प्रस्तावना
"सौ युद्धों में सौ जीत दर्ज़ करना कौशल की परिपूर्णता का परिचायक नहीं है. कौशल का शिखर तो वह है जब बगैर युद्ध लड़े ही दु्श्मन को मात दे दी जाए."
~ सून त्ज़ू
अनेक देश अब सैन्य शक्ति का कूटनीति के एक साधन के रूप में उपयोग करने लगे हैं.[1] ऐसा करते हुए वे अपने हार्ड पॉवर का खुला प्रदर्शन करते हैं. इसकी वजह से सैन्य कूटनीति [a] में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा सकती है. इस वृद्धि को हम नागरिक मामलों में सैन्य बलों का बड़े पैमाने पर होने वाला दख़ल अथवा हस्तक्षेप कह सकते हैं. इसे मिलिट्री ऑपरेशंस अदर दैन वॉर (MOOTW)[b] यानी युद्ध से इतर सैन्य अभियान कहा जाता है. यह घरेलू और बाहरी दोनों मोर्चों पर देखने को मिलता है. इसमें ख़तरा तो कम होता ही है, लेकिन इसके साथ ही इसमें लागत भी कम आती है और वक़्त की भी बचत होती है. संचार प्रौद्योगिकियों में देखी जा रही क्रांति के कारण वैश्विक समुदाय में जहां बातचीत बढ़ी है, वहीं परस्पर-निर्भरता में भी इज़ाफ़ा देखा जा रहा है. इसकी वजह से सॉफ्ट पॉवर के प्रभाव को अब सरकारी दायरे के बाहर भी विस्तारित होते हुए देखा जा सकता है. गैर-परंपरागत ख़तरों जैसे जलवायु परिवर्तन एवं आतंकवाद ने भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं के बाहर उभरने वाली नई चुनौतियों से निपटने में सैन्य कूटनीति के महत्व को उजागर कर दिया है.
21 वीं सदी के आरंभ से ही चीन ने डेंग शियाओपिंग की "अपनी शक्ति को छुपाओ, समय का इंतजार करो" रणनीति की जगह पर एक ज़्यादा आक्रामक रणनीति अपनाई है. इस आक्रामक रणनीति में रक्षा और सुरक्षा पर बल दिया जा रहा है. इस रणनीति के तहत ‘सेंचुरी ऑफ ह्यूमिलिएशन’ यानी ‘अपमान की सदी’ के दौरान चीन के हिस्से में आयी ऐतिहासिक शिकायतों को दूर करने की कोशिश की जा रही है.
इसी संदर्भ में सेना की भूमिका अब परंपरागत ढंग की बजाय गैर परंपरागत गतिविधियों में ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं. पहले सेना रक्षा, प्रतिकार, अनिवार्यता और हस्तक्षेप जैसी परंपरागत गतिविधियों में काम आती थी लेकिन अब यह शांति काल की गैर परंपरागत गतिविधियों जैसे संकट रोकने या टालने, पूर्व चेतावनी देने तथा युद्ध बाद के पुनर्निर्माण में बेहद अहम हो गई हैं. इसका उद्देश्य "मस्तिष्क के निःशस्त्रीकरण" अर्थात हितधारकों एवं युद्ध में शामिल पक्षों के बीच स्थिरता और सुरक्षा की स्थापना करना होता है. अब विभिन्न देश गठबंधन बना रहे हैं, ऑपरेशंस में समन्वय साधते हुए पारस्परिकता की दिशा में बढ़ रहे हैं. ऐसा करते हुए ये देश प्रौद्योगिकियों को साझा करते हुए स्थायी शांति की दिशा में एक व्यावहारिक कूटनीति को अपना रहे हैं.[2]
चीनी सैन्य कूटनीति ने बीजिंग की कुल राजनीतिक और कूटनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. इसके साथ ही चीनी सेना ने देश के रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने में भी बड़ी भूमिका अदा की है. 21 वीं सदी के आरंभ से ही चीन ने डेंग शियाओपिंग की "अपनी शक्ति को छुपाओ, समय का इंतजार करो"[c] रणनीति की जगह पर एक ज़्यादा आक्रामक रणनीति अपनाई है. इस आक्रामक रणनीति में रक्षा और सुरक्षा पर बल दिया जा रहा है. इस रणनीति के तहत ‘सेंचुरी ऑफ ह्यूमिलिएशन’[d] यानी ‘अपमान की सदी’ के दौरान चीन के हिस्से में आयी ऐतिहासिक शिकायतों को दूर करने की कोशिश की जा रही है. यूनाइटेड स्टेट्स (US) की ओर से अफ़गानिस्तान, ईराक, आतंकवाद और 2008 के आर्थिक संकट पर ज़्यादा ध्यान दिए जाने के कारण चीन को अपनी अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति बढ़ाने का अवसर मिल गया. इस अवसर का लाभ उठाते हुए उसने अपने वैश्विक प्रभाव में इज़ाफ़ा किया और अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा को पुख़्ता कर लिया.[3] द पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) अब सैन्य कूटनीति में अधिक सक्रिय हो गई है. यह बात पिछले एक दशक में चीनी सेना की ओर से तैयार दस्तावेज़ों का अध्ययन करने से साफ़ हो जाती है. PLA के व्यापक अभियानों से उपजी सैन्य कूटनीति का उद्देश्य देश की विदेश नीति का समर्थन करना, संप्रभुता की सुरक्षा करना, राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा माहौल को आकार देना है.[4]
चीन की सैन्य कूटनीति
दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली सेना होने के बावजूद सैन्य कूटनीति के क्षेत्र में चीन काफ़ी देर से सक्रिय हुआ है. लेकिन अंतत: चीन की सैन्य कूटनीति अब वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ाने के लिए उसका सबसे महत्वपूर्ण साधन बन गई है. सैन्य कूटनीति के चलते वह अपने ख़िलाफ़ उभरने वाले बहुआयामी ख़तरों का मुकाबला करने के लिए एक विस्तृत दृष्टिकोण को विकसित कर पा रहा है. 21 वीं सदी के आरंभ से ही चीन के दृष्टिकोण में आदर्श परिवर्तन आया है. यह अब अंदरुनी के बजाय बाहरी हो गया है. अब PLA का विस्तार और आधुनिकीकरण चीन के बाहरी यानी विदेशी हितों को बढ़ाने का उद्देश्य लेकर किया जा रहा है. ऐतिहासिक रूप से PLA ने चीन की विदेश नीति में छोटी भूमिका अदा की है. लेकिन अब अधिक राष्ट्रवादी एवं निश्चयात्मक चीनी विदेश नीति को अपनाने के बाद से ही PLA की भूमिका भी बढ़ गई है. PLA अब कूटनीतिक तथा ऑपरेशनल लक्ष्यों की पूर्ति करते हुए राष्ट्रीय कूटनीति तथा सुरक्षा रणनीति में सहयोग कर रहा है.[5] अत: PLA की कूटनीतिक गतिविधियों [e] पर नज़र डाली जाए तो चीन के कूटनीतिक लक्ष्यों तथा हितों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे चीन के हितों के लिए आवश्यक है कि एक सकारात्मक सुरक्षा माहौल खड़ा हो जो उसकी ओर से विदेश में किये जा रहे विदेशी निवेश को सुगम बनाकर उसके नागरिकों और वैश्विक स्तर पर मौजूद उसकी संपत्ति के लिए सुरक्षा कवच का कार्य कर सके. चीनी नेतृत्व में यह संकेत भी दिया है कि उसे PLA से सैन्य कूटनीति के माध्यम से विदेशों में चीन के राष्ट्रीय तथा सुरक्षा हितों को विस्तारित करने में एक बड़ी भूमिका अदा करने की भी उम्मीद है. एक ऑल मिलिट्री डिप्लोमेटिक वर्क कांफ्रेंस तथा 2015 में हुई 16वीं मिलिट्री अटैशे वर्किंग कांफ्रेंस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सैन्य कूटनीति की भूमिका पर प्रकाश डाला था. उन्होंने कहा था कि PLA की बाहरी गतिविधियों को चीन की व्यापक विदेश नीति रणनीति के लिए काम करना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा तथा संप्रभुता को बनाए रखते हुए सेना के विकास को बढ़ावा देना चाहिए. इस लक्ष्य का एक प्रमुख घटक नैरेटिव को कंट्रोल करने की क्षमता को तैयार कर उसे बनाए रखना और वैश्विक स्तर पर सकारात्मक धारणा को आकार देना है.[6]
