Author : Aleksei Zakharov

Issue BriefsPublished on Jun 13, 2024
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From Neglect To Revival Making Sense Of Russia S Outreach To Bangladesh

रूस की तरफ से बांग्लादेश की तरफ दोस्ताना पहल करने के पीछे क्या है संकेत?: एक विश्लेषण

  • Aleksei Zakharov

    सोवियत संघ ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश का समर्थन किया था. इस लिहाज से देखें तो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक करीबी संबंध थे. इसके बावजूद बांग्लादेश हमेशा रूस की विदेश नीति की प्राथमिकता के दायरे से बाहर रहा. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि सितंबर 2023 तक किसी भी सोवियत/रूसी विदेश मंत्री ने बांग्लादेश का दौरा नहीं किया. लेकिन यूक्रेन युद्ध की वज़ह से पश्चिमी देशों द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों और अमेरिका के साथ चल रहे तनाव के बाद रूस ने अब बांग्लादेश के साथ अपने रिश्तों को फिर से मज़बूत करने की कोशिश शुरू कर दी है. ये लेख उन भू-राजनीतिक कारकों की पड़ताल करता है, जिनका असर रूस-बांग्लादेश के संबंधों पर पड़ता है. इसके साथ ही इस लेख में उन क्षेत्रों का भी आकलन किया गया है जो इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

Attribution:

अलेक्सेई ज़खारोव, "अनदेखी से लेकर आकर्षित करने तक: रूस की बांग्लादेश नीति में बदलाव को समझने की कोशिश", ओआरएफ इश्यू ब्रीफ नंबर 689, जनवरी 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन

प्रस्तावना

यूक्रेन युद्ध को 2 साल से ज्यादा हो चुके हैं. पश्चिमी देशों से अलग-थलग हो चुका रूस अब पूर्व की तरफ देख रहा है. वो दक्षिण एशिया में नए साझेदार खोज रहा है. रूसी हथियारों और ऊर्जा संसाधनों के लिए भारत अब भी मुख्य रणनीतिक खरीदार है. इसके अलावा इस क्षेत्र में रूस की उपस्थिति सीमित है. यही वजह है कि रूस अब भारत के पड़ोसी देशों, खासकर बांग्लादेश के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने के लिए नए सिरे से कोशिश कर रहा है.

रूस और बांग्लादेश के रिश्ते काफी हद तक 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान बांग्लादेश को सोवियत संघ के समर्थन की यादों से जुड़े हैं. [a] सोवियत संघ उन शुरुआती देशों में शामिल था, जिसने बांग्लादेश को एक आज़ाद मुल्क के तौर पर मान्यता दी थी. शेख मुजीबुर रहमान [b] और सोवियत नेताओं के बीच मधुर रिश्तों ने दोनों देशों के बीच गहरे राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा दिया. बांग्लादेश की आज़ादी के बाद के शुरुआती वर्षों में सोवियत संघ ने कई तरह से उसकी सहायता की. 1972 से 1974 के बीच सोवियत नौसेना ने चटगांव बंदरगाह पर माइनस्वीपिंग का काम किया. इसके अलावा उसने घोरासाल और सिद्धिरगंज में बिजली संयंत्रों के निर्माण और मरम्मत के लिए आर्थिक और तकनीकी मदद भी की.[1]

आखिरकार रूस-बांग्लादेश के बीच रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में बातचीत को तब गति मिली जब 2009 में शेख हसीना सरकार फिर से सत्ता में आई. हालांकि इन क्षेत्रों में सहयोग आगे बढ़ने के बावजूद रूस की विदेश नीति की प्राथमिकता में बांग्लादेश काफी नीचे रहा.


हालांकि 1975 में बांग्लादेश में तख़्तापलट के बीच द्विपक्षीय संबंध तेज़ी से बिगड़े.[c] सोवियत संघ के प्रति बांग्लादेश की नीति की समीक्षा हुई. राष्ट्रपति ज़ियाउर रहमान और एचएम इरशाद के सैन्य शासन के दौरान दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक विभाजन स्पष्ट दिखा. अफ़गानिस्तान पर रूस के हमले और कंबोडिया में वियतनाम के दख़ल को रूस के समर्थन को लेकर बांग्लादेश में बेचैनी दिखी. दोनों देशों के रिश्तों में सबसे खराब पल 1983 में तब आया, जब "कूटनीति के अलावा अन्य गतिविधियों" में शामिल होने के आरोप में बांग्लादेश ने रूस के 19 राजनयिकों को अपने यहां से निष्कासित कर दिया.[d],[2]

दोनों देशों के रिश्तों में आखिरकार 1990 के दशक के बाद से सुधार आना शुरू हुआ, खासकर शेख हसीना की सरकार (1996-2001) के दौरान दोनों देशों के बीच कुछ नए समझौतों पर दस्तख़त हुए. 1999 में रूस और बांग्लादेश ने सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में सहयोग को लेकर समझौता किया, जिसने इस क्षेत्र में घनिष्ठ साझेदारी का रास्ता साफ किया. 1999 में हुए इस सौदे के मुताबिक बांग्लादेश को रूस से आठ MIG-29 लड़ाकू विमान खरीदने थे लेकिन इस खरीद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद ख़ालिदा ज़िया की सरकार ने शेख हसीना सरकार के ख़िलाफ जांच शुरू कर दी.[3] आखिरकार रूस-बांग्लादेश के बीच रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में बातचीत को तब गति मिली जब 2009 में शेख हसीना सरकार फिर से सत्ता में आई. हालांकि इन क्षेत्रों में सहयोग आगे बढ़ने के बावजूद रूस की विदेश नीति की प्राथमिकता में बांग्लादेश काफी नीचे रहा.

इस लेख में हम उन क्षेत्रों का आकलन करेंगे, जहां रूस और बांग्लादेश के बीच के रिश्ते और प्रगाढ़ हो सकते हैं. संबंधों के पुनरुद्धार के लिए किस क्षेत्र में ज़्यादा संभावनाएं हैं और इस तरह की कोशिशों में भारत और चीन की क्या भूमिका हो सकती है.


रूस-बांग्लादेश के रिश्तों को आकार देने वाले भू-राजनीतिक कारक क्या हैं?



बांग्लादेश की तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था, विशाल घरेलू बाज़ार, दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया का प्रवेश द्वार होने की भौगोलिक स्थिति ने रूस को बांग्लादेश को लेकर अपनी नीति पर दोबारा विचार करने को प्रेरित किया है.[4]

2014 से ही रूस 'एशिया की ओर धुरी' बनाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में रूस आर्थिक कारणों की वजह से बांग्लादेश की तरफ आकर्षित हो रहा है. बांग्लादेश ऐसा देश है, जिसे रूस हथियार बेच सकता है, जहां परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर सकता है, जो रूस के अनाज के लिए बड़ा बाज़ार साबित हो सकता है.[5] फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों के साथ रूस के रिश्ते जिस हद तक ख़राब हुए हैं, उसके बाद रूस के लिए बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना, उन्हें विस्तार देना राजनीतिक और भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण हो गया है.



