Author : Harsh V. Pant

Published on Jun 09, 2022 Commentaries 0 Hours ago

पैगंबर मुहम्मद के बारे में बीजेपी नेताओं की टिप्पणी का मामला भारत की विदेश नीति के लिए चुनौती बना

खाड़ी देशों के सवालों का भारत ने दिया डिप्लोमेटिक रिएक्शन

पिछले दिनों एक टीवी कार्यक्रम में बीजेपी के प्रवक्ताओं ने पैगंबर मुहम्मद साहब के ख़िलाफ अशोभनीय बातें की थीं. यह भारत की अंदरूनी राजनीति का मसला था, जिसके चलते यह विवादित बयान दिया गया. इसके बाद पहले तो कानपुर में अशांति भड़की. उसके बाद इसका सबसे बड़ा असर मिडिल ईस्ट के इस्लामिक देशों पर देखा गया. उन्होंने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया और कई इस्लामिक देशों ने आधिकारिक रूप से इसकी निंदा की. उन्होंने कहा कि भारत इस मामले में कड़ी कार्रवाई करे. बीजेपी ने इन नेताओं को पार्टी से निकाल दिया, लेकिन इस घटना ने भारत की विदेश नीति की चुनौतियां और बढ़ा दीं.

इस घटना में दो-तीन बड़े अहम पहलू हैं. एक तो यह कि अपनी प्रतिक्रिया में भारत ने यह साफ किया कि जैसे ही यह घटना घटी, उस पर कड़ा एक्शन लिया गया. दूसरे, जिस तरह की बातें इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी और दूसरे इस्लामिक देशों की ओर से आईं, उन्हें भारत ने ख़ारिज कर दिया. भारत ने कहा कि यह बहुत तंगनज़री वाला आकलन है कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार होता है. यह हमारे अंदरूनी मामलों में दखल देने की बात है.

 जिस तरह की बातें इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी और दूसरे इस्लामिक देशों की ओर से आईं, उन्हें भारत ने ख़ारिज कर दिया. भारत ने कहा कि यह बहुत तंगनज़री वाला आकलन है कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार होता है. यह हमारे अंदरूनी मामलों में दखल देने की बात है.

जब इस मसले पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की प्रतिक्रिया आई, तो भारत ने पाकिस्तान को भी पूरी मजबूती से जवाब दिया. भारत ने कहा कि पाकिस्तान तो खुद ही मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन करता रहा है तो वह दूसरे देशों के लिए इस तरह की बातें न करे. लेकिन भारत ने खाड़ी के देशों से कहा कि इस मामले में न सिर्फ़ एक्शन लिया गया है, बल्कि भारत में किसी भी तरह की असहिष्णुता बर्दाश्त नहीं की जा रही है.

भारत के लिए मिडिल ईस्ट बहुत अहम

दरअसल भारत के लिए मिडिल ईस्ट बहुत अहम रणनीतिक इलाका है. वह भारत के एक्सटेंडेड नेबरहुड का हिस्सा है. पिछले आठ साल देखें तो विदेश नीति के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी सफलता यह रही है कि वह खाड़ी के अरब देशों के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत बनाने में सफल रहे. बीजेपी को एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में देखा जाता रहा है, इसके बावजूद मोदी ने बड़ी सफलता हासिल की. मिडल ईस्ट में अगर आप देखें तो भारत ने सऊदी अरब, यूएई और बहरीन जैसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए. प्रधानमंत्री ने भी इन देशों का दौरा किया और टॉप लेवल पर रिश्ता बेहतर हुआ. जब भारत ने अनुच्छेद 370 हटाया था, उस समय भी सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों की प्रतिक्रिया बहुत शांत थी. यह भारत के लिए एक बड़ी डिप्लोमैटिक सफलता थी.

बीजेपी के प्रवक्ताओं के ताज़ा बयानों से जो विवाद उभरा है, ऐसे मामलों का असर इन संबंधों और भारत की विदेश नीति पर भी पड़ेगा. इसीलिए भारत ने इतनी तेज़ी से कदम उठाए. भारत सरकार की तरफ से एक एक्सक्लूसिव मेसेज गया कि भारत इस तरह के विवादों को सपोर्ट नहीं करता और न ही इस तरह की असहिष्णुता का समर्थन करता है.

