Author : Manoj Joshi

Published on Jun 04, 2022 Commentaries 0 Hours ago

चीन एक अरसे से दावा करता आ रहा है कि ताइवान उसका हिस्सा है और वह शांतिपूर्ण उपायों से उसे अपने में मिला लेना चाहता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर बलप्रयोग करने भी वह हिचकेगा नहीं.

अगर चीन और ताइवान के बीच जंग छिड़ता है तो ये तय है कि अमेरिका उसमें शामिल होकर रहेगा!

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह कहकर सनसनी पैदा कर दी थी कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो वे उसकी रक्षा में सैन्य कार्रवाई करेंगे. अलबत्ता बाद में उनके प्रशासन ने बयान पर लीपापोती करने की कोशिश की. इधर शीर्ष अमेरिकी सैन्य अधिकारी जनरल मार्क माइले ने कहा कि चीन निकट भविष्य में ताइवान पर हमला बोलने की तैयारी कर रहा है.

यह अकारण नहीं है कि हाल के समय में टोकियो ने अपने रक्षा-व्यय को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है, जिसके बाद अब वह अमेरिका और चीन के बाद रक्षा-बजट पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया है.

आप निश्चित हो सकते हैं कि अगर चीन ताइवान पर आक्रमण करता है तो अमेरिका इसमें शामिल होकर रहेगा. क्योंकि चीन गुआम, पलाऊ और ओकिनावा में स्थित अमेरिकी मिलिट्री बेस पर प्रहार किए बिना ताइवान पर हमला बोलने का जोखिम नहीं उठा सकता. ताइवान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिंदा ने कहा है कि युद्ध की स्थिति में उनका देश पूरे दमखम से प्रतिकार करेगा और उन्हें जापान का सहयोग भी मिल सकता है.

टोकियो ने अपने रक्षा-व्यय को बढ़ाकर किया दोगुना

यह अकारण नहीं है कि हाल के समय में टोकियो ने अपने रक्षा-व्यय को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है, जिसके बाद अब वह अमेरिका और चीन के बाद रक्षा-बजट पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया है. अगर चीन ने किसी भी तरह की हरकत की तो उसके परिणाम विनाशकारी साबित हो सकते हैं. यह स्थिति तब है, जब यूरोप में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले ही तनाव की स्थिति बनी है और पूरी दुनिया इसके दुष्परिणाम झेल रही है.

अगर ताइवान अभी तक सुरक्षित बना हुआ है तो इसका कारण चीन की नौसेना की कमजोरी है, जो चीन-ताइवान के बीच पड़ने वाली 180 किलोमीटर लम्बी खाड़ी के कारण उस पर धावा बोलने की क्षमता नहीं रखती है.

बीते सत्तर सालों से रिपब्लिक ऑफ चाइना या आरओसी (1912 से 1949 तक ताइवान का अधिकृत नाम) स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए है, भले ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यह दावा करती है कि वह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन का एक प्रांत है. अगर ताइवान अभी तक सुरक्षित बना हुआ है तो इसका कारण चीन की नौसेना की कमजोरी है, जो चीन-ताइवान के बीच पड़ने वाली 180 किलोमीटर लम्बी खाड़ी के कारण उस पर धावा बोलने की क्षमता नहीं रखती है.

चीन की फौज का लक्ष्य ताइवान को अपने में मिला लेने के लिए सैन्य अभियान की तैयारी करना है. बीते सालों में ताइवान के इर्द-गिर्द चीन की हरकतें बढ़ती चली गई हैं. चीन की नौसेना व वायुसेना इस द्वीप के इर्द-गिर्द गश्त लगाती रहती है. चीन ने अभी तक ताइवान के एयर-स्पेस में तो प्रवेश नहीं किया है, लेकिन उसके एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में वह सेंध लगा चुका है.

ताइवान की आबादी लगभग ढाई करोड़ है. 17वीं सदी के अंत में वह क्विंग साम्राज्य का हिस्सा बना था. 1895 में जापानी साम्राज्य ने इसे हथिया लिया और यहां औद्योगीकरण की प्रक्रिया शुरू की. च्यांग काई शेक के नेतृत्व में आरओसी ने प्रतिकार किया और जापानी फौजों को हथियार डालना पड़ा. जब कम्युनिस्ट फौजों ने च्यांग काई शेक को हराया तो उसने फाेर्मोसा में जाकर शरण ली, जो ताइवान का पुराना नाम है.

उसके साथ उसके बीस लाख समर्थक और अधिकारीगण भी वहां चले गए. 1950 और 1960 के दशक में ताइवान चीन-अमेरिका रक्षा संधि के द्वारा संरक्षित था और उसे खासी विदेशी मदद दी गई थी. शीतयुद्ध के समय अधिकतर पश्चिमी देश आरओसी को चीन की ही सरकार मानते थे. लेकिन जब अमेरिका ने 1979 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चीन की इकलौती वैधानिक सरकार के रूप में मान्यता दी तो अनेक पश्चिमी देशों ने ताइवान से संबंध तोड़ लिए.

अमेरिका-फोर्मोसा के रक्षा बंदोबस्त को समाप्त कर दिया गया. वॉशिंगटन ताइवान को सैन्य मदद देता रहा, लेकिन चीनी हरकत के विरुद्ध सैन्य हस्तक्षेप पर मौन साधे रखता है. इस दौरान इस्पात, पेट्रोकेमिकल व जहाज-निर्माण उद्योगों के चलते ताइवान एक इंडस्ट्रियल पॉवरहाउस के रूप में उभरा. इलेक्ट्रॉनिकल सामानों के निर्माण में उसने विशेषज्ञता हासिल की और वह दुनिया में इनका बड़ा निर्यातक बन गया. वहां लोकतंत्र का उदय हुआ और 2000 तक वह पूर्ण-लोकतांत्रिक देश बन गया.

चीन का पूरे समय दावा

चीन पूरे समय दावा करता रहा कि ताइवान उसका हिस्सा है और वह शांतिपूर्ण उपायों से उसे अपने में मिला लेना चाहता है, पर जरूरत पड़ने पर बलप्रयोग से भी उसे ऐतराज नहीं होगा. 2020 में ताइवान का निर्यात 345 अरब डॉलर था, जबकि भारत का निर्यात 276 अरब डॉलर ही था. ताइवान सबसे ज्यादा निर्यात चीन को करता है. उसकी टीएमएससी कम्पनी दुनिया की सबसे बड़ी चिपमेकर है. वह इतनी उत्तम गुणवत्ता की चिप बनाती है कि सैमसंग व इंटेल को भी ईर्ष्या होगी.

चीन एक अरसे से दावा करता आ रहा है कि ताइवान उसका हिस्सा है और वह शांतिपूर्ण उपायों से उसे अपने में मिला लेना चाहता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर बलप्रयोग करने भी वह हिचकेगा नहीं.

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यह आर्टिकल मूल रूप से दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है.

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