आगे बढ़ते हुए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने में विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग ज़रूरी है.
वैश्विक स्तर पर विकसित और विकासशील देशों में भिन्नता ऐतिहासिक तौर पर महत्वपूर्ण विकास से जुड़े नतीजों के लिए ज़रूरी संसाधनों तक पहुंच में बहुत ज़्यादा अंतर के तौर पर दिखाई देती है. उदाहरण के तौर पर,औद्योगीकरण60 के दशक की शुरुआत से विकसित देशों के पक्ष में है और इस मामले में वैश्विक मेल-मिलाप का कोई बड़ा सबूत पाया नहीं गया है. जो देश एक समय उपनिवेशवाद के अधीन रहे हैं, उनमें से ज़्यादातर औद्योगीकरण के अलग-अलग चरणों में शामिल होने में नाकाम रहे हैं और इसलिए वो अविकसित एवं विकासशील दुनिया का हिस्सा बने रहे हैं. जिस तरह से महामारी ने विकसित और विकासशील- दोनों तरह के देशों को प्रभावित किया है, वो मौजूदा अंतर के और ज़्यादा बढ़ जाने में भी देखा जा सकता है. अलग-अलग देशों ने महामारी के शुरुआती चरणों से निपटने में न सिर्फ़ अलग-अलग चुनौतियों का सामना किया है बल्कि आज जिन सामाजिक और व्यापक आर्थिक असर का सामना किया जा रहा है वो विकासशील देशों के लिए बहुत ज़्यादा ख़राब है. घरेलू अर्थव्यवस्थाओं की कमज़ोरी अब अर्जेंटीना और मिस्र से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में बहुत ज़्यादा स्पष्ट है.
सिर्फ़ आर्थिक विकास को तरक़्क़ी की बुनियाद मानने के अलावा समकालीन सतत विकास की रूप-रेखा या सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) मानदंडों के सारे पहलू भी प्रस्तुत करते हैं जिनमें सामाजिक, भौतिक, मानवीय और प्राकृतिक पूंजी में बढ़ोतरी के सिद्धांत हैं. विकसित और विकासशील देशों में अंतर को इन क्षेत्रों में भी स्पष्ट किया गया है. लैंगिक अंतर (एसडीजी 5: लैंगिक समानता) विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में ज़्यादाख़राबहै. इसकी वजह जागरुकता में अंतर के साथ-साथ भौतिक अभाव भी है. मिसाल के तौर पर, कीनिया में नाइट कर्फ्यू के शुरुआती तीन हफ़्तों के दौरान घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ मदद के लिए फ़ोन करने वालों की संख्या में34 प्रतिशतकी बढ़ोतरी देखी गई.अस्थायी रोज़गारमें महिलाओं की संख्या ज़्यादा थी और महामारी की वजह से रोज़गार छिनने और कर्ज़ के जाल में फंसने का उन पर ज़्यादा असर पड़ा.
जिस तरह से महामारी ने विकसित और विकासशील- दोनों तरह के देशों को प्रभावित किया है, वो मौजूदा अंतर के और ज़्यादा बढ़ जाने में भी देखा जा सकता है.
शिक्षा (एसडीजी 4: अच्छी शिक्षा) के क्षेत्र मेंअध्ययनने दिखाया कि किस तरह तकनीक को असमान तरीक़े से स्वीकार करने के कारण कुछ देश लगातार भौतिक प्रतिबंधों की वजह से शिक्षा पर असर न पड़ने को सुनिश्चित करने में नाकाम रहे. विकसित देशों के छात्रों ने 2020 में औसतन 15 दिनों की स्कूली शिक्षा गंवाई जबकि विकासशील और अविकसित देशों में बच्चे क्रमश: 45 और 72 दिन स्कूल नहीं जा पाए. आमदनी पर असर भी विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों पर काफ़ी ज़्यादा था.
सरकार द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम अपने लोगों की रक्षा करने की उनकी अलग-अलग क्षमता का और ज़्यादा प्रमाण दिखाते हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिका के वयस्क नागरिकों को प्रोत्साहन राशि और दूसरेफ़ायदोंके रूप में कुल मिलाकर 2.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मिले. दूसरी तरफ़, विकासशील देशों में सरकार की कोशिशेंकाफ़ी हद तक अपर्याप्त रहीं. इस पृष्ठभूमि को देखते हुए महामारी के बाद के विश्व में विकासशील और अविकसित देशों के लिए विकास से जुड़े उद्देश्यों को प्राप्त करने की आवश्यकता और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती है. वैसे तो महामारी और उसके आर्थिक असर ने एसडीजी एजेंडा 2030 को समय पर हासिल करना पूरे विश्व के लिए मुश्किल बना दिया है लेकिन विकासशील देश तो सबसे ज़्यादा खामियाजा भुगत रहे हैं. दो बड़ी अड़चनें चर्चा की मांग करती हैं.
विकसित देशों के छात्रों ने 2020 में औसतन 15 दिनों की स्कूली शिक्षा गंवाई जबकि विकासशील और अविकसित देशों में बच्चे क्रमश: 45 और 72 दिन स्कूल नहीं जा पाए.
