Issue BriefsPublished on Oct 03, 2023
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अगर सभी के लिए टिकाऊ विकास सुनिश्चित करना है तो मूल निवासियों के बच्चों रूपी मानवीय पूंजी में निवेश करना पहली शर्त

  • Daniel Suryadarma
  • Dil Rahut
  • Shaabana Naik

सार

किसी स्थान के मूल निवासी या देशज लोग आबादी के अन्य वर्गों की तुलना में ज़्यादा ग़रीब और अधिक खाद्य असुरक्षित हैं. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और सिविल सोसाइटी संगठनों ने इस बात को रेखांकित किया है (कृषि विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष, 2019; अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन). ये परिणाम गहरी जड़ों वाले हैं, जो ग़ैर-मान्यता प्राप्त अधिकारों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और स्वर की कमी और पीढ़ियों से हाशिए पर रहने के चलते पैदा हुए हैं. हालांकि देशज समूहों पर ध्यान दिए जाने के संदर्भ में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रक्रिया मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स में सुधार का संकेत करते हैं (मानवाधिकार के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय, 2017), फिर भी अभी इस दिशा में काफ़ी कुछ किया जाना बाक़ी है. सतत विकास लक्ष्य, तभी मायने रखेंगे जब मूल निवासियों का समूह भी उन्हें हासिल कर सकेगा!

मूल निवासियों की बेहतरी और कल्याण में सुधार के प्रयासों में उनके बच्चों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने वाली ग़रीबी की कड़ी को सिर्फ़ तभी तोड़ा जा सकता है जब मूल निवासियों के बच्चे स्वस्थ और बुद्धिमान होंगे, और उनके पास अपनी बेहतरी में सुधार लाने की क्षमता मौजूद हो. लिहाज़ा, स्वास्थ्य सेवा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में पर्याप्त निवेश ज़रूरी बुनियाद हैं. इसके अतिरिक्त, ये सुनिश्चित करने के लिए ख़ास ध्यान देने की आवश्यकता है कि सभी नीतियां और हस्तक्षेप, देशज समूहों की संस्कृति और परंपराओं पर आधारित हों. मूल जनजातीय समूहों की आवाज़ और विचारों को ध्यान में रखने से निवेश और कार्यक्रमों के प्रभावी, कुशल और टिकाऊ होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

इस पॉलिसी ब्रीफ में प्रस्ताव किया गया है कि G20 समूह, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तीन गतिविधियों पर विचार करे: (i) सदस्य देशों को अपने यहां मौजूद देशज समूहों (विशेष रूप से बच्चों) के सालाना, प्रतिनिधित्वकारी और अनेक संकेतकों वाले घरेलू सर्वेक्षण को अमल में लाने के लिए तकनीक़ी और वित्तीय सहायता प्रदान करना; (ii) मूल निवासियों की आवाज़ को और उन पर दिए जा रहे ध्यान के स्तर को बढ़ाना, और; (iii) देशज बच्चों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों के समाधान के लिए हस्तक्षेपों की संरचना तैयार करने और कड़ाई से उनका मूल्यांकन करने में सदस्य देशों की सहायता करना.

  1. चुनौती

वैश्विक आबादी का महज़ 5 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद देशज लोग, दुनिया की निर्धन जनसंख्या के 15 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं (IFAD, 2019). मिसाल के तौर पर वियतनाम में जातीय अल्पसंख्यक समूहों की 72 फ़ीसदी आबादी तीन निम्नतम आय दशमांश में हैं (डांग, 2014), और उनके ग़रीबी से बच निकलने की संभावना निम्न है (ग्लेवे आदि, 2002). ग़ैर-देशज बच्चों की तुलना में देशज बच्चों के बदतर परिणामों के लिए ग़रीबी एक शक्तिशाली निर्धारक है, लेकिन यही इकलौती वजह नहीं है. अन्य बातों के अलावा, सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भों से जुड़ी चुनौतियों से ग़रीबी की हानिकारक भूमिका और जटिल हो जाती है (पिनस्ट्रुप-एंडरसन और वॉटसन, 2011).

