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यह लेख रायसीना फाइल्स 2023 सीरीज़ का हिस्सा है.
"यहां तक कि मेरे दिल की चाहत का सच्चा घर, यूरोप, मेरे लिए दो बार ख़ुद को आत्मघाती युद्धों में टुकड़े-टुकड़े करने के बाद खो गया है. अपनी इच्छा के विरुद्ध, मैंने समय के इतिहास में तर्क की सबसे भयानक हार और क्रूरता की सबसे क्रूर विजय देखी है. क्या कभी कोई भी - और मैं ऐसा गर्व के साथ नहीं बल्कि शर्म के साथ कहता हूं – कोई पीढ़ी हमारी जैसी बौद्धिक ऊंचाइयों से इतनी नैतिक गहराई तक गिरी है."
स्टीफन ज्वेग, 'The World Of Yesterday'
रूस का यूक्रेन के ख़िलाफ़ चल रहे युद्ध से जैसे यूरोप जूझ रहा है, वैसे ही विनाशकारी, व्यापक प्रभावों की संभावना क्षितिज पर मंडराने लगी है.[1]पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञों का दावा है कि मॉस्को के बहुमुखी दृष्टिकोण में तीन अलग-अलग लेकिन परस्पर जुड़े हुए आयाम शामिल हैं:[2] यूक्रेन के ख़िलाफ़ एक सैन्य आक्रमण; पश्चिमी मूल्यों, मानदंडों और मानकों के ख़िलाफ़ युद्ध; और वस्तुओं के शस्त्रीकरण के माध्यम से यूरोपीय अर्थव्यवस्था को लक्षित करने वाला एक नॉन काइनेटिक अर्थात गैर-गतिशील युद्ध. ये आपस में जुड़े हुए संकट यूरोपीय संघ (ईयू) और इसके सदस्य देशों की एकजुटता और संबंधों के साथ-साथ पूरे यूरोपीय महाद्वीप की स्थिरता और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
विशेषज्ञों का दावा है कि मॉस्को के बहुमुखी दृष्टिकोण में तीन अलग-अलग लेकिन परस्पर जुड़े हुए आयाम शामिल हैं: यूक्रेन के ख़िलाफ़ एक सैन्य आक्रमण; पश्चिमी मूल्यों, मानदंडों और मानकों के ख़िलाफ़ युद्ध.
पश्चिमी मूल्यों पर हो रहे हमले की वज़ह से यूरोपीय संघ की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को ख़तरा है, जबकि अर्थव्यवस्था पर नॉन काइनेटिक युद्ध एक बेहद बदलती दुनिया में यूरोप को एक कमज़ोर स्थिति में डाल देता है.
युद्ध के लगभग एक वर्ष के बाद, महाद्वीप में हुई घटनाओं पर नज़र डालते हुए उनका आकलन करना ज़रूरी हो गया है.
फरवरी 2022 में चांसलर ओलाफ शोल्ज के भाषण के साथ जर्मन विदेश और सुरक्षा नीति में महत्वपूर्ण मोड़ ('जीटेनवेन्डे')[3] दर्ज़ किया गया था, जो एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिवर्तन को चिह्नित करता है; लेकिन इस बदलाव की सीमा और इसके सच्चे इरादे अनिश्चित हैं. यूक्रेन को टैंक डिलीवरी के मुद्दे को संबोधित करने में झिझक[4] नेतृत्व की भूमिका निभाने और इन ऐतिहासिक परिवर्तनों के माध्यम से यूरोप का मार्गदर्शन करने के लिए बर्लिन की इच्छा की कमी के कई अभिव्यक्तियों में से एक है.[5] फिलहाल क्षितिज पर एक और गंभीर स्थिति पनप रही है जिसे लेकर एक त्वरित प्रतिक्रिया दिया जाना ज़रूरी है, क्योंकि यह युद्ध के परिणाम को निर्धारित करेगी.[6] हालांकि, एकता की कमी का सबसे हालिया उदाहरण-यूक्रेन को सैन्य जेट की संभावित डिलीवरी पर-[7] इस बात को पुन: साबित करती है कि पश्चिमी शक्तियां भू-राजनीतिक पृष्ठ पर एकजुट नहीं हैं.
