Author : Harsh V. Pant

Originally Published नवभारत टाइम्स Published on Apr 18, 2024 Commentaries 0 Hours ago

अनिश्चितता और अस्थिरता से ग्रस्त इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में संभावित नुकसान को कम करने के लिए भारतीय कूटनीति को अपने पूरे रंग में आना पड़ेगा.

ईरान के हमले ने नेतन्याहू को दिया मौका

मध्य पूर्व एक बार फिर अनिश्चितता से जूझ रहा है. यहां सर्वव्यापी युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है. कम ही देश हैं, जो इसे रोकने के ठोस उपाय करने की स्थिति में हैं. एकमात्र बड़ी ताकत अमेरिका ही है, जो अभी जमीन पर बिगड़ते हालात को कुछ हद तक संभाल सकता है. लेकिन वह भी असमंजस में दिख रहा है.

अमेरिका ने अपने सहयोगी इजराइल का साथ देने की घोषणा की है, लेकिन वह उन शक्तियों को भी आश्वस्त कर रहा है, जो क्षेत्र में तनाव नहीं बढ़ने देना चाहते. मध्य पूर्व की राजनीति हालांकि कभी भी कमजोर दिल वालों के अनुकूल नहीं रही है. लेकिन आज की तारीख में जब वैश्विक अस्थिरता चरम पर है, तो इन देशों के आपसी मतभेद अभूतपूर्व रूप में बाहर आने को तैयार हैं.

मध्य पूर्व में हालिया दौर की अस्थिरता की पृष्ठभूमि तब तैयार हुई, जब दो हफ्ते पहले इजरायल ने दमिश्क में ईरान के दूतावास परिसर पर हमला किया. उसमें ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के दो सीनियर कमांडर और उनके सहयोगी मारे गए. ईरान ने इस हमले को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए कहा कि इसका बदला लिया जाएगा.

बदले की धमकी

मध्य पूर्व में हालिया दौर की अस्थिरता की पृष्ठभूमि तब तैयार हुई, जब दो हफ्ते पहले इजराइल ने दमिश्क में ईरान के दूतावास परिसर पर हमला किया. उसमें ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के दो सीनियर कमांडर और उनके सहयोगी मारे गए. ईरान ने इस हमले को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए कहा कि इसका बदला लिया जाएगा.

लंबे समय तक इजराइल का ध्यान ईरान की ओर से छद्मयुद्ध (प्रॉक्सी वॉर) लड़ रहे समूहों पर ही लगा हुआ था. वह ईरान को निशाना बनाए बगैर हिज्बुल्लाह जैसे संगठनों पर अंकुश लगाने की कोशिश करता रहा. हाल के गाजा संकट के दौरान भी ईरान के प्रॉक्सी ग्रुप्स इजराइल पर निशाना साधते रहे हैं. मगर दूतावास पर हमले के बाद पिछले हफ्ते ईरान ने अभूतपूर्व शक्ति प्रदर्शन करते हुए इजराइल पर लगभग 300 ड्रोन, क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. हालांकि इजराइल ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जॉर्डन की मदद से तकरीबन उन सबको नाकाम कर दिया. इसमें इजराइल का तीन स्तरीय मिसाइल डिफेंस सिस्टम अहम साबित हुआ.

इजराइल के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि ईरान को अपनी शक्ति का अहसास कैसे कराए. खासकर उस स्थिति में जब ईरानी हमले से निपटने में सहयोग देने वाले उसके तमाम मित्र राष्ट्र उससे संयम बरतने की अपील कर रहे हैं. बाइडन प्रशासन ने इजराइल को दो टूक बता दिया है कि अमेरिका, ईरान के विरुद्ध किसी भी आक्रामक कार्रवाई में शामिल नहीं होने वाला.

