पश्चिम अफ्रीका की राजनीति के लिहाज से 5 सितंबर, 2021 को गिनी में हुआ सैन्य तख्त़ापलट एक बड़ी घटना थी, जिसके बाद 83 साल के पूर्व राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को पद से हटाया गया और उन्हें गिरफ्त़ार कर लिया गया. स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख कर्नल ममादी डोमोया तख्त़ापलट के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए और उन्होंने संविधान भी भंग कर दिया. विरोधियों का आरोप है कि कोंडे एक अक्षम सरकार चला रहे थे. वह तानाशाह थे. पिछले पांच साल से गिनी का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 5 प्रतिशत की औसत से बढ़ रहा था, लेकिन यहां के 70 प्रतिशत निवासियों की आमदनी $3.20 प्रतिदिन से कम है. इतना ही नहीं, गिनी में सड़कों, अस्पतालों और इंफ्रास्ट्रक्चर की हालत भी खराब है. सबसे बड़ी बात यह है कि कोंडे विपक्षी नेताओं से निपटने को लेकर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे थे. कर्नल ममादी ने गरीबी और भ्रष्टाचार को तख्तापलट की बड़ी वजह बताया. यह भी बताया गया कि कोंडे सरकार की बर्खास्तगी के बाद कुछ हफ्तों में सेना वहां मुकम्मल सरकार बनाएगी. यूं तो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अफ्रीकी संघ (एयू) के साथ पश्चिमी अफ्रीकी देशों की कम्युनिटी (ईसीओडब्ल्यूएएस) ने तख्तापलट की आलोचना की और कोंडे को तुरंत रिहा करने को कहा. पश्चिमी अफ्रीकी देशों की कम्युनिटी ने तो गिनी की सदस्यता तक सस्पेंड कर दी है. उसने यह भी कहा है कि वह इस संकट के समाधान के लिए मध्यस्थ भेजेगा. इस बीच, कोंडे सरकार के गिरने से बॉक्साइट और लौह अयस्क की सप्लाई को लेकर अनिश्चितता बन आई है. याद रहे कि गिनी के पास दुनिया में बॉक्साइट का सबसे बड़ा भंडार है, जो एल्युमीनियम बनाने के लिए प्रमुख कच्चा माल है. मेटल एक्सचेंजों पर बॉक्साइट की कीमतें उछलकर 10 साल से शिखर पर पहुंच गई हैं क्योंकि गिनी में तख्तापलट ने बॉक्साइट के बाजार में उथलपुथल मचा दी है.
स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख कर्नल ममादी डोमोया तख्त़ापलट के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए और उन्होंने संविधान भी भंग कर दिया. विरोधियों का आरोप है कि कोंडे एक अक्षम सरकार चला रहे थे.
गिनी में कोंडे का कार्य
पश्चिमी अफ्रीका के लिए सैन्य तख्त़ापलट कोई नई बात नहीं. हाल ही में, एक साल के अंदर, माली में अगस्त 2020 और मई 2021 में दो बार ऐसा हो चुका है. इसी तरह से चाड में मई 2021 में सैन्य तानाशाही शुरू हुई. गिनी बिसाव भी 1974 में आजादी के बाद से सैन्य तख्तापलट का शिकार होता आया है. एक और बात यह है कि गिनी में जो भी हुआ, उसे इस क्षेत्र की बदलती राजनीतिक संस्कृति से अलग करके नहीं देखा जा सकता. हालांकि, इस बात पर गौर करने की ज़रूरत है कि कोंडे साल 2010 में रिपब्लिक ऑफ गिनी के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति थे. राष्ट्रपति बनने से पहले कोंडे का करियर भी शानदार रहा था. उन्होंने पेरिस के मशहूर संस्थानों सोरबॉन यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिकल स्टडीज से कानून की पढ़ाई की थी. वह सोरबॉन यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर भी रह चुके थे. वह छात्र आंदोलनों में सक्रिय थे और उन्होंने फ्रांस में अश्वेत अफ्रीकी छात्रों के महासंघ यानी एफईएएनएफ का नेतृत्व भी किया था. कोंडे ने गिनी में अहमद टूरे (1958-84) के दमनकारी शासन का विरोध किया था, जिसके लिए 1970 में उन्हें उनकी गैर-हाजिरी में मौत की सजा सुनाई गई थी. कोंडे 1991 में फ्रांस से अपनी राजनीतिक पार्टी के प्रमुख के तौर पर देश लौटे. उनकी पार्टी का नाम रैली ऑफ गिनियन पीपल (आरपीजी) था. वह दशकों तक विपक्ष में रहे. तत्कालीन राष्ट्रपति लसाना कोंटे (1984-2008) के खिलाफ 1993 और 1998 में कोंडे चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. कोंडे अकादमिक जगत से आए थे और उन्होंने हमेशा तानाशाही का विरोध किया था. इसलिए गिनी की जनता को उम्मीद थी कि वह लोकतांत्रिक राजनीति जारी रखेंगे. वह विकास कार्यों पर ध्यान देंगे. इसके साथ वैचारिक स्वतंत्रता और कानून-व्यवस्था का राज देश में कायम करेंगे. अपने कार्यकाल में कोंडे ने कई ऐसे काम किए, जिनके लिए उन्हें याद रखा जाएगा. उन्होंने न सिर्फ़ गिनी बल्कि अफ्रीका के विकास पर जोर दिया. साल 2011 में राष्ट्रपति बनने के एक साल के अंदर कोंडे ने खनिज क्षेत्र पर ध्यान दिया और जाने-माने निवेशक और दोस्त जॉर्ज सोरोस की सलाह मांगी. उन्होंने एक खनन संहिता बनाई. इसमें बताया गया कि खनन परियोजनाओं में सरकार की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 33 प्रतिशत की जाएगी. खनन क्षेत्र के लिए इस नई आचारसंहिता में एक्सट्रैक्टिव इंडस्ट्रीज ट्रांसपेरेंसी इनीशिएटिव (ईआईटीआई) के प्रति कमिटमेंट को शामिल किया गया. उन्होंने खनन क्षेत्र में भ्रष्टाचार और घूसखोरी को भी रोकने की कोशिश की. कोंडे ने पूरे गिनी में अधिक से अधिक लोगों तक बिजली पहुंचाने की कोशिश की.