यह सच है कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी युद्ध के जवाब में यूरोप ने समन्वय और सुसंगतता के मामले में असंभव प्रतीत होने वाली उपलब्धि हासिल की है. निर्णय लेने की यूरो की विशिष्ट गति और दायरे को देखते हुए,[8] इसे एक बड़ी उपलब्धि ही कहा जाएगा, जो अभी भी टिकी हुई है. नौ प्रतिबंध के पैकेज को ही इसका एक स्पष्ट उदाहरण कहा जा सकता है.[9] यूक्रेन को राजनयिक, राजनीतिक और मानवीय सहायता प्रदान करने के संकल्प को यूरोपीय संघ के संस्थानों और देशों के बीच सामंजस्य की वज़ह से ही पूरा किया जा सका था.[10] हालांकि, रूसी संसाधनों, राष्ट्रीय हितों और आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता पर निर्भरता के आधार पर, सदस्य देशों के बीच चल रही असहमति को लेकर एक कसैला स्वाद बना हुआ है.[11]
फिगर 1. रूस से यूरोपीय संघ के शीर्ष 20 कमोडिटी अर्थात माल आयात (2021)
[caption id="attachment_118661" align="aligncenter" width="660"] स्त्रोत : यूरोपीय संसद अनुसंधान सेवा[12][/caption]
उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रिया, इटली और जर्मनी जैसे देश, रूसी गैस आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण काफी प्रभावित हुए थे.[13] इसके अलावा, यूरोपीय प्रतिबंधों के संबंध में हंगरी ने त्वरित निर्णय लेने में बाधा डाली है और वर्तमान में वह रूसी परमाणु ऊर्जा पर प्रतिबंधों को रोक रहा है.[14] इसी प्रकार, आंतरिक नीति की गतिशीलता यूरोपीय निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाधक बनी हुई है. ऑस्ट्रियाई सरकार ने,[15] एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रांतीय चुनाव से पहले, प्रवासन नीति पर अपने घरेलू राजनीतिक अभियान के लिए बुल्गारिया और रोमानिया के शेंगेन में लंबे समय से प्रतीक्षित प्रवेश को रोक दिया था.[16] इसके अलावा, विभिन्न प्रतिबंध पैकेजों के लिए विभिन्न अपवाद[17] किए जाने थे, जिसमें सदस्य देशों ने - ऊर्जा संसाधनों में विविधता लाने के सवाल से निपटने के लिए,[18] रूसी राजनयिक कर्मियों के निष्कासन के लिए,[19] यूक्रेन पर आक्रमण के बारे में कुछ रूसी आख्यानों के समर्थन में - नकारात्मक गतिशीलता में योगदान दिया था.[20] यूरोप में लोकलुभावन और राष्ट्रवादी आंदोलनों के उदय जैसे घरेलू कारक भी यूरोपीय अलगाव में योगदान कर सकते हैं.[21] इन आंदोलनों में अक्सर यूरोप को लेकर यूरोसेप्टिक अर्थात संदेहवादी विचार होते हैं और यूक्रेन में युद्ध सहित अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक राष्ट्रवादी और कम सहकारी रुख अपनाने के लिए सरकारों पर दबाव डाल सकते हैं.
ऑस्ट्रियाई सरकार ने, एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रांतीय चुनाव से पहले, प्रवासन नीति पर अपने घरेलू राजनीतिक अभियान के लिए बुल्गारिया और रोमानिया के शेंगेन में लंबे समय से प्रतीक्षित प्रवेश को रोक दिया था.
