Author : Ramanath Jha

Expert Speak Urban Futures
Published on Jan 17, 2025 Updated 0 Hours ago

भारतीय शहरों में जलवायु संबंधी संकट बढ़ते जा रहे हैं. बार-बार प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं. अब शहरीकरण को लेकर जो भी चर्चाएं हो रही हैं, उसमें ऐसी शहरी नियोजन की बात की जा रही है, जो इन जलवायु संकटों का सामना कर सके.

जानिये, शहरी योजना बनाते समय जलवायु संकट को केंद्र में रखना आखिर क्यों ज़रूरी है?

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भारतीय शहरों में मौसम में चरम बदलाव की घटनाओं का ख़तरा लगातार बढ़ रहा है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की तरफ से दिए जा रहे आंकडों और विश्लेषणों से ये बात सामने आई है कि मौसम में तीव्र उतार-चढ़ाव आ रहा है. इसमें भीषण गर्मी, हाड़तोड़ शीत लहर और बाढ़ की घटनाएं शामिल हैं. विशेष रूप से तटीय शहरों में चक्रवातों, बहुत ज्यादा बारिश और समुद्र स्तर के लगातार बढ़ने की आशंका है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण एवं विकास संस्थान जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में तीव्र बदलाव की घटनाओं के बारे में लगातार चेतावनी दे रही हैं. उनका कहना है कि इस तरह की आपदाएं बार-बार आएंगी और इनकी गंभीरता भी ज़्यादा होगी.

भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

उदाहरण के लिए, मौसम विभाग के मुताबिक 2022 में देश के 16 राज्यों में गर्म लहरों वाले दिनों की संख्या (लगभग 280) काफ़ी ज्यादा था. पूर्व की तुलना में गर्मी वाले दिनों में बढ़ोत्तरी दिखी. आईएमडी ने ये भी बताया कि 2022 में वार्षिक औसत भूमि सतह वायु तापमान 1981-1991 की अवधि में दीर्घकालिक औसत से +0.51 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा था. 2022 का साल 1901 के बाद से पांचवां सबसे गर्म वर्ष रहा. इतना ही नहीं उस साल देश में शीत लहर वाले 57 दिन दर्ज किए गए. शीत लहर वाले दिनों की सबसे ज़्यादा संख्या हरियाणा में रिकॉर्ड की गई. इसके अलावा, कई शहरों में बाढ़ की घटनाओं से जान-माल का भारी नुकसान हुआ.

भविष्य में देश की आबादी का बड़ा हिस्सा शहरों में रहेगा. शहरी नियोजन पर अध्ययन करने वाले स्कॉलर्स, सिविल सोसायटी और सरकारी प्रशासकों अब इस बात पर सहमत हैं कि इसे लेकर गंभीर कदम उठाने का वक्त आ गया है. 

भारतीय शहरों में जलवायु संबंधी संकटों की बढ़ती पुनरावृत्ति (बार-बार चरम मौसम की स्थिति) को देखते हुए इससे निपटने के उपायों पर होनी वाली चर्चा भी केंद्र में आ गई है. भारतीय शहरों को इस हिसाब से ढालने की बात की जा रही है कि वो इस तरह की संकटों को झेल सकें. आने वाले वक्त में भारत में शहरीकरण की रफ़्तार और तेज़ होने का अनुमान है. भविष्य में देश की आबादी का बड़ा हिस्सा शहरों में रहेगा. शहरी नियोजन पर अध्ययन करने वाले स्कॉलर्स, सिविल सोसायटी और सरकारी प्रशासकों अब इस बात पर सहमत हैं कि इसे लेकर गंभीर कदम उठाने का वक्त आ गया है. इसे लेकर व्यापक सहमति है कि ये उपाय विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए. शहरों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से बचाने के लिए जो भी कदम उठाए जाएं, वो अच्छी तरह से परिभाषित हों. चूंकि दुनिया अभी कार्बन तटस्थता (न्यूट्रालिटी)के लक्ष्य से बहुत दूर है, इसलिए जलवायु लचीलापन और उसी के हिसाब से खुद को ढालने पर ज़्यादा ज़ोर देना ज़रूरी है.

जलवायु परिवर्तन का भारतीय शहरों पर बहुत ही जानलेवा प्रभाव दिख रहा है. भारत में 2021 में जारी एक विश्लेषण के मुताबिक  दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई और लखनऊ में वायु प्रदूषण की वजह से 120,000 लोगों की मौत हुई. मौसम में आने वाले चरम बदलाव की घटनाएं नगर निगम के बुनियादी ढांचे और लोगों की आजीविका को काफ़ी हद तक नष्ट कर देती हैं. शहरों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी इसका बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से नौकरियों को जो नुकसान होगा, उसके कारण 2030 तक भारत की जीडीपी में 4.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी.

ऐसे में ये बड़ा सवाल है कि क्या क्या भारतीय शहरों को जलवायु संकट के ज़ोखिमों के हिसाब से तैयार किया जा रहा है. जिन लोगों पर शहरी प्रशासन की जिम्मेदारी है, क्या वो जलवायु लचीलेपन को शहरी नियोजन के एक प्रमुख हिस्से के रूप में देख रहे हैं.

