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20 अक्टूबर को नेवाडा में एक रैली को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने एलान किया कि अमेरिका इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्स ट्रीटी (INF समझौता) से हट सकता है। दो पक्षों के बीच हुए इस समझौते पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन और सोवियत संघ के महासचिव मिखाइल गोर्बाचेव ने 8 दिसंबर 1987 को दस्तख़त किए थे।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन 22-23 अक्टूबर को मॉस्को में थे जहां उन्होंने औपचारिक तौर पर INF समझौते [1] से हटने की बात रूसी प्रशासन को बताई गई । INF समझौते के तहत दोनों देश यानी अमेरिका और सोवियत संघ छोटी और मध्यम दूरी की (500 से 5000 किलोमीटर दूरी तक की) ज़मीन से मार करने वाली मिसाइलों को ख़त्म करने के लिए तैयार हुए थे। 1991 तक ऐसी सभी मिसाइल, लॉन्चर और मिसाइल दागने के लिए ज़रूरी स्ट्रक्चर नष्ट कर दिए गए जिनका एमओयू [2] में ज़िक्र था। ध्यान देने वाली बात ये है कि समझौते में न्यूक्लियर वॉरहेड के ख़ात्मे की बात को शामिल नहीं किया गया था हांलाकि न्यूक्लियर और पारंपरिक दोनों तरह की मिसाइल को नष्ट किया गया।
इस समझौते में ख़ास बात ये थी कि इसमें जांच-पड़ताल के व्यापक प्रावधान [3] थे। जांच के लिए एक कमीशन बनाया गया था, जो साइट पर जाकर जांच कर सकता था ताकि मतभेदों को ख़त्म किया जा सके। इसमें मौके पर जाकर घोषणापत्र में दी गई जानकारी की जांच पड़ताल शामिल थी। मिसाइल बेस से लेकर प्रोडक्शन की जगह देखने के साथ निगरानी में मिसाइलें नष्ट करने के अलावा शॉर्ट नोटिस में जांच करने पहुंच जाने की बातें भी इसमें शामिल थीं। सोवियत संघ के टूटने के बाद बेलारूस, यूक्रेन, कज़ाख़िस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान को भी INF समझौते में शामिल किया गया क्यों कि इन देशों में या तो मिसाइल बनाई जाती थीं या फिर ऑपरेशनल थीं। INF समझौता 1991 के मध्य से लागू हो गया, तब 2,692 मिसाइलें नष्ट की गईं।
अमेरिका ने ज़मीन से मार करने वाली 846 क्रूज़ मिसाइल और ‘पर्शिंग सेकंड’ मिसाइल को नष्ट किया। वहीं सोवियत रूस ने 1846 SS-4s, SS-5s और SS-20s मिसाइलों को ख़त्म कर दिया। जांच के लिए बनाया गया कमीशन बैठकें करता रहा है लेकिन कम समय के अंतराल में बैठक होने में कमी आई है। आखिरी बैठक दिसंबर 2017 में हुई थी।
अमेरिका का कदम पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं था, ख़ासकर के फरवरी में न्यूक्लियर पॉस्चर रिव्यू (NPR) [4] आने के बाद। इस रिव्यू में अमेरिका के सामने आने वाली सुरक्षा चुनौतियों का सख़्ती से आंकलन किया गया। इसमें अंदाज़ा लगाया गया कि भविष्य में उसे बड़ी तादाद में परमाणु हथियारों की ज़रूरत पड़ सकती है, जैसी पहले कभी नहीं पड़ी। न्यूक्लियर पॉस्चर रिव्यू में रूस और चीन दोनों का ज़िक्र ऐसे देश के तौर पर है जो “शीत युद्ध के बाद इंटरनेशनल ऑर्डर (दुनिया में दबदबे वाले देशों का क्रम) को बदलना चाहते हैं।”
न्यूक्लियर पॉस्चर रिव्यू में कहा गया है कि “रूस हथियारों पर नियंत्रण रखने के समझौतों और वादों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। परमाणु हथियारों के संदर्भ में रूस ने ऐसे सिस्टम का इस्तेमाल किया जिस पर INF समझौते के तहत बैन लगाया गया था।” ये आशंका उस वक़्त जताई गई जब रूस ने 2008 में ज़मीन से मार करने वाली नई क्रूज़ मिसाइल का परीक्षण किया। 2014 में भी ओबामा प्रशासन ने रूस पर INF समझौते के उल्लंघन करने का आरोप लगाया लेकिन यूरोपीय देशों के कहने पर अमेरिका समझौते से नहीं हटा। वहीं रूस इससे इनकार करता है कि SSC-8 (नोवाटोर 9M 729) मिसाइल INF समझौते का उल्लंघन है हांलाकि वो इस मिसाइल के तकनीकी ब्यौरे साझा करने का भी इच्छुक नहीं है।
ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि अमेरिका, चीन के परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण और इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में परमाणु हथियारों की तैनाती को लेकर चिंतित है। इन हथियारों में DF-26 मिसाइल भी शामिल है जो 3,000-4,000 किलोमीटर तक मार कर सकती है। ये रेंज INF समझौते के तहत बैन है लेकिन समझौता दो देशों के बीच हुआ है और चीन उसका हिस्सा नहीं है इसलिए चीन की तरफ से खतरा बना हुआ है।
हथियारों पर नियत्रंण को लेकर चीन तभी तैयार होने की स्थिति में है जब वो अपने हथियारों का जखीरा अमेरिका और रूस के बराबर ले आए।
न्यूक्लियर पॉस्चर रिव्यू में परमाणु हथियारों को बढ़ाने और इनकी तैनाती पर ज़ोर दिया गया है, अमेरिका ने इस दिशा में आधुनिकीकरण का भी एलान किया है।
इसमें हवा और समंदर से मार करने वाली क्रूज़ मिसाइल भी शामिल है ताकि रूस के INF समझौते का उल्लंघन करने से पैदा हुए अंतर की भरपाई की जा सके। अमेरिका के एलान से यूरोप में घबराहट है। जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने अमेरिका के इस फ़ैसले को अफ़सोसनाक बताते हुए कहा है कि इससे यूरोप के सामने मुश्किल सवाल खड़े हो जाएंगे। फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रॉ ने इस बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से फ़ोन पर बातचीत की और इस बात पर ज़ोर दिया कि यूरोप की सुरक्षा के लिए ये समझौता कितना अहम है।
यूरोपियन यूनियन की विदेश नीति चीफ़ फेडरिका मोगेरिनी ने INF समझौते को यूरोपीय की सुरक्षा का एक स्तंभ बताते हथियारों की नई होड़ के ख़िलाफ़ चेताया भी है।
रूस की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सेक्रेटरी निकोलाई पैट्रूशेव ने कहा है कि रूस बराबरी हासिल करने के लिए ज़रूरी कदम उठाएगा, उन्होंने ये भी जोड़ा कि रूस बातचीत के लिए तैयार है।
पहले के अमेरिकी राष्ट्रपतियों से उलट राष्ट्रपति ट्रम्प हथियारों पर नियंत्रण करने वाले समझौतों को ख़ारिज कर रहे हैं। ऐसी राय उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने भी ज़ाहिर की है। ये अमेरिका के ईरान के साथ उस समझौते से मई में एकतरफ़ा बाहर होने से भी झलकता है जिसमें ईरान के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों ने समझौता किया था। समझौते के तहत ईरान पर लगे प्रतिबंध हटने थे और ईरान अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को आगे नहीं बढ़ाता। अमेरिका और रूस के बीच नए “स्टार्ट” (स्ट्रैटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) समझौते के तहत दोनों देश 1550 से ज़्यादा लॉन्चर नहीं रख सकते, ये समझौता फरवरी 2021 में ख़त्म होने वाला है। अमेरिका के मूड को देखकर नहीं लगता कि ये समझौता अलगे 5 सालों के लिए आगे बढ़ाया जाएगा। अमेरिकी फ़ैसले ने साफ़ सिग्नल दे दिया है कि अपनी सुरक्षा के लिए वो परमाणु हथियारों में इज़ाफ़ा करेगा।
[4] US Nuclear Posture Review 2018
[5] https://www.nytimes.com/2018/10/19/us/politics/russia-nuclear-arms-treaty-trump-administration.html?action=click&module=RelatedCoverage&pgtype=Article®ion=Footer
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Ambassador Rakesh Sood was a Distinguished Fellow at ORF. He has over 38 years of experience in the field of foreign affairs economic diplomacy and ...
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