Author : Ramanath Jha

Published on Jun 30, 2023 Updated 0 Hours ago
क्लाइमेट एक्शन प्लान और भारतीय शहर

भारतीय शहरों के सामने जो बड़ी चुनौतियां  हैं, उनमें जलवायु परिवर्तन सबसे गंभीर चिंता का विषय है. आने वाले समय में पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे होंगे. शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के लिए चिंताजनक तथ्य यह है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम शहरों में बड़े पैमाने पर दिखेंगे. भारतीय शहरों में बार-बार और पहले से अधिक तीव्रता वाले शहरी बाढ़, चक्रवात, कड़ाके की ठंड और भयंकर लू चलने की घटनाएं  हो है. इनके कारण होने वाली मौतों और शहरी स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव के अलावा, ये घटनाएं नगर निकायों के बुनियादी ढांचे, आजीविका और नगर निकायों द्वारा किये जाने वाले आर्थिक कल्याण योजनाओं (General Well-being) पर भारी असर डालती हैं. चूँकि अब वैश्विक आबादी के आधे से अधिक लोग शहरों में रहते हैं  और जनसांख्यिकीय रूप से इसका और बढ़ना तय है. इस कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान हेतु शहरों में जो प्रयास होगा वह काफी हद तक जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए विश्वव्यापी प्रयासों का भविष्य निर्धारित करेगा.

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में शहरों को प्रमुख भूमिका निभाने के लिए, नगर निकायों (यूएलबी) को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कठोर नीति अपनाने को प्राथमिकता देना चाहिए और इसे नगर निकायों की एक प्रमुख जिम्मेदारी माननी ​​चाहिए.

शहरों के ऊपर अतिरिक्त जिम्मेदारी है क्योंकि वे तीन-चौथाई ऊर्जा की खपत करते हैं और लगभग 75 प्रतिशत वैश्विक CO2 का उत्सर्जन करते हैं. वे निस्संदेह जलवायु परिवर्तन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में शहरों को प्रमुख भूमिका निभाने के लिए, नगर निकायों (यूएलबी) को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कठोर नीति अपनाने को प्राथमिकता देना चाहिए और इसे नगर निकायों की एक प्रमुख जिम्मेदारी माननी ​​चाहिए. दुर्भाग्य से भारतीय नगर निकायों के कानून में ‘प्रीप्रेशन एंड इम्प्लीमेंटेशन  ऑफ क्लाइमेट एक्शन प्लान’ को अनिवार्य घोषित करने वाला कोई शब्द मौजूद नहीं है. राज्यों के लिए यह अच्छा होगा कि वे यथाशीघ्र नगर निकायों के कार्य में ‘क्लाइमेट एक्शन प्लान’ की तैयारी, कार्यान्वयन और निगरानी को अनिवार्य करें.

जलवायु परिवर्तन संबंधित प्लान

बहुत से देशों में ‘लोकल क्लाइमेट प्लान्स’ (एलसीपी) कानूनी तौर पर अनिवार्य हैं. यूरोप में, उदाहरणस्वरूप डेनमार्क, फ्रांस, स्लोवाकिया और द यूनाइटेड  किंगडम (यूके) ने एलसीपी के अंगीकरण को अनिवार्य कर दिया है. यूके में एलसीपी का अस्तित्व सन् 2008 से है, जहाँ स्थानीय योजना प्राधिकरणों अपने स्थानीय योजना दस्तावेजों में इसे इन शब्दों में वैधानिक जिम्मेदारी के रूप में शामिल किया है – “ नीतियाँ इस तरह डिजाइन की जाए  कि स्थानीय योजना प्राधिकरणों के अधिकार क्षेत्र की भूमि का विकास एवं उपयोग जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन में योगदान करे ”. कई देशों में यह सलाह भी दी रही है कि शहरी सरकारें जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को स्थानीय नीति की अन्य प्रक्रियाओं के साथ कैसे एकीकृत कर सकती हैं. इस बात के सबूत भी हैं कि राष्ट्रीय नियमों के बनने से अग्रणी शहरों के ‘लोकल क्लाइमेट प्लानिंग’ के कार्य पर ठोस प्रभाव पड़ा है. शहरों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने की तैयारी के लिए अपना होमवर्क ठोस तरीके से करना होगा. उन्हें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को मापने और इसके उत्सर्जन को कम करने की योजना बनाने के लिए एक व्यापक  सिटी एक्शन प्लान (CAP) को विकसित करना होगा.

