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जिस वक़्त चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए भारत आ रहे थे, उस वक़्त चीन में भारत को लेकर चर्चा काफ़ी हद तक निराशाजनक थी. कुछ लोग तो ऐसे भी है जिन्होंने भारत को लेकर अपनी नाराज़गी जताई क्योंकि उन्हें लगता है कि "भारत अपनी अध्यक्षता का दुरुपयोग करके चीन-भारत सीमा संघर्ष को SCO के दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है" और "वो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की घुसपैठ के बारे में चीन के साथ-साथ दूसरे देशों को सबूत (लिखित प्रमाण और सैटेलाइट तस्वीरें) मुहैया करा के ख़ुद को एक बहुपक्षीय मंच पर पीड़ित के तौर पर दिखाना चाहता है वहीं चीन को बदनाम करना चाहता है."
चीन ने पिछले कुछ दिनों में भारत के "अप्रत्याशित क़दम" से ख़ुद को बचाने के लिए और दक्षिण-पश्चिम सीमा को मज़बूत करने के लिए कई उपाय किए है. इन उपायों में चीन-भूटान सीमा संवाद का बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करना, अरुणाचल प्रदेश के भीतर कई जगहों को नया नाम देना और भारतीय पत्रकारों के वीज़ा को निलंबित करना शामिल है.
वास्तव में ये दलील दी जाती है कि चीन ने पिछले कुछ दिनों में भारत के "अप्रत्याशित क़दम" से ख़ुद को बचाने के लिए और दक्षिण-पश्चिम सीमा को मज़बूत करने के लिए कई उपाय किए है. इन उपायों में चीन-भूटान सीमा संवाद का बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करना, अरुणाचल प्रदेश के भीतर कई जगहों को नया नाम देना और भारतीय पत्रकारों के वीज़ा को निलंबित करना शामिल है. इन क़दमों में जिसकी चर्चा और तारीफ़ चीन के मीडिया में सबसे ज़्यादा हो रही है (लेकिन भारतीय/अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उतना ज़िक्र नहीं हो रहा है) वो ये है कि किस तरह 3 अप्रैल को- भूटान के प्रधानमंत्री के द्वारा एक विवादित बयान जारी करने और चीन की सरकार के द्वारा अरुणाचल प्रदेश के भीतर कुछ जगहों के नये नाम के साथ "मानकीकृत" नक्शा प्रकाशित किए जाने के कुछ दिनों के बाद- तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सरकार ने LAC पर स्थित तिब्बत के दो सीमावर्ती शहरों- मिलिन और कूओना- को अपग्रेड करके शहरी राज्य में बदलने और उन्हें सीधे क्षेत्रीय सरकार के प्रशासन के तहत करने का ऐलान किया. सिर्फ़ इतना ही नहीं कूओना सिटी की स्थानीय सरकार के मुख्यालय को भी कूओना से बदल कर लेबु गऊ सीमा क्षेत्र में चीन जिसे मामा मेन्बा एथनिक टाउनशिप (मामा टाउनशिप) कहता है, वहां ले जाया गया.
चीन के आकलन के अनुसार इस क़दम का बहुत ज़्यादा सामरिक महत्व है क्योंकि दो नये स्थापित शहर मिलिन और कूओना मैकमोहन रेखा से बंटे हुए है जहां “मिलिन सिटी के कुछ इलाक़े भारत के पास है जबकि कूओना सिटी के लगभग दो-तिहाई क्षेत्र पर वास्तव में भारत का नियंत्रण है”. इस बीच मामा टाउनशिप, जहां कूओना सिटी की स्थानीय सरकार को ले जाया गया है, LAC के बेहद नज़दीक है और इसकी पश्चिम सीमा पर भूटान स्थित है. ये 1962 के चीन-भारत युद्ध के दौरान लेबुगऊ में लड़ रही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र था. ये वही जगह है जहां उस समय PLA का कमांड पोस्ट था. तवांग क्षेत्र और शिशंकऊ दर्रा मामा टाउनशिप के नज़दीक हैं. चीन के कुछ रणनीतिकार मानते हैं कि ये क़दम दक्षिणी चीन सागर में चीन के द्वारा सांशा सिटी की स्थापना की तरह है. वो ये भी सोचते है कि चीन की सरकार अब “दक्षिणी तिब्बत” विवाद को लेकर भी दक्षिणी चीन सागर में अपने सफल अनुभव (फिर से हासिल करना एवं द्वीप निर्माण, बुनियादी ढांचे के निर्माण में मज़बूती और प्रशासनिक इकाइयों को अपग्रेड करना इत्यादि) को दोहराने के प्रति उत्सुक है. चीन का आकलन है कि ये क़दम एक तीर से तीन शिकारों को ढेर कर देगा.
