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रणनीतिक नियंत्रण बालाकोट वाली कार्रवाई से पहले की शब्दावली है; आगे चलकर, नियंत्रित करना पाना नामुमकिन नहीं, तो मुश्किल जरूर होगा।
ऐसे समय में, जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपना ‘युद्ध नहीं’ का पुराना रिकॉर्ड बजाना शुरू कर रहा है, तो उसे एक तारीख अपने जहन में याद रखने की जरूरत है, जिसने भारत के रुख को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया है — वह तारीख है14 फरवरी 2019। भले ही इसकी शुरूआत पाकिस्तान ने की थी, लेकिन अब यह भारत की विदेश नीति और सामरिक मामलों को प्रभावित करेगा। यह तारीख बताती है कि भारत आतंकवाद और आत्मरक्षा के संबंध में अपनी पिछली रणनीतिक निष्क्रियता को झाड़ — पोंछ कर कदम उठाने का तत्पर हो गया है। वह दुनिया की सलाह पर गौर करेगा, वह दुनिया को भरोसे में लेगा, वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के नियमों के दायरे में रहेगा, लेकिन सबसे बढ़कर वह वही काम करेगा, जो भारत के हित में होगा। राजनीतिक और आर्थिक रूप से दुनिया पहले ही भारत के कई पहलुओं के साथ संबंध बनाए हुए है। अब उसे इन पांच झरोखों के जरिए 2019 के बाद के भारत के साथ सम्पर्क बनाने और बातचीत करने की जरूरत है।
पहला, अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं को लेकर भारत के रुख में बदलाव आ रहा है वह पूरी तरह सिद्धांतों पर आधारित होने की जगह लेन-देन के पथ की ओर बढ़ रहा है।
सिद्धांत हमेशा कार्रवाइयों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। लेकिन भारत अब सिद्धांतों के पिंजरे में कैद होने को तैयार नहीं है। पुलवामा के बाद यह दरवाजे अचानक खुल गए हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नहीं बल्कि पाकिस्तान के भीतर लड़ाकू विमान भेजना — एक छोटा, लेकिन बहुत प्रकट उदाहरण है। ऐसा काफी हद तक राजनीतिक विवशताओं और सामरिक जरूरतों को प्रस्तुत करने के कारण हो रहा है। लेकिन इसने भारत-पाकिस्तान आतंकवाद-सैन्य संबंधों के बारे में अपेक्षाएं हमेशा के लिए बढ़ा दी हैं। वह कहता है कि अगर आप आतंकवादी भेजेंगे, तो हम अपनी सेना भेजेंगे।
दूसरा, भारत बड़े से बड़ा खतरा उठाने को तैयार है और वह भी अप्रत्याशित रूप से।
भारत ने अपनी वायु सेना के 12 मिराज 2000 विमानों को नियंत्रण रेखा के पार भेजकर और पाकिस्तान के भीतर बालाकोट में “जेईएम (जैश-ए-मोहम्मद) के सबसे बड़े प्रशिक्षण शिविर” पर बम बरसाकर अपनी विशेषज्ञता के मुताबिक कदम उठाते हुए अप्रत्याशित संकल्प प्रदर्शित किया है। जहां एक ओर इस बात पर राजनीतिक तकरार शुरू हो चुकी है कि क्या किया गया और क्या नहीं किया गया, यह वास्तविकता बरकरार है कि संबंर्धों के मायने बदल चुके हैं, जोखिम बढ़ चुका है और जबरदस्त जवाबी कार्रवाई का खतरा दिखाई दे रहा है। रणनीतिक नियंत्रण बालाकोट वाली कार्रवाई से पहले की शब्दावली है; आगे चलकर, नियंत्रित करना पाना नामुमकिन नहीं, तो मुश्किल जरूर होगा।
तीसरा, दुनिया के बाकी देशों के साथ ज्यादा सक्रिय और व्यापक संबंध।
14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा आतंकवादी हमले के दो दिन बाद, विदेश मंत्रालय (एमईए)ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी देशों (अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस) सहित 25 प्रमुख देशों साथ ही साथ जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया के राजनयिकों को इस बारे में जानकारी दी और हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने के बारे में यकीन दिला दिया। इस बैठक से पहले पाकिस्तान को इस कदम की जानकारी दे दी गई। 27 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में भारत द्वारा “पहल करके हवाई हमला किए जाने” के बाद एमईए ने फिर से अमेरिका, चीन, सिंगापुर, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सहित 12 देशों के राजनयिकों को इस हवाई हमले की जानकारी दी। प्रशासनिक अलगाव से बाहर निकलकर सैन्य कार्रवाई को राजनयिक पहुंच के जरिए मजबूती प्रदान की गई है।
चौथा, भारत का नैतिक रुख अख्तियार करने — आतंकवाद के खिलाफ युद्ध करने की बजाय — “हम निंदा करते हैं” या “हम चेतावनी देते हैं” जैसी निष्क्रियता के कारण विश्वसनीयता के अभाव वाले कमजोर, बेअसर बयानों के साथ शांति को चुनने — का दौर अब चुका है।
इस बार काफी आक्रामक शब्दों का इस्तेमाल किया गया: “उन्होंने [पाकिस्तान] बहुत बड़ी गलती कर दी है?” “उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी” और सबसे बढ़कर “सुरक्षा बलों को कार्रवाई करने की खुली छूट दे दी गई है।” अंतिम वाक्य “खुली छूट” अपने आप में नया अर्थ रखता है जिसका आशय है कि सुरक्षा बल जो भी मुनासिब समझे, वही कदम उठाने के लिए आजाद हैं, उनके रास्ते में कोई भी राजनीतिक रुकावट खड़ी नहीं की जाएगी और उन्हें रोका नहीं जाएगा, जैसा उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध में किया गया था।
पांचवां, अमेरिका की तरह बंधक संकट में किसी तरह की न बातचीत करने का कानून नहीं होने के बावजूद भारत ने दुनिया को बता दिया कि वह प्रभावपूर्ण तरीका अपनाएगा और उस दौरान कोई बातचीत नहीं करेगा।
जब विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को पाकिस्तान ने पकड़ लिया था, तो अपने देश में आतंकवादी संगठनों का राजनीतिक लाभ उठाने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की एवज में दोनों देशों के बीच बातचीत की पेशकश की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ उनका आह्वान अस्वीकार कर दिया, बल्कि भारत ने बातचीत करने से भी साफ इंकार कर दिया। भारत के अतीत के कदमों पर नजर दौड़ाएं, तो यह बहुत बड़ा बदलाव है, जब दिसम्बर, 1989 में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबइया सईद और उसके बाद 1999 में कंधार में 178 मुसाफिरों और चालक दल के 11 सदस्यों को मुक्त कराने के लिए आतंकवादियों के सामने घुटने टेक दिए थे।
ये पांच कदम भारत की विदेश नीति के कथानक को नए सिरे से लिखेंगे और यह नीति विश्व को प्रभावित करेगी तथा वैश्विक विचार-विमर्शों को नया आकार देगी। भारत में नई इच्छा शक्ति का उदय हो रहा है, राजनीतिक दलों के शोर-गुल के बावजूद जनता, सरकार का समर्थन करने को तैयार है, यहां तक कि विपक्ष भी साथ दे रहा है। 14 फरवरी 2019 के बाद से भारत के साथ विचार-विमर्श कर रहे किसी भी देश को भारत की विदेश नीति के रुख में आए इस बदलाव को समझना होगा।
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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