टास्क फोर्स 1 मैक्रोइकॉनॉमिक्स, ट्रेड एंड लाइवलीहुड्स : पॉलिसी कोहेरन्स एंड इंटरनेशनल कोऑर्डिनेशन
चुनौती
रोज़गार के अवसर पैदा करने और गरीबी को कम करने के लिए औद्योगिक विकास बेहद आवश्यक है. उदाहरण के लिए, अनेक पूर्वी एशियाई देशों की आर्थिक सफ़लता का श्रेय पहले विनिर्माण क्षेत्रों और बाद में सेवा क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में उठाए गए रणनीतिक कदमों को दिया जा सकता है. इन देशों में यह वृद्धि अपेक्षाकृत कम असमानता के स्तर और गरीबी के स्तर में महत्वपूर्ण कमी के साथ हुई थी. चीन और कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों ने इसी पैटर्न का पालन करते हुए अपने विनिर्माण क्षेत्रों को मज़बूत करके आर्थिक विकास को हासिल किया है. लेकिन, आमतौर पर, निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) को अपने विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को विकसित करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
औद्योगिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता में भी सुधार कर सकता है. LMIC देशों के प्राथमिक क्षेत्र में रोज़गार का हिस्सा उच्च होता है. वहां कम आय वाले लोग आमतौर पर पर्यावरणीय रूप से हानिकारक गतिविधियों जैसे कृषि संसाधनों की कटाई और उसे जलाने अथवा प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर निष्कर्षण या संग्रह करने में संलग्न होते हैं. लेकिन अगर औद्योगिक क्षेत्र ग्रीन ग्रोथ हासिल करता है, तो इसकी रोज़गार-सृजन क्षमता ऐसी पर्यावरणीय रूप से हानिकारक गतिविधियों से दूर चली जाएगी. इसके चलते अधिक स्थायी आजीविका के लिए श्रम आवंटन करना सुविधाजनक हो जाएगा.
औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को अपग्रेड करना बेहद ज़रूरी है. ख़ासकर LMIC में ज़्यादातर कंपनियां MSME होती हैं, अत: वे औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ऐसे में पुरानी तकनीक और ख़राब प्रबंधन प्रथाओं के कारण उनकी कम उत्पादकता को दूर करना महत्वपूर्ण हो जाता है. विभिन्न देशों की सरकारों और वैश्विक सहायता समुदाय को इन फर्मों को उन्नत तकनीक और प्रबंधन ज्ञान को अपनाने में सहायता करनी चाहिए. इसके अलावा, MSME को उनकी उत्पादकता में सुधार और पर्यावरणीय कारणों से ऊर्जा-बचत तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है.
MSME के लिए नीतियां विकसित करने की चुनौती उनकी विविधता में निहित है. इन उद्यमों को आम तौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है. पहली श्रेणी में संभावित रूप से बढ़ती फर्में शामिल हैं, जिनकी वृद्धि ख़राब बुनियादी ढांचे और संस्थानों, क्रेडिट और आउटपुट बाज़ारों तक सीमित पहुंच, या उन्नत तकनीक और ज्ञान तक पहुंच की कमी जैसे कारकों से बाधित है. दूसरी श्रेणी में गतिहीन फर्में शामिल हैं, जिन्हें पसंद के बजाय आवश्यकता से प्रबंधित किया जाता है. एक विशिष्ट उदाहरण सूक्ष्म उद्यमी हो सकता हैं, जिनके पास आय-सृजन का कोई अन्य अवसर नहीं होता. उनके सामने एकमात्र विकल्प होता है अनौपचारिक क्षेत्र में एक छोटे व्यवसाय का संचालन करना. गतिहीन फर्मों पास अपने व्यवसाय में निवेश करने या उन्नत तकनीक को अपनाने की संभावना नहीं है. ऐसी फर्में यथास्थिति को बनाए रखने और निर्वाह स्तर से ऊपर लाभ कमाने को प्राथमिकता देती हैं.