शहरों को जलवायु-परिवर्तन के शमन के साथ-साथ अनुकूलन के लिए एक सीएपी निर्मित करना होगा. जलवायु परिवर्तन के शमन के अंतर्गत गर्मी उत्पन्न करने वाली ग्रीन हाउस गैसों के वातावरण में प्रवाह को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर कम करने वाली योजनाएं होंगी. इस तरह की कमी के लक्ष्य को इन गैसों के स्रोतों में  कटौती करके पाया जा सकता है, जैसे बिजली एवं यातायात में जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी करके और आर्थिक गतिविधियों को सतत  तरीके से संचालित करके. अनुकूलन के तहत वास्तविक या अपेक्षित भविष्य की जलवायु को समायोजित करना शामिल है और जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों के जोखिम को कम करने की आवश्यकता पर बल देना है, जिसमें चरम मौसमी घटनाएं शामिल हैं. जलवायु परिवर्तन संबंधी शमन और अनुकूलन की इन रणनीतियों को वित्तीय संसाधनों द्वारा समर्थित विशिष्ट कार्यान्वयन परियोजनाओं में विभाजित किया जाना चाहिए. महाराष्ट्र में, शहरों के लिए पहले से ही वार्षिक इन्वायरमेंट  स्टेट्स रिपोर्ट (ईएसआर) तैयार करना अनिवार्य है, जिसके तहत परिवहन, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट, खुली जगह, पानी, सीवरेज इत्यादि का डाटा अपडेट किया जाता है. ईसीआर के डाटा को उस सीमा तक भी विस्तृत किया जा सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन संबंधी इनफॉर्म्ड  डिसीजन (पूर्ण जानकारी प्राप्त निर्णय) लिए जा सकें.

बृहन्मुंबई  म्युनिसिपल  कारपोरेशन  (बीएमसी) पहला भारतीय शहर है जिसने क्लाइमेट एक्शन प्लान तैयार किया है. एमसीएपी (मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान) 2022 का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने में बीएमसी के ध्यान को और तीव्र करना तथा मुबंई के क्लाइमेट रिजेलियेंस को बढ़ाना है. एमसीएपी एक नीतिगत दस्तावेज़ के रूप में योजनाबद्ध दृष्टिकोण से तैयार किया गया है, जो डेटा द्वारा समर्थित वैज्ञानिक ज्ञान और साक्ष्य-आधारित है. यह शहरी बाढ़, तटीय जोखिम, शहरी गर्मी, भूस्खलन और वायु प्रदूषण के दृष्टिकोण से शहर के प्रमुख संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करता है और महत्वपूर्ण  परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने की कार्य योजना के तरीकों की रूपरेखा बनाता है. एमसीएपी को एक ऐसे संस्थागत तंत्र रूप में भी देखा जा सकता है जो जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी गतिविधियों के कार्यान्वयन और निगरानी के समन्वय के लिए ‘क्लाइमेट सेल’ के रूप में कार्य करता है.

शहरों को जलवायु-परिवर्तन के शमन के साथ-साथ अनुकूलन के लिए एक सीएपी निर्मित करना होगा. जलवायु परिवर्तन के शमन के अंतर्गत गर्मी उत्पन्न करने वाली ग्रीन हाउस गैसों के वातावरण में प्रवाह को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर कम करने वाली योजनाएं होंगी.