निश्चित रूप से शी के नेतृत्व में सैन्य कूटनीतिक गतिविधियां बढ़ी हैं. 2003 से 2012 के बीच चीन की सालाना सैन्य कूटनीतिक गतिविधियों [f] का औसत 151 था. 2013 से 2018 के बीच यह औसत 20 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 179 गतिविधियां प्रतिवर्ष हो गया.[7] COVID-19 महामारी के दौरान विदेशी सेनाओं के साथ चीन की बातचीत अथवा मेल मिलाप में कमी आई थी. लेकिन अप्रैल 2024 के चीन मैरिटाइम रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख मिलता है कि 2023 में चीन की सैन्य कूटनीतिक गतिविधियां काफ़ी बढ़ गई थी.[8] अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के एक्सपोजर यानी पहुंच के कारण उसे विदेशी सेना की रणनीतियों, प्रशिक्षण के तरीकों, प्रबंधन प्रक्रियाओं, प्रौद्योगिकियों, उपकरण तथा रणनीति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हुई थी.[9]
2019 के एक डिफेंस व्हाइट पेपर यानी रक्षा श्वेत पत्र में कहा गया था कि पूरी दुनिया में चीन का रक्षा सहयोग शी के उस दृष्टिकोण को समर्थन देता है, जिसमें शी "मानव जाति के साझा भविष्य के लिए एक समुदाय निर्माण करने" और "एक सिक्योरिटी पार्टनरशिप यानी रक्षा साझेदारी का नया मॉडल तैयार करने" की बात करते हैं.[10] जनवरी 2023 में प्रकाशित एक लेख में भी सैन्य कूटनीति के महत्व पर प्रकाश डाला गया था. इस लेख के अनुसार चीन के राष्ट्रीय कायाकल्प, देश के रणनीतिक हितों को मजबूती प्रदान करने और विदेशों में राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में सैन्य कूटनीति एक अहम भूमिका निभा रही है. 2015 में PLA इंस्टीट्यूट्स की ओर से सैन्य कूटनीति पर लिखी गई आधिकारिक किताबों का प्रकाशन किया गया था. इन किताबों में चीनी नेतृत्व की ओर से सैन्य कूटनीति पर दिए जा रहे जोर पर प्रकाश डाला गया था.[g]
2023 में विदेश मंत्रालय तथा सेना में सफाई करने के बाद शी के अब नए फिल्ड कमांडर्स को तैनात करने की संभावना है. ये नए फिल्ड कमांडर्स नागरिक तथा सैन्य दूतों को सुव्यवस्थित करेंगे. ऐसा करते हुए वे शी के “डिप्लोमेटिक आर्यन आर्मी” यानी कूटनीतिक मजबूत सेना की स्थापना के आवाहन को पूर्ण करेंगे.
पश्चिमी प्रभुत्व का मुकाबला करने और वैश्विक सुरक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी भूमिका पर रोशनी डालने के लिए चीनी सैन्य कूटनीति का लक्ष्य विकासशील और अंडरडेवलप्ड यानी कम विकसित देशों के साथ संबंधों को विकसित करना या मजबूत करना है. 20 वीं CCP नेशनल कांग्रेस में तय किए गए मार्गदर्शक सिद्धांतों को 2023 में पहली बार पूर्णत: लागू किया गया. सैन्य कूटनीति के क्षेत्र में PLA ने “शी जिनपिंग के सेना को मजबूती प्रदान करने के विचार” [h] तथा “कूटनीति पर शी जिनपिंग के विचार” [i] पर भरोसा किया और अपने देश के प्रमुख का अनुसरण करते हुए प्रैक्टिकल को-ऑपरेशन पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्च स्तरीय आदान-प्रदान को आगे बढ़ाया. इसमें PLA ने बहुराष्ट्रीय मंचों पर ज़्यादा जोर दिया था.[11] 2023 में चीन की सैन्य कूटनीति गतिविधियों में वरिष्ठ स्तरीय यात्राओं और बैठकों, संयुक्त अभ्यास, नेवल पोर्ट कॉल्स, मानवाधिकार गतिविधियां और अकादमिक आदान-प्रदान का समावेश था.[12] राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय (MND) के प्रवक्ता वू कियान के अनुसार 2023 में सैन्य कूटनीति ने चीन के “समूचे राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों को हासिल किया”; “राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की मजबूती से रक्षा की”; “विदेश-संबंधी बहुराष्ट्रीय कूटनीति को विस्तारित किया”; तथा “मानवजाति के लिए एक साझा भविष्य को ध्यान में रखकर एक समुदाय का निर्माण किया.”[13]
बीजिंग अनेक वैश्विक और क्षेत्रीय पहलों को भी प्रोत्साहित कर रहा है. इसमें सबसे बड़ा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और तीन अन्य वैश्विक पहल- वैश्विक विकास पहल (GDI),[j], वैश्विक रक्षा पहल (GSI),[k] तथा वैश्विक सभ्यता पहल(GCI) का समावेश है.[l],[14] इन तीन पहलों को शी की अगुवाई वाली देश की विदेश नीति के तहत शामिल किया गया है. इसका उद्देश्य चीन को वैश्विक प्रशासन में नेता के रूप में स्थापित करते हुए पश्चिम की अगुवाई वाली वैश्विक व्यवस्था के लिए पर्याय के रूप में पेश करना है. चीन के “कम्युनिटी ऑफ कॉमन डेस्टिनी” [m] यानी समान नियति वाले समुदाय की धारणा में शामिल अनुपूरक और अव्यवस्थित GDI, GSI, तथा GCI को वैश्विक प्रशासन में अगुवा के रूप में स्थापित करने की व्यापक कोशिशों के एक हिस्से के रूप में देखा जा सकता है.[15]
GDI तथा GSI रणनीतिक साझेदारी स्थापित करते हुए सैन्य आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से सैन्य कूटनीति की सहायता कर सकती है. इसके लिए ये दोनों पहल दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं, संयुक्त अभ्यास के माध्यम से रक्षा सहयोग को बढ़ाने, ख़ुफ़िया जानकारी और बुनियादी ढांचे के साझा उपयोग के समझौते, रक्षा उद्योग सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, मानवीय सहायता/अनुदान, सैन्य प्रशिक्षण, शैक्षणिक आदान-प्रदान और शांति स्थापना प्रयासों का उपयोग कर सकते हैं. इन प्रयासों से चीन का वैश्विक प्रभाव बढ़ेगा और उसके सैन्य संबंध मजबूत होंगे.
