Published on Sep 01, 2022 Commentaries 0 Hours ago

श्रीलंका में भारतीय और चीनी राजनयिक मिशन के बीच एक चीनी मिलिट्री रिसर्च पोत के वहां पहुंचने को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई.

#भारत-चीन संबंध: दोनों देशों के आपसी संबंधों में फिर से तनाव!

चीन के साथ जारी सीमा विवाद का निपटारा नहीं होने की वज़ह से भारतीय अधिकारी काफी चिढ़े हुए हैं और इसे लेकर अपनी निराशा ज़ाहिर करने में वो अब हिचक भी नहीं रहे. ताजा संकेत श्रीलंका में भारतीय दूतावास द्वारा श्रीलंका में मौज़ूद चीनी राजदूत के लिखे गए एक लेख की कड़ी आलोचना से मिलते हैं जो बेहद सख़्त लहज़े में ताइवान के संदर्भ से जुड़ा हुआ है.

ताज़ा विवाद की शुरुआत तब हुई जब 16 अगस्त को चीनी रिसर्च पोत युआन वांग-5 दक्षिणी श्रीलंका के सामरिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचा. चीनी मिलिट्री रिसर्च पोत असल में 11 अगस्त को श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने वाला था लेकिन तब श्रीलंकाई अधिकारियों ने इसे पहुंचने की अनुमति नहीं दी थी क्योंकि भारत ने तब “इससे जुड़े सुरक्षा के मुद्दों” को उठाया था. भारतीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार चीन को उसके पोत को बंदरगाह पर पहुंचने की सशर्त अनुमति 13 अगस्त को दी गई. शर्त यह रखा गया कि चीनी मिलिट्री रिसर्च पोत अपने “ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (एआईएस) को श्रीलंका के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) में ऑन रखेगा और श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कोई वैज्ञानिक अनुसंधान को अंजाम नहीं देगा“.

चीनी मिलिट्री रिसर्च पोत असल में 11 अगस्त को श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने वाला था लेकिन तब श्रीलंकाई अधिकारियों ने इसे पहुंचने की अनुमति नहीं दी थी क्योंकि भारत ने तब “इससे जुड़े सुरक्षा के मुद्दों” को उठाया था.

लेकिन चीनी पोत को लेकर जो विवाद शुरू हुआ उसकी वज़ह यह थी कि चीन ने इसे लेकर बयान जारी किया कि यह पोत वैज्ञानिक अनुसंधान के मिशन पर है, जबकि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यह पोत “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के कमांड में है” और सैटेलाइट के साथ-साथ मिसाइल को ट्रैक करने में सक्षम है. भारत को चिंता सताने लगी कि उसके श्रीहरिकोटा में स्पेसपोर्ट से लेकर ओडिशा के मिसाइल रेंज और दूसरे तमाम संवेदनशील सामरिक सुविधाएं युआन वांग 5 पोत के रेंज में होगी.

श्रीलंका में चीनी राजदूत ची झेनहोंग ने श्रीलंका गार्जियन में छपे अपने लेख में श्रीलंका द्वारा हंबनटोटा में चीनी जहाज को श्रीलंका द्वारा पहले अनुमति नहीं देने पर भारत की कड़ी आलोचना की. चीनी राजदूत ने लिखा “तथाकथित ‘सुरक्षा चिंताओं’ के आधार पर बाहरी बाधा लेकिन कुछ ताक़तों से किसी भी सबूत के बिना वास्तव में श्रीलंका की संप्रभुता और स्वतंत्रता में यह पूरी तरह से हस्तक्षेप है”. चीनी राजदूत ने अमेरिकी संसद की स्पीकर नैन्सी पेलोसी की हाल की ताइवान यात्रा पर भी सवाल उठाए और कहा, ‘यह चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का गंभीर उल्लंघन करता है, ताइवान स्ट्रेट (जलसंधि) में शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से कमजोर करता है और ‘ताइवान की स्वतंत्रता’ अलगाववादी ताक़तों को बेहद ग़लत संदेश भेजता है.” उन्होंने कहा कि यह दौरा वन चाइना प्रिंसिपल और थ्रू यूएस-चाइना ज्वाइंट कम्युनिक के तहत प्रतिबद्धताओं का “गंभीर उल्लंघन” है.

