Author : Harsh V. Pant

Originally Published जागरण Published on Dec 29, 2022 Commentaries 0 Hours ago

इसमें संदेह नहीं कि यह दौर बड़ी शक्तियों के बीच टकराव का है जिसमें बहुपक्षीय ढांचा दरक रहा है और भूराजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं. इसके चलते आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग में राजनीतिक विश्वास की बड़ी भूमिका होगी भले ही देशों को इसकी कुछ कीमत ही क्यों न चुकानी पड़े.

भूमंडलीकरण का एक नया दौर

यह कहना गलत नहीं होगा कि 2022 बेहद उथल-पुथल भरा रहा. साल खत्म होने को आया, लेकिन रूस द्वारा यूक्रेन के शहरों, उसके ऊर्जा केंद्रों और बुनियादी ढांचे को मिसाइलों एवं ड्रोन से निशाना बनाने का सिलसिला समाप्त नहीं हुआ. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इन हमलों को इस आधार पर उचित ठहरा रहे हैं कि यह अक्टूबर में रूस को क्रीमिया से जोड़ने वाले पुल को उड़ाने की वाजिब जवाबी प्रतिक्रिया है. मास्को जहां यूक्रेन के लोगों का हौसला पस्त करना चाहता है, वहीं यूक्रेन और दृढ़ता से प्रतिकार के लिए तैयार प्रतीत होता है, जो गतिरोध का शिकार हुई ऊर्जा आपूर्ति के बीच हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी झुकने को राजी नहीं. ईरान द्वारा रूस को लंबी दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों की आपूर्ति से जुड़ी चिंताओं के बीच अब अमेरिका यूक्रेन को पैट्रियट एयर डिफेंस मिसाइलें उपलब्ध करा रहा है. यूरोप में संवाद बढ़ाने के पक्ष में कुछ आवाजें जरूर उठ रही हैं, लेकिन ऐसी संभावना के साकार होने के आसार कम ही दिखते हैं.

मास्को जहां यूक्रेन के लोगों का हौसला पस्त करना चाहता है, वहीं यूक्रेन और दृढ़ता से प्रतिकार के लिए तैयार प्रतीत होता है, जो गतिरोध का शिकार हुई ऊर्जा आपूर्ति के बीच हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी झुकने को राजी नहीं.

विश्व का दूसरा सबसे शक्तिशाली देश चीन इस समय कई दबावों से जूझ रहा है. महज कुछ ही दिनों के भीतर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी शून्य कोविड नीति से पलटी मार ली, क्योंकि शी चिनफिंग के सख्त नियमों से उकताकर लोग आक्रोशित होने लगे थे. कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोग शी के इस्तीफे की मांग करने लगे थे. इसके बाद चीन ने कोविड संबंधी सख्त पाबंदियां हटा दीं. एकाएक इन पाबंदियों को हटाने से वहां स्वास्थ्य ढांचा चरमराने लगा है, क्योंकि सुविधाओं की तुलना में संक्रमण के मामले कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि, घरेलू स्तर पर ऐसी मुश्किलों के बावजूद शी बाहरी मोर्चे पर आक्रामकता दिखाने से बाज नहीं आ रहे. बीते दिनों अरुणाचल के तवांग में चीनी दुस्साहस वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर एकतरफा परिवर्तन की उसकी मंशा को ही दर्शाता है. चूंकि भारतीय सैन्य बलों ने मात्रात्मक एवं गुणात्मक स्तर पर सुदृढ़ सेना को करारा जवाब दिया तो इससे भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की भारत को सबक सिखाने की खीझ और बढ़ेगी.

यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका और चीन के बीच तेज होते भूराजनीतिक एवं भूआर्थिक टकराव ने नई दिल्ली की स्थिति को चीन की दादागीरी की दृष्टि से और नाजुक बना दिया है. तल्ख होती अमेरिकी-चीन प्रतिद्वंद्विता से आगामी वर्षों में यह प्रतिस्पर्धी दबाव और बढ़ेगा, क्योंकि अमेरिका जहां हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी साझेदारी को सशक्त बनाएगा, वहीं चीन के साथ तकनीकी आदान-प्रदान को संकुचित करेगा. बाइडन प्रशासन ने हाल में ऐसी कुछ सिलसिलेवार घोषणाएं की हैं, जिनसे चीन को होने वाला अमेरिकी उच्च प्रौद्योगिकी निर्यात बंद होगा. इससे आधुनिक कंप्यूटिंग चिप्स, सुपर कंप्टूयर्स और उन्नत सेमीकंडक्टर्स बनाने की चीनी क्षमताएं प्रभावित होंगी.

