Author : Ramanath Jha

Published on Oct 06, 2021 Commentaries 0 Hours ago
पुणे की नागरिक सुविधा स्थानों का निजीकरण: स्थानीय शहरी व्यवस्था बनाम जनता

हाल ही मे पुणे नगर निगम (पीमसी) ने शहर मे सार्वजनिक स्थानों से संबंधी एक नई नीति पेश की है. अन्य चीजों के अलावा, इनमे वैधानिक रूप से उकेरे गए स्थान, सबडिवीजन, या सामूहिक आवासीय योजना जैसे आवश्यक योजनाए मान्य प्रतिशत के आधार पर समाहित किए गए है. स्थानीय शासनादेश के तहत  इन सुविधा स्थानों मे पार्क, क्रीड़ास्थल, स्पोर्ट कॉम्प्लेक्स, सुविधा खरीदारी, पार्किंग लॉट, स्कूल, हेल्थ क्लब, डिस्पेंसरी, पोस्ट ऑफिस, पुलिस स्टेशन और अन्य ज़रूरी सुविधाओं के होने का प्रावधान है. मुख्यतः जब की शहरी नगर निगम इन सब सुविधाओं का विकास ख़ुद  कर पाने मे असफ़ल हैं, इसलिए पीमसी इनके निजीकरण की पैरवी कर रही है और बिना निगम के वित्तीय निवेश के, पब्लिक प्राइवेट पार्ट्नर्शिप (सार्वजनिक निजी साझेदारी)  मॉडल के अंतर्गत, शहरी विकास को और बेहतर बनाने की दिशा मे पहल की है.]

यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि ये लेआउट सुविधाएं, शहरी विकास योजना (डीपी) अंतर्गत देय सार्वजनिक सुविधाओ  का हिस्सा नहीं होगी. इन प्रस्तावित सुविधाओं के विकास की जिम्मेदारी प्रमुख रूप से लेआउट ओनर्स की होगी. 

स्थायी  समिति ने अपने नीति या प्रस्ताव तय कर लिए है और अब शीघ्र ही उसे पारित करने हेतु कॉर्पोरेशन के समक्ष प्रस्तुत करेगी. इसके पारित होने के रास्ते काफ़ी सरल है, चूंकि निगम की जनरल बॉडी मे वही राजनीतिक दल (बीजेपी) काबिज है जिनके सदस्य स्थायी समिति में भी शामिल है. इस प्रस्तावना के अंतर्गत 270 सुविधा स्थल जिसमे 85 सुरक्षित प्लॉट और पीमसी के तैयार ख़ाके में से 185 अन्य निजी स्थल जिनके मालिक को मुआवज़ा स्वरूप, उच्च तल स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) प्रमाणक अनुसार निर्माण योग्य ज़मीन आवंटित करके, उन क्षेत्रों को शहरी विकास हेतु दिए जाने का प्रावधान है. यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि ये लेआउट सुविधाएं, शहरी विकास योजना (डीपी) अंतर्गत देय सार्वजनिक सुविधाओ  का हिस्सा नहीं होगी. इन प्रस्तावित सुविधाओं के विकास की जिम्मेदारी प्रमुख रूप से लेआउट ओनर्स की होगी.

आगे उतनी आसान क्यों नहीं

महाराष्ट्र  म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (एमएमसी) ऐक्ट की धारा 79 के अंतर्गत कुछ शर्त आधारित स्थिति में नगर-निगम की संपत्ति का निपटान किए जाने का प्रावधान है. धारा कहती है,” कॉरपोरेशन की अनुमति से, नगर निगम कमिश्नर को,  इन संपत्ति को लीज़ ऑउट करने, बेचने अथवा किराये पर देने का पूरा अधिकार है या फिर कॉर्पोरेशन की ऐसी कोई भी चल अचल संपत्ति को (धारा 79 सी) के तहत, संप्रेषित घोषित कर सकती है. किसी भी प्रकार के संपत्ति को वर्तमान बाजार भाव से कम कीमत पर बेचा जाने स्वीकार्य नहीं होगा. ख़ासकर कॉर्पोरेशन मे निहित कोई भी संपत्ति को, “लीज़ पर नहीं दी जाएगीया फिर बेची जाएगी या फिर इस तरह से व्यक्त की जाएगी कि जिस उद्देश्य के लिए इसे रखा गया है, वो प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा””  विचाराधीन मामले में, इन संपत्तियों को 30 सालों के लिए लीज़ पर दिए जाने का सुझाव है . राज्य सरकार द्वारा जारी सालाना रेडी रेकनर रेट की मदद से इनका बाजार भाव तय किया जा सकता है.

