Author : Harsh V. Pant

Originally Published नवभारत टाइम्स Published on Apr 04, 2025 Commentaries 0 Hours ago

शायद दुनिया एक नई विश्व व्यवस्था के मुहाने पर खड़ी है. लेकिन इस नई विश्व व्यवस्था का ढांचा इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया के बाकी देश ट्रंप के इन तौर-तरीकों का किस तरह से जवाब देते हैं.

बदलते विश्व व्यवस्था में भारत से क्या चाहता है अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दो महीने के कार्यकाल में ‘डिसरप्शन’ यानी व्यवधान को जैसे एक नया मतलब दे दिया है. उनके दूसरी बार वाइट हाउस में प्रवेश करने से पहले तक यह शब्द ज्यादातर सेमिनारों और सम्मेलनों की बातचीत का हिस्सा था. लेकिन ट्रंप 2.0 के आठ हफ्तों ने डिसरप्शन को ग्लोबल ऑर्डर के लिहाज से हकीकत में बदल दिया गया.  

यूक्रेन और रूस की जंग अब एक नए मोड़ पर पहुंच रही है. सऊदी अरब में बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने ब्लैक सी में जहाजों का सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करने पर सहमति जताई है. साथ ही, रूस और यूक्रेन के बीच एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले रोकने के समझौते को लागू करने पर भी बात हुई है. 

यूक्रेन और रूस की जंग अब एक नए मोड़ पर पहुंच रही है. सऊदी अरब में बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने ब्लैक सी में जहाजों का सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करने पर सहमति जताई है. साथ ही, रूस और यूक्रेन के बीच एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले रोकने के समझौते को लागू करने पर भी बात हुई है. यह अपने आप में ट्रंप के लिए एक बड़ी कामयाबी है. जंग शुरू करना आसान होता है, लेकिन उसे खत्म करना बेहद मुश्किल. अपनी साख दांव पर लगाकर ट्रंप यह युद्ध बंद करवाने में लगे हुए हैं.

 

युद्ध समाप्ति की ओर

यूक्रेन ने सारी मुश्किलों के बावजूद अपनी ज्यादातर जमीन बचा ली है और रूस को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचाया है, लेकिन राष्ट्रपति जेलेंस्की का रूस पर पूर्ण विजय का दावा कभी भी व्यावहारिक नहीं था. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बाइडन ने इस सच्चाई से मुंह मोड़ रखा था. साथ ही, उन्हें युद्ध को लेकर यूरोप पर ज्यादा जिम्मेदारी लेने का दबाव डालना चाहिए था. ऐसा नहीं हुआ तभी हालात उलझते चले गए और अब ट्रंप को इसे नए सिरे से सुलझाना पड़ रहा है. हालांकि अभी मसला सुलझा नहीं है. रूस अभी भी युद्धविराम की शर्तें स्वीकारने को पूरी तरह तैयार नहीं है. वह इसे रूसी बैंकों, कंपनियों, बंदरगाहों और जहाजों पर लगी पाबंदियों को हटाने से जोड़ रहा है. लेकिन इसमें दो राय नहीं कि जो जंग दो महीने पहले तक अंतहीन सी लग रही थी, वह अब खत्म होने की ओर बढ़ रही है.  

 जाहिर है, ट्रंप ऐसे तौर-तरीके अपना रहे हैं, जिसके लिए भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देश तैयार नहीं हैं. लेकिन तैयार हों या न हों, उन्हें इसका सामना करना ही होगा. 

ट्रंप की दूसरी बड़ी कामयाबी यह है कि उन्होंने यूरोपियन नेताओं को समझा दिया है कि 1945 के बाद की ट्रांस-अटलांटिक पार्टनरशिप की शर्तें नए सिरे से तय होंगी. रूस का यूक्रेन पर हमला भी यूरोपीय नेताओं के लिए उतना बड़ा झटका नहीं था कि वे अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं पर नए सिरे से गौर करते. यूरोप को खुलेआम जलील करने वाले ट्रंप के बयान और यूक्रेन पर उनके रुख ने ही यूरोपीय देशों को इसके लिए मजबूर किया. पहली बार यूरोप के लीडर्स अपनी रक्षा नीति को लेकर गंभीर नजर आ रहे हैं. जर्मनी से मिल रहे संकेतों के मुताबिक, अनुमान है कि वह अगले दस सालों में रक्षा पर 650 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च कर सकता है. जाहिर है, इसका यूरोप की रक्षा तैयारियों पर बड़ा असर होगा.  

 

एकध्रुवीय दौर बीत चुका

ट्रंप भले ही ऐसा न कह रहे हों, उनके कुछ सलाहकार जरूर कह रहे हैं कि आज का अमेरिका 1990 के दशक का अमेरिका नहीं है. कोल्ड वॉर खत्म होने के बाद का वह एकध्रुवीय दौर बहुत पहले खत्म हो चुका है. अब यह स्थिति नहीं है कि अमेरिका एक साथ कई दुश्मनों का सामना कर सके. अमेरिकी ताकत की आर्थिक बुनियाद कमजोर हो रही है. ऐसे में अगर उसने खुद को नए सिरे से तैयार नहीं किया, तो वह दुनिया में अपनी नंबर वन की पोजीशन शायद ही बरकरार रख पाए.  

 

पेंटागन के चीफ स्ट्रैटिजिस्ट माने जाने वाले अंडर सेक्रेटरी (डिफेंस पॉलिसी) पद के लिए ट्रंप के नॉमिनी एल्ब्रिज कोल्बी ने कहा है कि चीन बेशक पिछले 150 वर्षों से हमारा (अमेरिका का) सबसे बड़ा, सबसे ताकतवर दुश्मन रहा है, लेकिन आज अमेरिका की वैश्विक प्रतिबद्धताओं और उसकी सैन्य ताकत के बीच मेल नहीं रह गया है. इस दलील के सहारे यह कहकर कि ताइवान जैसे अमेरिका के साझेदारों को अपने रक्षा खर्च में इजाफा करते हुए उसे जीडीपी के 10 फीसदी तक ले जाना चाहिए, कोल्बी दरअसल हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों को भी आगाह कर रहे हैं. उनका संदेश यह है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों को भी खर्च में बड़ी हिस्सेदारी के लिए तैयार रहना चाहिए.

 

नई विश्व व्यवस्था

जाहिर है, ट्रंप ऐसे तौर-तरीके अपना रहे हैं, जिसके लिए भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देश तैयार नहीं हैं. लेकिन तैयार हों या न हों, उन्हें इसका सामना करना ही होगा. वे अमेरिका के रुख में आ रहे इन बदलावों की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं हैं. शायद दुनिया एक नई विश्व व्यवस्था के मुहाने पर खड़ी है. लेकिन इस नई विश्व व्यवस्था का ढांचा इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया के बाकी देश ट्रंप के इन तौर-तरीकों का किस तरह से जवाब देते हैं.

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