Issue BriefsPublished on Jun 13, 2023
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G20 समूह में न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक लागू करना!

चुनौती


वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5oC तक सीमित करने के लिए, दुनिया को CO2 उत्सर्जन को आधा करना होगा और सदी के मध्य तक नेट-जीरो स्तर को प्राप्त करना होगा.[1] इसके लिए, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तीन-चौथाई से अधिक का योगदान करने वाले 93 देशों ने अपने नेट-जीरो लक्ष्यों की घोषणा की है.[2] लगभग 78 प्रतिशत उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र से आता है. अत: इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन—अर्थात कोयला, तेल और गैस—के उपयोग से तौबा करना बेहद अहम होगा.[3],[4] इसके बावजूद, दुनिया भर की सरकारें 2030 में जीवाश्म ईंधन की दोगुनी मात्रा से अधिक उत्पादन करने की योजना बना रही हैं, जो 1.5°C लक्ष्य के साथ न्यायसंगत नहीं होगा.[5]
इसके अलावा, ऊर्जा क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन को लेकर किए जाने वाले प्रयास अक्सर कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित होते है. डीकार्बोनाइजेशन से जुड़े प्रयासों में सामाजिक-आर्थिक मुद्दों की उपेक्षा ही की जाती है.[6] ऐसे में स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर न्यायोचित और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन पर एक आदर्श बदलाव की दिशा में बढ़ने की आवश्यकता है. एक न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन को हासिल करने का मतलब यह होगा कि लो कार्बन ऊर्जा प्रणाली की ओर बढ़ते हुए इसकी लागत और लाभों का वितरण, उचित और समान रूप से करना.[7] इस तरह का बदलाव महामारी के बाद की रिकवरी को अधिक टिकाऊ और समावेशी तरीके से आगे बढ़ा सकता है.

देशों को एक न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है. सबसे पहले, वर्तमान ऊर्जा व्यवस्था अभी भी जीवाश्म आधारित अर्थव्यवस्था का ध्यान रखती है, क्योंकि इसमें न्यायोचित ऊर्जा संक्रमण के लिए अस्पष्ट आदेश और नीतिगत असंगति मौजूद है.[8] दूसरा, जीवाश्म ईंधन से तौबा करने का अर्थ आर्थिक संरचनाओं में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाना होगा. यह बदलाव विशेषत: जीवाश्म-निर्भर देशों और क्षेत्रों में इसकी वज़ह से होने वाले राजस्व और नौकरियों के नुक़सान और श्रम बाज़ार की संरचना में परिवर्तन को देखते हुए लाना होगा.[9],[10] अंत में, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, प्रयास और लक्ष्य, पर्याप्त रूप से सुसंगत नहीं हैं, जिसके चलते प्रगति की निगरानी करना और नीति निर्माण में तालमेल बिठाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.[11]

G20 की भूमिका

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में G20 देश 83 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं. G20 के सदस्य देशों में से 19 ने नेट-जीरो के लक्ष्य तय कर रखे हैं.[12] इन देशों में 76 प्रतिशत उत्सर्जन चूंकि ऊर्जा क्षेत्र से आता है,[13] अत: यह स्पष्ट है कि उन्हें अपनी नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए, G20 देशों को समयबद्ध तरीके से जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करते हुए इसे समाप्त करना चाहिए. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर, G20 देश 85 प्रतिशत कोयले, 64 प्रतिशत कच्चे तेल और 65 प्रतिशत जीवाश्म गैस का उत्पादन करते हैं.[14] लेकिन यह भी सच ही है कि G20 देशों ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बदलाव के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है. 2021 में उनके ऊर्जा मिश्रण में 29 प्रतिशत हिस्सेदारी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की है, जो 2010 की तुलना में 19 प्रतिशत से अधिक होता है.[15]

इसके अलावा, 2022 में G20 ने इंडोनेशिया की अध्यक्षता के दौरान बाली एनर्जी ट्रांजिशन रोडमैप को अपनाया था, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा तकनीक, ऊर्जा तक पहुंच और वित्त और निवेश सहित एक न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन के लिए प्रमुख प्राथमिकताएं निर्धारित की गयी थी. इन प्राथमिकताओं को लागू करने के लिए, G20 देशों ने न्यायोचित और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सिद्धांतों और दिशानिर्देशों को अपनाने का संकल्प लिया था. इस आलेख में की गई सिफ़ारिशें सीधे उस शासनादेश पर आधारित हैं, जिससे G20 देश न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं.

