Author : Sohini Nayak

Published on Jun 16, 2021 Updated 29 Days ago

इस वार्ता का प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के आपसी परस्पर संबंधों को एक सकारात्मक दिशा देना था जो पिछले कुछ समय से मुश्किल दौर से गुज़र रहा है 

भारत और नेपाल के बीच होने वाली कोई भी बातचीत महत्वपूर्ण क्यों होती है?

इस साल की शुरुआत यानी जनवरी महीने में, राजधानी नई दिल्ली में, छठवीं भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक भारतीय  विदेशी मामलों के मंत्री एस. जयशंकर और उनके नेपाली सहयोगी प्रदीप कुमार गैवाली की अध्यक्षता मे सम्पन्न हुआ. इससे पहले भारत के नेपाल के साथ बॉर्डर मुद्दे पर हुई शीत झड़प के बाद, नेपाली शिष्ट मंडल और उसमें आए विदेश मंत्री व विदेश सचिव भरतराज पौदयाल और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के भारत आगमन और वार्ता उपरांत के संभावित विकास पर पूरी दुनिया अपनी नजरें गड़ाए हुए था.    

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवस्ताव के अनुसार, इस वार्ता का प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के आपसी परस्पर संबंधों को एक सकारात्मक दिशा देना था जो पिछले कुछ समय से मुश्किल दौर से गुज़र रहा है, और इस वार्ता के ज़रिए दोनों देश भविष्य मे एक रचनात्मक उपाय ढूंढ कर एक सद्भावनापूर्ण माहौल पैदा करेंगे।  

तालमेल का आधार

1987 में शुरु किया गया ये ज्वाइंट कमिशन, मुख्य रूपों से दोनों देशों के विदेश मंत्री और मंत्रालय की मदद से नेपाल- भारत के द्विपक्षीय संबंधों की लगातार समीक्षा करते रहने का आपसी सहमति से लिया गया द्विपक्षीय तंत्र है. ‘सच तो ये है, कि ये दोनों देशों के बीच हमेशा से एक अनूठा और बहुआयामी संबंध रहा है, जिसके तहत दोनों देशों के नागरिकों ने विरासत मे मिली परंपरा, संस्कृति और शिष्ट समाज के गुणों के बलबूते हमेशा ही एक बहुआयामी और गर्मजोशी से भरा आपसी संबंध साझा किया है. इस समझ और सांस्कृतिक आदानप्रदान के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के बीच संचार, व्यापार और अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सहयोग, जल स्त्रोत, पर्यटन और सीमा सुरक्षा प्रबंधन से लेकर शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने तक की व्यवस्था इस समझौते की छत्र-छाया मे ही आता है.  

यह महत्वपूर्ण वार्ता उस समय हुई थी, जब सन् 2020 का प्रथम पखवाड़ा सिर्फ़ नई विदेश नीति बनाने मे ही बीत गया था, ताकि भारत और नेपाल के मध्य बनी गलतफ़हमी की दीवार को तोड़ा जा सके

यह महत्वपूर्ण वार्ता उस समय हुई थी, जब सन् 2020 का प्रथम पखवाड़ा सिर्फ़ नई विदेश नीति बनाने मे ही बीत गया था, ताकि भारत और नेपाल के मध्य बनी गलतफ़हमी की दीवार को तोड़ा जा सके, खासकर तब, जब की नेपाल ने भारत के ऊपर उनके क्षेत्र मे ग़लत तरीके से घुसपैठ करके उनके क्षेत्र में अतिक्रमण करने का आरोप भारत के ऊपर मढ़ दिया था. इसके अलावा उन्होंने अपने संसद में एक नया कानून पारित करके रातों-रात अपने देश का एक नया नक्शा तैयार करके उसे दुनिया के सामने रखा था, जिसमें उन्होंने उन क्षेत्रों का भी ज़िक्र किया था, जिसके अतिक्रमण का आरोप भारत पर लगाया गया था. इसके साथ ही इस हिमालय देश के भीतर भी भीषण राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है जहां वर्तमान रूलिंग पार्टी नैशनल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) भी खुद दो धड़ों मे बंट गई है – एक जिसे नेपाली प्रधानमंत्री के. पी. ओली और दूसरा धड़ा जिसे एनसीपी के चेयरमैन पुष्प कमाल दहल और माधव नेपाल संयुक्त रूप से नेतृत्व कर रहे थे. इस पृष्टभूमि मे नेपाल का भारत के साथ की वार्ता कैसी होगी, इसका सभी को इंतज़ार था.  भारत के खुद के क्षेत्रीय सुरक्षा के मद्देनजर नेपाल के भीतर होने वाले चुनाव पर भी भारत के प्रभाव को सुनिश्चित करता. 

