.com/chapter/10.1007/978-3-030-57938-8_30

[13] Arun Asok, “Bridging the SDG Financing Gap Through First-Time Fund Managers,” International Institute for Sustainable Development, June 21, 2023, https://sdg.iisd.org/commentary/guest-articles/bridging-the-sdg-financing-gap-through-first-time-fund-managers/

[14] Perez-Pineda and Wehrmann, “Partnerships with the Private Sector: Success Factors and Levels of Engagement in Development Cooperation”

[15] Cynthia Liao and Bernice Lee, “The Geopolitics of Development,” Chatham House, 2022, https://www.chathamhouse.org/2022/12/building-global-prosperity/03-geopolitics-development

[16]  Mohammad Masudur Rahman, Chanwahn Kim, and Prabir Dey, “Indo-Pacific cooperation: What do Trade Simulations Indicate?” Journal of Economic Structures (2020), https://doi.org/10.1186/s40008-020-00222-4

[17]  Cleo Paskal, “Indo-Pacific Strategies, Perceptions and Partnerships: The View from Seven Countries,” Chatham House, 2021, https://www.chathamhouse.org/sites/default/files/2021-03/2021-03-22-indo-pacific-strategies-paskal.pdf

[18] Shinzo Abe, “Confluence of the Two Seas” (speech, Ministry of Foreign Affairs of Japan, August 22, 2007), https://www.mofa.go.jp/region/asia-paci/pmv0708/speech-2.html

[19] Ministry of Foreign Affairs of Japan, “Japan’s Effort for a ‘Free and Open Indo-Pacific,” https://www.mofa.go.jp/files/100056243.pdf

[20] Ministry of Foreign Affairs of Japan, “Japan-ASEAN Connectivity Initiative,” 2020, https://www.mofa.go.jp/files/100114591.pdf

[21] Australian Infrastructure Financing Facility for the Pacific, “Papua New Guinea Electrification Partnership,” June 30, 2020, https://www.aiffp.gov.au/news/papua-new-guinea-electrification-partnership

[22] Department of Foreign Affairs and Trade, Australian Government, Australia’s Official Development Assistance Budget Summary 2023-24, https://www.dfat.gov.au/about-us/corporate/portfolio-budget-statements/australias-official-development-assistance-budget-summary-2023-24

[23] Ministry of Foreign Affairs, Australian Government, Australia’s New International Development Policy and Development Finance Review, 2023 https://www.foreignminister.gov.au/minister/penny-wong/media-release/australias-new-international-development-policy-and-development-finance-review

[24]  “ASEAN Capacity Building Roadmap for Consumer Protection 2025,” ASEAN, 2020, https://asean.org/asean-capacity-building-roadmap-for-consumer-protection-2025/

[25] Government of France, France’s Indo-Pacific Strategyhttps://www.diplomatie.gouv.fr/IMG/pdf/en_dcp_a4_indopacifique_022022_v1-4_web_cle878143.pdf

[26] Nur Asena Erturk, “France’s Macron Denounces ‘New Imperialisms’ in Indo-Pacific Region, Oceania,” Anadolu Agency, 2023, https://www.aa.com.tr/en/europe/frances-macron-denounces-new-imperialisms-in-indo-pacific-region-oceania/2955973

[27] Japan International Cooperation Agency, “Signing of the Renewed Memorandum of Cooperation with the French Development Agency: Promoting Collaboration on Climate Change Countermeasures in the Indo-Pacific Region and Africa,” 2023, https://www.jica.go.jp/english/information/press/2023/20230425_10e.html

[28]  “How Proparco is Supporting French Strategy in the Indo-Pacific Region,” Proparco, February 16, 2023, https://www.proparco.fr/en/actualites/how-proparco-supporting-french-strategy-indo-pacific-region

[29] Ministry of External Affairs, Government of India, “India-France Indo-Pacific Roadmap,” https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/36799/IndiaFrance+IndoPacific+Roadmap

[30] Agence Française de Développement, Government of France, https://www.afd.fr/en/actualites/communique-de-presse/kiwa-initiative-launches-projects-contributions-climate-resilience-pacific-region