2023 में विदेश मंत्रालय तथा सेना में सफाई[16] करने के बाद शी के अब नए फिल्ड कमांडर्स को तैनात करने की संभावना है. ये नए फिल्ड कमांडर्स नागरिक तथा सैन्य दूतों को सुव्यवस्थित करेंगे. ऐसा करते हुए वे शी के “डिप्लोमेटिक आर्यन आर्मी” यानी कूटनीतिक मजबूत सेना की स्थापना के आवाहन को पूर्ण करेंगे.[n] दिसंबर 2023 में नौसेना के पूर्व प्रमुख डोंग जून को रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया था. रक्षा मंत्री एक रैंक-एंड-फ़ाइल केंद्रीय सैन्य आयोग की भूमिका अदा करते हैं. उनका मुख़्य काम विदेशी सेनाओं के साथ संबंध स्थापित करना होता है.[17]
माओ ज़ेदोंग के बाद से आए सभी चीनी नेताओं ने वाणिज्यिक और नागरिक क्षेत्रों को PLA का समर्थन करने पर मजबूर करने वाले एक कार्यक्रम को लागू किया है. इस कार्यक्रम को अलग-अलग नामों - सिविल-मिलिट्री इंटिग्रेशन यानी नागरिक-सैन्य एकीकरण (CMI) तथा मिलिट्री-सिविल फ्यूजन यानी सैन्य-नागरिक सम्मिश्रण (MCF) - से पहचाना जाता है. शी की अगुवाई में सेना तथा MCF की भूमिका को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है.[18] MCF ने CMI का स्थान ले लिया है और अब इस पर चीन के फाइव ईयर प्लांस (FYP) यानी पंचवर्षीय योजनाओं और अकादमिक साहित्य में अक्सर चर्चा होती रहती है.
MCF कूटनीति CMI के मुकाबले बेहद जटिल है. CMI में जहां सरकार तथा शोध एवं अनुसंधान, मैन्यूफैक्चरिंग यानी उत्पादन और मेंटेनेंस ऑपरेशंस अर्थात रखरखाव अभियान में काम करने वाले वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के बीच सहयोग होता है. वहीं MCF एक सरकार की अगुवाई वाला सरकारी देखरेख में चलने वाला कार्यक्रम है, जो सरकार तथा व्यावसायिक शक्ति का उपयोग करते हुए PLA को मजबूती प्रदान करता है. इस रणनीति का उद्देश्य संसाधनों एवं अनुसंधान तथा एप्लीकेशंस में होने वाले अनुसंधान को साझा करते हुए प्रोत्साहित करना है, ताकि दोनों के लिए उपयोगी आर्थिक सहयोग सुनिश्चत कर राष्ट्रीय सुरक्षा का निर्माण किया जा सके.[19] MCF का लक्ष्य चीन को एक आर्थिक, तकनीकी और सैन्य महाशक्ति बनाना है. इसके लिए वह देश के सैन्य तथा नागरिक औद्योगिक एवं वैज्ञानिक तथा तकनीकी संसाधनों के सम्मिश्रण का उपयोग करना चाहता है.[20] PLA भी MCF के माध्यम से सैन्य कूटनीति का उपयोग करते हुए ख़ुफ़िया जानकारी एकत्रित करने, नई कौशल सीखने के साथ अन्य सेनाओं की PLA की क्षमताओं से तुलना करने के साथ ही विदेशी साझेदारों के साथ इंटरऑपरेबिलिटी स्थापित करता है.[21]
वेस्टर्न साइंटिफिट टेक्नोलॉजिस् के नवाचार का एक्सपोजर यानी उपयोग संभव होने के कारण चीन ने अब अपनी ख़ुफ़िया जानकारी एकत्रित करने का रुख़ दोहरे-उपयोग वाली तकनीक तथा उपकरण हासिल करने की दिशा में मोड़ दिया है. वह अब विदेशी कंपनियों, विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों की अनुसंधान क्षमताओं का भी लाभ उठाने लग गया है. इसके अतिरिक्त विदेशी सैन्य बलों के साथ समन्वयक ऑपरेशंस के कारण न केवल चीनी सेना की क्षमताओं में इज़ाफ़ा हुआ है, बल्कि चीनी अर्थव्यवस्था और निर्यात में भी वृद्धि हुई है. ऐसा वैश्विक मंच पर सस्ती चीनी सैन्य तकनीक के प्रदर्शन को मिले अवसरों की वजह से संभव हो सका है. महत्वपूर्ण परियोजनाओं तथा सुरक्षा संबंधों में परिपक्वता आने के साथ ही चीन-संचालित विदेशी बुनियादी ढांचे के सैन्य उपयोग में भी वृद्धि होगी. वैश्विक परिवहन नेटवर्क्स में चीन के एकीकरण के कारण चीन US तथा अपने अन्य प्रतिस्पर्धियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने, उसमें देरी करने और संभवत: अड़ंगा लगाने की क्षमता भी हासिल कर चुका है.[22] विश्लेषण के उद्देश्य के लिए चीनी सैन्य कूटनीति के उद्देश्यों को रणनीतिक तथा ऑपरेशनल यानी परिचालन लक्ष्यों में बांटा जा सकता है. (देखें टेबल 1)
टेबल1: चीनी सैन्य कूटनीतिक गतिविधियां
Activity |
Strategic Goals |
Operational Goals |
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Support PRC Diplomacy |
Shape Security Environment |
Collect Intelligence |
Learn New Skills and Benchmarking |
Senior-Level Visits |
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Hosted |
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X |
X |
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Abroad |
X |
X |
X |
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Dialogues |
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Bilateral |
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X |
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Multilateral |
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Military Exercises |
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Bilateral |
X |
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X |
X |
Multilateral |
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X |
Naval Port Calls |
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Escort Task Force (ETF) |
X |
X |
X |
X |
Non-Escort Task Force |
X |
X |
X |
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Functional Exchanges |
X |
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X |
X |
Non-Traditional Security Operations |
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HA/DR |
X |
X |
X |
X |
Peacekeeping |
X |
X |
X |
X |
स्रोत: एशिया-पसिफ़िक सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्टडीज्[23]
US के रक्षा विभाग की वार्षिक चीन मिलिट्री पॉवर रिपोर्ट, 2023 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि चीन के पास वर्तमान में जिबूती में एक सैन्य ठिकाना है. इसके अलावा वह 19 अन्य देशों में मिलिट्री लॉजिस्टिक फैसेलिटीज स्थापित करने पर विचार कर रहा है.[o],[24] PLA नौसेना (PLAN) के जहाज चीनी वाणिज्यिक परिवहन के बुनियादी ढांचे के रूप में फैले नेटवर्क का उपयोग करते हुए विदेशों में चीन के हितों की रक्षा करती है. इसके अलावा चीनी नौसेना तटीय चीन तक फैले लंबे और असुरक्षित समुद्री मार्गों की सुरक्षा भी करती है. पहले से मौजूद इस दोहरी उपयोग क्षमता का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण विदेशी अधिकार क्षेत्र में चीनी स्वामित्व वाले अथवा चीनी फर्म्स यानी प्रतिष्ठानों की ओर से संचालित होने वाले 100 समुद्री बंदरगाहों के नेटवर्क को देखकर समझा जा सकता है.[25] PLAN के युद्ध पोतों ने अब इसमें से एक तिहाई सुविधाओं में पोर्ट कॉल यानी लंगर डालते हुए चीन के व्यापार केंद्रित बुनियादी ढांचे का उपयोग किया है.[26]
बीजिंग की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए इस संघर्ष को नागरिक अनुसंधान जहाज की आड़ में चलाया जा रहा है. साउथ चाइना सी को लेकर अपने दावों पर अंतरराष्ट्रीय फ़ैसले चीन के ख़िलाफ़ जा रहे हैं. इसके बावजूद चीन इस इलाके में कृत्रिम द्वीप तैयार करते हुए इस क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है. वह इस क्षेत्र का एक “न्यू स्टैंडर्ड” नक्शा भी जारी कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र पर उसका क्षेत्रीय दावा पुख़्ता हो सके.