यूक्रेन युद्ध का क्या असर?



रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बांग्लादेश की विदेश नीति अपने पश्चिमी साझेदारों और रशिया के फंसकर रह गई है. 'सभी से दोस्ती, किसी से द्वेष नहीं'' और 'शांतिपूर्ण बातचीत' और 'संयम' बरतने की नीति एक हद तक ही मददगार हो सकती है.

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के तुरंत बाद बांग्लादेश ने हालात पर "गंभीर चिंता" जताई थी. बांग्लादेश ने ताकत के इस्तेमाल पर प्रतिबंध, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान और "किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद के बातचीत द्वारा शांतिपूर्ण समाधान" के प्रति ध्यान आकर्षित करवाया था.[6] इसके बावजूद बांग्लादेश ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन को लेकर हुई वोटिंग के दौरान कोई कड़ा रुख अपनाने से संकोच किया. (तालिका 1 देखें ). हालांकि संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के स्थायी मिशन ने रूस की कार्रवाई की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र की तरफ से लाए गए दो निंदा प्रस्तावों के समर्थन में वोटिंग की.[7] बांग्लादेश ने मार्च 2022 में उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जिसमें रूस से यूक्रेन के ख़िलाफ "शत्रुतापूर्ण कार्रवाई को रोकने और तुरंत युद्ध विराम की मांग की गई थी". (A/ES-11/2),[8] अक्टूबर 2022 में बांग्लादेश ने उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया, जिसमें यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्यता प्राप्त सीमा के भीतर के क्षेत्रों में रूस द्वारा कराए गए "अवैध तथाकथित जनमत संग्रह" की निंदा की गई थी. (A/ES-11/4).[9] कुछ रूसी विद्वानों ने बांग्लादेश की पहली कार्रवाई को अमेरिका के लिए रियायत और दूसरे मामले में इज़रायल के साथ क्षेत्रीय विवाद में फिलिस्तीन के समर्थन की अपनी स्थायी नीति के समर्थन के तौर पर देखा.[10]

तालिका 1: यूक्रेन युद्ध को लेकर यूएन के प्रस्तावों पर बांग्लादेश की वोटिंग(2022-2023)

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स्रोत: लेखक द्वारा यूएन की डिजिटल लाइब्रेरी से संकलित आंकड़े

बांग्लादेश अपने विदेशी साझेदारों के साथ जो बातचीत कर रहा है, उसमें भी रूस-यूक्रेन युद्ध का ज़िक्र आ रहा है. उदाहरण के लिए अप्रैल 2023 में जापान और सितंबर 2023 में फ्रांस के साथ वार्ता के बाद बांग्लादेश ने जो साझा बयान जारी किया, उसमें ये कहा गया कि "यूक्रेन युद्ध अंतरराष्ट्रीय कानूनों, खासकर संयुक्त राष्ट्र चार्टर, का उल्लंघन है. ये अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए गंभीर ख़तरा है".[11] इन बयानों पर रूस की भी नज़र है. उसने पश्चिमी देशों पर "रूस के ख़िलाफ दुष्प्रचार अभियान" चलाने का आरोप लगाया है".[12] हालांकि रूस ने चतुराई बरतते हुए बांग्लादेश पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

अमेरिका और रूस में टकराव

इस सबके बावजूद यूक्रेन युद्ध यानी फरवरी 2022 के बाद से बांग्लादेश को अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर चलना पड़ रहा है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का बांग्लादेश जिस तरह पालन कर रहा है, उसने रूस को थोड़ा नाराज़ तो किया है. 2022 के आखिरी महीनों में बांग्लादेश ने अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करते हुए रूस के एक ब्लैकलिस्टेड जहाज को अपने यहां नहीं आने दिया, जबकि ढाका स्थित रूसी दूतावास ने इस जहाज की एंट्री देने की अपील की थी. खास बात ये है कि इस जहाज में रूपपुर परमाणु बिजली संयंत्र के निर्माण के लिए उपकरण आ रहे थे.[13]

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने बार-बार कहा कि उसने अमेरिका के साथ अच्छे संबंध विकसित कर लिए हैं. ऐसे में वो उन देशों के जहाजों को अपने यहां नहीं आने देगा, जिस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है.[14] हालांकि ऐसा लगता है कि इस 'घटना' को भारत की मदद से सुलझा लिया गया है. उस रूसी जहाज को पश्चिम बंगाल के हल्दिया पोर्ट पर आने दिया गया. यहीं पर इसमें रखा सामान उतारा गया और फिर इस सामान को सड़क के रास्ते बांग्लादेश पहुंचा दिया गया.[15] इसके अलावा जनवरी-फरवरी 2023 में तीन गैर प्रतिबंधित रूसी जहाजों ने रूपपुर परमाणु बिजली संयंत्र से जुड़ा सामान बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह पर पहुंचाया.[16] हालांकि जब बांग्लादेश ने रूस को ये बताया कि वो 69 रूसी जहाजों पर अमेरिका द्वारा लगाए प्रतिबंध का पालन करेगा तो रूसी विदेश मंत्रालय में मॉस्को में बांग्लादेश के राजदूत को बुलाया और इसे लेकर "गंभीर चिंता" जताई. रूस ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई "दोनों देशों के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर नकारात्मक असर डालेगा".[17]



अक्टूबर 2022 में बांग्लादेश ने उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया, जिसमें यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्यता प्राप्त सीमा के भीतर के क्षेत्रों में रूस द्वारा कराए गए "अवैध तथाकथित जनमत संग्रह" की निंदा की गई थी. 

प्रतिबंध की इस गाथा के साथ-साथ अमेरिका और रूस का टकराव बांग्लादेश की घरेलू राजनीति का भी हिस्सा बन गया है. दिसंबर 2022 में बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) ने ढाका में एक रैली की. इस रैली के बाद बांग्लादेश में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड हास बीएनपी के नेता साजेदुल इस्लाम के घर गए और बांग्लादेश में "पारदर्शी" चुनाव की ज़रूरत पर बयान दिया. ढाका में रूसी दूतावास ने इस बयान की आलोचना की और इसे "विकसित लोकतंत्रों की अधिकारवादी महत्वाकांक्षाएं" बताया.[18] रूसी विदेश मंत्रालय ने इसे अमेरिकी राजदूत द्वारा "दूसरे देश की घरेलू राजनीति पर प्रभाव डालने की कोशिश" कहा.[19]

हालांकि रूस ने बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में अमेरिका की सक्रियता की तरफ ध्यान आकर्षित किया लेकिन खुद रूस पर बांग्लादेश के मामलों में 'दखलअंदाज़ी' करने का आरोप लग रहा है. बांग्लादेश की ये बेचैनी तत्कालीन विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन के बयान में दिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि "उनका देश नहीं चाहता कि रूस, अमेरिका या फिर कोई और देश बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखल दे".[20] इसके अलावा उनकी पार्टी ने अमेरिकी अधिकारियों और बीएनपी के नेताओं के बीच की मुलाकात पर रूस के बयान की निंदा की. इसमें कहा गया कि "रूस लंबे वक्त से बांग्लादेश का मित्र देश है, ऐसे में रूस से उम्मीद की जाती है कि वो बांग्लादेश के लोगों के लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करेगा"[21]

