Published on Mar 26, 2021 Updated 0 Hours ago

टेक्निकल एंड वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (TVET) हमेशा से एक ऐसी आवश्यकता रही है जिसकी मांग कभी कम नहीं हो सकती है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करते हुए व्यवसायिक शिक्षा को मिले सबसे ज़्यादा महत्व

हाल ही में यूनेस्को द्वारा जारी किए गए स्टेट ऑफ़ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया 2020: टेक्निकल एंड वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (TVET) का शीर्षक वोकेशनल एजुकेशन फर्स्ट रखा गया, जो कई सारी वजहों के कारण बिल्कुल सही है. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के तहत देश में वोकेशनल एजुकेशन का बहुत तेज़ी से विस्तार हुआ है. क्योंकि इसके तहत देश के तमाम शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में वोकेशनल एजुकेशन को शामिल करने को कहा गया. इसके ज़रिए बड़ी संख्या में स्कूल, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी – करीब 2,80,000 से ज़्यादा सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल और 40000 से ज़्यादा शिक्षण संस्थानों को अगले एक दशक में TVET पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे लाखों छात्रों का भला हो सके. यह रिपोर्ट देश में TVET शिक्षा प्रणाली की मौज़ूदा स्थिति के बारे में बताने के साथ ही इस बात की भी व्याख्या करता है कि देश में NEP को लागू करने में शिक्षण संस्थानों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं यह रिपोर्ट कई तरह के सुझाव और प्रस्ताव भविष्य के लिए देती है.

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि भारत की ज़्यादातर आबादी युवा है और 64 फ़ीसदी आबादी काम करने के 15 से 59 वर्ष की उम्र सीमा के तहत आती है. ऐसे में एक बेहतर और पूरी तरह विचार करने के बाद TVET व्यवस्था हमेशा से एक ऐसी आवश्यकता रही है जिसकी मांग कभी कम नहीं हो सकती है. यहां तक कि सबसे बेहतर वक़्त में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रशिक्षित लोगों की मांग को पूरा करने और समावेशी और संतुलित विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह शिक्षा ज़रूरी है. जैसा कि नई दिल्ली यूनेस्को के निदेशक एरिक फॉल्ट का मत है “इसमें दो राय नहीं है कि कोविड 19 महामारी ने स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर, लेबर मार्केट और रोज़गार को इस स्तर पर प्रभावित किया है जो इससे पहले नहीं देखा गया था. कई मायनों में कोरोना महामारी ने वोकेशनल एजुकेशन और ट्रेनिंग व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है. व्यक्तिगत प्रशिक्षण 21 वीं सदी की अर्थव्यवस्था में तेज़ी से वैश्विक ज़रूरत बनती जा रही है.”

सबसे बेहतर वक़्त में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रशिक्षित लोगों की मांग को पूरा करने और समावेशी और संतुलित विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह शिक्षा ज़रूरी है.

भारत ने TVET के प्रस्तावों का गंभीरता से अध्ययन किया है और यह रिपोर्ट पिछले दशक में अल्पकालीन ट्रेनिंग कोर्सेज को शुरू करने के लिए उठाए गए कदमों की भी व्याख्या करता है. हालांकि, इसे साकार करने में सबसे ज़्यादा भूमिका नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और ट्रेनिंग प्रोवाइडर्स एंड सेक्टर स्किल काउंसिल्स की है जिसे 2008 में शुरू किया गया और जैसा कि यह रिपोर्ट रेखांकित करती है कि इस तरह के पाठ्यक्रम सिर्फ औद्योगिक केंद्रों के लिए एंट्री लेवल के लिए ज़रूरतमंद कामगारों की आवश्यकता को ही पूरा कर पाता है. दीर्घकालिक ट्रेनिंग कोर्सेज जो कि आईटीआई और दूसरे पॉलिटेक्निक कॉलेज मुहैया कराते हैं वो स्वतंत्रता के बाद से ही बढ़ने लगे थे. लेकिन इनके विस्तार की गति काफी धीमी थी, खास कर कम अवधि के पाठ्यक्रम के मुक़ाबले. इसके अलावा साल 1990 से पहले से हायर सेकेंडरी स्तर पर वोकेशनल या पेशेवर एजुकेशन के प्रस्तावों में स्कूलों को भी शामिल किया गया. लेकिन इसके तहत स्कूलों में छात्रों की तादाद अभी भी 10 फ़ीसदी से कम है जो बेहद चिंताजनक है.

NEP के सफल क्रियान्वयन में शिक्षण संस्थानों के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वह इसके स्टेकहोल्डर के माइंडसेट को लेकर है. जैसे छात्र और उनके अभिभावकों का मानना है कि TVET एजुकेशन के पाठ्यक्रम सामान्य स्कूल की पढ़ाई के मुकाबले काफी निम्न स्तरीय है. और तो और यह पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए बेहतर है जो सामान्य स्कूली पाठ्यक्रम के साथ आगे नहीं बढ़ सकते. और हक़ीकत में पिछले तीन दशकों में स्कूल इस परंपरागत सोच की बेड़ियों को तोड़ पाने में कई वज़हों से असमर्थ रहे हैं. इसकी एक बड़ी वज़ह यह है कि वोकेशनल एजुकेशन के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का रास्ता अभी प्रशस्त नहीं किया गया है. इसके साथ ही स्कूल और कॉलेज में प्रबंधन और शिक्षकों को भी वोकेशनल एजुकेशन (व्यवसायिक शिक्षा) संबंधी प्रस्तावों के बारे में जानकारी रखनी होगी और इस शिक्षा प्रणाली को लेकर उत्साह और प्रतिबद्धता को आत्मसात करना होगा.

