Issue BriefsPublished on Jul 29, 2023
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‘जेंडर पे गैप’ यानी वेतन में लैंगिक फर्क की समस्या को पाटना!

  • Roma Puri
  • Sahana Roy Chowdhury
  • Sumita Ketkar

    जेंडर पे गैप (जीपीजी) एक जटिल मुद्दा है जिस पर जी20 सहित विभिन्न मंचों ने चर्चा करने की कोशिश की है. जीपीजी को कम करने के लिए बड़े स्तर पर क्रांतिकारी बदलावों की आवश्यकता है लेकिन सांस्कृतिक मानदंडों और गहरी सामाजिक मान्यताओं के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों और सार्वजनिक ख़र्च में रुकावटें इसे  कठिन बना देती है. इसलिए  प्रस्तावित एक्शन आर्थिक रूप से विवेकपूर्ण और कार्रवाई योग्य होनी चाहिए. यह पॉलिसी ब्रीफ जेंडर पे गैप को कम करने के लिए जी20 के सामने पांच सिफारिशें पेश करता है. इनमें : वेतन पारदर्शिता कानून पेश करना; डेटा-ड्रिवन जेंडर बजटिंग को अनिवार्य बनाना; पैरेंटल लीव पर बढ़ता जोर; एसटीईएम विषयों में महिलाओं को बढ़ावा देना; और ख़ास वूमन-ओनली पोर्टल, जेंडर पर रिपोर्टिंग, लीडरशिप कार्यक्रमों को सुविधाजनक बनाने और ‘पक्षपात रहित’ संस्थानों जैसी पहल के प्रस्ताव शामिल हैं. ये सिफारिशें नीति निर्माताओं को लैंगिक समानता जैसे मुद्दे पर आगे बढ़ने में मदद करेगी और  सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और आर्थिक परिणामों में सुधार करने में भी सहयोग करेगी.

  1. चुनौती

जेंडर पे गैप और इसके निहितार्थ

रोज़गार में लैंगिक असंतुलन दुनिया भर में महिलाओं के लिए परेशानी का विषय रहा है. असमानता का ऐसा ही एक रूप – यानी, जेंडर पे गैप (जीपीजी) – लिंग के कारण आर्थिक असमानता से जुड़ा हुआ है. जीपीजी को प्रतिशत वैल्यू के रूप में व्यक्त किया जाता है और इसकी गिनती “पुरुषों की औसत कमाई के सापेक्ष पुरुषों और महिलाओं की औसत कमाई के बीच अंतर”  [i] के रूप में की जाती है. वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो औसतन महिलाएं पुरुषों के मुक़ाबले 20 प्रतिशत कम कमाती हैं, [ii] हालांकि समय के साथ यह अंतर कम हुआ है, फिर भी यह कायम है. (जी20 में गैप के लिए चित्र 1 देखें)

चित्र 1: जी 20 देशों में जेंडर पे गैप

स्रोत: आईएलओएसलटीएटी, आईएलओ मॉडल अनुमान, नवंबर 2021, [iii] और यूरोपा, 2022  [iv] से प्राप्त डेटा

रोजगार में लैंगिक असमानता के संकेतक

  1. A. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट और जॉब गैप

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफपीआर) की जांच से रोज़गार में लैंगिक असमानता का एक स्नैपशॉट मिलता है. विश्व स्तर पर, पुरुषों और महिलाओं के लिए एलएफपीआर क्रमशः 72.3 प्रतिशत और 47.4 प्रतिशत है. [v]  जबकि सभी जी20 देशों में लिंग के बीच एलएफपीआर में अंतर मौज़ूद है, यह जी20 में गैर-जी7 देशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है (चित्र 2 देखें).