जनवरी 2024 में बांग्लादेश के संसदीय चुनाव से पहले रूस ने अवामी लीग का समर्थन किया, जिसके साथ वो गहरे ऐतिहासिक संबंध साझा करता है और विभिन्न क्षेत्रों में उसके साथ मज़बूत रिश्ते हैं. इसकी तुलना में बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को रूस में "पश्चिमी देशों की समर्थक" पार्टी के रूप में देखा जाता है और उसके सत्ता में आने पर बांग्लादेश में रूस के हितों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

इस मामले में रूस का रुख चीन के रवैये से मेल खाता है. चीन ने भी अवामी लीग सरकार पर दबाव डालने के लिए अमेरिका की आलोचना की है. चीन ने कहा कि "वो बांग्लादेश के साथ मिलकर सभी तरह की आधिपत्यवादी और सत्ता की राजनीति का विरोध करेगा".[22] 2013 के बाद से चीन ने बांग्लादेश में ऊर्जा, परिवहन क्षेत्र के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के अलग-अलग सेक्टर में अरबों डॉलर का निवेश किया है. चीन की बहुत बड़ी रकम बांग्लादेश में दांव पर है. बांग्लादेश की किसी भी सरकार के लिए चीन के साथ जारी साझेदारी से अलग होना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि चीन ना सिर्फ बांग्लादेश को बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद देता है बल्कि वो बांग्लादेश की सेना को सैन्य उपकरण और हथियार देने वाला प्रमुख देश भी है.

चीन ने भी अवामी लीग सरकार पर दबाव डालने के लिए अमेरिका की आलोचना की है. चीन ने कहा कि "वो बांग्लादेश के साथ मिलकर सभी तरह की आधिपत्यवादी और सत्ता की राजनीति का विरोध करेगा".  


बांग्लादेश में चुनाव पूर्व के सियासी घटनाक्रम पर भारत का रुख ज़्यादा संतुलित था. भारत ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की वकालत की लेकिन वो अमेरिका के इस नज़रिए से सहमत नहीं है कि शेख हसीना की सरकार एक निरंकुश सरकार है. सच तो ये है कि बांग्लादेश के चुनाव में अमेरिका के हस्तक्षेप और विपक्षी पार्टियों की मज़बूत होती स्थिति को भारतीय हितों के लिए नुकसानदायक माना गया. बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी का गठबंधन ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहता है लेकिन पूर्वोत्तर भारत में सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर वो आंखें मूंद लेता है.[23],[24] इसके अलावा कुछ भारतीय विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि अगर शेख हसीना सरकार की स्थिति कमज़ोर होती है तो फिर बांग्लादेश के चीन के करीब जाने की संभावना है. ऐसी स्थिति भारत और अमेरिका के लिए ठीक नहीं होगी.[25]

बांग्लादेश में जब चुनाव नतीजों का ऐलान हुआ तो शेख हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग को बधाई देने वालों में भारत, चीन और रूस के प्रतिनिधि ही सबसे आगे थे.[26] इसके विपरीत अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि "ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे". उसने इस बात पर दुख जताया कि "सभी पार्टियां इस चुनाव में शामिल नहीं थीं"[27]

 

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की उलझन



अप्रैल 2023 में बांग्लादेश सरकार ने हिन्द प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) को लेकर अपना दृष्टिकोण जारी किया. विशेषज्ञों की इस पर अलग-अलग राय थी. इसमें ढाका के QUAD में शामिल होने की चर्चाओं को फिर से ज़िंदा किया. ये मुद्दा सबसे पहले मई 2021 में उठा था. तब चीन के अधिकारियों ने कहा था कि अगर बांग्लादेश QUAD में शामिल होता है कि तो बांग्लादेश-चीन के रिश्तों को "काफी नुकसान" होगा.[28] कुछ उम्मीदों के बावजूद इस दस्तावेज़ को अपनाने से बांग्लादेश हिन्द प्रशांत को लेकर अमेरिका की रणनीति के करीब आ सकता है.[29] हालांकि ये आउटलुक इसे लेकर एक सचेत दृष्टिकोण अपनाता है. चूंकि इंडो-पैसिफिक को लेकर बांग्लादेश का ये आउटलुक प्रधानमंत्री शेख हसीना की जापान, अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा से ठीक पहले जारी किया गया तो ये कयास लगाए जा रहे हैं कि बांग्लादेश ने ऐसा या तो "पश्चिमी देशों के दवाब में" किया या फिर अपने विकसित साझेदार देशों के "मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की मांग" के लिए उसने "अधूरे मन" से ये प्रयास किया.[30]

बांग्लादेश के कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक इस आउटलुक ने भले ही "QUAD की तरफ झुकाव का स्पष्ट संकेत" ना दिया हो लेकिन इसने QUAD के साथ "बांग्लादेश के घनिष्ठ सहयोग करने की इच्छा" को दिखा दिया है.[31] इस आउटलुक को लेकर लगाई जा रही अटकलों ने बांग्लादेश के अधिकारियों को इश क्षेत्र को लेकर अपने दृष्टिकोण को सामने रखने पर मज़बूर कर दिया. बांग्लादेश के विदेश राज्य मंत्री मोहम्मद शहरयार आलम ने कहा कि बांग्लादेश "उन सभी देशों के साथ जुड़ने के लिए तैयार है, जिन्होंने अपनी-अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए इंडो-पैसिफिक रणनीति बनाई है". इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि "समावेशिता बांग्लादेश की विदेश नीति का ऐसा तत्व है, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा". उन्होंने किसी सैन्य गुट या गठबंधन में शामिल होने से इनकार किया.[32]

बांग्लादेश की इंडो-पैसिफिक की अवधारणा और QUAD के साथ उसका संभावित जुड़ाव रूस के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है. अगर बांग्लादेश हिन्द प्रशांत के लिए अमेरिका की रणनीति को स्वीकार करता है तो फिर रूस की नज़रों में बांग्लादेश मित्र देशों की सूची से बाहर हो जाएगा. हालांकि महत्वपूर्ण बात ये है कि बांग्लादेश का इंडो-पैसिफिक आउटलुक इस तरह बनाया गया है कि जिससे किसी के साथ टकराव न हो और ये किसी क्षेत्रीय शक्ति के ख़िलाफ ना दिखे.

इस वक्त ज़्यादा से ज़्यादा देश इंडो-पैसिफिक को लेकर अपनी रणनीति बन रहे हैं. ऐसे में रूस को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं वो इस क्षेत्र में अपना प्रभाव ना खो दे. खास बात ये है कि रूस के पास इस क्षेत्र को देने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है. पश्चिमी देशों के ख़िलाफ रूस का कट्टर नैरेटिव बहुत कम क्षेत्रीय शक्तियों के रुख से मेल खाता है. बांग्लादेश को तो रूस का ये स्टैंड शायद ही स्वीकार्य हो क्योंकि बांग्लादेश अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति को जारी रखते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन और जापान जैसे देशों के साथ घनिष्ठ सहयोग चाहता है.

