Issue BriefsPublished on May 12, 2023
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‘भारत में क्लाइमेट-स्मार्ट खेती को लेकर डिजिटलीकरण की दशा-दिशा’

सारांश

जलवायु के हिसाब से अनुकूल या क्लाइमेट-स्मार्ट खेती के लिए मौसम और कृषि से जुड़ी सूचनाओं के डिजिटल एकीकरण की दरकार है. भारत में तेज़ी से डिजिटलीकरण हो रहा है. ऐसे में क्लाइमेट-स्मार्ट खेती की दिशा में, उसकी नीतियों और तौर-तरीक़ों में डिजिटल एकीकरण को बढ़ावा दिया जाना निहायत ज़रूरी है. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में इसकी रूपरेखा और प्रक्रिया को लेकर दिशानिर्देश प्रस्तुत किए गए हैं: (a) भारत की कृषि और जलवायु सूचना का डिजिटिल एकीकरण; (b) ढांचे के तहत भारत की मौजूदा कृषि और जलवायु सूचना नीतियों का विश्लेषण; (c) उनकी मज़बूतियों, कमज़ोरियों और चूक को रेखांकित करना; और (d) भविष्य के लिए रास्ते सुझाना- इस ब्रीफ़ का मक़सद है. ये पॉलिसी ब्रीफ़ क्लाइमेट-स्मार्ट खेती के ज्ञात प्रभावी रास्ते निर्धारित करने में मदद करेगा. निश्चित रूप से इन मार्गों को अमल में लाया जाना चाहिए. साथ ही इस प्रक्रिया के ज्ञात बेअसर तौर-तरीक़ों को नई दिशा दी जानी चाहिए और मौजूदा समय में अज्ञात नए रास्तों की खोज और पड़ताल की जानी चाहिए. इस प्रकार ये पॉलिसी ब्रीफ़ भारत और G20 के अन्य देशों में व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर डिजिटलीकरण के प्रभावी मार्ग तैयार करने के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार करेगा.

चुनौती

क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि यानी CSA, भारत समेत तमाम G20 देशों के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) से जुड़े नज़रिए का एक हिस्सा है. ये एक पेचीदा और विशाल-आकार वाली चुनौती है. भारत में CSA के डिजिटलीकरण से जुड़े रोडमैप की उत्पत्ति से जुड़ा विज्ञान (ऑन्टोलॉजी) इसकी चुनौतियों का स्पष्ट, संक्षिप्त और व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है. ये इस चुनौती को पूरा करने से जुड़े मार्गों का ‘नक़्शा’ भी सुझाता है (चित्र 1 देखिए[i]). CSA के डिजिटलीकरण को कृषि-खाद्य प्रणालियों में डिजिटल टेक्नोलॉजियों के एकीकरण के तौर पर समझा जा सकता है.[ii] ख़ासतौर से CSA लक्ष्यों को हासिल किए किए जाने से संबंधित क़वायदों में ऐसा देखा जा सकता है.

भारत में तेज़ी से डिजिटलीकरण हो रहा है. ऐसे में क्लाइमेट-स्मार्ट खेती की दिशा में, उसकी नीतियों और तौर-तरीक़ों में डिजिटल एकीकरण को बढ़ावा दिया जाना निहायत ज़रूरी है.

CSA का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन (जैसे तापमान, बारिश, नमी, दबाव और हवा में दीर्घकालिक और अपरिवर्तनीय बदलाव; चित्र 1 – जलवायु परिवर्तन) की प्रतिक्रिया में किसी देश की कृषि उत्पादकता, लचीलेपन और उत्सर्जनों (चित्र 1 - नतीजे) को अनुकूल रूप से उच्चतम सीमा तक पहुंचाना है. इस दिशा में रणनीतियां किसी देश की अलग-अलग फसलों- जैसे अनाज, दालें, तिलहन, फल, सब्ज़ियां, मसाले, मवेशियों का चारा और नक़दी फसल (चित्र 1- फसल) के हिसाब से तय की जानी चाहिए. ये किसी देश के कृषि क्षेत्रों (चित्र 1- इलाक़ा) और उनके उप-क्षेत्रों के लिए स्थानीय भी होने चाहिए.

