Author : Harsh V. Pant

Published on Oct 22, 2022 Commentaries 0 Hours ago
ब्रिटेन में फिर आई प्रधानमंत्री बदलने की नौबत

ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी रसातल में जा रही है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि बेआबरू होकर प्रधानमंत्री पद छोड़ने वाले बोरिस जॉनसन फिर से पार्टी मुखिया की दौड़ में दिख रहे हैंऔर इस तरह वह स्वाभाविक ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी रसातल में जा रही है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि बेआबरू होकर प्रधानमंत्री पद छोड़ने वाले बोरिस जॉनसन फिर से पार्टी मुखिया की दौड़ में दिख रहे हैंऔर इस तरह वह स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हो जाते हैं. लिज ट्रस बड़े आर्थिक सुधारों का वादा करके प्रधानमंत्री बनी थींलेकिन उनको 45 दिनों के भीतर ही पद छोड़ना पड़ा. बकौल ट्रसजिस उम्मीद के साथ उनको जनादेश मिला थावह उस पर खरी नहीं उतर सकीं. नतीजतनसबसे कम समय तक पद संभालने वाली वह ब्रिटेन की पहली प्रधानमंत्री बन गई हैं. मगर इन 45 दिनों में ही उनकी नीतियों ने जो आर्थिक उथल-पुथल और राजनीतिक अस्थिरता पैदा कीवह ब्रिटेन के राजनीतिक इतिहास में अभूतपूर्व है. टोरी (कंजर्वेटिव पार्टी) दिशाहीन हो गई हैअर्थव्यवस्था खस्ता है और देश अपने इतिहास में पहली बार शासन के मोर्चे पर इस कदर लाचारगी का सामना कर रहा है. यह सब ट्रस की गलती बेशक नहीं हैपर वह हमेशा ब्रिटिश अस्थिरता का चेहरा बनी रहेंगी.

प्रधानमंत्री पद छोड़ने वाले बोरिस जॉनसन फिर से पार्टी मुखिया की दौड़ में दिख रहे हैं, और इस तरह वह स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हो जाते हैं. लिज ट्रस बड़े आर्थिक सुधारों का वादा करके प्रधानमंत्री बनी थीं, लेकिन उनको 45 दिनों के भीतर ही पद छोड़ना पड़ा.

ट्रस के सितंबर महीने के बजट ने इस उथल-पुथल की शुरुआत की. हालांकिबाद में उन्होंने अपने पांव पीछे खींच लिएपर इसने बाजार में अनियंत्रित गिरावट शुरू कर दी थी. इसमें अधिक भुगतान के लिए कर घटा दिए गए थे और उधार द्वारा घाटे की भरपायी की गई थी. नतीजतनमहंगाई बढ़ने लगीजबकि अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त थी. जैसे-जैसे बाजार में गिरावट बढ़ती गईपाउंड लुढ़कता गयाजिससे बैंक ऑफ इंग्लैंड को पेंशन फंड के लिए आगे आना पड़ा. जब दबाव बढ़ गयातो ट्रस को अपने करीबी सहयोगी क्वासी क्वार्टेंग को बर्खास्त करना पड़ा और जेरेमी हंट को वित्त मंत्री बनाना पड़ा. इसके बाद गृह सचिव ने भी इस्तीफा दे दिया. हालांकिबैंक ऑफ इंग्लैंड ने चेताया है कि ब्याज दरों को पूर्व के मुकाबले अधिक बढ़ाना पड़ सकता हैक्योंकि मुद्रास्फीति पिछले चार दशकों में सबसे तेजी से बढ़ रही है.

कंजर्वेटिव पार्टी के नए नेता और अगले प्रधानमंत्री की घोषणा 28 अक्तूबर को होगी. जिनका भी चयन होगावे पिछले छह वर्षों में टोरी पार्टी के पांचवें नेता और प्रधानमंत्री होंगे. निस्संदेहयह कंजर्वेटिव पार्टी की आंतरिक गड़बड़ियों की स्याह तस्वीर है. इसके तार कहीं न कहीं ब्रेग्जिट से भी जुड़ते हैंजो कई टोरियों के लिए वैचारिक जीत का मसला था. पर अब जैसे-जैसे सच्चाई सामने आ रही हैयह महसूस किया जा रहा है कि यूरोपीय संघ से बाहर निकलकर ब्रिटेन की आर्थिक नीतियों का प्रबंधन करना कल्पना से कहीं अधिक कठिन है. टोरी सांसदों के साथ दिक्कत यह है कि जिन बोरिस जॉनसन को उन्होंने एक के बाद दूसरे विवाद सामने आने के बाद जुलाई माह में पार्टी नेता के पद से हटा दिया थावह फिर से दौड़ में हैं. ऋषि सुनक और पेन्नी मोर्डांट अन्य संभावित उम्मीदवार हैंजिसमें सुनक में सट्टेबाज सबसे ज्यादा उम्मीद देख रहे हैं. सुनक और ट्रस पहले भी आमने-सामने थे और सुनक को कंजर्वेटिव सांसदों का भारी समर्थन भी मिला था. उनकी आर्थिक नीतियां भी अधिक मजबूत थीं और उन्होंने अपने भाषणों में यह साफ-साफ कहा था कि ट्रस की योजनाएं ब्रिटेन को गंभीर आर्थिक संकट में डाल सकती हैं. बाद की घटनाओं से वह सही साबित हुए हैं.

जैसे-जैसे बाजार में गिरावट बढ़ती गईपाउंड लुढ़कता गयाजिससे बैंक ऑफ इंग्लैंड को पेंशन फंड के लिए आगे आना पड़ा. जब दबाव बढ़ गयातो ट्रस को अपने करीबी सहयोगी क्वासी क्वार्टेंग को बर्खास्त करना पड़ा और जेरेमी हंट को वित्त मंत्री बनाना पड़ा. इसके बाद गृह सचिव ने भी इस्तीफा दे दिया

मगर टोरियों की कठिनाइयों का अंत होता नहीं दिख रहा. यहां तक कि नए नेता के आने के बाद भी सत्ता पर उनकी पकड़ शायद ही मजबूत रहेगी. लेबर पार्टी इंतजार में है. लिहाजाकंजर्वेटिव पार्टी को पहले ब्रेग्जिट के बाद के राजनीतिक परिदृश्य को लेकर अपना रुख स्पष्ट करना होगाजब तक वह अपनी इस दुविधा का समाधान नहीं करेगीतब तक नेतृत्व परिवर्तन कोई मायने नहीं रखेगा. आज यह राजनीतिक अनिश्चितता वैश्विक मंचों पर भी ब्रिटेन की समस्या बढ़ा रही है. यूरोपीय संघ की उसमें कोई दिलचस्पी नहीं बचीजबकि बाकी देश नए ब्रिटेन’ के अनुकूल होने के लिए वक्त ले रहे हैं. 

जर्जर अर्थव्यवस्था के अलावा ब्रिटेन की चिंता हिंद-प्रशांत नीति को लेकर भी है. इसके अलावाभारत के साथ उसका व्यापार सौदा भी कंटीली राहों पर है. जाहिर हैयदि ब्रिटेन विश्व स्तर पर रचनात्मक भूमिका निभाना चाहता हैतो जरूरी है कि वह घरेलू राजनीति को जल्द संतुलित करे.


यह लेख हिन्दुस्तान में प्रकाशित हो चुका है

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