मूल निवासी समुदायों के बच्चे अक्सर कम वज़न वाले होते हैं (विलेना-एस्पोनेरा आदि, 2019). देश में सबसे ज़्यादा आबादी वाली जनजातियों की रिहाइश वाले पूर्वोत्तर भारत में, 8.9 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं (दीनाचंद्र सिंह और अन्य, 2015). इसकी तुलना में पूरे भारत में गंभीर कुपोषण की दर 5.1 प्रतिशत है. ब्राज़ील में पिछले चार दशकों में देशज बच्चों के अल्प-विकास की दर में काफ़ी गिरावट आई है, लेकिन ये अब भी ग़ैर-देशज बच्चों की तुलना में अधिक है (होर्टा आदि, 2013). मूल निवासी बच्चों में मृत्यु दर भी ज़्यादा है (सैंटोस आदि, 2020), और उनमें टीकाकरण की दर भी कम है (डांग, 2014).

निर्धनता, बुनियादी ढांचे के अभाव और भेदभाव के कारण जनजातीय बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच कम है (हर्नान्डेज़-ज़वाला आदि, 2006). जिन स्कूलों में वे पढ़ते हैं उनकी गुणवत्ता आमतौर पर ग़ैर-देशज बच्चों के स्कूलों की तुलना में कम होती है. इससे शिक्षा के परिणाम निम्नतर हो जाते हैं. लेविटन और पोस्ट (2016) ने अपने अध्ययन में पाया कि पेरू और इक्वाडोर में जो छात्र घर पर देसी भाषा बोलते हैं, उनका पठन-पाठन और गणित कौशल, उन लोगों की तुलना में निम्न है जो घर पर देसी भाषा नहीं बोलते हैं. इस प्रकार, देशज बच्चों के पास गुणवत्तापूर्ण और सार्थक रोज़गार हासिल करने की संभावना कम होती है. ग़ौरतलब है कि ऐसी आजीविका उन्हें ख़ुद को ग़रीबी से उबारने के अवसर देती हैं.

देशज बच्चों की जीवनशैली भी ऐसी होती है, जिसके चलते उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऑस्ट्रेलिया से मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि जनजातीय किशोरों के शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने की संभावना कम होती है (मैकनिवेन आदि, 2017) और उनमें धूम्रपान का चलन अधिक होता है (व्हाइट आदि, 2009). दक्षिण अमेरिका के शहरी क्षेत्रों में मूल निवासियों के युवा समूहों में शराब की लत की अधिक आशंका होती है (सीले आदि, 2010). ये परिणाम, ग़रीबी के चलते सामने आते हैं, लेकिन अमेरिका में एक अध्ययन से पता चलता है कि ग्रुप ट्रॉमा (पूरे समाज को प्रभावित करने वाली आघातकारी घटनाएं) भी एक प्रमुख निर्धारक है (हार्ट, 2003).

संक्षेप में कहें तो इस बात के अकाट्य प्रमाण मौजूद हैं और इसपर आम सहमति है कि देशज समूहों के बच्चों के परिणाम ग़ैर-देशज समूहों के बच्चों की तुलना में बदतर होते हैं. जनजातीय बच्चों की मौजूदा स्थिति और इस पीढ़ी में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के लिए उनकी वांछित स्थिति के बीच एक बड़ी खाई मौजूद है. बदक़िस्मती से, हालात में उल्लेखनीय सुधार होने के ज़्यादा सबूत नहीं हैं. इससे जुड़ी विशाल चुनौती की तुलना में स्पष्ट रूप से देशज बच्चों पर लक्षित नीतियों या हस्तक्षेपों का भी अभाव है.

  1. G20 की भूमिका

आम तौर पर देशज समूहों (और विशेष रूप से उनके बच्चों) के परिणामों को बेहतर बनाने के प्रयास में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिहाज़ से G20 समूह अनोखी स्थिति में है. वैश्विक स्तर पर G20 के कई सदस्यों के पास देशज समूहों को लेकर सबसे सक्रिय नीतियां में से कुछ की मौजूदगी है. इसके अलावा, चीन, भारत और इंडोनेशिया में सैकड़ों जनजातीय समूह निवास करते हैं. लिहाज़ा, ऐसी कई गतिविधियां हैं जिन्हें G20 सदस्य मिलकर अंजाम दे सकते हैं. G20 सदस्यों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के साथ-साथ देशज समूहों की बड़ी आबादी वाले ग़ैर-G20 देशों के साथ जुड़ाव, 2030 तक SDGs हासिल करने की दिशा में अहम प्रगति ला सकते हैं. ऐसी क़वायद ये रेखांकित करती है कि सतत विकास लक्ष्यों को साकार करने को लेकर G20 देशों के लिए देशज समूहों की आवश्यकताओं को पूरा करना कितना अहम हो जाता है.

