शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों (SCO) के प्रमुखों की परिषद का 22वां शिखर सम्मलेन कोरोना महामारी के दो साल बाद उज्बेकिस्तान के समरकंद में गुरुवार से शुरू हो गया है. वहीं आज SCO की बैठक का आयोजन होगा, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई देशों के नेता शामिल होंगे. इस बैठक पर अमेरिका व पश्चिमी देशों की पैनी नज़र है. खासकर रूस, चीन और भारत पर इन मुल्कों की नजर होगी. यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका पाकिस्तान के निकट आने की कोशिश कर रहा है. हाल में अमेरिका ने एफ-16 को लेकर पाकिस्तान की बड़ी मदद की है. इसके बाद वह पाकिस्तान को बाढ़ आपदा में भी सहयोग कर रहा है. भारत ने एफ-16 पर जारी मदद पर अपनी आपत्ति भी जताई है. आइए जानते हैं कि मोदी पुतिन की मुलाकात क्या अमेरिका को अखरेगी. क्या इसका प्रभाव अमेरिका और भारत के रिश्तों पर पड़ेगा. इन सब मामलों में क्या कहते हैं विशेषज्ञ.
भारत ने एफ-16 पर जारी मदद पर अपनी आपत्ति भी जताई है. आइए जानते हैं कि मोदी पुतिन की मुलाकात क्या अमेरिका को अखरेगी. क्या इसका प्रभाव अमेरिका और भारत के रिश्तों पर पड़ेगा.
- क्या मोदी पुतिन की मुलाकात से अमेरिका को मिर्ची लग सकती है? प्रो पंत ने कहा कि मोदी-पुतिन की मुलाकात ऐसे समय हो रही है. जब अमेरिका और रूस के बीच तनाव चरम पर हैं. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका ने यूक्रेन जंग में भारत के रुख पर आपत्ति भी की थी. इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत और रूस की दोस्ती काफी गाढ़ी है, पुरानी है. ऐसे में भारत का रूस के प्रति झुकाव लाजमी है. उन्होंने कहा कि इस मुलाकात पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की पैनी नजर होगी. यूक्रेन जंग में भारत के स्टैंड के साथ दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग पर भी अमेरिका की नजर होगी. यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब रूसी एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति पर अमेरिका ऐतराज जता चुका है. हालांकि, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि देश के सुरक्षा मामलों में वह स्वतंत्र नीति रखता है. रूस के साथ भारत के रिश्ते प्रगाढ़ हैं.
- उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश नीति के समक्ष यह बड़ी चुनौती है कि वह किस तरह से रूस और अमेरिका एवं पश्चिमी देशों के साथ एक संतुलन कायम करता है. भारत किस तरह से यह संदेश देने में कामयाब होता है कि रूस के साथ उसकी दोस्ती का अमेरिका और पश्चिमी देशों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यह बात तब और अहम हो जाती है जब अमेरिका के साथ भारत के रणनीतिक संबंध हैं. अमेरिका और भारत क्वाड संगठन के सदस्य देश है. ऐसे में भारतीय विदेश नीति के समक्ष यह चुनौती और बड़ी हो जाती है. भारत, अमेरिका और पश्चिमी देशों को कतई नाराज नहीं करना चाहेगा. उसको एक संतुलन की नीति कायम करनी होगी. उन्होंने कहा कि जहां तक सवाल मिर्ची लगने का है तो निश्चित रूप से भारत और रूस की निकटता नहीं भाएगी.
- प्रो पंत का कहना है कि भारत और चीन के प्रमुख ऐसे समय एक दूसरे के सामने खड़े होंगे, जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर रिश्ते तल्ख हैं. दोनों देशों के बीच संबंधो में तनाव चरम पर है. सीमा विवाद पर चल रही बैठकों का कोई नतीजा सामने नहीं आया है. सीमा विवाद को लेकर चीन अपने अड़ियल रुख पर कायम है. ऐसे में यह बड़ी चुनौती है कि भारत, चीन के साथ कैसे अपने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाता है. एक सवाल यह भी है क्या पीएम नरेंद्र मोदी इस मंच से सीमा विवाद की भारत की चिंता को उठाएंगे. इस बैठक में यह सारे सवाल अहम है. उन्होंनें कहा कि इसके अलावा अमेरिका की चीन पर भी पैनी नजर होगी, यूक्रेन जंग में चीन का क्या रुख होता है. क्या इस मंच से रूस यूक्रेन जंग का मुद्दा उठाएगा.
प्रो पंत का कहना है कि भारत और चीन के प्रमुख ऐसे समय एक दूसरे के सामने खड़े होंगे, जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर रिश्ते तल्ख हैं. दोनों देशों के बीच संबंधो में तनाव चरम पर है.
- क्या चीन के साथ सीमा विवाद के गतिरोध में कमी आएगी? इस सवाल के उत्तर में प्रो पंत ने कहा कि इस बात की संभावना बेहद कम है. उन्होंने कहा कि यह मंच इस लिहाज से अहम है कि दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों के लिए आगे आ रहे हैं. भारत की नीति यह दर्शाती है कि वह अपने विवादित मुद्दों को परस्पर वार्ता के जरिए ही सुलझाना चाहता है. वह सीमा विवाद के लिए किसी अन्य देश के हस्तक्षेप या जंग का हिमायती नहीं है. क्या पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में कोई कमी के संकेत हैं? उन्होंने कहा कि देखिए, इस बैठक में आतंकवाद एक मुद्दा जरूर है, लेकिन पाकिस्तान का भारत के प्रति नजरिए में कोई बदलाव आएगा ऐसी संभावना न्यून है. अगर कूटनीतिक रूप से देखा जाए तो अलबत्ता, इस मुलाकात से दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात और तनाव को सीमित करना है.
2021 में पुतिन ने की थी भारत की यात्रा
नौ महीने पूर्व मोदी और पुतिन की मुलाकात हुई थी. दिसंबर, 2021 में राष्ट्रपति पुतिन ने कुछ घंटे के लिए नई दिल्ली की यात्रा की थी और उनकी पीएम मोदी के साथ सालाना भारत-रूस शीर्ष बैठक हुई थी. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पीएम मोदी की पुतिन के साथ कई बार टेलीफोन पर वार्ता हुई है, लेकिन यह हाल के दिनों की इनके बीच पहली द्विपक्षीय बैठक होगी. इनके बीच चर्चा में भारत-रूस के मौजूदा रिश्ते, पेट्रोलियम आयात-निर्यात और ऊर्जा संबंधों से जुड़े मुद्दे खास तौर पर उठेंगे. फरवरी, 2022 के बाद रूस भारत का एक अहम क्रूड व गैस आपूर्तिकर्ता देश है. भारत ने इस बारे में अमेरिका व पश्चिमी देशों के दबाव को दरकिनार कर रूस से तेल व गैस की खरीद को बढ़ा दिया है.
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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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