अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ताक़त दिखाने की जटिल चालों में अक्सर बहुत कुछ दांव पर लगा होता है, और समाधान के रास्ते अक्सर राजनीतिक बातचीत से होकर गुज़रते हैं. चीन जैसी उभरती शक्ति की बहुत बुनियादी ख़्वाहिश रही है कि वो विश्व में अपने प्रभाव क्षेत्र का निर्माण करे. इसीलिए, चीन की कूटनीति में प्रभाव डालने की कला बहुत बारीक़ मगर बेहद अहम औज़ार है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कुछ विद्वान तो प्रभाव बढ़ाने की इस शक्ति को ‘संरचनात्मक ताक़त’ भी कहते हैं.
गुआंशी, चीन की संस्कृति का अटूट अंग है. ये निजी संबंधों और साझा ज़िम्मेदारियों के ज़रिए आपसी आदान प्रदान के सिद्धांत पर आधारित परिकल्पना है.
इसमें कोई शक नहीं है कि किसी भी नाज़ुक स्थिति से निपटने के लिए दबदबा दिखाने की शक्ति बहुत अहम होती है. कोई भी देश सभी संबंधित पक्षों के बीच बातचीत को बढ़ावा देकर अपनी एक मज़बूत छवि का निर्माण करता है, जिससे सकारात्मक वार्तालाप की राह तैयार होती है. वैसे तो अमेरिका, दुनिया में अभी भी सबसे बड़ा मध्यस्थ बना हुआ है. लेकिन, चीन भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी मध्यस्थता की भूमिका को लगातार आक्रामक तरीक़े से पेश कर रहा है. हम इसके सबूत सऊदी अरब और ईरान के बीच बातचीत के दरवाज़े खोलने और नाइजर व बेनिन के बीच विवाद के समाधान के तौर पर देख चुके हैं.
आज जब चीन, पश्चिम की अगुवाई वाली विश्व व्यवस्था के विकल्प के तौर पर एक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण कर रहा है, जो कभी पूरक तो कभी पश्चिमी व्यवस्था के मुक़ाबले खड़ी होती दिखती है, तो तमाम बहुपक्षीय मंचों पर चीन को इस बात की ज़रूरत होती है कि अफ्रीका उसके पाले में खड़ा हो. 55 देशों वाला अफ्रीका महाद्वीप निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं और परिचर्चाओं में एक महत्वपूर्ण समूह होता है. ऐसे में आज जब चीन, विश्व व्यवस्था का पलड़ा अपनी तरफ़ झुकाने का प्रयास कर रहा है, तो उसने अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं.
वैसे तो अमेरिका, दुनिया में अभी भी सबसे बड़ा मध्यस्थ बना हुआ है. लेकिन, चीन भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी मध्यस्थता की भूमिका को लगातार आक्रामक तरीक़े से पेश कर रहा है. हम इसके सबूत सऊदी अरब और ईरान के बीच बातचीत के दरवाज़े खोलने और नाइजर व बेनिन के बीच विवाद के समाधान के तौर पर देख चुके हैं.
फिर भी, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के पश्चिमी विद्वान अभी भी केंद्रीय और परिधि या फिर दादागीरी और उसको चुनौती देने के परस्पर विरोधी नज़रिए में फंसे हुए हैं और यूरोप पर केंद्रित अपनी सोच की वजह से वो अफ्रीका में चीन के उभार को व्यापक स्तर पर समझ पाने में असफल रहे हैं. ज़ाहिर है कि व्यापार, आर्थिक सहायता या फिर संसाधनों में दिलचस्पी जैसे आर्थिक पहलुओं पर ज़ोर देने की वजह से, पश्चिम के जानकार चीन और अफ्रीका के संबंधों की सांस्कृतिक बुनियाद की पड़ताल नहीं कर पाते हैं. इस लेख में हम, अफ्रीका को लेकर चीन के रवैये की संबंधों के नज़रिए से पड़ताल करने की कोशिश करेंगे. संप्रभुता, अराजकता और लोकतंत्र जैसी पश्चिम केंद्रित परिकल्पनाओं से हटकर, इस लेख में हम चीन के पारंपरिक विचार गुआंशी और चीन की विदेश नीति के बर्ताव में इसके असर का आकलन करेंगे. इसके अलावा, इस लेख में गुआंशी की रूप-रेखा के तहत चीन द्वारा अफ्रीका में पार्टी के स्कूल स्थापित करने के पीछे के मक़सद का भी मूल्यांकन किया जाएगा.
