Published on Sep 30, 2021 Updated 0 Hours ago

ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति से पता चलता है कि यूरोपीय संघ का इस क्षेत्र को लेकर नजरिया बदला है, जिस पर अब तक वह सिर्फ आर्थिक लिहाज से ही विचार करता आया था

हिंद-प्रशांत के लिए यूरोपीय संघ की रणनीति का मतलब क्या है?

यूरोपीय संघ (ईयू) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दमदार मौजूदगी चाहता है. इसकी ख़ातिर वह इस क्षेत्र के देशों से करीबी रिश्ते बनाने को तैयार है. यह जानकारी हिंद-प्रशांत पर यूरोपीय संघ की सहयोग की रणनीति पर जारी रिपोर्ट से ज़ाहिर हुई. यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वान डर लेयेन ने कहा, ‘अगर यूरोप को वैश्विक मंच पर और सक्रिय होना है तो उसे नई साझेदारी की ज़रूरत होगी. नई पीढ़ी की पार्टनरशिप करनी होगी. ’ हिंद-प्रशांत रणनीति के अलावा ईयू चीन के बेल्ट और रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) से मुकाबले के लिए ‘ग्लोबल गेटवे’ लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. ऐसा लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर ईयू मौजूदा रिश्तों और साझेदारी को मज़बूत बनाना चाहता है. इसके साथ उसका इरादा आख़िरकार इस क्षेत्र में राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा मामलों को लेकर अपना रसूख बढ़ाना भी है.

 लंबे वक्त तक एशिया में यूरोपीय संघ सिर्फ़ आर्थिक रूप से सक्रिय रहा है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी उसकी भूमिका सीमित रही है. इस क्षेत्र में जो नए सामरिक और राजनीतिक घटनाक्रम सामने आए हैं, उन्हें लेकर ईयू की एक बेपरवाही दिखाई दी. 

लंबे वक्त तक एशिया में यूरोपीय संघ सिर्फ़ आर्थिक रूप से सक्रिय रहा है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी उसकी भूमिका सीमित रही है. इस क्षेत्र में जो नए सामरिक और राजनीतिक घटनाक्रम सामने आए हैं, उन्हें लेकर ईयू की एक बेपरवाही दिखाई दी. हाल यह था कि पिछले साल तक एक इरादे के तौर पर भी हिंद-प्रशांत में उसकी दिलचस्पी नहीं थी, न ही इसने इस क्षेत्र के लिए अपनी नीतिगत प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया था. इस झिझक की वजह यह थी कि ईयू के कुछ सदस्य देशों के चीन के साथ मज़बूत आर्थिक रिश्ते थे. ईयू को लगता था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसे अमेरिका के साथ चलना होगा. अगर वह ऐसा करता है तो एक तरह से उसे चीन से दूरी बनानी होगी. इधर, जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड्स जैसे ईयू के सदस्य देशों ने हिंद-प्रशांत की धारणा को स्वीकार करना शुरू कर दिया है. वे इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं. यही देश यूरोपीय संघ पर हिंद-प्रशांत को एक सामरिक विचार के तौर पर मानने का दबाव डाल रहे हैं.

 

ईयू-हिंद-प्रशांत रणनीति की जरूरत क्यों?

अगर फ्रांस को छोड़ दें तो शुरुआत में यूरोपीय ताकतों को ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर दिलाना बहुत मुश्किल था. उन्हें इस बात भी अहसास नहीं था कि इस क्षेत्र में होने वाली हलचल का यूरोप की सुरक्षा पर भी असर हो सकता है. दूसरी तरफ, फ्रांस की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दिलचस्पी की वजह देश से बाहर उसके प्रशासनिक नियंत्रण वाले 13 क्षेत्र थे. इसी वजह से वह खुद को हिंद-प्रशांत इलाके की स्थानीय ताकत मानता आया है. खैर, इस इलाके में यूरोपीय संघ की दिलचस्पी जर्मनी की वजह से जगी. उसने सितंबर 2020 में ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए नीतिगत दिशानिर्देश’ जारी किए. इसके बाद नीदरलैंड्स ने अपनी गाइडलाइंस पेश कीं. यूरोपीय देश चीन के उभार और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों को लेकर धीरे-धीरे आशंकित दिखने लगे. ताइवान की खाड़ी, हांगकांग, शिनच्यांग को लेकर चीन का रवैया भी उन्हें परेशान कर रहा था. इनसे भविष्य में ईयू-चीन के रिश्ते प्रभावित हो सकते थे. तब यूरोपीय संघ के दूसरे सदस्यों पर भी इन बातों का असर हुआ. इसके अलावा, अमेरिका और चीन के बीच भी इस इलाके में प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, जिसका यूरोपीय देशों के हितों पर बुरा असर पड़ सकता है. यूरोप के लिए इस तथ्य से मुंह चुराना भी मुश्किल हो गया.