[31] Global Gateway, “EU Indo-Pacific Strategy,” 2023, https://www.eeas.europa.eu/sites/default/files/documents/2023/EU%20Indo-pacific.pdf

[32] European Union External Action, “Pacific,” https://www.eeas.europa.eu/eeas/pacific_en;

[33] European External Action Service, “ASIA and the PACIFIC Regional Multi-Annual Indicative Programme 2021-2027,” European Union, https://international-partnerships.ec.europa.eu/system/files/2022-01/mip-2021-c2021-9251-asia-pacific-annex_en.pdf“European Union Action in the Pacific,” European Union, 2023 https://www.eeas.europa.eu/sites/default/files/documents/2023/EU%20Action%20in%20the%20Pacific%20-%20factsheet.pdf

[34] United States Agency for International Development, United States Government, https://www.usaid.gov/pacific-islands/our-work

[35] United States Agency for International Development, “Pacific Islands Regional Profile,” United States Government, 2022, https://www.usaid.gov/sites/default/files/2022-05/2022_Pacific_Islands_Regional_Profile.pdf

[36] USAID, “US and India Promote Health Collaboration Indo-Pacific Region,” 2023, https://www.usaid.gov/india/press-releases/may-05-2023-us-and-india-promote-health-collaboration-indo-pacific-region

[37] USAID, “Advancing Sustainable Infrastructure in the Indo-Pacific Region,” 2023, https://2017-2020.usaid.gov/sites/default/files/documents/1861/USAID_ITAN_Fact_Sheet_080719.pdf

[38] Federal Foreign Office, “The Indo-Pacific Region,” https://www.auswaertiges-amt.de/en/aussenpolitik/regionaleschwerpunkte/asien/indo-pacific/2493040

[39] Tarveen Kaur, “Growing German Engagement in the Indo-Pacific,” Indian Council of World Affairs, New Delhi, 2022, https://www.icwa.in/show_content.php?lang=1&level=1&ls_id=8783&lid=5742

[40] The Federal Government, Progress Report on the Implementation of the Federal Government’s Policy Guidelines for the Indo-Pacific in 2023https://www.auswaertiges-amt.de/blob/2617992/61051683e7e1521583b3067fb3200ad8/230922-leitlinien-indo-pazifik-3-fortschrittsbericht-data.pdf

[41] Knowledge and News Network, “Indo-German Cooperation Yields Success in Sustainable Development Projects in Five Nations, 2023, https://knnindia.co.in/news/newsdetails/sectors/others/indo-german-cooperation-yields-success-in-sustainable-development-projects-in-five-nations

[42]  Dipanjan Roy Chaudhury, “India Partners with Germany to Deliver Development Projects in Benin, Cameroon, Ghana, Malawi & Peru,” The Economic Times, 2023, https://www.ris.org.in/sites/default/files/mediacentre/India%20partners%20with%20Germany%20to%20deliver%2C%20Malawi%20%26%20Peru%20-RIS%20in%20Media-Triangular%20Cooperation-2-3%20nov%202023.pdf

[43] Paul Wozniak, “Three Years of UK Aid Cuts: Where Has ODA Been Hit Hardest?” Development Initiatives, 2023, https://devinit.org/resources/three-years-of-uk-aid-cuts-where-has-oda-been-hit-hardest/

[44] UK International Development, “International Development in a Contested World: Ending Extreme Poverty and Tackling Climate Change,” 2023, https://assets.publishing.service.gov.uk/media/6576f37e48d7b7001357ca5b/international-development-in-a-contested-world-ending-extreme-poverty-and-tackling-climate-change.pdf

[45] Government of United Kingdom, Plan of Action to Implement the ASEAN-United Kingdom Dialogue Partnership (2022 to 2026), 2022, https://www.gov.uk/government/publications/asean-uk-dialogue-partnership-plan-of-action-2022-to-2026/plan-of-action-to-implement-the-asean-united-kingdom-dialogue-partnership-2022-to-2026

[46] Government of United Kingdom, UK and India Launch New Grids Initiative to Deliver Clean Power to the World, 2021, https://www.gov.uk/government/news/uk-and-india-launch-new-grids-initiative-to-deliver-clean-power-to-the-world

[47] Ministry of External Affairs, Government of India, UK-India Global Partnership Programmehttps://www.mea.gov.in/Portal/Tender/5138_2/1_4_Tender-1-1.pdf

[48] Anthea Mulakala, “India’s Approach to Development Cooperation,” in The Palgrave Handbook of Development Cooperation for Achieving the 2030 Agenda, 2019.