G20 के लिए सिफ़ारिशें

ऊपर उल्लिखित चुनौतियों का समाधान करने के लिए, हम ऐसे तीन क्षेत्रों पर जोर देते हैं जिन पर G20 देशों को न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की योजना बनाएं और उसे लागू करते समय विचार करना चाहिए. ये सिफ़ारिशें इस दिशा में तैयार की गई हैं:

  • राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर शासन प्रक्रिया में सुधार;
  • जीवाश्म पर निर्भर देशों और क्षेत्रों में आर्थिक विविधीकरण में निवेश करना; और
  • न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन को साकार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को सुव्यवस्थित करना.

सिफ़ारिश 1: राष्ट्रीय और स्थानीय स्तरों पर न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन के लिए शासन प्रक्रिया में सुधार करें.

कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि सस्टेनेबिलिटी ट्रांज़िशन को साकार होने में सदियों नहीं तो दशकों लग सकते हैं,[16] इस प्रक्रिया को गति दी जा सकती है.[17] उचित शासन प्रणाली की स्थापना के साथ-साथ ऐसा करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता होना भी ज़रूरी और अहम है.[18] ऊर्जा संक्रमण के मामले में, ऊर्जा क्षेत्र में वर्तमान शासन संरचनाओं को बदलना चाहिए, क्योंकि उनमें से अनेक संरचनाएं जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने के लिए तैयार की गई है, जो कार्बन-इंटेंसिव हैं और कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा समाधानों के उपयोग की राह को बाधित करती हैं.[19]

उदाहरण के लिए, 2021 के ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट के बावजूद, जो विभिन्न देशों को अक्षम सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर करने पर प्रतिबद्ध करता है, अनेक देश आज भी जीवाश्म सब्सिडी पर भारी रकम ख़र्च करते दिखाई देते हैं. विशेषत: 2022 में जब भू-राजनीतिक संघर्ष और महामारी के बाद की रिकवरी की मांगों के कारण जीवाश्म ईंधन की कीमतें अस्थिर हो गईं थी, अनेक देशों ने सब्सिडी देकर नागरिकों को राहत पहुंचाने का फ़ैसला लिया था.[20] इस तरह के उपाय किसी संकट के प्रभावों को कम करने में सहायक साबित हो सकते हैं, लेकिन सरकारों को उन समूहों और क्षेत्रों में हस्तक्षेप को लक्षित करना चाहिए जिनकी उन्हें सबसे अधिक आवश्यकता है. जैसे कि सबसे कमज़ोर लोगों के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और छोटे उद्यमों के लिए कर में कटौती करना ज़्यादा उपयोगी साबित होगा.[21],[22]

एक ऊर्जा व्यवस्था में किया जाने वाला बदलाव एक सहयोगी शासन संरचना का रूप ले सकता है, जो ऊर्जा संक्रमण की दिशा में प्रयासों का नेतृत्व और समन्वय करने के लिए मुख्य अधिकार रखने वाला होगा.[23]  देश विशेष के संदर्भ पर आधारित, G20 देशों को सरकार और गैर-सरकारी हितधारकों के बीच एक विशिष्ट बहु-मंत्रालयी टास्क फोर्स या संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना करनी चाहिए, जो कि सिर्फ ऊर्जा संक्रमण से जुड़े प्रयासों के समन्वय का काम संभालेंगे. एक स्पष्ट शासन संरचना और प्रक्रिया की स्थापना संक्रमण में शामिल विभिन्न खिलाड़ियों की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट करने में सहायता करेंगे, ताकि कोई भी अपने दम पर अकेले काम करने से बच सके. एक विशिष्ट आदेश के साथ, इस नई व्यवस्था को नियमों, संवाद या बातचीत के तरीकों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के बारे में स्पष्ट नीति अपनानी होगी. ये सारे काम सहयोगात्मक संवादों के माध्यम से ही आगे बढ़ेंगे.[24]