रिश्तों को मज़बूत करने की राजनयिक कोशिशें

सितंबर 2023 में दिल्ली में जी-20 की बैठक से ठीक पहले रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव कई मुद्दों पर बातचीत करने के लिए दो दिन की बांग्लादेश यात्रा पर गए. इस दौरान व्यापार और ऊर्जा से लेकर अंतरिक्ष प्रोग्राम और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा हुई. ये किसी सोवियत/रूसी विदेश मंत्री की पहली बांग्लादेश यात्रा थी. ये इस बात का संकेत था कि रूस अब बांग्लादेश के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है, जिसकी वो अब तक उपेक्षा करते आ रहा था.

क्षेत्रीय मुद्दे


इंडो-पैसिफिक को लेकर रूस की हमारे साथ या हमारे विरोधी वाले दृष्टिकोण के बारे में सब जानते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि सर्गेई लावरोव ने इस मुद्दे पर रूस की पिछली टिप्पणियों पर आई प्रतिक्रियाओं से सबक लिया है. ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान लावरोव से जब ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका (AUKUS), QUAD और अमेरिका के "वैश्विक उद्देश्य के लिए क्षेत्र में विस्तार" के रुख के बारे में सवाल पूछा गया तो अक्सर दिए जाने वाले उसी जवाब को दोहराया कि "ब्लॉक आधारित प्रारूपों से सुरक्षा संरचना कमज़ोर होती है". लेकिन हैरानी की बात ये है कि उन्होंने क्वाड के बारे में बात करते हुए जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का ज़िक्र किया, जबकि पत्रकार उनसे ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका वाले क्वाड के बारे में पूछ रहे थे. माना जा रहा है कि ऐसा करके रूस की इच्छा भारत को नाराज़ ना करने की रही हो, क्योंकि पिछली बार इंडो-पैसेफिक और क्वाड को लेकर लावरोव ने जो बयान दिया था, उसे भारत की नाराज़गी का सामना करना पड़ा था.[33] बांग्लादेश को लेकर इंडो-पैसिफिक के मामले में रूस को बहुत सावधानी बरतनी होगी. उसे ये बात माननी पड़ेगी कि बांग्लादेश को इस क्षेत्र में उभरते रुझानों के हिसाब से अपनी रणनीति बनाने का अधिकार है.

एक और मुद्दा जो द्विपक्षीय एजेंडे के शीर्ष में रहा और जो बांग्लादेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, वो मुद्दा है रोहिंग्या संकट. जुलाई 2021 में ताशकंद में हुए क्षेत्रीय सम्मेलन के दौरान मोमेन और लावरोव के बीच हुई बातचीत में बांग्लादेश ने रूस से कहा कि म्यांमार के साथ अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों का फायदा उठाते हुए रूस को एक त्रिपक्षीय समझौते की कोशिश करनी चाहिए, जिससे रोहिंग्या संकट का कुछ समाधान निकल सके लेकिन रूस ने बांग्लादेश की मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया. बांग्लादेश इस मामले में लगातार रूस से मध्यस्थता की मांग कर रहा है लेकिन रूस का कहना है कि इस संकट को बांग्लादेश और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझाना चाहिए. लावरोव की ढाका यात्रा के दौरान ये मुद्दा फिर उठा. बांग्लादेश के मुताबिक इस दौरान विदेश मंत्री मोमेन ने "रोहिंग्या समस्या के समाधान के लिए रूस से सहयोग मांगा". इस पर लावरोव ने "रूस ने म्यांमार के बीच मंत्रिस्तरीय बातचीत में रोहिंग्याओं की वापसी का मुद्दा उठाने का वादा किया".[34] रूस के रुख से साफ है कि वो बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थता करने और मिलिट्री जुंटा पर रोहिंग्याओं की वापसी को लेकर दबाव डालने को तैयार नहीं है. हालांकि रूस 2018 से ही संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य प्रोग्राम और अखमत कादिरोव रीजनल पब्लिक फाउंडेशन एनजीओ के ज़रिए शरणार्थियों के रहने की स्थिति में सुधार के लिए खाना, पानी, दवाइयों और आवास की मदद कर रहा है.[35]

व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा


लावरोव की ढाका यात्रा ने ये भी दिखाया कि बांग्लादेश के साथ रूस अपने आर्थिक एजेंडे को फिर से मज़बूत करना चाहता है. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर यूक्रेन युद्ध के प्रभाव को स्वीकार करते हुए रूस के विदेश मंत्री ने उसके सामने एक प्रस्ताव पेश किया. इसमें कहा गया कि बांग्लादेश के साथ दीर्घकालिक समझौतों के तहत रूस आवश्यक वस्तुओं, जैसे कि तेल, लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG), खाद, गेहूं, खाद्य उत्पादों, की आपूर्ति को तैयार है.[36] हालांकि बांग्लादेश को ये प्रस्ताव आकर्षित लग सकते हैं लेकिन रूस के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने में कई कमियां भी हैं. पहला तो ये कि बांग्लादेश के लिए रूस टॉप बीस बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल नहीं है. पिछले पांच साल से बांग्लादेश और रूस का द्विपक्षीय व्यापार एक अरब डॉलर के आसपास स्थिर है. [e] इसमें कोई प्रगति होती भी नहीं दिख रही है.(तालिका नंबर 2 देखें). रूसी अर्थव्यवस्था के ख़िलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रभावित किया है. दोनों देश ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं कर पाए हैं, जो इस समस्या का समाधान कर सके. रूसी विदेश मंत्री लावरोव "राष्ट्रीय मुद्राओं पर आधारित कई तरह के लेनदेन का जिक्र कर रहे थे".[37] लेकिन ये बात सभी जानते हैं कि बांग्लादेश बैंक व्यापार के लिए रूसी रूबल के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं है.[38] ऐसे में दोनों देशों के पास चीन की करेंसी यानी युआन में व्यापार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है.

रूसी अर्थव्यवस्था के ख़िलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रभावित किया है. दोनों देश ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं कर पाए हैं, जो इस समस्या का समाधान कर सके. 



इसके अलावा तेल के आयात पर भी बात नहीं बन पा रही है. 2022 से ही रूस से बांग्लादेश को तेल का आयात बढ़ाने पर चर्चा चल रही है, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली है. इसमें कई बाधाएं हैं, जैसे कि बांग्लादेश की तेल रिफाइनरियों को अपग्रेड करना या फिर किसी तीसरे देश के ज़रिए तेल का आयात करना. लेकिन इस काम में कोई प्रगति नहीं हुई है. अब बांग्लादेश महंगी LNG का आयात करने के लिए अपने यहां प्राकृतिक गैस के उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. रूस की सरकारी कंपनी गाज़प्रोम तटीय क्षेत्र में पांच नए कुओं की ड्रिलिंग करने वाली है.[39] इससे बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में रूस की दीर्घकालिक उपस्थिति सुनिश्चित हो जाएगी.

