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तालिबान द्वारा लागू किए गए नीतिगत बदलावों के दूरगामी परिणामों के मद्देनजर क्षेत्र पर पड़ने वाले अभूतपूर्व प्रभावों पर वैश्विक समुदाय को ध्यान देना चाहिए.
हालिया रिपोर्टों और सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में अफ़ीम की खेती में लगभग 80 प्रतिशत की गिरावट आई है. UNODC (यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम) ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में इस गिरावट को स्वीकार लिया है, साथ ही नशीली दवाओं की तस्करी और सिंथेटिक दवाओं के बढ़ते उपयोग के ख़तरों के प्रति आगाह किया है. इन घटनाक्रमों के दूरगामी प्रभावों के आकलन से पहले हमें यह देखना होगा कि अफ़ीम पर लगाए गए प्रतिबंध का अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका पर क्या प्रभाव पड़ेगा, साथ ही देश पर तालिबान के नियंत्रण के हवाले से भी इस फ़ैसले को समझने की ज़रूरत है.
अफ़ीम पर लगाए गए प्रतिबंध का अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका पर क्या प्रभाव पड़ेगा, साथ ही देश पर तालिबान के नियंत्रण के हवाले से भी इस फ़ैसले को समझने की ज़रूरत है.
अप्रैल 2022 में जब मुल्ला हबीबुल्ला अखुंदजादा ने पहली बार अफ़ीम के उत्पादन और उसकी बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा की, तो इसे लागू करने में संगठन की गंभीरता को लेकर चिंताएं थीं. इन चिंताओं की वजह यह थी कि इस प्रतिबंध की घोषणा ऐसे वक्त में की गई जब पिछले साल की तुलना में 2021 में अफ़ीम की पैदावार 8 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. इसके बाद UNODC ने 2022 में अफ़ीम उत्पादन में 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. अन्य रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि संगठन ने कुछ क्षेत्रों में अफ़ीम उत्पादन को नज़रअंदाज़ किया है, जहां संगठन के दोबारा सत्ता में आने के बाद से कई बड़े किसानों को ‘अनिश्चिता के माहौल‘ के कारण बढ़ी हुई क़ीमतों का लाभ मिल रहा है. दो महीने की छूट के अलावा, जिसके तहत फसलों को नष्ट नहीं किया जाएगा, इन घटनाक्रमों ने उन अटकलों को बढ़ावा दिया है कि जहां एक तरफ़ संगठन प्रतिबंध के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने अपने शासन को वैध करार करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ़ वह वित्तीय मुनाफा कमाने के लिए बाज़ार में हेर-फेर कर रहा है.
मैन्सफील्ड ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि तालिबान ने देश में नशीली दवाओं की समस्या से धीरे-धीरे निपटने की योजना बनाई थी. ऊपरी तौर पर देखें, तो प्रतिबंध की इस सार्वजनिक घोषणा और उनके पुराने बयानों (जिसमें उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान को नशीली दवाओं से मुक्त बनाने की अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया था) से यही धारणा बनी थी कि संगठन अपनी शक्तियों का बलपूर्वक प्रयोग कर रहा है, और आदेशों का उल्लंघन करने वालों पर नकेल कस रहा है, लेकिन प्रशासनिक वास्तविकताओं ने उन्हें मज़बूर कर दिया कि वे ज़मीनी स्तर पर धीरे-धीरे बदलाव की रणनीति अपनाएं.
इन घटनाक्रमों ने उन अटकलों को बढ़ावा दिया है कि जहां एक तरफ़ संगठन प्रतिबंध के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने अपने शासन को वैध करार करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ़ वह वित्तीय मुनाफा कमाने के लिए बाज़ार में हेर-फेर कर रहा है.