समावेशन और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए संपूर्ण शासन प्रक्रिया लोकतांत्रिक और पारदर्शिता होनी चाहिए. सरकार को विविध हितधारकों, जैसे सिविल सोसायटी ग्रुप, शिक्षाविदों, निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी इसमें शामिल करना चाहिए. उदाहरण के तौर पर श्रम संबंधी मुद्दों के न्यायोचित परिवर्तन के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच त्रिपक्षीय सोशल डायलॉग की सिफ़ारिश करता है.[25] इस डायलॉग का नेतृत्व अक्सर सरकारी संस्थाएं करती हैं, जो इस तरह के समन्वय और संवाद की निगरानी के लिए टास्क फोर्स की स्थापना या नियुक्ति करती हैं.[26]

एक बार एक नई शासन संरचना परिभाषित हो जाती है और उसके आदेश भी तय हो जाते है तो अगले कदम में व्यापक सक्षम माहौल बनाने के लिए कार्रवाई की ठोस कार्य योजना विकसित की जा सकती है. प्रगति की निगरानी और मूल्यांकन की अनुमति देने वाली व्यवस्था स्पष्ट और मापने योग्य परिणामों के नियोजन के ये दस्तावेज़ समयबद्ध भी होने चाहिए. इसके साथ ही केंद्र और स्थानीय सरकारों के बीच समन्वय और सहयोग भी अहम होता है, क्योंकि आमतौर पर स्थानीय सरकार अपनी स्वयं की परिवर्तन योजना और कार्यक्रम को लेकर चलते हैं जो उनके विशिष्ट संदर्भों को पूरा करने वाली होती हैं.[27]

उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका ने प्रेसिडेंशियल क्लाइमेट कमीशन (PCC) की अगुवाई में एक न्यायोचित संक्रमण ढांचा विकसित किया है. इस आयोग का उद्देश्य देश को जलवायु परिवर्तन पर सलाह देना और संक्रमण को लो कार्बन अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ावा देना था. यह ढांचा दक्षिण अफ्रीका में न्यायोचित संक्रमण के मार्ग पर पहला कदम है. अंततः इसमें अब ठोस कार्यान्वयन विनियमों और कार्य योजनाओं पर काम करने की आवश्यकता होगी. ऐसा करने के लिए, इसे PCC के समन्वय के तहत अन्य हितधारकों के साथ और परामर्श और सहयोग करने की ज़रूरत है.[28] G20 देश ठोस ढांचे, रोडमैप या कार्य योजनाओं को विकसित करके अपने स्वयं के न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन को तेज करने के लिए इस दृष्टिकोण से सबक ले सकते हैं.

सिफ़ारिश 2: जीवाश्म ईंधन से परे जाकर आर्थिक विविधीकरण में निवेश किया जाए.

वैश्विक ऊर्जा संक्रमण जैसे-जैसे गति पकड़ रहा है, वैसे-वैसे जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने वाले क्षेत्रों और देशों में आर्थिक विविधीकरण ज़रूरी हो गया है. ऐसा इसलिए, ताकि वे देश अपनी राष्ट्रीय मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए अच्छी नौकरियां सृजित कर सकें और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखने में सफ़ल हो सके. इस प्रक्रिया के न्यायसंगत और टिकाऊ होने के लिए, नीति निर्माताओं और निवेशकों को कुछ बिंदुओं पर विशेष रूप से विचार करना चाहिए.

दीर्घकालिक विविधीकरण रणनीति के रूप में जीवाश्म गैस उत्पादन या डाउनस्ट्रीम निवेश यानी कच्चे तेल अथवा प्राकृतिक गैस से ही सैकड़ों उत्पाद बनाने पर काम करने की नीति को ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों के लिए जोख़िम माना जा हैं.[29] इस तरह के दृष्टिकोण से कार्बन-इंटेंसिव आर्थिक गतिविधियों पर निर्भरता बढ़ती है,[30] और इसकी वज़ह से संपत्ति के फंसने का जोख़िम भी होता है.[31],[32] यह जीवाश्म ईंधन और कार्बन-इंटेंसिव उद्योगों से जुड़ी स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय लागत के अलावा होने वाले प्रभाव अथवा असर है.[33],[34] इसके चलते न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में होने वाले संक्रमण के लिए अधिक प्रतिरोध उत्पन्न होने की भी संभावना है. ऐसा होने पर न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की लागत में इज़ाफ़ा और इसमें देरी लगने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.[35],[36] अत: G20 को जीवाश्म ईंधन उत्पादन से परे जाने वाले राजकोषीय और आर्थिक विविधीकरण के लिए राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने वाली रणनीतियों की ख़ोज करनी चाहिए. मसलन, G20 फ्रेमवर्क वर्किंग ग्रुप के तहत यह किया जा सकता है.