एसडीजीऔरबिखराव
2022 में प्रकाशित कैंब्रिज की ताज़ाएसडीजी रिपोर्टक्षेत्रों और देशों को उनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बिखराव के अनुपात में स्कोर देती है. इससे किसी देश की गतिविधियों का दूसरे देशों पर होने वाले सकारात्मक या नकारात्मक असर का संकेत मिलता है. ये व्यापार, अर्थव्यवस्था या वित्त और सुरक्षा में सम्मिलित पर्यावरणीय और सामाजिक असर हो सकते हैं. घरेलू संसाधनों को अक्सर विदेशी गतिविधियों के असर को ख़त्म करने के लिए दूसरी तरफ़ मोड़ने की आवश्यकता होती है. लेकिन ये उस समय के लिए काफ़ी प्रतिकूल हैं जब किसी देश का उन गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है. ज़्यादा बिखराव का स्कोर अनुपात के अनुसार कम नकारात्मक बाहरीपन का नतीजा है जो उस बाहरी देश या उसके विपरीत कारणों से होता है. दिलचस्प बात ये है कि भले ही दुनिया के समृद्ध हिस्से जैसे कि ईयू या ओईसीडी कुल मिलाकर एसडीजी उपलब्धि के मामले में ऊंचे पायदान पर हैं लेकिन वो ग़ैर-सतत व्यापार एवं आपूर्ति श्रृंखला के ज़रिए होने वाले नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक बिखराव के माध्यम से ग़रीब क्षेत्रों के लिए बड़ी चुनौती थोपते हैं.
उपर्युक्त आंकड़े में प्रदर्शित असमानता इस बात का सबूत है कि किस तरह विकासशील या अविकसित देशों के मुक़ाबले विकसित देशों के बिखराव का दूसरे देशों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे विकासशील या अविकसित देशों को अपने सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में रुकावट का सामना करना पड़ता है. चूंकि अनुमानों के मुताबिक़ विकसित अर्थव्यवस्थाएं महामारी से पहले के अपने 0.9 प्रतिशत के विकास पूर्वानुमानों कोपारकर लेंगी, ऐसे में लगता है कि ये विकासशील देशों की क़ीमत पर होगा जिनके बारे में अनुमान लगाया गया था कि वो 2024 तक 5.5 प्रतिशत से कम विकास दर हासिल करेंगे. लैटिन अमेरिका और सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देश इस तथ्य से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.
सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में अलग-अलग देशों के बीच स्थायी संबंध आवश्यक हैं. सहयोग और उत्तरदायित्व के तौर-तरीक़ों की अवश्य स्थापना की जानी चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह के नकारात्मक बिखराव को प्राप्त करने वाले देशों को बहाली की कोशिशों को लागू करने का बोझ पूरी तरह नहीं उठाना पड़े. ये वैश्विक सतत विकास की रूप-रेखा की तरफ़ अधिक समानता की दिशा में एक क़दम की तरह है.
विकसितऔरविकासशीलदेशोंकेबीचअसमानसहयोग
2030 के सतत् विकास लक्ष्यों को लागू करने के लिए अलग-अलग देशों में सभी हिस्सेदारों के बीच सहयोग की आवश्यकता है.एसडीजी 17 (लक्ष्यों के लिए साझेदारी)का उद्देश्य “लागू करने के माध्यमों को मज़बूत करना और सतत विकास के लिए वैश्विक साझेदारी को पुनर्जीवित करना है.” विकसित और विकासशील देशों में एसडीजी साझेदारी के स्वरूप को लेकरअध्ययनमें ये पाया गया कि सहभागिता विकसित देशों के पक्ष में असमान रूप से वितरित है. कम आमदनी वाले देशों के साझेदार विकसित देशों के साझेदारों की तुलना में कम सहयोग में शामिल हैं.
आंकड़ा2:दुनियाभरमेंएसडीजीसाझेदारी
उपर्युक्त नक्शा अलग-अलग देशों में एसडीजी से जुड़ी परियोजनाओं के वितरण को दिखाता है. वैसे तो इन परियोजनाओं का एक बड़ा हिस्सा विकासशील देशों में स्थित है लेकिन पाई चार्ट संकेत देता है कि रजिस्टर्ड साझेदारी विकसित देशों से संबंध रखने वाले सहयोगियों के पक्ष में झुका हुआ है: 30 प्रतिशत ज़्यादा आमदनी वाले देशों से, 30 प्रतिशत अपर मिडिल इनकम वाले देशों से, 24 प्रतिशत लोअर मिडिल इनकम वाले देशों से और 16 प्रतिशत कम आमदनी वाले देशों से. इस तरह का रुझान बिना किसी संदेह के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने में विकसित और विकासशील देशों के अंतर को बढ़ाएगा. इससे विकसित और अविकसित देशों को वैश्विक विकास की राह में और ज़्यादा हानि होगी.
महामारी की वजह से सतत विकास लक्ष्यों में संशोधन की मांग की स्थिति नहीं बननी चाहिए बल्कि इसे सहयोग को बढ़ावा देने में इस्तेमाल करना चाहिए. कोविड-19 महामारी पहुंच से जुड़े मुद्दों को सबसे आगे लाती है.
महामारी की वजह से सतत विकास लक्ष्यों में संशोधन की मांग की स्थिति नहीं बननी चाहिए बल्कि इसेसहयोग को बढ़ावादेने में इस्तेमाल करना चाहिए. कोविड-19 महामारी पहुंच से जुड़े मुद्दों को सबसे आगे लाती है. इनमें दूसरे मुद्दों के अलावा पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नहीं होने का नतीजा; पीने का पानी और स्वच्छता की सुविधा नहीं होना; और प्रवासियों के लिए बुनियादी नागरिक अधिकार नहीं होना शामिल हैं. समर्थ समाज के लिए सार्वभौमिक रोडमैप को सतत विकास के तीन व्यापक आधार स्तंभों- लोग, धरती और समृद्धि- को ध्यान में रखना चाहिए. इसका व्यापक उद्देश्य ‘कोई भी पीछे न छूटे’ हो.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...