चित्र 2: एलएफपीआर में लिंग अंतर (प्रतिशत अंक के रूप में)

स्रोत: आईएलओएसटीएटी, आईएलओ मॉडल अनुमान, 2021 [vi]

आईएलओ की 2023 रिपोर्ट [vii] से पता चलता है कि एलएफपीआर और बेरोज़गारी दर (यूआर) के साथ-साथ, अंडरयुटिलाइजेशन का आकलन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक मेट्रिक्स – यानी, “जॉब गैप” (जेजी) – का इस्तेमाल रोज़गार में लिंग असंतुलन की जांच के लिए किया जाना चाहिए. जेजी एक अधिक यथार्थवादी अनुमान है क्योंकि यह उन व्यक्तियों की संख्या को दर्शाता है जो काम करना चाहते हैं लेकिन नौकरी नहीं पा सकते हैं और शॉर्ट नोटिस पर रोज़गार करने में असमर्थ हैं. चित्र 3 दर्शाता है कि विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं को नौकरी खोजने में कितनी गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो लिंग के बीच वेतन असमानता को उजागर करता है.

चित्र 3: पुरुषों और महिलाओं के लिए जॉब गैप और यूआर, 2022

स्रोत: आईएलओएसटी, 2022  [viii]

  1. B. प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं की कमी

असमानताएं लैंगिक भूमिकाओं की रूढ़िवादिता के कारण भी पैदा होती हैं. विश्व स्तर पर, कामकाजी महिलाएं बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारियों के कारण रोज़गार छोड़ देती हैं. [ix]  इसके अलावा, लैंगिक भूमिकाओं को लेकर संरचनात्मक बाधाओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों के परिणामस्वरूप कम वेतन वाली और अंशकालिक नौकरियों में महिलाओं की भरमार हो जाती है. प्रबंधन पदों पर उनका प्रतिनिधित्व कम रहता है (चित्र 4 देखें).

चित्र 4: जी20 देशों में प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं का अनुपात (%)

स्रोत: आईएलओएसटीएटी, आईएलओ द्वारा तैयार किए गए अनुमानों से प्राप्त डेटा [x]

हाल के वर्षों में  चर्चाएं समान वेतन से हटकर उच्च वेतन और अधिक वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पर केंद्रित हो गई है, जो एक ऐसा इकोसिस्टम बनाता है जो महिलाओं को उनके करियर और व्यक्तिगत जीवन दोनों में समर्थन देता है.

 

  1. C. वेतन पारदर्शिता का अभाव

वेतन पारदर्शिता वेतन के बारे में किए गए खुलासे से संबंधित है. ओईसीडी के लगभग आधे देश (कुछ जी20 देशों सहित) वेतन पारदर्शिता को अनिवार्य करते हैं (फ्रे, 2021) लेकिन ऐसे उपायों के कार्यान्वयन में भिन्नता है (तालिका 1 देखें).

तालिका 1: निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए वेतन रिपोर्टिंग/ऑडिटिंग विनियमों वाले ओईसीडी देशों का वितरण

Level of Pay Reporting Countries
Countries that require companies to conduct regular pay audits, including reporting gender disaggregated pay Canada, Finland, France, Iceland, Norway, Portugal, Spain, Switzerland, Sweden
Countries that require companies to report gender-disaggregated pay information without broader audit Austria, Australia, Belgium, Chile, Denmark, Israel, Italy, Lithuania, United Kingdom
Countries requiring companies to report non-pay gender disaggregated information Germany, Japan, Korea, Luxembourg, United States of America
Counties in which pay audits are conducted to assess gender wage gap ad hoc within selected companies- Costa Rica, Greece, Turkey, Ireland
No reporting requirements in place  All the remaining countries in the world.

Source: Frey 2021 [11]

उदाहरण के लिए  फ्रांस में इम्पल्यॉर्स को जीपीजी मेट्रिक्स पर रिपोर्ट करने और तीन साल के भीतर इसे ठीक करने के लिए प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है. [xii] और इसका अनुपालन ना करने पर दंड दिया जा सकता है. इस बीच  कनाडा में, 10 या अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को एक इक्विटी योजना और अनिवार्य वेतन ऑडिट प्रकाशित करनी होती है. [xiii] मेक्सिको और भारत जैसे अन्य जी 20 देशों में ‘समान वेतन’ कानून हैं लेकिन कोई जीपीजी रिपोर्टिंग नियम नहीं है. परिशिष्ट-1 से पता चलता है कि जी20 में से केवल कुछ सदस्य देशों ने ही रिपोर्टिंग नियम लागू किए हैं. इन देशों के बीच असमानता आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि वेतन पारदर्शिता एक तुलनात्मक रूप से नई पॉलिसी इन्सट्रूमेंट है.

