Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 04, 2022 Commentaries 0 Hours ago

चीन और रूस के सदस्‍य देश वाले ब्रिक्‍स में अगर ईरान शामिल होता है तो भारत और अमेरिका के संबंधों पर इसका क्‍या प्रभाव पड़ेगा.

ईरान के BRICS में शामिल होने से क्‍या बढ़ेगी भारत की चुनौती; क्‍या है इसका चीन फैक्‍टर?

ईरान का ब्रिक् के लिए आवेदन के साथ यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बदलाव से भारत के समक्ष नई चुनौती खड़ी होगीआखिर ब्रिक् में ईरान के शामिल होने से कोई बदलाव आएगाइसके पीछे क्या तर्क हैचीन और रूस के सदस् देश वाले ब्रिक् में अगर ईरान शामिल होता है तो भारत और अमेरिका के संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगाआइए जानते हैं कि ब्रिक् के इस बदलाव को लेकर विशेषज्ञों की क्या राय हैइसे क्वॉड के साथ क्यों जोड़कर देखा जा रहा है.

ईरान ने ब्रिक् का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया हैईरान के विदेश मंत्री के इस ऐलान के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या ईरान में प्रवेश से भारत की मुश्किलें बढ़ेंगीचीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को ब्रिक् सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया थाचीन के इस कदम से भारत की चिंता लाजमी हैप्रो पंत इसे चीन और अमेरिका के आपसी टकराव  मतभेद के बीच भारत के संतुलन और अपना महत्व बनाए रखने की कोशिशों के नजरिए से देखते हैं.

ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्‍वॉड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता है. इसका असर ना सिर्फ ब्रिक्स पर पड़ेगा, बल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगा.

उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में और देशों के शामिल होने की चर्चा पहले भी होती रही हैलेकिन चीन और रूस की पश्चिम विरोधी नीति और भारत के क्वॉड जैसे पश्चिमी समर्थित समूह में शामिल होना ईरान की सदस्यता को अहम बना देता हैइसका असर ना सिर्फ ब्रिक्स पर पड़ेगाबल्कि ये अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चल रहे भारत की विदेश नीति को भी प्रभावित करेगाप्रो पंत ने कहा कि इससे भारत के लिए स्वतंत्र विदेश नीति का रास्ता और कठिन हो सकता हैसाथ ही ब्रिक्स का महत्व भी कम हो सकता हैअनुमान ये भी है कि इससे भारत की अमेरिका के लिए अहमियत भी बढ़ सकती है.

पश्चिम के विकल्प के तौर पर ब्रिक्स 

ब्रिक्स को आर्थिक तौर पर पश्चिम के विकल्प के तौर पर गठित किया गया है ताकि पश्चिम के साथ मोलभाव की ताकत बढ़ सकेइसके साथ उस पर निर्भरता भी कम हो सकेअब चीन इस गुट को अमेरिका विरोध में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है. 14वें सम्मेलन में भी चीन ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए गुटबाजी में शामिल नहीं होने और शीत युद्ध की मानसिकता को बढ़ावा ना देने की बात कही थीउधरइस बार रूस भी खुलकर चीन के साथ दिख रहा हैलेकिनजब चीन उभरती हुई ताकत बना तो अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार कियाचीन को भारत के ज़रिए एशिया में ही चुनौती दी गईये भारत के पक्ष में था क्योंकि उसका चीन के साथ सीमा विवाद चलता रहा है.

हालांकिभारत एक स्वतंत्र विदेश नीति की वकालत करता रहा हैभारत कहता है कि वह किसी एक गुट का हिस्सा नहीं रहेगा और अपने हित के अनुसार समूहों से जुड़ेगाअगर ईरान ब्रिक्स में शामिल होता है तो इस संगठन में अमेरिका विरोधी देशों की संख्या में इजाफा होगाईरान लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा हैजिससे उसके आर्थिक हालात खराब हुए हैंउसे भी नए बाजार चाहिए और ब्रिक्स उसके लिए एक बेहतरीन मौका हो सकता हैऐसे में ईरान और भारत के संबंधों के बीच अमेरिका के साथ संतुलन बनाना भारत के लिए एक चुनौती बन सकता है.

अब यह देखना दिलचस्‍प होगा कि इस पर क्या प्रतिक्रियाएं रहती हैं. इसमें भारत और ब्राजील असहज हो सकते हैं, क्योंकि ईरान और अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं और ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. इससे भारत की चुनौतियां बढ़ जाएंगी.

यह अभी परीक्षण का विषय हैअब यह देखना दिलचस् होगा कि इस पर क्या प्रतिक्रियाएं रहती हैंइसमें भारत और ब्राजील असहज हो सकते हैंक्योंकि ईरान और अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं और ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा हैइससे भारत की चुनौतियां बढ़ जाएंगीभारत हमेशा से संतुलन बनाने की विदेश नीति अपनाता रहा हैभारत एक साथ ब्रिक्स और क्वॉड दोनों का हिस्सा हैचीन क्वॉड को अपने लिए खतरा बताता आया हैहालांकिपश्चिमी देशों ने इससे इनकार किया हैभारत अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस और ईरान से तेल खरीदता रहा हैप्रो पंत का कहना है कि ईरान भारत के लिए उतना ही अहम है जितना की अमेरिकाये आर्थिक और रणनीतिक दोनों स्तर पर हैबढ़ती महंगाई के बीच भारत को सस्ते तेल की जरूरत है जो उसे ईरान और रूस से मिल सकता हैईरान में चाबहार बंदरगाह का निर्माण भी इसी दिशा में किया जा रहा है.

आख़िर क्‍या है ब्रिक्स

ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह हैइसमें ब्राजीलरूसभारतचीन और दक्षिण अफ्रीका के इस आर्थिक समूह से जुड़ने से पहले इसे ब्रिक ही कहा जाता थाब्रिक देशों की पहली शिखर स्तर की आधिकारिक बैठक वर्ष 2009 को रूस के येकाटेरिंगबर्ग में हुई थीइसके बाद वर्ष 2010 में ब्रिक का शिखर सम्मेलन ब्राजील की राजधानी ब्रासिलीया में हुई थीब्रिक्स देशों के सर्वोच्च नेताओं का सम्मेलन हर साल आयोजित किए जाते हैंब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता हर साल एकएक कर ब्रिक्स के सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता करते हैंब्रिक्स देशों की जनसंख्या दुनिया की आबादी का लगभग 40 फीसद है और इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30 फीसद हैब्रिक्स देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैंलेकिन इनमें से कुछ के बीच राजनीतिक विषयों पर भारी विवाद हैंइन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद प्रमुख हैइसका सदस्य बनने के लिए कोई औपचारिक तरीका नहीं हैसदस्य देश आपसी सहमति से ये फैसला लेते हैं.

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यह लेख मूल रूप से जागरण में प्रकाशित हो चुका है

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