नवीकरणीय ऊर्जा आर्थिक विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. नवीकरणीय ऊर्जा सह-लाभों की एक श्रृंखला के साथ आती है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करना और ऊर्जा पहुंच और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार करना शामिल है.[37] हालांकि, यह ज़रूरी नहीं है कि इसकी भौगोलिक व्यवहार्यता और संबद्ध रोज़गार क्षमता एक ही भौगोलिक क्षेत्र में स्थित हों.[38] इसलिए, यह आवश्यक है कि G20 देश अपनी विविधीकरण रणनीतियों में अन्य स्थायी आर्थिक गतिविधियों जैसे कि ऊर्जा दक्षता, और भवन और पर्यावरण उपचार पर भी बल दें. उदाहरण के लिए, जीवाश्म ईंधन और भारी उद्योग उत्पादन स्थलों का पर्यावरणीय पुनर्वास न केवल नई आर्थिक गतिविधियों के लिए भूमि मुहैया करवाता है, बल्कि इसकी वज़ह से रोज़गार और कौशल विकास भी होता है, जिसका भविष्य में आर्थिक विविधीकरण के लिए उपयोग किया जा सकता है.[39],[40]

ऐसे विविधीकरण प्रयासों के लिए विभिन्न नीति हितधारकों के बीच सहयोग ज़रूरी होता है. G20 जीवाश्म-ईंधन उत्पादक क्षेत्रों में आर्थिक विविधीकरण के संबंध में विभिन्न देशों के बीच ज्ञान साझा करने का समर्थन करने की बेहतर स्थिति में है. इतना ही नहीं G20 सदस्य देशों के बीच बातचीत शुरू करके यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनकी पारंपरिक नीति केवल उनके ही स्तर पर सीमित होकर कार्य न करती रहें. उदाहरण के लिए, G20 के ऊर्जा संक्रमण, विकास और रोज़गार कार्य समूहों के बीच बातचीत और ज्ञान को साझा करते हुए किसी भी देश की पारंपरिक नीति को मज़बूत किया जा सकता है.

इसके अलावा, G20 को वित्तीय क्षेत्र को सक्षम बनाकर आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए. वित्तीय संस्थानों को अपने निवेश को जलवायु विज्ञान की अनिवार्यताओं के साथ तत्काल संरेखित करना ज़रूरी है. इसके लिए पहले संसाधनों को मुक़्त करने के लिए जीवाश्म ईंधन के वित्तपोषण को चरणबद्ध तरीके से बंद करके और फिर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर वित्तीय प्रवाह को स्थानांतरित करना चाहिए. ये दोनों बातें या तो समांतर या क्रमिक रूप से की जा सकती है. लेकिन याद रहे कि केवल नवीकरणीय ऊर्जा को ऊर्जा मिश्रण में जोड़ना ही ऊर्जा संक्रमण के लिए पर्याप्त नहीं है होगा, बल्कि इसके लिए जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध रूप से समाप्त करना मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.[41] मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक और डेवलपमेंट फाइनेंस संस्थानों को ऊर्जा संक्रमण अभियान का समर्थन करने के लिए मिश्रित वित्त मुहैया कराना चाहिए. इसी प्रकार छोटे पैमाने की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को जोख़िम मुक्त करना चाहिए, ताकि निजी पूंजी को इस क्षेत्र की ओर आकर्षित किया जा सके.[42]