चाइना ओशन शिपिंग कॉर्प (COSCO) और चाइना मर्चेंट्स ग्रुप (CMG) जैसी अनेक चीनी बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर पोर्ट टर्मिनल्स को संचालित करती हैं. इनकी संपत्तियां वर्टिकली इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तैयार करती हैं जो चीन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समर्थन देती हैं. PLAN इन सुविधाओं को प्राथमिकता देती है और ये PLA को शांति काल में चीन से दूर होने पर भी काम आती है. घरेलू कानून में इन चीनी फर्म्स को PLA जहाजों को प्राथमिकता से पहुंच मुहैया कराने, जानकारी साझा करने और रक्षा संग्रहण या रक्षा सामग्री जुटाने में मदद करने को कहा गया है. इसके अलावा यह पोर्ट जहाजों को लेकर विस्तृत जानकारी जुटाते हैं. इस जानकारी में इन जहाजों के मार्ग, उनके कार्गो यानी सामग्री और जहाज पर चलने वाले कर्मचारियों की गोपनीय जानकारी शामिल होती हैं. ये जानकारी काफ़ी अहम होती हैं, क्योंकि सेना के जहाज अक्सर वाणिज्यिक पोर्ट्स का ही उपयोग करते हैं.[27] उल्लेखनीय है कि PLAN ने अब अभ्यास में शामिल होने के मामले में PLA को पीछे छोड़ दिया है. यह बात चीन की ब्लू वाटर नेवी स्थापित करने की प्रतिबद्धता पर भी प्रकाश डालती है.[28]
सुरक्षा के मुद्दों पर अपने नेतृत्व की भूमिका का लाभ उठाने के लिए चीन ने अपनी ट्रिलियन डॉलर BRI कनेक्टिविटी परियोजना को सैन्य कूटनीति के साथ एकीकृत कर दिया है. 2013 में BRI को लांच करने के साथ ही चीन ने दक्षिण एशिया के बेहद नज़दीक इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट शुरू कर दिया है. इसमें जिबूती, मलेशिया में मेलाका गेटवे पोर्ट और ओमान में दुक़्म पोर्ट के पास एक औद्योगिक पार्क का समावेश है.[29] दक्षिण एशिया में चीनी सैन्य कूटनीति के पदचिह्न ग्वादार (पाकिस्तान),हंबनटोटा (श्रीलंका), कोको द्वीप (म्यांमार) और उथुरु थिला फाल्हू द्वीप (मालदीव) में तैयार किए जा रहे हैं.[30] हिंद महासागर तथा वेस्ट फिलिपींस सी में एक ख़ुफ़िया संघर्ष चल रहा है. थर्ड सी फोर्स के नाम से पहचाने जाने वाले एक चीनी समुद्री मिलिशिया यानी रक्षक योद्धाओं की ओर से इसे चलाया जा रहा है. बीजिंग की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए इस संघर्ष को नागरिक अनुसंधान जहाज की आड़ में चलाया जा रहा है.[31] साउथ चाइना सी को लेकर अपने दावों[32] पर अंतरराष्ट्रीय फ़ैसले चीन के ख़िलाफ़ जा रहे हैं. इसके बावजूद चीन इस इलाके में कृत्रिम द्वीप तैयार करते हुए इस क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है. वह इस क्षेत्र का एक “न्यू स्टैंडर्ड” नक्शा भी जारी कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र पर उसका क्षेत्रीय दावा पुख़्ता हो सके. ऐसा करते हुए वह खुद को इस इलाके के समुद्री मार्गों में इस तरह स्थापित करना चाहता है कि वह अपने प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती पेश कर सकें.[33]
विदेश नीति उद्देश्यों का समर्थन करने और ऊर्जा संसाधनों तथा कच्चे माल के लिए संचार की लाइनों को सुरक्षित करने के अलावा सैन्य कूटनीति के चलते चीन को PLA के ऑपरेशंस की भौगोलिक पहुंच और दायरे को वैश्विक स्तर पर विस्तारित करने में सफ़लता मिली है. सैन्य कूटनीति के चलते उसकी इन कोशिशों को लेकर रेड फ्लैग अर्थात किसी ख़तरे की आशंका भी नहीं होती है. मार्च 2020 से अप्रैल 2021 के बीच PLA ने विश्व के 56 देशों को सैन्य चिकित्सकीय सहायता मुहैया करवाई तथा डोनेशन/अनुदान दिया. इसके साथ ही वह UN के शांति अभियानों में भी शामिल हो रहा है. चीन ने जिन देशों को सैन्य कूटनीतिक सहायता दी थी उसमें से केवल दो को छोड़कर अन्य सभी BRI लक्षित देश थे.[34] UN पीसकीपिंग प्रोग्राम फंडिंग में बीजिंग लगभग 19 प्रतिशत का योगदान देता है. ऐसे में वह दूसरा सबसे बड़ा वित्तीय समर्थक है. इसके साथ ही वह 10वां सबसे बड़ा सैन्यदल और पुलिस (2,274 कर्मचारी) भी मुहैया करवाने वाला देश है.[35] BRI के छह में से चार कांटिनेंटल/मैरीटाइम प्रोजेक्ट्स दक्षिण एशिया में भारत से बेहद नज़दीक है. इसमें चीन की ओर से बनाया गया चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) जैसा फ्लैगशिप प्रोजेक्ट शामिल है.
सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट (SREB), मैरीटाइम सिल्क रुट (MSR), डिजिटल सिल्क रुट (DSR) तथा हेल्थ सिल्क रोड (HSR) के BRI के साथ हुए एकीकरण की वजह से भी चीन सैन्य कूटनीतिक के कारण महत्वपूर्ण चोक प्वाइंट्स से वैश्विक गतिविज्ञान की निगरानी करने, स्कैन करने और प्रशासन करने की बेहतर स्थिति में है.
