दुनिया ने हाल ही में विनाशकारी यूक्रेन संकट की पहली वर्षगांठ मनाई है. इस संकट में रूस को चीन की ओर से घातक हथियारों की सहायता करने कीवजह से संघर्ष को लंबा खींचते रहने का आरोप भी सभी के लिए चिंता का विषय बनकर उभरा है. संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के विदेश मंत्री एंटनीब्लिंकन और सीसीपी के केंद्रीय विदेश मामलों के निदेशक वांग यी के बीच 18 फरवरी 2022 को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के दौरान इस मामले को लेकरएक विशेष, लेकिन तनावपूर्ण बैठक हुई थी. इस पृष्ठभूमि में, यह मूल्यांकन करना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे को चीन के घरेलू हलकों में कैसे देखा जारहा है और चीन में आंतरिक रूप से इसे लेकर क्या चर्चा की जा रही है.
यह मूल्यांकन करना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे को चीन के घरेलू हलकों में कैसे देखा जा रहा है और चीन में आंतरिक रूप से इसे लेकर क्या चर्चा की जा रही है.
चीनी इंटरनेट पर चल रही चर्चाओं, जिसे चीनी प्रशासन की आधिकारिक लाइन भी कहा जाता है, में यह बात प्रमुखता से उभरकर आ रही है कि पश्चिमीदेशों के यह आरोप निराधार है. इन चर्चाओं के अनुसार पश्चिमी देश बिना किसी सबूत के चीन के खिलाफ मिथ्या अभियान चला रहे है. ये देश ऐसाइसलिए कर रहे है ताकि चीन की राजनयिक शक्ति की ऊर्जा इन आरोपों का जवाब देने में ही व्यर्थ खर्च हो जाएं. पश्चिमी देशों की कोशिश इस आरोपकी आड़ में चीन को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग करते हुए विभिन्न अनुचित कारणों की आड़ में चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की है. यह भीतर्क दिया जा रहा है कि एक ओर तो अमेरिका अपने सहयोगियों को यूक्रेन को सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, जबकि दूसरीओर अमेरिका चाहता है कि वह यह सुनिश्चित करें कि चीन भी किसी एक पक्ष का चुनाव कर ले, ताकि चीन के खिलाफ एक रेड लाइन खींचकर उसकीघेराबंदी की जा सके. अत: बीजिंग से निकलने वाला संदेश यह है कि चीन कभी भी यूक्रेन संकट में किसी पक्ष का साथी नहीं रहा है. ऐसे में उसे इससंकट में खींचने का कोई भी प्रयास विफल होना तय है.
चीनी प्रतिक्रिया
चीनी सामरिक समुदाय के भीतर भी इस मसले पर गुस्सा दर्शाने वाली प्रतिक्रिया देखी जा रही है. वहां यह दावा किया जा रहा है कि अमेरिका का उद्देश्यकेवल चीन के हितों को नुकसान पहुंचाना है. अमेरिका को इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं है कि चीन-अमेरिका संबंधों को स्थिर कैसे किया जाए. अमेरिका हमेशा से ही चीन को कुछ ‘‘दिए’’ बगैर, उससे कुछ ‘‘निकालने’’ की कोशिश में जुटा रहता है. लेकिन अब अमेरिका की यह नीति कारगरसाबित नहीं होने वाली है. चीनी इंटरनेट पर एक लेख पढ़ने के लिए उपलब्ध है, जिसके अनुसार, ‘‘अमेरिका को यह अधिकार नहीं है कि वह चीन सेअपनी मांगों को मानने के लिए बाध्य करें. यदि अमेरिका चाहता है कि चीन वर्तमान यूक्रेन संकट में रूस को तथाकथित ‘‘घातक हथियार’’ की आपूर्ति नकरें, तो पहले अमेरिका उसे भी ताइवान को हथियारों की बिक्री बंद करनी होगी.’’