CSA वास्तविक समय यानी रियल टाइम में जलवायु परिवर्तन के कृषि प्रभावों से जुड़े ज्ञान को एकीकृत करता है. ये नीति-निर्माताओं और प्रयोगकर्ताओं को सही वक़्त पर फ़ीडबैक और फ़ीडफॉरवर्ड मुहैया कराता है. डेटा, सूचना, व्याख्या और ज्ञान (चित्र 1 - सेमीओटिक्स) की सेंसिंग, निगरानी, प्रॉसेसिंग, अनुवाद, संचार और अभिलेखन  (चित्र 1 - फ़ंक्शन) के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है. ये सीखता है और ख़ुद को बदलती परिस्थितियों के हिसाब से ढाल भी लेता है.

चित्र1: भारत में क्लाइमेट स्मार्ट कृषि के लिए डिजिटलाइज़ेशन रोडमैप की ऑन्टोलॉजी

स्रोत: लेखक के ख़ुद के

ये ऑन्टोलॉजी डिजिटल CSA के 43,200 (6*4*5*8*15*3) रास्तों को साथ जोड़ती है. हर मार्ग ऑन्टोलॉजी के हर कॉलम से किसी शब्द/मुहावरे को उसके साथ लगे शब्दों/मुहावरों से जोड़ता है. मिसाल के तौर पर इन रास्तों में ये बातें शामिल हैं:

  • भारत के पूर्वी हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में होने वाले बदलावों का खाद्यान्न फसलों पर असर के बारे में डेटा की डिजिटल सेंसिंग. इससे कृषि उत्पादकता का प्रभावी प्रबंधन हो सकेगा.
  • भारत के दक्षिणी पठार और पहाड़ी इलाक़ों में हवा की गति में बदलावों से पशुओं के चारे वाली फसलों पर होने वाले प्रभावों की व्याख्या की डिजिटल प्रॉसेसिंग. इससे कृषि उत्सर्जनों का प्रभावी प्रबंधन हो सकेगा.
  • भारत के पूर्वी पठार और पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश में होने वाले बदलावों से मसालों की फसलों पर होने वाले प्रभावों का डिजिटल संचार. इससे कृषि व्यवस्था के लचीलेपन और मज़बूती का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित होगा.

CSA के ज्ञात प्रभावी रास्तों का व्यवस्थित रूप से पता लगाना और उन्हें लागू करना, ज्ञात बेअसर रास्तों को नई दिशा देना और अज्ञात नए मार्गों की पड़ताल करना असल चुनौती है. इस चुनौती से निपटने को लेकर फ़िलहाल कोई प्रामाणिक मॉडल उपलब्ध नहीं है.

चुनौती से निपटने में G20 की भूमिका

निश्चित रूप से G20 को CSA की चुनौती से पार पाने में अहम भूमिका निभानी चाहिए. इसके लिए ऑन्टोलॉजिकल ढांचे, तौर-तरीक़े और सिफ़ारिशों को स्वीकार करके: (a) शोध, नीति और अभ्यासों, और (b) फ़ीडबैक और सीख के ज़रिए शोध को नीति और अभ्यास में बदलने; का एजेंडे तय करना चाहिए. G20 को किसी देश में CSA के डिजिटलीकरण के लिए ऑन्टोलॉजी का प्रयोग कर शोध, नीतियों और अभ्यासों के व्यवस्थित एजेंडे की प्रणालियां तय करने के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए. थिंक20 एंगेजमेंट ग्रुप्स G20 को शोध और नीतिगत सलाह उपलब्ध कराते हैं. चूंकि G20 की अध्यक्षता हर साल सदस्य देशों में बदलती रहती है, लिहाज़ा ऑन्टोलॉजिकल रूपरेखाएं तैयार करने के लिए ये एक आदर्श मंच है. कार्य दलों की पॉलिसी ब्रीफ़्स के ज़रिए शोध नीति और दिशानिर्देश मुहैया कराने के साथ-साथ ये मंच ऐसे विशेषज्ञों को भी एकजुट कर सकते हैं जो देशों के हिसाब से विशिष्ट ऑन्टोलॉजिकल रूपरेखाएं तैयार करने में मदद करें. साथ ही उपयुक्त संकेतकों के ज़रिए प्रगति की पड़ताल भी कर सकें.