देशज समूहों की आवाज़ सुनी जानी चाहिए और मूल निवासियों के बच्चों की ज़रूरतें पूरी की जानी चाहिए. ये सुनिश्चित करने के लिए G20, संयोजक, फंडिंग इनोवेटर और ज्ञान का आदान-प्रदान करने वाले केंद्र की भूमिकाएं निभा सकता है.

संयोजक के रूप में G20 अपने सदस्यों के संदर्भ और संयोजन शक्ति का इस्तेमाल करके देशज बच्चों को प्राथमिकता देने की क़वायदों पर ध्यान बढ़ा सकता है और उसे आगे बनाए रख सकता है. जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आर्थिक अस्थिरता जैसी वैश्विक घटनाओं की भी देशज समूहों पर मार पड़ती है. जनजातीय समूह ग्रामीण अंचलों में रहते हैं और आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं, लिहाज़ा जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उनपर ज़्यादा गंभीर प्रभाव पड़ते हैं. नतीजतन उनके बच्चों पर बेतहाशा असर होता है, और पीढ़ी दर पीढ़ी ग़रीबी की बेड़ियां टूट नहीं पातीं.

जनजातीय बच्चों को लक्षित करने वाले कार्यक्रमों और नीतियों में निवेश बढ़ाने के लिए रकम उपलब्ध कराने को लेकर एक अनोखी सुविधा की दरकार है. हाल ही में लॉन्च की गई शिक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त सुविधा को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि 14 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फंडिंग 1 अरब अमेरिकी डॉलर में तब्दील हो सके (शिक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त सुविधा). वैसे तो देशज बच्चों के परिणामों को ग़ैर-देशज बच्चों के परिणामों और उससे आगे के स्तरों पर ले जाने के लिए ज़रूरी रकम का अनुमान अब तक नहीं लगाया गया है, लेकिन इसके अरबों डॉलर तक पहुंचने के आसार हैं. बहरहाल, G20 सदस्य (सभी मध्यम-आय वाले या अमीर देश) ज़रूरी सीड फंडिंग मुहैया कराके, इसी प्रकार के अनोखे फाइनेंसिंग दृष्टिकोण की अगुवाई कर सकते हैं. इस फंड का प्रबंधन बहुपक्षीय विकास बैंक या किसी नव निर्मित संस्था द्वारा किया जा सकता है.

G20 के सदस्य देशों में मूलनिवासी समूह के करोड़ों लोग निवास करते हैं. इसके अलावा G20 के कई सदस्य, देशज समूहों के कल्याण में सुधार के प्रयासों और उस ओर ध्यान देने की क़वायदों में विश्व स्तर पर अगुवा बने हुए हैं. ये तथ्य G20 को मूल निवासियों के बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के परिणामों में सुधार के तरीक़ों पर ज्ञान और दृष्टिकोणों के आपूर्तिकर्ता और उपयोगकर्ता, दोनों के रूप में एक अनोखे पायदान पर रखते हैं. इतना ही नहीं, G20 के देश समूह के बाहर के राष्ट्रों में भी इससे जुड़ी जानकारियों का प्रसार कर सकते हैं.

  1. G20 के लिए सिफ़ारिशें

पिछले खंड में जिस भूमिका का ब्योरा दिया गया है, उसे निभाने में G20 को अपने सदस्यों के समृद्ध ज्ञान और दृष्टिकोण का उपयोग करना चाहिए, ताकि निम्नलिखित कार्य पूरे किए जा सकें:

सदस्य देशों द्वारा अपने यहां देशज समूहों (ख़ासकर बच्चों) के वार्षिक, प्रतिनिधित्वकारी और अनेक संकेतकों वाले घरेलू सर्वेक्षण को अमल में लाने के लिए तकनीक़ी और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएं.

मूल निवासियों के बच्चों के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में पहला क़दम उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य परिणामों से जुड़े तथ्यों पर प्रकाश डालना है. परिणामों के किसी विशेष समूह को बेहतर बनाने के लिए बाद के किसी कार्यक्रम या नीतियों की बुनियाद के रूप में भी डेटा काम करते हैं.

