Author : Harsh V. Pant

Published on Oct 06, 2022 Commentaries 0 Hours ago

जिस प्रकार नए सीडीएस की नियुक्ति में सरकार ने इतना समय लिया है तो स्वाभाविक है कि काफी पड़ताल की गई है. इस दौरान सीडीएस की नियुक्ति से जुड़े कुछ नियम भी बदले हैं. इन पर विवाद भी हुआ.

नए सीडीएस (CDS) की राह में कई चुनौतियां; एक साथ साधने होंगे एक से ज़्यादा निशाने!

करीब दस महीने तक चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाफ यानी सीडीएस (CDS) का पद रिक्त रहने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) अनिल चौहान (Lt. Gn. Anil Chauhan) ने हाल में यह दायित्व संभाल लिया है. गत दिसंबर में देश के पहले सीडीएस बिपिन रावत के निधन के बाद से सैन्य सुधारों की जो प्रक्रिया कुछ शिथिल पड़ गई थी, उससे नए सीडीएस की नियुक्ति में विलंब अखर रहा था. सीडीएस का सृजन ही बड़ी मशक्कत के बाद हुआ था. पूर्ववर्ती सरकारें ऐसे प्रस्ताव पर कुंडली मारकर बैठी रहीं. कारण यही था कि ऐसी किसी भी संस्था के गठन में सेना, वायु सेना और नौसेना से जुड़े सभी अंशभागियों को साथ लाना था. उनकी आंतरिक व्यवस्था को देखते हुए यह आसान नहीं था. कई साहसिक फैसले लेने वाली मोदी सरकार ने इस मोर्चे पर भी साहस दिखाते हुए सीडीएस के गठन को हरी झंडी दिखाई.

ऐसे पदों पर रैंक या वरिष्ठता से अधिक क्षमताओं और विशेषज्ञता को वरीयता देना उचित है और इस कसौटी पर अनिल चौहान पूरी तरह खरे उतरते हैं. उनकी दक्षता और अनुभव उन्हें इस पद के योग्य बनाते हैं. वह पूर्वी कमान के मुखिया रहे हैं. बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय डीजीएमओ पद पर तैनात थे.

जिस प्रकार नए सीडीएस की नियुक्ति में सरकार ने इतना समय लिया है तो स्वाभाविक है कि काफी पड़ताल की गई है. इस दौरान सीडीएस की नियुक्ति से जुड़े कुछ नियम भी बदले हैं. इन पर विवाद भी हुआ. एक वर्ग को यह आपत्ति है कि साल भर पहले सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी को इतने महत्वपूर्ण दायित्व के लिए क्यों चुना गया? कुछ को यह बात खल रही है कि जब तीनों सेनाओं के प्रमुख चार सितारा जनरल हैं तो तीन सितारा सेवानिवृत्त अधिकारी को सीडीएस क्यों बनाया गया?

ऐसे लोगों की अपनी दलीलें हो सकती हैं, लेकिन इन बातों से खास फर्क नहीं पड़ता. ऐसे पदों पर रैंक या वरिष्ठता से अधिक क्षमताओं और विशेषज्ञता को वरीयता देना उचित है और इस कसौटी पर अनिल चौहान पूरी तरह खरे उतरते हैं. उनकी दक्षता और अनुभव उन्हें इस पद के योग्य बनाते हैं. वह पूर्वी कमान के मुखिया रहे हैं. बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय डीजीएमओ पद पर तैनात थे. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में भी सेवाएं दे चुके हैं. यानी उनके पास सैन्य नेतृत्व, सैन्य अभियान और रणनीतिक नियोजन का व्यापक अनुभव है. ऐसे में उनकी योग्यता को लेकर उठ रहे सवाल बेमानी हैं. ऐसे सवालों के बजाय हमें उन चुनौतियों पर बात करनी चाहिए, जो नए सीडीएस की प्रतीक्षा कर रही हैं.

चीन की चुनौती

सीमा पर चीन भारत की सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है. पाकिस्तानी चुनौती तो हमेशा से कायम है. यही स्थिति भारत के लिए दो मोर्चों पर एक साथ संघर्ष की चुनौती उत्पन्न करती है. अनिल चौहान के पूर्ववर्ती जनरल रावत अक्सर इस चुनौती का उल्लेख करते थे. ऐसे में नए सीडीएस के लिए आवश्यक होगा कि इस चुनौती से पार पाने के लिए वह लंबित सुधारों की गति बढ़ाएं. इसके लिए सैन्य बलों का एकीकरण और आधुनिकीकरण समय की मांग है. विशेषकर चीन की चुनौती को देखते हुए यह कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है, जिसके साथ मई 2020 से ही तनाव बना हुआ है.