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच एकता की कमी की जड़ें रूस के साथ कुछ यूरोपीय शक्तियों के ऐतिहासिक, राजनयिक, भू-आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों से जुड़ी हुई हैं. मसलन, युद्ध आरंभ होने से पहले फ्रांस और जर्मनी मास्को के साथ भू-राजनीतिक मेल-मिलाप और संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में काम कर कर रहे थे.[22] सदस्य देशों के बीच समन्वय की इसी कमी के कारण ऑस्ट्रिया या हंगरी जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने अब ईयू (EU) से परामर्श किए बगैर अपने स्तर पर निर्णय लेना शुरू कर दिया है.[23] इन मामलों में यूरोपीय जनता की राय ने भी एक और विभाजक रेखा बनने का काम किया था. कुछ पश्चिमी देशों में अधिकांश नागरिकों ने जहां यूक्रेन का समर्थन किया, वहीं कुछ देशों को इस बात पर विचार करना पड़ा कि अगर उन्होंने सैन्य संघर्ष में यूक्रेन का साथ दिया तो उनके यहां के नागरिकों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. नागरिकों के बीच संदेह की इस स्थिति ने उनकी निर्णय प्रक्रिया को बाधित किया था.[24]
यूक्रेन में युद्ध के अलावा, यूरोपीय नियम-आधारित सुरक्षा व्यवस्था, यूरोपीय मानदंडों और मूल्यों और यूरोप के वैश्विक भू-आर्थिक दबदबे के ख़िलाफ़ भी एक संघर्ष छेड़ा गया है. इनमें से अधिकांश प्रयासों में रूस अलग-अलग कारणों से असफ़ल साबित हुआ है. एक ओर जहां ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक आपूर्ति का रूस द्वारा इन्स्ट्रूमेंटेलाइजेशन अर्थात उपकरणीकरण किए जाने की वज़ह से[25] इन वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों के कारण यूरोप के इतिहास में पहली बार मुद्रास्फीति दो अंकों को पार कर गई है.[26] वहीं यूरोप ऊर्जा बचत, भंडारण क्षमता के संपूर्ण उपयोग के साथ ही अन्य तदर्थ संस्थागत, राजनीतिक और आर्थिक उपायों को अपनाकर इन समस्याओं की वज़ह से होने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सफ़ल और सक्षम रहा है. इतना ही नहीं यूरोप में ऐतिहासिक रूप से 'हल्की' सर्दी की वज़ह से ऊर्जा की मांग कम ही रही है. इस कारक ने भी यूरोप की सहायता करने में सकारात्मक भूमिका अदा की है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रयास और संस्थागत मध्यस्थता जैसे कि तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के तहत रूस और यूक्रेन के बीच अनाज संबंधी पहल कुछ अन्य नकारात्मक प्रभावों को सीमित करने में कामयाब हुए है.[27]
24 फरवरी को यूक्रेन युद्ध छिड़ने के साथ ही यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता पर बहस[28] हो गई है. अगर अमेरिका ने[29] रूसी आक्रमण के तुरंत बाद में यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति समेत अन्य सहायता प्रदान नहीं की होती तो कीव ने बहुत पहले ही रूसी सेना के समक्ष हथियार डाल दिए होते. अमेरिका की ओर से मिले हथियारों की वज़ह से ही यूक्रेन के पास रूस के समग्र आक्रमण के सामने मज़बूती से खड़े रहने की क्षमता हासिल हुई थी. इस स्थिति से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यूरोप आज भी इस पूराने महाद्वीप पर अपने दम पर युद्ध अथवा सैन्य टकरावों से निपटने में सक्षम नहीं है. वह ऐसी स्थिति में अब भी अमेरिका की सहायता पर ही निर्भर करता है. यह बात उस वक़्त और भी साफ़ हो जाती है जब यूरोप के दो तटस्थ देशों- यानी, स्वीडन और फिनलैंड -द्वारा एक रैडिकल अर्थात मौलिक कदम उठाने का निर्णय लिया और अंतत: नाटो की सदस्यता