डेटा संग्रह को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए ताकि प्रमुख सामाजिक-आर्थिक संकेतकों को देशज समूहों के स्तर पर अलग-अलग करने की सुविधा मिल सके. इससे इन देशज समूहों के परिणामों और ग़ैर-देशज समूहों के बीच तुलना की जा सकेगी. यहां ब्राज़ील का अनुभव एक मिसाल है. होर्टा आदि (2013) बताते हैं कि 1990 के दशक की शुरुआत में ब्राज़ील ने जनगणना प्रक्रिया में शामिल होने वाले प्रतिभागियों और उत्तरदाताओं को मूल निवासी के रूप में ख़ुद की पहचान कराने की इजाज़त देना शुरू कर दिया. उसी कालखंड में देशज लोगों के स्वास्थ्य परिणामों पर डेटा संग्रह को सक्षम बनाने के लिए एक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली तैयार की गई थी. इसके बाद 2008 में जनजातीय लोगों के स्वास्थ्य और पोषण पर पहला राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया गया. ऐसी सूचनाओं ने सरकार को उन कार्यक्रमों को अमल में लाने की सुविधा दे दी जो विभिन्न देशज समूहों के हिसाब से तैयार की गई थीं.

हर साल दोहराया जाने वाला ऐसा सर्वेक्षण, सतत विकास लक्ष्यों या अन्य उद्देश्यों की दिशा में प्रगति की निगरानी करने के आधार के रूप में काम कर सकता है. इन्हें इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि इनको अन्य डेटा स्रोतों (जैसे रिमोट सेंसिंग डेटा या गांव के अधिकारियों, स्कूलों और अस्पतालों से प्रशासनिक डेटा) के साथ जोड़ा जा सके. इस तरह इन्हें आम जनता के लिए सुलभ बनाया जा सकेगा. नतीजतन, परिणामी डेटाबेस, नीति निर्माताओं, सिविल सोसाइटी संगठनों और शोधकर्ताओं को मिलकर काम करने की छूट देगा. इस तरह वो उन क्षेत्रों को समझ सकेंगे, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है और वो कार्यक्रमों और नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने में सक्षम हो सकेंगे.

प्रशासनिक रूप से, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के भीतर एक इकाई को इन गतिविधियों को पूरा करने के लिए अनिवार्य रूप से निर्देशित किया जा सकता है. इस संस्था को G20 सदस्य देशों की ओर से रकम उपलब्ध कराई जा सकती है. 

मूल निवासियों की आवाज़ बुलंद करें और उन पर ध्यान दें 

अक्सर, देशज समूहों, विशेष रूप से बच्चों से संबंधित कार्यक्रम और नीतियां, भले ही अच्छे इरादों वाली हों लेकिन उन्हें मूल निवासी समूहों की ओर से पर्याप्त इनपुट लिए बिना ही डिज़ाइन और कार्यान्वित कर दिया जाता है. ऐसी पहलों के परिणाम आमतौर पर संतुलन पर नकारात्मक रहे हैं, और इनसे दीर्घकालिक रूप से अप्रत्याशित हानिकारक नतीजे (जैसे मूल निवासियों के बच्चों में दीर्घकालिक सदमे की मार) सामने आए हैं. इतिहास ये भी दर्शाता है कि देशों ने ऐसे विकास कार्यक्रम लागू किए हैं जिनके नतीजतन जनजातीय समूहों को न्यायोचित मुआवज़ा पाए बिना अपनी ज़मीन खोनी पड़ी है. पारंपरिक भूमि का नुक़सान अक्सर गरिमा और पहचान की हानि से जुड़ा होता है.