विभिन्न प्रकार के निपटान की अनुमति देने वाले कानूनी प्रावधानों के बावजूद, एनजीओ और शहर के आवासीय एसोसिएशन ने बॉम्बे हाई कोर्ट मे इस पॉलिसी को चैलेंज किया है और उसके साथ ही उन्होंने राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग से इसे रद्द करने के लिए संपर्क किया है. वे चाहते हैं कि सुविधा स्थानों का विकास कॉर्पोरेशन खुद ही करे. उन्हे इस बात का भय है कि “अगर पीएमसी को इस दिशा मे आगे बढ़ने को छोड़ दिया तो पुणे शहर की गुणवत्ता हमेशा के लिए गिर जाएगी.”  ऐसा प्रतीत होता है की इस नीति और उसके अम्लीकरण की राह आगे उतनी सरल नहीं है.

सत्तारूढ़ राजनीतिक व्यवस्था द्वारा शुरू की गई बहस में ये बताया गया कि कोविड 19 के उपरांत पर्याप्त संसाधन ढूँढने के संघर्ष में, उत्पन्न आर्थिक मंदी की वजह से पीमसी आर्थिक परेशानियों से घिर गया है. इस प्रकार के निजीकरण के बाद ही शायद पीमसी अपने वित्तीय घाटे से उबर पाएगी. 

पीमसी ऐसा क्यों रहा है?

सत्तारूढ़ राजनीतिक व्यवस्था द्वारा शुरू की गई बहस में ये बताया गया कि कोविड 19 के उपरांत पर्याप्त संसाधन ढूँढने के संघर्ष में, उत्पन्न आर्थिक मंदी की वजह से पीमसी आर्थिक परेशानियों से घिर गया है. इस प्रकार के निजीकरण के बाद ही शायद पीमसी अपने वित्तीय घाटे से उबर पाएगी. स्थाई समिति के अध्यक्ष हेमंत रसाने ने कहा कि “महामारी की वजह से पीमसी के राजस्व में काफी तेज़ी से कमी आई है, और इस व्यवस्था से पुनः राजस्व जोड़ने मे मदद मिलेगी.”  आगे अपनी बात जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि इस परियोजना के अमलीकरण से निगम को अनुमानित 1,753 करोड़ रुपये की राजस्व की प्राप्ति होगी. “पीमसी के पास इन स्थानों को विकसित करने के लिए पर्याप्त धन  नहीं  है और अगर इसे खाली छोड़ दिया जाता है, तो अतिक्रमण की संभावना है.”

विरोधी नेताओं की आलोचना

राजनीतिक दलों मे राष्ट्रीय स्लगफ़ेस्ट शनै-शनै अपने नीचे की ओर की स्थानीय राजनीति मे भी प्रसारित होती जा रही है. जैसा की अपेक्षित  था, विरोधी नेताओं ने इस विकिरण की आलोचना की है. एनसीपी से संसद सदस्य वंदना चव्हाण ने अपने विचार  रखते हुए कहा कि पीमसी को इन स्थानों को विकसित करने के लिए एक मास्टर प्लान ड्राफ्ट तैयार करना चाहिए. “नागरिक निकाय, इन सुविधा स्थानों के विकास के प्रावधानों के बजाय, लगातार बढ़ते शहर के जंगलों को और कान्क्रीट के जंगल को प्रोत्साहित करते आ रहे है.” एनसीपी के एक अन्य नेता प्रशांत जगताप, ने सवाल किया  कि कहीं इन लोगों ने (सत्तारूढ़ दल के नेता) के पास इन स्थानों को लीज़् पर दिए जाने का कोई उचित प्लान अथवा योजना है. “जिन वजह से उन्होंने इन्हें लीज़ पर दिया है, उसके इस्तेमाल को वो कैसे माप करेंगे? वे इस ज़मीन को 30 सालों के बाद वापस कैसे लेंगे? अगर उन्होंने इन ज़मीनों को लीज़ पर दे दिया और उसके बाद उस पर स्थाई ढांचा खड़ा कर दिया गया तो पीमसी इन्हे पुनः वापस अपने कब्ज़े में कैसे  लेगी?”