कूटनीति के औज़ार के तौर पर गुआंशी का मतलब क्या है?
गुआंशी ( 關係 ) चीन की कूटनीति की अलग पहचान बनाने वाली ख़ूबी है. वैसे तो मोटा-मोटी इसका अनुवाद ‘रिश्ते’ के तौर पर किया जाता है. लेकिन, गुआंशी के मायने पश्चिम की पारंपरिक परिभाषा के दायरे से कहीं दूर तक फैले हैं. अंग्रेज़ी के शब्दकोश में इस लफ़्ज़ को ज़्यादा पहले दाख़िल नहीं किया गया है. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से गुआंशी, चीन के किसी भी देश के साथ संबंध की बुनियाद रहा है, जिसके तहत चीन के शासक कूटनीति को आपसी संबंधों के विस्तार के तौर पर देखते हैं. हक़ीक़त तो ये है कि गुआंशी, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए चीन के शब्द ‘गुओजी गुआंशी’ का हिस्सा है.
गुआंशी, चीन की संस्कृति का अटूट अंग है. ये निजी संबंधों और साझा ज़िम्मेदारियों के ज़रिए आपसी आदान प्रदान के सिद्धांत पर आधारित परिकल्पना है. इसकी उत्पत्ति पुराने चीनी समाज में हुई थी. तब गुआंशी के तहत जिस इंसान को भी किसी रिश्ते से कोई लाभ होता था, उसकी ये ज़िम्मेदारी बनती थी कि वो उस संबंध के दूसरे पक्ष को भी लाभ पहुंचाए ताकि रिश्ता क़ायम रहे और उसके अपने मक़सद हासिल होते रहें, जिससे दोनों ही पक्षों का फ़ायदा (लियांग च्वान ची मेई: 兩全其美) हो. गुआंशी की परिकल्पना रिश्तों के चौतरफ़ा पहलुओं के इर्द गिर्द घूमती है, जिससे किन्हीं दो असमान साझीदारों के बीच असंतुलित संबंध की ख़ूबियां व्यक्त की जाती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो ये एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारियों के आधार पर संबंध को सौहार्दपूर्ण बनाने का एक तरीक़ा है.
अफ्रीका के बहुत से देशों की राजनीतिक व्यवस्था भी चीन जैसी ही है, जो इन आयामों और संरक्षक और ग्राहक के संपर्क के आधार पर फलती फूलती है. अलग संस्थान, नियम और विनियम अक्सर ऐसे हालात में दोयम दर्जे की भूमिका अदा करते हैं. ऐसे में चीन का एक पार्टी के शासन और दबदबे वाला प्रशासनिक मॉडल, जिसमें पार्टी और सरकार एक ही होते हैं, और राजनीतिक प्रक्रिया के लिए तानाशाही के बंटे हुए मॉडल को अपनाया जाता है, जिसमें ज़बरदस्त राजनीतिक क्षमता और प्रशासनिक ढांचा ऊपर से नीचे तक आर्थिक विकास के रास्ते पर चलता है, वो अफ्रीका की बहुत सी सत्ताधारी पार्टियों के लिए आकर्षक हो जाता है.
