भूमिका
शीत युद्ध के बाद के युग में कई बहुपक्षीय मंचों का उदय हुआ, जिनमें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शामिल है. यूरेशिया में क्षेत्रीय भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक चुनौतियों पर नियंत्रित सहयोग के लिए शुरुआत में, 1996 में (चीन, कज़ाकिस्तान, किर्ग़ीज़ गणराज्य, रूस और ताज़िकिस्तान द्वारा) इसे ‘शंघाई फ़ाइव’ रूप में गठित किया गया था, उज़्बेकिस्तान के समावेश के बाद 2001 में इस समूह को एससीओ के रूप में बदल दिया गया था. 2005 में, भारत, पाकिस्तान और ईरान को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया, 2017 में नई दिल्ली और इस्लामाबाद इसके पूर्ण सदस्य बन गए. 2008 के बाद से, एससीओ ने अपने चार्टर के अनुच्छेद 14 के तहत संवाद भागीदार के रूप में कई देशों- अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, मिस्र, सऊदी अरब, क़तर, मालदीव, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कुवैत और म्यांमार- को शामिल किया है.[i] ईरान 2023 में इसका पूर्ण सदस्य बन गया, जिससे एससीओ नौ सदस्य देशों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बन गया, जो यूरेशिया के 60 प्रतिशत हिस्से में फैला है, तीन अरब से अधिक लोगों का घर है और वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक चौथाई हिस्सा है. बेलारूस, मंगोलिया और अफ़ग़ानिस्तान को वर्तमान में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है और वे पूर्ण सदस्यता स्वीकार करने के काफ़ी इच्छुक हैं.[ii]
वर्तमान बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए एससीओ सहित विभिन्न बहुपक्षीय मंचों तक पहुंच की आवश्यकता है.
अपने दायरे और संभावना के बावजूद नार्कोटेररिज़्म, कनेक्टिविटी, सीमा विवाद और क्षेत्रीय स्थिरता सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर एससीओ सदस्य देशों के बीच काफ़ी मतभेद हैं. कई एससीओ सदस्यों के बीच द्विपक्षीय घर्षण ने व्यापक यूरेशिया क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता को बढ़ावा देने में समूह के लिए चुनौतियां पैदा की हैं. इन बाधाओं और दबाव बिंदुओं ने एससीओ को क्षेत्रीय सुरक्षा, विकास और कनेक्टिविटी पर सहयोग के अपने घोषित जनादेश को आगे बढ़ाने से भी रोक दिया है.
वर्तमान बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए एससीओ सहित विभिन्न बहुपक्षीय मंचों तक पहुंच की आवश्यकता है. एससीओ नई दिल्ली को अपने भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक हितों की रक्षा, प्रचार और उन्हें व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है. यह भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जो समूह के दूसरे सदस्यों के साथ अपने सदियों पुराने सभ्यतागत, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित और गहरा करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है.[iii]
SCO और अन्य बहुपक्षीय मंचों के साथ भारत के जुड़ाव को वर्तमान सरकार की सक्रिय विदेश नीति के तहत देखा जाना चाहिए ताकि तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक संदर्भों और विचारों में भारत के रणनीतिक स्थान को संरक्षित किया जा सके.[iv] सितंबर 2022 में, भारत ने एससीओ की आवर्ती अध्यक्षता संभाली और 134 कार्यक्रमों की मेज़बानी की, जिसमें 14 मंत्रिस्तरीय बैठकें थीं और जुलाई 2023 में SCO शिखर सम्मेलन शामिल था.[v]
यह पत्र एससीओ के साथ भारत की संलग्नता का विश्लेषण करता है. यह एससीओ की चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है और उन तरीक़ों की सिफ़ारिश करता है जिनके ज़रिए नई दिल्ली अपनी प्राथमिकताओं को हासिल करने के लिए इस क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन में सामंजस्य और अभिसरण को बढ़ावा देने के लिए काम कर सकती है.
भारत और SCO प्राथमिकताओं का मूल्यांकन
प्राचीन सिल्क रोड पर व्यापार ने पूर्वी और पश्चिमी सभ्यताओं को जोड़ा था और यूरेशिया क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक था.[vi] व्यापार के अलावा, इस 6,400 किलोमीटर के अंतरमहाद्वीपीय मार्ग[vii] ने बौद्धिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी सक्षम बनाया, जो पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व तक जाता है, जब बौद्ध धर्म भारत से मध्य एशिया, चीन और यूरेशिया के अन्य हिस्सों में फैल गया था.[viii] अपनी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, मध्य एशिया प्राचीन काल से विभिन्न सभ्यताओं का मिलन स्थल और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था. हालांकि, बीसवीं शताब्दी के दौरान, अंग्रेज़ी-रूसी प्रतिद्वंद्विता और इसके परिणामस्वरूप विभिन्न विचारधाराओं वाले राष्ट्र-राज्यों के उदय ने इस क्षेत्र के भारत के साथ संबंधों में गतिरोध पैदा कर दिया था.[ix]
2017 के अस्ताना शिखर सम्मेलन में, जहां भारत पूर्ण सदस्य बना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की प्राथमिकताओं को साझा संस्कृति और क्षेत्र के साझा भविष्य के आधार पर परिभाषित किया. उन्होंने सदस्य राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन किए बिना बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता पर बल दिया.
सोवियत संघ के पतन और पांच स्वतंत्र मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के गठन के बाद भारत ने इस क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को नया रूप दिया.[x] भारत ने एक रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया,[xi] इस क्षेत्र को 10-15 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अति आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान की और क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों, अध्ययन दौरों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की. भारत ने इन देशों के साथ रक्षा और सैन्य प्रौद्योगिकी, सुरक्षा सहयोग, संपर्क और आतंकवाद का मुक़ाबला करने के क्षेत्र में कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए.[xii] दरअसल, नई दिल्ली क्षेत्र के भीतर सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने और क्षेत्र में अपने रचनात्मक रणनीतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए SCO का सदस्य बना.[xiii]
2017 के अस्ताना शिखर सम्मेलन में, जहां भारत पूर्ण सदस्य बना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की प्राथमिकताओं को साझा संस्कृति और क्षेत्र के साझा भविष्य के आधार पर परिभाषित किया. उन्होंने सदस्य राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन किए बिना बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता पर बल दिया.[xiv] उन्होंने आतंकवाद, कट्टरपंथ और अवैध मादक पदार्थों के व्यापार के ख़िलाफ़ लड़ाई में सहयोग पर भी ज़ोर दिया,[xv] जैसा कि 1998 से एससीओ चार्टर के अनुच्छेद एक में संहिताबद्ध है[xvi] और क्षेत्र के लिए अफ़ग़ानिस्तान में शांति, समृद्धि और स्थिरता के महत्व पर प्रकाश डाला.[xvii] 2018 के शिखर सम्मेलन में, मोदी ने SCO को अधिक कनेक्टेड और सुरक्षित बनाने के लिए ‘सुरक्षा’ (SECURE) अवधारणा का प्रस्ताव रखा.[xviii] सुरक्षा या सिक्योर संक्षिप्त रूप है जिसका पूरा अर्थ हुआ ‘नागरिकों की सुरक्षा’ (सिक्योरिटी ऑफ़ दि सिटीज़न्स), ‘सभी का आर्थिक विकास’ (इकोनॉमिक डेवलपमेंट फॉर ऑल), ‘क्षेत्र से कनेक्टिविटी कायम करना’ (कनेक्टिंग दि रीजन), ‘लोगों को एक करना’ (यूनाइटिंग दि पीपल) ‘संप्रभुता और अखंडता का सम्मान’ (रिस्पेक्ट फॉर सॉवरीन्टी एंड इंटीग्रिटी) और ‘पर्यावरण संरक्षण’ (एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन). भारत की एससीओ सदस्यता के ये केंद्रीय स्तंभ हैं और बाद की बैठकों में इन पर बार-बार ज़ोर दिया गया है (देखें तालिका 1).