समावेशी विकास के एजेंडे में शिक्षा

रिपोर्ट में स्किल डेवलपमेंट से संबंधित दूसरी चुनौतियां जिनके बारे में बताया गया है उसमें TVET के प्रति समावेशी स्कीकार्यता बढ़ाने की बात कही गई है, ख़ासकर महिलाओं के लिए. इसके साथ ही तेज़ी से बढ़ रहे डिजिटल विभाजन की भी चुनौतियों से पार पाना होगा, और अप-स्किलिंग, री-स्किलिंग और जीवन पर्यन्त लर्निंग के लिए समान अवसर पैदा करने होंगे. वो भी ख़ासकर नए और सामरिक क्षेत्र में जैसे इंडस्ट्री 4.0 और ग्रीन इकोनॉमी को लेकर. इस रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि भारत को अपने स्पष्ट और अस्पष्ट सांस्कृतिक विरासत को संजोने को लेकर बढ़ावा देना चाहिए. इस सक्रियता का यह नतीजा होगा कि भारत जैसे देश के ज़्यादा से ज़्यादा नागरिकों को इससे जीविका के साधन उपलब्ध हो पाएंगे और युवाओं में गर्व और स्वामित्व का भाव भी जगेगा.

दीर्घकालिक ट्रेनिंग कोर्सेज जो कि आईटीआई और दूसरे पॉलिटेक्निक कॉलेज मुहैया कराते हैं वो स्वतंत्रता के बाद से ही बढ़ने लगे थे. लेकिन इनके विस्तार की गति काफी धीमी थी, खास कर कम अवधि के पाठ्यक्रम के मुक़ाबले.

समावेशी विकास के साल 2030 के एज़ेडे में शिक्षा का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है. और समावेशी विकास के लक्ष्यों को पाने के लिए यह बेहद आवश्यक भी है. क्वॉलिटी एजुकेशन पर गोल-4 के तहत शिक्षा एज़ेडे के साथ जो सात नए टारगेट को शामिल किया गया है – इसमें चार TVET से संबंधित हैं – जो इस बात से भी प्रेरित है कि शिक्षा से व्यक्तिगत, समुदाय और समाज की दशा- दिशा प्रभावित होती है, जिसमें किसी को भी पीछे नहीं छोड़ा जाता और जीवन पर्यन्त इसमें शिक्षा का विस्तार होता रहता है. NEP साल 2030 के एजुकेशन एज़ेंडे को खुद में शामिल करता है और TVET के आयाम को विस्तार देता है. जिसका मक़सद समाज के सभी वर्गों के लिए सामाजिक न्याय और जीविका मुहैया कराना होता है.

.तेज़ी से बढ़ रहे डिजिटल विभाजन की भी चुनौतियों से पार पाना होगा, और अप-स्किलिंग, री-स्किलिंग और जीवन पर्यन्त लर्निंग के लिए समान अवसर पैदा करने होंगे

यह रिपोर्ट निम्नलिखित 10 प्रमुख प्रस्तावों की ओर इशारा करता है जिससे TVET के तहत वर्णित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है.

  • व्यवसायिक शिक्षा और ट्रेनिंग कार्यक्रम के मध्य में प्रशिक्षुओं की आकंक्षाओं को जगह दिया जाना चाहिए.
  • शिक्षक, ट्रेनर्स और इसे प्राप्त करने वालों के बीच परस्पर वातावरण तैयार करना.
  • अप-स्किलिंग (हुनर को बेहतर करना) , री-स्किलिंग (हुनर को नए सांचे में ढालना) और जीवनपर्यन्त लर्निंग पर फोकस करना.
  • महिलाओं, दिव्यांगो और समाज के हाशिये पर खड़े लोगों के लिए TVET शिक्षा की स्वीकार्यता बढ़ाना.
  • वोकेशनल/पेशेवर शिक्षा और ट्रेनिंग की डिजिटल प्रक्रिया को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाना..
  • स्थानीय समुदायों को स्पष्ट और अस्पष्ट सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए प्रेरित कर जीविका के साधन पैदा करने में सहायता देना. .
  • साल 2030 के समावेशी विकास के एज़ेंडे से बेहतर तरीके से खुद को जोड़ना.
  • TVET को वित्तीय सहयोग करने के लिए नए नए मॉडल मुहैया कराना.
  • तथ्य आधारित बेहतर योजना और मॉनिटरिंग को विस्तार देना.
  • एक ज़बर्दस्त अंतर मंत्रीस्तरीय सहायता को बढ़ावा देने के लिए समन्वयी प्रणाली को बढ़ावा देना.
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