समूह ने सबसे पहले दवा उत्पादकों पर दबाव बनाने और दक्षिण-पश्चिमी राज्यों, हेलमंद और कंधार, में बसंत और गर्मी की फसलों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि पतझड़ की फसलों को छोड़ दिया जो कटाई के लिए लगभग तैयार थीं. फसलों को नष्ट होने के दृश्य (मई तक लगभग 4,000 हेक्टेयर में लगी फसलों को नष्ट कर दिया गया था) और नशीली दवाओं के खिलाफ़ शुरू किए गए 6000 अभियान, एक संदेश देने के लिए थे. यहां तक कि दो महीने की छूट अवधि बीत जाने के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान के भीतर और बाहर अफ़ीम की खेती और उसके व्यापार पर रोक नहीं लगाई गई. प्रतिबंध से पहले उगाई गई अफ़ीम की बिक्री जारी रही, जहां मार्च 2023 में 10 महीने के लिए अफ़ीम पर से सेल्स टैक्स और कस्टम टैक्स को हटा दिया गया. इसका मकसद यह था कि किसानों को अगले मौसम फसलों की बुवाई करने से रोका जाए जिसके लिए फसलों को जबरन नष्ट करके और लोगों के गुस्से को भड़काने या अशांति का माहौल खड़ा करने की बजाय यह रास्ता चुना गया. यह तरीका काफ़ी हद तक सफ़ल रहा, भले ही जून 2022 के बाद से दक्षिण में अफ़ीम की क़ीमतें दोगुनी हो गईं और पूर्व में एक तिहाई बढ़ गईं (चित्र संख्या 1), लेकिन फसलों की बुवाई में कमी आई है. परंपरागत रूप से, देश में आधे से आधे अधिक अफ़ीम का उत्पादन हेलमंद राज्य में होता था. लेकिन राज्य में इस साल अफ़ीम की खेती 1,20,000 हेक्टेयर से घटकर 1,000 हेक्टेयर से भी कम हो गई है. (चित्र संख्या 2 देखें) जबकि थोड़े अमीर किसान कुछ समय के लिए अपनी फसलों का भंडारण कर लेते हैं ताकि दाम बढ़ने पर उन्हें बेचकर मुनाफा कमाया जा सके. लेकिन भूमिहीन या दूसरों की ज़मीन पर साझे में कृषि करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा, जो मौजूदा असमानताओं को और बढ़ावा देगा.
स्रोत: Alcis
दिसंबर 2021 में इफेड्रा पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले पर कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन यह फ़ैसला अफ़ीम की फसलों को हतोत्साहित करने और सिंथेटिक दवाओं के प्रसार के जोख़िम में कमी लाने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण था. इफेड्रा मेथेम्फेटामाइन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण घटक है और ज्यादा से ज्यादा किसान इस उद्योग से जुड़ रहे हैं. अफ़ीम की खेती की तुलना में इसके उत्पादन में कम किसान लगे हुए थे, लेकिन प्रतिबंध के कारण आपूर्ति शृंखला समेत सभी को फ़ायदा हुआ है. जहां 2022 में इसकी क़ीमतें 0.63 अमेरिकी डॉलर/किलो से बढ़कर 570 अमेरिकी डॉलर/किलो हो गईं, लेकिन तालिबान अभी भी व्यापारियों से टैक्स वसूल कर रहा है.
