Published on Dec 28, 2020 Updated 0 Hours ago

G20 देशों के सम्मेलन से बहुत उम्मीदें लगाना ही बेमानी था. लेकिन, दो दिनों के इस सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच जिन बातों पर सहमति बनी, वो सराहनीय है.

क्या G20 शिखर सम्मेलन से कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें लगाई गई थीं?

G20 देशों की पंद्रहवीं बैठक 21-22 नवंबर को आयोजित की गई. इस वक़्त G20 की अध्यक्षता सऊदी अरब के पास है, तो मूलत: ये सम्मेलन, सऊदी अरब की राजधानी रियाद में होना था. लेकिन, महामारी के प्रकोप के चलते, G20 का वर्चुअल सम्मेलन हुआ. इस बैठक में कोरोना वायरस की महामारी के प्रभाव, भविष्य की स्वास्थ्य योजनाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से जान डालने को लेकर चर्चा की.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने अक्टूबर के विश्व आर्थिक परिदृश्य (World Economic Outlook WEO) में अनुमान लगाया था कि इस साल दुनिया की अर्थव्यवस्था की विकास दर -4.4% रहेगी. विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर मुद्रा कोष का ताज़ा पूर्वानुमान, जून के अनुमानों से कुछ बेहतर है. वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में इस मामूली सुधार की वजह इस वर्ष दुनिया की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तीसरी तिमाही में ‘उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन’ है.

वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में इस मामूली सुधार की वजह इस वर्ष दुनिया की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तीसरी तिमाही में ‘उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन’ है.

लेकिन,1990 के दशक से दुनिया ने आर्थिक तरक़्क़ी की जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उनमें से कई के इस महामारी के कारण हाथ से फिसल जाने का डर है. दुनिया के तमाम देशों में ग़रीबी और असमानता के हालात बिगड़ने की आशंका है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि इस साल लगभग 9 करोड़ लोग प्रतिदिन न्यूनतम आमदनी के उसके पैमाने यानी 1.90 डॉलर के स्तर से नीचे चले जाएंगे, जिससे उन्हें भयंकर अभाव झेलना पड़ेगा. मुद्रा कोष का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का सिलसिला वर्ष 2021 में भी जारी रहेगा और जैसे-जैसे टीकाकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, तब जाकर इससे निजात मिलेगी. हो सकता है कि सभी जगह कोरोना वायरस का स्थानीय स्तर पर संक्रमण न्यूनतम स्तर तक पहुंचने के लिए हमें वर्ष 2022 के अंत तक इंतज़ार करना पड़े. मगर, ये सभी न्यूनतम मानक वाले पूर्वानुमान हैं और इन पूर्वानुमानों से भी नीचे जाने की आशंका बनी हुई है.

इसी वजह से नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था को उच्च उत्पादकता वाली वृद्धि के तेज़ आर्थिक विकास वाले रास्ते पर दोबारा लाने के साथ साथ, आर्थिक वृद्धि के लाभ के समान वितरण और राष्ट्रीय ऋण का बोझ उठाने लायक़ स्तर पर बनाए रखने की पेचीदा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. कम अवधि में भयंकर आर्थिक सुस्ती का मुक़ाबला करना अपने आप में मुश्किल काम है. लेकिन, ये संघर्ष लंबी अवधि में भी जारी रह सकता है.

इसी वजह से नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था को उच्च उत्पादकता वाली वृद्धि के तेज़ आर्थिक विकास वाले रास्ते पर दोबारा लाने के साथ साथ, आर्थिक वृद्धि के लाभ के समान वितरण और राष्ट्रीय ऋण का बोझ उठाने लायक़ स्तर पर बनाए रखने की पेचीदा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

दुनिया के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत G20 देशों में ही होता है. इन देशों में दुनिया की दो तिहाई जनसंख्या रहती है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का दो तिहाई हिस्सा भी इन्हीं देशों के बीच होता है. वैसे तो G20 की स्थापना अंतरराष्ट्रीय वित्तीय समस्याओं के समाधान और नियमन के लिए हुई थी, लेकिन अब इस मंच ने अपने एजेंडे में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का दायरा बढ़ाते हुए सामाजिक-आर्थिक और विकास संबंधी विषयों को भी शामिल कर लिया है. इसी वजह से इस साल सऊदी अरब में होने वाले शिखर सम्मेलन को लेकर उम्मीदें कुछ ज़्यादा ही लगाई गई थीं.

