Author : Gulzar Bhat

Published on Feb 03, 2022 Updated 0 Hours ago

क्या "हाइब्रिड" और "ओजीडब्ल्यू" जैसे नए शब्द नागरिकों का विरोध करने के लिए एक और हथियार हैं या फिर घाटी में आतंकवाद के बदलते स्वरूप की ओर इशारा करते हैं?

‘Hybrid’ और ‘OGW’: कश्मीर में आतंकवादियों और नागरिकों के बीच की महीन रेखा

साल 2018 में घाटी में सुरक्षाबलों ने कुछ मुठभेड़ के दौरान कई ऐसे आतंकवादियों को मार गिराया जो एक या दो दिन पहले ही आतंकवादी समूह का हिस्सा बने थे. कुछ मामलों में तो मारे गए आतंकवादी के परिवारवालों तक को यह भरोसा नहीं था कि उनके बच्चों ने आतंक का रास्ता अख़्तियार कर हथियार तक उठा लिया था. जम्मू कश्मीर पुलिस ने ऐसे आतंकवादियों को ‘असूचीबद्ध आतंकी’ की श्रेणी में रखा, क्योंकि इन आतंकवादियों के रिकॉर्ड पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज़ नहीं थे. पिछले साल पुलिस ने एक नए शब्द ‘हाइब्रिड’ को गढ़ा. पुलिस के मुताबिक़ हाइब्रिड आतंकी वैसे आतंकवादी हैं जो हिंसात्मक गतिविधियों में एक नागरिक के तौर पर शामिल होते हैं. यहां तक कि पुलिस ने अपने प्रेस सम्मेलन के दौरान भी इस शब्द का इस्तेमाल किया. हालांकि, यह नया शब्द घाटी के लोगों की भावना के साथ नहीं जुड़ता है. यहां तक कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस शब्द पर यह कहते हुए सवाल खड़े किए कि जब वो अविभाजित राज्य के मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने यह शब्द नहीं सुना था.

जम्मू कश्मीर पुलिस ने ऐसे आतंकवादियों को ‘असूचीबद्ध आतंकी’ की श्रेणी में रखा, क्योंकि इन आतंकवादियों के रिकॉर्ड पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज़ नहीं थे.

यह शब्द घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली शब्दावली में नया जुड़ा है जो पिछले तीन दशकों से विवाद की वजह बना हुआ है. कुछ वर्ष पहले, पुलिस ने एक नया शब्द ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) गढ़ा था. ओजीडब्ल्यू वो लोग हैं जो आतंकवादियों को साज़ो-सामान उपलब्ध कराते हैं और गुप्त गतिविधियों को चलाने में मदद करते हैं. इस शब्द का इस्तेमाल हमेशा से सुरक्षा बलों द्वारा किया जाता रहा है जो अब आम कश्मीरी नागरिकों की शब्दावली में भी जगह बना रहा है. 90 के दशक में जब आतंकवाद का सबसे ज़्यादा असर था तब दो कश्मीरी शब्द – सोयाथ (बाती) या पाउट पलाव (शर्ट का पिछला हिस्सा) का इस्तेमाल आज के ओजीडब्ल्यू के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता था. जैसा कि कश्मीर के एक महत्वपूर्ण इतिहासकार ज़ारीफ़ अहमद ज़ारीफ़ ने बताया था कि  “आतंकवादी के लिए सोयाथ वैसा ही है जैसा कि मोमबत्ती के लिए बाती .” जबकि पाउट पलाव वो लोग हैं जो साये की तरह किसी चीज़ का पीछा करते हैं.

हालांकि, सुरक्षा बलों द्वारा सोयाथ और पाउट पलाव दोनों को ही ख़तरनाक नहीं माना जाता है क्योंकि ऐसे लोग एलओसी पार कर पाकिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने नहीं जाते हैं. 

नए शब्दों का इस्तेमाल

कश्मीर विवाद के संदर्भ में ही ओजीडब्ल्यू और हाइब्रिड का इस्तेमाल होता है, दुनिया के किसी युद्ध-ग्रस्त इलाकों में इसका उपयोग नहीं होता है. एक पूर्व सैन्य अधिकारी जो अब नेता बन गए हैं, लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत शाहा ने हाल में श्रीनगर में आयोजित एक सेमिनार के दौरान इसे मोटेतौर पर इसी रूप में बताया. जहां हाइब्रिड शब्द का इस्तेमाल उन आतंकवादियों के लिए किया जाता है जिनकी पहचान नहीं हो सकी है, तो OGW को आतंकवादियों को सूचीबद्ध करने की व्यवस्था के तहत प्रयोग में लाया जाता है  लेकिन दोनों ही शब्दों के चलते काफी विवाद हुआ क्योंकि सुरक्षा बलों के हाथों कई परिवार जिनके सदस्य मारे गए और उन्हें हाइब्रिड या ओजीडब्ल्यू बताया गया लेकिन उन परिवारों ने अपने लोगों को निर्दोष और सही बताया.  हैदरपुरा में हाल ही में एक विदेशी आतंकवादी समेत मारे गए चार आतंकवादी इसका ताज़ा उदाहरण हैं

कश्मीर के एक महत्वपूर्ण इतिहासकार ज़ारीफ़ अहमद ज़ारीफ़ ने बताया था कि  “आतंकवादी के लिए सोयाथ वैसा ही है जैसा कि मोमबत्ती के लिए बाती .” जबकि पाउट पलाव वो लोग हैं जो साये की तरह किसी चीज़ का पीछा करते हैं.