पहला, इसका लक्ष्य चीन-भारत सीमा के पूर्वी खंड पर वास्तविक नियंत्रण एवं प्रबंधन को बढ़ाना है और अरुणाचल प्रदेश के ऊपर चीन की संप्रभुता के दावे को मज़बूत करना है. अब आदेश शहरी निर्माण करना; इन नये स्थापित शहरों में हवाई अड्डों एवं सड़क समेत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करना; क्षेत्र में स्थित महत्वपूर्ण पर्वतों, नदियों एवं पहाड़ी दर्रों पर नियंत्रण की क्षमता विकसित करना और कम आबादी वाले इन क्षेत्रों में लोगों के लगातार आगमन को सुनिश्चित करना है. सोच ये है कि इन शहरों को भविष्य में भारत के ख़िलाफ़ संघर्ष के दौरान इस्तेमाल किया जाए, उनका उपयोग युद्ध के क्षेत्र के रूप में किया जाए. इस बीच तुलनात्मक रूप से शांतिपूर्ण समय में इन शहरों का इस्तेमाल भूटान के साथ आर्थिक आदान-प्रदान के अनुसरण की चीन की पुरानी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में किया जाए और भारतीय बाज़ार में भूटान की विशेष पहुंच का उपयोग करके अपने समुद्र से दूर पश्चिमी प्रांतों के लिए भारत के दूरदराज के क्षेत्रों को खोला जाए.
दूसरा, अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को लेकर और ज़िद दिखाकर चीन चेतावनी देना चाहता है कि ख़राब होते चीन-अमेरिका संबंधों से भारत फ़ायदा उठाने की कोशिश न करे. इसमें चीन-भारत सीमा विवाद को लेकर “ज़्यादा फ़ायदा” हासिल करना शामिल है. 18 मार्च को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के भाषण और 29 मार्च को थल सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के भाषण का हवाला देकर चीन के कई विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने अभी तक चीन के द्वारा 10 चरणों से ज़्यादा की कमांडर स्तर की सीमा वार्ता करने की पहल की तारीफ़ नहीं की है और भारत चीन की शर्तों पर विवाद ख़त्म करने के लिए अनिच्छुक है, इस तरह भारत चीन की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर शांति का माहौल नहीं चाहता है. चीन के विश्लेषक कहते हैं कि शांति की जगह भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों के हितों का ध्यान रख रहा है और ख़राब हालात का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहा है. चीन के विश्लेषकों के मुताबिक़ भारत अमेरिका-चीन के बीच संघर्ष का इस्तेमाल ख़ुद को आगे बढ़ाने के लिए कर रहा है (ठीक उसी तरह जैसे उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ अमेरिका के युद्ध ने जापान को आगे बढ़ाया और वियतनाम के ख़िलाफ़ अमेरिका के युद्ध ने दक्षिण कोरिया को आर्थिक चमत्कार करने की अनुमति दी). इस तरह अरुणाचल मुद्दे को उठाकर और ये संदेश पहुंचाकर कि चीन वास्तव में इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर सकता है, वो भारत पर दबाव डालना चाहता है कि चीन को लेकर भारत अपना रुख़ नरम करे.
भारत ने अभी तक चीन के द्वारा 10 चरणों से ज़्यादा की कमांडर स्तर की सीमा वार्ता करने की पहल की तारीफ़ नहीं की है और भारत चीन की शर्तों पर विवाद ख़त्म करने के लिए अनिच्छुक है, इस तरह भारत चीन की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर शांति का माहौल नहीं चाहता है.