जीपीजी की अनिवार्य रिपोर्टिंग जनता और कर्मचारियों को जानकारी तक पहुंच प्रदान करके जेंडर असमानता को उजागर कर सकती है. उपलब्ध साक्ष्य से पता चलता है कि अनिवार्य पे गैप रिपोर्टिंग और संभावित रेप्युटेशनल डैमेज़ की लागत, संगठनों को जेंडर गैप को पाटने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करती है (काउपर-कोल्स एट अल., 2021). [xiv] लैंगिक असंतुलन को ठीक करने पर जी20 के फोकस को देखते हुए, सदस्य देशों द्वारा वेतन पारदर्शिता पर कानून बदलाव में मदद कर सकता है.

  1. D. बजटिंग में लैंगिक मुद्दों को प्राथमिकता न देना

जेंडर बजटिंग (जीबी), जिसे जेंडर रिसपॉन्सिव बजटिंग के रूप में भी जाना जाता है, इसमें लिंग असमानता को कम करने पर बजट और सार्वजनिक ख़र्च के संभावित प्रभाव की समीक्षा करना शामिल है. जबकि लिंग-आधारित राजकोषीय नीतियां और कल्याण योजनाएं सभी जी20 देशों के लिए एक महत्वपूर्ण फोकस क्षेत्र हैं लेकिन उनकी समीक्षा और ऑडिटिंग न्यूनतम है और जीबी पर समग्र प्रगति परिवर्तनशील रही है (चित्र 5 देखें). इसे अमली जामा पहनाने में चुनौतियां पर्याप्त लिंग-संबंधित डेटा की कमी से भी जुड़ा है, जिससे प्रगति को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है (यूएन वूमन ब्रीफ, 2018).

 

चित्र 5. लिंग बजटिंग के लिए जी20 देशों की प्रतिबद्धता

स्रोत: जी20 देशों में लैंगिक बजटिंग (आईएमएफ वर्किंग पेपर) [xv].

  1. E. अवैतनिक देखभाल कार्य के लिए असमान ज़िम्मेदारी

दुनिया भर में  महिलाओं को घरों में प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में देखा जाता है. वर्ल्ड वैल्यूज़ सर्वे वेव 7  [xvi]  में पाया गया कि विकासशील देशों में लोग इस बात से काफी हद तक सहमत हैं कि “जब मां वेतन के लिए काम कर रही होती है तो बच्चे पीड़ित होते हैं.” यह सांस्कृतिक धारणा महिलाओं के एलएफपीआर को प्रभावित करती है. मातृत्व के लिए करियर ब्रेक लेने के कारण महिलाएं ‘वेज पेनाल्टी’ (या ‘मदरहुड पेनाल्टी’) का भुगतान करती हैं. विकसित देशों में  महिलाएं देखभाल संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अंशकालिक नौकरियां अपनाती हैं  लेकिन विकासशील देशों में  महिलाओं द्वारा श्रम बाज़ार को पूरी तरह से छोड़ देने की संभावना अधिक होती है. [xvii]  महिलाओं (कामकाजी माताओं सहित) का समय अवैतनिक देखभाल कार्य/घरेलू ज़िम्मेदारियों पर ख़र्च करने का अनुपात परिवार में पुरुष सदस्यों की तुलना में बहुत अधिक है (यूएनडीपी, 2015). [xviii]  चाइल्डकेयर सुविधाओं की कमी भी विकसित और विकासशील दोनों देशों में महिलाओं को काम करने से रोकती है. उदाहरण के लिए, उप-सहारा अफ्रीका जैसे देश हैं  जहां ‘मदरहुड पेनाल्टी  कम है क्योंकि बच्चों की देखभाल एक साझा पारिवारिक ज़िम्मेदारी होती है. चुनौतियों में यह विविधता कामकाजी माताओं के लिए देश-विशिष्ट अवकाश नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है.