तालिका 1: SCO में भारत की प्राथमिकताएं
वर्ष |
बैठक का स्थान |
भारत ने सहयोग मांगा
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2017 |
अस्ताना, क़ज़ाकिस्तान |
सदस्य देशों की संप्रभुता के उल्लंघन के बिना कनेक्टिविटी
आतंकवाद, कट्टरता और अवैध मादक पदार्थों से लड़ने के लिए सहयोग और समन्वय
अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता
|
2018 |
क़िंगदाओ, चीन |
संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करते हुए कनेक्टिविटी
अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति
SCO क्षेत्र पर आतंकवाद और उग्रवाद के परिणाम
|
2019 |
बिश्केक, किर्ग़ीज़ गणराज्य |
संपर्क परियोजनाओं में संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और पारदर्शिता का सम्मान
आतंकवाद मुक्त समाज
अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ग़ान के नेतृत्व वाली, अफ़ग़ान के स्वामित्व वाली और अफ़ग़ान-नियंत्रित शांति प्रक्रिया के लिए रोड मैप
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2020 |
आभासी प्रारूप |
कनेक्टिविटी
SCO चार्टर के अनुपालन में आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी, ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग का विरोध
नवाचार और स्टार्टअप पर विशेष कार्य समूह
|
2021 |
दुशांबे, ताज़िकिस्तान (हाइब्रिड प्रारूप) |
आतंकवाद, कट्टरपंथ और उग्रवाद
अविश्वास और अफ़ग़ानिस्तान
क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के लिए परामर्शात्मक, पारदर्शी संपर्क पर ज़ोर
युवा उद्यमियों और स्टार्टअप्स को जोड़ना
|
2022 |
समरकंद, उज़्बेकिस्तान |
विश्वसनीय, लचीली और विविध आपूर्ति श्रृंखलाएं जिन्हें बेहतर संपर्क की आवश्यकता है
पारगमन का पूर्ण अधिकार
नवाचार और स्टार्टअप पर विशेष कार्य समूह
|
2023 |
नई दिल्ली, भारत |
सीमा पार आतंकवाद
अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार
कनेक्टिविटी लेकिन सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान
|
स्रोत: 2022-23 के SCO में भारत की एससीओ की अध्यक्षता[xix]
कनेक्टिविटी
भारत और एससीओ क्षेत्र के बीच ख़राब संपर्क व्यापार और विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा है. भारत और एससीओ के कुछ अन्य सदस्य देशों द्वारा शुरू की गई कई कनेक्टिविटी परियोजनाएं यूरेशिया की खंडित भू-राजनीतिक और अस्थिर सुरक्षा स्थिति से प्रभावित हुई हैं. SCO सदस्यों के बीच अलग-अलग हितों और विश्वास की कमी ने क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा दिया है, कुछ देश अपने संकीर्ण और वर्चस्ववादी हितों के लिए संगठन का उपयोग कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, चीन के प्रभाव में, पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र के माध्यम से किसी भी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की अनुमति देने से इनकार कर अपने सांस्कृतिक, रणनीतिक और आर्थिक हितों[xx] को आगे बढ़ाने के भारत के प्रयासों को बाधित किया है. तेज़ी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ी हुई ऊर्जा मांगों को पूरा करने की क्षमता रखने वाली तुर्क़मेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन, 2006 से रुकी हुई है.[xxi] इसके विपरीत, चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के माध्यम से एससीओ क्षेत्र में अपने आधिपत्य के लिए पाकिस्तान और भारत के बीच शत्रुता का इस्तेमाल किया है. इसके अतिरिक्त बीआरआई के प्रमुख कार्यक्रम, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का निर्माण, जिसका उद्देश्य 62 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के चीनी निवेश से पाकिस्तान के भीतर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण करना है, पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में भारत की संप्रभुता और अखंडता का उल्लंघन करता है.[xxii]
सोवियत संघ के पतन के बाद, चीन और रूस ने नवगठित यूरेशियन देशों में ‘सहकारी आधिपत्य’ को अपनाया. पिछले तीन दशकों में, चीन और रूस ने यूरेशिया में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया है, मास्को इस क्षेत्र का सुरक्षा प्रदाता बन गया है और बीजिंग इसके प्राथमिक निवेशक और आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है.[xxiii] हालांकि, बीआरआई न तो परामर्शी है और न ही पारदर्शी है और चीन द्वारा यूरेशिया में अपने आधिपत्य का विस्तार करने के लिए इसका प्रयोग किया जा रहा है. क्षेत्र में सभी बीआरआई समझौतों में यह अनिवार्य शर्त है कि प्राप्तकर्ता देश ऋण के पुनर्भुगतान में चूक जाने पर बीजिंग को संपत्ति पर अधिक नियंत्रण दिया जाएगा.[xxiv] इस तरह की कठोर ऋण शर्तों ने ताज़िकिस्तान, किर्ग़ीज़ गणराज्य, ईरान, रूस और पाकिस्तान सहित कई देशों को चीन के बीआरआई ‘ऋण जाल’ में फंसा दिया है.