भूटान को छोड़कर अधिकांश दक्षिण एशियाई देश BRI में शामिल हो गए हैं. 2018 से चीन ने बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और अफ़गानिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं में 150 बिलियन अमेरिकी डालर का या तो निवेश कर दिया है या फिर निवेश करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है. चीन अब मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका में सबसे बड़ा विदेश निवेशक बन चुका है.[36]
दक्षिण एशिया लंबे समय से चीन-भारत के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का बड़ा केंद्र रहा है. चीन की पश्चिमी परिधि में रणनीतिक रूप से स्थित दक्षिण एशिया में कुल भूभाग में केवल 3.5 फ़ीसदी पर दुनिया की एक चौथाई आबादी बसी हुई है. ऐसे में यह चीन को मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप की ओर पश्चिमी दिशा में विस्तार करने का सुनहरा अवसर उपलब्ध करवाती है. इस ओर चीन कांटिनेंटल और मैरीटाइम मार्ग दोनों का ही उपयोग करते हुए विस्तार कर सकता है. ऐसा होने पर चीन को उसकी ‘मलक्का दुविधा’[p] को दूर करने में आसानी होगी और उसका ‘मिडिल किंगडम ड्रीम’[q] भी पूरा होने में सहायता मिलेगी. एक कम विकसित लेकिन उपजाऊ दक्षिण एशियाई क्षेत्र चीन को उसकी ऊर्जा, कच्चे माल और उसकी अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन का काम करने वाली तैयार वस्तुओं की अबाधित आपूर्ति भी सुनिश्चित करता है. इसके अलावा वह अपनी सबसे बड़ी आबादी के लिए खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए सरप्लस कैपिटल यानी अतिरिक्त पूंजी, उत्पादन और निर्माण क्षमताओं का भी उपयोग कर सकता है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि अब अफ़गानिस्तान से NATO की सेनाएं वापस चली गई हैं. इस वजह से इन क्षेत्र में रिक्ती पैदा हो गई है, जिसे चीन भरने की कोशिश कर सकता है. अपने BRI का उपयोग करते हुए चीन दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में मौजूद युवाओं को भी अपने पक्ष में कर सकता है. क्योंकि वह BRI के माध्यम से बेरोजगारी, व्यापक भ्रष्टाचार, निरक्षरता तथा बढ़ती उम्र की आबादी जैसी समस्याओं का हल उपलब्ध करवा सकता है.
20 वीं सदी के अंत तक चीन की सैन्य कूटनीति, पाकिस्तान को छोड़कर, दक्षिण एशिया में सीमित ही थी. 21 वीं सदी के आरंभ में चीन का इस क्षेत्र को लेकर दृष्टिकोण में बदलाव आया. अब उसका दृष्टिकोण अपने कांटिनेंटल तथा मैरीटाइम मार्गों का उपयोग करते हुए भारत को चारों तरफ से घेरना है. ऐसा करते हुए वह अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटेजी [r]को प्रभावी अंदाज में आगे बढ़ाता है. भारत के पास इस इलाके का कुल 68 प्रतिशत भूभाग है. यहां वर्तमान में मौजूद आबादी में उसकी 75 फीसदी हिस्सेदारी है और वह दक्षिण एशिया के इकोनॉमिक आउटपुट में 79 प्रतिशत का योगदान देता है.
पिछले तीन दशकों में PLA की सैन्य कूटनीति में इज़ाफ़ा हुआ है.[37] चीन ने अब नागरिक संवाद की बजाय सैन्य बातचीत को प्राथमिकता देना शुरू किया है. उसका मानना है कि सैन्य कूटनीति उसके सुरक्षा उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में अधिक टिकाऊ तथा पोषक है. दूसरे देशों के साथ उसकी आधे से अधिक आधिकारिक यात्राएं अब वहां के सेना अफसरों की अगुवाई में ही होती है. PLA ने अपनी सैन्य कूटनीति में एशिया पर बल दिया है. 2003 से 2016 के बीच उसकी सारी बातचीत में इसी क्षेत्र की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत की थी.[38] 2013 से PLA ने अपनी सैन्य कूटनीति गतिविधियों, विशेषत: संयुक्त सैन्य अभ्यास, को बढ़ाया है. 2003 से 2016 के बीच हुए संयुक्त सैन्य अभ्यासों में से लगभग एक तिहाई पाकिस्तान के साथ हुए थे. भारत भी अब वैश्विक स्तर पर PLA के इस तरह के संयुक्त अभ्यासों में टॉप फाइव सहयोगियों में शामिल है. पोर्ट कॉल्स के मामले में वैश्विक स्तर पर श्रीलंका तथा पाकिस्तान टॉप फाइव में शामिल थे.[39] हालांकि 2020 से दक्षिण एशिया में संयुक्त सैन्य अभ्यासों में COVID पूर्व वर्षों के मुकाबले कमी आयी है. इसका कारण भारत तथा चीन के बीच चल रहे भूराजनीतिक तनाव को माना जाता है. ऐसे में चीन के पास अब केवल पाकिस्तान ही एकमात्र सहयोगी रह गया है.[40]
अपनी अभियान क्षमताओं में वृद्धि करने और विदेशों में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए चीन अपने मरीन कोर की क्षमता को 2017 की 20,000 से ताजा जानकारी के अनुसार अब 100,000 कर रहा है.[41] इस बात को लेकर भी चर्चाएं है कि चीन अपने इन सैनिकों को विदेश में ग्वादार पोर्ट तथा जिबूती में तैनात करने की योजना बना रहा है. चीन ने पाकिस्तान से भी CPEC में काम करने वाले चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तानी सेना के 30,000 जवानों को तैनात करने को कहा है, जबकि वह तालिबान से अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर बातचीत कर रहा है.[42] मार्च 2024 में पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में चीनी अभियंताओं पर हुए आत्मघाती हमले के बाद चीन अपनी CPEC संपत्तियों की सुरक्षा के लिए PLA कर्मियों की तैनाती का भी विचार कर रहा है.[43]
चीन ने घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैन्य रणनीति लागू करने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूती देने के लिए कुछ कानून और विनियमन पारित किए हैं. एक्सट्राटेरिटोरियल यानी अपने देश के दायरे से बाहर जाने पर लागू होने वाले इन कानूनों का उद्देश्य चीनी नागरिकों, विदेश में रहने वाले चीनी समुदाय का समर्थन हासिल करना है. इसके अलावा विदेशी इकाईयों का समर्थन हासिल करने की कोशिश भी हो रही है जो आगे जाकर अभिव्यक्ति की आजादी के लिए वैश्विक स्तर पर चुनौती खड़ी कर सकता है. विदेशों में सुरक्षा तथा सैन्य गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और कानूनी ढांचे की सुरक्षा देने वाले प्रमुख कानूनों में नेशनल सिक्योरिटी लॉ (2015), द नेशनल इंटेलिजेंस लॉ (2017), द न्यू मैरीटाइम लॉ (2021) तथा न्यू लैंड बॉर्डर लॉ (2022) का समावेश है. इसके अलावा जून 2022 में चीन ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें “एक्शन गाइडलाइंस ऑन मिलिट्री ऑपरेशंस अदर दैन वॉर” को प्रायोगिक तौर पर लागू किया जाना है. इस आदेश से चीनी सेना को विदेशों में “स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशंस” करने का अधिकार मिल गया है. [s],[44]
वैसे तो चीन दक्षिण एशियाई देशों के लिए अपने सार्वजनिक कूटनीतिक दृष्टिकोण को देश विशेष को ध्यान में रखकर तैयार करता है. लेकिन इसमें कुछ टूल्स यानी साधन एक जैसे ही होते हैं:
1. सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) के नेताओं तथा देश के रक्षा एवं सैन्य नेताओं के साथ सीधे बातचीत और यात्राएं.[45]
2. सुरक्षा एवं शांति मंच का आयोजन करते हुए BRI समेत अन्य चीनी पहलों के बारे में जानकारी देना.[46] इसके साथ ही सेना की ओर से चीनी नेतृत्व की नाराज़गी का इज़हार करने के लिए उच्च स्तरीय बातचीत, संवाद और अभ्यास को रद्द करते हुए संकेत दिया जाना.
