Author : Ramanath Jha

Special ReportsPublished on Aug 31, 2022
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#Urban Planning: दिल्ली की तीन नगरपालिका निकायों के विलय और उसके परिणाम का निष्पक्ष विश्लेषण

अप्रैल में दिल्ली नगर निगम (संशोधन) कानून, 2002 ने उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली नगर निगमों को एक अर्बन लोकल बॉडी (यूएलबी) में विलय कर दिया जिसे दिल्ली नगर निगम कहा गया. इस विलय के ज़रिए उम्मीद की गई कि सेवाओं में बेहतरी हासिल की जाएगी, व्यापक वित्तीय मज़बूती इससे सुनिश्चित की जाएगी, साथ ही इकोनॉमी ऑफ़ स्केल और प्रशासनिक दोहरापन समाप्त किया जा सकेगा लेकिन इस कानून ने ना तो यूएलबी के कार्यात्मक और वित्तीय डोमेन और ना ही 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम में दिये गए लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को रेखांकित किया. यह पेपर तीनों नगरपालिका निकायों के विलय के फैसले और इसके परिणामों का विश्लेषण करता है.


एट्रीब्यूशन: रामनाथ झा, “दिल्ली नगर निगमों के विलय का विश्लेषण” ओआरएफ़  ओकेज़नल पेपर नं 362, अगस्त 2022, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.


परिचय

अप्रैल 2022 में भारतीय संसद ने उत्तर, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली नगरपालिका एजेंसियों को एक एकीकृत निकाय, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में विलय करने के लिए दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम पारित किया था.[i] इसने दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम  2011 द्वारा शुरू किए गए नगर निकायों के विभाजन को ख़त्म कर दिया. [ii] एकीकृत शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) 22 मई 2022 को सामने आए. [iii] हालांकि नगरपालिका वार्डों की सीमाओं को फिर से बनाना; चुनावी वार्डों की संख्या को कम करना; और कर्मचारियों की तैनाती, वित्त, सेवाओं और एक सामान्य टैक्सेसन रेट को समायोजित करना काफी समय लेने वाला मामला होगा. इसे देखते हुए दिल्ली राज्य चुनाव आयोग ने नगरपालिका चुनावों की तारीख़ों की घोषणा को स्थगित कर दिया, जो शुरू में अप्रैल या मई में होने वाले थे. [iv] इस बीच, जैसा कि अधिनियम द्वारा निर्धारित किया गया था, केंद्र सरकार ने एमसीडी के मामलों की देखरेख के लिए एक विशेष अधिकारी और एक आयुक्त की नियुक्ति कर दी.[v]

यह पेपर सियासत से परे तीनों यूएलबी के विलय और उसके नतीजों का विश्लेषण करता है. यह दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम  2011 का आकलन करता है, जिसने तत्कालीन एमसीडी, भारत और दुनिया भर में विलय के अन्य उदाहरणों और ऐसे फैसले के पीछे के कारणों का आकलन किया.

हालांकि, तब कई राजनीतिक दलों ने एकीकरण की वैधता और टाइमिगं पर सवाल उठाया था, [vi] यह देखते हुए कि यह होने वाले नगरपालिका चुनावों से ठीक पहले लाया गया था और केंद्र सरकार का दावा था कि इस विलय से शहर का हित होगा क्योंकि इससे शासन और नगरपालिका के वित्त में सुधार मुमकिन हो पाएगा, [vii] और यह तीनों नगर निकायों में सेवा शर्तों में पाई जाने वाली असमानताओं के कारण नागरिक कर्मचारियों के बीच असंतोष को भी कम करेगा.[viii]

यह पेपर सियासत से परे तीनों यूएलबी के विलय और उसके नतीजों का विश्लेषण करता है. यह दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम  2011 का आकलन करता है, जिसने तत्कालीन एमसीडी, भारत और दुनिया भर में विलय के अन्य उदाहरणों और ऐसे फैसले के पीछे के कारणों का आकलन किया. यह पेपर इस बात की भी जांच करता है कि क्या 2022 के मर्जर एक्ट (विलय अधिनियम) बेहतर शहरी शासन के सिद्धांतों की शर्तों को पूरा करता है और इस तरह के विलय से पैदा होने वाली शिकायतों को दूर करने के तरीकों की सिफारिश करता है.

दिल्ली के नगर निकायों का विभाजन और एकीकरण

साल 2011 से पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में तीन नगरपालिका संस्थाओं में से एक एमसीडी हुआ करती थी, जो 1,397.3 वर्ग किमी के क्षेत्र और 11,007,835 की आबादी को कवर करती थी. [ix] दूसरे दो निकाय नई दिल्ली नगर परिषद थे, जिनका क्षेत्रफल 42.7 वर्ग किमी था और 257,803, [x] की आबादी और दिल्ली छावनी बोर्ड, 33.92 वर्ग किमी के क्षेत्र और 116,352 की आबादी के साथ यह अस्तित्व में था. [xi] 2011 के दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम ने एमसीडी को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित कर दिया गया, जबकि नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड को अछूता छोड़ दिया गया.