इसके लिए, G20 को एक ट्रांजिशन फाइनेंस फ्रेमवर्क विकसित करना चाहिए. यह फ्रेमवर्क ऊर्जा संक्रमण और आर्थिक विविधीकरण दोनों का ही समर्थन करने वाले निवेशों को गति देने का काम करते हुए प्रोत्साहित करेगा. इस ढांचे में एक टैक्सोनॉमी यानी वर्गीकरण शामिल होना चाहिए जो प्रासंगिक देश संदर्भों, मज़बूत प्रकटीकरण और रिपोर्टिंग तंत्र, और विज्ञान-आधारित लक्ष्यों और G20 सतत वित्त रोडमैप के अनुरूप संक्रमण प्रगति और माइलस्टोन्स को मापने के लिए कार्यप्रणाली पर विचार करता है. स्टार्ट-अप, छोटे और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने वाले स्थायी वित्तीय साधनों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां होनी चाहिए. यह नीति नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और उनसे जुड़ी पहलों को बढ़ावा देगी, जिसके चलते इस क्षेत्र से जुड़े ग्रीन जॉब्स भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध होंगे.

कुल मिलाकर, जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने और ऊर्जा संक्रमण और आर्थिक विविधीकरण को चलाने से सबसे हाशिए पर और कम-पुनर्जीवित आबादी पर पर्याप्त सामाजिक, पर्यावरणीय और वित्तीय प्रभाव होंगे. ये प्रभाव तब तक होते रहेंगे जब तक कि इन प्रभावों को संबोधित नहीं किया जाता है. विविधीकरण रणनीतियों और संक्रमण वित्त को यह सुनिश्चित करने के लिए कैलिब्रेट या निर्धारित किया जाना चाहिए कि नवीनीकरण की दिशा में होने वाले संक्रमण के प्रतिकूल पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को दूर करने के लिए शमन तंत्र मौजूद रहे.

इस वर्ष की भारत की अध्यक्षता के दौरान, हम यह सुनिश्चित करने के लिए G20 का आह्वान करते हैं कि भूमि अधिकार और स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति का सम्मान किया जाए; ऊर्जा परियोजनाओं के विकास में जेंडर-रिस्पॉन्सिव और कम्युनिटी और सिविल सोसायटी की भागीदारी को मुख्यधारा में लाने के लिए स्पष्ट नीतियां बनाई जाएं; कर्मचारी अधिकारों की रक्षा; सभी ऊर्जा परियोजनाओं के कार्यान्वयन में मुख्यधारा के मानव अधिकार; उचित परिश्रम; और अंत में, ऊर्जा परिवर्तन में महिलाओं की सक्रिय और सार्थक भागीदारी सुनिश्चित की जाए.[43]

सिफ़ारिश 3: न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को कारगर बनाना.

वैश्विक न्यायोचित परिवर्तन को सक्षम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और एकजुटता ज़रूरी है. जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर कम निर्भरता वाले देशों और संक्रमण को नेविगेट करने की अधिक क्षमता वाले देशों को उच्च जीवाश्म ईंधन निर्भरता और कम क्षमता वाले देशों को समर्थन प्रदान करते हुए जीवाश्म ईंधन उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की अगुवाई करनी होगी.[44] G20 यह अगुवाई करने की बेहतर स्थिति में है.

G20 में अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जैसे कि संभावित ‘क्लाइमेट क्लब्स’ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन को गति देकर जलवायु और ऊर्जा एजेंडा को चलाने वाले हो सकते हैं. ये, UNFCCC जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों के लिए पूरक भी हो सकते हैं.[45],[46] ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां G20 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन एजेंडा निर्धारित करने में सहायता कर सकता है.

उदाहरण के लिए, जब राष्ट्रीय प्रयासों को पूरा करने और/या सामंजस्य स्थापित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीवाश्म ईंधन सब्सिडी की बात आती है तो G20 पारदर्शिता और उत्तरदायित्व पर अपने नेतृत्व को मज़बूत कर सकता है. फ़िलहाल, G20 के भीतर स्वैच्छिक रिपोर्टिंग प्रत्यक्ष सब्सिडी तक सीमित है, लेकिन जीवाश्म ईंधन के विकास के लिए पर्यावरणीय छूट या बाज़ार मूल्य के अनुबंधों और भूमि के पट्टों सहित अप्रत्यक्ष समर्थन की भी रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए.

पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को मज़बूत करने का एक अन्य महत्वपूर्ण तरीका यह है कि G20 को जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों (G20 के अंदर और बाहर) को तेल, गैस और कोयला उत्पादन के लिए उन देशों को योजनाओं और परियोजनाओं के बारे में वर्तमान, तुलनात्मक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इसके साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि G20 देशों की स्थिति उपरोक्त बातों के मामले में कैसे अंतर्राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हैं.[47] यह NDC को लागू करने और हासिल करने पर उनकी प्रगति रिपोर्ट और नेट-जीरो लक्ष्यों के माध्यम से किया जा सकता है.[48] एक अन्य विकल्प मौजूदा पहलों को मज़बूत करना होगा, यह एक्सट्रैक्टिव इंडस्ट्रीज ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव पर G20 के भीतर गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को शामिल होने के लिए राज़ी करके और भविष्य के जीवाश्म ईंधन विकास योजनाओं का अधिक विस्तार से खुलासा करके किया जा सकता है.

इसके अलावा, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में G20 नेतृत्व दिखाकर अधिक निकटता से सहयोग कर सकता है. जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि,[49] जैसे कई नवीन विचार हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से उपयोग से बाहर करने पर सहयोग का एक कम औपचारिक समझौता भी आगे बढ़ने का एक आशाजनक तरीका हो सकता है, जो अन्य देशों की जलवायु विज्ञान के अनुरूप अधिक तेजी से उत्सर्जन को कम करने की अधिक इच्छा का संकेत देगा.[50] इसके अलावा, ऊर्जा संक्रमण कार्य समूह के माध्यम से, G20 जीवाश्म ईंधन राजस्व पर अत्यधिक निर्भर देशों और/या उप-राष्ट्रीय क्षेत्रों में ज्ञान हस्तांतरण की सुविधा और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से उपयोग से बाहर करने, विविधीकरण, या नवीकरणीय ऊर्जा और स्थिरता क्षेत्र में रोज़गार सृजन, आर्थिक क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए भी सहयोग कर सकता है.


एट्रीब्यूशन : दिमास फौजी et al., ‘‘अचिविंग ए जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन इन द G20,’’ T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


Endnotes

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[2] Net Zero Tracker, “Net Zero Stocktake 2022: Assessing the Status and Trends of Net Zero Target Setting across Countries, Sub-National Governments and Companies,” 2022.

[3] SEI et al., “The Production Gap Report 2021,” 2021.

[4] IEA, “Net Zero by 2050,” International Energy Agency, 2021.

[5] SEI et al., “The Production Gap Report 2021”

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[11] Andreas Corcaci, “The Dynamics of Multilevel Administration. Coordination Processes between National, Supra- and International Administrations in Energy Policy, Zeitschrift Für Politikwissenschaft (April 2022).

[12] Net Zero Tracker, “Net Zero Stocktake 2022”

[13] Net Zero Tracker, “Net Zero Stocktake 2022”

[14] IEA, “Energy Statistics Data Browser,” International Energy Agency, 2022.

[15] Climate Transparency, “Climate Transparency Report: G20 Response to the Energy Crisis: Critical for 1.5oC,” 2022.

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[43] J. W. Van Gelder et al., “A Future without Coal: Banking on Asia’s Just Energy Transition,” Fair Finance Asia, 2021.

[44] Greg Muttitt and Sivan Kartha, “Equity, Climate Justice and Fossil Fuel Extraction: Principles for a Managed Phase Out, Climate Policy 20, no. 8 (2020): 1024–42.

[45] Robert O. Keohane and David G. Victor, “The Regime Complex for Climate Change, Perspectives on Politics 9, no. 1 (2011): 7–23.

[46] William Nordhaus, “Climate Clubs: Overcoming Free-Riding in International Climate Policy, American Economic Review 105, no. 4 (2015): 1339–70.

[47] SEI et al., “The Production Gap Report 2021”

[48] SEI et al., “The Production Gap Report 2021”

[49] Peter Newell, Harro van Asselt, and Freddie Daley, “Building a Fossil Fuel Non-Proliferation Treaty: Key Elements, Earth System Governance 14 (December 2022): 100159.

[50] IPCC, “Summary for Policymakers”

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