3. दोहरे उपयोग वाले पोर्ट/इंफ्रास्ट्रक्चर/विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) सुविधाओं का सैन्य आर्थिक गतिविधियों के तहत निर्माण कर उसकी देखरेख करना. इसके अलावा बुनियादी ढांचे के साझा उपयोग समझौते, विदेशों में सैन्य ठिकाने बनाना, रक्षा उत्पाद सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा अहम चेक प्वाइंट्स पर सैन्य उत्पाद के साथ चीनी स्पेस टेक्नोलॉजी एवं नैविगेशन का उपयोग करना.
4. विदेशी सेनाओं के साथ निर्यात, रखरखाव, चीनी सैन्य उपकरण/तकनीकों के रखरखाव एवं उपयोग के साथ वैक्सीन कूटनीति का प्रदर्शन करना.[47]
5. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा ऑपरेशंस में संयुक्त ऑपरेशंस, प्रशिक्षण, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से सैन्य अभियान क्षमताओं को आकार/संकेत देना.[48]
6. गोपनीय जानकारी साझाकरण समझौते.
7. ड्यूल टेक्नोलॉजी की पहचान और उसका हस्तांतरण करने के साथ प्रतिभा की खोज करने के लिए सैन्य अनुसंधान/वित्त पोषण और उच्च शिक्षा के लिए अकादमिक सहयोग करना.
8. चीन की सुरक्षा मजबूत करने के लिए विदेशों में बसे नागरिकों के समावेश के साथ CMF का उपयोग करना.
9. क्षेत्रीय तथा समुद्री दावों को आगे बढ़ाने के लिए सलामी स्लाइसिंग युद्ध नीति पर अमल करना या फिर गैर-युद्ध सैन्य गतिविधियों को सावधानी से तैयार कर लागू करना. इसमें तिब्बत में सीमा पर बॉर्डर डिफेंस विलेजेस् यानी सीमा रक्षा गांवों का निर्माण शामिल है.
10. इंडियन ओशन रीजन (IOR) में अवैध, गैरकानूनी तथा अविनियमित (IUU) मत्स्यपालन गतिविधियां.
11. विदेशों में सुरक्षा और सैन्य गतिविधियों को कानूनी आधार उपलब्ध करवाने और उसे मजबूती देने के लिए नए कानून.
दक्षिण एशियाई सैन्य कूटनीति में चीन के पदचिह्न
पाकिस्तान
दक्षिण एशिया में अपनी सैन्य कूटनीति के पदचिह्नों का फ़ायदा उठाने की चीन की योजनाओं में पाकिस्तान केंद्रबिंदु की भूमिका में है. पाकिस्तान में चीन की सैन्य कूटनीति को चोरी-छुपे पाकिस्तान को परमाणु सक्षम बनाने में की गई सहायता को देखा जा सकता है.[49] इसके अलावा चीन ने पाकिस्तान को मिलिट्री हार्डवेयर जैसे रावलपिंडी स्थित नेशनल डिफेंस कॉम्पलेक्स में बनने वाले बैलिस्टिक मिसाइल[50] तथा कामरा में पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्पलेक्स (PAC) में JF-17 फाइटर जेट[51] चीन को गिलगित-बाल्टिस्तान में लीज पर जमीन देने,[52] सिंध के दो द्वीप पाकिस्तान की ओर से चीन को भेंट स्वरूप देने[53] तथा उइगर मुस्लिमों को वापस चीन भेजने जैसे उदाहरण भी उसकी सैन्य कूटनीति को प्रदर्शित करते हैं.[54]
मार्च 2024 में पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हुए आत्मघाती हमले के बाद इस बात की संभावना जताई जा रही है कि बीजिंग अब इस्लामाबाद पर CPEC प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा का ज़िम्मा चीनी सुरक्षा एजेंसियों को सौंपने के लिए दबाव डाल रहा है.[55] यह भी ख़बर है कि चीन और पाकिस्तान दोनों ही एक ऐसा समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले है जिसमें एक संयुक्त सुरक्षा कंपनी बनाकर उसमें चीनी सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की जाएगी. यह कंपनी चीनी परियोजनाओं तथा उसके कर्मचारियों की सुरक्षा का काम देखेगी.[56]
नेपाल
नेपाल में चीनी सैन्य कूटनीति की पहचान करने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं. इसमें पेशेवर सैन्य एवं भाषाई प्रशिक्षण, UN पीसकीपिंग फोर्सेस के लिए क्षमता-वृद्धि, रक्षा विश्वविद्यालय की स्थापना[57] माउंट एवरेस्ट पर 5G टॉवर की स्थापना,[58] नेपाली नागरिकों पर भारतीय सेना की अग्निवीर योजना में शामिल होने पर लगाए गए प्रतिबंध और PLA में गुरखाओं की संभावित तैनाती,[59] लुंबिनी एयरपोर्ट निर्माण,[60] तथा नेपाल में तिब्बती सक्रियतावाद का ख़ात्मा शामिल है.[61]
बांग्लादेश
पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश ही वह देश है जो चीन के हथियारों के आयात में (2016-20 के बीच कुल निर्यात में 17 प्रतिशत) दूसरे नंबर पर आता है.[62] बांग्लादेश में चीनी सैन्य कूटनीति के पदचिह्नों की पहचान सैन्य उपकरण की आपूर्ति/प्रशिक्षण,[63] नियमित सैन्य एक्सचेंज और 2023 में कॉक्स बाज़ार में एक सबमरीन बेस के निर्माण,[64] तथा चटगांव पोर्ट के आधुनिकीकरण को देखकर की जा सकती है. बांग्लादेश ने चीन को दो SEZs-चटगांव पोर्ट तथा ढाका भी आवंटित किए हैं.[65]
मालदीव
नवंबर 2023 में मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही मालदीव में चीनी सैन्य कूटनीति में इज़ाफ़ा देखा जा रहा है. फेधू फिनोल्हू द्वीप चीन को लीज पर दिया गया है.[66] इसके अलावा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण हो रहा है,[67] मालदीव से भारतीय सेना को वापस भेज दिया गया है,[68] और मार्च 2024 में चीन-मालदीव सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं.[69]
भूटान
भूटान के साथ भू-सीमा साझा करने के बावजूद चीनी सैन्य कूटनीति के पदचिह्न वहां गैरमामूली ही कहे जाएंगे. लेकिन अपनी सलामी-स्लाइसिंग रणनीति के तहत चीन ने सड़कों का निर्माण कर भूटान में अपनी सेना के लिए नए गांव और प्रशासनिक केंद्रों का निर्माण कर लिया है.[70]
अफ़गानिस्तान
US की वापसी के बाद चीनी सैन्य कूटनीति को अफ़गानिस्तान में पहचानने के लिए इन बातों पर ध्यान दिया जा सकता है. चीन ने एक माउंटेन ब्रिगेड का गठन किया है. ख़बर है कि PLA को वाख़ान कॉरिडोर में तैनात किया जा रहा है.[71] इसके अलावा क्वाड्रिलैटरल को-ऑर्डिनेशन एंड को-ऑपरेशन मेकैनिज्म की स्थापना की गई है.[72] मई 2023 में तालिबान ने चीन को पाकिस्तान में बन रहे BRI के बुनियादी ढांचे को अफ़गानिस्तान तक विस्तारित करने की अनुमति देने का भी फ़ैसला किया है.[73]
श्रीलंका
हंबनटोटा पोर्ट लीज पर लेने के अलावा श्रीलंका में चीन की सैन्य कूटनीति को श्रीलंकाई पुलिस को मैंडरीन भाषा में प्रशिक्षण लेने का प्रावधान किए जाने,[74] कोलंबो के निकट एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण करने,[75] श्रीलंकाई पोर्ट पर एक सर्वेलांस शिप यानी जासूसी जहाज को लंगर डालने की अनुमति देने,[76] के साथ श्रीलंका को हथियार और गोला-बारुद की आपूर्ति करने में देखा जा सकता है. इस बात की भी चर्चा है कि बीजिंग की डोंड्रा बे यानी खाड़ी में एक रडार सुविधा का निर्माण करने की भी योजना है. इसके माध्यम से वह IOR की गतिविधियों पर नज़र रख सकेगा.[77]