जी20 देशों ने मातृ/पितृ/माता-पिता की छुट्टी पर कानून लागू किया है और बच्चों की देखभाल के लिए निवेश किया है (परिशिष्ट 1 देखें). फिर भी लैंगिक भूमिकाओं की रूढ़िवादी धारणाओं और बाल देखभाल की गुणवत्ता के बारे में चिंताओं के कारण इस्तेमाल कम बना हुआ है.

साल 2018 यूनिसेफ [xix]  की रिपोर्ट में बताया गया था कि चाइल्डकेअर सुविधाओं की पेशकश के माध्यम से महिलाओं का समर्थन करने से मातृ संबंधी रोज़गार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. चित्र 6 ओईसीडी देशों की मातृ संबंधी रोज़गार दरों को दर्शाता है और दिखाता है कि जिन देशों ने पेड मैटरनिटी लीव, चाइल्डकेयर लीव, सब्सिडाइज्ड चाइल्डकेयर और फ्लेक्सिबल वर्क शेड्यूल जैसी नीतियों को लागू किया है, उनमें एलएफपीआर अधिक है. बच्चों की देखभाल के लिए पब्लिक-स्पॉनसर्ड सुविधाएं प्रदान करना सभी जी20 देशों के लिए वित्तीय रूप से संभव नहीं हो सकता है. फिर भी  बढ़ी हुई जीडीपी और कर योगदान के रूप में उच्च एलएफपीआर के आर्थिक लाभों को देखते हुए, पेड या सब्सिडाइज्ड चाइल्डकेयर को सरकारों द्वारा दीर्घकालिक निवेश के रूप में माना जा सकता है. बुनियादी ढांचा और ‘सुलभ, सस्ती और अच्छी गुणवत्ता’  [xx]  वाली  पब्लिक केयर सर्विस प्रदान करने से अवैतनिक देखभाल कार्य के पुनर्वितरण और महिलाओं के खाली समय के इस्तेमाल करने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे महिला एलएफपीआर में वृद्धि हो सकती है.

चित्र 6: मातृ रोज़गार दरें, ओईसीडी सदस्य देश

स्रोत: ओईसीडी फैमिली डेटाबेस [xxi]

नोट: जापान और दक्षिण कोरिया के लिए पूर्णकालिक/अंशकालिक कार्य के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

  1. जी20 की भूमिका

जी20 सदस्य देशों में जेंडर पे गैप एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और पिछले कई शिखर सम्मेलनों में इस पर चर्चा की गई है. व्यक्तिगत रूप से  जी20 देशों ने जेंडर इम्बैलेंस से निपटने के लिए अलग-अलग डिग्री में सिस्टम लागू किया है, उदाहरण के लिए  भारत ने कई नीतियां लागू की हैं [xxii] जिनका उद्देश्य लैंगिक असमानताओं को दूर करना है, जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना और उज्ज्वला योजना. जी7 ने भी जीपीजी को कम करने के लिए उपाय पेश किए हैं  लेकिन सामाजिक कल्याण पर ख़र्च को लेकर वित्तीय बाधाओं का मतलब है कि जी20 देशों के प्रयासों में काफी हद तक भिन्नता है. दरअसल  वैश्विक लिंग अंतर पर विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट [xxiii] बताती है कि इस अंतर को पाटने में 132 साल और लगेंगे.

यह देखते हुए कि कैसे जी20 दुनिया की दो-तिहाई आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है, साल 2025 तक महिला एलएफपीआर में कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि, सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3.9 प्रतिशत या यूएस 5.8 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि में योगदान कर सकती है. इससे पूरे परिवार की क्रय शक्ति बढ़ सकती है  और इस प्रकार समग्र उपभोक्ता ख़र्च बढ़ सकता है.