हाल के अध्ययनों ने डिजिटल तकनीकों को अपनाने में विभिन्न प्रकार के MSME के सह-अस्तित्व को देखा है. इस तरह का सह-अस्तित्व इस बात पर आम सहमति तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण बना देता है कि सबसे उपयुक्त नीतियां क्या हो सकती हैं, क्योंकि सभी के लिए कोई एक वन-साइज-फिट ऑल समाधान नहीं होता है. इसलिए, मौजूदा विविधताओं को ध्यान में रखकर ही नीति निर्माताओं को इस विषय का या इस समस्या का समाधान ख़ोजने के बारे में विचार करना चाहिए. विकसित देश भी इस चुनौती का सामना करते हैं, लेकिन LMIC देशों में यह बात विशेष रूप से सच होती है, क्योंकि वहां MSME का हिस्सा ज़्यादा होता है. अत: वहां MSME विकास को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है.
G20 की भूमिका
G20 के पास LMIC में औद्योगिक विकास के महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करने के अनेक कारण मौजूद हैं. सबसे पहला कारण तो मानवीय ही है. कम से कम 684 मिलियन लोगों को 2021 में अत्यंत गरीब माना गया था. इसके अलावा, उसी वर्ष वैश्विक श्रम शक्ति में बेरोज़गारों की हिस्सेदारी छह प्रतिशत थी. अत: गरीबों को रोज़गार के अवसर प्रदान करना ही गरीबी को स्थायी रूप से कम करने का सबसे अच्छा विकल्प है.
दूसरा अहम कारण है विभिन्न सीमा-पार प्रभावों की मौजूदगी. बेरोज़गारी और गरीबी, असंतोष और हताशा का ऐसा माहौल पैदा कर सकती है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक अशांति पैदा होती है. यह सामाजिक और राजनीतिक अशांति पूरे क्षेत्रों को अस्थिर कर सकती है. इसी प्रकार, LMIC में रोज़गार के पर्याप्त अवसर सृजित नहीं किए गए तो वहां का बेरोज़गार श्रम बल अन्य देशों में बतौर प्रवासी बनकर पहुंच सकता है. यदि ऐसा हुआ तो ये बेरोज़गार जिस देश में जाएंगे वहां की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर भारी दबाव डालेंगे. ऐसे में उस देश को बेहद गंभीर राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उपरोक्त स्थिति के सीमा-पार पड़ने वाले प्रभावों में पर्यावरण को होने वाला नुक़सान भी शामिल है. किसी एक देश में होने वाला प्रदूषण और पर्यावरणीय स्थिति में आने वाली गिरावट पड़ोसी देश पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन में दुनिया के सभी देशों को प्रभावित करने की क्षमता है.
अंत में, औद्योगिक विकास में बाज़ार की विफ़लता विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे बाहरी कारण, इंर्फोमेशन यानी सूचना से जुड़ी विषमताएं और पब्लिक गुड्स यानी सरकारी सहायता का प्रावधान. ऐसे में बाज़ार की विफ़लता को दूर करने के लिए पब्लिक यानी सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत होती है. दुनिया की सबसे बड़ी उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में, G20 बाज़ार की विफ़लता को कम करके और MSME के विकास को बढ़ावा देकर LMIC में औद्योगिक विकास का सक्रिय रूप से समर्थन कर सकता है.
G20 के लिए सिफारिशें
यह आलेख LMIC में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक क्लस्टर्स और ऐसे संगठनों में MSME को प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करने की सुविधा मुहैया करवाने की सिफ़ारिश करता है.
प्रबंधन प्रशिक्षण इन देशों में संभावित रूप से विकसित और गतिहीन फर्मों की सहायता करेगा. कुछ अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि उन्नत प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने से फर्मों की उत्पादकता बढ़ सकती है. प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करने से संभावित रूप से विकसित होने वाली फर्मों को स्क्रीन करने में भी मदद मिल सकती है. अवलोकन योग्य विशेषताओं, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, या विशेषज्ञ निर्णय के आधार पर ऐसी फर्मों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन प्रशिक्षण का उपयोग करके संगठनों को स्क्रीन किया जा सकता है. होनहार फर्मों की एक बार पहचान हो जाने के बाद, उन्हें ऋण और अनुसंधान और विकास सब्सिडी जैसे संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं. गतिहीन फर्मों को इस तरह के सीमित संसाधन प्रदान करना अनुपयोगी अथवा अप्रभावी साबित हो सकता है, क्योंकि ज़रूरी नहीं कि वे इन संसाधनों का उपयोग करते हुए अपनी उत्पादकता को बढ़ाएं. इस बात की संभावना है कि वे इन संसाधनों यानी ऋण का उपयोग अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर सकते हैं. दूसरी ओर, प्रशिक्षण गतिहीन फर्मों को अपनी आय में वृद्धि करने और एक अधिक स्थिर व्यवसाय संचालित करने में भी सहायक साबित होगा. इसके अलावा, यदि प्रशिक्षण को ठीक से डिजाइन किया जाए तो प्रशिक्षण गतिहीन फर्मों को अधिक पर्यावरण-अनुकूल तकनीक अपनाने में भी मदद कर सकता है.