कुछ अन्य इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने चीन की बढ़ती सैन्य क्षमता को लेकर अमेरिका और नाटो की चिंता का मजाक भी उड़ाया है. इन लोगों का मानना हैकि चूंकि चीन की पहचान अब दुनिया में सबसे पूर्ण उद्योग वाले देश के रूप में एक वैश्विक निर्माणकर्ता की बन गई हैं, अत: अगर चीन ने एक बार रूसको सहायता दे दी तो, रूस को वर्तमान में कार्यरत लगभग सभी प्रकार के हथियार प्राप्त हो जाएंगे. ऐसा होने पर रूसी-यूक्रेनी युद्ध में वर्तमान स्थिति पूरीतरह से पलट जाएगी. इन लोगों का यह भी मानना है कि ऐसी स्थिति में पश्चिमी दुनिया के चाहे जितने देश यूक्रेन की सहायता करें, लेकिन चीन का साथमिलने की वजह से रूस इस युद्ध में अपराजेय साबित हो सकता है.
हालांकि डींग हांकने और घमंड करने के बावजूद कुछ चीनी विश्लेषकों यह स्वीकार करते हैं कि चीन के लिए यह स्वाभाविक है कि वह रूस को सैन्यसहायता प्रदान करने के पश्चिमी देशों के आरोपों का आधिकारिक तौर पर खंडन करें. इसी प्रकार चीन, रूस के उस प्रस्ताव पर भी ध्यान नहीं दे रहा है, जिसमें रूस ने उससे रूस-चीन गठबंधन को आधिकारिक रूप से स्वीकारने को कहा है. इसका कारण यह है कि रूस के प्रस्ताव पर सहमति जताकर चीनएक ही समय में अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे दो बड़े बाजारों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता. हालांकि इन विश्लेषकों का जमीनी स्तरपर मानना है कि यूक्रेन युद्ध में चीन को पश्चिमी ब्लॉक को निर्णायक जीत से रोकना ही चीन के हित में होगा. यदि ऐसा हुआ तो इस बात की पूरीसंभावना है कि पश्चिमी ब्लॉक भविष्य में चीन के खिलाफ एकजुट हो जाएगा. अत: चीन के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस युद्ध में रूस का समर्थनकरते हुए युद्ध के मैदान में उसकी पूरी हार को रोके. भले ही चीन को ऐसा करने के लिए अप्रत्यक्ष अर्थात तीसरे देशों के माध्यम से सहायता पहुंचाने कातरीका ही क्यों न अपनाना पड़े, उसे ऐसा करना चाहिए.
इस बात की पूरी संभावना है कि पश्चिमी ब्लॉक भविष्य में चीन के खिलाफ एकजुट हो जाएगा. अत: चीन के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस युद्ध में रूस का समर्थन करते हुए युद्ध के मैदान में उसकी पूरी हार को रोके. भले ही चीन को ऐसा करने के लिए अप्रत्यक्ष अर्थात तीसरे देशों के माध्यम से सहायता पहुंचाने का तरीका ही क्यों न अपनाना पड़े.
रूस की सहायता करने के लिए आर्थिक और व्यापार सहायता को भी सबसे महत्वपूर्ण तरीकों के रूप में देखा जा सकता है. युद्ध की वजह से रूस केखिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूसी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. यह भी कहा जा रहा है कि चीन, रूस के साथ अपना व्यापार बढ़ाकर भीउसकी सहायता कर सकता है. 2019 में, चीन-रूस व्यापार 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, और 2022 में व्यापार की मात्रा 200 बिलियन अमेरिकीडॉलर के करीब है. चूंकि चीन और रूस ने सैकड़ों अरब डॉलर के तेल और गैस से जुड़े रणनीतिक अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं, अतः इस बात पर भी चर्चाहो रही है कि रूस को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए इनका आयात और भुगतान अग्रिम रूप से किया जा सकता है. इस काम को लेकर किया गएअनुबंध यह भी सुनिश्चित करते हैं कि इस अग्रिम भुगतान को आधार बनाकर चीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.
आगे की राह
इसी प्रकार, चीन छोटे हथियारों की आपूर्ति के जरिए रूस को अप्रत्यक्ष सहायता के तरीके भी तलाश रहा है. यूक्रेन संकट पहले ही बड़े पैमाने पर एकविकट संघर्ष में बदल गया है, जिसमें रोजाना दोनों पक्षों में भारी मात्रा में गोला-बारूद की जरूरत पड़ रही है जो हथियारों के खपत को बढ़ा रही है. एकओर जहां यूक्रेन में यूरोपीय और अमेरिकी देशों में अक्सर गोला-बारूद की कमी देखी जाती है, वहां इन पर्यवेक्षकों के अनुसार, रूस के पास पर्याप्तगोला-बारूद है - जिसका श्रेय, चीन को दिया जाना चाहिए. इन लोगों का मानना है कि चीनी और रूसी हथियारों के कई स्पेसिफिकेशन अर्थातविशेषताएं एक जैसे हैं. उदाहरण के लिए, चीन के पास 152 मिमी हॉवित्जर शेल्स अर्थात गोले की विशाल उत्पादन क्षमता मौजूद है, जो रूसी-यूक्रेनीमोर्चे पर सबसे अधिक खपत वाला गोला-बारूद है. माना जाता है कि चीन ने 2022 में विदेशों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार बेचें है. उसनेये गोला-बारूद जॉर्डन, उत्तर कोरिया आदि देशों को निर्यात किए थे, जहां से ये रूस वापस आ रहे है.