एमसीएपी इस बात को रेखांकित करता है कि जहाँ बीएमसी की जलवायु परिवर्तन के शमन संबंधी प्रयासों और सिटी रिजेलियेंस के निर्माण की दिशा में किए गए प्रयासों में अग्रणी भूमिका में रहेगा, वहीं राज्य, सभी शहरी संस्थाएं और सभी नागरिक भी इसके महत्वपूर्ण हितधारक हैं और सभी की इसमें अहम भूमिका है. बीएमसी के अलावा उद्योग-जगत, अकादमिक जगत, एनजीओ, समुदाय-आधारित संगठनों, आवासीय सोसाइटियों और प्रत्येक नागरिक को जलवायु परिवर्तन संबंधी शमन और अनुकूलन के महत्वपूर्ण कार्य में शामिल होना होगा. भारत सरकार और राज्य सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्पष्ट नीतिगत निर्देश दें और स्थानीय निकायों की आर्थिक मदद करें. इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों और क्षेत्रों के लिए आवश्यक सभी कार्य करके अपने गंभीर इरादों को जाहिर करना होगा.

चूँकि जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में शहरों को प्रभावित कर रहा है, हालांकि , अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी तीव्रता भिन्न है। फिर भी शहरों को सिर्फ अपने दायरे में काम करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अपने अनुभवों को साझा करने और दूसरों के अनुभवों से सीखने की भी ज़रूरत है. इस दिशा में अपनाये गए बेस्ट प्रैक्टिस साझा भी किए जा रहे हैं. उदाहरणस्वरूप, सी40 सिटिज् क्लाइमेट लीडरशिप  ग्रुप (सी40) ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को प्रमुखता देने और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लिये गए शहरी पहलकदमियों को साझा करने के लिए लगभग सौ के करीब बड़े शहरों को एक मंच से जोड़ा है. इसी तरह, लोकल गवर्नमेंट फॉर सस्टेनेबिलिटी (ICLEI) ने एक टिकाऊ और कम कार्बन वाले भविष्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध 86 देशों में 1,500 से अधिक शहरों का एक वैश्विक नेटवर्क लॉन्च किया है. देश के भीतर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (एनआईयूए) और वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) ने अर्बन क्लाइमेट रिजेलियेंस के निर्माण हेतु पर्यावरण-आधारित सेवाओं और प्रकृति-आधारित समाधानों को मुख्यधारा में लाने के लिए भारत का पहला राष्ट्रीय मंच बनाया है. राज्य स्तर पर, शहरों में जलवायु परिवर्तन योजना संबंधित बेस्ट प्रैक्टिक्सेज की जानकारी और सुझावों का आदान-प्रदान करने वाला मुख्य कार्यकारी अधिकारियों का एक साझा मंच हो सकता है.

आगे की राह

जलवायु संबंधी अनुभवों को अद्यतन करने, साझा करने और प्रसारित करने के लिए सभी हितधारकों के क्षमता निर्माण के लिए संस्थागत समर्थन की आवश्यकता होगी. इसके लिए सतत  प्रयास होना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गतिशील होंगे, जिसके लिए लक्षित कार्रवाई और संबंधित क्षमताओं में समय-समय पर संशोधन की आवश्यकता होगी. चूँकि शहर के सभी हितधारकों के इस प्रयास में शामिल होने की आवश्यकता है और वर्तमान शहरी जीवन के कई पहलू टिकाऊ विकास के विपरीत हैं, इसलिए हरेक को पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अनुरूप अपनी जीवनशैली को बदलना या छोड़ना होगा यानी पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार व्यवहार (ईआरबी) करना होगा. जल संरक्षण, कम अपशिष्ट पैदा करना, सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग, हरित ऊर्जा का अधिक उपयोग और घरों में हरियाली और शहरी कृषि को बढ़ावा देने के प्रति सचेत प्रयास इत्यादि जलवायु-हितैषी क्रियाकलाप हैं जिन्हें प्रत्येक नागरिक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. क्लाइमेट एक्शन प्लान्स अधिक उपयोगी होंगी यदि उनमें वार्षिक उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य शामिल हों और लू, चक्रवात और भूस्खलन के लिए रणनीतियों के संबंध में एक बहु हितधारक  कार्य योजना निर्मित की जाए. वास्तव में संपूर्ण मानवता के सामने खड़ी इस बड़ी चुनौती से निपटने में किसी तरह कोताही बर्दाश्त नहीं की जा सकती.

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