ऊपर जिन बातों का ज़िक्र किया गया है, उनके अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर ऐसी कई चीजें हैं, जिनका यूरोपीय देशों के रक्षा हितों पर असर पड़ सकता है. उदाहरण के लिए, उभरती तकनीकों के संभावित जोख़िम, सप्लाई चेन संबंधी मसले और झूठी खबरें. यूरोप के बारे में हमने ऊपर इसका जिक्र किया है कि यह दशकों से एशिया में एक आर्थिक ताकत के रूप में मौजूद रहा है. यूरोप में एशिया को सुदूर क्षेत्र माना जाता है, लेकिन अब इस इलाके के देश महसूस करने लगे हैं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र एशिया की ओर शिफ्ट हो गया है. यहां भी ख़ासतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर. भारत, चीन, सिंगापुर, वियतनाम और इंडोनेशिया सहित दूसरे देशों के आर्थिक उभार की वजह से ऐसा हुआ है. इसलिए यूरोपीय संघ को लग रहा है कि उसे एशिया में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. अधिक जवाबदेही लेनी चाहिए और एशिया को प्रभावित करने की हैसियत बनानी चाहिए. आख़िर, यूरोप और एशिया का भविष्य एक दूसरे से जुड़ा हुआ है.

यूरोपीय देश चीन के उभार और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों को लेकर धीरे-धीरे आशंकित दिखने लगे. ताइवान की खाड़ी, हांगकांग, शिनच्यांग को लेकर चीन का रवैया भी उन्हें परेशान कर रहा था. 

यूरोप का इस इलाके से ताल्लुक़ अभी काफी हद तक व्यापार को लेकर है. ऐसे में यूरोपीय संघ के लिए समुद्री संचार नेटवर्क की सुरक्षा और व्यावसायिक जहाज़ों का सुरक्षित आवागमन काफी मायने रखता है. इस बीच, चीन पश्चिम प्रशांत इलाके में अपना दखल बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. उसकी ऐसी ही मंशा हिंद महासागर को लेकर भी है. यहां भी वह अपनी दखल बढ़ाने की कोशिश में जुटा है. इन हालात में अगर यूरोपीय संघ समुद्री क्षेत्र को लेकर समान सोच रखने वाले भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की सोच रहा है तो वह ठीक ही है.

कई बाधाएं आज भी हैं

यह बात सही है कि चीन से आशंकित होकर ईयू अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को रूप दे रहा है, लेकिन इसके साथ सच यह भी है कि उसके कई सदस्य देश चीन को संभावित बाज़ार की तरह देखते हैं. विदेश संबंधों पर यूरोपीय परिषद के एक सर्वे में ईयू के 10 सदस्यों ने कहा कि चीन की चुनौती से निपटने के लिए हिंद-प्रशांत रणनीति को अपनाना ज़रूरी है. इसके साथ, वे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बनने वाले व्यापारिक मौकों का भी लाभ उठाना चाहते हैं. दूसरी तरफ, सर्वे में शामिल 13 सदस्य देशों ने हिंद-प्रशांत अवधारणा को सिर्फ़ आर्थिक हितों से जोड़कर देखा. उनके लिए चीन का प्रश्न बहुत मायने नहीं रखता. वहीं, बेल्जियम, बुल्गारिया, पुर्तगाल, लातविया और रोमानिया भी हिंद-प्रशांत को एक हद तक चीन विरोधी औजार के रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं. उनका यह कदम ठीक है क्योंकि विस्तारवादी चीन दक्षिण और पूर्वी चीन सागर, ताइवान की खाड़ी में ख़तरा बन सकता है, जिसका कि यूरोप की समृद्धि और सुरक्षा पर बुरा असर पड़ेगा. इस बात का जिक्र यूरोपीय संघ की इस क्षेत्र को लेकर बनाई गई रणनीति में किया गया है. लेकिन चीन से ‘दूसरे मोर्चों पर संपर्क’ बनाए रखने की बात भी इसमें कही गई है, इस शर्त के साथ कि मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर उस दबाव बनाया जाएगा, जिससे कि चीन इनकार करता आया है.