बताया जाता है कि दिल्ली में ज़रूरी नागरिक सेवाओं की बिगड़ती स्थिति को लेकर ही एमसीडी का तीन हिस्सों में विभाजन किया गया था. सालों से  कई समितियां, जैसे कि बालकृष्णन समिति (1989), [xii] ने इस मुद्दे का अध्ययन किया है और यह सलाह दी है कि अखंड एमसीडी को ख़त्म कर इसे कई कॉम्पैक्ट नगर पालिकाओं में बदल दिया जाना चाहिए. [xiii] वीरेंद्र प्रकाश समिति (2001) [xiv] ने सिफारिश की कि एमसीडी को चार निगमों और दो परिषदों में विभाजित किया जाना चाहिए, जबकि मंत्रियों के समूह ने इसे पांच में विभाजित करने का सुझाव दिया था. [xv] हालांकि समितियां विभाजन से बनने वाले निगमों की संख्या पर अलग राय रखती थीं लेकिन एमसीडी को विभाजित करने की उनकी सिफारिशें इसकी सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए थीं.

दिल्ली में ज़रूरी नागरिक सेवाओं की बिगड़ती स्थिति को लेकर ही एमसीडी का तीन हिस्सों में विभाजन किया गया था. सालों से कई समितियां, जैसे कि बालकृष्णन समिति (1989),  ने इस मुद्दे का अध्ययन किया है और यह सलाह दी है कि अखंड एमसीडी को ख़त्म कर इसे कई कॉम्पैक्ट नगर पालिकाओं में बदल दिया जाना चाहिए.

2011 के अधिनियम के साथ जो फाइनेंसियल मेमोरेंडम शामिल है उसके मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कॉनसोलिडेटेड फंड से किसी भी तरह की अतिरिक्त फंडिंग की ज़रूरत नहीं थी. [xvi] इसी तरह किसी नए भवन, अन्य बुनियादी ढांचा और कर्मचारियों की ज़रूरत भी नहीं थी, सिर्फ 2011 कानून की धारा 89 के तहत आयुक्तों और अन्य वैधानिक भूमिकाओं (जैसे नगरपालिका इंजीनियर, स्वास्थ्य अधिकारी, शिक्षा अधिकारी, मुख्य लेखाकार, नगरपालिका सचिव और मुख्य लेखा परीक्षक) के लिए लोगों की ज़रूरत थी. [xvii]

एमसीडी के विभाजन के एक दशक के बाद 2022 के अधिनियम ने तीन हिस्सों में इसे बांटने के ख़िलाफ़ तर्क दिए और विलय के कारणों को बताया. इस अधिनियम में अपने आकलन में एमसीडी को विभाजित करने का मुख्य उद्देश्य तीन कॉम्पैक्ट नगरपालिका संस्थाओं के ज़रिए नागरिक सेवाओं के वितरण में सुधार करना बताया था, [xviii] लेकिन यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका.  इसने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली के नगरपालिका के कामकाज का विभाजन “क्षेत्रीय विभाजनों और राजस्व-सृजन क्षमता को लेकर असमान था. परिणामस्वरूप, तीनों निगमों के लिए उनके दायित्वों की तुलना में उपलब्ध संसाधनों में बहुत बड़ा अंतर था”.[xix] इसके अलावा यह अंतर समय के साथ लगातार बढ़ता रहा और तीनों निगमों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा, जो उन्हें वेतन देने और नगरपालिका कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति लाभ मुहैया कराने सहित अपने संविदात्मक और वैधानिक दायित्वों को पूरा करने में रुकावट पैदा करते थे, जिससे नागरिक सेवाओं के रख-रखाव का काम चौपट होता गया. [xx]

इसका नतीजा यह हुआ कि  2022 अधिनियम ने (i) तीनों नगर निगमों को एक सिंगल, एकीकृत और अच्छी तरह से सुसज्जित इकाई में विलय कर दिया; (ii) समन्वित और रणनीतिक योजना और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए एक मज़बूत तंत्र सुनिश्चित करना; और (iii) अधिक पारदर्शिता, बेहतर शासन और नागरिक सेवाओं की बेहतर डिलीवरी लाने पर जोर दिया. ख़ास तौर से राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की स्थिति को देखते हुए, अधिनियम में कहा गया है कि “इसे वित्तीय कठिनाई और कार्यात्मक अनिश्चितताओं के अधीन नहीं किया जा सकता है”। [xxi]

नगर निगमों के विलय को समझना

विलय आमतौर पर दो प्रकार के हो सकते हैं. पहला, वैसे सीमावर्ती गांवों का निगम निकायों में विलय जहां तेजी से शहरीकरण हुआ है. ऐसे शहरी कस्बाई क्षेत्रों का एकीकरण, शहरीकरण की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है, [xxii] ख़ासकर तब जबकि ऐसे इलाक़ों में ग्रामीण कानून शहरी विकास को स्थायी रूप से सपोर्ट नहीं कर सकते. इन क्षेत्रों को नगर निकायों में शामिल करने का प्राथमिक उद्देश्य आसपास के गांवों में पड़ोसी नगरपालिका के समान ही सेवाएं देना होता है, जिससे पूरा कस्बा एक समान इकाई के रूप में उभर सके.