विकसित देशों में, एक उद्योग विशेष की फर्मों का क्लस्टर यानी समूह बनता है (उदाहरण के लिए, तकनीकी संगठनों का सिलिकॉन वैली में क्लस्टरिंग). LMIC देशों में भी ऐसा होता है. इस तरह के औद्योगिक क्लस्टरिंग के तीन प्रमुख लाभ हैं: (1) इंर्फोमेशन स्पिलओवर, (2) फर्मों के बीच विशेषज्ञता और श्रम का विभाजन, और (3) कुशल श्रम बाज़ारों का विकास. मॉर्डन मैक्रोइनोकॉमिक थ्योरी के आधार पर, इन लाभों को सीखने, साझा करने और मैचिंग मैकेनिज्म के रूप में संदर्भित किया जा सकता है.
घाना, केन्या, तंजानिया, और वियतनाम सहित अनेक LMIC देशों में औद्योगिक समूहों में प्रबंधन प्रशिक्षण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए लेखकों ने रैंडमाइज़्ड कंट्रोल ट्रायल्स की एक श्रृंखला आयोजित की थी. इन ट्रायल्स के परिणामों ने लगातार दिखाया है कि प्रबंधन प्रशिक्षण के प्रावधान ने प्रशिक्षित फर्मों के प्रबंधन और व्यावसायिक प्रदर्शन में सुधार किया है. कुछ ट्रायल्स में, लेखकों ने देखा कि प्रशिक्षित फर्मों को दिया गया ज्ञान गैर-प्रशिक्षित नियंत्रण फर्मों तक पहुंचा और उनको भी लाभ पहुंचा. इस तरह की घटना सीखने के तंत्र के उस लाभ को प्रदर्शित करती है, जो औद्योगिक समूहों में निहित है. इसके अतिरिक्त, यदि एक बार प्रशिक्षित फर्म किसी नई तकनीक को अपनाती है तो उसके बाद, यह तकनीक उसी क्लस्टर के भीतर अन्य फर्मों द्वारा अपनाए जाने की संभावना बढ़ जाती है. अत: औद्योगिक क्लस्टर ही प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करने, नए ज्ञान का प्रसार करने और उन्नत तकनीक को अपनाने के लिए आदर्श स्थान का प्रतिनिधित्व करते हैं.
औद्योगिक समूहों को लक्षित करने से प्रशिक्षण के प्रभाव को अधिकतम करने और औद्योगिक विकास को अधिक प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. हालांकि, इस तरह का लक्ष्यीकरण उसी तरह से चुनौतीपूर्ण है, जैसे कि होनहार फर्मों की पहचान करना होता है. इसलिए, लेखक सामान्य रूप से मौजूदा समूहों को प्रशिक्षण प्रदान करने की सलाह देते हैं. यह नीति निर्माताओं को भागीदारी दर, प्रशिक्षण के दौरान दृष्टिकोण और प्रशिक्षण के बाद प्रदर्शन को देखकर आशाजनक समूहों को स्क्रीन करने में मदद कर सकता है.
ज्ञान और तकनीक स्पिलओवर यानी एक फर्म को दिया गया ज्ञान अथवा तकनीकी प्रशिक्षण दूसरे फर्म तक पहुंचने के सबूत इस तथ्य को उजागर करते है कि प्रबंधन प्रशिक्षण का सार्वजनिक लाभ, व्यक्तिगत फर्मों द्वारा प्राप्त निजी लाभ से अधिक है. यह इस बात का संकेत है कि प्रबंधन प्रशिक्षण में निवेश का स्तर सामाजिक रूप से इष्टतम स्तर से कम है. G20 देशों को एक समाधान के रूप में LMIC देशों में बाज़ार की विफ़लता को दूर करने के लिए सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित या रियायती प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम मुहैया करवाने चाहिए.