वार्ता में गतिरोध

इन दो अलग-अलग बातों को एक साथ जोड़ना ही भारत को नागवार गुज़रा. श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने बेहद अपरिचित अंदाज़ में चीनी राजदूत को जवाब देते हुए एक के बाद एक कई ट्वीट किए और कहा कि, ‘हमने चीनी राजदूत की टिप्पणियों पर ग़ौर किया है. बुनियादी राजनयिक शिष्टाचार का उल्लंघन उनकी एक व्यक्तिगत विशेषता हो सकती है या एक बड़े राष्ट्रीय दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित कर सकती है. इसी ट्वीट में उच्चायोग ने आगे कहा कहा कि, “#श्रीलंका के उत्तरी पड़ोसी के बारे में उनका दृष्टिकोण इस बात से समझा जा सकता है कि उनका अपना देश कैसा व्यवहार करता है. # इंडिया, हम उन्हें आश्वस्त करते हैं, कि वो बहुत अलग है. एक कथित वैज्ञानिक अनुसंधान पोत की यात्रा के लिए भू-राजनीतिक संदर्भ का आरोप लगाना एक सस्ता दोषारोपण है.”

श्रीलंका में बड़े पैमाने पर चीनी बुनियादी ढ़ांचा परियोजनाओं के संदर्भ में भारतीय उच्चायोग ने ऋण-संचालित योजनाओं और पारदर्शिता की कमी के मुद्दों को भी उठाया और यह भी बताया कि श्रीलंका में हाल के कुछ घटनाक्रम इन समस्याओं को कैसे प्रतिबिंबित करते हैं. एक अंतिम ट्वीट में उच्चायोग ने कहा कि “श्रीलंका को समर्थन की आवश्यकता है, ना कि किसी दूसरे देश के एज़ेंडे को पूरा करने के लिए अवांछित दबाव या अनावश्यक विवाद.”

श्रीलंका में चीनी राजदूत ची झेनहोंग ने श्रीलंका गार्जियन में छपे अपने लेख में श्रीलंका द्वारा हंबनटोटा में चीनी जहाज को श्रीलंका द्वारा पहले अनुमति नहीं देने पर भारत की कड़ी आलोचना की.

इसके बाद रात में कई और ट्वीट किए गए जिसमें श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने ताइवान स्ट्रेट के सैन्यीकरण का सीधा जिक्र किया. ट्वीट में कहा गया है, “@इंडियाइनएसएल के प्रवक्ता ने  #श्रीलंका में चीनी राजदूत के लेख से संबंधित सवालों के जवाब में उपरोक्त ट्वीट जारी किए, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ ताइवान जलसंधि के सैन्यीकरण और चीन के युआन वांग 5 जहाज के हंबनटोटा बंदरगाह में पहुंचने को जोड़ा गया.” इस बार ताइवान को लेकर भारतीय मिशन का संदर्भ अगस्त में नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के दौरान चीनी सैन्य अभ्यास पर की गई टिप्पणियों से बिल्कुल अलग है. 12 अगस्त और 25 अगस्त को  भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ताइवान के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि वह वन चाइना पॉलिसी को लेकर प्रतिबद्ध है और “भारत की प्रासंगिक नीतियां अच्छी तरह से ज्ञात और सुसंगत हैं. और इन्हें दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं है.” यह तब हुआ जब भारत में चीनी राजदूत द्वारा अपनी वन चाइना पॉलिसी को लेकर भारत से इसे दोहराने की मांग की गई थी, जब उन्होंने कहा कि “मेरी समझ यह है कि भारत की ‘वन चाइना’ नीति नहीं बदली है…..हमें उम्मीद है कि भारत ‘वन चाइना प्रिंसिपल’ के लिए अपना समर्थन दोहरा सकता है.” 

12 अगस्त और 25 अगस्त को  भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ताइवान के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि वह वन चाइना पॉलिसी को लेकर प्रतिबद्ध है और “भारत की प्रासंगिक नीतियां अच्छी तरह से ज्ञात और सुसंगत हैं. और इन्हें दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं है.”

भारतीय अधिकारियों ने सीमा गतिरोध को सुलझाने के मक़सद से दोनों पक्षों के बीच कई दौर की वार्ता में जारी गतिरोध के साथ-साथ बढ़ती चिढ़ का संकेत दिया है. हालांकि दोनों देशों के बीच हुई बातचीत ने शुरू में कुछ सीमित प्रगति की थी, लेकिन अब इसमें गतिरोध साफ झलकने लगा है. इससे पहले अगस्त में भारतीय विदेश मंत्री, एस जयशंकर ने दोनों देशों के अनसुलझे टकराव को सीमा के लिए “ख़तरनाक स्थिति” बताया था और यह जोर दिया था कि ऐसी परिस्थितियों में संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं.

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यह टिप्पणी मूल रूप से द डिप्लोमैट में छपी थी.
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