Author : Navdeep Suri

Published on Feb 28, 2022 Updated 0 Hours ago

अबु धाबी पर हमलों का दौर लगातार जारी है. क्या इससे पश्चिम एशिया में शांति स्थापना की ताज़ा कोशिशों पर पानी फिर जाएगा? 

पश्चिम एशिया: UAE पर ताबड़तोड़ हमले के ज़रिये पश्चिम एशियायी इलाकों में शांति की ताज़ा क़वायदों का इम्तिहान

पश्चिम एशिया में शांति के प्रयास कितने नाज़ुक हैं ये यूएई पर हुए हमलों से ज़ाहिर होता है. तीन हफ़्तों से भी कम की मियाद में यूएई पर मिसाइल और ड्रोन के ज़रिए चार बार हमले हो चुके हैं. 17, 24 और 31 जनवरी को हुए पहले तीन हमलों में हूतियों ने अपना हाथ होने का दावा किया है. यमन में सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठजोड़ को यूएई के समर्थन का बदला लेने के लिए उसने इन हमलों को अंजाम दिया. हूतियों के ईरान के साथ क़रीबी रिश्ते हैं. ऐसे में ये मानना ग़लत नहीं होगा कि इन हमलों में इस्तेमाल मिसाइल और ड्रोन ईरानी मूल के हो सकते हैं. ख़बरों के मुताबिक लेबनानी संगठन हिज़्बुल्लाह से जुड़े तकनीकी विशेषज्ञों ने ज़मीनी स्तर पर इन हमलों को अंजाम देने में मदद पहुंचाई. बहरहाल, 2 फ़रवरी 2022 को हुए चौथे हमले के तार इराक़ के एक अज्ञात शिया समूह से जोड़े जा रहे हैं. तीन हथियारबंद ड्रोनों के ज़रिए यूएई में नामालूम ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की गई. माना जाता है कि इराक़ी शिया समूह के ईरान के साथ रिश्ते हैं.  17 जनवरी और 31 जनवरी को हुए मिसाइल हमलों और 2 फ़रवरी के ड्रोन हमले को नाकाम कर दिया गया. 24 जनवरी को हुए ड्रोन हमले ने सीमित नुक़सान पहुंचाया. अबु धाबी में हुए इस हमले में 2 भारतीयों और एक पाकिस्तानी नागरिक की जान चली गई. 

17, 24 और 31 जनवरी को हुए पहले तीन हमलों में हूतियों ने अपना हाथ होने का दावा किया है. यमन में सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठजोड़ को यूएई के समर्थन का बदला लेने के लिए उसने इन हमलों को अंजाम दिया.

2021 का अंत होते-होते इस इलाक़े में आशा की एक किरण दिखाई देने लगी थी. ऐसा लग रहा था कि पश्चिमी एशिया में अर्से से जारी विवादों में कुछ हद तक मेलमिलाप की कोशिशें रंग लाने लगी हैं, भले ही इनका स्थायी समाधान दूर हो. राष्ट्रपति ट्रंप की विदाई के बाद अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने हिंद-प्रशांत को अपनी विदेश नीति की धुरी बनाया. इससे शुरुआती तौर पर पश्चिमी एशिया के क्षेत्रीय किरदारों को अपने इलाक़ाई विवाद सुलझाने का प्रोत्साहन मिला. हालांकि, इस दिशा में असली रफ़्तार अगस्त में अमेरिका द्वारा बेतरतीब ढंग से अफ़ग़ानिस्तान से वापसी किए जाने के बाद आई. इससे इलाक़े में ये समझ बनी कि यहां के आपसी घातक विवादों को सुलझाने की ज़िम्मेदारी अब सऊदी अरब और यूएई जैसी क्षेत्रीय ताक़तों के अनिश्चित कंधों पर आ सकती है. 