पिछले दशक में कई शहर – जैसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज; आंध्र प्रदेश में मंगलगिरी; [xxiii] गुजरात में अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत; तमिलनाडु में कोयंबटूर और चेन्नई; और महाराष्ट्र में पुणे और सतारा – ने गांवों को अपनी नगरपालिका सीमाओं में शामिल किया है. [xxiv] हालांकि ये विलय आम तौर पर लोकप्रिय नहीं थे और कभी-कभी ग्रामीणों, गांव के नेताओं और यहां तक कि नगरपालिका प्रशासन और नगर पार्षदों के विरोध का भी इसे सामना करना पड़ता था. [xxv] गांव वालों को यह डर सताने लगा कि बिना सेवाओं के बेहतर वितरण और केंद्रीकरण के उन्हें अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है ; गांव के नेताओं को ऐसे विलय उनके राजनीतिक वर्चस्व में कमी की वजह लगने लगी और यूएलबी के कंपोनेंट पर पकड़ कमज़ोर होने की वज़ह दिखने लगी; इसके साथ ही नगर निगम प्रशासन को यह चिंता सताने लगी कि बिना राजस्व के उन पर ज़िम्मेदारी बढ़ सकती है; यहां तक कि पार्षदों को नगरपालिका के वित्त का एक छोटा हिस्सा ही मिलने का डर सताने लगा क्योंकि इसी फंड को उन्हें विलय किए गए गांवों से नए बनाए गए वार्डों के साथ साझा करना पड़ता. हालांकि इस तरह के विलय में एकीकृत शहरी नियोजन और स्थिरता की ज़रूरत को आख़िरकार बल मिला.[xxvi]

पिछले दशक में कई शहर – जैसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज; आंध्र प्रदेश में मंगलगिरी; गुजरात में अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत; तमिलनाडु में कोयंबटूर और चेन्नई; और महाराष्ट्र में पुणे और सतारा – ने गांवों को अपनी नगरपालिका सीमाओं में शामिल किया है

दूसरे प्रकार का विलय निकटवर्ती नगरपालिका संस्थाओं का एक बड़ी एकल नगरपालिका में शामिल होना होता है (जैसा कि एमसीडी के मामले में). भारत में ऐसे विलय के कुछ उदाहरण मौज़ूद हैं. मिसाल के तौर पर, साल 2006 में 10 नगर परिषद – वेजालपुर, मेमनगर, चांदलोदिया, शारकेज-ओकाफ, काली, जोधपुर, घाटलोदिया, वस्त्रल, रानिप और रामोल – को गुजरात में अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के साथ मिला दिया गया था और साल 2020 में, बोपल घुमा की नगर पालिका को एएमसी में मिला दिया गया था. [xxvii] उदाहरणों में साल 2010 में कोयंबटूर नगर निगम (तमिलनाडु) में तीन नगर पालिकाओं का विलय शामिल है ;[xxviii] पेथापुर नगरपालिका का 2020 में गांधीनगर नगर निगम (गुजरात) के साथ; और 2021 में पुणे महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (महाराष्ट्र) के साथ पिंपरी चिंचवाड़ न्यू टाउन डेवलपमेंट अथॉरिटी का विलय शामिल है. [xxix] अप्रैल 2022 में, पश्चिम बंगाल में बाली नगर पालिका को हावड़ा नगर निगम के साथ विलय कर दिया गया ताकि बेहतर नागरिक सुविधाएं, तेजी से विकास कार्य वहां सुनिश्चित किया जा सके और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से धन प्राप्त किया जा सके. [xxx]

वैश्विक उदाहरण

नगर निकायों का विलय भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. 20वीं सदी के उत्तरार्ध में दुनिया भर में स्थानीय सरकारों के एकीकरण पर केंद्रित क्षेत्रीय सुधारों की कई मिसालें मिलती हैं. [xxxi] ऐसे उदाहरण कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इज़राइल और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों में मिलती हैं. [xxxii]

उदाहरण के लिए, कनाडा में बिल 170 ने दिसंबर 2000 में मॉन्ट्रियल की 28 नगर पालिकाओं को एक ही शहर में मिला दिया था. [xxxiii] बिल में लॉन्ग्यूइल, क्यूबेक सिटी, लेविस और हल-गटिन्यू में विलय भी शामिल थे. हालांकि, इन विलयों का सार्वभौमिक रूप से समर्थन नहीं किया गया था और 2003 में मतदान के लिए इन्हें रखा गया था. लोगों के वोट के परिणामस्वरूप वेस्टमाउंट, प्वाइंट-क्लेयर और कोटे-सेंट-ल्यूक जैसी कुछ नगर पालिकाओं का तब डिमर्जर शुरू हुआ था. [xxxiv]

कई अन्य उदाहरण भी हैं. साल 1830 में एक देश के तौर पर उभरने पर, जैसा कि आज भी मौज़ूद है, बेल्जियम में 2,739 नगरपालिकाएं थीं. हालांकि 1975 में नगरपालिका विलय की एक व्यापक कोशिश ने इस संख्या को घटाकर 589 कर दिया. [xxxv] दक्षिण अफ्रीका में केप टाउन की सीमाओं को साल 2000 में म्युनिसिपल डिमार्केशन बोर्ड द्वारा पहले के ब्लैक और व्हाइट अधिकारियों को विलय करने के लिए फिर से तैयार किया गया था, जिसका मक़सद अमीर और व्हाइट से लेकर ग़रीब और ब्लैक लोकल अथॉरिटीज को वित्तीय संसाधनों का फिर से वितरण करना था. [xxxvi] चीन में, हैंकौ और वुचांग के स्वतंत्र शहरों और हानयांग काउंटी को 1949 में वुहान नाम के एक शहर में मिला दिया गया था. [xxxvii] 1898 में, ब्रोंक्स, ब्रुकलिन, स्टेटन द्वीप और क्वींस एक केंद्रीकृत शहर सरकार के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर बनाने के लिए शामिल किए गए थे. [xxxviii] 2008 में ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड सरकार ने एक महत्वपूर्ण सम्मिलन अभियान शुरू किया और स्थानीय परिषदों की संख्या को 157 से घटाकर 73 कर दिया. [xxxix]

क्या बड़े संस्थान बेहतर होते हैं?