G20 सम्मेलन से क्या उम्मीदें थीं?

इस साल मार्च में G20 ने एलान किया था कि महामारी के दुष्प्रभावों से बचने के लिए विश्व अर्थव्यवस्था में 5 ख़रब डॉलर का निवेश किया जाएगा. इसके अलावा कई देशों ने निजी तौर पर भी घोषणाएं की थीं. लेकिन, शिखर सम्मेलन से ये अपेक्षा की जा रही थी कि आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए साझा वैश्विक स्टिमुलस कार्यक्रम का एलान हो सकता है. हालांकि, G20 देशों ने विश्व अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए केवल 21 अरब डॉलर के निवेश का एलान किया. ये मदद वैश्विक स्वास्थ्य क्षमताएं विकसित करने में ख़र्च की जाएगी. सऊदी अरब का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए अब तक 11 ख़रब डॉलर का निवेश किया जा चुका है.

शिखर सम्मेलन से ये अपेक्षा भी थी कि वो ग़रीब देशों को क़र्ज़ चुकाने में कुछ रियायतें दे सकते हैं. इससे पहले क़र्ज़ वापस करने पर रोक या रियायत से ग़रीबी देशों के पास अपने यहां स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम चलाने के लिए 14 अरब डॉलर बच गए थे. G20 शिखर सम्मेलन में ग़रीब देशों को क़र्ज़ वापस करने में दी जा रही ये रियायत अगले वर्ष जुलाई तक जारी रखने का फ़ैसला किया गया. G20 की इस योजना का लाभ उठाने की पात्रता 76 देश रखते हैं. हालांकि अब तक केवल 46 देशों ने इस व्यवस्था का लाभ उठाया है. वो क़र्ज़ वापस करने के दबाव से मुक्त होकर अपनी जनता की मदद के लिए रक़म बचा सके हैं. इस तरह से इन देशों को 5.7 अरब डॉलर की मदद मिली है. हालांकि, G20 देशों ने क़र्ज़ वापस करने में इस रियायत से ग़रीब देशों को 12 अरब डॉलर की मदद मिलने का अनुमान लगाया था. अब इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर सहमति बनी है.