खाड़ी देशों से पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की जो विदेश नीति है, उसमें भी सफलता मिली. पिछले कुछ सालों में भारत मिडिल ईस्ट में एक अहम प्लेयर के रूप में स्थापित हुआ है. मिडिल ईस्ट में भी क्वॉड की तरह एक प्लैटफॉर्म है. भारत उसमें इजरायल, यूएई और अमेरिका के साथ बैठता है. पिछले साल ही उसकी पहली मीटिंग हुई. इससे पता चलता है कि पिछले आठ सालों में इन देशों के साथ भारत के संबंध और मजबूत हुए हैं.

लेकिन बीजेपी के प्रवक्ताओं के ताज़ा बयानों से जो विवाद उभरा है, ऐसे मामलों का असर इन संबंधों और भारत की विदेश नीति पर भी पड़ेगा. इसीलिए भारत ने इतनी तेज़ी से कदम उठाए. भारत सरकार की तरफ से एक एक्सक्लूसिव मेसेज गया कि भारत इस तरह के विवादों को सपोर्ट नहीं करता और न ही इस तरह की असहिष्णुता का समर्थन करता है. दरअसल ऐसा कहना भारत के लिए ज़रुरी हो गया था क्योंकि भारत की जो विदेश नीति है, उस पर दबाव पड़ने की गुंजाइश आ रही थी.

मिडिल ईस्ट के ये जो देश आज भारत में हुई घटना पर काफी परेशान हैं, कई बार देखने में आया है कि जहां चीन का सवाल होता है, वहां ये आवाज़ नहीं उठाते. चीन में जिस तरह से शिनजियांग में कंसंट्रेशन कैंप चलाए जा रहे हैं, जिस तरह से वहां मुस्लिमों के साथ अत्याचार हो रहा है, उस पर इन देशों की बयानबाजी नहीं होती. लेकिन भारत के मामले में इनकी ओर से बड़ी प्रतिक्रिया आई.

ये देश तो ख़ुद ही अलोकतांत्रिक हैं. उनके यहां की आम जनता की राय भारत के खिलाफ रही है. ऐसे में वहां की जो राजसत्ताएं हैं, संस्थाएं हैं, उन पर प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इसीलिए भारत ने भी बड़ी तेजी से प्रतिक्रिया दी. इससे यह मुद्दा संभल जाने की उम्मीद करनी चाहिए क्योंकि भारत और खाड़ी के देशों के लंबे रिश्ते हैं, दोनों की अपनी साझा रणनीतियां हैं और वे देश भी एशिया में भारत जैसी उभरती हुई आर्थिक व्यवस्था के साथ काम करना चाहते हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि इस तरह के विवाद खाड़ी के देशों और भारत के बीच एक अड़चन पैदा करते हैं. ऐसे में भारत के लिए यह संदेश देना ज़रुरी हो गया कि इस तरह के विवादों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

फ्री स्पीच को लेकर चिंताएं 

लेकिन भारत में इस पर जिस तरह से प्रतिक्रिया हो रही है, वह आगे चलकर इस मोड़ तक भी पहुंचेगी कि फ्री स्पीच क्या है और उसकी क्या सीमाएं हैं. आजकल जिस तरह से तकनीक ने माहौल पर कब्जा कर रखा है, उसमें हर लोकतंत्र इस तरह की चीज से जूझ रहा है. भारत में भी अलग-अलग तरह के विचार हैं, लिहाजा यह मुद्दा इस विवाद के साथ खत्म नहीं होगा. लेकिन एक बुनियादी मुद्दा भारत और दूसरे लोकतंत्रों के सामने रहेगा कि अपने यहां चलने वाली बहसों को आप किस तरह से मैनेज करें, खासकर ऐसे समय में, जब तकनीकी तौर पर उस मैसेज की आउटरीच बहुत ज्य़ादा है. कैसे आप फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को बचा पाते हैं, यह चैलेंज भारत और दूसरे लोकतंत्रों के सामने बना रहेगा.

जहां तक भारत के हितों का सवाल है, तो भारत के लिए यह ज़रुरी था कि वह इस मामले में तुरंत कदम उठाया जाए. आशा है कि इससे यह मुद्दा यहीं शांत हो जाएगा. बहरीन और कतर जैसे देशों ने कहा है कि जिस तरह से भारत ने रिएक्ट किया है, वे इसकी प्रशंसा करते हैं. ऐसे में डिप्लोमैटिक मसला तो जल्द सुलझ जाएगा, लेकिन भारत के भीतर इस मामले पर विवाद और गर्माने की आशंका बनी हुई है.

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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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