इस चुनौती से निबटने और रोडमैप उपलब्ध कराने के लिए इससे मिलता-जुलता एकीकृत ढांचा या ठोस प्रयास दिखाई नहीं देता. समिति के एजेंडे के बारे में सदस्य देशों (और स्थानीय एजेंडों) को निश्चित रूप से बताया जाना चाहिए और सदस्य देशों से भी एजेंडे के बारे में जानकारियां ली जानी चाहिए. इसी तरह खाद्य और कृषि संगठन और विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय संगठनों से भी सूचनाएं इकट्ठा की जानी चाहिए.

CSA के ऑन्टोलॉजी को G20 के सभी देशों के ढांचे के तौर पर वैश्विक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए. हरेक देश की क्षेत्रीय और भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से फसलों के अनुकूलन के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए. इसके बाद इसे स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से अनुकूलित वैश्विक ढांचे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. ढांचे के तहत हरेक देश अपनी स्थानीय आवश्यकताओं, वरीयताओं और संसाधनों के आधार पर अपने लिए रास्तों का चुनाव कर सकता है. साझा रूपरेखा स्वीकार किए जाने से किसी एक देश या G20 के तमाम देशों (और G20 से बाहर के देशों में भी) को इनके अमल को लेकर फ़ीडबैक और सबक़ों के बारे में जानकारियों को औपचारिक रूप देने और उनके हस्तांतरण में मदद मिलेगी. इससे चुनौती से जुड़े ज्ञान के निर्माण और क्रियान्वयन से जुड़े चक्र का कायाकल्प करने में मदद मिलेगी. इस तरह चुनिंदा, टुकड़ों में बंटे और एकाकी प्रयासों की बजाए इस पूरी क़वायद को सम्मिलित, प्रणालीगत और व्यवस्थित कोशिशों में बदला जा सकेगा.

CSA के ऑन्टोलॉजी को G20 के सभी देशों के ढांचे के तौर पर वैश्विक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए. हरेक देश की क्षेत्रीय और भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से फसलों के अनुकूलन के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए.

किसी देश द्वारा CSA को लेकर शोध, ज़रूरत और तौर-तरीक़ों की समय-समय पर माप किए जाने के लिए इस रूपरेखा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इन तीनों के बीच की खाई का विश्लेषण करने से शोध को नीति और अभ्यास में बदले जाने की क़वायद के मार्गदर्शन में मदद मिलेगी. इनसे हासिल परिणामों को दोबारा शोध के लिए भेजा जा सकेगा. इस तरह फ़ीडबैक और लर्निंग साइकल का एक सकारात्मक चक्र क़ायम हो सकेगा, जिससे SDG-3 से जुड़े दृष्टिकोण (अच्छा स्वास्थ्य और सलामती) हासिल हो सकेंगे.

लिहाज़ा देशों को अपने प्रयासों में गठजोड़ क़ायम करने, अपनी-अपनी नीतियों से तालमेल बिठाने और सीखे गए सबक़ों के बारे में बताने के लिए G20 समिति की निश्चित रूप से मदद करनी चाहिए. G20 के भीतर और वैश्विक स्तर पर CSA के डिजिटलीकरण के लिए इसे सही मार्ग तय करना चाहिए. साथ ही इस दिशा में वैश्विक प्रयासों के लिए ‘दिशानिर्देश’ भी उपलब्ध कराने चाहिए.

G20 को सिफ़ारिशें

भारत में CSA की अहम ज़रूरतों के निपटारे के लिए कृषि डिजिटलीकरण नीतियां तैयार की जानी चाहिए. इस दिशा में मार्गदर्शन के लिए नीचे कुछ सिफ़ारिशें दी गई हैं. ऐसी नीतियों को G20 के अन्य देशों और समूह से बाहर के देशों के लिए आम तौर पर इस्तेमाल में लाने लायक़ बनाया जा सकता है. इन सिफ़ारिशों को ऑन्टोलॉजी के पांच आयामों के हिसाब से संगठित किया गया है. ये हैं- परिणाम, क्षेत्र, फसल, डिजिटल कार्रवाई और डिजिटल सांकेतिकता. जलवायु परिवर्तन से जुड़ा आयाम बाहरी कारक वाला है और निश्चित रूप से नीतियों के ज़रिए इनके प्रभावों को समझकर उनका निपटारा किया जाना चाहिए.