हासिल करने का आवेदन कर दिया. इस पृष्ठभूमि के परिदृश्य में उनका यह कदम एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. इसका कारण यह है कि आज भी ईयू के अधिकांश सदस्य देशों को ऐसा लगता है कि वे यूरोपीय सुरक्षा और रक्षा नीति के लिए यूरोपीय संघ की तुलना में अमेरिका और नाटो की सुरक्षा गारंटी पर अधिक निर्भर रहेंगे तो उनके लिए यह बेहतर साबित होगा. इस मामले में फिलहाल चार तटस्थ द्वीप देश अपवाद बने हुए हैं- माल्टा, साइप्रस, आयरलैंड और ऑस्ट्रिया, जिन्हें लाक्षणिक रूप से ‘आइलैंड ऑफ द ब्लेस्ड’ अर्थात ‘भाग्यवान द्वीप’ संबोधित किया जाता है. स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने की वज़ह से गंभीर भू-राजनीतिक और शक्ति संतुलन में परिवर्तन दिखाई देगा. इसका कारण यह है कि अब पोलैंड, बाल्टिक और स्कैंडिनेवियाई देशों को ज़्यादा भू-राजनीतिक महत्व प्राप्त हो जाएगा. यह ट्रेंड अर्थात प्रवाह रक्षा क्षमताओं के लिए 100 बिलियन यूरो ख़र्च करने के लक्ष्य के बावजूद जर्मन ‘जीटेनवेन्डे’ पर सवाल खड़ा कर सकता है.[30]
इस स्थिति से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यूरोप आज भी इस पूराने महाद्वीप पर अपने दम पर युद्ध अथवा सैन्य टकरावों से निपटने में सक्षम नहीं है. वह ऐसी स्थिति में अब भी अमेरिका की सहायता पर ही निर्भर करता है.
वर्तमान स्थिति में रूस की ओर से नॉन काइनेटिक अर्थात गैर-गतिशील युद्ध नीति अपनाए जाने की वज़ह से यूरोप के सामने मौजूद संकटों में बेतहाशा इज़ाफ़ा कर दिया है. इन संकटों में खाद्यान्न और ऊर्जा की कमी, माइग्रेशन अर्थात प्रवासन लहरें, परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकियां और सूचना युद्ध शामिल हैं. भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति ‘परमा क्राइसिस’ अर्थात 'स्थायी संकट' के उभरने का संकेत दे रही हैं,[31] अर्थात एक समस्या ख़त्म होते ही दूसरी समस्या पनपती जा रही है. लेकिन दूसरी ओर इन समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक यूरोपीय निर्णय लेने की क्षमता से जुड़ी समस्याओं के कारण उपजने वाली सतत चुनौती का अब भी सामना कर रही है. इस नए तथ्य ने 'पॉली क्राइसिस' अर्थात ‘बहु संकट’[32] की पिछली समझ को बदल कर रख दिया है जो रोजमर्रा की सभी गतिविधियों - वित्त से लेकर पड़ोस की नीति से लेकर सुरक्षा तक - के सारे प्रासंगिक क्षेत्रों में एक साथ उपजने वाले संकट की ओर इशारा करता है. यह भी सच ही है कि अल्पावधि में परमा क्राइसिस अर्थात स्थायी संकट के व्यापक प्रभावों पर काबू पा लिया गया है, लेकिन प्रमुख भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौतियां अब भी अनसुलझी ही हैं.
यूरोपीय शक्तियों को अर्थव्यवस्था, ऊर्जा आपूर्ति, राजनीतिक स्थिरता और राजकोषीय नीति पर परस्पर संबंधित प्रभावों को असरदार तरीके से प्रबंधित करने के तरीके ख़ोजने चाहिए. यूरोप की रक्षा करने के लिए तैयार की गई यूरोपीय आयोग की नीतियां—जैसे नेक्स्ट जनरेशन ईयू,[33] ईयू बैटरी रेगुलेशन,[34] यूरोपीय चिप्स अधिनियम,[35] और न्यू ग्रीन डील,[36] यूरोप के सामने मौजूद कुछ चुनौतियों से निपटने और उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने का एक तरीका हो सकता है. यह बात अब बहुत अच्छे से साफ़ हो गई है कि कोई भी अकेली यूरोपीय शक्ति अपने दम पर इन चुनौतियों से नहीं निपट सकती. अगर जल्द ही एक व्यापक और स्थायी समाधान तक नहीं पहुंचा जाता है, तो यूरोप ख़ुद को 100 साल पहले की भू-राजनीतिक पुरानी स्थिति में जाता हुआ देख सकता है.