चीन का तीसरा उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय, ख़ास तौर पर अमेरिका, को ये बताना है कि मैकमोहन रेखा “अवैध और नियम विरुद्ध” है और इसे मान्यता नहीं दी जानी चाहिए. 14 मार्च को अमेरिका के द्विदलीय सीनेट में ये प्रस्ताव पारित किया गया कि “मैकमोहन रेखा” चीन और अरुणाचल प्रदेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा है और अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अविभाज्य अंग है. चीन के ज़्यादातर समीक्षकों का मानना है कि LAC के पूर्वी हिस्से में चीन का मौजूदा क़दम अमेरिका के द्वारा उठाए गए “उकसाने वाले रवैये” का सीधा जवाब है. हाल का एक और घटनाक्रम जिसने चीन के रणनीतिक समुदाय को काफ़ी चिंतित कर दिया है और जिसको लेकर बहुत ऑनलाइन चर्चा हो रही है, वो है 9 दिसंबर 2022 को चीन-भारत सीमा संघर्ष को लेकर अमेरिका की संभावित भूमिका, विशेष रूप से 2020 में हस्ताक्षरित भू-स्थानिक सहयोग को लेकर बुनियादी आदान-प्रदान एवं सहयोग समझौते (BECA) के हिस्से के रूप में दोनों देशों के बीच खुफ़िया जानकारी साझा करने की व्यवस्था. चीन के समीक्षकों के लेखों से पता चलता है कि मुख्य चिंता ये है कि अगर अमेरिका की खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की क्षमता, जिसके बारे में माना जाता है कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है, को अगर वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी और सबसे सक्षम फोर्स में से एक भारतीय सेना की पहाड़ में लड़ाई करने की क्षमता के साथ मिला दिया जाए तो ये विवादित चीन-भारत सीमा पर PLA के लिए एक बड़ा ख़तरा बन सकता है. खुफ़िया जानकारी साझा करने के अलावा इस बात को लेकर भी चिंताएं हैं कि भविष्य में अमेरिका भारत को और ज़्यादा आधुनिक हथियार मुहैया करा सकता है, चीन-भारत सीमा पर ज़्यादा बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास हो सकते है. ये सभी बातें चीन के हितों के लिए नुक़सानदेह समझी जाती हैं. इसका कारण काफ़ी हद तक ये है कि चीन और भारत के क़दम एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में अभी तक चीन के लगातार आगे बढ़ने को वास्तव में एक हद तक रोक सकते हैं. फूडान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर झांग जियाडोंग के अनुसार इस मामले में चीन ने जो निष्कर्ष निकाला है वो ये है कि अमेरिका ने चीन-भारत सीमा विवाद पर कभी दखल नहीं दिया है लेकिन अब जब चीन और अमेरिका के बीच संबंध ख़राब हो गए हैं तो वो भारत के साथ खड़ा होकर और चीन को घेरकर खुलकर पक्ष ले रहा है. ये दलील दी जाती है कि अमेरिका चीन का सामना करने के लिए भारत को ज़्यादा निडर बनाने की सोच रखता है, वो एशिया के दो बड़े देशों के बीच आग लगाना चाहता है और इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाना चाहता है.
कुल मिलाकर भारत को लेकर चीन में मौजूदा चर्चा को देखते हुए ये साफ़ हो जाता है कि चीन के द्वारा उच्च-स्तरीय दौरों के ज़रिए भारत को लेकर दिलचस्पी के पीछे एक मुख्य कारण इस विमर्श का बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करना है कि “सीमा का मुद्दा एक गतिरोध से बदलकर सामान्य प्रबंधन की तरफ़ जा रहा है” या LAC के पूर्वी क्षेत्र में भारत के ख़िलाफ़ “संयोजन प्रहार” का कारण उसकी ये गहरी चिंता है कि अमेरिका और भारत के बीच हितों का मिलन हो रहा है. इस मामले में एक अक्सर दोहराया जाने वाला विचार ये है कि अभी तक चीन और अमेरिका के बीच मुक़ाबला संतुलित स्थिति में है जहां कोई भी पक्ष पूरी तरह फ़ायदे या पूरी तरह नुक़सान की हालत में नहीं है. लेकिन अगर चीन और अमेरिका के बीच मुक़ाबले में भारत दखल देता है तो इससे ये नाज़ुक संतुलन बिगड़ सकता है और अमेरिका का पलड़ा भारी हो सकता है. उदाहरण के तौर पर चीन और अमेरिका के बीच मतभेद मुख्य रूप से दक्षिणी चीन सागर और ताइवान स्ट्रेट में केंद्रित है जिसके बारे में चीन का सामरिक समुदाय दावा करता है कि चीन आसानी से इससे निपट रहा है. लेकिन अगर एक ही समय में दक्षिणी चीन सागर या ताइवान स्ट्रेट में हालात बिगड़ते हैं और दक्षिण-पश्चिम मोर्चा भी अस्थिर बना रहता है तो ये कहना मुश्किल है कि चीन इस स्थिति से उतनी ही आसानी से निपट सकता है या नहीं. दुविधा बनी हुई है कि LAC पर चीन की इच्छा को कम किए बिना (ख़ास तौर पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति पर लौटने की मांग को) और भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और नुक़सान पहुंचाए बग़ैर भारत जैसे एक “कठिन विरोधी” से कैसे निपटा जाए. चीन के रक्षा मंत्री के द्वारा भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ द्विपक्षीय वार्ता से पहले ये अहम सवाल चीन के सामरिक समुदाय से जुड़े लोगों के दिमाग़ में था.
Antara Ghosal Singh ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सामरिक अध्ययन कार्यक्रम में फेलो हैं.
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Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...
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