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इस साल जो यूएन जनरल असेंबली का 77वां सेशन हुआ. भारत के नजरिए से देखें तो यह काफी महत्वपूर्ण रहा. इसमें भारत का जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया ओहदा है, उसे वह इस बार रेखांकित करने में सफल रहा. इस सेशन की जो थीम थी, उसका नाम था- ए वॉटरशेड मोमेंट : ट्रांसफार्मिंग सॉल्यूशन टु इंटरलॉकिंग चैलेंज. यानी यूएन सिस्टम अपने आप में यह बात मान रहा है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आज का संदर्भ बड़े बदलाव से है. असल में जिस तरह की रूपरेखा अंतरराष्ट्रीय राजनीति की आज बन रही है, वह अपने आप में एक तरह से पिछले सात दशकों के मैंडेट को चैलेंज करती है. इस वॉटरशेड मोमेंट में इसका समाधान खोजने की जरूरत है.
बड़ी ताकतों के बीच उभरता तनाव, संस्थाओं का खत्म होना, युद्ध जैसी बहुत समस्याएं हैं. कोविड आया, फिर चीन का आक्रामक रुख और रूस-यूक्रेन युद्ध. जो भी बड़े मुद्दे आए, उनमें कहीं भी यूएन का कोई खास रोल नहीं रहा. इसके संदर्भ में भारत ने अपनी कई बातें रखीं:
भारत ने अपने विचार इस बात को साझा करते हुए रखे कि आज वह अपनी आजादी के 75वें वर्ष को सेलिब्रेट कर रहा है. ऐसे में दुनिया की राजनीति में भारत का जो रोल है, उसे अब वह एक जिम्मेदार देश के तौर पर निभाना चाहता है.
भारत के विदेश मंत्री ने न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भाषण दिया, बल्कि उनकी जो बाकी बातें रहीं, इंगेजमेंट रहे, वे बहुत महत्वपूर्ण थे. जैसे- क्वॉड, ब्रिक्स और उत्सा की मीटिंग हुई. भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका साथ आने लगे हैं. भारत, लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों के बीच मीटिंग हुई. इसके अलावा और भी कई ट्राईलैटरल डायलॉग हुए, जैसे भारत-फ्रांस-ऑस्ट्रेलिया, भारत-फ्रांस-यूएई और भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया के बीच.
अगर यूएन में हमने जल्द सुधार नहीं किए, तो ग्लोबल गवर्नेंस फ्रेमवर्क यूएन से हटकर दूसरी तरफ चला जाएगा. ग्लोबल गवर्नेंस क्वॉड, ब्रिक्स और उत्सा जैसे प्लैटफॉर्म की तरफ शिफ्ट हो जाएगा. यह भारत का बड़ा स्टेटमेंट था.
आम सभा में शिरकत करने के अलावा ये सारे जो प्लैटफॉर्म हैं, इसने एक तरह से दिखाया कि भारत ऐसा देश है जो न सिर्फ अलग-अलग ग्रुप्स या ब्लॉक्स के बीच में अपनी पहचान बनाने में सक्षम रहा है, बल्कि वह एक और संदेश भी दे रहा है अंतरराष्ट्रीय समुदाय को. संदेश यह कि अगर यूएन में हमने जल्द सुधार नहीं किए, तो ग्लोबल गवर्नेंस फ्रेमवर्क यूएन से हटकर दूसरी तरफ चला जाएगा. ग्लोबल गवर्नेंस क्वॉड, ब्रिक्स और उत्सा जैसे प्लैटफॉर्म की तरफ शिफ्ट हो जाएगा. यह भारत का बड़ा स्टेटमेंट था.
भारत ने यह भी बताया कि आज उसके जैसे देशों के पास और मंच भी उपलब्ध हैं. भारत ने सब देशों के सामने यह बात रखी कि आज वह अपनी जिम्मेदारी को एक वैश्विक हितधारक के तौर पर पूरी करने को तैयार है.
चीन का नाम न लेते हुए भारत ने एक और बड़ा महत्वपूर्ण उदाहरण दिया. विदेश मंत्री ने कहा कि कई ऐसे देश हैं, जो यूएन का परमानेंट मेंबर होने के बावजूद यूएन चार्टर की अवमानना करते हैं जबकि दुनिया भर के देशों के लिए भारत अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी को लेकर प्रतिबद्ध है.