अफ्रीका में राजनीतिक दबदबा बढ़ाने के लिए चीन का ब्लूप्रिंट
आज़ादी के दिनों से ही चीन बड़ी सक्रियता से अफ्रीकी नेताओं के बीच अपने प्रशासनिक मॉडल को बढ़ावा देता आया है. चीन ने बहुत से अफ्रीकी देशों को उनकी आज़ादी के संघर्ष में मदद की और आज़ादी हासिल होने के बाद चीन ने इन देशों को अफनी अर्थव्यवस्थाएं विकसित करने और स्वतंत्र सरकार को मज़बूत बनाने में मदद की है. इनमें दक्षिण अफ्रीका में अफ्रीकी नेशनल कांफ्रेंस (ANC), नामीबिया में SWAPO, अंगोला में MPLA, ज़िम्बाब्वे में Zanu-PF और मोज़ांबीक़ में फ्रेलिमो शामिल है.
हालांकि, हाल के वर्षों में चीन ने अफ्रीका की सत्ताधारी पार्टियों पर अपना दबदबा बढ़ाने के प्रयास और तेज़ कर दिए हैं. चीन हर साल अफ्रीका के सैकड़ों अधिकारियों को ‘स्टडी टूर’ के लिए अपने यहां आमंत्रित करता है, जिसमें अक्सर चीन के विश्वविद्यालयों के लेक्चर सुनना, अपनी आंखों से प्रगति का अनुभव करने के लिए ज़मीनी दौरे कराना, और इन दौरों में शामिल लोगों को चीन की संस्कृति से परिचित कराने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भागीदारी कराई जाती है. सच तो ये है कि बहुत वरिष्ठ स्तर के प्रतिनिधि मंडलों को छोड़ दें, तो इनमें से ज़्यादातर स्टडी टूर राजधानी बीजिंग से बाहर, देश के दूसरे सूबों में कराए जाते हैं.
अफ्रीका में चीन की गुआंशी नीति को लागू करना
2021 में सेनेगल की राजधानी डाकार में फोरम फॉर चाइना अफ्रीका को-ऑपरेशन (FOCAC) की आठवीं बैठक के दौरान, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने एक श्वेत पत्र जारी किया था. इसमें ये बताया गया था कि अफ्रीका के 55 में से 51 देशों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 110 दलों के साथ कूटनीतिक रिश्ते हैं. अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अफ्रीका के सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को प्रशिक्षण देने का सिलसिला तेज़ कर दिया है. इसका सुबूत में अफ्रीका में चीन द्वारा स्थापित किए जा रहे राजनीतिक स्कूलों से मिलता है.
2022 में चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश तंज़ानिया में राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए पहले स्कूल की शरुआत की थी. इसका नाम तंज़ानिया के संस्थापक और बेहद सम्मानित नेता रहे म्वालिम जूलियस न्येरेरे लीडरशिप स्कूल था. इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने रक़म दी थी. ये स्कूल स्थापित करने में चीन ने 4 करोड़ डॉलर की रक़म ख़र्च की थी. इसके बाद समय गंवाए बग़ैर फरवरी 2022 में इस स्कूल में कक्षाएं भी शुरू कर दी गई थीं. दक्षिण अफ्रीका, मोज़ांबीक़ अंगोला, नामीबिया, ज़िम्बाब्वे और तंज़ानिया के 120 राजनीति कार्यकर्ता इस स्कूल में पढ़ने आ चुके हैं. दिलचस्प बात ये है कि इन सभी छह देशों में आज़ादी के बाद से सत्ताधारी पार्टी में कोई बदलाव नहीं आया है, और इन सभी छह देशों की सत्ताधारी पार्टियों के आज़ादी से पहले ही चीन के साथ बेहद मज़बूत और गहरे ऐतिहासिक संबंध रहे हैं.
अफ्रीका के 55 में से 51 देशों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 110 दलों के साथ कूटनीतिक रिश्ते हैं.