दूसरी ओर, नई दिल्ली ने हाइड्रोकार्बन समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यूरेशियन क्षेत्र के साथ अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक और व्यापार संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करने के लिए एक रचनात्मक तरीका अपनाया. सितंबर 2002 में, भारत, रूस और ईरान 7,200 किलोमीटर लंबे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के निर्माण के लिए सहमत हुए,[xxv] जिसमें सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) को मुंबई (भारत) से जोड़ने वाले समुद्री मार्ग, सड़क और रेलवे लिंक शामिल हैं. 13 देशों द्वारा अनुमोदित,[ए] आईएनएसटीसी स्वेज नहर मार्ग की तुलना में पारगमन समय को 40 प्रतिशत और माल ढुलाई लागत को 30 प्रतिशत तक कम कर देगा.[xxvi] हालांकि, 2018 में संयुक्त व्यापक कार्य योजना से अमेरिका के हटने के बाद ईरान पर कठोर प्रतिबंधों के कारण आईएनएसटीसी पर काम रुक गया. आईएनएसटीसी ने कई चुनौतियों और असफलताओं के बीच धीमी और स्थिर प्रगति की है. जुलाई 2022 में, इस गलियारे के माध्यम से पहला शिपमेंट रूस के अस्त्रखान पोर्ट से मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट पहुंचा.[xxvii]
नई दिल्ली ने यूरेशिया के साथ सीधी कनेक्टिविटी हासिल करने के लिए ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में चाबहार बंदरगाह में भी भारी निवेश किया है. बंदरगाह के लिए समझौता ज्ञापन पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे.[xxviii] बंदरगाह ने 2018 में परिचालन शुरू किया, और 2019 और 2021 के बीच 1.8 टन थोक और सामान्य कार्गो संभाला.[xxix] 2022 तक, चाबहार टर्मिनल ने बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, जर्मनी, रूस और ब्राजील से ट्रांस्शिपमेंट सहित 4.8 टन थोक कार्गो संभाला.[xxx]
नई दिल्ली ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह को संघर्षग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ने के लिए भी भारी निवेश किया, जिसमें 218 किलोमीटर लंबे जलरंग-डेलारम राजमार्ग सहित नागरिक बुनियादी ढांचे में अनुमानित 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया. यह राजमार्ग अफ़ग़ानिस्तान को ईरान में मलिक के रास्ते चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है
नई दिल्ली ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह को संघर्षग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ने के लिए भी भारी निवेश किया, जिसमें 218 किलोमीटर लंबे जलरंग-डेलारम राजमार्ग सहित नागरिक बुनियादी ढांचे में अनुमानित 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया. यह राजमार्ग अफ़ग़ानिस्तान को ईरान में मलिक के रास्ते चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है.[xxxi] इसी तरह, उज़्बेकिस्तान, जो दोतरफ़ा घिरा हुआ देश है,[बी] ने उज़्बेक-अफ़ग़ान सीमा से ईरान में चाबहार-ज़ाहेदान तक 650 किलोमीटर की रेलवे लाइन के निर्माण में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और इस परियोजना पर भारत के साथ बार-बार सहयोग की इच्छा जताई.[xxxii] इसके अलावा, उज़्बेकिस्तान ने 2020 में ईरान और भारत के साथ एक त्रिपक्षीय कार्य समूह की स्थापना की ताकि बेहतर अंतर-यूरेशियन संपर्क के लिए चाबहार बंदरगाह, आईएनएसटीसी और अन्य कनेक्टिविटी परियोजनाओं के बीच अभिसरण की पड़ताल की जा सके.[xxxiii]
भारत यूरेशिया के भीतर कनेक्टिविटी की सुविधा के लिए 2018 में अश्गाबात समझौते में भी शामिल हुआ और क्षेत्रीय व्यापार और वाणिज्य की सुविधा के लिए आईएनएसटीसी सहित अन्य परिवहन गलियारों के साथ इसका तालमेल बैठाया गया. 2011 में हस्ताक्षरित, अश्गाबात समझौते को वर्तमान में तुर्क़मेनिस्तान, ईरान, उज़्बेकिस्तान, क़ज़ाकिस्तान, पाकिस्तान, ओमान और भारत का समर्थन हासिल है.[xxxiv] इसने कैस्पियन सागर के पूर्व में चलने वाली 928 किलोमीटर क़ज़ाकिस्तान-तुर्क़मेनिस्तान-ईरान (केटीआई) रेलवे लाइन के लिए मार्ग प्रशस्त किया है. केटीआई 2014 में चालू हो गई थी,[xxxv] जिससे चारों ओर से घिरे मध्य एशियाई देशों को ईरानी बंदरगाहों तक पहुंच मिली.क़ज़ाकिस्तान चाबहार और ईरानी रेलवे नेटवर्क के बीच एक रेलवे लाइन का निर्माण करने को तैयार है जो पूरा होने पर केटीआई लाइन से जुड़ जाएगा.[xxxvi]
आईएनएसटीसी और चाबहार परामर्शी, पारदर्शी, किफ़ायती, विश्वसनीय और एक मजबूत सभ्यतागत संबंध पर आधारित हैं. नतीजतन, जहां नई दिल्ली ने चाबहार और आईएनएसटीसी को बढ़ावा दिया है, वहीं SCO देशों ने भारत के नेतृत्व वाली इन रणनीतिक कनेक्टिविटी परियोजनाओं का हिस्सा बनने के लिए द्विपक्षीय विकल्पों की तलाश की है.उदाहरण के लिए, मई 2023 में, रूस और ईरान ने 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत पर 162 किलोमीटर लंबी राश्त-अस्तारा रेलवे लाइन[xxxvii] के निर्माण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो आईएनएसटीसी के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी होगी.[xxxviii] पूरा होने पर, यह खाड़ी और यूरोप के बीच अधिक सुविधाजनक कनेक्टिविटी प्रदान करेगी.
दक्षिण एशिया और यूरेशिया के बीच व्यापार की अपार संभावनाओं को देखते हुए एससीओ के कुछ सदस्य देशों, विशेष रूप से सीएआर ने भी भारत के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रूप से संपर्क बढ़ाने की मांग की है. 2020 में, नई दिल्ली ने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को विकसित करने के लिए मध्य एशियाई देशों को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट (लाइन ऑफ़ क्रेडिट एक पूर्व निर्धारित उधारी सीमा होती है जिसका उपयोग किसी भी समय किया जा सकता है. इससे उधारकर्ता तब तक अपनी आवश्यकतानुसार धन निकाल सकता है जब तक कि अधिकतम सीमा तक न पहुंच जाए और जब धन का पुनर्भुगतान हो जाए तो ओपन एलओसी के मामले में इससे फिर से उधार लिया जा सकता है.) प्रदान की[xxxix] और यहां तक कि इस क्षेत्र के भीतर कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भी शुरू कीं (उदाहरण के लिए, ताज़िकिस्तान का दुशांबे-कोर्टुट हाईवे).[xl]
चीन और पाकिस्तान को छोड़कर SCO के सभी देशों ने साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के आधार पर रचनात्मक दृष्टिकोण के भारत के अभिसरण-आधारित संस्थागतकरण पर आम तौर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.