क्या दो या दो से अधिक नगर निकायों को एक बड़ी इकाई में विलय करने से बेहतर गर्वनेंस सुनिश्चित किया जा सकता है, या क्या यह एक बड़े शहर का निर्माण करता है जिस पर शासन करना मुश्किल होता है? अमेरिका में 2009 के एक अध्ययन की बात करें तो, [xl] ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है जो नगरपालिका के विलय के पक्ष में था और इसके परिणाम मिश्रित थे क्योंकि नगरपालिका विलय दीर्घकालिक वित्तीय लाभ के मामले में लगातार फायदेमंद नहीं होते हैं. विलय के परिणामस्वरूप ट्रांजिशन,वेतन,सेवा सामंजस्य,अतिरिक्त सुविधाएं,उपकरण के साथ भौतिक और प्रशासनिक बुनियादी ढांचे से संबंधित लागतें आती हैं. [xli] इसी समय इससे जुड़े फायदे में वर्कफोर्स को कम करना और कुछ प्रशासनिक दोहराव को समाप्त करना शामिल होता है. इससे एकसमान भूमि उपयोग योजना, आर्थिक विकास, सेवा वितरण की इक्विटी, और बुनियादी ढांचे का समर्थन करने के लिए व्यापक टैक्स बेस में लाभ होता है. [xlii] हालांकि स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि, कर्मचारी और नागरिक इस तरह के विलय को स्थानीय नियंत्रण खोने के तौर पर देखते हैं.

2018 में, 20 साल पहले नगरपालिका विलय पर अनुभव के आधार पर तैयार किए गए दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया था और इसके नतीजों को तीन श्रेणियों में रखा गया था – आर्थिक दक्षता और लागत बचत, प्रबंधकीय निहितार्थ और लोकतांत्रिक परिणाम.

2018 में, 20 साल पहले नगरपालिका विलय पर अनुभव के आधार पर तैयार किए गए दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया था और इसके नतीजों को तीन श्रेणियों में रखा गया था – आर्थिक दक्षता और लागत बचत, प्रबंधकीय निहितार्थ और लोकतांत्रिक परिणाम. [xliii] आर्थिक दक्षता और ख़र्च के संबंध में, कुछ लागत बचत के संकेत थे, मुख्य रूप से सामान्य प्रशासनिक कार्यों में, लेकिन ऐसे बचत भी अन्य सेवाओं पर अतिरिक्त ख़र्च से ख़तरे में पड़ने वाले थे, जैसे कि अधिक जटिल नौकरशाही के कारण समन्वय और प्रबंधन में आने वाली लागत. इसलिए किसी भी तरह की इकोनॉमी ऑफ स्केल के हासिल होने की संभावना नहीं थी. [xliv] हालांकि मिला देने से नागरिकों को स्थानीय सेवा वितरण की गुणवत्ता में कुछ सुधार के संकेत मिलने की संभावना थी लेकिन यहां भी बढ़ी हुई स्थानीय सरकारी नौकरशाही को चलाना महंगा साबित हो रहा था. [xlv] इस समीक्षा से यह निष्कर्ष निकाला गया कि विलय से स्थानीय लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इससे मतदान दर घटता है, स्थानीय चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या कम होती है, आंतरिक राजनीतिक प्रभावशीलता में कमी आती है और स्थानीय लोगों के बीच सामुदायिक लगाव भी कम होता है. ऐसे विलय से दक्षता और लोकतंत्र के बीच एक तरह का समझौता होता है. [xlvi]

साल 2013 के एक पेपर में जिसमें टोरंटो, कनाडा में छह नगर पालिकाओं के एकीकरण पर एक केस स्टडी का जिक्र था, शोधकर्ताओं ने नगरपालिका लागत, स्थानीय करों, शासन और नागरिक भागीदारी पर विलय के प्रभावों की समीक्षा की थी.[xlvii] उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि विलय ने सेवाओं की बेहतरी से संबंधित किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया लेकिन ‘नौकरशाही भीड़’ को ज़रूर जन्म दिया – इससे स्थानीय नौकरशाही को पनपने का मौक़ा मिला. हालांकि आर्थिक विकास के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि सामने आई थी, अमीर और ग़रीब नगर पालिकाओं के बीच सही तरीक़े से कर-बंटवारा होने लगा और स्थानीय सेवाओं के सामान्यीकरण की संभावना बढ़ गई जिससे सभी नागरिकों को एक ही तरह की सेवा मिल सके. [xlviii]

  • नगर पालिकाओं की संख्या कम करने से प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है. विलय के बाद यूएलबी के बीच प्रतिस्पर्द्धा की भावना कम पड़ने लगती है, जो दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.