परिणाम प्रबंधन

ऑन्टोलॉजी को तीन परिणामों वाले इनपुट-प्रॉसेस-आउटपुट मॉडल की तरह देखा जा सकता है: उत्पादकता, लचीलापन और उत्सर्जन. ये तीन परिणाम स्वतंत्र और एक-दूसरे पर अंतर-निर्भर, दोनों हैं. नतीजतन इनके बीच हमेशा एक संतुलनकारी क़वायद रहती है जिसका प्रबंधन किए जाने की दरकार होती है. मिसाल के तौर पर उत्पादकता को अधिकतम किए जाने से लचीलेपन में कमी आ सकती है और उत्सर्जन का स्तर बढ़ सकता है. वैश्विक खाद्य प्रणाली का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में बड़ा योगदान है. उत्सर्जन के परिणामों का उत्पादकता और लचीलेपन के साथ सामंजस्य बिठाना CSA के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया से जुड़ी चुनौती का अहम हिस्सा है. संभावित नीतियों को तीन परिणामों के साथ सूचीबद्ध किया गया है.

उत्पादकता

  • मिट्टी प्रबंधन के टिकाऊ तौर-तरीक़े अपनाने को प्रोत्साहन देना. इनमें ऑर्गेनिक खेती, संरक्षित जुताई और फसल चक्रण (crop rotation) शामिल हैं. किसानों के शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के ज़रिए ऐसा किया जा सकता है.
  • सिंचाई की कुशल तकनीकों (जैसे टपक सिंचाई या ड्रिप इरिगेशन और वर्षा जल संचय यानी रेनवॉटर हार्वेस्टिंग) के इस्तेमाल के लिए अनुदान (सब्सिडी) और वित्तीय प्रोत्साहन देना
  • उगाई की स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से अनुकूल और कीटों और बीमारियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी ताक़त रखने वाले बीजों की संशोधित किस्मों के शोध और विकास में निवेश.

मज़बूती और लचीलापन

  • विभिन्न फसलों की मूल्य श्रृंखलाओं के विकास और बाज़ार से जुड़े बुनियादी ढांचे और समर्थन व्यवस्था के ज़रिए फसल विविधता को बढ़ावा देना.
  • जोख़िम प्रबंधन से जुड़ी समग्र रणनीति का विकास और क्रियान्वयन. इसमें जलवायु से जुड़ी आपदाओं से प्रभावित किसानों के लिए बीमा उत्पाद और वित्तीय सहायता शामिल हैं.
  • वित्तीय प्रोत्साहनों, तकनीकी सहायता और विस्तार सेवाओं के प्रावधान के ज़रिए कृषि-वानिकी अभ्यासों को अपनाए जाने की क़वायद को सहारा देना.

उत्सर्जन प्रबंधन

  • कम जुताई वाले तौर-तरीक़ों को आगे बढ़ाने वाली नीतियों का विकास और क्रियान्वयन. इनमें संरक्षित जुताई और बिना जुताई की खेती शामिल हैं.
  • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों (जैसे सौर, पवन और जैवभंडार या बायोमास ऊर्जा) को अपनाए जाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और समर्थन उपलब्ध कराना.
  • पशुधन प्रबंधन के टिकाऊ तौर-तरीक़ों के लिए नियमन और मानकों का विकास और उनका क्रियान्वयन. इनमें एंटीबायोटिक्स और हॉर्मोन्स के प्रयोग में कटौती, चारे के प्रबंधन में सुधार और मिथेन उत्सर्जनों को कम करने के लिए खाद प्रबंधन शामिल हैं.
  • फसलों की पराली जलाने जैसे प्रचलित अभ्यासों के सिलसिले में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने वाली नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन.