जलवायु संकट से निपटने में भारत का रिपोर्ट कार्ड कैसा है? 

कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत के किसी भी शहर की रिपोर्ट ऐसी नहीं है, जिसे देखकर ये कहा जा सके कि वो जलवायु संकट से निपटने पर काम कर रहे हैं. सतत विकास के (एसडीजी) जो 17 लक्ष्य तय किए गए हैं, उनमें से एक लक्ष्य शहरों को लेकर भी है. SDG11 में (टिकाऊ शहर और समुदायों) के बारे में बात की गई है. इसका पहला लक्ष्य शहरों और रिहाइशी बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, हर तरह की मुसीबत से निपटने में सक्षम और टिकाऊ बनाना है. सतत विकास रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत एसडीजी 11 को हासिल करने की राह पर नहीं चल रहा है. भारतीय शहरों की गिरती गुणवत्ता हाल के दिनों में काफ़ी सुर्खियों में रही है. सबसे चिंताजनक बात ये है कि ये गिरावट खास तौर पर भारत के दो सबसे महत्वपूर्ण शहरों- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुंबई में दिख रही है, विशेष रूप से प्रदूषित हवा के संदर्भ में. दिल्ली में सर्दियों के सीज़न में हवा की गुणवत्ता में बहुत गिरावट आ जाती है. प्रदूषित वायु का ये सामान्य पैटर्न हो गया है. साल दर साल दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. जहां तक मुंबई की बात है, उसके बारे में पहले ये माना जाता था कि समुद्र के किनारे होने के कारण वो शहर की हवा को साफ रखता है लेकिन यहां भी नवंबर 2023 से वायु प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया है.

दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में हवा से लेकर पानी तक की स्थिति से पता चलता है कि इन शहरी क्षेत्रों ने खुद को जलवायु के हिसाब से बदलने पर आम तौर पर बहुत कम ध्यान दिया है. ये हाल तब है, जब सरकार की तरफ से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु मिशन (CAM-INDIA) जैसी पहल शुरू की गई हैं. इस मिशन का लक्ष्य भारत के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में पांच साल में PM2.5 के स्तर को करीब एक तिहाई तक कम करना है. जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा करने में शहरों का योगदान ज़्यादा है. इसके बावजूद इसे लेकर उन्होंने जो लापरवाहपूर्ण रवैया अपना रखा है, उसे देखते हुए उनकी प्रतिक्रिया को संवेदनाहीन कहा जा सकता है. शहर वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा का करीब 75 प्रतिशत का उपभोग करते हैं. कार्बन डाईऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन में उनकी हिस्सेदारी लगभग 75 प्रतिशत उत्पन्न करते हैं. ऐसे में, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में शहरों की भूमिका बड़ी होनी चाहिए. 

जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा करने में शहरों का योगदान ज़्यादा है. इसके बावजूद इसे लेकर उन्होंने जो लापरवाहपूर्ण रवैया अपना रखा है, उसे देखते हुए उनकी प्रतिक्रिया को संवेदनाहीन कहा जा सकता है. 


जलवायु परिवर्तन के संकट को झेलने में सक्षम शहरों के निर्माण में राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण अहम भूमिका है. अब तक सरकारों का ये दृष्टिकोण रहा है कि वो जलवायु परिवर्तन को एक ऐसी सार्थक गतिविधि के रूप में देखते हैं, जिससे निपटने का काम शहरी प्रशासन द्वारा गंभीरता से किया जा रहा है. इस नज़रिए से बात नहीं बनेगी. ये इतना महत्वपूर्ण काम है कि इसे शहरी विकास का सिर्फ एक विकल्प मानकर नहीं छोड़ा जा सकता. भारतीय शहरों को जिन कानूनों के आधार पर प्रशासित किया जाता है, उनमें जलवायु कार्य योजनाओं की तैयारियों और उनके कार्यान्वयन का ज़िक्र नहीं है. शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) द्वारा अब इसे अनिवार्य काम में शामिल करना होगा, फिर चाहे इसके लिए कानूनों में संशोधन करने की ज़रूरत क्यों ना पड़े. 

जलवायु कार्य योजना पर वैश्विक स्तर पर कितना काम? 

हर शहर को जलवायु कार्य योजना (CAP) तैयार करने और अपने वार्षिक बजट में इसके लिए रकम की आवंटन के प्रावधान का अधिकार दिया जाना चाहिए. ये भी सुनिश्चित करवाना चाहिए कि वो सालाना आधार पर इस कार्य योजना को लागू करवा सकें. यह किसी भी तरह से कोई नया, मौलिया या फिर काल्पनिक विचार नहीं है. फ्रांस, ब्रिटेन, स्लोवाकिया और डेनमार्क जैसे देशों ने पहले ही स्थानीय जलवायु योजनाओं को अनिवार्य बना दिया है. इतना ही नहीं अमेरिका (सैन फ्रांसिस्को, शिकागो, बोस्टन, लॉस एंजिल्स), दक्षिण कोरिया (सियोल), जापान (टोक्यो), ऑस्ट्रेलिया (सिडनी, मेलबर्न), इंडोनेशिया (जकार्ता) और दक्षिण अफ्रीका (केप टाउन, डरबन) के कई शहरों ने भी जलवायु कार्य योजना तैयार की है. पेरिस जलवायु समझौते में जो बातें तय की गईं थी, उसी हिसाब से इन्हें तैयार किया गया है.