जनवरी 2021 में सऊदी अरब में हुए जीसीसी शिखर सम्मेलन के अल उला करार ने अरब दुनिया के चार देशों (मिस्र, सऊदी अरब, यूएई और बहरीन) द्वारा क़तर के बहिष्कार से जुड़े मसले को सुलझा दिया. पिछले साल यूएई के ताक़तवर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख़ तहनो बिन ज़ाएद ने क़तर और तुर्की का दौरा किया. इससे यूएई के साथ इन देशों के रिश्तों में एक हद तक सामान्य स्थितियां बहाल होने का रास्ता खुल गया. इन देशों के साथ तनाव को औपचारिक तौर पर ख़त्म करने के लिए यूएई के क्राउन प्रिंस शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद ने नवंबर में अंकारा का दौरा किया. इस दौरे में उन्होंने तुर्की की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए 10 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश पैकेज का ऐलान किया. बदले में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन द्वारा भी जल्द ही यूएई का दौरा किए जाने की उम्मीद है. इससे रिश्तों पर जमी बर्फ़ के और तेज़ी से पिघलने की उम्मीद है. 

यूएई में 17 जनवरी को हुए मिसाइल हमले का निशाना सामरिक रूप से अहम अल धफ़रा एयरबेस था. यहां अमेरिकी वायुसेना की 380वीं हवाई अभियान शाखा स्थित है. अल धफ़रा में तक़रीबन 2000 अमेरिकी सैनिक और असैनिक अधिकारी रहते हैं.

6 दिसंबर 2021 को शेख़ तहनो की तेहरान यात्रा तो शायद और भी अहम थी. यूएई के राष्ट्रपति के कूटनीतिक सलाहकार डॉ. अनवर गर्गाश ने इस दौरे का ब्योरा देते हुए इसे “इलाक़े में रिश्तों और सहयोग को मज़बूत करने के यूएई के प्रयासों का विस्तार” करार दिया. उन्होंने आगे कहा कि “यूएई संवादों के ज़रिए सकारात्मक संबंध बनाकर क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि को मज़बूत करने का इच्छुक है.” शेख़ तहनो ने राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाक़ात कर उन्हें यूएई आने का न्योता दिया. सऊदी अरब और ईरान के बीच जारी वार्ताओं के साथ मिलाकर देखने पर ईरान और खाड़ी क्षेत्र में उसके दो मुख्य प्रतिद्वंदियों के बीच संधि को लेकर दबी आवाज़ में उम्मीदें जताई जा रही हैं. अबु धाबी पर हुए हमलों से इनमें से कुछ क़वायदों पर सवालिया निशान लग गए हैं. ऐसे में पश्चिमी एशियाई रंगमंच के तमाम किरदारों की प्रतिक्रियाओं पर नज़र डालना ज़रूरी हो जाता है.

अमेरिका

ज़ाहिर तौर पर अमेरिका इस इलाक़े में अपनी मौजूदगी के निशान कम करना चाहता है. इसके बावजूद हालिया घटनाओं के चलते इलाक़े में उसका जुड़ाव बढ़ गया है. यूएई में 17 जनवरी को हुए मिसाइल हमले का निशाना सामरिक रूप से अहम अल धफ़रा एयरबेस था. यहां अमेरिकी वायुसेना की 380वीं हवाई अभियान शाखा स्थित है. अल धफ़रा में तक़रीबन 2000 अमेरिकी सैनिक और असैनिक अधिकारी रहते हैं. ठिकाने की हिफ़ाज़त के लिए यहां पैट्रियट मिसाइलों का एक जख़ीरा भी मौजूद है. अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रवक्ता ने तस्दीक़ की है कि दो मिसाइलों को मार गिराने के लिए पैट्रियट इंटरसेप्टर्स का इस्तेमाल किया गया. बाक़ी दो मिसाइलों को नाकाम करने के लिए टर्मिनल हाई एल्टीच्यूड एरिया डिफ़ेंस (THAAD) का प्रयोग किया गया. यूएई ने इसे तक़रीबन 1 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से हासिल किया है. सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ़्रैंक मैकिंज़ी के मुताबिक ये पहला मौक़ा था जब THAAD सिस्टम को जंगी हालातों में दागा गया