निष्कर्ष
21 वीं सदी के आरंभ से ही चीन ने दक्षिण एशिया में अपनी सैन्य कूटनीति के पदचिह्नों को बढ़ा दिया है. सैन्य तथा वित्तीय सहायता देकर चीन दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. ऐसे में यह IOR के भारतीय प्रभुत्व वाले इलाके में सुरक्षा के लिए ख़तरा बनकर भारत को अलग-थलग कर सकता है.[78]
MCF का लाभ उठाते हुए चीनी सैन्य कूटनीति उसकी वैश्विक पहुंच को आर्थिक पहल जैसी गतिविधियों से आगे बढ़ा रही है. इसमें BRI जैसे दोहरे उपयोग वाली बुनियादी सुविधाएं, रक्षा औद्योगिक सहयोग, हथियार निर्यात, चीनी स्पेस टेक्नोलॉजी, सलामी-स्लाइसिंग रणनीति, IUU मछली पालन और दक्षिण एशिया समेत वैश्विक चोक प्वाइंट्स पर रणनीतिक ठिकानों का समावेश है. इसके विपरीत भारत की सैन्य कूटनीति का ध्यान दक्षिण एशिया तथा हिंद महासागर में चीन का प्रतिकार करने के लिए संतुलन साधने पर ही है.
ऐसा लगता है कि अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने को लेकर सैन्य कूटनीति का उपयोग करने के मामले में भारत दुविधा में है. इसके स्थान पर वह मानवाधिकार सहायता, संयुक्त अभ्यास, रक्षा सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने पर ज़्यादा जोर दे रहा है. कुल मिलाकर भारत की सैन्य कूटनीति को अभी उसके वांछित स्तर पर पहुंचना बाकी है. लेकिन पिछले दशक में इस दिशा में कुछ गुणात्मक कदम उठाए गए हैं.[79]
दक्षिण एशिया में चीन की सैन्य कूटनीति को एक्स्ट्रा-रिजनल पॉवर यानी बाहरी क्षेत्रीय शक्ति मानकर यहां बढ़ रहे उसके पदचिह्नों का संज्ञान लेकर यानी उसे मान्यता देकर उसका मुकाबला करने के लिए समय पर ही यथोचित कदम उठाए जाने आवश्यक हैं. भारतीय सशस्त्र बलों के पास विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों में पारंपरिक तथा गैर- पारंपरिक ऑपरेशंस के लिए विविधतापूर्ण क्षमताएं मौजूद हैं. ऐसे में चीन के तरह ही सैन्य कूटनीति को अपनाने से वैश्विक स्तर पर भारत का रसूख़ को बढ़ाने में प्रोत्साहन मिलेगा और यह राष्ट्रीय उद्देश्यों को हासिल करने में भी अहम साबित होगा.
Endnotes
[a] ‘Military diplomacy’ can be defined as a set of non-combat activities carried out by a country’s armed forces to advance its national diplomatic interests. Military diplomacy aims for the peaceful utilisation of military resources to establish positive and cooperative relations with foreign nations. See: https://www.indiandefencereview.com/news/military-diplomacy-a-vital-tool-for-furthering-national-interests/
[b] MOOTW entails peacekeeping, peacemaking, peace enforcement, and peace building, with a focus on deterring war, resolving conflict, promoting peace, and supporting civilian authorities during domestic crises.
[c] The “Hide your strength, bide your time” approach advocated for China to conceal its capabilities and patiently await opportune moments to assert influence. This philosophy underscored China’s cautious diplomacy and gradualist economic policies, fostering stability while cultivating long-term power.
[d] The “Century of Humiliation” refers to the period from the mid-19th to the mid-20th century, marked by China’s internal turmoil and external aggressions, notably from Western powers and Japan. It encompasses unequal treaties, territorial losses, and military defeats and shaped Chinese nationalism and foreign policy perceptions.
[e] The PLA views military diplomacy as “an important component of a country’s foreign affairs, and it can even be considered the ‘ballast stone’ of a nation’s diplomacy.” See: http://news.china.com.cn/2022-06/17/content_78273730.htm
[f] Chinese military diplomatic activities entail senior-level meetings between PLA leaders and their counterparts, joint bilateral and multilateral military exercises or manoeuvres, and naval port calls by the People’s Liberation Army Navy (PLAN) to foreign ports, or vice-versa. Senior-level meetings, strategic dialogues, and exchanges often convey diplomatic messages. Beijing views press releases supporting the “One China Principle” after such meetings as international solidarity for its sovereignty claims over Taiwan. Additionally, showcasing advanced weapons during visits, joint drills, and naval port calls are part of the PLA’s strategic deterrence against challengers. See: https://digital-commons.usnwc.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=1037&context=cmsi-maritime-reports
[g] One Chinese scholar described the role of China’s military diplomacy as “the pursuit of foreign policy objectives under the guidance of China’s national grand strategy through the peaceful employment of military resources and capabilities to maintain national interests, security, and development.” See: https://www.rand.org/content/dam/rand/pubs/testimonies/CTA2500/CTA2571-1/RAND_CTA2571-1.pdf
[h] “Xi Jinping Thought on Strengthening the Military” emphasises modernising China's military to build a world-class fighting force capable of safeguarding national security and supporting China's global ambitions. It calls for military reforms, technological advancements, and the strengthening of combat readiness.
[i] “Xi Jinping Thought on Diplomacy” focuses on enhancing China’s global influence, advocating for multilateralism, and promoting a community with a shared future for humanity. It prioritises China’s active participation in global governance and pursues diplomacy that reflects China’s interests and values.