तालिका 2. बांग्लादेश और रूस में 2018-2023 के बीच व्यापार (in US$ million)From Neglect To Revival Making Sense Of Russia S Outreach To Bangladesh

स्रोत: बांग्लादेश बैंक,[40] बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो,[41] निर्यात संवर्धन ब्यूरो.[42]

एक संयोजक के रूप में परमाणु ऊर्जा

निर्माणाधीन रूपपुर परमाणु बिजली संयंत्र रूस और बांग्लादेश की साझेदारी की सफलता की एक बड़ी कहानी है. इस परियोजना की संकल्पना 2009 में की गई. फिर अलग-अलग सरकारों के स्तर कई समझौते हुए. इस परियोजना में VVER-1200 रिएक्टर (III+ पीढ़ी) की 2 यूनिट का निर्माण हो रहा है. इसका जीवन चक्र 60 साल का है, जिसमें 20 साल का विस्तार किया जा सकता है. 2,400 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता के साथ ये बांग्लादेश की कुल ऊर्जा खपत के 10 प्रतिशत की पूर्ति कर सकता है.[43] देश में बिजली की बढ़ती मांग और बिजली क्षेत्र के विस्तार और उत्पादन में विविधता की कोशिशों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि रूस की मदद से बन रहा ये परमाणु बिजली संयंत्र बांग्लादेश की ऊर्जा सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

इस परियोजना में हाल ही में कुछ प्रगति दिखी जब रूस ने इस संयंत्र की पहली इकाई के लिए परमाणु ईंधन के पहले बैच की डिलीवरी की. इसके उद्घाटन पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी वर्चुअल तरीके से शामिल हुए. इस मौके पर पुतिन ने कहा कि "इस परमाणु परियोजना के पूरे जीवन चक्र" के दौरान रूस मदद देगा. उन्होंने बांग्लादेश में एक शांतिपूर्ण परमाणु उद्योग की स्थापना में योगदान देने की भी बात कही.[44] यूरेनियम की खेप मिलने के बाद इसे आधिकारिक तौर पर परमाणु बिजली संयंत्र का दर्जा प्राप्त हुआ. इसकी पहली और दूसरी यूनिट 2024 और 2025 में काम करना शुरू कर देंगी.

रूपपुर बिजली संयंत्र को स्थापित करने में भारत की भूमिका के बारे में सार्वजनिक मंच पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है लेकिन दोनों ही नेताओं यानी शेख हसीना और व्लादिमीर पुतिन ने इस परियोजना में भारत के योगदान की बात स्वीकार की है. भारत इस परियोजना के लिए तकनीकी सहायता, परामर्श सेवाएं और बांग्लादेश विशेषज्ञों को प्रशिक्षण मुहैया करा रहा है. इसके लिए 2017 में भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग और बांग्लादेश के परमाणु ऊर्जा आयोग के बीच एक समझौता हुआ था.[45] 2018 में इसे लेकर एक MOU भी साइन हुआ था.[46] इतना ही नहीं भारत ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन भी थी है, जिससे वो इस बिजली संयंत्र से जुड़ी ट्रांसमिशन लाइंस को विकसित कर सके.[47] हालांकि बाद में भारत-बांग्लादेश की समीक्षा बैठक में इस परियोजना को क्रेडिट लाइन की सूची से बाहर कर दिया गया.[48]

बांग्लादेश के पहले परमाणु बिजली संयंत्र के निर्माण के लिए रूस ने 11.38 अरब डॉलर का ऋण दिया. ये इस परियोजना की 90 प्रतिशत लागत को कवर करता है. ये ऋण 2027 के बाद 28 साल में चुकाया जाना है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों ने ये फैसला किया कि ऋण का भुगतान अब अमेरिकी डॉलर की बजाए चीन की मुद्रा यानी युआन में किया जाएगा.[49] यानी इस नई व्यवस्था के मुताबिक अब रूस को ऋण का भुगतान चीन के बैंक के माध्यम से किया जाएगा. रूस को चीन के क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम, जो कि SWIFT का विकल्प है, का इस्तेमाल करके ये रकम हासिल होगी. इस तरह की व्यवस्था चीन को रूपपुर परमाणु बिजली संयंत्र में एक अहम मध्यस्थ बनाती है.



रक्षा सहयोग



रूस रक्षा आयात के मामले में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा साझेदार है. पहले नंबर पर चीन है (तालिका 3 देखें). 2013 में मास्को में पुतिन और शेख हसीना के बीच बातचीत में रूस ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन देने का फैसला किया. इस रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने का काम किया. बांग्लादेश ने इस क्रेडिट लाइन का इस्तेमाल रूस से 16 Yak-130 लड़ाकू प्रशिक्षण विमान, 5 Mi-171Sh लड़ाकू-परिवहन हेलीकॉप्टर और दूसरे बख्तरबंद हथियार खरीदने में किया.[50]

2019 में बांग्लादेश और रूस ने एक सैन्य-तकनीकी कार्यकारी समूह का गठन किया. इसका उद्देश्य बांग्लादेश के रक्षा उद्योग की संभावित ज़रूरतों को पूरा करना था. तब से 2 Mi-171A2 बहुउद्देशीय भारी हेलीकॉप्टर को छोड़कर दोनों देशों में और कोई महत्वपूर्ण रक्षा समझौते नहीं हुए हैं. इन हेलीकॉप्टरों की खरीद पर भी 2021 में रशियन हेलीकॉप्टर होल्डिंग और बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के बीच दस्तख़त हुए थे.[51]

तालिका 3: बांग्लादेश को हथियार बेचने वाले प्रमुख देश (2012-2022; in US$ million)

From Neglect To Revival Making Sense Of Russia S Outreach To Bangladeshस्रोत: SIPRI आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस[52]

हालांकि दोनों पक्षों में सैन्य कूटनीति जारी है. इसका उदाहरण आधिकारिक यात्राओं में दिखता है. दिसंबर 2021 में रूसी रक्षा मंत्रालय के अधिकारी बांग्लादेश की आज़ादी के पचासवें साल के जश्न में शामिल हुए. रूसी सैनिकों ने विजय परेड में हिस्सा भी लिया.[53]

हाल के वर्षों में बांग्लादेश ने अपनी सेना को नियमित रूप से रूस की अगुवाई में होने वाले सैनिक खेलों में शामिल होने के लिए भेजा है.[f] यही पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता भी होती है. यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के बीच बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के सुरक्षा सलाहकार तारिक अहमद सिद्दीकी 2022 और 2023 में मास्को गए. यहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर मास्को सम्मेलन को संबोधित किया और रूस के उप रक्षा मंत्री अलेक्सेंद्र फोमिन से बातचीत की.[54]