तीसरी बात रक्षात्मक हथियारों की आपूर्ति से जुड़ी है. कई चीनी पर्यवेक्षकों की राय है कि भले ही चीन रूस को आक्रामक हथियारों की आपूर्ति नहीं करसकता है, लेकिन वह रूस को रक्षात्मक हथियार प्रदान कर सकता है. इसमें शरीर का कवच, हेलमेट, सैन्य जूते, सुरक्षात्मक कपड़े, तत्काल राशन आदि. रूस को इन चीजों की भी बहुत आवश्यकता है. इंटरनेट पर इस बात की भी चर्चा है कि कैसे पिछले साल अक्टूबर और नवंबर में अनेक रूसी एएन-124 और Il-76 परिवहन विमानों ने चेंगदू, शंघाई, झेंगझोऊ और चीन के अन्य इलाकों पर बार-बार उड़ान भरी थी. इसी प्रकार कैसे रूस को भाड़े पर सैनिकमुहैया करवाने वाले वैग्नर समूह ने चीन से भारी मात्रा में हथियारों की खरीद की थी. चीनी इंटरनेट पर आकलन किया जा रहा है कि इस तरह कीगतिविधियां न केवल जारी रहेगी, बल्कि इस में इज़ाफ़ा भी देखा जाएगा. इसका कारण यह है कि इसमें यूएस और उसके सहयोगी इस वजह से हस्तक्षेपनहीं कर सकते, क्योंकि यह गतिविधियां दो राष्ट्रों के बीच चल रही नगरीय-वाणिज्यिक गतिविधियां है.
चौथे, दोहरे उपयोग वाले अनेक उपकरण हैं, जिन्हें सैन्य उपकरण और उपभोक्ता सामान दोनों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे में चीन इससंभावना का पता लगा रहा है कि क्या वह इन उपकरणों की आपूर्ति कर सकता है. विशेष रूप से चीनी घरेलू निजी कंपनियां रूस को नागरिक ड्रोन, वायरलेस कैमरा और रिमोट कंट्रोल वाले जासूसी टैंक, स्मार्ट कार्ड, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, पॉलीसिलिकॉन, सेमीकंडक्टर की आपूर्ति कर सकती हैं. ऐसा होने पर इन विनिर्माण उपकरण और अन्य सामान की आपूर्ति रूसी सेना के कंप्यूटरीकरण में मौजूद खामी को दूर करने में सहायक साबित होगी.
विशेष रूप से चीनी घरेलू निजी कंपनियां रूस को नागरिक ड्रोन, वायरलेस कैमरा और रिमोट कंट्रोल वाले जासूसी टैंक, स्मार्ट कार्ड, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, पॉलीसिलिकॉन, सेमीकंडक्टर की आपूर्ति कर सकती हैं.
पांचवीं बात यह है कि इन विश्लेषकों का ये भी तर्क है कि चीन रूस के लिए अंतरराष्ट्रीय जनमत बनाने में सहायता की पेशकश कर सकता है और वहऐसा कर भी रहा है. इस विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करते हुए चीन यह बात साबित भी कर रहा है. इसके अलावा चीन उन प्रस्तावों से भीदूरी बना रहा है जो रूस के लिए अनुकूल नहीं हैं.
कुल मिलाकर, चीन में कई लोगों का मानना है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति में, रूस का समर्थन करने में ही चीन की भलाई है. और इसलिए चीन कीओर से रूस के खिलाफ लगाए प्रतिबंधों के बावजूद अन्य बहानो से रूस को दिए जा रहे समर्थन के लिए चीन में व्यापक जनसमर्थन देखा जा रहा है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.