भारत ने अपने जी20 प्रेसिडेंसी के लिए “वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर” की थीम को अपनाया है और घोषणा की है कि अपने कार्यकाल के दौरान भारत महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को प्राथमिकता देगा. [xxiv]  इस बात को सभी मानते हैं कि लैंगिक समानता (एसडीजी5) के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने और सभी को सभ्य काम और आर्थिक विकास (एसडीजी8) प्रदान करने की दिशा में तभी आगे बढ़ा जा सकता है जबकि जीपीजी से निपटने को लेकर  निर्णायक कार्रवाई की जाए.

  1. जी20 को सिफ़ारिशें

यह पॉलिसी ब्रीफ़ सिफ़ारिशें प्रस्तुत करती है जो संभावित रूप से सरकारों को लैंगिक वेतन असमानता को पाटने के लिए प्रेरित कर सकती हैं. जी20 बहुत ही विविध अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है जिसमें उभरते और विकासशील देशों में  अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का स्पष्ट प्रभुत्व है, जहां जेंडर पे गैप अधिक है. अनौपचारिकता का प्रतिशत भारत के लिए 88 प्रतिशत से लेकर ब्राज़ील के लिए 47 प्रतिशत तक है. [xxv]  निगरानी के अभाव में अनौपचारिक क्षेत्र कानूनी उपायों के कार्यान्वयन को सीमित करता है. निम्नलिखित अनुभागों में की गई सिफ़ारिशें अनौपचारिक क्षेत्र की जटिल प्रकृति पर विचार करती हैं.

  1. A. वेतन पारदर्शिता कानून का कार्यान्वयन

वेतन पारदर्शिता कानून लागू करने से पहले सरकारों को उद्योग और अन्य हितधारकों जैसे शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान केंद्रों, महिला समूहों और कर्मचारी संघों के साथ जुड़ना होगा. सदस्य राष्ट्र मुल्क-विशिष्ट लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं  लेकिन कानून द्वारा अनिवार्य पारदर्शिता के स्तर को प्रासंगिक वास्तविकताओं की तरफ इशारा करना चाहिए. जिन देशों में कोई मौज़ूदा प्रकटीकरण नियम नहीं हैं, वहां कार्यान्वयन कई चरणों में हो सकता है. सबसे पहले  स्वैच्छिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित किया जा सकता है  जिसके बाद अनिवार्य रिपोर्टिंग की जा सकती है, जहां एक निश्चित आकार की सूचीबद्ध कंपनियों (जैसे कि 250 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों) को सार्वजनिक डोमेन में जेंडर पे असमानता की सालाना जानकारी देना अनिवार्य होना चाहिए. विनियमन को अगले चरण में छोटे संगठनों के लिए लागू किया जा सकता है. वेतन पारदर्शिता उपायों को लागू करने वाले देशों के अनुभव से पता चलता है कि इसके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए रिपोर्टिंग की प्रक्रिया को सरल बनाना और इसे प्रौद्योगिकी-संचालित बनाना बेहद अहम है.

उन देशों के लिए जिन्होंने पहले ही वेतन पारदर्शिता नियम लागू कर दिए हैं, अगला कदम कार्य योजनाओं के माध्यम से एमप्लॉयर(नियोक्ता) की ज़वाबदेही को अनिवार्य करना होगा. इन देशों में एमप्लॉयर(नियोक्ता) को वेतन अंतर पर विस्तृत डेटा देने की भी आवश्यकता हो सकती है. इसके अलावा, लगातार जीपीजी वाले नियोक्ताओं और उद्योगों को वेतन ऑडिट करने और समान वेतन कानून के कार्यान्वयन और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य किया जा सकता है.