सिफ़ारिशें और आगे का रास्ता

विलय के फायदे और नुक़सान भारतीय संदर्भ में भी लागू होते हैं. दिल्ली के मामले में, यह याद रखना ज़रूरी है कि तीन पूर्व नगर निगम अभी भी उसी मेगासिटी का हिस्सा रहे थे. ख़ास तौर पर प्रशासनिक कॉरपोरेशन ने नागरिकों के व्यवहार को प्रभावित नहीं किया, जिन्होंने परिवहन नेटवर्क का उपयोग किया और तीन यूएलबी में सेवाओं का लाभ उठाया. इसके अलावा एक एकीकृत आर्किटेक्चर और संचालन मुमकिन है क्योंकि कुछ सेवाएं सामान्य स्रोतों से प्रदान की जाती हैं. जैसे प्रमुख परिवहन मार्ग (जैसे राजमार्ग और ट्रंक सड़कें), सार्वजनिक परिवहन (जैसे मेट्रो और बस सेवाएं), महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा (जैसे पानी की आपूर्ति), आर्थिक गतिविधियां (जैसे उद्योग, व्यावसायिक ज़िले और बाज़ार), और सामान्य पर्यावरण एलीमेंट (जैसे जल निकाय, नदियाँ, सार्वजनिक खुले स्थान और जंगल) की योजना एक साथ बनाई जानी चाहिए.

हालांकि, मल्टीपल गर्वनेंस यूनिट अपने स्वायत्त कामकाज और सेवा वितरण के साथ कई स्वतंत्र शासन इकाइयों का मतलब यह हो सकता है कि उनकी योजनाएं और कथित ज़रूरतों और प्राथमिकताओं से संचालित होती हैं, जो संभवतः एक-दूसरे की योजनाओं के आमने सामने आ जाती हैं. इसलिए समग्र नियोजन परिप्रेक्ष्य से यह महत्वपूर्ण है कि इकाइयां सामान्य विकास नियंत्रण नियमों के साथ एक योजना प्राधिकरण का गठन करे. इसके साथ ही यह भी अहम है कि इन यूएलबी के पास समान भूमि उपयोग, परिवहन और ढांचागत योजनाएं हों. इसके अलावा, निकटवर्ती लेकिन स्वतंत्र शासन इकाइयां क्रॉस-कटिंग ज़िम्मेदारियों के कारण शासन संबंधी जटिलताएं भी पैदा करती हैं. उदाहरण के लिए, वे जल आपूर्ति के लिए समान स्रोतों को साझा करेंगे और केवल आंतरिक वितरण का प्रबंधन करेंगे. कई मामलों में इकोनॉमी ऑफ स्केल एक साझा नगरपालिका कार्य को विशेष रूप से देखने के लिए प्रशासनिक मशीनरी के निर्माण के पक्ष में नहीं होती है.

मल्टीपल गर्वनेंस यूनिट अपने स्वायत्त कामकाज और सेवा वितरण के साथ कई स्वतंत्र शासन इकाइयों का मतलब यह हो सकता है कि उनकी योजनाएं और कथित ज़रूरतों और प्राथमिकताओं से संचालित होती हैं, जो संभवतः एक-दूसरे की योजनाओं के आमने सामने आ जाती हैं.

योजना के अलावा, किसी भी बड़े बुनियादी ढांचे में किए जाने वाले किसी भी वित्तीय निवेश को बड़े यूएलबी द्वारा बेहतर सेवा प्रदान की जा सकती है क्योंकि वे छोटे निगमों की तुलना में अधिक कर्ज़ मुहैया करा सकते हैं.

चूंकि यह राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए केंद्र सरकार दिल्ली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मज़बूर है. केंद्र सरकार और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी की संवेदनशीलता को देखते हुए कुछ कार्य ओवरलैप हो सकते हैं (उदाहरण के लिए अनधिकृत विकास, एक स्थानीय कार्य जो कानून और व्यवस्था के मुद्दों को जन्म दे सकता है, जो बदले में दिल्ली में एक केंद्रीय कार्य है). इसलिए असंगति से बचने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आपसी समझ और सहयोग ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के तहत ब्लू-ग्रीन बुनियादी ढांचे के विकास, [liii] जलवायु परिवर्तन, और शहर के लक्ष्यों और उभरते मुद्दों से निपटने के लिए सहयोग और टीम वर्क की आवश्यकता है.

फिर भी, जैसा कि कई अध्ययनों से पता चलता है, बहुत बड़े यूएलबी का दोष यह है कि वे अक्सर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के ख़िलाफ़ काम करते हैं, नागरिकों को शक्तिहीन बनाते हैं, और नगरपालिका की जवाबदेही को कम कर देते हैं. इसलिए चुनौती एक बड़े नगर निकाय के ताने-बाने में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लाभों को शामिल करना है, जो कि नए एकीकृत एमसीडी के लिए सही है.