[49] Cheryl McEwan and Emma Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships” (paper presented at OUCAN workshop, Oxford, March 2012 and RGS-IBG Annual Conference, July, 2012).

[50] MEA Performance Dashboard

[51] Prime Minister’s Office, Government of India, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1926143#:~:text=James%20Marape%20received%20Prime%20Minister,with%20the%20Pacific%20Island%20countries

[52] Ministry of External Affairs (speech, FIPIC III Summit, May 22, 2023), https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/36588/English_translation_of_Prime_Ministers_closing_statement_at_the_FIPIC_III_Summit

[53] UNESCO, “Technology in Education: A Case Study on Timor-Leste,” 2023,  https://unesdoc.unesco.org/ark:/48223/pf0000387828

[54] Ministry of Foreign Affairs of the People’s Republic of China, China: A Development Partner to the Pacific Region, 2022,  https://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/wjb_663304/zwjg_665342/zwbd_665378/202203/t20220311_10650946.html

[55] Deborah Brautigam and Meg Rithmire, “The Chinese ‘Debt Trap’ is a Myth,” The Atlantic, 2021, https://www.theatlantic.com/international/archive/2021/02/china-debt-trap-diplomacy/617953/

[56] “Inflation, Drought Push Djibouti to Suspend Loan Payments to China,” ADF Magazine, 2023, https://adf-magazine.com/2023/01/inflation-drought-push-djibouti-to-suspend-loan-payments-to-china/https://adf-magazine.com/2023/01/inflation-drought-push-djibouti-to-suspend-loan-payments-to-china/

[57] Alex Vines OBE, “Climbing out of the Chinese Debt Trap,” Chatham House, 2022, https://www.chathamhouse.org/publications/the-world-today/2022-08/climbing-out-chinese-debt-trap

[58] Swati Prabhu and Nilanjan Ghosh, “Does “Market Imperialism” Drive China’s Development Partnership Model?” Observer Research Foundation, 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/does-market-imperialism-drive-chinas-development-partnership-model/

[59] United Nations Development Programme, “South-South and Triangular Cooperation in Indonesia,” 2015, https://www.undp.org/indonesia/publications/south-south-and-triangular-cooperation-indonesia

[60] Ministry of National Development Planning, Republic of Indonesia, “Indonesia’s Foreign Policy, Indonesia South-South and Triangular Cooperation,” https://www.cbd.int/financial/southsouth/Indonesia-south.pdf

[61] Nur Masripatin, “Indonesia’s South-South and Triangular Cooperation Experiences in the Context of ASEAN,” UNFCC, 2018, https://unfccc.int/ttclear/misc_/StaticFiles/gnwoerk_static/events_2018_4/081b6401e98e4f539ea5a2df9f2eb424/869985e145df42c687e51941dc937ca7.pdf

[62] Ministry of Foreign Affairs, Republic of Indonesia, The Bali Message for Development Cooperation in the Pacific, The Indonesia Pacific Forum for Development, 2022, https://kemlu.go.id/portal/en/read/4233/siaran_pers/the-bali-message-for-development-cooperation-in-the-pacific-the-indonesia-pacific-forum-for-development

[63] Chris Alden, Sally Morphet, and Marco Antonio Vieira, “The South in World Politics: An Introduction,” in The South in World Politics (United Kingdom: Palgrave Macmillan, 2010), 1-23, https://doi.org/10.1057/9780230281196_1

[64] Cheryl McEwan and Emma Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships,” Development and Change 43, no. 6 (2012).