[j] The GDI was launched in September 2021 and is committed to promoting global development and foster a development paradigm that ensures benefits for all, balance, coordination, inclusiveness, mutually beneficial cooperation, and common prosperity. See: https://www.prnewswire.com/news-releases/the-three-initiatives-china-put-forward-have-resonated-warmly-with-the-world-302039940.html
[k] The GSI was launched in April 2022 and calls for adapting to the changes in the international landscape through solidarity, addressing traditional and non-traditional security risks and challenges with a win-win mindset, and creating a new path to security that prioritises dialogue over confrontation, partnership over alliance, and mutually beneficial results over zero-sum game. The initiative aims to build a security community. See: https://www.prnewswire.com/news-releases/the-three-initiatives-china-put-forward-have-resonated-warmly-with-the-world-302039940.html
[l] The GCI, launched in March 2023, advocates respect for the diversity of civilisations, the common values of humanity, the importance of continuity and evolution of civilisations, and closer international people-to-people exchanges and cooperation. It promotes tolerance, coexistence, exchanges, and mutual learning among different civilisations. See: https://www.prnewswire.com/news-releases/the-three-initiatives-china-put-forward-have-resonated-warmly-with-the-world-302039940.html
[m] The ‘Community of Common Destiny’, introduced by Xi Jinping, promotes global cooperation on shared challenges like poverty, security, and climate change. It envisions a world where nations work together for mutual benefit, advocating for multilateralism and inclusive global governance. The concept emphasises respect for all nations’ interests, especially developing countries, and aims to create a more equitable and sustainable international order, fostering peace, stability, and shared development across the globe.
[n] The Chinese “diplomatic iron army” symbolises a formidable diplomatic corps comprising adept negotiators and diplomats. This force engages globally to advance China’s interests, extend diplomacy, and navigate geopolitical landscapes to showcase China’s diplomatic strength and strategic acumen on the world stage.
[o] These are: Cambodia, Burma, Thailand, Indonesia, Pakistan, Sri Lanka, UAE, Kenya, Equatorial Guinea, Seychelles, Tanzania, Angola, Nigeria, Namibia, Mozambique, Bangladesh, Papua New Guinea, the Solomon Islands, and Tajikistan.
[p] The ‘Malacca Dilemma’ describes China’s concerns over its heavy reliance on the narrow Strait of Malacca for energy imports and its vulnerability to disruptions. It underscores the need for China to diversify supply routes and bolster naval capabilities to ensure energy security amid geopolitical tensions and maritime risks.
[q] The ‘Middle Kingdom Dream’ embodies China’s ambition to restore its historical prominence in global affairs, striving for prosperity, power, and cultural influence. Anchored in China’s rich history, it aims to position the nation as a pivotal force in shaping future world order, marking its resurgence on the global stage.
[r] The ‘String of Pearls strategy’ refers to China’s maritime approach for acquiring key ports and infrastructure throughout the Indian Ocean area. These strategic assets support China’s naval activities, energy needs, and economic goals and have sparked apprehensions among neighbouring powers and influenced geopolitical dynamics in the region.
[s] In 2022, Xi Jinping authorised the PLA to conduct “special military operations”, enabling it to undertake missions that fall short of full-scale war. These operations include activities like counterterrorism, peacekeeping, humanitarian aid, and safeguarding China's interests abroad. The move broadens the PLA's mandate, allowing for more flexibility in responding to emerging threats, protecting strategic assets, and enhancing China's global military presence, particularly in regions tied to the BRI.
[1] Maj Gen Rajan Kochhar (Retd), “India’s Military Diplomacy Takes Wings,” Defence Research and Studies, February 17, 2024, https://dras.in/indias-military-diplomacy-takes-wings/.
[2] Kochhar, “India’s Military Diplomacy Takes Wings.”
[4] Kenneth W. Allen, John Chen, and Phillip C. Saunders, Chinese Military Diplomacy, 2003-2016: Trends and Implications, Virginia, National Defense University, 2017): 9.
[5] Meia Nouwens, “The Evolving Nature of China’s Military Diplomacy: from Visits to Vaccines,” The International Institute for Strategic Studies, May 2021: 6, https://www.iiss.org/globalassets/ media-library---content--migration/files/research-papers/the-evolving-nature-of-chinas-military-diplomacy---from-visits-to-vaccines.pdf.
[6] Nouwens, “ The Evolving Nature of China’s Military Diplomacy: from Visits to Vaccines,”6.
[9] Siebens, James and Ryan Lucas, Military Operations Other Than War in China’s Foreign Policy, Washington DC, The Stimson Center, 2022:62
[12] “Re-Engaging with the World,” 1.
[16] Oudenaren, “China’s Global Security Initiative.”
[17] Oudenaren, “China’s Global Security Initiative.”
[18] “PLA Aerospace Power: A Primer on Trends in China's Military Air, Space, and Missile Forces (4th Edition),” China Aerospace Studies Institute, 2024, https://www.airuniversity.af.edu/CASI/Display/Article /3840174/pla-aerospace-power-a-primer-on-trends-in-chinas-military-air-space-and-missile/
[20] Fritz, “China’s Evolving Conception of Civil-Military Collaboration”.
[23] Philip C. Saunders, and J. Shyy, “China's Global Influence: Perspectives and Recommendations,” Inouye Asia-Pacific Center for Security Studies, October 13, 2019: 211, https://dkiapcss.edu/wp-content/uploads/2019/10/13-Chinas-Military-Diplomacy-Saunders-Shyy-rev.pdf
[25] Kardon, “China’s Military Diplomacy and Overseas Security Activities."
[27] Kardon, “China’s Military Diplomacy and Overseas Security Activities."
[28] Gao & Allen, “Re-Engaging with the World,” 9.
[32] Euan Graham, “The Hague Tribunal’s South China Sea Ruling: Empty Provocation or Slow-Burning Influence?,” Council on Foreign Relations, August 18, 2016, https://www.cfr.org/councilofcouncils/global-memos/hague-tribunals-south-china-sea-ruling-empty-provocation-or-slow-burning-influence
[34] Nouwens, “The Evolving Nature of China’s Military Diplomacy: from Visits to Vaccines”
[37] Nouwens, “The Evolving Nature of China’s Military Diplomacy: from Visits to Vaccines”
[38] Allen, Chen, and Saunders, Chinese Military Diplomacy, 2003-2016, 4.
[40] Gao & Allen, “Re-Engaging With the World,” 9.
[42] IANS, “Chinese Men Start Arming Themselves at CPEC Project Sites in Pakistan,” The Economic Times, July 23, 2021, https://economictimes.indiatimes. com/news/defencechinese-men-start-arming-themselves-at-cpec-project-sites-in-pak/articleshow/84647617.cms.
[45] Wu Qian, “China to Expand and Deepen Relations with Foreign Militaries: Defense Spokesperson,” by Wang Xinjuan, December 28, 2023.
[46] Qian, "“China Expand Relations with Foreign Militaries.”
[47] Nouwens, “The Evolving Nature of China’s Military Diplomacy: from Visits to Vaccines”
[48] Qian, "“China Expand Relations with Foreign Militaries.”
[61] Arjun Basnet, “Disarming Khampa Guerrillas by the Nepal Government: A Politico-Historical Perspective,” Journal of Political Science 22, February 2022, doi:10.3126/jps.v22i1.43035.
[65] Akkas Ahamed et al., “China’s Vision of Regional Connectivity, Economic Corridor and Development Cooperation in South Asia: Implications for Bangladesh,” Muallim Journal of Social Science and Humanities 5, no. 2, April 2021: 2, doi:10.33306/mjssh/121.
[78] My Hai Loc Tran, “India's Security Threats from Chinese Military Funding and Economic Development in South Asia,” Global: Jurnal Politik Internasional 25, no. 2 (2023), doi:10.7454/global.v25i2.1289.
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