बहरहाल इन हमलों से निपटने के लिए अमेरिका ने लक्ष्य बनाकर मिसाइलों को भेदने वाले यूएसएस कोल और अत्याधुनिक एफ़-22 लड़ाकू विमानों के बेड़े को यूएई भेजा है. इससे यूएई की रक्षात्मक क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी. शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद और अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के बीच फ़ोन पर हुई बातचीत के बाद अबु धाबी में अमेरिकी दूतावास ने इन तैनातियों की पुष्टि की. साथ ही “ख़ुफ़िया जानकारियां और पूर्व चेतावनी मुहैया कराते रहने और हवाई सुरक्षा के लिए गठजोड़” सुनिश्चित करने के लिए तमाम कार्रवाइयां जारी रखने का एलान किया. यूएई के एफ़-16 विमानों ने तेज़ गति से हमला कर यमन में हूतियों के मिसाइल लॉन्च पैड को तबाह कर दिया. ज़ाहिर है अमेरिका के साथ रक्षा गठजोड़ असर साफ़ दिखने लगा है.

यमन में यूएई के दख़ल को लेकर उनके नाराज़गी भरे बयानों ने शायद यूएई के ग़ुस्से की आग में घी का काम किया. लिहाज़ा उन्हें हटाकर यूएई के पसंदीदा उम्मीदवार अवाद अल अवलाकी को उनकी जगह गवर्नर बना दिया गया.

 

यूएई की रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए जनरल मैकिंज़ी ख़ुद 6 फ़रवरी को अबु धाबी पहुंच गए. इससे पता चलता है कि अबु धाबी पर हुए हमलों और इलाक़े में अपने अड्डों पर मंडरा रहे ख़तरों को अमेरिका कितनी गंभीरता से ले रहा है. जनरल मैकिंज़ी के मुताबिक एफ़-22 में दुनिया के सबसे अच्छे लॉक-डाउन रेडारों में से एक की मौजूदगी है. ये ज़मीन से मार करने वाले क्रूज़ मिसाइलों और ड्रोन समेत तमाम लक्ष्यों की पहचान करने की क़ाबिलियत रखते हैं. 

हूती

यूएई पर हुए हमले पहली नज़र में हूतियों की खिसियाहट का नतीजा लगती हैं. दरअसल हूतियों को मैदान-ए-जंग में नाटकीय तौर पर नुक़सान झेलने पड़े हैं. क़रीब महीना भर पहले ऐसा लग रहा था कि वो यमन के दूसरे इलाक़ों में भी अपना दबदबा बना रहे हैं. हूतियों ने तेल के भंडारों वाले शाबवा शासकीय क्षेत्र के तीन अहम ज़िलों पर नियंत्रण क़ायम कर लिया था. इससे पड़ोसी मारिब प्रांत पर भी उनका क़ब्ज़ा हो जाने की संभावनाएं बढ़ गई थीं. हूतियों के हाथों शबवा और मारिब प्रांतों को गंवा देने से राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी की अदन-स्थित हुकूमत के लिए काफ़ी मुश्किल हालात पैदा हो जाते. 

हालात की गंभीरता भांपते हुए सऊदी अरब ने यूएई के साथ और ज़्यादा प्रभावी तरीक़े से तालमेल बिठाने का फ़ैसला किया. यूएई एक लंबे अर्से से शबवा के गवर्नर मोहम्मद सालेह बिन अदियो को हटाने की मांग करता आ रहा था. सऊदी अरब ने अब इस मांग पर ग़ौर करने का फ़ैसला किया. दरअसल हूती लड़ाकों से दो-दो हाथ करने में सालेह को नाकाम माना जा रहा था. साथ ही इस्लामिक इसलाह पार्टी का सदस्य होना भी उनके ख़िलाफ़ जा रहा था. यमन में यूएई के दख़ल को लेकर उनके नाराज़गी भरे बयानों ने शायद यूएई के ग़ुस्से की आग में घी का काम किया. लिहाज़ा उन्हें हटाकर यूएई के पसंदीदा उम्मीदवार अवाद अल अवलाकी को उनकी जगह गवर्नर बना दिया गया. इसके तत्काल बाद यूएई समर्थित अल-वेयात अल-अमालिक़ा या जाएंट्स ब्रिगेड्स मिलशिया हरकत में आ गया. 10 जनवरी तक वो हूतियों को शबवा से बाहर खदेड़ने में कामयाब हो गए. इससे एक बार फिर ये ज़ाहिर हुआ कि यूएई और उसके स्थानीय साथी ही हूतियों से दो-दो हाथ करने वाले प्रमुख किरदार हैं.   