क्षेत्रीय प्रबंधन

भारत के तमाम इलाक़ों में CSA प्रबंधन में प्रभावी रूप से फ़र्क लाने के लिए डिजिटलाइज़ेशन के उपकरणों और प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल ज़रूरी है. इससे जलवायु, मिट्टी के प्रकार और ऊर्वरता, फसल विविधता और फसल उगाने के स्वरूपों, भूमि की जोत के नमूनों और स्वामित्व के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक हालातों और संसाधनों तक पहुंच के रियल-टाइम डेटा और सूचनाएं जुटाने में मदद मिल सकती है.

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, किसानों को उनके उपयोग के अनुकूल (customised) और क्षेत्र-विशेष के हिसाब से तैयार विस्तारित सेवाएं पहुंचाने में सहायक हो सकते हैं. इनमें मौसम के पूर्वानुमान, मिट्टी की स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्ट्स और फसलों से जुड़ी सलाहें शामिल हैं. इससे किसानों के लिए उनकी अनोखी कृषि-पारिस्थितिकी (agro-ecology) और सामाजिक-आर्थिक हालातों के हिसाब से उपयुक्त तौर-तरीक़े और टेक्नोलॉजियों का प्रयोग आसान हो जाएगा. सेंसर्स, ड्रोन्स और सैटेलाइट इमेजिंग जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग, संसाधनों के इस्तेमाल को उपयुक्त रूप से अधिकतम सीमा तक ले जाने में आगे भी मदद करेगी. साथ ही सूक्ष्म, बारीक़ या परिशुद्ध कृषि (precision agriculture) को भी बढ़ावा देना जारी रखा जा सकता है.

इतना ही नहीं, डिजिटलाइज़ेशन से स्टेकहोल्डर एंगेजमेंट और गठजोड़ में भी मदद मिल सकती है. ज्ञान और बेहतरीन तौर-तरीक़ों का आदान-प्रदान करने के लिए किसानों, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और इससे जुड़े अन्य किरदारों को एकजुट भी किया जा सकता है. इनसे ऐसी क्षेत्र-आधारित नीतियों और कार्यक्रमों के निर्माण में भी सहूलियत हो सकती है, जो CSA के अभ्यासों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देते हों.

सौ बात की एक बात ये है कि देश भर में CSA प्रबंधन में ज़रूरत के हिसाब से फ़र्क़ लाने की क़वायद को आगे बढ़ाने में डिजिटलाइज़ेशन एक अहम भूमिका निभा सकता है. ये क्षेत्रवार आंकड़े और सूचनाएं जुटाने और उनको आगे पहुंचाने में मददगार साबित हो सकता है. इससे सूक्ष्म खेती को बढ़ावा मिलेगा और स्टेकहोल्डर एंगेजमेंट और गठजोड़ में भी आसानी होगी. हर इलाक़े की अपनी अनोखी कृषि-पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक हालातों के हिसाब से सटीक अभ्यासों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने में ये क़वायद सहायक हो सकती है.

सौ बात की एक बात ये है कि देश भर में CSA प्रबंधन में ज़रूरत के हिसाब से फ़र्क़ लाने की क़वायद को आगे बढ़ाने में डिजिटलाइज़ेशन एक अहम भूमिका निभा सकता है. 

फसल प्रबंधन

क्लाइमेट-स्मार्ट फसल प्रबंधन में डिजिटलीकरण के प्रभावी इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए नीचे दी गई नीतियों पर विचार करना अहम हो जाता है:

  • तमाम फसलों में CSA प्रबंधन का भेदभाव: इसके तहत हर फसल की अपनी अनोखी कृषि-पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक हालातों की पहचान करना और CSA के अभ्यासों और टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने वाली क्षेत्रवार नीतियों और कार्यक्रमों की संरचना का काम शामिल है. डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म कृषि कार्य में लगे लोगों तक उनके हिसाब से तैयार और किसी ख़ास फसल के अनुकूल विस्तार सेवाओं को किसानों तक पहुंचाने में मदद कर सकते हैं. इनमें मौसम का पूर्वानुमान, मिट्टी की सेहत पर रिपोर्ट और फसल से जुड़ी सलाहकारी सेवाएं शामिल हैं.
  • तमाम फसलों में CSA प्रबंधन का एकीकरण: इसमें एकीकृत फसल प्रबंधन अभ्यासों के प्रयोग को बढ़ावा देना शामिल है. इस क़वायद के ज़रिए संसाधनों के उपयुक्त और अधिकतम इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा सकता है. ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जनों में कमी लाई जा सकती है और तमाम फसलों में उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है. सेंसर्स, ड्रोन्स और सैटेलाइट तस्वीरें, जैसे डिजिटल उपकरण, संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग और सूक्ष्म कृषि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं. इससे कच्चे मालों की लागत में कमी कर पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है.
  • सूक्ष्म फसल प्रंबधन: इसके तहत कृषि की बारीक़ तकनीकों को अपनाया जाता है. संसाधनों के इस्तेमाल को अधिकतम सीमा तक लाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए रियल-टाइम डेटा और सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है. फसल स्वास्थ्य, मिट्टी की नमी और पोषण के स्तरों पर निगरानी रखने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स जैसी डिजिटल टेक्नोलॉजियां का प्रयोग किया जा सकता है. इससे किसानों को तत्काल सिफ़ारिशें मुहैया कराई जा सकती हैं.

कुल मिलाकर CSA फसल प्रबंधन में डिजिटलाइज़ेशन का इस्तेमाल खेतीबाड़ी के टिकाऊ तौर-तरीक़ों को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकता है. साथ ही संसाधनों के अनुकूलतम इस्तेमाल और उत्पादकता बढ़ाने में भी ये सहायक हो सकता है. नीति-निर्माता अपनी ओर से किसानों को प्रोत्साहन और मदद उपलब्ध कराकर डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं. साथ ही डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास को भी बढ़ावा दिया जा सकता है और स्टेकहोल्डर एंगेजमेंट और गठजोड़ को आसान बनाया जा सकता है.

डिजिटल सांकेतिकता या सूत्रों (semiotics) का प्रबंधन

कृषि क्षेत्रों में फसलों के सिलसिले में भारत तापमान, बारिश, नमी, दबाव और हवा के रुख़ में बदलावों से जुड़े डेटा, सूचना, व्याख्या और ज्ञान का इस्तेमाल कर सकता है. प्रभावी फसल उत्पादकता, लचीलेपन और उत्सर्जनों के लिए नीचे दिए गए तरीक़ों के हिसाब से इनका प्रयोग किया जा सकता है:

  • मौसम से जुड़े आंकड़े जुटाना और उनका विश्लेषण करना: भारत में देश भर में फैले मौसम केंद्रों का विशाल नेटवर्क मौजूद है. ये केंद्र तापमान, बारिश, नमी, दबाव और पवन क्षेत्रों से जुड़े आंकड़े इकट्ठा करते हैं. फसलों की वृद्धि और पैदावार पर असर डालने वाले मौसम के रुखों का विश्लेषण करने और रुझानों की पहचान करने में इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है. डेटा को प्रॉसेस करने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके ज़रिए किसानों को मौसम के पूर्वानुमानों, कीटों और रोगों के संभावित प्रकोपों के साथ-साथ बुआई और कटाई के आदर्श समय के बारे में रियल-टाइम जानकारियां उपलब्ध कराई जा सकती हैं.
  • फसल पर आधारित मॉडलों का विकास: भारत में विभिन्न इलाक़ों में उगाई जाने वाली फसलों की एक विविध श्रेणी मौजूद है. इन सभी फसलों की अपनी अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं, जिनमें तापमान, बारिश और अन्य मौसमी कारक शामिल हैं. फसलों की पैदावार का पूर्वानुमान लगाने, संभावित जोख़िमों की पहचान करने और संसाधनों के अनुकूलतम इस्तेमाल के लिए जलवायु परिवर्तनीयता पर डेटा और सूचनाओं के प्रयोग से फसल के हिसाब से विशिष्ट मॉडल्स तैयार किए जा सकते हैं. किसानों को फसल प्रबंधन अभ्यासों पर बनी-बनाई सिफ़ारिशें मुहैया कराने के लिए इन मॉडलों को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों के साथ एकीकृत किया जा सकता है.
  • बारीक़ खेती को बढ़ावा देना: सूक्ष्म खेती के दायरे में सेंसर्स, ड्रोन्स और सैटेलाइट तस्वीरों जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियों के प्रयोग शामिल रहते हैं. इनके ज़रिए फसल की सेहत और वृद्धि पर निगरानी रखी जाती है और किसानों को वास्तविक समय में सुझाव उपलब्ध कराए जाते हैं. ये रुख़ संसाधनों के इस्तेमाल को अनुकूलित करने, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कमी लाने और फसल की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार बन सकता है. बारीक़ कृषि प्रौद्योगिकियों में मौसम से जुड़े आंकड़ों और सूचनाओं को शामिल कर किसान डेटा पर आधारित ऐसे फ़ैसले ले सकते हैं, जो क्षेत्रीय जलवायु के हालातों के हिसाब से तैयार किए गए हों.
  • किसानों की क्षमता का निर्माण: जलवायु परिवर्तनीयता पर आंकड़ों और सूचनाओं के प्रभावी इस्तेमाल के लिए किसानों के पास इन सूचनाओं की व्याख्या करने और उसे अपनी खेतीबाड़ी की तकनीकों में अमल में लाने के लिए ज़रूरी कौशल और ज्ञान होना चाहिए. डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करने और मौसम से जुड़े डेटा की व्याख्या करने के लिए आवश्यक किसान क्षमता खड़ी करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और विस्तार सेवाएं तैयार की जा सकती हैं. इन कार्यक्रमों को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए ताकि वो सभी किसानों (छोटी जोत वाले किसानों समेत) के लिए सुलभ और सस्ती हो सकें.