पांच दशक में पहली बार नवंबर 2023 में रूस के पैसिफिक बेड़े के युद्धपोत चटगांव बंदरगाह गए. इस टुकड़ी में बड़े पनडुब्बी रोधी युद्धपोत एडमिरल ट्राइब्यूट्स और एडमिरल पेंटेलेयेव और समुद्री टैंकर पेचांगा शामिल थे. कुछ विशेषज्ञों को मानना है कि रूसी युद्धपोतों की चिटगांव बंदरगाह की यात्रा का उद्देश्य ताकत का प्रदर्शन करना और अमेरिका को यह दिखाना था कि यूक्रेन युद्ध के बावज़ूद रूस कमज़ोर या पूरी तरह अलग-थलग नहीं हुआ है.[55] इस यात्रा को रूस और बांग्लादेश के बीच “बहुत उच्च स्तर” के संबंधों[56] और हिंद महासागर में रूस के बढ़ते प्रभाव के सबूत के तौर पर भी देखा गया.[57] लेकिन रूसी युद्धपोतों की पोर्ट कॉल (चटगांव बंदरगाह जाना) को एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में ही देखा जाना चाहिए, क्योंकि भारत, बांग्लादेश समेत दूसरी क्षेत्रीय ताकतों के साथ रूस का नौसैनिक जुड़ाव बहुत सीमित है. अपने पुराने सोवियत युग के पैसिफिक बेड़े को फिर से भरने के बावज़ूद[58] इस बात की संभावना बहुत कम है कि आने वाले वर्षों में भी रूस हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी समुद्री गतिविधियां या भागीदारी बढ़ा पाएगा.

भले ही दोनों देशों के बीच सैन्य कूटनीति बढ़ी है, लेकिन इनके बीच रक्षा सहयोग बढ़ने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति भविष्य में सहयोग के राह में एक बड़ी बाधा हैं. बांग्लादेश की सैन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अगर रूस ऋण भी मुहैया करा देता है तब भी दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र में सहयोग के रास्ते में कई बाधाएं हैं. रूस के रक्षा क्षेत्र पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध और यूक्रेन युद्ध की वज़ह से रूस जिस तरह अपनी आंतरिक ज़रूरतों को पूरा करने पर ध्यान दे रहा है, उसने दोनों देशों के बीच भविष्य में जुड़ाव की संभावनाओं पर असर डाला है. ये स्थिति चीन के लिए एकदम मुफ़ीद है. हथियार की बाज़ार में चीन ही रूस का मुख्य प्रतिद्वंदी है. ऐसे में बांग्लादेश के हथियार आयात पर चीन का एकाधिकार बना रहेगा.

हालांकि हथियारों के एक उभरते निर्यातक के रूप में भारत के लिए भी यहां गुंजाइश पैदा हो सकती है. भारत की हथियार उत्पादन कंपनी जल्द ही बांग्लादेश के बाज़ार में प्रवेश कर सकती हैं. इतना ही नहीं भारत उन बहुराष्ट्रीय हथियार निर्माता कंपनियों के लिए एक ट्रांजिट प्वाइंट के तौर पर काम कर सकता है, जिनकी असेंबली (फिटिंग) और विनिर्माण इकाइयों का इस्तेमाल पड़ोसी देशों में हथियारों के निर्यात के लिए किया जाता है.[59] भारत और रूस भी इस तरह की योजना की संभावना तलाश सकते हैं लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि अमेरिका ने रूस के जिन कंपनियों को ब्लैकलिस्ट में डाला है, उनके साथ काम करने की भारत की इच्छाशक्ति कितनी मज़बूत है. फिलहाल इस बात की ज़्य़ादा संभावना दिख रही है कि निकट भविष्य में बांग्लादेश को भारत रूस के एमआई-17 हेलीकॉप्टर, एएन-32 परिहवन विमान और मिग-29 लड़ाकू विमानों के रखरखाव में सहायता उपलब्ध कराएगा.[60]

निष्कर्ष

यूक्रेन में चल रहे भीषण युद्ध और उसकी वज़ह से पश्चिमी देशों के साथ रूस के रिश्तों में जो दरार आई है, उसके बाद रूस के सामने विकासशील देशों के साथ उपेक्षित संबंधों को फिर से सुधारने और उन्हें आकर्षित करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है. अपनी ऊर्जा और व्यापारिक हितों को सुरक्षित रखने और क्षेत्रीय प्रभाव के मामले में अमेरिका के सामने एक इंच भी पीछे नहीं हटने की ज़िद ने रूस की बांग्लादेश नीति को एक नई गति दी है.

बांग्लादेश के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाने के लिए रूस ने परमाणु ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भारी निवेश किया है. इसका फायदा ये होगा इससे दोनों देश कई दशक तक एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे, फिर चाहे बांग्लादेश में किसी भी पार्टी की सरकार बने. परमाणु ऊर्जा में निवेश की वज़ह से दोनों देशों के रिश्ते विकसित होते रहेंगे.

बांग्लादेश के साथ रूस का आर्थिक जुड़ाव प्रतिबंधों को लेकर संवेदनशील हैं. ये बात दोनों देशों के बीच संबंधों का घनिष्ठ करने वित्तीय और तकनीकी बाधाओं की प्राथमिक कारण बन सकती है. भले ही रूस फिलहाल दक्षिण एशिया में बांग्लादेश को अपने एक अलग साझेदार के तौर पर देख रहा है लेकिन एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में रूस के दो प्राथमिक सामरिक सहयोगी भारत और चीन आने वाले वर्षों में मास्को और ढाका की साझेदारी में अहम भूमिका निभाएंगे. रूस इन दोनों पक्षों के साथ सहयोग और समन्वय बनाए रखना चाहेगा. रूस और बांग्लादेश के बीच आर्थिक लेनदेन के हालिया रुझानों को देखें तो ये साफ दिखता है कि चीन के आर्थिक ढांचे पर उनकी निर्भरता बढ़ती जा रही है. बांग्लादेश द्वारा रूस को किया जा रहा ऋण का भुगतान हो या फिर द्विपक्षीय व्यापार. सारा लेनदेन चीन के ज़रिए हो रहा है. अमेरिका के साथ उनकी प्रतिद्वंदिता और बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार के साथ उनके मज़बूत संबंध रूस और चीन को एकजुट करने का काम करेंगे. फिलहाल तो रूस को अपनी बांग्लादेश नीति के लिए चीन की सलाह की ज़रूरत नहीं है. लेकिन आर्थिक लेनदेन के मामलों में दोनों देशों की जिस तरह चीन पर आर्थिक निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए अब ये सवाल उठने लगा है कि क्या चीन भविष्य में रूस की बांग्लादेश नीति पर अपनी पकड़ मज़बूत कर सकता है? इस सवाल के जवाब के लिए लंबा इंतज़ार करना होगा.

बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने को लेकर रूस अभी तो भारत के दृष्टिकोण और समर्थन की तरफ झुका हुआ है. दक्षिण एशिया में भारत की प्रभावशाली स्थिति को देखते हुए तीनों देशों के बीच सहयोग की काफी गुंजाइश है. रूसी हथियारों और ऊर्जा संसाधनों को बांग्लादेश भेजने के लिए अभी भारत एक ट्रांजिट प्वाइंट के तौर पर तो काम कर ही रहा है, लेकिन रूस और बांग्लादेश अपने व्यापार और द्विपक्षीय परियोजना के लिए भारतीय मुद्रा यानी रुपये का इस्तेमाल करने की संभावना तलाश कर सकते हैं. इससे रूस और बांग्लादेश के बीच आर्थिक लेनदेन को लेकर चीन पर निर्भरता कम होगी, साथ ही रूस के पास रुपये के भंडार की अधिकता की समस्या का समाधान भी मिल सकता है.[g]

बांग्लादेश को रूस जब तक ऊर्जा संसाधन, आवश्यक वस्तुएं, आर्थिक, तकनीकी और यहां तक कि राजनीतिक समर्थन मुहैया कराने में सक्षम है, तब तक बांग्लादेश के लिए रूस महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक बना रहेगा.

Endnotes

[a] अप्रैल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के संघर्ष की शुरुआत के दौरान सोवियत संघ ने यहां के नागरिकों के दमन और दिसंबर 1970 के आम चुनावों में जीत हासिल कर चुके अवामी लीग के नेताओं पर कड़ी कार्रवाई को लेकर चिंता जताई थी. पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति पर रूस ने पाकिस्तान सरकार के साथ अपने राजनयिक संपर्क बनाए रखे थे और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने इस समस्या का सियासी समाधान ढूंढने की अपील की थी. लेकिन अगस्त 1971 में भारत के साथ शांति, मित्रत्रा और सहयोग की संधि पर दस्तख़त करने और फिर सितंबर 1971 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सोवियत संघ की यात्रा के बाद मास्को ने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना करनी शुरू की और इस संघर्ष पर भारत के रुख का समर्थन करना शुरू किया. दिसंबर 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को तीन बार वीटो किया. इन प्रस्तावों में तुरंत युद्धविराम और सेना की वापसी की का आह्वान किया गया था लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में किसी राजनीतिक समझौते की बात को छोड़ दिया गया था. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सोवियत संघ ने भारत के साथ जो संधि की थी, उसी के मुताबिक उसने हिंद महासागर में अपने पैसिफिक बेड़े को तैनात भी कर दिया. इसका मक़सद बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ रहे अमेरिका के यूएसएस एंटरप्राइज़ विमान वाहक पोत का मुकाबला करना था. आखिरकार 1971 की इस जंग में भारत की जीत हुई और पाकिस्तान को मज़बूर होकर बांग्लादेश को एक आज़ाद मुल्क के तौर पर मान्यता देनी पड़ी.

[b] शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे. वो आज़ाद बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बने. उन्हें सम्मान देते हुए बंगबंधु (बंगाल के मित्र) के नाम से भी संबोधित किया जाता है.

[c] अगस्त 1975 में बांग्लादेशी सेना के अधिकारियों के एक समूह ने शेख मुजीबुर रहमान के पूरे परिवार (दो बेटियों को छोड़कर, शेख हसीना उस समय विदेश में थीं) की हत्या कर दी. इस तख़्तापलट के बाद नवंबर 1975 में दो और तख़्तापलट हुए जिसके बाद ज़ियाउर रहमान सत्ता में आए. ज़ियाउर रहमान की सत्ता के दौरान भारत और रूस के समर्थकों को किनारे कर दिया गया. बांग्लादेश ने अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और मुस्लिम देशों के साथ अपने संबंध सुधारे.

[d] इससे पहले 1980 में भी बांग्लादेश ने चार सोवियत राजनयिकों को निष्काषित किया. उन पर ये आरोप लगाया कि वो सोवियत दूतावास में जासूसी के उपकरण लाए हैं. 1983 में फिर कुछ रूसी राजनयिकों का निष्कासित किया गया. इस बार उन पर ये आरोप थी कि राष्ट्रपति एचएम इरशाद की मार्शल लॉ शासन व्यवस्था का विरोध कर रहे सरकार विरोधी 'राजनीतिक तत्वों' से मिले हुए हैं.

[e] बांग्लादेश और रूस डेटा के आंकड़ों को अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं. रूस की संघीय सीमा शुल्क सेवा के मुताबिक जो द्विपक्षीय व्यापार 2015 में 1.4 अरब डॉलर था, वो 2021 में बढ़कर करीब 3 अरब डॉलर (अंतिम उपलब्ध आंकड़े) हो गया. द्विपक्षीय व्यापार में इस बढ़ोतरी के बावजूद रूस की कस्टम सेवा ने बांग्लादेश को रूस के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में शामिल नहीं किया है.

[f] रूस के रक्षा मंत्रालय द्वारा 2015 से ही हर साल अंतर्राष्ट्रीय सेना खेलों का आयोजन किया जाता है. अलग-अलग देशों की सेनाएं इसमें शामिल होती हैं और विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेकर युद्ध को लेकर अपनी तैयारी और शारीरिक कुशलता दिखाती हैं.

[g] यूक्रेन युद्ध के बाद जब से भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू किया तो 2022 में रूस और भारत ने इसके भुगतान के लिए रुपये पर आधारित तंत्र शुरू किया. भारत कच्चे तेल की कीमत का भुगतान रुपये में करता है. इससे रूस के पास कई अरब डॉलर के रूपये का भंडार हो गया, जिसका वो इस्तेमाल नहीं कर सका है. मई 2023 के बाद से ही ये भारत और रूस के अधिकारियों के बीच चर्चा का मुद्दा बना हुआ है. हालांकि इसके इस्तेमाल के लिए कई विकल्पों पर चर्चा हुई, जैसे कि मुद्रा रूपांतरण, भारत के पूंजी बाज़ार और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश, लेकिन दोनों पक्ष अभी तक इसका कोई ऐसा कोई समाधान नहीं तलाश पाए हैं, जो दोनों देशों को मंजूर हो.

 

 

[1] Embassy of the People’s Republic of Bangladesh, Moscow.

[2] Alamgir Mohiuddin, “The Government has Ordered 18 Soviet Diplomats Expelled for...,” UPI Archives, November 30, 1983.

[3] The timeline of the case can be found here: “Refugee Review Tribunal: Australia,” Department of Immigration and Citizenship, 2009.

[4] H. A. Shovon and Md Himel Rahman, “Cold War Redux in Dhaka,” The Daily Star, January 16, 2023.

[5] Richard Connolly, Russia’s Economic Pivot to Asia in a Shifting Regional Environment (London: Royal United Services Institute, September 2021), 4–6.

[6] Permanent Mission of Bangladesh to the United Nations, “Statement by Mr. Monwar Hossain, DPR and CDA, a.i. at the Emergency Special Session of the UNGA on Ukraine Crisis,”.

[7]Bangladesh Votes for UN Resolution Against Russia,” The Daily Star, October 13, 2022.

[8] United Nations General Assembly, “A/RES/ES-11/2 Humanitarian Consequences of the Aggression Against Ukraine”.

[9] United Nations General Assembly, “A/RES/ES-11/4 Territorial Integrity of Ukraine: Defending the Principles of the Charter of the United Nations: Resolution / Adopted by the General Assembly”.