अफ़ीम की खेती अफ़ग़ानी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. चूंकि देश ऐतिहासिक रूप से नागरिक अशांति और युद्ध जैसे संकटों से लगातार जूझता रहा है, ऐसे में स्थायी रोज़गार के साधन स्थापित करने के सारे प्रयास असफल रहे हैं. इसलिए आपदा और विनाश से जूझ रहे अफ़ग़ानियों के लिए अफ़ीम का व्यापार ज़रूरी हो गया है क्योंकि यह फसल देश के भौगोलिक क्षेत्र के साथ अनुकूल है, और इसकी सूखा प्रतिरोध क्षमता अधिक है और बाज़ार में इसकी क़ीमतें भी बहुत ज्यादा हैं. 2021 में, अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी GDP का 9 से 14 प्रतिशत थी. 2000-2001 में, तालिबान ने अफ़ीम पर प्रतिबंध लगा दिया. देश की परिस्थितियां तब भी ऐसी थीं और तालिबान द्वारा अपनाई गई रणनीतियां समान थीं लेकिन संगठन ने रोपाई के मौसम से कुछ महीने पहले और सत्ता में कुछ समय तक रहने के बाद प्रतिबंध की घोषणा की थी. हालांकि, उत्पादन में 90 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन 2001 में तालिबान सरकार के पतन और अमेरिका के समर्थन में बनी नई सरकार के उभार के कारण सारी प्रगति रुक गई, और आने वाले सालों में अफ़ीम की पैदावार में बढ़ोतरी हुई. 2020 में, दुनिया में 85 प्रतिशत अफ़ीम अफ़ग़ानिस्तान में उगाई जा रही थी. यहां से अफ़ीम की तस्करी यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में की जाती है, जिसके तार पूरी दुनिया से जुड़े हुए हैं. घरेलू स्तर पर, देश में नशे की लत की समस्या बहुत बढ़ गई है, जहां लगभग 10 प्रतिशत आबादी नशे की शिकार है. 2021 में राजनीतिक संक्रमण और उसके कारण राष्ट्रीय संकट की स्थिति ने अधिक से अधिक लोगों को नशे की दलदल में धकेल दिया है. तालिबान शहरों से नशे के शिकार लोगों को पकड़ रहा है और उन्हें देश के पुनर्वास केंद्रों में भर्ती करा रहा है, जो खस्ताहाल स्थिति में हैं.
स्रोत: अफ़ग़ानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क
एक आम अफ़ग़ानी परिवार अफ़ीम की आपूर्ति शृंखला के साथ गहरा जुड़ाव रखता है, इसी कारण अफ़ीम उन्मूलन अभियानों का तगड़ा विरोध हो रहा है, जहां कई स्थानीय कमांडर इन अभियानों में शामिल हो रहे हैं, और पड़ोसी गांवों और बुजुर्गों के खिलाफ़ बदले की कार्रवाई कर रहे हैं. लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए, IEA अफ़ीम की बजाय कपास की खेती को एक विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है, जिसके लिए उन रिपोर्टों का हवाला दिया जा रहा है, जिनके मुताबिक एक साल के भीतर कपास की पैदावार 10 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है. गेहूं को भी एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. अफ़ीम की खेती में गिरावट के कारण उन्हीं क्षेत्रों में गेहूं की खेती में वृद्धि हुई है, लेकिन इसका लाभ प्रतिशत कम होने के कारण इसे गरीब किसानों द्वारा अपनाए जाने की संभावना भी कम है.
ऐसी अटकलें हैं कि केवल धार्मिक कारणों से अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंध लगाया गया है, और साथ ही इसके ज़रिए अखुंदजादा अंतर्राष्ट्रीय स्तर वैधानिकता हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. चूंकि महिलाओं के अधिकारों की तुलना में अफ़ीम की खेती पर कोई नीतिगत फ़ैसला लेना आसान है यानी इस मुद्दे पर विवाद खड़े होने की संभावना कम है, साथ ही इसे अन्य विवादित मुद्दों से ध्यान भटकाने के एक साधन के रूप में देखा जाता है. लेकिन इनमें से कोई तर्क संगठन की उस स्थिर कार्यशैली की व्याख्या कर पाने में असफल है, जो इस मुद्दे पर तालिबान की प्रतिक्रियाओं में साफ़ तौर पर देखी जा सकती हैं. IEA के प्रवक्ता ने UNODC द्वारा जारी वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2023 ने अपनी प्रतिक्रिया में तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने और उत्पादन को ‘शून्य’ के स्तर पर ले आने के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने रिपोर्ट के कुछ हिस्सों का समर्थन करते हुए, देश में मेथामफेटामाइन के उत्पादन में हुई वृद्धि के दावों का खंडन किया. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि वे अफ़ग़ानिस्तान में आजीविका के वैकल्पिक साधनों के विकास और नशे की लत के शिकार लोगों के पुनर्वास में सहायता करें. देश में नशे की समस्या के बढ़ने और उसके भयावह परिणामों की संभावना को देखते हुए ही यह फ़ैसला लिया गया होगा, जिसके बारे में तालिबान ने भी बयान दिया था.