हालांकि, दोनों पक्षों के बीच वार्ता से सुलह की संभावनाएं बनी हैं और सेनाएं पीछे हट रही हैं, लेकिन चीन के चरित्र को देखते हुए उस पर पूरा भरोसा उचित नहीं होगा. अभी भी चीन ने सीमा पर भारी सैन्य जमावड़ा किया हुआ है तो भारत ने भी अपने आक्रामक तेवरों से जवाब देने में कोई कंजूसी नहीं की है. भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जब तक 2020 वाली स्थिति कायम नहीं होती, तब तक चीन के साथ संबंधों में सुधार या नरमी बरतने का उसका कोई इरादा नहीं. वैसे भी सेनाओं का पीछे हटना लंबी चलने वाली प्रक्रिया है और यदि इस बीच कोई तात्कालिक चुनौती उभरती है तो उसका तत्काल जवाब देना सैन्य बलों के लिए जरूरी होगा. पाकिस्तान इस समय अपनी कुछ समस्याओं में उलझा हुआ है, लेकिन भारत के प्रति उसके शत्रुता भाव में कोई कमी नहीं आई है. ऐसे में दो मोर्चों पर लड़ाई को लेकर सीडीएस को अपनी पुख्ता तैयारी रखनी होगी.

अभी भी चीन ने सीमा पर भारी सैन्य जमावड़ा किया हुआ है तो भारत ने भी अपने आक्रामक तेवरों से जवाब देने में कोई कंजूसी नहीं की है. भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जब तक 2020 वाली स्थिति कायम नहीं होती, तब तक चीन के साथ संबंधों में सुधार या नरमी बरतने का उसका कोई इरादा नहीं.

उन्हें सैन्य आधुनिकीकरण और घरेलू रक्षा उत्पादन दोनों को साधना होगा. घरेलू रक्षा उत्पादन के लिए ढांचा तैयार कर उससे आपूर्ति के लिए प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि यह समय लेने वाली प्रक्रिया है. इस बीच सैन्य बलों की तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति के लिए आयात करने होंगे. ऐसे में सीडीएस के लिए चुनौती है कि वह न तो घरेलू रक्षा उत्पादन की गति मंद पड़ने दें और न ही तात्कालिक सामरिक आपूर्ति में सुस्ती आने दें. अच्छी बात है कि सरकार उस नीति पर काम रही है, जिसमें विदेशी रक्षा आपूर्तिकर्ताओं के साथ होने वाले अनुबंधों की एक निश्चित राशि का निवेश देश में उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने में किए जाने का प्रावधान है. इसी प्रकार अग्निपथ योजना को स्वीकार्यता दिलाने के लिए भी उन्हें कड़े प्रयास करने होंगे.

बयानबाज़ी से परहेज़

यह नि:संदेह अच्छी योजना है, मगर कुछ संवेदनशील पहलुओं को लेकर राजनीतिक विरोध का शिकार हो गई. यह योजना उन्हीं सैन्य समितियों की अनुशंसाओं के अनुरूप है, जिसमें सैन्य बलों के आकार को सुसंगत रखने की सिफारिश की गई. भविष्य में जिस प्रकार के युद्ध लड़े जाएंगे, उनमें सैन्य बलों के आकार से अधिक उनकी क्षमताएं निर्णायक सिद्ध होंगी, जिसके लिए सैन्य बलों को आधुनिक तकनीक प्रदान करनी होगी. जबकि भारत में सैन्य बलों पर राजस्व खर्च अधिक होने के कारण आधुनिकीकरण के लिए पूंजीगत संसाधन पर्याप्त नहीं रह जाते. ऐसे में सीडीएस को इस चुनौती का कोई तोड़ निकालना होगा.

दिवंगत जनरल रावत ने एक बार विमानवाहक पोत की उपयोगिता को लेकर नौसेना को नाराज़ कर दिया था तो वायु सेना को ‘सहायक सुरक्षा बल’ बताकर उसकी भावनाएं आहत कर दी थीं. ऐसे में अनिल चौहान को ऐसी किसी बयानबाजी से परहेज करना होगा.

इन सभी से बढ़कर तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बिठाने के लिए एकीकृत थियेटर कमान को मूर्त रूप देना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए. इसके लिए उन्हें सैन्य बलों के बीच सेतु बनना होगा. चूंकि उनकी पृष्ठभूमि थलसेना की है तो थियेटर कमान और अन्य पहल को लेकर वायु सेना एवं नौसेना की भावनाओं का भी ख्याल रखना होगा. दिवंगत जनरल रावत ने एक बार विमानवाहक पोत की उपयोगिता को लेकर नौसेना को नाराज़ कर दिया था तो वायु सेना को ‘सहायक सुरक्षा बल’ बताकर उसकी भावनाएं आहत कर दी थीं. ऐसे में अनिल चौहान को ऐसी किसी बयानबाजी से परहेज करना होगा. अपने दायित्व की पूर्ति के लिए वह साम्य और संतुलन बिठाने पर ध्यान देंगे तो अपनी भूमिका से न्याय कर सकेंगे.


यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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