चीन और पाकिस्तान को छोड़कर SCO के सभी देशों ने साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के आधार पर रचनात्मक दृष्टिकोण के भारत के अभिसरण-आधारित संस्थागतकरण पर आम तौर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. दुशान्बे, ताज़िकिस्तान में 2021 की बैठक में, सदस्य देशों ने क्षेत्रीय परिवहन कनेक्टिविटी के विस्तार पर ज़ोर दिया,[xli] वे भारत के दृष्टिकोण से सहमत हुए कि मध्य एशिया (यूरेशिया) और दक्षिण एशिया के बीच परस्पर संबंध समृद्धि और सुरक्षा के सामान्य लक्ष्य को हासिल करने में योगदान देगा और सभ्यताओं के बीच संवाद को मज़़बूत करेगा.[xlii]
2022 में पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान, यह प्रस्ताव किया गया था कि चाबहार बंदरगाह और तुर्क़मेनिस्तान के तुर्क़मेनबाशी बंदरगाह को आईएनएसटीसी में शामिल किया जाए ताकि भारत के साथ सीधे व्यापार की सुविधा मिल सके.[xliii] भाग लेने वाले देशों ने पारदर्शिता पर भी ज़ोर दिया, स्थानीय प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित किया, और उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखा.[xliv] अप्रैल 2023 में, भारत और मध्य एशिया ने चाबहार बंदरगाह पर एक संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) का भी गठन किया, और समूह की अगली बैठक ईरान में निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ आयोजित की जाएगी.[xlv] बैठक के दौरान, इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ने चाबहार बंदरगाह पर संचालन और सुविधाओं का प्रदर्शन किया. जेडब्ल्यूजी ने बड़े पैमाने पर निजी निवेश की सुविधा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता भी व्यक्त की, और अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय सहायदा प्रदान करने में बंदरगाह की भूमिका का उल्लेख किया.[xlvi]
अफ़ग़ानिस्तान और आतंकवाद से जंग
शांति और सुरक्षा संपर्क, व्यापार और सामाजिक आर्थिक विकास के लिए आवश्यक शर्तें हैं. 1991 के बाद से, अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान (अफ़पाक) क्षेत्र में स्थित आतंकवादी संगठन – जैसे कि इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ उज़्बेकिस्तान (आईएमयू), इस्लामिक जिहाद यूनियन (आईजेयू), और जमात अंसारुल्ला- ने बार-बार उज़्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान और किर्ग़ीज़ गणराज्य के लिए सुरक्षा खतरा पैदा किया है[xlvii], क्योंकि उनकी 2387 किलोमीटर लंबी छिद्रित सीमा अफ़ग़ानिस्तान से लगती है. अफ़पाक क्षेत्र में मौजूद हज़ारों आईएमयू और आईजेयू लड़ाकों[xlviii] ने 2008 और 2018 के बीच मध्य एशिया में 19 से अधिक हमले किए है, जिसमें 138 लोग मारे गए हैं. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से, सजातीय उज़्बेकों और ताज़िकों को समूह के नेतृत्व में हाशिए पर धकेल दिया गया और इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासान (आईएसकेपी) में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया.[xlix] 2022 में, आईएसकेपी और अन्य समूहों ने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में अपने ठिकानों से उज़्बेकिस्तान और ताज़िकिस्तान पर रॉकेट हमले किए.[l] अप्रैल 2023 में, ताज़िकिस्तान बलों ने अस्थिर ताज़िक-अफ़ग़ान सीमा पर दो आतंकवादियों को मार गिराया और स्वचालित हथियारों का एक बड़ा जखीरा जब्त कर लिया.[li] इस प्रकार, अफ़पाक क्षेत्र में आतंकवादियों की उपस्थिति मध्य एशियाई नेताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है.
उइगर मुसलमानों के प्रति सामाजिक-सांस्कृतिक दुर्व्यवहार और क्षेत्र के संसाधनों के शोषण के कारण अशांत शिनजियांग क्षेत्र में चीन भी अलगाववाद और अपकेंद्री प्रवृत्तियों का सामना कर रहा है. उइगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार ने चीन को तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), आईएसकेपी और अल क़ायदा जैसे आतंकवादी समूहों का निशाना बना दिया है. 2021 के बाद से, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में चीनी श्रमिकों के ख़िलाफ़ हमलों में वृद्धि हुई है.[lii]
पाकिस्तान ने तालिबान को भर्ती और भू-रणनीतिक कारणों से दान के साथ भी मदद की है, और कथित तौर पर अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने में समूह की मदद करने के लिए 10,000 से अधिक प्रशिक्षित आतंकवादियों को भेजा है.
अफ़पाक क्षेत्र 1980 के दशक से आतंकवाद और चरमपंथ का केंद्र रहा है, जो यूरेशिया में इस ख़तरे का निर्यात करता है. अफ़पाक से उत्पन्न आतंकवाद सभी पड़ोसी देशों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, सुरक्षा और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है.
पाकिस्तान की सरकारी नीति के कारण अफ़पाक क्षेत्र आतंकवाद का उद्गम स्थल बन गया है जो भू-रणनीतिक और भू-राजनीतिक हितों के लिए आतंकवाद और आतंक का इस्तेमाल करता है. दरअसल, इस्लामाबाद, नई दिल्ली के ख़िलाफ़, 1989 से ही जम्मू-कश्मीर में राज्य प्रायोजित आतंकवाद का इस्तेमाल कर रहा और यूरेशिया में कट्टरपंथी तत्वों का समर्थन करता रहा है.
पाकिस्तान ने तालिबान को भर्ती[liii] और भू-रणनीतिक कारणों से दान के साथ भी मदद की है,[liv] और कथित तौर पर अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने में समूह की मदद करने के लिए 10,000 से अधिक प्रशिक्षित आतंकवादियों को भेजा है.[lv] इस्लामाबाद ने आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए एक चयनात्मक नीति भी अपनाई, जिन्होंने अपनी भारत विरोधी और अफ़ग़ान विरोधी नीति को आगे बढ़ाने में मदद की जबकि टीटीपी जैसे अन्य पर सख़्ती की.[lvi] लेकिन विदेश नीति के औज़ार के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल और यूरेशिया में और भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए हदीस (पैगंबर मोहम्मद के कथन और परंपराओं) को तोड़-मरोड़कर पेश करने के पाकिस्तान को विनाशकारी घरेलू परिणाम भी झेलने पड़े हैं. उदाहरण के लिए, टीटीपी ने पाकिस्तान के भीतर अपना आक्रमण बढ़ा दिया है, अकेले अगस्त 2021 से अगस्त 2022 के बीच उसके 250 हमलों में 433 नागरिक और सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं.[lvii]
इसके साथ ही एससीओ देशों के बदलते भू-रणनीतिक और भू-राजनीतिक हितों ने समूह की आतंकवाद रोधी क्षमता को जटिल बना दिया है. उदाहरण के लिए, हालांकि कभी तालिबान सरकार का विरोध करने के बावजूद, ईरान और रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में आईएसआईएस के सहयोगियों का मुक़ाबला करने और कथित तौर पर अमेरिका के साथ ‘हिसाब बराबर करने’ के बहाने 2019 से तालिबान की मदद की है.[lviii]
पाकिस्तान के राज्य-प्रायोजित आतंकवाद और अफ़पाक क्षेत्र में अन्य आतंकवादी संगठनों की उपस्थिति को देखते हुए, पूर्ववर्ती शंघाई फाइव ने 1998 में आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद के ख़िलाफ़ लड़ाई को प्राथमिकता दी थी,[lix] SCO चार्टर के अनुच्छेद एक में इसे संहिताबद्ध किया था. 2001 के SCO शिखर सम्मेलन में, अफ़पाक क्षेत्र को “आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद का उद्गम स्थल” कहा गया था,[lx] और ग़ैर-हस्तक्षेप एजेंडे के आधार पर एससीओ सदस्य देशों के आतंकवाद विरोधी ग्रिड को मजबूत करना और पुनर्निर्माण करना संगठन का मुख्य सिद्धांत बना हुआ है. दरअसल, 2001 के बाद से, SCO देशों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और आतंकवाद के ख़िलाफ़ संयुक्त विज्ञप्ति जारी की है (देखें तालिका 3).