8 फ़रवरी से विएना में वार्ताओं का मौजूदा दौर चालू है. हो सकता है ये वार्ताओं का आख़िरी दौर साबित हो. इसके नतीजों पर काफ़ी कुछ निर्भर करेगा. विएना से आ रही शुरुआती सुगबुगाहटों से लगता है कि इन वार्ताओं से सतर्कतापूर्ण उम्मीदें रखी जा सकती हैं.

इससे हूतियों की हालत क्या हो गई है? क्या हाल में लगे झटकों से हूतियों के नेताओं को ये समझ में आ जाएगा कि उन्हें जंग में फ़तेह हासिल नहीं हो सकती? क्या वो और ज़्यादा गंभीर इरादों के साथ वार्ताओं की मेज़ पर लौटने को तैयार हो जाएंगे? या फिर क्या वो यूएई पर चोट करते रहेंगे, ख़ासतौर से अगर ये उनके ईरानी आकाओं की रणनीति के हिसाब से सटीक हो तो? फ़िलहाल लगता है कि ये तमाम हथकंडे नाकाम हो गए हैं. इससे यूएई के इरादे और मज़बूत हुए हैं और सऊदी की अगुवाई वाले गठबंधन में नई जान आ गई है. साथ ही इससे यहां के मसलों में अमेरिका की वापसी हो गई है. शायद अब ये समझ बन गई है कि असलियत में अमेरिका इस इलाक़े से मुंह नहीं मोड़ सकता.   

ईरान

इन घटनाक्रमों पर ईरान पूरी तरह से ख़ामोश रहा है. हूतियों और आधिकारिक तेहरान टाइम्स ने ही इन मसलों पर बयानबाज़ियां की हैं. हूतियों के प्रवक्ताओं ने अबु धाबी पर हुए हमलों के पीछे यूएई को सज़ा देने के अपने इरादों का इज़हार किया. उन्होंने ईरान में यूएई की भूमिका की आलोचना करते हुए हमलों में और तेज़ी लाने की धमकी दी है. ईरानी मीडिया में हूतियों के इन दावों की ज़ोर शोर से चर्चा हुई. दूसरी ओर यूएई पर हुए हमलों के बारे में या हमलों की निंदा करने या उस बारे में कोई कार्रवाई किए जाने पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दिया गया. साथ ही हूतियों की हरकतों पर लगाम लगाने की भी कोई क़वायद नहीं हुई है. ऐसा लगता है कि अपनी चाल चलते वक़्त ईरान की एक आंख अमेरिका पर और दूसरी विएना में जारी JCPOA वार्ताओं पर रही है. 2019 में सऊदी अरब पर हुए मिसाइल और ड्रोन हमलों की तरह ही ताज़ा हमलों में भी ईरान का हाथ होने को लेकर किसी तरह का शक़ नहीं है. हूतियों और इराक़ में अपने दोस्ताना गुटों सरीख़े मुखौटों के इस्तेमाल से ईरान अपनी भूमिका से इनकार करने का दांव चलने में कामयाब रहता है. इससे वो सीधे तौर पर कोई प्रतिक्रिया जताने से बच जाता है. साथ ही वो इलाक़े से बाहर के अपने मध्यस्थता वार्ताकारों को ‘ध्यान दो वरना…’ जैसे अलिखित संदेश भेजने में भी कामयाब रहता है. ये एक कम लागत वाली रणनीति है जो अतीत में काफ़ी कारगर रही है.   

ख़बरों के मुताबिक अत्याधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली ख़रीदने को लेकर यूएई की दिलचस्पी के प्रति इज़राइल का रुख़ अब और सकारात्मक हो सकता है. हालांकि ये देखना होगा कि क्या इज़राइल इस सिलसिले में अपने मशहूर आयरन डोम सिस्टम की भी पेशकश करेगा.