प्रशांत जगताप, ने सवाल किया  कि कहीं इन लोगों ने (सत्तारूढ़ दल के नेता) के पास इन स्थानों को लीज़् पर दिए जाने का कोई उचित प्लान अथवा योजना है. “जिन वजह से उन्होंने इन्हें लीज़ पर दिया है, उसके इस्तेमाल को वो कैसे माप करेंगे? वे इस ज़मीन को 30 सालों के बाद वापस कैसे लेंगे? अगर उन्होंने इन ज़मीनों को लीज़ पर दे दिया और उसके बाद उस पर स्थाई ढांचा खड़ा कर दिया गया तो पीमसी इन्हे पुनः वापस अपने कब्ज़े में कैसे  लेगी?” 

पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने सलाह दी कि इन संपत्ति की दीर्घावधि के लिए लीज़ पर दिए जाने  की पैरवी की है, क्योंकि 30 सालों तक के लिए लीज़ पर दिए जाने के निर्णय को काफी सीमित प्रतिक्रिया मिलने की और अपर्याप्त राजस्व प्राप्ति की संभावना काफी बढ़ जाएगी. ऐसा कोई भी कदम लिए जाने के लिए राज्य सरकार के   अनुमति की ज़रूरत होगी, जो कि एक लंबी और थका देने वाली प्रक्रिया होगी. हालांकि, इस पॉलिसी  के मुख्य उद्देश्यों में, पर्यटन को शामिल किये जाने के प्रस्ताव को पीमसी बग़ैर राज्य सरकार के अतिरिक्त मदद के, भी स्वीकार कर सकती है. इस सुझाव का पालन करते हुए, स्थानीय प्रशासन राज्य पर्यटन नीति के स्थानीय स्तर पर स्वीकृति की संभावना का अध्ययन कर रही है.

राजनैतिक बहस

किसी भी मुद्दे पर राजनैतिक बहस वैसे तो आम बात है. गौर करने वाली बात तो ये है की इस प्रस्ताव का विरोध विभिन्न नागरिक मंचों से भी की गई है. सजग नागरिक मंच के विवेक वेलंकर ने इस प्रस्ताव को निरस्त करने की मांग कर डाली है. अपने विरोध मे उन्होंने कहा,“ नागरिक निकाय, इन सुविधा स्थानों के विकास की जिम्मेदारी से यूं ही अपना पल्ला झाड़ नहीं सकती है,” औंध विकास मण्डल की वैशाली पाटकर ने भी स्पष्ट तौर पर राजस्व अर्जित करने के उद्देश्य से इन सार्वजनिक सुविधा स्थलों को लीज़ पर दिए जाने के निर्णय को “एक सही तरीका मानने से इनकार किया.”  पूर्व मे पीमसी ने कथित तौर पर लगभग 1.982 प्रॉपर्टी को लीज़ आउट किया था, किन्तु इन संपत्तियों के बकाया भाड़े के 53.50 करोड़ रुपये वसूल पाने मे असमर्थ रहे है.