तालिका 3: एससीओ के आतंकवाद-रोधी दस्तावेज़
महीना-साल |
स्थान |
घोषणा/ संयुक्त विज्ञप्ति |
जून2001 |
शंघाई |
आतंकवाद विरोधी, उग्रवाद और अलगाववाद का मुक़ाबला करने का शंघाई सम्मेलन |
जून2002 |
सेंट पीटरबर्ग |
आतंकवाद का मुक़ाबला करने पर समझौता |
जून2004 |
ताशकंद |
आतंकवाद विरोधी डाटाबेस पर समझौता |
जून2006 |
शंघाई |
आतंकवाद विरोधी, उग्रवाद और अलगाववाद का मुक़ाबला करने के लिए सहयोग के दिशानिर्देश, 2007-2009 |
जून2007 |
बिश्केक |
सैन्य अभ्यास पर समझौता |
अगस्त 2008 |
दुशांबे |
आतंकवाद विरोधी अभ्यास, हथियारों, विस्फोटकों और गोला-बारूद की तस्करी पर नकेल कसने पर समझौता |
मार्च 2009 |
ताशकंद |
आतंकवाद का मुकाबला, उग्रवाद और अलगाववाद का मुक़ाबला करने के सहयोग दिशानिर्देश, 2010-2012; मादक पदार्थों की तस्करी, आतंकवाद और संगठित अपराधों पर नकेल कसने के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर समझौता
आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण पर समझौता
|
जून 2011 |
अस्ताना |
अस्ताना घोषणा |
जून 2012 |
बीजिंग |
आतंकवाद का मुक़ाबला करने के सहयोग दिशानिर्देश |
जून 2017 |
अस्थाना |
अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ संयुक्त जवाबी कार्रवाई |
जून 2019 |
बिश्केक |
बिश्केक घोषणा |
नवंबर 2020 |
मास्को |
मास्को घोषणा |
सितंबर 2021 |
दुशान्बे |
दुशान्बे में एक अलग स्थायी निकाय के रूप में SCO आतंकवाद रोधी केंद्र की स्थापना
एससीओ सूचना सुरक्षा केंद्र का स्थापना केंद्र
बिश्केक में अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के ख़िलाफ़ SCO केंद्र का दफ़्तर
2022-2024 के लिए आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुक़ाबला करने में SCO सदस्य देशों के सहयोग का कार्यक्रम
2022-2024 के लिए आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुक़ाबला करने में SCO सदस्य देशों के सहयोग के कार्यक्रम को प्राथमिकता दें
|
2022 |
समरकंद |
2022-2024 के लिए आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुक़ाबला करने में SCO सदस्य देशों के सहयोग कार्यक्रम का निरंतर कार्यान्वयन |
2023 |
नई दिल्ली |
आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक एकीकृत सूची बनाने के लिए समान दृष्टिकोण विकसित करना
आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुक़ाबला करने में सक्षम अधिकारियों के बीच सहयोग, जिसमें 2022-2024 के लिए प्रासंगिक कार्यक्रम का कार्यान्वयन शामिल है
|
स्रोत: SCO. विदेश मंत्रालय, भारत[lxi]
एससीओ की आतंकवाद रोधी नीति को क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी ढांचे (रीजनल एंटी-टेरर स्ट्रक्चर- आरएटीएस) की कार्यकारी समिति के माध्यम से समेकित और संस्थागत बनाया गया था. आरएटीएस एससीओ चार्टर के तहत काम करता है और सदस्य देशों और अन्य वैश्विक संगठनों के साथ सूचना एकत्र करने से संबंधित है. आरएटीएस SCO सदस्य देशों के सुरक्षा बलों को आतंकवाद विरोधी अभियानों, अभ्यासों और खोज अभियानों में भी प्रशिक्षित करता है.[lxii] 2011 से 2015 के बीच आरएटीएस ने 20 आतंकवादी हमलों को रोका, आतंकवाद से संबंधित 650 अपराधों को टाला, 440 आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट किया, चरमपंथी समूहों के 2,700 सदस्यों को गिरफ्तार किया और सदस्य देशों में 1,700 अन्य को निष्प्रभावी कर दिया. एससीओ के सदस्य देशों ने 3,250 इंप्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी ऐसे बमों या विस्फ़ोटकों को कहते हैं जो परंपरागत रूप से सेना के लिए बनाए जाने वाले व्यवसायिक विस्फ़ोटकों से अलग होते हैं. आम तौर पर यह गैर-पेशेवर तरीक के से घर में बनाए जाते हैं, जिनमें विस्फ़ोटकों में एक डेटोनेटर लगा होता है.), गोला-बारूद के 4,50,000 नग और 52 टन विस्फोटकों सहित हथियारों की भारी खेप भी बरामद की.[lxiii] इसी तरह, 2021 में, संगठन ने 40 आतंकी हमलों और आतंकवाद से संबंधित 480 से अधिक अपराधों को सफलतापूर्वक विफल कर दिया और 26 वैश्विक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग चैनलों को अवरुद्ध कर दिया.[lxiv]
भारत एससीओ क्षेत्र में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए अभिसरण का एक मजबूत समर्थक है, और उसने SCO में राज्य प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दों को सफलतापूर्वक उठाया है, हालांकि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के ख़िलाफ़ सीमित परिणाम ही मिले हैं. 2018 में, नई दिल्ली ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र व्यापक सम्मेलन (सीसीआईटी) के मसौदे के लिए एससीओ का समर्थन सफलतापूर्वक हासिल किया था. मौजूदा समय में सीसीआईटी पर अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर गठित संयुक्त राष्ट्र की छठी तदर्थ समिति चर्चा कर रही है ताकि ऐसे संगठनों को ‘किसी अन्य देश में समर्थन, भरण-पोषण और सुरक्षित पनाहगाह’ प्राप्त करने से रोका जा सके.[lxv]
भारत एससीओ क्षेत्र में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए अभिसरण का एक मजबूत समर्थक है, और उसने SCO में राज्य प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दों को सफलतापूर्वक उठाया है, हालांकि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के ख़िलाफ़ सीमित परिणाम ही मिले हैं.