[10] Maria Savischeva, “Большому кораблю — большое плавание в Бангладеш, или какие санкционные риски для третьих стран должна учитывать Россия [A Large Ship Needs a Long Voyage to Bangladesh, or What Sanctions Risks for Third Countries Russia Should Take Into Account],” Russian International Affairs Council, March 13, 2023.

[11] Prime Minister’s Office of Japan.; Élysée.

[12]Russia Notes Western Leaders’ Comment on Ukraine in Bangladesh,” Dhaka Tribune, September 13, 2023.

[13] Raheed Ejaz, “নাম বদলে নিষেধাজ্ঞাভুক্ত জাহাজে রূপপুরের পণ্য [Roopur Products in the Banned Ships After Name Change],” Prothom Alo, December 29, 2022.

[14]Momen: Bangladesh Will Not Accept Those Russian Ships Which are Under Sanctions,” Dhaka Tribune, January 22, 2023.

[15] Dipanjan Roy Chaudhury, “Russian Shipment for Bangladesh Nuclear Plant Docks at Haldia Port,” The Economic Times, January 9, 2023.

[16] “Посольство РФ в Бангладеш подтвердило запрет на заход 69 российских судов в порты страны [The Russian Embassy in Bangladesh Confirmed the Ban on Entry of 69 Russian Ships into the Country’s Ports],” TASS, February 15, 2023.

[17] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, https://www.mid.ru/ru/foreign_policy/news/1855144

[18] “Russia for ‘Not Interfering in the Domestic Affairs’ of Bangladesh,” New Age, December 20, 2022, https://www.newagebd.net/article/189553/russia-for-not-interfering-in-the-domestic-affairs-of-bangladesh

[19]US Interfering in Internal Affairs Of Bangladesh: Russia on Envoy’s Visit,” NDTV, December 27, 2022.

[20]We on’t want Russia, US to Interfere in Bangladesh’s Internal Affairs: Momen,” The Business Standard, December 26, 2022.

[21]BNP Denounces Russian Spokesperson’s Statement,” Prothom Alo, November 25, 2023.

[22]China Ready to Work with Bangladesh to Oppose Power Politics: Spokesman,” bdnews24.com, June 14, 2023.

[23] Aditya Gowdara Shivamurthy, “Bangladesh’s Elections Show Limitations for India-U.S. Cooperation in South Asia,” South Asian Voices, October 18, 2023.

[24] Veena Sikri, “India-Bangladesh Relations: The Way Ahead,” India Quarterly 65, no. 2: 156–57.

[25] Sohini Bose and Vivek Mishra, “Jamaat-e-Islami in Bangladesh Elections: Diverging Perceptions of India and the US,” Observer Research Foundation, October 4, 2023.

[26]India, China and Russia Congratulate PM Hasina on Election Victory, Promise Continued Support,” The Business Standard, January 8, 2024.

[27] U.S. Department of State.

[28] Syful Islam, “Bangladesh Hits Back After China Envoy Warns Against Joining Quad,” Nikkei Asia, May 11, 2021.

[29] Michael Kugelman, “Bangladesh Tilts Toward the U.S. in the Indo-Pacific,” Foreign Policy, March 30, 2023.

[30] Zillur Rahman, “What’s Our Priority in the Indo-Pacific Outlook?” The Daily Star, May 9, 2023.

[31] Rubiat Saimum, “Bangladesh’s Strategic Pivot to the Indo-Pacific,” East Asia Forum, June 9, 2023.

[32]Shahriar: Dhaka’s Indo-Pacific Outlook is Not to Choose Between Major Powers,” Dhaka Tribune, September 2, 2023.

[33]Indo-Pacific Strategy is Not a Grouping to Dominate, Says MEA,” The Hindu, December 11, 2020.

[34] Ministry of Foreign Affairs, Bangladesh.

[35]Kadyrov Speaks About Humanitarian Assistance to Refugees from Myanmar in Bangladesh,” Daily Sun, May 27, 2023.

[36] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, https://mid.ru/en/press_service/vizity-ministra/1903461/

[37] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation, https://mid.ru/en/press_service/vizity-ministra/1903461/

[38] Jebun Nesa Alo, “No Scope to Settle Trade in Russian Ruble: Cenbank,” The Business Standard, September 25, 2023.

[39] M. Azizur Rahman, “Russia’s Gazprom Getting Five New Wells for Gas Drilling,” The Financial Express, September 24, 2023.

[40] Bangladesh Bank.

[41] Bangladesh Bureau of Statistics, Ministry of Planning, Foreign Trade Statistics of Bangladesh 2021-2022, Dhaka, Ministry of Planning, 2023.

[42] Export Promotion Bureau, Government of the People’s Republic of Bangladesh.

[43] Shafiqul Islam Bhuiyan, “First Delivery of Nuclear Fuel Takes Bangladesh Closer to its Goal,” The Daily Star, October 1, 2023.

[44] President of Russia.

[45] Ministry of External Affairs, Government of India.

[46] Press Information Bureau, Government of India.

[47]India’s Credit Line For Bangladesh Covers Nuclear Projects, Rooppur Nuclear Power Plant: Foreign Secretary,” NDTV, March 28, 2021.

[48] Saifuddin Saif, “Line of Credit: Bangladesh, India Again Stress Accelerating Fund Release,” The Business Standard, August 7, 2023.

[49] Jebun Nesa Alo and Saifuddin Saif, “Dhaka, Moscow Agree to Settle Rooppur Payments in Chinese Yuan,” The Business Standard, April 13, 2023.

[50] Rostec, “Russia Signs Mi-171Sh Procurement Contract with Bangladesh’s AF,” June 19, 2017.

[51] Rostec, “Rostec to Supply Two Mi-171A2 Helicopters to Bangladesh Police,” November 19, 2021.

[52] SIPRI Arms Transfer Database, “Importer/Exporter TIV Tables”.

[53] The Ministry of Foreign Affairs of the Russian Federation.

[54] Ministry of Defence of the Russian Federation.

[55] Michael Kugelman, “What Russian Warships in Chattogram Port Tells Us About Great Power Competition in Bangladesh,” The Daily Star, December 18, 2023.

[56]Russian Naval Ships Call at Bangladeshi Port for First Time in Half a Century,” TASS, November 12, 2023.

[57] Dipanjan Roy Chaudhury, “Russia Steps Up Presence in Indian Ocean After Decades; Sends Warships to Myanmar-Bangladesh,” The Economic Times, November 15, 2023. See also: “China’s Envy, India’s Pride: Russia is Back in Indian Ocean After Decades, Docks Warships in Bangladesh, Myanmar,” Firstpost, November 15, 2023.

[58] Alexey D. Muraviev, “Sleeping on Russia’s Naval Resurgence in the Pacific,” Asia Times, December 21, 2023.

[59] oyeeta Bhattacharjee, “India-Bangladesh Defence Cooperation: Coming of Age, At Last?” ORF Issue Brief 250, July 2018: 6.

[60] Rezaul H. Laskar and Rahul Singh, “India Eyes Bangladesh as Market for Range of Military Hardware,” Hindustan Times, January 3, 2023,

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Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the geopolitics and geo-economics of Eurasia and the Indo-Pacific, with particular ...

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