यूरोप का इस इलाके से ताल्लुक़ अभी काफी हद तक व्यापार को लेकर है. ऐसे में यूरोपीय संघ के लिए समुद्री संचार नेटवर्क की सुरक्षा और व्यावसायिक जहाज़ों का सुरक्षित आवागमन काफी मायने रखता है. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अमेरिका के साथ किस तरह की भागीदारी बनाए रखनी है, इस पर यूरोपीय संघ के पास कई विकल्प हैं. इसके 11 सदस्य देश ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति को ‘यूरोप की सामरिक स्वायत्तता’ से जोड़कर देखते हैं. यानी यूरोप अमेरिका के समर्थन के बगैर अपना अलग रास्ता बना रहा है. आठ सदस्य देशों को लगता है कि यह अमेरिका के साथ गठबंधन को मैनेज करने का एक रास्ता है. इससे अमेरिका के साथ तालमेल बना रहेगा, जिसकी हमेशा प्रशांत क्षेत्र में दिलचस्पी बनी रही है. यही बात उसके लिए यूरोप के संदर्भ में नहीं कही जा सकती. छह सदस्य देशों के लिए ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति को लाने का मतलब यह है कि यूरोपीय संघ खुलकर अमेरिका के साथ खड़ा हो रहा है और यह उसे समर्थन देने की नीति का एक हिस्सा है. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की इस मामले में अलग-अलग राय है. इससे यह सवाल उठता है कि क्या ईयू हिंद-प्रशांत को आर्थिक या सामरिक नजरिये से देखेगा?

ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति का मक़सद क्या है?

यूरोपीय संघ का मकसद अभी पिछली साझेदारी को मजबूत करना और नई साझेदारियां बनाना है. वह समान सोच रखने वाले देशों के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए ऐसी पार्टनरशिप चाहता है ताकि इस क्षेत्र में उसकी भूमिका सुनिश्चित हो और दखल भी बढ़े. ईयू की कोशिश जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ नई डिजिटल पार्टनरशिप करने की है. उसका मानना है कि इससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम मेधा) जैसी उभरती हुई तकनीक की इंटर-ऑपरेबिलिटी को लेकर वह इन देशों के साथ मिलकर काम कर पाएगा. इसके साथ वह ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड के साथ व्यापार समझौता भी पूरा करना चाहता है. इस मामले में वह भारत के साथ भी बातचीत फिर से शुरू करने जा रहा है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सहयोगियों के साथ मज़बूत और टिकाऊ साझेदारी वह ग्लोबल वैल्यू चेन की ख़ातिर कर रहा है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अमेरिका के साथ किस तरह की भागीदारी बनाए रखनी है, इस पर यूरोपीय संघ के पास कई विकल्प हैं. इसके 11 सदस्य देश ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति को ‘यूरोप की सामरिक स्वायत्तता’ से जोड़कर देखते हैं. 

ईयू की मंशा क्वॉड के सहयोगी देशों के साथ भी काम करने की है. विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन, तकनीक और वैक्सीन को लेकर. क्वॉड के मंच के अलावा, भारत और यूरोपीय संघ के सम्मेलन के बाद दोनों के रिश्तों में जिस तरह से मज़बूती आ रही है, उसे और आगे ले जाया जा सकता है. ख़ासतौर पर ईयू-भारत डिजिटल पार्टनरशिप को. यूरोपीय संघ और आसियान के रिश्तों में भी मज़बूती आई है. इसमें हाल ही में ईयू को डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला है, जबकि यह उप-क्षेत्रीय संगठन है. आसियान की केंद्रीय भूमिका, ईयू-आसियान की साझेदारी को कैसे और मजबूत बनाया जा सकता है, जैसे कि आसियान डिजिटल मास्टरप्लान 2025 का भी जिक्र इस साझेदारी के सिलसिले में हुआ है. भारत और जापान जैसे देशों के सहयोग से ईयू की दिलचस्पी आसियान, अफ्रीका और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में कनेक्टिविटी को लेकर संपर्क बढ़ाने में है, जबकि ये उसके लिए बाहरी क्षेत्र हैं.