SCO की कामकाजी भाषाएं रूसी और मंदारिन हैं, और संदिग्ध आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों पर आरएटीएस का डाटाबेस उजागर करता है कि इसमें रूसी और चीनी हित ही केंद्र में हैं. चीन ने अपने पश्चिमी सीमांत प्रांत शिनजियांग को स्थिर करने के लिए सफलतापूर्वक आरएटीएस का इस्तेमाल किया है. भारत आरएटीएस को एक प्रभावी तंत्र मानता है, लेकिन भाषा संबंधी बाधाओं के कारण इसकी अपारदर्शिता पर चिंता व्यक्त करता रहा है. भारत ने आतंकवाद का मुक़ाबला करने पर बेहतर संचार के लिए मुख्य एससीओ भाषाओं में से एक के रूप में अंग्रेज़ी का उपयोग करने पर ज़ोर दिया है,[lxvi] क्योंकि आतंकवादी संगठन और आतंकवादी अब अपराध और राज्य विरोधी गतिविधियों के लिए डिजिटल और इंटरनेट-आधारित रणनीतियों का भी उपयोग करते हैं. अक्टूबर 2021 में, नई दिल्ली ने एक वर्ष के लिए SCO-आरएटीएस के निदेशक का पद संभाला और साइबर आतंकवाद, डिजिटल फ़ॉरेंसिक और रैन्समवेयर पर आरएटीएस के संचालन में तालमेल का आह्वान करके समूह के आतंकवाद विरोधी एजेंडे में विविधता लाने की कोशिश की.[lxvii]
अफ़ग़ानिस्तान
अफ़ग़ानिस्तान यूरेशियन क्षेत्र की शांति, समृद्धि और सामाजिक आर्थिक विकास का केंद्र है. एससीओ ने 2005 में अफ़ग़ानिस्तान संपर्क समूह (एसीजी) बनाया,[ सी] लेकिन पश्चिम एशिया में हिंसा में वृद्धि और आईएसआईएस जैसे अधिक हिंसक आतंकवादी संगठनों के उभरने के साथ यह निष्क्रिय हो गया.[lxviii] अफ़ग़ानिस्तान 2012 में एक पर्यवेक्षक के रूप में SCO में शामिल हुआ और 2015 में आरएटीएस के साथ आतंकवाद प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए.[lxix] तालिबान के प्रति मॉस्को की नीति में बदलाव के बाद, एसीजी को 2017 में पुनर्जीवित किया गया और इसने काबुल में तालिबान और नागरिक सरकार के बीच राजनयिक चैनलों के माध्यम से सुलह और शांति में भूमिका निभाना शुरू कर दिया. हालांकि, एससीओ सदस्यों के बीच विश्वास की कमी और अविश्वास ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान में जातीय अल्पसंख्यकों और महिलाओं के प्रति अधिक क्रूर दृष्टिकोण अपनाने में मदद की. अफ़ग़ानिस्तान में उभरती स्थिति ने कई SCO सदस्य देशों को पश्चिम और एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अपने भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए देश और तालिबान का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया. इसने तालिबान के पक्ष में काम किया. उदाहरण के लिए, 2021 से पहले, रूस और ईरान ने अफ़ग़ानिस्तान में आईएसआईएस के सहयोगियों को हराने के बहाने तालिबान की मदद की, लेकिन यह अमेरिका के साथ हिसाब बराबर करने का एक तरीका था.[lxx] फरवरी 2023 में, किसी भी समावेशी सरकार की मौजूदगी के बिना, चीनी सरकार के स्वामित्व वाली चाइना नेशनल पेट्रोलियम कंपनी (सीएनपीसी) ने अमू दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए तालिबान के साथ कई मिलियन डॉलर का निवेश सौदा किया. इस सौदे के तहत, सीएनपीसीपहले वर्ष में 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर और अगले तीन वर्षों में 540 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी.[lxxi]
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2021 में आयोजित एससीओ राष्ट्र प्रमुखों की परिषद में कहा था कि समूह को समन्वय बढ़ाना चाहिए, SCO-एसीजी जैसे मंचों का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए और अफ़ग़ानिस्तान में सुगम बदलाव की सुविधा प्रदान करनी चाहिए.[lxxii] 2021 की दुशान्बे घोषणा ने अफ़ग़ानिस्तान में एक समावेशी सरकार की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया जो सभी धार्मिक, जातीय और राजनीतिक समूहों का प्रतिनिधित्व करती हो.[lxxiii] हालांकि, बयानबाज़ी के बावजूद, दुशान्बे बैठक में एसीजी की अलग से बैठक नहीं हुई, क्योंकि चीन-पाकिस्तान धुरी द्वारा पैदा की गई आंतरिक असहमतियों और छितराव ने एक नाज़ुक अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ते सुरक्षा और मानवीय जोखिमों का मुक़ाबला करने के प्रयासों को कुंद कर दिया. एससीओ के भीतर अलग-अलग और विरोधी विचारों ने अफ़ग़ानिस्तान में आईएसकेपी, अल क़ायदा, टीटीपी, आईएमयू और आईजेयू आतंकवादियों की उपस्थिति को मजबूत किया है. इसके अतिरिक्त, एक युद्धरत तालिबान ने एक समावेशी सरकार बनाने, लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित करने और महिलाओं के अधिकारों को बनाए रखने के अपने आश्वासन को रद्द कर दिया है.
नई दिल्ली ने अफ़ग़ान लोगों के कल्याण के लिए 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और बिजली, पानी की आपूर्ति, सड़क संपर्क, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कृषि और क्षमता निर्माण के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 500 परियोजनाएं शुरू कीं. 2023-24 के बजट में, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को विकास सहायता में 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का भी वचन दिया, एक ऐसा कदम जिसका तालिबान ने स्वागत किया.
तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद भी भारत की आधिकारिक स्थिति “अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति और सुलह के लिए अफ़ग़ान-नेतृत्व वाली, अफ़ग़ान-स्वामित्व वाली और अफ़ग़ान-नियंत्रित प्रक्रिया” के लिए रही है.[lxxiv] अपनी तटस्थ स्थिति पर कायम रहते हुए, नई दिल्ली ने तालिबान के कब्ज़े से पहले अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय और आर्थिक सहायता के रूप में 650-750 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान किए. नई दिल्ली ने अफ़ग़ान लोगों के कल्याण के लिए 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और बिजली, पानी की आपूर्ति, सड़क संपर्क, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कृषि और क्षमता निर्माण के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 500 परियोजनाएं शुरू कीं.[lxxv] 2023-24 के बजट में, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को विकास सहायता में 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का भी वचन दिया, एक ऐसा कदम जिसका तालिबान ने स्वागत किया.[lxxvi] स्थिर निवेश और सहायता ने अफ़ग़ान सरकार के भीतर भारत के कई दोस्त बनाए हैं और यहां तक कि तालिबान ने भी भारत के रचनात्मक और लोगों के अनुकूल दृष्टिकोण को मान्यता दी है और अफ़ग़ानिस्तान के लिए भारत के प्रस्तावित (2023-24 के बजट में) 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर के विकासात्मक सहायता पैकेज का स्वागत किया है.[lxxvii]
नवंबर 2021 में, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान पर तीसरे क्षेत्रीय सुरक्षा शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की और सभी SCO सदस्यों को आमंत्रित किया, जिनमें ईरान भी शामिल था.[lxxviii] हालांकि, पाकिस्तान और चीन ने इसमें भाग नहीं लिया. इस्लामाबाद ने इन परामर्शों को ‘निरर्थक प्रयास’ बताते हुए इसकी निंदा की और नई दिल्ली को ‘एक विघ्नकर्ता’ क़रार दिया जो ‘शांति-स्थापक नहीं हो सकता.[lxxix] इसके बजाय, पाकिस्तान और चीन ने नवंबर 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका और रूस के साथ ‘ट्रोइका प्लस’ वार्ता आयोजित की.[lxxx]
उपलब्धियां और आगे का रास्ता
SCO चीन द्वारा निर्मित, चीनी-प्रभुत्व वाला और चीन के नेतृत्व वाला बहुपक्षीय मंच है जिसका उपयोग बीजिंग द्वारा यूरेशिया में अपने संकीर्ण भू-रणनीतिक, भू-आर्थिक और सुरक्षा हितों के लिए किया जाता है. रूस चाहता था कि एससीओ में चीन के वर्चस्ववादी प्रभुत्व और आक्रामक गतिविधियों को संतुलित करने के लिए भारत मौजूद रहे. रूसी मीडिया यूरेशियन क्षेत्र में भारत की उपस्थिति को “बढ़ते चीनी प्रभाव के लिए एक संतुलन के रूप में देखता है और सीआईएस (कॉमनवेल्थ ऑफ़ इंडिपेंडेंट स्टेट्स यानी स्वतंत्र देशों का राष्ट्रमंडल) के दक्षिणी हिस्से को बीजिंग के अविभाजित प्रभुत्व के क्षेत्र में बदलने से रोकता है”.[lxxxi] भारत की सदस्यता ने एससीओ को एक लोकतांत्रिक चरित्र दिया है, क्योंकि यह अन्यथा अधिकारवादी नेताओं से भरा हुआ है. SCO ने भारत को यूरेशिया में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान किया है. भारत ने एससीओ का इस्तेमाल अपने राजनयिक संबंधों और बौद्धिक पूंजी को मज़बूत करने और कनेक्टिविटी, आतंकवाद और अफ़ग़ानिस्तान पर एक प्रगतिशील एजेंडा लाने के लिए किया है. दूसरी ओर, चीन-पाकिस्तान धुरी ने हमेशा एससीओ का इस्तेमाल भारत के क्षेत्रीय हितों के ख़िलाफ़ किया है. नतीजतन, सुरक्षा और कनेक्टिविटी से संबंधित कुछ SCO प्राथमिकताओं में कुछ सदस्य देशों में से ज़्यादा सहयोग द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से हो रहा है.
फिर भी, SCO के हिस्से के रूप में भारत की कई उपलब्धियां रही हैं:
भारत आईएनएसटीसी का नेता बन गया और एससीओ क्षेत्र के भीतर पारगमन के सभी अधिकारों के साथ विश्वसनीय, परामर्शी और पारदर्शी कनेक्टिविटी परियोजनाओं के महत्व पर ज़ोर दिया. भारत ने एससीओ का इस्तेमाल सीएआर और रूस सहित सदस्य देशों को आईएनएसटीसी और चाबहार पर बहुपक्षीय और द्विपक्षीय कार्य समूह बनाने के लिए राजी करने के लिए किया. भारत को ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका के एक़तरफा प्रतिबंधों से भी विशेष छूट मिली और वह ‘द्वितीयक प्रतिबंधों’ से बच गया, जिससे इन परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था. सीएआर चीन के आर्थिक और रूस के राजनीतिक प्रभाव को कम करने के लिए अपनी विदेश नीतियों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं. भारत के साथ व्यापार की संभावनाओं को देखते हुए, मध्य एशियाई नेताओं ने नई दिल्ली के साथ अपने संबंधों को और अधिक खुले तौर पर गहरा करने के लिए SCO मंच का उपयोग किया है. मध्य एशियाई नेताओं और भारत के बीच 2022 के आभासी शिखर सम्मेलन ने चाबहार और तुर्कमेनबाशी बंदरगाहों को आईएनएसटीसी में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया. भारत और मध्य एशिया ने क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह पर एक संयुक्त कार्य समूह का भी गठन किया.
भारत अपने विस्तारित पड़ोस में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए SCO में शामिल हुआ और SCO-आरएटीएस तंत्र के तहत आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए मज़बूत तंत्र की वकालत की, लेकिन इसे चीन-पाकिस्तान धुरी के विरोध का सामना करना पड़ा.
भारत अपने विस्तारित पड़ोस में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए SCO में शामिल हुआ और SCO-आरएटीएस तंत्र के तहत आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए मज़बूत तंत्र की वकालत की, लेकिन इसे चीन-पाकिस्तान धुरी के विरोध का सामना करना पड़ा. नवंबर, 2021 में चीन और पाकिस्तान के अलावा सभी SCO सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान पर चर्चा करने के लिए एक क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में भाग लिया. हालांकि, ऐसी सीमाओं के बावजूद, भारत ने सीएआर के साथ अपने संबंधों को सफलतापूर्वक मजबूत किया है. मध्य एशियाई नेताओं ने दिसंबर 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर पाकिस्तान द्वारा आयोजित इस्लामी देशों के संगठन के सम्मेलन में भाग नहीं लिया और इसके बजाय आतंकवाद और अफ़ग़ानिस्तान में उभरती सुरक्षा स्थिति पर चर्चा करने के लिए तीसरी भारत-मध्य एशिया वार्ता के लिए नई दिल्ली आए.
SCO के भीतर अलग-अलग और विरोधी विचारों ने अफ़ग़ानिस्तान में आईएसकेपी, अल कायदा, टीटीपी, आईएमयू और आईजेयू आतंकवादियों की उपस्थिति में वृद्धि की है. इन समूहों ने मध्य एशिया, पाकिस्तान और अफ़पाक क्षेत्र में चीनी परियोजनाओं पर बार-बार हमले किए हैं. इस पृष्ठभूमि में, एससीओ के भीतर भारत के आतंकवाद विरोधी एजेंडे की सीएआर सराहना करता है. [lxxxii]SCO के माध्यम से, सीएआर ने अफ़ग़ानिस्तान में “अफ़ग़ान-नेतृत्व वाली, अफ़ग़ान-स्वामित्व वाली और अफ़ग़ान-नियंत्रित” शांति प्रक्रिया के लिए भारत की स्थिति से सहमति व्यक्त की है और समर्थन दिया है. इसके अतिरिक्त, भारत और सीएआर के बीच आतंकवाद के मुकाबले, सुरक्षा सहयोग और रक्षा पर किए गए समझौते एससीओ के माध्यम से नई दिल्ली द्वारा बनाई गई गहरी पैठ को दर्शाते हैं.