अत्यधिक अस्थिर और हलचल से भरे वर्ष में जब चीन में लंबे समय तक महामारी का असर दिखाई दिया है और यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस का युद्ध एक अहम घटना रही है. ऐसे में कोई भी यह नहीं सोच सकता है कि वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण सिस्टेमिक शिफ्ट्स अर्थात प्रणालीगत बदलावों और सेकंड-ऑर्डर अर्थात दूसरे क्रम के भू-आर्थिक प्रभावों नहीं दिखाई देंगे. यह वर्ष यूरोपीय सुरक्षा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा, क्योंकि वैश्विक व्यवस्था द्विभाजन की प्रक्रिया का सामना कर रही है.[37] एक निराशावादी परिदृश्य यह होगा कि अमेरिका और चीन के बीच एक अधिक कट्टरपंथी और लगातार आपसी अलगाव बढ़ जाएगा. यह इस बात का साफ़ संकेत होगा कि चीन और रूस के बीच समन्वय के तौर-तरीके ('ड्रैगनबियर')[38] सभी रणनीतिक डोमेन अर्थात क्षेत्रों में अंतत: और अधिक स्पष्ट हो जाएंगे. एक अधिक आशावादी परिदृश्य यह होगा कि एक अधिक शांतिपूर्ण प्रणालीगत सह-अस्तित्व देखने को मिलेगा. इसमें बीजिंग अपने घरेलू विकास को मज़बूत करने के लिए साझेदारी और प्रतिबद्धताओं पर उस वक़्त तक ध्यान केंद्रित करेगा, जब तक कि वह ओवरव्हेलमिंग अर्थात अपरिहार्य अमेरिकी प्रभाव के ख़िलाफ़ एक विश्वसनीय प्रतिसंतुलन बनाने में सफ़ल नहीं हो जाता. दोनों ही परिदृश्यों में, संदेश स्पष्ट है: लंबे समय में, प्रत्येक देश को चाहे वह देश बड़ा हो या छोटा, अपने स्वयं के मानदंडों, नियमों और विचारधाराओं के साथ दो अलग-अलग वैश्विक प्रणालियों के बीच किसी एक पक्ष का चुनाव करना होगा.
लंबे समय में, प्रत्येक देश को चाहे वह देश बड़ा हो या छोटा, अपने स्वयं के मानदंडों, नियमों और विचारधाराओं के साथ दो अलग-अलग वैश्विक प्रणालियों के बीच किसी एक पक्ष का चुनाव करना होगा.
वैश्विक व्यवस्था के उभरते विभाजन की इस पृष्ठभूमि में जब 'ड्रैगनबियर' (चीन और रूस) से निपटने की बात आती है तो पश्चिम एंग्लोस्फीयर (यूएस, यूके) और ईयू (यूरोपीय संघ की फ्रेंको-जर्मन रीढ़) के बीच बढ़ती खाई अथवा विभाजन का सामना कर रहा है. यह उस वक़्त भी होगा जब रूस, जो चीन का भले ही जूनियर पार्टनर हो अगर यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में जीत हासिल करते हुए यूरोप के भू-राजनीतिक मानचित्र को अपने पक्ष में करने में सफ़ल हो जाता है. युद्ध ने यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों के बीच रूस के प्रति प्रतिबंध नीति पर उनके सुसंगत दृष्टिकोण के बावजूद एक ख़तरनाक दरार पैदा कर दी है. एक ओर जहां मध्य और पूर्वी यूरोपीय (सीईई) सदस्य यूक्रेन को भारी हथियारों की आपूर्ति करने के मामले में अमेरिका के पक्ष में खड़े दिखाई दिए, वहीं फ्रांस और जर्मनी, युद्ध में झटके झेल रहे रूस के साथ शांति वार्ता शुरू करने की कोशिश करते हुए रूस को ‘‘सेव फेस अर्थात इज्जत बचाने’ का मौका देने में सहायता करना चाहते थे.[39]
2023 में दो घटनाक्रम यूरोपीय सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं: फिनलैंड और स्वीडन की नाटो सदस्यता और पोलैंड और यूक्रेन के बीच एक संभावित राजनीतिक गठबंधन. यूरोपीय संघ या फ्रेंको-जर्मन धुरी के बजाय नॉर्डिक और सीईई देशों ने अमेरिका का सुरक्षा गारंटर के रूप में चुनाव किया था.[40] पोलैंड और यूक्रेन के बीच राजनीतिक गठबंधन, 1990 के दशक में जर्मन पुनर्मिलन के समान एक भू-राजनीतिक सादृश्य हो सकता है. इस स्थिति में औपचारिक आवेदन प्रक्रिया के बगैर यूक्रेन को यूरोपीय संघ और नाटो में तेजी से प्रवेश देना सुनिश्चित किया जा सकेगा. यदि ऐसा होता है, तो यूरोप का आंतरिक शक्ति संतुलन पूर्व की ओर झुक जाएगा. ऐसे में महाद्वीप में पूरी तरह से नई भू-राजनीतिक वास्तविकताएं पैदा हो जाएंगी.