इसके अलावा, इन देशों की सभी छह सत्ताधारी पार्टियां फॉर्मर लिबरेशन मूवमेंट्स ऑफ सदर्न अफ्रीका (FLMSA) से जुड़ी रही हैं. ये संगठन आपसी सहयोग में तालमेल बिठाने के साथ साथ भू-सामरिक चलन का मूल्यांकन और सत्ताधारी दलों के सामने खड़ी चुनौतियों का आकलन करता है. चीन आज़ादी की लड़ाई से जुड़े रहे इन सभी संगठनों का लंबे समय से एक वैचारिक और सैन्य साझीदार रहा है और अब वो FLMSA का इकलौता साझीदार देश है. ये समूह नियमित रूप से बैठकें करता है और इसकी आख़िरी मीटिंग मार्च 2024 में हुई थी.
न्येरेरे लीडरशिप स्कूल की स्थापना ने इन सभी दलों का चीन के साथ सामरिक संबंध और मज़बूत होगा और इससे FLMSA में शामिल छह दलों को चीन की ख़ूबियों वाले साझा प्रशिक्षण, शैक्षणिक संसाधन और दूसरे सहयोगात्मक सुविधाओं की मदद से अपनी रणनीतियां और प्रभावी ढंग से तैयार करने में मदद मिलेगी.
अफ्रीका में चीन कैसे गुआंशी को आगे बढ़ा रहा है?
अफ्रीका में नीति निर्माण को प्रभावित करने के चीन के प्रयास केवल इमारतें बनाने तक सीमित नहीं हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ज़िम्बाब्वे में ZANU-PF पार्टी स्कूल के नवीनीकरण में भी पैसे लगाए हैं. इसे हरबर्ट चिटेपो स्कूल ऑफ आइडियोलॉजी के नाम से भी जाना जाता है.
इसके अलावा, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय पार्टी स्कूल की बाहरी शाखा के तौर पर काम करने वाली नेशनल एकेडमी ऑफ गवर्नेंस ने अल्जीरिया, इथियोपिया, कीनिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में प्रशासनिक अकादेमियों के साथ प्रशिक्षण की साझेदारियां भी स्थापित की हैं. 2018 से चीन, अफ्रीका के कई सत्ताधारी दलों को राजनीतिक नेतृत्व की ट्रेनिंग दे रहा है. ये प्रयास दिखाते हैं कि अफ्रीकी देशों के प्रशासनिक ढांचे गढ़ने में चीन की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है, और उसका ज़ोर ख़ास तौर से चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की तर्ज पर एक ही सत्ताधारी दल का दबदबा मज़बूत करने पर रहा है. ये एक तरह से अफ्रीका में आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले इंक़लाबी दलों को सत्ता पर स्थायी तौर पर शिकंजा कसे रहने का निर्देश देना है.
हाल ही में कीनिया के सत्ताधारी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस ने भी नैरोबी में CCP लीडरशिप स्कूल स्थापित करने में दिलचस्पी दिखाई है. इस स्कूल के अलावा इस बात की काफ़ी संभावना है कि चीन, कीनिया के विदेश मंत्रालय के नए मुख्यालय के निर्माण और विकास में भी पैसे लगाएगा. इनका शिलान्यास चीन और कीनिया के कूटनीतिक संबंधों के 60 साल पूरे होने पर जश्न के मौक़े किया जाना है, और ज़ाहिर है कि ये निवेश कीनिया के साथ साथ पूरे अफ्रीका में चीन की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देने का काम करेंगे. कुछ ख़बरों के मुताबिक़, बुरुंडी, कॉन्गो, इक्वेटोरियल गिनी, मोरक्को और युगांडा ने भी अपने यहां ऐसी सुविधाएं विकसित करने में दिलचस्पी दिखाई है.