8 फ़रवरी से विएना में वार्ताओं का मौजूदा दौर चालू है. हो सकता है ये वार्ताओं का आख़िरी दौर साबित हो. इसके नतीजों पर काफ़ी कुछ निर्भर करेगा. विएना से आ रही शुरुआती सुगबुगाहटों से लगता है कि इन वार्ताओं से सतर्कतापूर्ण उम्मीदें रखी जा सकती हैं. वार्ताओं की शुरुआत के मौक़े पर अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि “हरेक पक्ष की प्रमुख चिंताओं का निपटारा करने वाला सौदा नज़रों के सामने है लेकिन अगर ये आने वाले हफ़्तों में हासिल नहीं हुआ तो ईरान के आगे बढ़ते परमाणु कार्यक्रमों के चलते हमारे लिए JCPOA की ओर वापस लौटना नामुमकिन हो जाएगा.” ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातिबज़ादेह के मुताबिक जो जवाब “अमेरिका विएना में लेकर आएगा, उसी से ये तय होगा कि हम समझौते पर कब पहुंचेंगे…हमने विएना वार्ताओं के कई क्षेत्रों में काफ़ी प्रगति की है.” बातचीत में रूसी वार्ताकार मिखाइल उलयानोव ने एक क़दम और आगे बढ़कर कहा, “हम लोग समाप्ति रेखा से 5 मिनट दूर हैं…आख़िरी दस्तावेज़ का मसौदा तैयार हो गया है. कुछ बिंदुओं पर अभी और काम होना बाक़ी है, लेकिन वो दस्तावेज़ पहले से ही मेज़ पर है.” 

इज़राइल

अब्राहम समझौते के मद्देनज़र यूएई और इज़राइल के बीच  के रिश्ते फलने-फूलने लगे हैं. दोनों के बीच सीधी विमान सेवा शुरू हो चुकी है. कारोबारियों और आधिकारिक शिष्टमंडलों का आना-जाना हो रहा है. साथ ही रक्षा, ख़ुफ़िया जानकारियों, विज्ञान और आर्थिक सहयोग के मसलों पर क़रीबी बढ़ती जा रही है. ईरान के प्रति दोनों ही देशों की साझा चिढ़ जगज़ाहिर है. हाल तक दोनों ही देश ईरान को अपने वजूद के सामने पेश ख़तरे के तौर पर देखते थे. इज़राइल मोटे तौर पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित रहा है, जबकि यूएई ने कई अरब देशों में ईरानी दख़लंदाज़ी पर नाख़ुशी जताई है. दरअसल यमन से लेकर बहरीन और इराक़ तक, और सीरिया से लेकर लेबनान तक फैले शिया समुदायों के ज़रिए ईरान इन देशों के मसलों में दख़ल देता आ रहा है. इसी प्रकार ईरान अब्राहम समझौते को एक ख़तरे के तौर पर देखता है. वो इसका खुलकर विरोध करता आ रहा है. इज़राइल के साथ रिश्ते सामान्य बनाने की इस क़वायद को ईरान ने अक्सर फ़िलीस्तीनी मसले से धोख़ा करार दिया है. 

31 जनवरी को जब अबु धाबी के आसमान पर हूतियों के मिसाइल को नाकाम किया गया तब इज़राइल के राष्ट्रपति इसाक हर्ज़ोग यूएई के ऐतिहासिक दौरे पर थे. हमलों के बावजूद राष्ट्रपति हर्ज़ोग ने अपना कार्यक्रम जारी रखा. उन्होंने व्यस्त दुबई एक्सपो में इज़राइली पवेलियन का भी दौरा किया. ख़बरों के मुताबिक अत्याधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली ख़रीदने को लेकर यूएई की दिलचस्पी के प्रति इज़राइल का रुख़ अब और सकारात्मक हो सकता है. हालांकि ये देखना होगा कि क्या इज़राइल इस सिलसिले में अपने मशहूर आयरन डोम सिस्टम की भी पेशकश करेगा. ग़ौरतलब है कि इस प्रणाली ने हमास द्वारा गाज़ा से किए जा रहे मिसाइल और ड्रोन हमलों से इज़राइली शहरों का ज़बरदस्त तरीक़े से बचाव किया है. 