ये सुनिश्चित करने के लिए कि देशज लोगों की आवाज़ सुनी जाए, G20 नेताओं को मूल निवासियों के सहभागिता समूह की स्थापना पर विचार करना चाहिए. अपने शासनादेश के हिस्से के रूप में, सहभागिता समूह दो संस्थानों के निर्माण की सुविधा प्रदान कर सकता है; पहला, सांस्कृतिक केंद्र- जिसका उद्देश्य मूल निवासियों के बच्चों की बेहतरी में सुधार करना, देशज युवाओं द्वारा अनुभव किए गए सामाजिक और आर्थिक अलगाव को कम करना और पारंपरिक रूप से चले आ रहे बेहतर अभ्यासों और जीवन जीने के तरीक़ों को संरक्षित करना हो, और दूसरा, एक ऐसा मंच जिसमें राज्यसत्ता की देशज मामलों की एजेंसियां एक-दूसरे और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ सबक़ और आंतरिक ज्ञान साझा कर सकते हैं. इन मंचों पर बेहतरीन अभ्यासों, सीखे गए सबक़ों और नए विचारों पर चर्चा की जा सकती है.

नए जुड़ाव समूह के अलावा, बच्चों के लिए प्रासंगिक मौजूदा G20 शेरपा-ट्रैक कार्य समूहों (जैसे शिक्षा, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य कार्य समूहों) के लिए ख़ास तौर से देशज बच्चों की ज़रूरतों पर चर्चा करने और उनका निपटारा करने की क़वायद को अनिवार्य किया जाना चाहिए.

मूल निवासियों के बच्चों के सामने पेश आने वाली ख़ास चुनौतियों के समाधान के लिए हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करने और उनका कड़ाई से मूल्यांकन करने में सदस्य देशों की सहायता करें

स्वास्थ्य और शिक्षा के परिणामों में मूल निवासियों के बच्चों को जिन भारी-भरकम कमियों का सामना करना पड़ता है, उन्हें तेज़ी से कम किया जाना चाहिए. इसके लिए वित्तीय संसाधन आवश्यक तो हैं, लेकिन इकलौती ज़रूरत नहीं हैं. देशज बच्चों को लाभ पहुंचाने वाले कार्यक्रमों और नीतियों को अमल में लाने का मिशन अधिक जटिल है. दरअसल इसमें ये सुनिश्चित करने की आवश्यकता शामिल होती है कि कार्यक्रम या नीति सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और उपयुक्त हो. ग़ैर-देशज समूहों पर लागू किए जाने पर प्रभावी साबित होने वाले कार्यक्रमों को देशज समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं के हिसाब से संशोधित या नए सिरे से तैयार करना होगा.

ऊपर बताए गए लक्ष्य को हासिल करने के लिए G20 को सदस्य देशों में नीति निर्माताओं की क्षमता विकसित करने के लिए एक कार्यक्रम तैयार करना चाहिए. ये कार्यक्रम, देशज लोगों पर केंद्रित क़वायदों के अधिक स्थापित रिकॉर्ड वाले देशों में नीति निर्माताओं द्वारा सीखे गए सबक़ों का लाभ उठा सकता है. इससे अन्य देशों के नीति निर्माताओं को उसी तरह की ग़लतियां करने से बचने में मदद मिलेगी. सफलता की संभावना बढ़ाने के साथ-साथ ऐसी पहल, क़वायदों में दोहराव को भी कम कर सकती है.

G20 को ये सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए कि मूल निवासी बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के परिणामों और कल्याण के अन्य उपायों में ज़बरदस्त सुधार हो. G20 के सदस्य सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में मूल निवासियों को पिछड़ेपन के हाल में नहीं छोड़ा जा सकता. देशज बच्चों से जुड़ी विशिष्ट भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों को देखते हुए कार्यक्रमों और नीतियों को उनके हिसाब से तैयार किए जाने की ज़रूरत हो सकती है. निश्चित रूप से इस दिशा में काम तत्काल शुरू कर दिया जाना चाहिए, ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ग़रीबी की इस मज़बूत कड़ी को इसी पीढ़ी में तोड़ा जा सके.


एट्रिब्यूशन: शबाना नाइक, दिल राहुत, और डैनियल सूर्यादर्मा, “इन्वेस्टिंग इन इंडिजेनवस चिल्ड्रेंस ह्यूमन कैपिटल टू सेक्योर सस्टेनेबल डेवलपमेंट फॉर ऑल,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, जून 2023.


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Authors

Daniel Suryadarma

Daniel Suryadarma

Daniel Suryadarma Research Fellow Asian Development Bank Institute

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Dil Rahut

Dil Rahut

Dil Rahut Vice Chair Research and Senior Research Fellow Asian Development Bank Institute

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Shaabana Naik

Shaabana Naik

Shaabana Naik Postgraduate Student University of Tokyo

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