हालांकि, यह तीन स्तरों पर निर्णय लेने की व्यवस्था करके मुमकिन है – शहर, क्षेत्र और चुनावी वार्ड. सभी मामले जिनका सिटी-वाइड इम्पोर्ट है, उन्हें टाउन हॉल में तय करने की आवश्यकता है. मुद्दे जो ज़ोन-वाइज प्रासंगिक होंगे, जोनल स्तर पर तय किए जाने चाहिए और वे सभी मामले जिनका चुनावी वार्ड की आवश्यकता से परे कोई प्रभाव नहीं है, उन्हें उसी स्तर पर निर्णय लिया जाना चाहिए. नगरपालिका कार्यों का ऐसा संपूर्ण और तार्किक विकेंद्रीकरण छोटे आकार के यूएलबी के माध्यम से प्राप्त होने वाले फायदों के साथ एकीकरण के लाभ को शामिल करता है. यह समान शहरी नियोजन, सेवाओं की समान और गुणवत्तापूर्ण डिलीवरी, इकोनॉमी ऑफ स्केल और दोहराव से बचने में मदद करता है. एक बेहतर विकेन्द्रीकृत शासन मॉडल भी शहर को अधिक नागरिक नियंत्रण और नगरपालिका की जवाबदेही बढ़ाने में मदद करता है. दरअसल, भारतीय संविधान में तीन लाख या अधिक आबादी वाले शहरों में वॉर्ड समितियों की स्थापना का प्रावधान है, [liv] जो यह बताता है कि संविधान क्षेत्रीय स्तर पर विकेंद्रीकरण को बढ़ाना चाहता है.

जैसा कि भारत सरकार के मॉडल नागर राज विधेयक, 2005 में बताया गया है, इस तरह का विकेंद्रीकरण प्रत्येक चुनावी वार्ड में और निचले स्तर तक जा सकता है. [lv] इस बिल ने सिफारिश की थी कि न्यूनतम परामर्श स्तर पर, एक क्षेत्र सभा (विधानसभा) की स्थापना की जानी चाहिए, जिसे “नगर पालिका के क्षेत्र में प्रत्येक मतदान केंद्र से संबंधित मतदाता सूची में पंजीकृत सभी व्यक्तियों के निकाय” के रूप में परिभाषित किया जाए. [lvi] प्रत्येक क्षेत्र सभा में पांच नज़दीकी मतदान केंद्रों के सभी मतदान सदस्य शामिल होंगे, जिनका प्रतिनिधित्व एक क्षेत्र सभा द्वारा किया जाएगा. [lvii] हालांकि भारत में किसी भी राज्य ने नगरपालिका को लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक हिस्से के रूप में क्षेत्र सभा को संस्थागत बनाने के लिए आवश्यक उपाय नहीं किए हैं.

एक बेहतर विकेन्द्रीकृत शासन मॉडल भी शहर को अधिक नागरिक नियंत्रण और नगरपालिका की जवाबदेही बढ़ाने में मदद करता है. दरअसल, भारतीय संविधान में तीन लाख या अधिक आबादी वाले शहरों में वॉर्ड समितियों की स्थापना का प्रावधान है, जो यह बताता है कि संविधान क्षेत्रीय स्तर पर विकेंद्रीकरण को बढ़ाना चाहता है.

जबकि नागर राज विधेयक ने सलाहकार निकायों के रूप में क्षेत्र सभाओं की कल्पना की थी, महाराष्ट्र सरकार की पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही समिति ने साल 2017 में एक विकल्प की सिफारिश की – जिसके तहत लोकप्रिय वोट के माध्यम से चुनावी वार्ड स्तर पर एक जन सभा को बनाने का प्रस्ताव दिया गया. [lviii] क्षेत्र सभा के विपरीत इसमें जनसभा के फैसले वार्ड समिति पर स्थानीय कार्यों और वार्ड को प्रदान किए गए वित्त के भीतर धन आवंटन के संबंध में बाध्यकारी होने थे. जनसभा को अपनी सीमाओं के भीतर कार्यों का ‘सामाजिक लेखा-परीक्षा’ करने का अधिकार भी दिया जाना था. [lix]

निष्कर्ष

साल 2022 के एमसीडी विलय अधिनियम का मूल्यांकन अच्छी तरह से बेहतर डिमार्केटेड फंक्शनल (सीमांकित कार्यात्मक) और फाइनेंसियल डोमेन (वित्तीय डोमेन) के ज़रिए सशक्त स्थानीय संस्थानों को तैयार करने की संवैधानिक भावना के तौर पर किया जाना चाहिए, जिसे मज़बूत लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण द्वारा भी जोर दिया जाता है और जो नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में मज़बूत स्थान मुहैया कराता है. ऐसा लगता है कि एमसीडी का विलय पूरी तरह से तीन नगर निगमों के एकीकरण पर केंद्रित है, जबकि कार्यात्मकता, वित्त और विकेंद्रीकरण के प्रमुख पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. नतीज़तन, विलय से जबकि दिल्ली को लाभ होता है,इसके बावज़ूद सरकार इसे अमल में लाने से चूक गई है जिसका अन्य भारतीय राज्यों में अनुकरण किया जा सकता था.

विलय ने एक शासन संरचना को फिर से व्यवस्थित करने का मौक़ा दिया है जो उन चुनौतियों का समाधान कर सकता है जो दिल्ली जैसे विशाल महानगरों का सामना करती है जैसे कि भीड़ प्रबंधन, अनधिकृत निर्माण, अपशिष्ट निपटान, बाढ़ और वायु प्रदूषण के मुद्दे. हालांकि, मौज़ूदा शासन संरचना विशिष्ट महानगरीय शासन तंत्र स्थापित करती है लेकिन वे दिल्ली जैसे बड़े शहर के लिए अपर्याप्त साबित नज़र आते हैं. देश भर के कई अन्य महानगरों में भी इसी तरह के मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में दिल्ली की पुनर्गठित शासन संरचना ऐसी चुनौतियों से निपटने का रास्ता दिखा सकती थी. आख़िरकार  देश भर में यूएलबी के पुनरुद्धार का एक सुनहरा मौक़ा ख़त्म हो गया और मज़बूत और जीवंत नगर निकायों का लक्ष्य, जैसा कि संविधान द्वारा परिकल्पित किया गया है, एक दूर का सपना बन गया है.