भारत एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और वर्तमान बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में एक उभरता हुआ ध्रुव है. बदले हुए भू-राजनीतिक संदर्भ में, भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक हित नई दिल्ली की SCO सदस्यता में सबसे महत्वपूर्ण रहे हैं. भारत ने एससीओ मंच का इस्तेमाल चीन के अपने पड़ोसियों के प्रति आक्रामक दृष्टिकोण और घुसपैठ के मुद्दे को उठाने के लिए किया है. नई दिल्ली ने SCO की ‘शंघाई भावना’ के तहत ‘क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान’ पर ज़ोर दिया है.[lxxxiii]
इन उपलब्धियों के बावजूद, भारत को अपनी प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए SCO का उपयोग करने की आवश्यकता है, जैसे कि कनेक्टिविटी और उत्तरी सीमाओं में शांति और समृद्धि के लिए चरमपंथ और नार्कोटेररिज्म के मुद्दों का मुक़ाबला करना. भारत और अन्य सदस्य देशों को चीन को यह याद दिलाने की जरूरत है कि ‘शंघाई स्पिरिट’ एससीओ के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए. स्वतंत्रता के बाद, मध्य एशियाई देशों को भी एक लड़ाकू चीन के सीमा में दखलअंदाज़ी का सामना करना पड़ा और उन्हें कुछ क्षेत्रों को बीजिंग को सौंपने पर मजबूर होना पड़ा.[lxxxiv] बीजिंग ने क़ज़ाकिस्तान (1994), किर्ग़ीज़ गणराज्य (1996) और ताज़िकिस्तान (2002) के साथ सीमा संधियों को सुधारने के लिए मध्य एशियाई देशों की आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता का उपयोग किया. हालांकि, 2020 में, चीनी समाचार वेबसाइटों ने चीनी पत्रकार-इतिहासकार चो याओ लू के एक लेख को फिर से प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया था कि “ताज़िकिस्तान में पूरा पामीर क्षेत्र चीन का था और इसे वापस कर दिया जाना चाहिए”.[lxxxv] रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद, कुछ क्षेत्रों को चीन को वापस सौंप दिया गया था.
इसी तरह, “क़ज़ाकिस्तान चीन लौटने के लिए उत्सुक क्यों है?” शीर्षक से एक अन्य लेख ने भी चीन के मुखर वर्चस्ववादी और साम्राज्यवादी प्रयासों को प्रदर्शित किया. कज़ाक़ विदेश मंत्रालय ने लेख के विरोध में चीनी राजदूत को तलब किया, और अपमानजनक टुकड़ों को हटा दिया गया.[lxxxvi] भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी भारत के गोवा में SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान अपने चीनी समकक्ष को याद दिलाया कि द्विपक्षीय संबंध “सामान्य नहीं हैं और यदि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता भंग होती है तो सामान्य नहीं हो सकते”.[lxxxvii]
भारत को आतंकवाद का मुक़ाबला करने और शांतिपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान पर SCO का ध्यान केंद्रित करने पर वास्तविक प्रगति करने के लिए अन्य समान विचारधारा वाले सदस्यों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है.
निष्कर्ष
रूस-यूक्रेन संघर्ष से चिंतित, सीएआर मॉस्को पर अपनी पारंपरिक सुरक्षा निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है, जिसे अब क्षेत्रीय स्थिरता, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के खतरे के रूप में देखा जा रहा है.[lxxxviii] विश्व स्तर पर भारत की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, सीएआर आने वाले दशकों में नई दिल्ली को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देख रहा है. एससीओ ने नई दिल्ली को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जिसका लाभ अपने भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उठाने की आवश्यकता है. इस संबंध में, भारत को आईएनएसटीसी और चाबहार बंदरगाह परियोजनाओं में तेज़ी लानी चाहिए और नीति निर्माताओं को इन निवेशों को चीन के बढ़ते क्षेत्रीय प्रभाव के रणनीतिक मुकाबले के रूप में देखना चाहिए. भारत को सीएआर और ईरान के साथ अपने सहयोग को संयुक्त रूप से विकसित और मज़बूत करने के लिए भारत-मध्य एशिया वार्ता का उपयोग करना चाहिए, जिससे यह अधिक विकास और सुरक्षा उन्मुख हो. भारत पहले ही SCO में चीन-पाकिस्तान धुरी के ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी व्यक्त कर चुका है. इसके अतिरिक्त, चीन ने शिनजियांग में अपने निहित सुरक्षा हितों के लिए आरएटीएस तंत्र का उपयोग किया है और अपने वर्चस्ववादी एजेंडे के लिए मंच को संचालित किया है. भारत को आतंकवाद का मुक़ाबला करने और शांतिपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान पर SCO का ध्यान केंद्रित करने पर वास्तविक प्रगति करने के लिए अन्य समान विचारधारा वाले सदस्यों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है.
[i] Ministry of External Affairs, Government of India, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”.
[ii] United Nations Department of Political and Peacebuilding Affairs, “Shanghai Cooperation Organization”.
[iii] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[iv] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[v] Ministry of External Affairs, Government of India.
[vi] Richard Kurin, “The Silk Road: Connecting People and Cultures”, Smithsonian Institution, 2022.
[vii] Jean-Paul Rodrigue, Claude Comtois, and Brian Slack, The Geography of Transport Systems (New York: Routledge, 2013)
[viii] Jason Neelis, “Buddhism on Silk Routes,” University of Washington.
[ix] Kallie Szczepanski, “What Was the Great Game?,” ThroughtCo, July 31, 2019.
[x] Bhavna Dave, “Resetting India’s Engagement in Central Asia: From Symbols to Substance,” Policy Report, S. Rajaratnam School of International Studies; January 2016.
[xi] [11] Alexander Wendt, Social Theory of International Politics (Cambridge, Cambridge University Press, 1999).
[xii] Ayjaz Wani, “India and China in Central Asia: Understanding the new rivalry in the heart of Eurasia,” ORF Occasional Paper No.235, February 2020, Observer Research Foundation.
[xiii] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[xiv] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[xv] Ministry of External Affairs, India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023,
[xvi] Ministry of External Affairs, Government of India, “Charter of the Shanghai Cooperation Organisation”.
[xvii] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[xviii] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[xix] Ministry of External Affairs, “India’s Chairmanship of the SCO-2022-2023”
[xx] Harsh V Pant & Ayjaz Wani, “Walking the Tightrope of SCO,” Financial Times, June 13, 2023.
[xxi] “The long and troubled history of TAPI Pipeline: What you need to know about ambitious gas pipeline project,” Firstpost, January 28, 2022.
[xxii] Rajat Pandit, “India expresses strong opposition to China Pakistan Economic Corridor, says challenges Indian Sovereignty,” The Economic Times, July 12, 2018.
[xxiii] Janko Šcepanovic, “The Sheriff And The Banker? Russia And China In Central Asia,” War On the Rocks, June 13, 2022.
[xxiv] Reid Standish, “China’s Belt And Road Grapples With Mounting Debt Crisis, Impacting Central Asia, Pakistan, And Beyond,” Radio Free Europe Radio Liberty, August 2, 2022.
[xxv] “Explained: INSTC, the transport route that has Russia and India’s backing,” Business Standard, July 14, 2022.
[xxvi] Nicola P. Contessi, “In the Shadow of the Belt and Road: Eurasian Corridors on the North-South Axis,” Reconnecting Asia, Center for Strategic and International Studies, March 3, 2020.
[xxvii] Indrajit Roy, “Bringing Eurasia closer,” The Hindu, August 1, 2022.
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