विशेष महत्व

ये संयुक्त शिखर वार्ता, कोविड-19 महामारी के बाद, नेपाली प्रतिनिधियों का एक महत्वपूर्ण भारत दौरा है. हालांकि, भारत पहले ही अपने इस उत्तरीय पड़ोसी देश में अपने हिस्से के कूटनीतिक यात्रा कर चुका है. समय की मांग को मद्देनज़र रखते हुए और कोविड 19 और उससे पैदा हुई महामारी की स्थिती में, सीमापार में उसके रोकथाम और निपटने की व्यवस्था के रूप मे Track-1 नीति के तहत के परस्पर और तत्काल सहयोग की नीति एक महत्वपूर्ण ज़रूरत थी, जो निश्चित तौर पर दोनों ही देशों के बीच बसी अविश्वास की खाई को भरने मे काफ़ी कारगर सिद्ध हुआ है.

2019 में कश्मीर और लद्दाख के राज्य बनने के बाद भारत ने अपना पहला राजनैतिक नक्शा पब्लिश किया था जिसमें कश्मीर और लद्दाख को भारत का अभिन्न अंग दर्शाते हुए भारत ने  लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को भी भारत का हिस्सा दर्शाया था, तबसे नेपाल के साथ के भारत के रिश्ते में भी थोड़ी तल्ख़ी आ गई, इसलिए इस साल की शुरुआत में हुई इस शिखर वार्ता का महत्व और भी बढ़ गया था. 

इसके बावजूद भारत ने ‘पड़ोसी पहले’ की पॉलिसी के अपने विशेष प्रावधान के अंतर्गत, नेपाल को वरीयता देते हुए, कोविड-19 के दस लाख़ टीके मुहैया करवा चुका था.

इसके बावजूद भारत ने ‘पड़ोसी पहले’ की पॉलिसी के अपने विशेष प्रावधान के अंतर्गत, नेपाल को वरीयता देते हुए, कोविड-19 के दस लाख़ टीके मुहैया करवा चुका था. इस योजना के अंतर्गत भारत के एयर इंडिया विमान को विशेष तौर पर इस काम के लिए चुना गया था, जिनकी मदद से उपरोक्त टीकों को सफ़लतापूर्वक भारत से नेपाल के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर उतारा गया और फिर वहाँ से इन टीकों को सावधानीपूर्वक काठमांडू के बाहरी इलाके के टेकु स्वास्थ्य केंद्र तक, स्वास्थ्य मंत्रालय के नियामक के अनुसार, पहुंचाया गया.  

प्रधानमंत्री ओली ने विशेष तौर पर अपने भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी को अपने इस स्वास्थ्य डिप्लोमसी के ज़रिए दोनों देशों के बीच अतीत के दुविधापूर्ण और भयावह स्थिति से उबरने मे सहायता के लिए धन्यवाद दिया.  