सऊदी अरब

सऊदी अरब हूती-विरोधी गठजोड़ का मुखिया है. लिहाज़ा अबु धाबी पर हुए हमलों के ख़िलाफ़ सऊदी अरब ने भी जवाबी प्रतिक्रिया के तौर पर हूतियों के अड्डों पर हवाई हमले किए. ख़बरों के मुताबिक इन हमलों से जानमाल का ख़ासा नुक़सान हुआ. साथ ही ज़मीन पर समानांतर रूप से अतिरिक्त तबाही भी हुई. हूतियों की विषम जंगी रणनीति के चलते सऊदी अरब को भारी नुक़सान झेलना पड़ा  है. हूतियों ने कई बार सऊदी अरब के शहरों और हवाई अड्डों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए हैं. सबसे गंभीर हमला 14 सितंबर 2019 को हुआ था. उस दिन सऊदी अरामको के अबक़ैक़-ख़ुराइस परिसर को निशाना बनाया गया था. हूतियों ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी. हालांकि कुछ अन्य ख़बरों के मुताबिक ड्रोन की झड़ी लगाकर किए गए ये हमले दक्षिणी इराक़ से या शायद ईरान से अंजाम दिए गए थे.    

फ़रवरी 2019 में यूएई ने यमन में तैनात अपने ज़्यादातर सैनिकों को वापस बुलाने का फ़ैसला किया. इससे सऊदी अरब और यूएई (दो क़रीबी साथियों) के बीच के रिश्तों में कुछ खटास आ गई. नतीजतन पिछले कुछ महीनों में हूतियों को मैदान-ए-जंग में आगे बढ़ने का मौक़ा मिल गया. हालांकि सऊदी अरब और यूएई में नए सिरे से तालमेल और जाएंट्स ब्रिगेड्स को सक्रिय मदद की वजह से हालात तेज़ी से बदल गए हैं. 

सऊदी अरब अब इराक़ की मध्यस्थता के ज़रिए ईरान के साथ नए सिरे से अपने रिश्ते क़ायम करने की क़वायद में लगा है. 2016 में राजनयिक रिश्तों के तहस नहस हो जाने के बाद पहली बार ईरान के साथ प्रभावी रूप से संवाद प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की जा रही है. ज़ाहिर तौर पर इस दिशा में थोड़ी-बहुत प्रगति भी हुई है. ईरान ने जेद्दा स्थित इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में अपने तीन राजनयिक भेजकर इस संस्था में अपनी नुमाइंदगी दोबारा बहाल कर दी. बग़दाद में चार दौर की वार्ताओं के बाद ईरान की अर्द्ध-सरकारी न्यूज़ एजेंसी फ़ार्स ने 5 फ़रवरी को ख़बर दी कि राष्ट्रपति रईसी ने इराक़ी प्रधानमंत्री मुस्तफ़ा अल काधिमी के साथ फ़ोन पर बात की है. ख़बरों के मुताबिक रईसी ने उन्हें बताया कि “अगर सऊदी अरब पारस्परिक समझ और सम्मान के माहौल में इन वार्ताओं को जारी रखने का इरादा ज़ाहिर करता है तो ईरान भी ठोस नतीजे हासिल होने तक इन वार्ताओं को आगे बढ़ाने को तैयार है.” 

यूएई

यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि यूएई हमेशा से ही यमन के पचड़े में पड़ने से हिचकता रहा था. हालांकि यूएई को ये पता था कि सऊदी अरब के सुरक्षा बल इस चुनौती से अकेले पार नहीं पा सकते. लिहाज़ा हिचकते हुए उसने सऊदी गठजोड़ के साथ जुड़ने का फ़ैसला किया. यूएई को इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि उसकी सक्रिय भागीदारी के बग़ैर सऊदी अरब की फ़ौजी शिकस्त तय थी. इससे ईरान को रणनीतिक तौर पर फ़ायदा मिल जाता. हालांकि 5 साल बाद यूएई को महसूस हो गया कि इस जंग में जीत हासिल नहीं हो सकती. यमन में उनकी मौजूदगी जारी रहने से वित्तीय तौर पर भारी बोझ पड़ने के साथ-साथ उनकी साख पर भी बट्टा लग रहा है. ठीक उसी वक़्त यूएई पिछले दशक में विदेश नीति के मोर्चे पर ख़ासतौर से अपनाए गए आक्रामक तेवरों से भी दूर जाने लगा था. उसने इलाक़े में शांति और समृद्धि के लिए काम करने का एलान भी किया. 