दरअसल, इस शब्द ने घाटी में आतंकवादी और नागरिकों के बीच एक महीन रेखा खींच दी है और कश्मीर जैसे इलाके में सुरक्षा बलों द्वारा इसका ग़लत इस्तेमाल हो सकता है, जहां सुरक्षा बलों को आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) के तहत विशेष शक्तियां हासिल हैं. घाटी में फर्ज़ी मुठभेड़ों के इतिहास को देखते हुए, आम कश्मीरियों को ऐसे नए शब्दों के दुरुपयोग को लेकर वास्तव में कई आशंकाएं सता रही हैं.

दूसरी ओर आतंकवादी घाटी में अपनी रणनीति में बदलाव करते नज़र आ रहे हैं जिसके तहत वो अपनी पहचान छिपा कर रख रहे हैं जिसके चलते सुरक्षाबलों को उन्हें ढूंढ निकालना बेहद मुश्किल हो रहा है. कश्मीर में आतंकवाद में तब सबसे अहम मोड़ आया जब हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के आतंकी कमांडर बुरहान वानी ने घाटी के युवाओं को बरगलाने के लिए सोशल मीडिया मंच का इस्तेमाल करना शुरू किया था. वानी ने बहुत हद तक घाटी में स्थानीय आतंकवाद को हवा देने में कामयाबी पाई थी. साल 2016 में जब एक ऑपरेशन के दौरान उसे मार गिराया गया तब कई युवाओं ने अलग-अलग आतंकी संगठनों से ख़ुद को जोड़ लिया था. तब इन आतंकवादियों को अपनी पहचान छिपाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तब ऐसे आतंकवादी एके-47 राइफ़ल्स लटका कर अपनी तस्वीर पोस्ट करने लगे. इस तरह का पैटर्न अगले तीन वर्षों तक जारी रहा, जब तक कि सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों की बदलती रणनीति को समझा और शायद इन्हीं बातों ने सुरक्षा बलों को हाइब्रिड जैसे शब्द गढ़ने के लिए मज़बूर किया है. 

सबूत की कमी

हालांकि, ओजीडब्ल्यू शब्द अब पिछले कई वर्षों से इस्तेमाल में है. कई युवकों पर ओजीडब्ल्यू होने के आरोप में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मामला भी दर्ज़ किया गया है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में पुलिस ने 625 ओजीडब्ल्यू को गिरफ़्तार किया, जबकि 2021 में कुल 594  ऐसे कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया.  इनमें से कुछ तो मुठभेड़ों में भी मारे गए. अब जबकि घाटी के नागरिकों को यह डर सताने लगा है कि कहीं उन्हें भी मुठभेड़ में मार दिया जाएगा या फिर उन्हें भी ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ या ओजीडब्ल्यू के तौर पर पहचाना जाने लगेगा, तब ऐसे मौकों पर सुरक्षा बल ठोस सबूतों के साथ अपनी बात कह पाने में असफल रहे हैं, जो इन ‘हाइब्रिड्स’ और पहचाने गए उग्रवादियों के साथ उनके सीधे संबंध की ओर इशारा कर पाता.

इस शब्द ने घाटी में आतंकवादी और नागरिकों के बीच एक महीन रेखा खींच दी है और कश्मीर जैसे इलाके में सुरक्षा बलों द्वारा इसका ग़लत इस्तेमाल हो सकता है, जहां सुरक्षा बलों को आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) के तहत विशेष शक्तियां हासिल हैं. 

विवादास्पद हैदरपोरा मुठभेड़ से पहले श्रीनगर के लवायपोरा इलाक़े में 21 दिसंबर, 2020 को मारे गए तीन लोगों के परिवारों ने भी मुठभेड़ पर सवाल उठाए थे और अपने मारे गए सदस्यों की बेग़ुनाही की बात कही थी, जो पुलिस के मुताबिक़ आतंकवादी थे और सुरक्षा बलों पर बड़ा हमला करने की योजना बना रहे थे. हालत यह है कि इन परिवारों में से एक परिवार के लोग तो अभी भी मारे गए अपने बेटे के शव के आख़िरी अवशेष की मांग कर रहे हैं.

चूंकि, अब आतंकवादियों ने अपनी पहचान छुपाना शुरू कर दिया है इसलिए सुरक्षा एजेंसियों के लिए आतंकवाद विरोधी अभियान चलाना मुश्किल हो गया है लेकिन वहीं दूसरी ओर नए शब्दों का इस्तेमाल नागरिक समाज के लिए नुक़सानदेह साबित हो सकता है.

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Gulzar Bhat is an independent journalist and Ph.D scholar based in Kashmir. He has majored in International Relations (Peace and Conflict Studies). He primarily works ...

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