वैसे राष्ट्र जहां अनौपचारिक क्षेत्र ज़्यादा मज़बूत हैं वहां पे गैप पर डेटा ट्रैक करना मुश्किल हो सकता है. अनौपचारिक क्षेत्र के डेटा को डिजिटाइज़ करके इस समस्या से निपटा जा सकता है – वास्तव में यह अर्जेंटीना की जी20 अध्यक्षता के दौरान 2018 से जी20 के एज़ेंडे में रहा है. [xxvi]  उदाहरण के लिए  भारत में  अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के डेटा को ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से डिजिटाइज किया जा रहा है,  [xxvii] जो एक स्व-रिपोर्टिंग पोर्टल है जहां श्रमिक ख़ुद को पंजीकृत करते हैं. यह डेटासेट वेतन और उद्योग विवरण प्राप्त कर सकता है और इसका उपयोग पे गैप की डिग्री का पता लगाने के लिए किया जा सकता है. अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के लिए अकादमिक एजेंसियों और उद्योग परिषदों द्वारा भी डेटा एकत्र किया जा सकता है.

  1. B. डेटा-संचालित जेंडर बजटिंग

जी20 देशों को जेंडर समानता पर जीबी में संकेतक विकसित करने और उन पर सहमत होना चाहिए. सदस्य देश निरंतर आधार पर जेंडर-संबंधित डेटा एकत्र कर सकते हैं ताकि जेंडर को नीति निर्माण की मुख्यधारा में लाया जा सके. यह स्रोत पर डेटा कैप्चर करने और निरंतर आधार पर बेंचमार्क डेटा के साथ तुलना करने के लिए सांख्यिकीय मॉडलिंग और विश्लेषण का लाभ उठाने में सक्षम हो सकता है. जी20 सरकारों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने में सक्षम बनाने के लिए ऐसे बेंचमार्क डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने की आवश्यकता है. डेटाबेस की नियमित निगरानी से सरकार प्रगति को ट्रैक करने और लैंगिक समानता पहल पर नियोजित ख़र्च के मुक़ाबले वास्तविक ख़र्च की जांच करने में सक्षम हो सकती है.

  1. C. पैरेंटल लीव की नीतियों और भुगतान/सब्सिडी वाले बच्चे की देखभाल का कार्यान्वयन

इस समस्या से निपटने में निम्नलिखित उपायों को शामिल किया जा सकता है :

1.संगठनों को साझा पैरेंटल लीव (अल्पकालिक या पुरानी बीमारी वाले बीमार छोटे बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी सहित) शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना, जो माता-पिता को लचीले तरीक़े से छुट्टी लेने की अनुमति देगा और महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद काम पर लौटने का अवसर प्रदान करेगा.

2.मौज़ूदा प्रावधानों के कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं की पहचान करने के लिए उनके मूल्यांकन और समीक्षा का वित्तपोषण करना.

3.प्रीस्कूलर के लिए नर्सरी और प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए संपूर्ण देखभाल के रूप में सब्सिडीयुक्त या राज्य-वित्त पोषित चाइल्डकेयर में निवेश करना.

उपर्युक्त सिफ़ारिशें औपचारिक क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त हो सकती हैं. अनौपचारिक क्षेत्र के लिए, सरकारें राज्य-वित्त पोषित या सब्सिडी वाले चाइल्डकेअर केंद्र शुरू कर सकती हैं. उदाहरण के लिए भारत में  आंगनवाड़ी [xxviii] योजना राज्य द्वारा नामित केंद्रों पर मुफ़्त खाना देकर बच्चों में कुपोषण से निपटने के लिए शुरू की गई थी. इन केंद्रों का उपयोग अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषित/सब्सिडी प्राप्त बच्चों के देखभाल स्थानों के रूप में किया जा सकता है. यह देखते हुए कि ऐसी योजनाओं में किस प्रकार के संसाधनों की ज़रूरत होती है इसकी  प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए छोटे पायलट प्रोजेक्ट चलाए जा सकते हैं.

  1. D. एसटीईएम में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर बढ़े प्रयास

विश्व स्तर पर, उच्च-भुगतान वाले एसटीईएम करियर (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है. भले ही युवा पुरुष और महिला दोनों छात्र गणित और विज्ञान विषयों में समान क़ाबिलियत दिखा सकते हैं  लेकिन सामाजिक कंडीशनिंग के कारण समय के साथ एसटीईएम करियर अपनाने में महिलाओं का आत्मविश्वास कम हो जाता है. कई जी20 देशों ने एसटीईएम  में अधिक महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए उपाय लागू किए हैं. उदाहरण के लिए, 2018 की शुरुआत में भारत सरकार ने सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थानों में महिलाओं के लिए 20 प्रतिशत का अतिरिक्त कोटा जोड़ा था. ब्रिटेन और ईयू, सलाह और नेटवर्किंग कार्यक्रमों के माध्यम से अधिक भागीदारी को बढ़ावा दे रहे हैं.

