Published on Aug 07, 2023 Updated 0 Hours ago

चंद्रयान के मिशन भारत और उसके अंतरिक्ष संगठन इसरो के लिए बड़ी कामयाबी हैं.

भारत का चंद्रयान-3: चाँद की ओर बढ़ते क़दम!

14 जुलाई को भारत ने चांद के लिए अपने तीसरे अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-3 को रवाना किया. चंद्रयान-3 को दक्षिणी भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया. चंद्रयान को भारी वज़न ले जा सकने में सक्षम लॉन्च व्हीकल LMV3 से रवाना किया गया, जिसका नाम ‘बाहुबली’ रखा गया था. चंद्रयान-3 क़रीब एक महीने तक अंतरिक्ष में सफ़र करके अगस्त के तीसरे हफ़्ते में चांद की सतह पर उतरेगा. चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी भारत को- अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के बाद- चंद्रमा पर कोई यान भेजने वाला चौथा देश बना देगी. चंद्रयान-3 लॉन्च करने के बाद, भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ट्वीट किया कि ‘LMV3 M4 व्हीकल ने चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक कक्षा में लॉन्च कर दिया है.’

चंद्रयान-3 का सफ़र

चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उतारने का ये भारत का दूसरा प्रयास है. चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 के चार साल बाद लॉन्च किया गया है. चंद्रयान-2 को सितंबर 2019 में चांद की सतह पर उतारा गया था, जहां उसकी हार्ड लैंडिंग हुई थी. आख़िर में ये मिशन नाकाम रहा था. क्योंकि, चांद की सतह पर पहुंचने से बस 2.1 किलोमीटर पहले चंद्रयान-2 का संपर्क इसरो के ग्राउंड स्टेशन से टूट गया था. इससे पहले अक्टूबर 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 मिशन लॉन्च किया था, तो मोटा मोटी चांद तक के सफ़र का अंदाज़ा लगाने के लिए लॉन्च किया गया था. हालांकि, उस यान में एक मून इंपैक्ट प्रोब भी शामिल थी. उस मिशन से इस बात की तस्दीक़ हुई थी कि चांद की सतह पर पानी है. उस मिशन के दौरान भी चंद्रयान-1 और ग्राउंड स्टेशन के बीच संपर्क में दिक़्क़तें आई थीं, जिनकी वजह से 300 दिन बाद उस मिशन को ख़त्म करना पड़ा था. हालांकि, चंद्रमा का चक्कर लगाने वाला यान कई बरस तक कक्षा में घूमता रहा था.

चंद्रयान मिशन, भारत और इसरो के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम मोटे तौर पर संचार और अर्थ ऑब्ज़रवेशन उपग्रहों के ज़रिए विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है.

चंद्रयान मिशन, भारत और इसरो के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम मोटे तौर पर संचार और अर्थ ऑब्ज़रवेशन उपग्रहों के ज़रिए विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है. इसके बावजूद, अंतरिक्ष की पड़ताल के विषय को भी कुछ तवज्जो दी जाती रही है. मिसाल के तौर पर 2014 में भारत ने अपना मंगलयान मिशन लॉन्च किया था. ये यान मंगल ग्रह का चक्कर लगाने के लिए भेजा गया था, जिसकी वजह से भारत, मंगल ग्रह का चक्कर लगाने वाला अंतरिक्ष यान भेजने वाला एशिया का पहला देश बन गया था. भारत, मंगल ग्रह का चक्कर लगाने वाला यान भेजने की कोशिश करने वाला भी पहला देश था. इससे पहले नवंबर 2011 में भारत ने रूस के साथ मिलकर मंगल ग्रह की कक्षा में चक्कर लगाने वाला यान अंतरिक्ष में भेजा था, मगर चीन का वो मिशन नाकाम रहा था. इसके बाद चीन ने 2021 में मंगल ग्रह की कक्षा में चक्कर लगाने वाला मिशन और उसकी सतह पर उतरने वाला यान भेजने में सफल रहा था.

इससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक और पहलू का पता चलता है, जो लगातार महत्वपूर्ण होता जा रहा है: यानी चीन के साथ उसका मुक़ाबला. वैसे तो भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम बहुत छोटा है, और चीन की तुलना में कम क्षमता वाला है. लेकिन, भारत इस मुक़ाबले में बना रहना चाहता है. अंतरिक्ष का क्षेत्र, बड़ी ताक़तों के बीच प्रतिद्वंद्विता का एक और मोर्चा बन गया है, और उभरती हुई नई वैश्विक अंतरिक्ष रेस में पश्चिमी देशों के साथ अपनी साझेदारी बढ़ा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान, भारत ने आर्तेमिस समझौतों पर दस्तख़त किए थे. ये चांद के लिए भेजे जाने वाले मिशन के क्षेत्र में, अमेरिका की अगुवाई में सहयोग और प्रशासन की व्यवस्था है. आर्टेमिस समझौते अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण खोज, पारदर्शिता, आपस में तालमेल से काम करने, अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली , चीज़ों के रजिस्ट्रेशन, बाहरी अंतरिक्ष की विरासत के संरक्षण, नुक़सानदेह दख़लंदाज़ी को रोकने और अंतरिक्ष के कचरे के सुरक्षित निस्तारण जैसे कुछ अहम सिद्धांतों पर आधारित हैं. इन सभी सिद्धांतों को 1967 की बाहरी अंतरिक्ष की संधि (OST) में शामिल किया गया था. बाहरी अंतरिक्ष में गतिविधियों को वैधानिक जामा पहनाने वाले ये बुनियादी क़ानूनी व्यवस्था थी.

महत्वपूर्ण बात ये है कि आर्टेमिस समझौतों से रूस और चीन को दूर रखा गया है. भारत द्वारा इस संधि पर दस्तख़त करना, एक लिहाज़ से एकदम नई बात है. क्योंकि, जब बात अंतरिक्ष के कार्यक्रमों की आती है, तो अब तक भारत किसी भी अन्य देश के साथ जुड़ने से परहेज़ करता रहा है. हालांकि, भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए अमेरिका, फ्रांस और सोवियत संघ से काफ़ी मदद मिलती रही है. मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच इस बात पर भी समझौता हुआ कि 2024 में भारत का एक अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भेजा जाएगा.

अब तक भारत किसी भी अन्य देश के साथ जुड़ने से परहेज़ करता रहा है. हालांकि, भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए अमेरिका, फ्रांस और सोवियत संघ से काफ़ी मदद मिलती रही है.

चंद्रयान-3 मिशन में एक लैंडर, एक प्रोपल्ज़ मॉड्यूल और एक रोवल शामिल हैं. इस मिशन का लक्ष्य चांद की सतह पर उतरना, आंकड़े इकट्ठा करना और कुछ वैज्ञानिक प्रयोग करना है, जिससे चांद को लेकर हमारी समझ और बेहतर हो सकेगी. लैंडर में कई तरह के पे-लोड हैं, जिनमें चंद्रा की सर्फेस थर्मोफिज़िकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE) भी शामिल है, जो चांद की सतह पर थर्मल कंडक्टिविटी और तापमान का पता लगाएगी; इसमें लूनर सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA) उपकरण भी है, जो लैंडर के उतरने वाली जगह पर सीस्मिक गतिविधियों का पता लगाएगा; और इसमें लैंगम्यूर प्रोब (LP) भी शामिल है, जो प्लाज़्मा डेंसिटी और इनके अंतर की जानकारी जुटाएगी. चंद्रयान-3 के साथ नासा (NASA) का पैसिव लेज़र रेट्रोरिफ्लेक्टर भी भेजा गया है, जो चांद पर लेज़ रेंजिंग का अध्ययन करेगा. इसके अलावा, चंद्रयान के साथ भेजे गए रोवर के साथ भी कई पे-लोड भेजे गए हैं. जैसे कि अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) और लेज़र इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS), जिससे रोवर के चांद पर उतरने वाली जगह के आस पास की बनावट का पता लगाया जा सके.

चंद्रयान-3 भारत के भारी वज़न उठाने वाले रॉकेट LVM3 की भी सफलता है, जिसे पहले GSLV Mk III के नाम से जाना जाता था.

सफलता के बेहद क़रीब 

वैसे तो, चंद्रयान-3 मिशन के नतीजे हमें अगस्त महीने के अंत तक ही पता चलेंगे. लेकिन, इससे भारत की महत्वाकांक्षा और क्षमताओं का पता चल जाता है. अगर ये मिशन कामयाब रहता है तो इससे बाहरी अंतरिक्ष को लेकर भारत की अन्य योजनाओं को भी बल मिलेगा. इसमें 2024 में अंतरिक्ष के लिए मानव मिशन लॉन्च करने की योजना भी शामिल है.


यह लेख मूल रूप से द डिप्लोमैट में प्रकाशित हुआ था.

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