आगे की राह
वैसे तो चीन, 1960 के दशक से ही अफ्रीका में राजनीतिक दलों के स्कूलों के निर्माण या उनको मदद देता रहा है. लेकिन, न्येरेरे स्कूल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल पार्टी स्कूल की तर्ज पर बनाया गया पहला ऐसा केंद्र है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरह बाक़ी की छह भागीदार राजनीतिक पार्टियों ने भी अपने देश को आज़ादी दिलाई है. यही नहीं, ये सभी दल किसी न किसी स्तर पर लोकतंत्र और संविधान को कमज़ोर करने वाले रवैये दिखाते रहे हैं.
इन देशों द्वारा भले ही आधिकारिक तौर पर बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था का समर्थन किया जाता है. लेकिन, ये सारी पार्टियां विपक्ष को लेकर बेहद असहिष्णुता दिखाती रही हैं और विरोधियों को दबाने, उनका प्रभाव सीमित करने और यहां तक कि विपक्षी दलों को ख़त्म करने के लिए तरह तरह के तरीक़े आज़माती आई हैं. इसके अलावा चुनाव में फ़र्ज़ीवाड़ा, चुनावी हिंसा और बड़े पैमाने पर फैला भ्रष्टाचार भी इन देशों में बड़ी आम बात हो गई है, जिसकी वजह से लोकतांत्रिक संस्थाओं का पतन हो रहा है. उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद से इनमें से किसी भी देश में सत्ताधारी दल में बदलाव नहीं आया है.
ऐतिहासिक रिश्तों और वैचारिक समानताओं के चलते, इन देशों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मॉडल अपने सरकार चलाने के तरीक़े मेल खाने वाला लगता है. हालांकि, सरकार बदलने की सूरत में हो सकता है कि इनमें से कोई देश, चीन के मॉडल से दूरी बनाना और लोकतंत्र के ज़्यादा उदारवादी पश्चिमी मॉडल को अपनाना चाहे. इसीलिए, चीन ये भी चाहेगा कि वो अफ्रीका के देशों में विपक्षी दलों के साथ भी अच्छे संबंध विकसित करे, ताकि अगर सत्ता में कोई बड़ा बदलाव होता है, तो अपने हित सुरक्षित रखे जा सकें. इस मामले में गुआंशी कूटनीति के तहत चीन के राजनीतिक विद्यालय बहुत असरदार साबित होंगे.
गुआंशी नीति इस बात पर ज़ोर देती कि समाज के अलग अलग दर्जों के बीच रिश्तों में परस्पर जवाबदेही हो. गुआंशी के तहत शासक और प्रजा के रिश्ते सत्ताधारी दल के किसी देश और सरकार पर दबदबा बनाए रखने का ढांचा मुहैया कराते हैं. ये परिकल्पना कई अफ्रीकी देशों के नेतृत्व को पसंद आती है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अक्सर एक मज़बूत और केंद्रीकृत पार्टी व्यवस्था पर ज़ोर दिया जाता है. अफ्रीका के कुछ नेता ये मानते हैं कि बहुदलीय लोकतंत्र के दलदल के बिना सत्ता और स्थिरता क़ायम रखने के लिए ये एक अनिवार्य शर्त है.
चीन आज जहां पर है, वहां पहुंचने के लिए उसने कई दशकों तक पूरे धैर्य के साथ मेहनत की है. चीन को पता है कि प्रभाव बढ़ाने और उससे जुड़े अन्य लाभ हासिल करने के लिए लंबी दूरी की रेस ज़रूरी है. ताक़त के वैश्विक खेल में अपने त्वरित उभार और चीन केंद्रित विश्व व्यवस्था स्थापित करने की कोशिशें तेज़ करने के बावजूद चीन किसी जल्दी में नहीं है. साफ़ है कि चीन का लंबे समय के लिए गुआंशी को बढ़ावा देने का दांव अफ्रीका में कारगर साबित हो रहा है.
मूल रूप से ये लेख इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल डिफेंस ऐंड सिक्योरिटी रिसर्च में प्रकाशित हुआ था
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.