जी20 देशों को एसटीईएम विषयों और व्यवसायों को महिलाओं के लिए अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता है और ऐसा निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है:

  • सरकार द्वारा वित्त पोषित, योग्यता-आधारित, केवल महिलाओं के लिए छात्रवृत्ति योजनाओं की पेशकश;
  • जहां संभव हो, एसटीईएम व्यवसायों में लचीले कामकाजी घंटों की पेशकश करने के लिए उद्योग को प्रोत्साहित करना;
  • शिक्षा नीति के हिस्से के रूप में सभी स्कूलों को महिला विद्यार्थियों को कैरियर परामर्श प्रदान करना अनिवार्य करना;
  • उद्योग को केवल महिलाओं के लिए पेशेवर नेटवर्क संगठित करने की सुविधा प्रदान करना;
  • स्कूलों और विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करना और टैलेंट हंट प्रतियोगिताएं चलाना; और एसटीईएम में महिलाओं के लिए विशेष जॉब पोर्टल चलाना.
  1. E. उद्योग संघों और संगठनों के साथ काम करना

पिछले अनुभागों में की गई प्रस्तावित पहल कोई रामबाण नहीं हैं. वास्तविक परिवर्तन ना केवल अनिवार्य उपायों से आएगा बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने से आएगा जो महिलाओं को भेदभाव और स्थापित पूर्वाग्रहों से बचा सके और उन्हें उनके करियर में बढ़ने में मदद कर सके. इसके लिए उद्योग संघों और स्थानीय सरकारी निकायों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है. कुछ प्रस्तावों को लेकर निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा की गई है.

  • केवल महिलाओं के लिए विशिष्ट नौकरी पोर्टल पेश करना और उद्योग को उनसे नियुक्ति के लिए प्रोत्साहित करना. इन पोर्टलों को करियर काउंसलिंग और लिंक्डइन सहित मीडिया चैनलों के माध्यम से स्कूलों और विश्वविद्यालयों में एडवर्टाइज किया जा सकता है.
  • जेंडर आधारित परिणामों पर रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करना. दुनिया भर के बड़े संगठन सामाजिक ज़िम्मेदारी पर अपनी पहल की रिपोर्ट करते हैं. शिक्षा, सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसरों के रूप में महिलाओं के विकास पर निर्धारित और किए गए ख़र्चों पर स्वैच्छिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने से एमप्लॉयर(नियोक्ता) की ज़वाबदेही बढ़ाने में मदद मिलेगी.
  • महिलाओं को ज़िम्मेदारी भरे पद को हासिल करने में टारगेटेड लीडरशिप कोचिंग और मेंटरिंग स्कीम के ज़रिए मदद करना. सरकार ऐसे प्रोग्राम को चलाने के लिए इंडस्ट्री एसोसिएशन को वित्तीय सहायता दे सकती है.
  • पूर्वाग्रह दूर करने वाले संगठनों’ द्वारा अचेतन पूर्वाग्रहों से निपटना (बोहनेट, 2018). [xxix] यह जेंडर न्यूट्रल नौकरी विज्ञापनों को अनिवार्य करके और ज़बरदस्त भर्ती को प्रोत्साहित करके जिसमें यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसमें कोई लैंगिक भेदभाव ना हो, इसे पूरा किया जा सकता है. इसके साथ ही इस लक्ष्य को सैलरी हिस्ट्री पर पाबंदी लगाने से भी हासिल किया जा सकता है.

इस पॉलिसी ब्रीफ में सुझाई गई कई नीतियों को, कम से कम आंशिक रूप से, कुछ जी20 देशों में लागू किया गया है. हालांकि  कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है. इसलिए संक्षेप में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि इन नीतियों को कैसे लागू किया जा सकता है जिससे कि उनके अनुपालन को आसान बनाया जा सके.