ईयू की मंशा क्वॉड के सहयोगी देशों के साथ भी काम करने की है. विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन, तकनीक और वैक्सीन को लेकर. क्वॉड के मंच के अलावा, भारत और यूरोपीय संघ के सम्मेलन के बाद दोनों के रिश्तों में जिस तरह से मज़बूती आ रही है, उसे और आगे ले जाया जा सकता है. 

ईयू हिंद-प्रशांत रणनीति का सुरक्षात्मक पहलू

यूरोपीय संघ के पास सीमित सैन्य क्षमता है. इस मामले में अमेरिका पर उसकी निर्भरता बनी हुई है. इसलिए ईयू ने अभी तक सुरक्षा एजेंडा के सैन्य पहलू पर बहुत अधिक सोच-विचार नहीं किया है. हालांकि, इस यूरोपीय संघ के दस्तावेज में संयुक्त सैन्याभ्यास, समुद्री क्षेत्र में बेरोकटोक आवाजाही और समुद्री लुटेरों से लड़ने की बात है. फ्रांस और जर्मनी पहले से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों के साथ मिलकर सैन्य अभ्यास कर रहे हैं. हिंद-प्रशांत के समुद्री क्षेत्रों में दिलचस्पी जगाने और यहां सहयोगियों के साथ संपर्क बढ़ाने के संकेत भी दिए गए हैं. यूरोपीय संघ के सदस्य देश इस क्षेत्र में नौसेना की तैनाती बढ़ाने का लक्ष्य लेकर चल सकते हैं ताकि हिंद-प्रशांत की समुद्री सीमा में स्थित संचार नेटवर्क और यहां जहाज़ों की बेरोकटोक आवाजाही सुनिश्चित की जा सके. इसके साथ वे इस क्षेत्र में अपने सहयोगियों को मज़बूत बनाने में योगदान कर सकते हैं ताकि समुद्री सुरक्षा में अपनी भूमिका निभाते रहें. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान सोच रखने वाले सहयोगी देशों के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान को इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटरों के ज़रिये बढ़ावा दिया जाएगा. इसके लिए इंडो-पैसिफिक रीजनल इंफॉर्मेशन शेयरिंग (आईओआरआईएस) प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल किया जाएगा. यूरोपीय संघ एशिया अपने यहां और एशिया में रक्षा सहयोग बढ़ाने यानी ईएसआईडब्ल्यूए के तहत गतिविधियों की तैयारी भी कर रहा है. इसके दायरे में आतंकवाद को रोकने, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और क्राइसिस मैनेजमेंट जैसी चीजें आएंगी.

यूरोपीय संघ एशिया अपने यहां और एशिया में रक्षा सहयोग बढ़ाने यानी ईएसआईडब्ल्यूए के तहत गतिविधियों की तैयारी भी कर रहा है. इसके दायरे में आतंकवाद को रोकने, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और क्राइसिस मैनेजमेंट जैसी चीजें आएंगी.

इस रणनीति के तहत यूरोपीय संघ ने अपने लिए एक सुरक्षित रास्ता तैयार किया है, जिसमें कूटनीतिक पहलुओं का भी बखूबी ख्याल रखा गया है. यूरोपीय संघ ने इसके लिए जो दस्तावेज़ तैयार किया है, उसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की उसके साथ कई क्षेत्रों में साझेदारी की संभावना भी दिखती है. इससे चुनौतियों से भरे इस क्षेत्र में यूरोपीय संघ अपने लिए एक भूमिका तलाश सकता है. इसके साथ यह बात भी सही है कि उसने चीन की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विस्तारवादी नीतियों को लेकर कोई सख्त़ संदेश नहीं दिया है. उसने खुद को अमेरिका और चीन के बीच इस क्षेत्र में चल रही मौजूदा होड़ से भी अलग रखा है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.