घरेलू स्तर पर, देश में नशे की लत की समस्या बहुत बढ़ गई है, जहां लगभग 10 प्रतिशत आबादी नशे की शिकार है. 2021 में राजनीतिक संक्रमण और उसके कारण राष्ट्रीय संकट की स्थिति ने अधिक से अधिक लोगों को नशे की दलदल में धकेल दिया है.
भारत नशीली दवाओं की तस्करी का एक प्रमुख मार्ग है, इसलिए अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी मार्ग से दवाओं की तस्करी में गिरावट और पिछले कुछ सालों में नशीली दवाओं की बरामदगी बढ़ जाने से यह संकेत मिलता है कि अफ़ीम का उत्पादन घटने से भारत को लाभ होगा. सितंबर 2021 में, गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर लगभग 3 टन अफ़ग़ानी हीरोइन के बरामद होने के बाद, राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो विशेष रूप से समुद्री मार्ग के माध्यम से नशीली दवाओं की तस्करी को लेकर सशंकित है. लेकिन इस साल अफ़ीम उत्पादन में हुई गिरावट का असर आने वाले कुछ सालों में देखने को मिलेगा जब तस्करी की मात्रा गिरावट आएगी. लेकिन फ़रवरी 2022 से अब तक 3,200 किलो मेथामफेटामाइन की बरामदगी की गई है, जिससे पता चलता है कि नशीली दवाओं की तस्करी में चिंताजनक बदलाव आया है, जहां सिंथेटिक दवाओं की तस्करी बढ़ रही है और मेथामफेटामाइन आतंक और नशे के कारोबार में सबसे प्रमुख उत्पाद बनकर उभर रहा है. कुछ मध्य एशियाई देशों में भी सिंथेटिक दवाइयों की बरामदगी बढ़ गई है. अफ़ग़ानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क (AAN) के मुताबिक, हालांकि इस बारे में बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, लेकिन पाकिस्तानी टिप्पणीकारों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि अफ़ीम उत्पादन पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण TTP उग्रवादियों (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) की आय का एक बड़ा जरिया ख़त्म हो जाएगा. अमेरिका ने भी उत्पादन में गिरावट को स्वीकार किया है, लेकिन प्रतिबंध के दूरगामी प्रभावों को लेकर शंका बनी हुई है.
अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक बदलाव के कारण उसके सहायता बजट को घटाकर 3.2 अरब अमेरिकी डॉलर कर दिया गया है. देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही मुश्किल हालातों से गुजर रही है, ऐसे में अफ़ीम उत्पादन घटने से अपेक्षाकृत अमीर किसान भी ग़रीबी की दलदल में फंस सकते हैं, और हाशिए पर पहुंच सकते हैं. प्रभावित राज्यों से लोगों के पड़ोसी देशों और अंततः यूरोप में पलायन करने की भी संभावना मौजूद है. उन इलाकों (विशेष रूप से पूर्वी क्षेत्र में), जहां भूमि जोत छोटी है, वहां भी प्रतिरोध बढ़ने की संभावना है. जबकि तमाम देश अभी भी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि तालिबान का कैसे सामना किया जाए, उन्हें उसके द्वारा लागू किए गए नीतिगत बदलावों के दूरगामी परिणामों के मद्देनजर क्षेत्र पर पड़ने वाले अभूतपूर्व प्रभावों पर ध्यान देना चाहिए. बड़ा सवाल यह है कि क्या तालिबान इस प्रतिबंध को दूसरे साल भी जारी रख पाएगा और बढ़ते जन-संतोष को संभाल पाएगा?
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Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...
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