[i]  “Parliament passes bill to reunify 3 Delhi corporations after 10 years,” Times of India, April 6, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/parliament-passes-bill-to-reunify-3-delhi-corporations-after-10-years/articleshow/90672447.cms

[ii] Delhi Municipal Corporation (Amendment) Act, 2011, https://www.latestlaws.com/bare-acts/state-acts-rules/delhi-local-laws/delhi-municipal-corporation-amendment-act-2011

[iii]  “Delhi’s unified municipal corporation formally comes into existence,” Firstpost, May 22, 2022, https://www.firstpost.com/india/delhis-unified-municipal-corporation-formally-comes-into-existence-10704951.html

[iv] Sukrita Baruah, Mallica Joshi, “Announcement of Delhi MCD poll dates deferred, ‘Centre working to unify the 3 civic bodies’”, Indian Express, March 9, 2022, https://indianexpress.com/article/cities/delhi/delhi-mcd-polls-likely-to-be-deferred-as-centre-working-on-merging-the-3-civic-bodies-7811866/

[v] Jatin Anand and Muneef Khan, “Centre appoints Special Officer, Commissioner of unified MCD,” The Hindu, May 20, 2022, https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/centre-appoints-special-officer-commissioner-of-unified-mcd/article65440849.ece

[vi]  “Opposition questions timing of MCD Bill”, The Print, March 30, 2022, https://theprint.in/india/opposition-questions-timing-of-mcd-bill/895620/

[vii]  Amit Shah, “Minister Amit Shah’s Reply, The Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022”, Lok Sabha Budget Session 2022, https://www.youtube.com/watch?v=zY3C1n2R82g

[viii]  Bindu Shajan Perappadan, “Rajya Sabha passes Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022”, The Hindu, April 5, 2022, https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/rajya-sabha-passes-delhi-municipal-corporation-amendment-bill-2022/article65293845.ece

[ix] Census of India 2011,https://censusindia.gov.in/2011Census/pes/Pesreport.pdf

[x] Census of India 2011

[xi] Census of India 2011

[xii] S Balakrishnan, “Report of Committee on Reorganisation of Delhi Set-UP”, Ministry of Home Affairs, New Delhi, 1989, https://indianculture.gov.in/report-committee-reorganisation-delhi-set

[xiii] Delhi Municipal Corporation (amendment) Act, 2011, “Statement of Objects and Reasons”, https://www.latestlaws.com/bare-acts/state-acts-rules/delhi-local-laws/delhi-municipal-corporation-amendment-act-2011

[xiv] Delhi Municipal Corporation (Amendment) Act, 2011, “Statement of Objects and Reasons”, https://www.latestlaws.com/bare-acts/state-acts-rules/delhi-local-laws/delhi-municipal-corporation-amendment-act-2011

[xv] Delhi Municipal Corporation (Amendment) Act, 2011, “Statement of Objects and Reasons”

[xvi] Delhi Municipal Corporation (Amendment) Act, 2011, “Financial Memorandum”

[xvii] Delhi Municipal Corporation (Amendment) Act, 2011, “Financial Memorandum”

[xviii] The Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022, “Statement of Objects and Reasons”, Bill No. 92 of 2022, Ministry of Home Affairs, Government of India

[xix] The Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022, “Statement of Objects and Reasons”, Bill No. 92 of 2022, Ministry of Home Affairs, Government of India

[xx] The Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022, “Statement of Objects and Reasons”, Bill No. 92 of 2022, Ministry of Home Affairs, Government of India

[xxi] The Delhi Municipal Corporation (Amendment) Bill, 2022, “Statement of Objects and Reasons”, Bill No. 92 of 2022, Ministry of Home Affairs, Government of India

[xxii] Ramanath Jha, “Merging villages into cities; More unfunded mandate”, Observer Research Foundation, July 15, 2021, https://www.orfonline.org/expert-speak/merging-villages-into-cities-more-unfunded-mandate/

[xxiii] Shephali Kapoor, “Andhra Pradesh announces merger of 11 villages to facilitate all-round growth”, 99 Acres, January 5, 2021, https://www.99acres.com/articles/andhra-pradesh-announces-merger-of-11-villages-to-facilitate-all-round-growth-nid.html

[xxiv] Ramanath Jha, “Why do ‘urbanised’ villages resist being labelled as urban local bodies?”, Observer Research Foundation, September  22, 2020, https://www.orfonline.org/expert-speak/why-do-urbanised-villages-resist-being-labelled-urban-local-bodies/

[xxv] “Why do ‘urbanised’ villages resist being labelled as urban local bodies?”

[xxvi] “Why do ‘urbanised’ villages resist being labelled as urban local bodies?” 0

[xxvii] “Gujarat: Municipal limits of six cities expanded”, June 19, 2020, Times of India, https://timesofindia.indiatimes.com/city/ahmedabad/gujarat-municipal-limits-of-six-cities-expanded/articleshow/76459795.cms

[xxviii] “Why do ‘urbanised’ villages resist being labelled as urban local bodies?”