विदेश मंत्री ने बताया कि चाहे वैक्सीन सप्लाई हो, जो हमने सौ से ज्यादा देशों को दी. चाहे हमारे आपदा राहत अभियान हों, डेवलपमेंट पार्टनरशिप हो- हमने हर जगह जिम्मेदारी निभाई. भारत ने अपने आपको एक नई पहचान दी. खुद को उन देशों के विपरीत खड़ा किया, जो यूएन में होने के बावजूद एक जिम्मेदार नेता की भूमिका नहीं निभा रहे हैं
भारत ने कहा कि जिन देशों को मदद की जरूरत थी, फूड-फर्टिलाइजर-फ्यूल की जरूरत थी, जिन्हें यूक्रेन युद्ध के बीच सपोर्ट की जरूरत थी, जिनके लिए हिंद-प्रशांत में जो अस्थिरता और असुरक्षा बढ़ रही है, उन सब में भारत उन देशों के साथ खड़ा रहा, जो गरीब थे, जिनके पास उतने रिसोर्सेज नहीं हैं और जिन्हें बड़ी ताकतें नजरअंदाज कर देती हैं.
भारत ने अंदेशा जताया कि उसे अगर यूएन के सिस्टम में शामिल नहीं किया जाता, सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बनाया जाता, तो यूएन की क्रेडिबिलिटी पर सवाल खड़े होते हैं.
दूसरी बात जो भारत ने रखी, वो यह कि यूक्रेन क्राइसिस में भारत न्यूट्रल नहीं है. इसमें भारत शांति और यूएन चार्टर के साथ खड़ा है. वह उन देशों के साथ खड़ा है जो डायलॉग और डिप्लोमेसी को मानते हैं. जिस तरह से वैश्विक आर्थिक संकट आता दिख रहा है, वह गरीब देशों के लिए परेशानी का सबब है. ऐसे समय भारत उन देशों के साथ खड़ा है. विदेश मंत्री ने इस बात का जिक्र किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को संकीर्णता की नजर से नहीं, बल्कि जिस वसुधैव कुटुंबकम की बात वह करता आया है, वैसे देखता है. चाहे वह अफगानिस्तान या श्रीलंका में सप्लाई हो, चाहे वह फूड और वैक्सीन हो, भारत हर तरह से मानवीय मदद देता है. दिसंबर में जी-20 की बैठक भारत आयोजित कर रहा है और उसमें हर मुद्दे पर वह आगे बढ़कर काम करने की तैयारी करेगा. फिर भारत ने अंदेशा जताया कि उसे अगर यूएन के सिस्टम में शामिल नहीं किया जाता, सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बनाया जाता, तो यूएन की क्रेडिबिलिटी पर सवाल खड़े होते हैं.
चीन और पाकिस्तान को निशाना बनाकर भारत ने कहा कि जो देश आतंकवाद के खिलाफ जंग को राजनीतिक नजरों से देखते हैं, वे यूएन चार्टर की भावना को नहीं मानते, जिससे यूएन कमजोर पड़ रहा है. यूएन के रिफॉर्म बड़े महत्वपूर्ण हैं, इसलिए इसमें जो देश ग्लोबल गवर्नेंस के लिए अपना योगदान देने को तैयार हैं, उन्हें शामिल किया जाना चाहिए. भारत की दावेदारी को और भी देशों ने काफी मजबूत किया. हमने देखा कि प्रेसिडेंट बाइडन हों, फ्रांस के मैक्रों हों, रूस हो- सबने भारत की बात की. इसके अलावा काफी देशों ने कहा कि भारत ने उनकी बढ़-चढ़कर मदद की.
भारत की संयुक्त राष्ट्र आम सभा में जो डिप्लोमेसी रही है, उसे देखें तो उसमें भारत एक नई तरह की वैश्विक शक्ति के रूप में उभरकर आया है. आज जिस तरह की फॉल्टलाइन बन रही हैं बड़ी शक्तियों के बीच में, उसके बीच भारत नेविगेट करने और अपनी नई पहचान बनाने में सक्षम है.
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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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