भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस सप्ताह के अंत में ब्रिक्स एनएसए की बैठक में भाग लेने मॉस्को जा रहे हैं. अटकलें हैं कि वे रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए एक शांति योजना साथ ले जा रहे हैं. यह प्रधानमंत्री की उस सक्रिय कूटनीति को आगे बढ़ाएगा, जिसके चलते उन्होंने 8-9 जुलाई को रूस और 23 अगस्त को यूक्रेन का दौरा किया था. डोभाल के मिशन का विवरण तो ज्ञात नहीं है, लेकिन इसने आशा की लहर पैदा की है.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 5 सितंबर को व्लादीवोस्तोक में सुदूर पूर्वी आर्थिक मंच पर बोलते हुए अटकलों को हवा दी थी कि भारत उन तीन देशों में से एक है, जिनके साथ वे यूक्रेन-संघर्ष को लेकर लगातार संपर्क में हैं. उन्होंने कहा कि हम अपने मित्रों और भागीदारों का सम्मान करते हैं, जो- मेरा मानना है- इस संघर्ष से जुड़े सभी मुद्दों को ईमानदारी से हल करना चाहते हैं, मुख्य रूप से चीन, ब्राजील और भारत.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 5 सितंबर को व्लादीवोस्तोक में सुदूर पूर्वी आर्थिक मंच पर बोलते हुए अटकलों को हवा दी थी कि भारत उन तीन देशों में से एक है, जिनके साथ वे यूक्रेन-संघर्ष को लेकर लगातार संपर्क में हैं.
तीनों ही ब्रिक्स के सदस्य हैं, जिनके नेताओं का शिखर सम्मेलन अक्टूबर में रूस के कजान में होगा. मई 2024 में, चीन और ब्राजील ने शांति योजना का प्रस्ताव रखा था, जिसमें युद्ध के विस्तार को रोकने और शांति सम्मेलन का आह्वान किया गया था.
संवाद कायम करने में मदद
वहीं रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता दमीत्री पेसकोव ने इज़वेस्तीया दैनिक को पृथक से बताया कि भारत यूक्रेन पर एक संवाद कायम करने में रूस की मदद कर सकता है. उन्होंने कहा कि मोदी और पुतिन के बीच मौजूदा रचनात्मक और मैत्रीपूर्ण संबंधों का नतीजा आगे किसी समाधान के रूप में निकल सकता है, क्योंकि मोदी ने पुतिन, जेलेंस्की और अमेरिकियों के साथ स्वतंत्र रूप से संवाद किया है. इससे भारत को अपने प्रभाव का उपयोग करके अमेरिका और यूक्रेन को शांतिपूर्ण समझौते की राह पर आगे बढ़ाने का अवसर मिला है.
मोदी की हालिया कूटनीति से बहुत आशाएं जगती हैं. यह दौर जून 2024 में इटली में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान जेलेंस्की के साथ बैठक से शुरू हुआ था. इसके बाद 8-9 जुलाई को रूस की यात्रा हुई और 23 अगस्त को मोदी यूक्रेन गए, जो कि किसी भारतीय नेता की पहली यूक्रेन-यात्रा थी. कीव के लिए ट्रेन में सवार होने से पहले पोलैंड में बोलते हुए मोदी ने कहा था कि हमारा रुख बहुत स्पष्ट है- यह युद्धों का युग नहीं है.
वहीं कीव में अपनी नौ घंटे की यात्रा के दौरान मोदी ने जेलेंस्की से कहा कि यूक्रेन और रूस को बिना समय बर्बाद किए युद्ध को समाप्त करने के बारे में चर्चा करनी चाहिए और भारत इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, हम तटस्थ नहीं हैं. शुरू से ही हमने पक्ष लिया है और यह शांति का पक्ष है.
हम तटस्थ नहीं हैं. शुरू से ही हमने पक्ष लिया है और यह शांति का पक्ष है.
जब मोदी मॉस्को में थे, तब 9 जुलाई को एक रूसी मिसाइल हमले ने कीव में बच्चों के एक अस्पताल को नष्ट कर दिया था और मोदी ने पुतिन को दिए संकेतों में मासूम बच्चों की हत्या की भावनात्मक रूप से निंदा की थी.
व्लादीवोस्तोक शिखर सम्मेलन में पुतिन ने 2022 में युद्ध के पहले हफ्तों में रूस और यूक्रेन के बीच एक प्रारंभिक समझौते के बारे में बात की थी, जिसे लागू नहीं किया गया. यह एक तटस्थ यूक्रेन के लिए सुरक्षा-गारंटी के रूप में था.
हालांकि पुतिन ने यूक्रेन पर बातचीत को बढ़ावा देने के लिए भारत, ब्राजील और चीन को संभावित मध्यस्थ बताया है, लेकिन स्पष्ट रूप से ये मोदी ही हैं, जिन्होंने युद्धरत देशों की लगातार यात्राओं के माध्यम से खुद को संभावित शांतिदूत के रूप में स्थापित किया है. नई दिल्ली ने इस मुद्दे पर बहुत सावधानी बरती है.
कूटनीतिक संबंध का लाभ
उसने मॉस्को की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में शामिल होने से इनकार कर दिया और रूस की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए स्विस शिखर सम्मेलन में भी संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया. दूसरी तरफ, नई दिल्ली को अमेरिका के साथ कूटनीतिक संबंध होने का भी लाभ प्राप्त है.
26 अगस्त को यूक्रेन से लौटने के तीन दिन बाद मोदी ने बाइडेन से बात की और अगले दिन पुतिन से चर्चा की. एक्स पर मोदी ने कहा कि पुतिन से बातचीत में उन्होंने यूक्रेन-संघर्ष के शीघ्र, स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया है. लेकिन यहां से आगे का रास्ता स्पष्ट नहीं है.
जेलेंस्की का सुझाया
एक ओर, राष्ट्रपति जेलेंस्की इस साल नवंबर में एक और शांति सम्मेलन की योजना बना रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि इसमें भारत और रूस भी शामिल होंगे. दूसरी ओर, पुतिन द्वारा ब्राजील, भारत और चीन से संबंधित टिप्पणियों को इस तरह से तैयार करना यह संकेत दे सकता है कि रूस ब्रिक्स नेताओं के आगामी शिखर सम्मेलन का उपयोग कर सकता है. जेलेंस्की ने यह भी सुझाया है कि अगर भारत स्विस शिखर सम्मेलन की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो तो वह शांति शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर सकता है. बहरहाल, युद्ध बदस्तूर जारी है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.