[xxix] Anuradha Ramamirtham, “All about the Pimpri Chinchwad New Town Development Authority (PCNTDA)”, Housing.com, August 30, 2021, https://housing.com/news/pcntda-pimpri-chinchwad-new-town-development-authority/

[xxx] Debamoy Ghosh, “Mega Merger”, The Telegraph, April 4, 2022, https://www.telegraphindia.com/west-bengal/mega-merger/cid/1323935

[xxxi] Antonio Tavares, “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”, Miscellanea Geographica – Regional Studies on Development, Vol. 22.No. 1. 2018, December 2018

[xxxii]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”

[xxxiii]  “History Through Our Eyes: Dec. 22, 2000, municipal mergers,” Montreal Gazette, December 20, 2000, https://montrealgazette.com/news/local-news/history-through-our-eyes/history-through-our-eyes-dec-22-2000-municipal-mergers

[xxxiv]  “History Through Our Eyes: Dec. 22, 2000, municipal mergers”

[xxxv]  Henrik Hammar and Urs Wuthrich-Pelloli, Local and regional democracy in Belgium, The Congress of Local and Regional Authorities, 2014, https://rm.coe.int/local-and-regional-democracy-in-belgium-recommendation-rapporteurs-hen/168071a308

[xxxvi]  Enid Slack and Richard Bird, “Merging Municipalities: Is Bigger Better?”, Institute on Municipal Finance & Governance, No. 14, 2013, Munk School of Global Affairs, University of Toronto   https://munkschool.utoronto.ca/imfg/uploads/219/imfg_no_14_slack_birdr3_online_final.pdf

[xxxvii]  Britannica, “Wuhan”, https://www.britannica.com/place/Wuhan

[xxxviii]  Subway University, “The Consolidation of New York City”, https://blogs.baruch.cuny.edu/subwayuniversity/the-consolidation-of-new-york city/#:~:text=On%20January%201%2C%201898%2C%20New,of%20municipal%20ser

[xxxix]  Dana McQuestin, Joseph Drew and Brian Dollery, “Do Municipal Mergers Improve Technical Efficiency? An Empirical Analysis of the 2008 Queensland Municipal Merger Program”, Australian Journal of Public Administration, 2017, https://opus.lib.uts.edu.au/bitstream/10453/117902/3/29.9.17%2BDo%2BMunicipal%2BMergers%2BImprove%2BTechnical%2BEfficiency%2BACCEPTED%2BVERSION.pdf

[xl]  Marc Holzer et al, “Literature Review and analysis Related to Municipal Government Consolidation”, Local Unit Alignment, Reorganization and Consolidation Commission, School of Public Affairs and Administration, Rutgers University, Newark Campus, 06 May 2009, https://www.nj.gov/dca/affiliates/luarcc/pdf/final_consolidation_report.pdf

[xli]  “Literature Review and analysis Related to Municipal Government Consolidation

[xlii]  “Literature Review and analysis Related to Municipal Government Consolidation”

[xliii]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”

[xliv]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”

[xlv]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”

[xlvi]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”

[xlvii]  “Merging Municipalities: Is Bigger Better?”

[xlviii]  “Merging Municipalities: Is Bigger Better?”

[xlix]  Eva Dhimitri, “Analysis Related to Optimal Size of Municipality and Efficiency – A Literature Review”, Department of Management, Faculty of Economics, Fan S. Noli University, Korce, Albania, European Journal of Interdisciplinary Studies, Vol. 4, Issue 1, January-April 2018, https://revistia.org/files/articles/ejis_v4_i1_18/Eva.pdf

[l]  “Analysis Related to Optimal Size of Municipality and Efficiency – A Literature Review”

[li]  Antonija Buljan, Milan Deskar-Škrbić and Sandra Švaljek, “In Search of an Optimal Size for Local Government: An Assessment of Economies of Scale in Local Government in Croatia”, Working Papers W-62, Croatian National Bank, Zagreb, June 2021,  https://www.hnb.hr/documents/20182/3920294/w-062.pdf/627f9b14-392e-bc67-95a8-4a56f961cd57

[lii]  “Municipal Amalgamations and Their Effects: A Literature Review”; “Merging Municipalities: Is Bigger Better?”

[liii]  Sayli Udas-Mankikar and Berjis Driver, “Blue-Green Infrastructure: An Opportunity for Indian Cities”, ORF Occasional Paper No. 317, May 2021, https://www.orfonline.org/research/blue-green-infrastructure-an-opportunity-for-indian-cities/

[liv]  The Constitution (Seventy-Fourth) Amendment Act, 1992, Art 243S, https://www.india.gov.in/my-government/constitution-india/amendments/constitution-india-seventy-fourth-amendment-act-1992

[lv] Ministry of Urban Development, Government of India, Model Nagara Raj Bill, https://ccs.in/sites/default/files/Misc/NagaraRajBILL.pdf

[lvi] Model Nagara Raj Bill,

[lvii] Model Nagara Raj Bill

[lviii] Ramanath Jha, “Citizen empowerment in urban local bodies”, Observer Research Foundation, October 19, 2020.

[lix] “Citizen empowerment in urban local bodies”

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