MCAP 2022 का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और मुंबई को जलवायु संकट के ख़तरों से निपटने के उपायों को मज़बूत करने पर बीएमसी का ध्यान बढ़ाना है. इसमें शहरी बाढ़, तटीय ज़ोखिमों, शहरों में गर्मी, भूस्खलन और वायु प्रदूषण को सबसे बड़े ख़तरों के रूप में पहचाना गया है. 


भारत की बात करें तो मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने जलवायु कार्य योजना तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई है. चेन्नई ने भी उसकी राह पर चल रहा है. MCAP 2022 का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने और मुंबई को जलवायु संकट के ख़तरों से निपटने के उपायों को मज़बूत करने पर बीएमसी का ध्यान बढ़ाना है. इसमें शहरी बाढ़, तटीय ज़ोखिमों, शहरों में गर्मी, भूस्खलन और वायु प्रदूषण को सबसे बड़े ख़तरों के रूप में पहचाना गया है. इस कार्य योजना को रणनीतिक परियोजनाओं में लागू करने के लिए संसाधन जुटाने के तरीकों की रूपरेखा तैयार की गई है. एमसीएपी जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी गतिविधियों के कार्यान्वयन और निगरानी के समन्वय के लिए एक 'क्लाईमेट सेल' के गठन और उसे संस्थागत तंत्र के रूप में स्थापित करने का भी सुझाव देता है. हालांकि, सीएपी को लेकर जिस तरह की तैयारी की जा रही है, वो इसके कार्यान्वयन में प्रतिबद्धता से मेल नहीं खाती है. बीएमसी को इसके लिए अभी और बहुत कुछ करना होगा. दूसरे शहरों को भी इसी तरह कार्ययोजना तैयार करनी होगी. इसके कार्यान्वयन के लिए संस्थागत और वित्तीय तंत्र तैयार करना होगा.

जहां तक छोटे शहरों की बात है, वहां जलवायु कार्य योजना के लिए शुरुआती दौर में राज्य सरकारों को उनकी मदद करनी होगी. शहरी निकायों द्वारा किए जाने वाले सभी कामों की अनिवार्य रूप से जलवायु दृष्टिकोण से जांच की जानी चाहिए. इसमें हर तरह के निर्माण कार्य के नियम, कूड़ा प्रबंधन, ग्रीन एरिया को अधिकतम करना और ग्रीन टेक्नोलॉजी को अपनाना भी शामिल है. इसके साथ ही हर राज्य को एक कॉमन प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करना चाहिए, जहां जलवायु कार्य योजना के सबसे बेहतरीन को उपायों को साझा किया जा सके. शैक्षिक और क्षमता निर्माण संस्थानों को भी पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए अपना समय और संसाधन देने होंगे. इनमें जल संरक्षण को बढ़ावा देने वाली आदतों का विकास, कम से कम कूड़ा उत्पन्न करना, सार्वजनिक परिवहन का ज़्यादा इस्तेमाल और घरों और बहुमंजिला इमारतों में शहरी कृषि (हरियाली) बढ़ाने का अभ्यास शामिल होगा. 

निष्कर्ष

जब भी जलवायु संकट से निपटने और उसके हिसाब से ढलने के उपायों को पेश किया जाता है, तो ये महत्वपूर्ण है कि ऐसी नीतियां स्थिरता के सिद्धांतों के आधार पर बनाई जाएं. एक बड़ा सवाल ये भी है कि एक शहर कितने मानव घनत्व को सहन कर सकता है. यानी एक शहर में अधिकतम कितने लोगों को रखने की क्षमता है? कितने निर्माण कार्य को इजाज़त दी जा सकती है? शहर में कितने खुले स्थान रखने चाहिए. शहरी विकास की योजना बनाते समय इन सब बातों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए. ये संभव नहीं है कि कोई भी शहर अंधाधुंध और बिना ठोस योजना के विकास की गतिविधियों को जारी रखे और फिर ये आशा करे कि वो जलवायु संकट से निपटने के कुछ उपाय अपनाकर इसके नकारात्मक परिणामों का सामना कर लेंगे.


रमानाथ झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.

ये निबंध एक विस्तृत सार संग्रह "जलवायु संकट का सामना : शहरों में प्रतिरोधक क्षमता" का हिस्सा है.

[1]भारतीय मौसम विभाग (IMD)भारत सरकार का संस्थान है. ये मौसम की निगरानी और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के लिए जिम्मेदार है. भारत में मौसम की स्थिति और जलवायु परिवर्तन के बारे में आईएमडी नियमित रूप से रिपोर्ट प्रकाशित करता है.

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