तर्कों मे दम

हर तरफ से दिए गए तर्कों मे दम है. शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबीएस), जैसे अनेकानेक अन्य संस्थानों, व्यापार और व्यक्ति आदि लगभग सभी इस महामारी से बुरी तरह से पीड़ित हुए है. ये भी सत्य है कि, निजीकरण के बाद इन सुविधा स्थानों मे पर्याप्त निर्माण कार्य भी होंगे, चूंकि ये निजी डेवलपर्स किसी प्रकार के चैरिटी अथवा दान क्रम के व्यापार मे नहीं अपितु वे यहाँ शुद्ध मुनाफ़ा कमाने के लिए है. इस बात की भी आशंका है कि, इनमें से काफी परियोजनाएं यहाँ के स्थानीय  राजनीतिज्ञों के हाथ मे आ जाएंगी ताकि वे सब भी इस के ज़रिए मुनाफ़ा कमाने का गोरखधंधा कर सके. हालांकि, जो बुनियादी सवाल अब भी पूछे जाने की ज़रूरत है वो ये है कि – पीमसी ने आख़िर  इन स्थानों का अधिग्रहण किया ही क्यों  जब इनकी प्राथमिकता इन स्थानों को विकसित करने की थी ही नहीं तो?

 बुनियादी सवाल अब भी पूछे जाने की ज़रूरत है वो ये है कि – पीमसी ने आख़िर  इन स्थानों का अधिग्रहण किया ही क्यों  जब इनकी प्राथमिकता इन स्थानों को विकसित करने की थी ही नहीं तो? 

पीमसी सर्वप्रथम तो अपने नागरिकों को और शहर को बेहतर सुविधा और सुशासन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. विकास के क्षेत्र में, डीपी को यथाशीघ्र अमल में लाया जाना उनकी सबसे पहली वरीयता है. चूंकि पीमसी के पास पर्याप्त राजस्व की कमी है, इसलिए ज्य़ादातर पब्लिक स्थान जो की डीपी के अंतर्गत पहले से ही आरक्षित है, और उन्हें अधिग्रहित करना अभी बाकी है, वैसे क्षेत्र अब भी अविकसित अवस्था में ही है. डीपी से संबंधित उनका प्रदर्शन, जिसके लिए वे कटिबद्ध  है, वो ख़ुद अति दयनीय अवस्था में है. ये  स्वाभाविक है, कि अतिरिक्त ज़िम्मेदारी जो उन्होंने अपने ऊपर ली है, वो बिल्कुल ही अनैतिक है. ज़ाहिर तौर पर इन परियोजनाओं को लिए जाने के बाद के निष्कर्ष का अध्ययन इन्होंने पहले नहीं किया था, पीमसी ने, जितना वो कर सकते थे उससे कहीं ज्य़ादा की ज़िम्मेदारी ले ली थी.

इसके अलावा, ले-आउट मालिकों को दी जाने वाली अतिरिक्त एफएसआई, के लिए ज़रूरी अनुदान साधन का इस्तेमाल करने की वजह से, शहर-भर मे बहुमंजिली निर्माणों की बाढ़ आ गई है, जिसकी वजह से, शहर का कुल घनत्व अपने नॉर्मल सीमा से कहीं ज़्यादा हो गई है. चूंकि पीमसी के डेवलपर को उस एमेनिटी स्थानों को विकसित करने के लिए निर्माण का कुछ प्रतिशत कार्य ख़ुद करने की अनुमति देनी पड़ेगी, जिससे उनका पूंजी निवेश और सार्थक हो जाएगा और उन्हें इससे मुनाफा प्राप्त होगा. इसके लिए आगे, सुविधा स्थानों के निर्माण के पीछे के मूल उद्देश्यों के साथ कुछ प्रतिशत तक समझौता भी किये जाने की संभावना रहेगी. ये अनावश्यक और अतिरिक्त रूप से गैर अधिदेशीत ज़िम्मेदारी के पीछे के तर्क तथ्यहीन है. कुछ लोगों के लिए, हालांकि इस पागलपन के पीछे एक दूरंदेशी सोच है. स्थानीय काँग्रेस नेता अबा बागुल ने आरोप लगाते हुए कहा कि “प्रतीत होता है कि ये निर्णय, भाजपा के कुछ नेतागण और चंद डेवलपर के व्यक्तिगत हित को ध्यान रखते हुए लिया गया है.” निस्संदेह इस घटना को एक सभ्य नागरिक/शहरी शासन के लिए, उदाहरण के तौर पर कतई  नहीं देखा जा सकता है. काफी वक्त हो गया जबकी  यूएलबी ने पीछे हटना छोड़ दिया है, और अपनी कोर ज़िम्मेदारियों पर अपना फोकस केंद्रित कर दिया है.

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