इस वार्ता के अलावा, संचार से जुड़े कुछ मुद्दों को सुलझाने में भी सफ़लता हासिल की गई. इनमें मोहिहारी – अमलेखगंज पेट्रोलियम प्रोडक्ट पाइपलाइन और चितवन तक इस पाइपलाइन को बढ़ाने की योजना पर विचार करने और नेपाल के पूर्वी क्षेत्र झापा से सिलीगुड़ी तक, एक नया पाइपलाइन बिछाने की संधि, पर काम किया गया. दोनों ही देशों ने भारत और नेपाल के बीच चलने वाली पहली पैसेंजर रेलवे लाइन परियोजना, जो भारत के जयनगर से नेपाल के कुरथा वाया जनकपुर, के बन कर तैयार हो जाने पर भी खुशी जतायी. दोनों ही पक्ष जल्द से जल्द इस रूट पर ट्रेन चलाए जाने पर विचार विमर्श किया. इस वार्ता के दरमयान, दोनों देशों के बीच रेल संचालन से संबंधित और भी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं, जिसमें की रक्सौल – काठमांडू ब्रॉड गेज रेलवे लाइन भी एक थी, इनपर भी विचार विमर्श किया गया. 

नेपाल ने साथ ही भारत को संयुक राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे अपनी परमानेंट मेंबरशिप पाने में समर्थन का भरोसा दिया, ताकि दुनिया में बड़ी शक्तियों में बदलाव दिखे.

संयुक्त आयोग ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि दोनों देशों के लोगों के बीच आवाजाही बरकरार रहे और सामानों के लेन-देन की ज़रूरत भी पूरी होती रहे. इस संधि वार्ता में कुछ ही दिन पहले बीरगंज और बिराटनगर में बनाए गए एकीकृत चेक पोस्ट का भी उल्लेख किया गया. जिसकी वजह से लोगों की बेरोकटोक आवाजाही, और व्यापार शुरू हो सका है. दोनों ही देशों ने नेपालगंज मे निर्मित तीसरे एकीकृत चे क पोस्ट के निर्माण की घोषणा का स्वागत भी किया.  भारत ने ये भी कहा कि वो जल्दी ही भैराह्वा मे नए एकीकृत चेकपोस्ट का निर्माण शुरू करेगा. 

इस बैठक में संयुक्त हाइड्रोपावर योजना, और उसके साथ ही प्रस्तावित पंचेश्वर बहु-उद्देशीय योजना के शीघ्र निपटारण के मुद्दे पर भी विचार किया गया था, जिससे दोनों ही देशों के लोगों को काफी फायदा होगा. भारत ने साथ ही ये भी सूचित किया कि शीघ्र ही वो नेपाल के और दो सांस्कृतिक धरोहर पशुपतिनाथ रिवर फ्रंट विकास योजना और पाटन दरबार स्थित भंडारखाल उद्यान जिरणोद्वार के प्रोजेक्ट्स को अनुदान मुहैया करवाएगा प्रांतीय, उप क्षेत्रीय, और अंतर राष्ट्रीय सहयोग से संबंधित विषयों पर भी बातचीत की गई. नेपाल ने साथ ही भारत को संयुक राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे अपनी परमानेंट मेंबरशिप पाने में समर्थन का भरोसा दिया, ताकि दुनिया में बड़ी शक्तियों में बदलाव दिखे. दोनों ही पक्ष संयुक्त आयोग की अगली चरण की बैठक आपसी सहमति से एक निश्चित समय पर नेपाल में कराने को तैयार हुए.       

हालांकि, अभी तक दोनों देशों के बीच के सीमा संबंधित मतभेद का कोई स्पष्ट हल नहीं निकल पाया है, इसके बावजूद, छह महीने पहले हुए इस संयुक्त वार्ता से निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच हालिया स्थिति पहले से बेहतर हुई है. सारांश में कहें तो, भोगौलिक रूप से निकटवर्ती राष्ट्रों के सामने बातचीत के ज़रिए दोबारा विश्वास स्थापित करने के अलावा कोई और विकल्प था भी नहीं. और ये विशेष रूप से भारत के लिए काफी ज़रूरी था क्यूंकि नेपाल और चीन दोनों अब भी एक दूसरे के अच्छे मित्र बने हुए हैं, जो किसी भी तरह के भू-राजनैतिक समीकरणों को अपनी सुविधा के अनुसार मोड़ने मे सक्षम है,.  

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