Attribution: Sumita Ketkar, Roma Puri and Sahana Roy Chowdhury, “Bridging the Gender Pay Gap,” T20 Policy Brief, May 2023.


Appendix 1

Regulations on Gender Equity in G20 countries

This table is based on following sources:

  1. Frey, 2021 (OECD)
  2. ILO Report, 2022[30]

Endnotes

[i]  “Understanding the Gender pay gap,” International Labour Organisation, February 6, 2020.

[ii] The Gender Pay Gap,” International Labour Organisation, last modified, December 2022.

[iii]  “Statistics on Wages,” International Labour Organisation, accessed May 11, 2023

[iv] Understanding the Gender Pay Gap: Definition and Causes,” EU Monitor, April 12, 2023.

[v] World Employment and Social Outlook: Trends 2022,” International Labour Organisation. Geneva: International Labour Office, January 17, 2022.

[vi]  “Statistics on Employment,” International Labour Organisation, accessed May 11, 2023.

[vii] World Employment and Social Outlook Trends 2023,” Geneva: International Labour Office, January 16, 2023.

[viii] Statistics on unemployment and labour underutilization,” International Labour Organisation, November 2022, accessed May 23, 2023.

[ix]  “Care work and care jobs for the future of decent work,” International Labour Organization, June 28, 2018.

[x] Statistics on unemployment and labour underutilisation,” ILOSTAT, 2022, accessed May 11, 2023.

[xi]  Valérie, Frey, “Can pay transparency policies close the gender wage gap?” Pay Transparency Tools to Close the Gender Wage Gap, OECD Publishing, Paris. November 2021.

[xii] “Care work and care jobs for the future of decent work.” International Labour Organization

[xiii]  Overview of the Pay Equity Law, Employment and Social Development Canada, modified on January 27, 2023.

[xiv] Cowper-Coles, Minna, Miriam Glennie, Aleida Mendes Borges, and Caitlin Schmid. “Bridging the gap? An analysis of gender pay gap reporting in six countries,” October 2021.

[xv]  “Gender Budgeting in G20 countries,” IMF Working Paper, November 12, 2021.

[xvi] C. Haerpfer et al. (eds.). 2022. World Values Survey: Round Seven – Country-Pooled Datafile Version 5.0. Madrid, Spain & Vienna, Austria: JD Systems Institute & WVSA Secretariat. doi:10.14281/18241.20

[xvii] Spotlight on Work Statistics n°12,” International Labour Office brief, March 2023.

[xviii] Chopra Deepta and Krishnan Meenakshi, “Linking family-friendly policies to women’s economic: An evidence brief,” UNICEF, July 2019.

[xix] Gender Equality-Global Annual Results Report 2018,” UNICEF, 2018.

[xx] Gromada, Anna, and Dominic Richardson, “Where do rich countries stand on childcare?” UNICEF Office of Research–Innocenti, 2021, accessed May 22, 2023.

[xxi] OECD, “LMF1.2. Maternal employment rates,”  Family Databases, updated November, 2020.

[xxii]  Women Empowerment Schemes. Ministry of Women & Child Development, accessed May 11, 2023.

[xxiii] Global Gender Pay Gap report,” World Economic Forum, July 13, 2022.

[xxiv] Priyanka Tina Cardoz, “Women-led Development – India’s Opportunity at G20,” Invest India, January 18, 2023.

[xxv] Statistics on the informal economy – ILOSTAT, accessed May 14, 2023.

[xxvi] Digitisation and informality: Harnessing digital financial inclusion for individuals and MSMEs in the informal economy,” G20 Policy Brief, 2018.

[xxvii] eShram, Ministry of Labour and Employment. Government of India, accessed May 14, 2023.

[xxviii] Anganwadi services,” Ministry of Women & Child Development, Government of India, accessed May 14, 2023.

[xxix]  Iris Bohnet, “What works,” Harvard University Press, 2016.

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