कोंडे अकादमिक जगत से आए थे और उन्होंने हमेशा तानाशाही का विरोध किया था. इसलिए गिनी की जनता को उम्मीद थी कि वह लोकतांत्रिक राजनीति जारी रखेंगे. वह विकास कार्यों पर ध्यान देंगे. इसके साथ वैचारिक स्वतंत्रता और कानून-व्यवस्था का राज देश में कायम करेंगे. अपने कार्यकाल में कोंडे ने कई ऐसे काम किए, जिनके लिए उन्हें याद रखा जाएगा.
कोंडे ने सेना में भी बदलाव किया. 2014-2016 के बीच गिनी इबोला महामारी से जूझ रहा था. इस महामारी से निपटने के लिए उनकी सरकार ने टैक्स की दरें बढ़ाईं और ईंधन के दाम में भी 20 प्रतिशत का इजाफा किया. इसके अलावा 2015 में कोंडे ने कॉनकुरे रिवर बेसिन में कालेता पावर प्रॉजेक्ट बनवाया, जो गिनी में सबसे बड़ा बिजली का कारखाना है. इसी रिवर बेसिन में सोवापिति पनबिजली परियोजना भी लगनी थी और उसे 2021 तक चालू किया जाना था. जब उनके पास अफ्रीकी संघ की अध्यक्षता (2017-18) थी, तब कोंडे ने इस बात पर जोर दिया कि अफ्रीकी देशों को निवेश की कितनी जरूरत है. उनका मानना था कि इससे इन देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. कोंडे को लगता था कि यह काम सिर्फ़ डोनेशन से नहीं हो सकता. उनके नेतृत्व में गिनी ईसीओडब्ल्यूएएस में सक्रिय था. राजनीति में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. 2013 में उन्होंने संसदीय चुनाव कराए. वह लगातार दूसरी बार देश के राष्ट्रपति चुने गए. 2015 में उन्होंने 58 प्रतिशत वोटों के साथ जीत पक्की की.
राष्ट्रपति पद का लालच
दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने से कुछ साल पहले कोंडे के मन में सत्ता का लोभ पैदा हो गया और तीसरे कार्यकाल के लिए उन्होंने तीन-तिकड़म शुरू कर दी. उस वक्त गिनी के संविधान में किसी व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति के तीसरे कार्यकाल का प्रावधान नहीं था. इसलिए कोंडे ने मार्च 2020 में नया संविधान लाने की पहल की. उन्होंने इसके लिए जनमतसंग्रह कराने का फैसला किया. इससे वह तीसरे कार्यकाल के लिए योग्य हो जाते. इसी के साथ उन्होंने संसदीय चुनाव कराए. इन चुनावों में उनकी पार्टी आपीजी ने 114 में से 79 सीटें जीतीं. इससे कोंडे का राष्ट्रपति पद पर दावा और मजबूत हुआ. किसी भी सूरत में तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की उनकी ख्व़ाहिश कोंडे को तानाशाह बनाती जा रही थी. वह नागरिकों के साथ सख्त़ी से पेश आने लगे. खासतौर पर वह किसी तरह के विरोध को बर्दाश्त नहीं करते थे. इस दौरान उनकी सरकार ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया और राजनीतिक विरोधियों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया. यह सब एमनेस्टी इंटरनेशनल की नजरों से भी बचा न रह सका. वहीं, गिनी में लोकतंत्र की स्थिति पर 2021 में फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट आई. इसमें राजनीतिक अधिकारों, सिविल लिबर्टी, बहुलतावाद और राजनीतिक भागीदारी जैसे मुद्दों को लेकर कोंडे सरकार की आलोचना की गई थी. इस रिपोर्ट में उनकी सरकार के कामकाज की हाल भी पेश किया गया था. सत्ता पर काबिज रहने के लिए कोंडे को रूस जैसी बाहरी ताकत का सहारा लेने से भी कोई गुरेज़ न रहा. गिनी के खनिज क्षेत्र में इस तरह से रूस बड़ी भूमिका में आ गया. रूस की सबसे बड़ी एल्युमीनियम कंपनी रूसल का दख़ल गिनी की बॉक्साइट माइनिंग में काफी बढ़ गया. 2019 में दूसरा कार्यकाल पूरा करने से पहले गिनी में रूस के प्रतिनिधि एलेक्जेंडर ब्रेगाजी ने सुझाव दिया कि गिनी के संविधान में संशोधन करके कोंडे को तीसरा कार्यकाल दिया जाना चाहिए. सत्ता पर फिर से काबिज होने के लिए कोंडे ने चुनावों के दौरान रूस का समर्थन हासिल किया. वह इस हद तक गिर गए कि गिनी एक तरह से रूस का उपनिवेश दिखने लगा.
दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने से कुछ साल पहले कोंडे के मन में सत्ता का लोभ पैदा हो गया और तीसरे कार्यकाल के लिए उन्होंने तीन-तिकड़म शुरू कर दी. उस वक्त गिनी के संविधान में किसी व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति के तीसरे कार्यकाल का प्रावधान नहीं था. इसलिए कोंडे ने मार्च 2020 में नया संविधान लाने की पहल की.
अक्टूबर 2020 में गिनी में नए संविधान के तहत चुनाव हुए. इस देश की आबादी 1.3 करोड़ है और यहां के लोग करीब दो दर्जन एथनिक समूहों में बंटे हुए हैं. इनमें मलिन्के, फुलानी और सुसो सबसे अधिक दबदबा रखते हैं. कोंडे मलिन्के समूह से आते हैं. देश की कुल आबादी में 30 प्रतिशत लोग इसी एथनिक समूह के हैं. वहीं, डेमोक्रेटिक फोर्सेज ऑफ गिनी (यूडीएफजी) के नेता सेलो डैलिन डायलो फुलानी एथनिक समूह के हैं. देश की कुल आबादी में इस समूह के 40 प्रतिशत लोग हैं. अक्टूबर 2020 में हुए चुनावों में हेट स्पीच के कारण हिंसक प्रदर्शन हुए. हेट स्पीच में दूसरे एथनिक समूहों को निशाना बनाया गया. आखिरकार, नवंबर 2021 में संविधान परिषद ने कोंडे की जीत पर मुहर लगाई. परिषद ने बताया कि डायलो के मुकाबले कोंडे को 59.5 प्रतिशत वोट मिले. पश्चिम अफ्रीकी देशों में कार्यकाल बढ़ाने की ऐसी कोशिश कोई नई बात नहीं. कोंडे की तरह ही आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति ए क्वात्रा भी दिसंबर 2020 में विवादित तरीके से तीसरा कार्यकाल हासिल हासिल करने में सफल रहे. गिनी में कोंडे ने आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति का ही फॉर्मूला आज़माया. उनके मुख्य विरोधी डायलो 2004-2006 के बीच गिनी के प्रधानमंत्री रह चुके थे. वह चुनाव के नतीजों से खुश नहीं थे. उन्होंने इसमें धांधली का आरोप लगाया. उन्होंने इन नतीजों को चुनौती दी और चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ियों का आरोप लगाया, जिनके कारण कोंडे को जीत मिली थी. आगे चलकर उन्होंने सैन्य तख्त़ापलट का भी स्वागत किया और इसे देशभक्ति का कार्य बताया. वह उम्मीद कर रहे हैं कि सेना जल्द ही पारदर्शी चुनाव कराएगी. इसी उम्मीद में उन्होंने अस्थायी सरकार का हिस्सा बनने के लिए हामी भरी है.
पश्चिम अफ्रीकी देशों में कार्यकाल बढ़ाने की ऐसी कोशिश कोई नई बात नहीं. कोंडे की तरह ही आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति ए क्वात्रा भी दिसंबर 2020 में विवादित तरीके से तीसरा कार्यकाल हासिल हासिल करने में सफल रहे. गिनी में कोंडे ने आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति का ही फॉर्मूला आज़माया.
आखिर में, अगर अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट आम हैं तो पश्चिम अफ्रीका में सत्ता में बने रहने के लिए संविधान संशोधन भी आम होते जा रहे हैं. टूरे और कोंटे की लंबी तानाशाही के बाद कोंडे सत्ता में आए थे. उन्होंने गिनी में लोकतांत्रिक शासन की उम्मीद जगाई थी. हालांकि, वह भी दो से अधिक कार्यकाल के लालच में पड़ गए और इसी वजह से तानाशाहों की तरह व्यवहार करने लगे. उन्होंने ऐसे रास्ते चुने, जिनसे गिनी में लोकतंत्र की उम्मीद टूट गई. इस देश के लिए अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि मौजूदा सैन्य सरकार यहां पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव कराती है या नहीं.
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