यूक्रेन युद्ध के लिए तीन संभावित मुख्य परिदृश्य हैं. पहले परिदृश्य में, यूक्रेन को पर्याप्त मात्रा में भारी हथियार प्रणाली और गोला-बारूद मिल जाता है. इसकी सहायता से वह रूसी सैनिकों को अपने पूरे क्षेत्र, या कम से कम इसके एक बड़े हिस्से से पीछे धकेलने में सफ़ल हो जाता है. लगभग इसी दौर में पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों की वज़ह से रूसी अर्थव्यवस्था का पतन हो सकता है या फिर रूस में उभर रहे अलगाववादी आंदोलनों और रूस के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अलगाव की वज़ह से रूसी संघ का विघटन भी संभव हो सकता है. दूसरे परिदृश्य में, एक ऐसे भविष्य की कल्पना की जाती है, जिसमें यूक्रेन को भारी हथियारों की अपर्याप्त और धीमी डिलीवरी के कारण डोनबास क्षेत्र में रूस को जीत मिल जाती है. ऐसे में रूस अपना ध्यान दक्षिण की ओर ओडेसा की ओर स्थानांतरित करते हुए यूक्रेन की लामबंदी की अतिरिक्त ताक़त जुटाकर संघर्षण युद्ध को जारी रखने में सफ़ल हो सकता है. अंतत: तीसरा परिदृश्य यह हो सकता है कि यूक्रेन को बेहद धीमी गति से भारी हथियार प्रणाली मुहैया करवाई जाती है. उधर रूस भी व्यापक पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग नहीं होता है. इस काम में उसकी सहायता विशेषत: चीन, भारत, तुर्की और ईरान जैसे भागीदारों करते हैं. ऐसी स्थिति में मार्च 2024 के चुनावों में राष्ट्रपति पद लड़ने की व्लादिमीर पुतिन की महत्वाकांक्षा को देखते हुए आने वाले वर्षों में एक नया 'फ्रोजन कॉनफ्लिक्ट अर्थात जमा हुआ संघर्ष’[41] उभरने का ख़तरा मंडराता है.[42]
फिलहाल, यूक्रेन को पश्चिम से सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं मिली है. अत: उसे एक राष्ट्र और देश के रूप में अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़नी होगी. आज भी उसका 17 प्रतिशत क्षेत्र रूसी नियंत्रण में हैं.[43] यूक्रेन इस वक़्त यूरो-अटलांटिक समुदाय और रूसी साम्राज्यवाद और रिविश़निजम अर्थात संशोधनवाद के बीच एक भूराजनीतिक रूप से, ग्रे जोन अर्थात ऐसी स्थिति जिसमें वैध अथवा अवैध के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है, में ख़ुद को पा रहा है. पुराने महाद्वीप पर चले सबसे विनाशकारी युद्ध के एक वर्ष के बाद, युद्ध में आसन्न वृद्धि के चरण को देखते हुए स्थिति और भी ख़तरनाक हो गई है. दोनों देशों के विपरीत लक्ष्यों के कारण फ़िलहाल युद्धविराम और शांति वार्ता वर्तमान में अवास्तविक लगती है. यह स्पष्ट नहीं है कि युद्ध कैसे समाप्त होगा और कौन सा परिदृश्य सामने आएगा. पहले परिदृश्य को साकार करने के लिए, यूरोप को न केवल यूक्रेन के लिए अपने सैन्य समर्थन को जारी रखना चाहिए बल्कि इसे और भी तेज करना चाहिए. इसके साथ ही यूरोप को रूस के अलगाव को बढ़ाने के लिए एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में तीसरे देशों के साथ अपने संबंधों में विश्वसनीय रूप से विविधता लानी होगी.