विशेष रूप से, G20 देश उत्पादकता वृद्धि, औद्योगिक इंजीनियरिंग, या निजी क्षेत्र के विकास पर केंद्रित मौजूदा संगठन के साथ सहयोग कर सकते हैं. अनेक LMIC देशों में औद्योगिक इंजीनियरिंग के लिए राष्ट्रीय उत्पादकता संगठन या तकनीकी संस्थान मौजूद हैं. कुछ देशों में अधिक सधे हुए और उत्कृष्ट गुणवत्ता प्रबंधन संस्थान भी हैं, जैसे इथियोपियन काइज़ेन इंस्टीट्यूट और तंजानिया काइज़ेन यूनिट. मात्रा और गुणवत्ता इन दोनों में ही उनकी क्षमता को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, ताकि वे MSME को प्रबंधकीय प्रशिक्षण सहायता प्रदान कर सकें.
औद्योगिक समूहों में प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करने से फर्मों और श्रमिकों के बीच मैच गुणवत्ता यानी एक दूसरे के लिए उपयुक्तता में सुधार का अतिरिक्त लाभ मिलता है. मानव पूंजी विकास में निवेश करने के लिए सहायता संगठनों और सरकारों के प्रयासों के बावजूद, अभी भी नौकरी-बाज़ार विशेषत: LMIC देशों में संघर्ष देखा जाता हैं. यहां तक कि जब कंपनियां अपने प्रबंधन में सुधार करती हैं और अच्छे कर्मचारियों को नियुक्त करने की कोशिश करती हैं, तब भी उन्हें उपयुक्त उम्मीदवार ख़ोजने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. श्रमिकों और फर्मों के बीच यह मिसमैच यानी असंतुलन या बेमेल, वर्कर रिटेंशन यानी कर्मचारी के फर्म में टिके रहने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हुए परिणामस्वरूप कौशल को मिसमैच कर सकता है. इसकी वज़ह से अंततः फर्म की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हालांकि, औद्योगिक क्लस्टर इस समस्या को हल करते हैं, क्योंकि वहां अनेक समान फर्में छोटे भौगोलिक क्षेत्रों में काम करती हैं, जिससे उपयुक्त कर्मचारियों के साथ अपग्रेडिंग फर्मों का मिलान करना आसान हो जाता है. इससे श्रमिकों और फर्मों दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा क्योंकि बेहतर मैच क्वालिटी से उत्पादकता और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. इसके अलावा, नियोजित कर्मचारी बेहतर नौकरी से संतुष्टि, नौकरी की अवधि और संभावित रूप से बेहतर काम करने की स्थिति से लाभान्वित हो सकते हैं. इसलिए, औद्योगिक समूहों में प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करना फर्मों और श्रमिकों के बीच मैच की गुणवत्ता बढ़ाने और LMIC की समग्र उत्पादकता में सुधार करने के लिए एक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है.
इसी प्रकार, पुनः कौशल प्रशिक्षण सहित संभावित कर्मचारियों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना भी अहम होता है. यदि प्रबंधकीय प्रशिक्षण द्वारा औद्योगिक समूहों के विकास की सुविधा प्रदान की जाती है, तो श्रमिक एक दुर्लभ संसाधन साबित हो सकते हैं. विभिन्न फर्में और मानव संसाधन के आपूर्तिकर्ता क्लस्टर में मांगे गए विशिष्ट कौशल को विकसित करने में सहयोग कर सकते हैं. यह युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से किया जा सकता है. इसके साथ ही, इस उद्देश्य के लिए प्राथमिक क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश को सुनिश्चित करने के लिए एक पुनर्कौशल कार्यक्रम महत्वपूर्ण है.
एट्रीब्यूशन : युकी हिगुची et al.; ‘‘बूस्टिंग इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट इन लो-एंड मिडिल-इनकम कंट्रिज् थ्रू मैनेजमेंट ट्रेनिंग फॉर MSMEs,’’ T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
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