G20 शिखर सम्मेलन से जो तीसरी बड़ी अपेक्षा थी, वो स्वास्थ्य सेवा के संदर्भ में थी. माना जा रहा था कि दुनिया के ये 20 प्रभावशाली देश आर्थिक स्टिमुलस के एक बड़े हिस्से को स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने में ख़र्च करने का वादा करेंगे. सभी सदस्य देशों ने पूरी दुनिया में कोरोना के टीकाकरण अभियान को चलाने की प्रतिबद्धता जताई और ये भी कहा कि वो ‘वैक्सीन के कम क़ीमत पर समान वितरण’ को भी बढ़ावा देंगे. यूरोपीय परिषद के चार्ल्स माइकल ने भविष्य में महामारी रोकने की अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रस्ताव भी रखा. वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए G20 देशों ने 21 अरब डॉलर ख़र्च करने का वादा किया है. सभी नेताओं ने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण के लिए मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई और ये भी कहा कि वो ग़रीब देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने में मदद करेंगे. इस महामारी से निपटने में वैक्सीन का सस्ती दर पर समान वितरण सबसे बड़ी चुनती है. अमेरिका की फ़ाइज़र और मॉडर्ना, जर्मनी की बायोएनटेक, ब्रिटेन की एस्ट्राज़ेनेका कंपनियों के अलावा रूस ने भी अपने स्पुतनिक टीकों के 90 प्रतिशत या इससे अधिक प्रभावी होने के दावे किए हैं. इस साल के अंत तक टीकों की 50 करोड़ डोज़ तैयार हो चुकी है. अमेरिका, रूस और ब्रिटेन में टीकाकरण के अभियान शुरू हो चुके हैं. भारत की कंपनियां भी बड़े पैमाने पर इन टीकों का उत्पादन कर रही हैं. रूस और ब्रिटेन की कंपनियों ने भारतीय दवा कंपनियों के साथ इन टीकों के उत्पादन के करार किए हैं. माना जा रहा है कि वर्ष 2021 तक कोरोना वायरस के टीकों की क़रीब डेढ़ करोड़ डोज़ तैयार हो जाएगी. मगर अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोपीय संघ के अन्य देशों ने इन टीकों की बड़ी मात्रा में एडवांस बुकिंग कर ली है. विकसित देशों द्वारा कोविड-19 के एक अरब से भी अधिक टीके आरक्षित कर लिए हैं. 2009 में जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब भी टीके की एडवांस बुकिंग के कारण, बहुत से वैक्सीन निर्माता संयुक्त राष्ट्र को अपने कुल उत्पादन की दस प्रतिशत वैक्सीन इसीलिए उपलब्ध नहीं करा सके थे, क्योंकि उन्होंने विकसित देशों को ये वैक्सीन बेचने की एडवांस बुकिंग कर ली थी.

G20 देशों ने ये प्रतिबद्धता जताई है कि वो टीकों को सस्ती दरों पर समान रूप से वितरित करेंगे. जिससे टीकों को लेकर इस वैश्विक असमानता की चुनौती से निपटा जा सकेगा.

इसीलिए, आने वाले समय में भी ग़रीब देशों को कोविड-19 के टीके की बड़ी कम मात्रा ही उपलब्ध होगी. जिन देशों के पास अधिक पैसे हैं, उन्होंने पहले ही वैक्सीन की एक अरब से अधिक डोज़ बुक कर ली है. अब G20 देशों ने ये प्रतिबद्धता जताई है कि वो टीकों को सस्ती दरों पर समान रूप से वितरित करेंगे. जिससे टीकों को लेकर इस वैश्विक असमानता की चुनौती से निपटा जा सकेगा.

शिखर सम्मेलन में क्या हुआ?

G20 समूह यूरोपीय संघ और 19 देशों यानी अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, जर्मनी, फ्रांस, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, साउथ कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका को मिलाकर बना है.

पिछले दो वर्षों से अमेरिका और चीन में भयंकर व्यापार और आर्थिक युद्ध चल रहा है. अब अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होने वाला है, लेकिन जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी ये टकराव जारी रहने की आशंका ही ज़्यादा है. वैसे भी नए राष्ट्रपति को जनवरी में शपथ लेनी है. इस दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ज़ूम के ज़रिए बस कुछ देर के लिए सम्मेलन में शामिल हुए. इसके बाद वो गॉल्फ खेलने चले गए. इसी से G20 को लेकर ट्रंप की गंभीरता साफ़ हो जाती है. वैसे भी अगर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आपस में संघर्षरत हों, तो G20 जैसे बहुपक्षीय संगठन से बहुत उम्मीद लगाना बेमानी हो जाता है.