यूक्रेन को पश्चिम से सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं मिली है. अत: उसे एक राष्ट्र और देश के रूप में अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़नी होगी. आज भी उसका 17 प्रतिशत क्षेत्र रूसी नियंत्रण में हैं.
व्लादिमीर पुतिन ने एक बार चर्चित बयान दिया था कि सोवियत संघ का पतन 20वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक तबाही थी.[44] रूसी राष्ट्रपति शायद 'यथार्थवाद' स्कूल के सबसे बड़े समर्थक हैं और 21वीं सदी की भू-राजनीति को अच्छी तरह से समझ चुके हैं, लेकिन साथ ही वह अपने देश, समाज और सेना को इसके लिए तैयार करने में असफ़ल साबित हुए हैं. ऐसे में शायद पुतिन रूस को 20वीं सदी की ‘‘सबसे बड़ी भू-राजनीतिक तबाही’’ से 21वीं सदी में रूसी संघ के संभावित अंतिम विघटन तक ले जा सकते हैं. पूर्वी यूरोपीय इतिहासकार कार्ल श्लोगल मानते हैं कि रूसी साम्राज्य का पतन ही रूस की आत्म-खोज, उत्थान और अस्तित्व के लिए एकमात्र शर्त है.[45] नतीजतन, इसके लिए जिस चीज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह है यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों के बीच एक रणनीतिक सहमति स्थापित करने की. यह सहमति न केवल यूक्रेन के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए, बल्कि रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन के लिए एक वास्तविक जीत को सक्षम करने के लिए भी ज़रूरी है
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[23] Liik Kadri, “The Old is Dying and the New Cannot Be Born: A Power Audit of EU-Russia Relations,” European Council on Foreign Relations, December 14, 2022.
[24] European Parliament, “Public Opinion on the War in Ukraine,” January 20, 2023.
[25] Xolisa Phillip, “‘Russia Using Food and Energy as Weapon against Europe and Africa,’ Says Vice-Chancellor Habeck,” The Africa Report, December 8, 2022.
[26] David McHugh, “Inflation in Europe Eases but Still in Painful Double Digits,” AP News, November 30, 2022.
[27] “United Nations Black Sea Grain Initiative Joint Coordination Centre,” United Nations, n.d..
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[38] Velina Tchakarova, “Enter the ‘DragonBear’: The Russia-China Partnership and What it Means for Geopolitics,” ORFonline.org, April 29, 2022.
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[44] Claire Bigg, “World: Was Soviet Collapse Last Century’s Worst Geopolitical Catastrophe?” RadioFreeEurope/RadioLiberty. Radio Free Europe/Radio Liberty, April 29, 2005.
[45] “Interview: “Putinismus? Das Ist Völkische, Antiwestliche Rhetorik, Stalinkult Und Nackter Oberkörper“ | Kleine Zeitung,” Www.kleinezeitung.at, December 18, 2022.
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With over two decades of professional experience and academic background in security and defense Velina Tchakarova is an expert in the field of geopolitics. Velina ...
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