कुल मिलाकर डेटा, सूचना और व्याख्या का प्रभावी इस्तेमाल बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. तापमान, बारिश, नमी, दबाव और हवा के रुख़ में होने वाले बदलावों से फसलों पर होने वाले असर की जानकारी किसानों के बेहद काम आ सकती है. इससे भारत के कृषि क्षेत्रों में फसल उत्पादकता बढ़ाने, लचीलापन लाने और उत्सर्जन प्रबंधन करने में सहूलियत हो सकती है. डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अमल में लाकर और किसान क्षमता विकसित कर भारत टिकाऊ और जलवायु के हिसाब से लचीले कृषि अभ्यासों को बढ़ावा दे सकता है. इससे किसानों और पर्यावरण, दोनों को फ़ायदा पहुंच सकता है.

डिजिटल क्रियाओं का प्रबंधन

सेंसिंग, निगरानी, प्रॉसेसिंग, क्रियान्वयन, संचार और अवलेखों से जुड़ी डिजिटल क्रियाएं चक्रीय हैं और मौजूदा दौर में जारी हैं. परिणामों का कुशल और प्रभावी रूप से अभिलेख तैयार करने के लिए मौजूदा चक्रों को निश्चित रूप से फ़ीडबैक और फ़ीडफ़ॉरवर्ड मुहैया कराने चाहिए. फ़ीडबैक और फ़ीडफ़ॉरवर्ड के चक्रों को CSA की सही राह पर ज़ोर देना चाहिए. साथ ही ग़लत तौर-तरीक़ों को नई दिशा भी दिखानी चाहिए.

निश्चित तौर पर डिजिटल क्रियाओं के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे और उसके शासन-प्रशासन को विधायी, आर्थिक, नियामक, राजकोषीय/वित्तीय, सूचनात्मक, ठेके वाली, वैधानिक और सामाजिक नीतियों से प्रेरित किया जाना चाहिए.

निश्चित तौर पर डिजिटल क्रियाओं के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे और उसके शासन-प्रशासन को विधायी, आर्थिक, नियामक, राजकोषीय/वित्तीय, सूचनात्मक, ठेके वाली, वैधानिक और सामाजिक नीतियों से प्रेरित किया जाना चाहिए. इन नीतियों के विषय-वस्तु दोहरे स्तरों वाले होने चाहिए: (a) CSA के सूचनात्मक क्रिया चक्र को टिकाऊ बनाए रखना, और (b) CSA का सूचनात्मक एकीकरण करना. नीतियों के तहत इनके वाहकों को उद्देश्यों तक आगे बढ़ाने का लक्ष्य होना चाहिए. इनके प्रदर्शन के लिए मानक स्थापित किए जाने चाहिए और इनके रास्ते की बाधाओं में कमी लाई जानी चाहिए.