यूएई अब तक सीधे तौर पर ईरान पर ऊंगली उठाने से बचता रहा है. मिसाइल और ड्रोन हमलों से दुबई और अबु धाबी के नाज़ुक हालात एक बार फिर सबके सामने आ गए हैं. खाड़ी में महज़ 150 किमी दूर बसे अपने सनकी पड़ोसी की हरकतों का ख़तरा इनके लिए बरकरार है. 

बहरहाल, यूएई अब तक सीधे तौर पर ईरान पर ऊंगली उठाने से बचता रहा है. मिसाइल और ड्रोन हमलों से दुबई और अबु धाबी के नाज़ुक हालात एक बार फिर सबके सामने आ गए हैं. खाड़ी में महज़ 150 किमी दूर बसे अपने सनकी पड़ोसी की हरकतों का ख़तरा इनके लिए बरकरार है. तेहरान के साथ रिश्ते सुधारने की क़वायदों में लगे अबु धाबी ने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया जताने में हमेशा बेहद सतर्कता बरती है. उसने हूतियों की निंदा करते हुए अमेरिका से हूतियों को दोबारा आतंकी सूची में डालने की मांग की है. हालांकि उनके ईरानी आकाओं के ख़िलाफ़ यूएई ने कुछ भी नहीं कहा है. फ़िलहाल यूएई का ज़ोर अपनी फ़ौजी क़ाबिलयत दिखाते हुए इन हमलों का जवाब देकर हमलावरों को सज़ा देने पर है. इसके साथ ही वो ये भी दिखाना चाहता है कि घरेलू मोर्चे पर उसके हालात बिल्कुल सामान्य हैं. मसलन वहां की सड़कें व्यस्त हैं, बाज़ारों में भीड़-भाड़ है और स्कूल दोबारा खुल गए हैं. बहरहाल, दुबई एक्सपो जारी है और यूएई को कारोबारी लिहाज़ से और अनुकूल देश बनाने के लिए वहां अनेक अहम सुधार भी लागू किए गए हैं. फ़िलहाल अबु धाबी ‘सामूहिक शांति और समृद्धि’ के अपने एजेंडे पर ध्यान टिकाए रखना पसंद करेगा.  

क्या है आगे का रास्ता?

एक ओर यूएई और उसके अमेरिकी साथी अगले मिसाइल या ड्रोन हमले की आशंका में आसमान पर अपनी चौकसी बनाए हुए हैं तो दूसरी ओर विएना में जारी घटनाक्रमों पर भी उनकी निग़ाह बनी हुई है. साझा व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) में कामयाबी से नई जान आने से इलाक़े के समीकरण बदल सकते हैं. ख़ासतौर से अगर इसके समानांतर सऊदी अरब और यूएई के साथ ईरान द्वारा जारी वार्ताओं में तरक़्क़ी होती है तो यहां के हालात बदल सकते हैं. हालांकि सबकुछ इन वार्ताओं या विएना के घटनाक्रमों से ही तय नहीं होगा. काफ़ी कुछ ईरान के घरेलू हालात पर भी निर्भर करेगा, जहां कट्टरपंथी धड़ों को घोषित तौर पर अपने नज़रिए में से कुछ को चुपचाप वापस लेना पड़ सकता है. 

इस बीच आख़िरकार शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद की क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल थानी से मुलाक़ात हो गई है. बीजिंग विंटर ओलंपिक्स के मौक़े पर दोनों की मुलाक़ात हुई. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन भी जल्द ही रियाध और अबु धाबी का दौरा करने वाले हैं. ऐसे में हो सकता है कि जल्द ही इस इलाक़े का मौसम ख़ुशगवार हो जाए!

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