[65] McEwan and Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships”

[66] Development Assistance Committee, “Shaping the 21st Century: The Contribution of Development Co-operation,” Organisation for Economic Cooperation and Development, 1996, https://www.oecd.org/dac/2508761.pdf

[67] Niels Keijzer and Erik Lundsgaarde, “When ‘Unintended Effects’ Reveal Hidden Intentions: Implications of ‘Mutual Benefit’ Discourses for Evaluating Development Cooperation,” Evaluation and Program Planning 68 (2018): 210-17, https://doi.org/10.1016/j.evalprogplan.2017.09.003

[68] McEwan and Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships”

[69] McEwan and Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships”

[70] Soyeun Kim, “Korea: ‘Something Old’ and ‘Something Borrowed’,” NORRAG Newsletter 44, (2010): 76-78, https://resources.norrag.org/storage/documents/0R2AWkm6kjMCMKpYFvisiUzYMwueeU6Vy8SofUGo.pdf

[71] McEwan and Mawdsley, “Trilateral Development Cooperation: Power and Politics in Emerging Aid Relationships”

[72] Goran Hyden, “After the Paris Declaration: Taking on the Issue of Power,” Development Policy Review 26 (2008): 259.

[73] “Malaysia, China Agree to Resume Railway Project After Slashing Cost,” Reuters, April 12, 2019, https://www.reuters.com/article/idUSKCN1RO0LV/

[74] Prithvi Gupta, “Chinese Incursions in the South Pacific,” Observer Research Foundation, 2022, https://www.orfonline.org/expert-speak/chinese-incursions-in-the-south-pacific/

[75] Ben Doherty and Kate Lyons, “Outgoing President of Micronesia Accuses China of Bribery, Threats and Interference,” The Guardian, 2023, https://www.theguardian.com/world/2023/mar/10/outgoing-president-of-micronesia-accuses-china-of-bribery-threats-and-interference

[76] “Sri Lanka Signs Deal on Hambantota Port with China,” BBC, July 29, 2017, https://www.bbc.com/news/world-asia-40761732

[77] Muhammad Zulfikar Rakhmat, “Why Indonesia Should Be Cautious in Extending its High-Speed Railway,” The Diplomat, 2023, https://thediplomat.com/2023/07/why-indonesia-should-be-cautious-in-extending-its-high-speed-railway/

[78] Talita Yamashiro Fordelone, “Triangular Co-operation and Aid Effectiveness: Can Triangular Co-operation Make Aid More Effective?” ECD Journal: General Papers 1 (2010), https://doi.org/10.1787/gen_papers-2010-5kgc6cl31rnx

[79] Anthony Kleven, “Belt and Road: Colonialism with Chinese Characteristics,” Lowy Institute, May 6, 2019, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/belt-road-colonialism-chinese-characteristics

[80] Kevin P. Gallagher, Jose Antonio Ocampo, and Ulrich Volz, comment on “IMF Special Drawing Rights: A Key Tool for Attacking a COVID-19 Financial Fallout in Developing Countries,” Brookings, comment posted March 26, 2020, https://brookings.edu/articles/imf-special-drawing-rights-a-key-tool-for-attacking-a-covid-19-financial-fallout-in-developing-countries/

[81] Ministry of External Affairs, India and United Nations, 2020 https://www.mea.gov.in/Portal/ForeignRelation/India_UN_2020.pdf

[82] Harsh Vardhan Shringla, “India’s Foreign Policy in the Post-Covid World: New Vulnerabilities, New Opportunities” (speech, June 18, 2021), Public Affairs Forum of India, Speeches and Statements, Ministry of External Affairs, Government of India, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33929/Foreign_Secretarys_Remarks_on_Indias_Foreign_Policy_in_the_PostCovid_World_New_Vulnerabilities_New_Opportunities_Public_Affairs_Forum_of_India

[83] Terence Wood, Sabit Otor, and Matthew Dornan, “Why are Aid Projects Less Effective in the Pacific?” Development Policy Review, 2021, https://doi.org/10.1111%2Fdpr.12573  

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Authors

Swati Prabhu

Swati Prabhu

Dr Swati Prabhu is Associate Fellow with the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. Her research explores the interlinkages between development ...

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Pratnashree Basu

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...

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