भूमंडलीकरण का एक नया दौर शुरू

संप्रति भूराजनीति फिर से निर्णायक भूमिका में आ गई है, क्योंकि आर्थिक निर्णयों के मामले में विश्वास आवश्यक पहलू बन गया है. वाशिंगटन द्वारा चीन को महत्वपूर्ण तकनीकों से वंचित करने की नीति और चीन पर अति निर्भरता को दूर करने के लिए आपूर्ति शृंखला को नए सिरे से गढ़ने के लिए समान विचार वाले देशों के साथ नई साझेदारियों की आवश्यकता में यही आभास होता है. अमेरिका ने स्पष्ट रूप से कहा है कि 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था के निर्माण में चीन के साथ उसकी जो प्रतिस्पर्धा है, उससे अकेले पार नहीं पाया जा सकता.

अब भूमंडलीकरण का एक नया दौर शुरू हो गया है, जिसमें महत्वपूर्ण उद्योगों से जुड़ी आपूर्ति शृंखला के ढांचे में बदलाव के पीछे विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का ध्यान रखा जा रहा है. अबाध आर्थिक भूमंडलीकरण की जिस ताकत को कभी सभी वैश्विक समस्याओं का समाधान माना जाता है, उसका असर अब कमजोर पड़ गया है. यदि उभरती तकनीकें ही भूराजनीति के अगले चरण का निर्धारण करेंगी तो समझिए कि उनकी आपूर्ति का ध्रुवीकरण एक नई वास्तविकता है. देखना यही होगा कि इस मोर्चे पर संबंधित पक्षों में ताल कैसे बैठती है.

पश्चिम को भी आभास हुआ है कि रूस एक तात्कालिक दिक्कत है, लेकिन बड़ी समस्या चीन है और आने वाले समय में मास्को-बीजिंग धुरी के मजबूत होने से यह समस्या और विकराल ही होनी है. यही कारण है कि पश्चिम महत्वपूर्ण उत्पादों के लिए चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता घटाने के लिए तमाम विकल्प अपनाएगा.

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह दौर बड़ी शक्तियों के बीच टकराव का है, जिसमें बहुपक्षीय ढांचा दरक रहा है और भूराजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं. इसके चलते आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग में राजनीतिक विश्वास की बड़ी भूमिका होगी, भले ही देशों को इसकी कुछ कीमत ही क्यों न चुकानी पड़े. यदि अमेरिका ने इस आर्थिक ढांचे के नए सिरे से आकार देना आरंभ किया है तो इसे अंतिम स्वरूप यूरोप से मिलेगा. चीन का उदय अमेरिका के लिए जिन निहितार्थों वाला है, वही स्थिति यूरोप के लिए यूक्रेन में रूसी हमले की है. अंतत: यूरोप की आंखें वैश्विक हलचलों की चुनौती को लेकर खुली हैं. फिर चाहे वह यूरेशिया का मामला हो या फिर हिंद-प्रशांत का. वैश्विक राजनीति और आर्थिकी का ध्यान हिंद-प्रशांत की ओर बढ़ा है. पश्चिम को भी आभास हुआ है कि रूस एक तात्कालिक दिक्कत है, लेकिन बड़ी समस्या चीन है और आने वाले समय में मास्को-बीजिंग धुरी के मजबूत होने से यह समस्या और विकराल ही होनी है. यही कारण है कि पश्चिम महत्वपूर्ण उत्पादों के लिए चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता घटाने के लिए तमाम विकल्प अपनाएगा. इसके लिए चीन को महत्वपूर्ण तकनीकों से दूर रखना और समान विचारों वाले साझेदारों के साथ नजदीकी बढ़ाने जैसे तरीके भी अपनाए जाएंगे.

उभरते भूराजनीतिक ढांचे में भारत की मुख्य भूमिका होगी. जी-20 की अध्यक्षता के साथ वह अगले वर्ष वैश्विक एजेंडे को आकार देने में सक्षम होगा. हालांकि इससे इतर बात करें तो यही वह पड़ाव है जब भारतीय नीति निर्माताओं को अपने नीतिगत विकल्पों के दूरगामी निहितार्थों को देखते हुए बड़ी सावधानी से उनका चयन करना होगा. अपने लाभ के लिए शक्ति के संतुलन का उपयोग वैश्विक पदानुक्रम में किसी राष्ट्र के उदय में अहम होता है. यह वैश्विक ढांचे में एक निर्णायक मोड़ का दौर है. नई दिल्ली को इसे गंभीरता से लेते हुए सक्रियता के साथ अपनी तत्परता दिखानी चाहिए.


यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है .

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