इसी तरह, कोविड-19 की महामारी शुरू होने से पहले सऊदी अरब और रूस के बीच भी तेल के दाम पर भयंकर युद्ध चल रहा था. रूस ने अमेरिका के शेल ऑयल उत्पादकों को नुक़सान पहुंचाने की नीयत से कच्चे तेल का उत्पादन कम करने से इनकार कर दिया था. जवाब में सऊदी अरब ने भी तेल का उत्पादन बढ़ा दिया, जिससे कच्चे तेल के दाम में भारी गिरावट आ गई. हालांकि महामारी के चलते, डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में दोनों देशों ने समझौता कर लिया और तेल का उत्पादन घटा दिया. लेकिन अभी भी तेल की क़ीमतों पर ये जंग थमी है, ख़त्म नहीं हुई. इस बात की कोई गारंटी नहीं कि भविष्य में मौक़ा मिलने पर रूस फिर से अमेरिकी तेल उत्पादकों को चोट पहुंचाने के लिए ऐसा नहीं करेगा. ट्रंप का इस सम्मेलन को लेकर गंभीर न होना इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती थी.

वहीं, भारत और चीन भी सीमा पर कई दशकों के सबसे भयंकर तनाव के दौर से गुज़र रहे हैं. पिछले सात महीने से चीन और भारत की सेनाएं सीमा पर आमने सामने खड़ी हैं. हालांकि, सरहद पर चीन की आक्रामकता के बावजूद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ब्रिक्स सम्मेलन और शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल हो चुके हैं. लेकिन, ये उम्मीद लगाना बेमानी होगा कि सीमा पर तनातनी को परे करके, भारत और चीन मुक्त रूप से वैश्विक आर्थिक प्रगति को दोबारा पटरी पर लाने की चर्चा करेंगे.

पेरिस और नीस में हालिया आतंकवादी हमलों के बाद फ्रांस के समाज और राजनीति में भी दरारें उभर आई हैं. इसके अलावा फ्रांस की तुर्की समेत कई मुस्लिम बहुल देशों के साथ ज़ुबानी जंग भी हुई है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने फ्रांस के समाज की धर्मनिरपेक्षता की नीति की डटकर रक्षा करने का वादा किया है. इस मुद्दे पर फ्रांस को भारत समेत कई अन्य देशों का समर्थन भी मिला है. हालांकि, यूरोपीय संघ ने इस मुद्दे पर खुलकर फ्रांस का साथ देने से परहेज़ किया है.

जब दुनिया की अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है और हर देश अपने अपने हितों और महामारी से प्रभावित अपनी आबादी को तरज़ीह दे रहा है, तब ये अपेक्षा करना बेमानी है कि  G20 के सदस्य देश द्विपक्षीय विवादों को परे हटाकर, वैश्विक हित के बारे में सोचेंगे.

इसीलिए, G20 को एक जैसे विचारों वाले ऐसे समूह के तौर पर नहीं देखा जा सकता, जिसके सदस्य देशों ने विश्व की भलाई के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को ही प्राथमिकता देने का प्रण लिया हो.

कोई भी ये कह सकता है कि G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सहयोग के मंच सामान्य परिस्थितियों में द्विपक्षीय संघर्ष और तनावों से ऊपर उठकर काम करते हैं. लेकिन, जब दुनिया की अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है और हर देश अपने अपने हितों और महामारी से प्रभावित अपनी आबादी को तरज़ीह दे रहा है, तब ये अपेक्षा करना बेमानी है कि  G20 के सदस्य देश द्विपक्षीय विवादों को परे हटाकर, वैश्विक हित के बारे में सोचेंगे. ऐतिहासिक रूप से असामान्य परिस्थितियों में सामान्य बर्ताव की उम्मीद करना, मौजूदा वैश्विक समीकरणों की उचित व्याख्या नहीं होगी.

इसीलिए, G20 देशों के सम्मेलन से बहुत उम्मीदें लगाना ही बेमानी था. लेकिन, दो दिनों के इस सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच जिन बातों पर सहमति बनी, वो सराहनीय है. सस्ती दरों पर वैक्सीन के समान वितरण को लेकर प्रतिबद्धता और ग़रीब देशों को क़र्ज़ में रियायत जैसी योजनाओं पर सहमति जताना, इस सम्मेलन की बड़ी उपलब्धियां कहा जा सकता है.

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