CSA प्रबंधन

इन सबका सार यही है कि डिजिटलाइज़ेशन किसानों और नीति-निर्माताओं को रियल-टाइम डेटा, सूचना और ज्ञान तक पहुंच मुहैया करा सकता है. ये निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार ला सकता है और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन में भी मददगार साबित हो सकता है. इससे कृषि में उत्पादकता, लचीलेपन और उत्सर्जन प्रबंधन को आगे बढ़ाया जा सकता है.

  • आंकड़ों के संग्रहण और विश्लेषण में सुधार: डिजिटल टेक्नोलॉजी, मिट्टी के स्वास्थ्य, पानी की उपलब्धता और जलवायु के हालातों पर सटीक और रियल-टाइम डेटा संग्रहण को सुलभ बना सकती है. इस सूचना को उत्पादकता, लचीलेपन और उत्सर्जन प्रबंधन को बढ़ावा देने को लेकर लक्षित नीतियों और हस्तक्षेपों को विकसित करने में प्रयोग में लाया जा सकता है.
  • सूक्ष्म कृषि: सैटेलाइट इमेजिंग, ड्रोन्स और सेंसर्स जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियां किसानों की मदद करती रह सकती हैं. इनके ज़रिए किसान पानी, ऊर्वरक और कीटनाशकों जैसे संसाधनों का अनुकूलतम इस्तेमाल सुनिश्चित कर सकते हैं. इससे उत्पादकता बढ़ाने, लागत घटाने और पर्यावरणीय क़वायदों का प्रभाव अधिकतम करने में मदद मिल सकती है.
  • बाज़ार सूचना तक पहुंच: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म किसानों को बाज़ार क़ीमतों, मांग और आपूर्ति के बारे में वास्तविक समय पर सूचना उपलब्ध करा सकते हैं. इससे किसानों को जागरूकता भरे फ़ैसले लेने की सहूलियत मिल सकती है- जैसे वो कौन से फसल उगाएं, उपज को कब और किस मूल्य पर बेचें.
  • प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएं: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को किसानों तक प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएं पहुंचाने के मक़सद से भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है. इनमें खेती के टिकाऊ तौर-तरीक़े, जोख़िम प्रबंधन और CSA शामिल हैं.
  • निगरानी और मूल्यांकन: उत्पादकता, लचीलेपन और उत्सर्जन प्रबंधन पर नीतियों और हस्तक्षेपों के प्रभाव पर निगरानी रखने और उनका मूल्यांकन करने में डिजिटल प्रौद्योगिकियां नीति-निर्माताओं की सहायता कर सकते हैं. इनके ज़रिए उन क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है जिनमें अभी अतिरिक्त निवेश और सहायता की दरकार है.

निष्कर्ष

 

CSA के डिजिटलाइज़ेशन के लिए एक रोडमैप ज़रूरी है. ये पॉलिसी ब्रीफ़ CSA तक पहुंचने के उलझन भरे घुमावदार रास्तों में आगे बढ़ने को लेकर एक स्पष्ट, संक्षिप्त और समग्र ढांचा उपलब्ध कराता है. स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर पर डिजिटलाइज़ेशन की प्रणालियों के शासन-प्रशासन के लिए इस रूपरेखा का प्रयोग किया जा सकता है. ये सभी स्तरों पर CSA प्रणालियों को सीखने का आधार बन सकता है. खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चुनौती से पार पाने के लिए CSA की चुनौती का निपटारा किया जाना एक पूर्व-शर्त है. इस क़वायद को कामयाबी से पूरा करने के लिए डिजिटलाइज़शन निहायत ज़रूरी है.


[i] चित्र 1 में दी गई ऑन्टोलॉजी को लेखकों के गहन अनुभव और चुनिंदा साहित्य के आधार पर तैयार किया गया है.

[ii] कृषि-खाद्य प्रणालियों का मतलब है वैश्विक खाद्य प्रणाली, जिसमें आपूर्ति और मूल्य की पूरी श्रृंखला शामिल होती है.

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