ब्रिटेन तनाव कम करने के उपायों पर जरूर सहयोगी देशों के साथ सक्रिय है, लेकिन उसकी भी कोशिश यही है कि इन उपायों से युद्धविराम हो और गाजा में राहत सामग्री पहुंचाई जा सके. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी तनाव कम करने की जरूरत बताने वालों के सुर में सुर मिलाया है.

क्षेत्रीय ताकतों की चाहत

इस पूरे प्रकरण में जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसी क्षेत्रीय ताकतों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है, जिन्होंने अपने-अपने तरीके से इजराइल की मदद की है. अब वे चाहेंगे कि तेल अवीव उनके हितों का भी ध्यान रखे.

इजरायल के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि ईरान को अपनी शक्ति का अहसास कैसे कराए. खासकर उस स्थिति में जब ईरानी हमले से निपटने में सहयोग देने वाले उसके तमाम मित्र राष्ट्र उससे संयम बरतने की अपील कर रहे हैं.

इस बीच, बिन्यामिन नेतन्याहू सरकार पर समर्थकों की ओर से दबाव बढ़ रहा है कि वह ईरान को जवाब दे. इजराइल का कहना है कि ईरान से संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है. दूसरी ओर ईरान धमकी दे रहा है कि अगर इजराइल ने बदला लेने की कोशिश की तो उसे और कड़ा जवाब दिया जाएगा.

इजराइल पर हमले के बाद ईरान ने तेजी दिखाते हुए यह संदेश दिया कि उसकी कार्रवाई बेहद कारगर और कामयाब रही है. इसलिए अब इस समय कुछ और करने की जरूरत नहीं है. ईरान के सैन्य प्रमुख ने कहा, ‘अल्लाह का शुक्र है, हम इस मिशन को कारगर ढंग से अंजाम देने में कामयाब रहे. जो कुछ हम हासिल करना चाहते थे, कर चुके हैं. इसलिए अब इसे और आगे ले जाने की कोई जरूरत नहीं समझते.’ दूसरी ओर, इजराइल कह रहा है कि वह इस सबकी कीमत जरूर वसूलेगा, लेकिन इसका समय और स्थान दोनों अपनी मर्जी से तय करेगा.

असुरक्षा बोध 

पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास की अगुआई में हुए हमले के बाद असुरक्षा की भावना से जूझता इजराइल नेतन्याहू के निष्प्रभावी नेतृत्व में चलता हुआ कहीं पहुंचता नहीं दिख रहा था. नेतन्याहू किसी भी रूप में इजराइली नागरिकों के मन में घर कर चुके असुरक्षा बोध को दूर नहीं कर पा रहे थे.

गाजा की लड़ाई का कोई अंत तो नहीं ही दिख रहा, इजराइल दुनिया में अलग-थलग भी पड़ता जा रहा था. ऐसे में देखा जाए तो ईरानी हमले ने उसे एक मौका मुहैया कराया है. इससे निपटने में मिली कामयाबी का इस्तेमाल करते हुए इजराइल अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ सही तालमेल बिठाकर इस क्षेत्र में नए समीकरण को आकार देने की कोशिश कर सकता है.

भारत की अपील

हालांकि दुनिया इस बीच दम साधे इस बात का इंतजार कर रही है कि मध्य पूर्व में चल रहे खतरनाक खेल में अगली चाल क्या होने वाली है. इजराइल से संबंधित व्यापारिक जहाज MSC एरीज में फंसे 17 नागरिकों के कारण भारत भी इस प्रकरण के लपेटे में आ गया है. इस जहाज को पिछले हफ्ते ईरान ने कब्ज़े में लिया था. भारत ने ‘तत्काल तनाव कम करने, संयम बरतने, हिंसा से पीछे हटने और कूटनीति की राह पर वापस लौटने’ की अपील की है. लेकिन अनिश्चितता और अस्थिरता से ग्रस्त इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में संभावित नुकसान को कम करने के लिए भारतीय कूटनीति को अपने पूरे रंग में आना पड़ेगा.


यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है

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