Author : Cathleen Berger

Published on Jul 26, 2023 Updated 0 Hours ago

सूचना में देरी, ध्यान भटकाने और ग़लत जानकारियां फैलाने की रणनीति के बावज़ूद, जहां जलवायु संकट के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, वहीं इसके साथ हमारे कई अन्य संकटों, जैसे कि ऊर्जा, भोजन, हिंसा, युद्ध, मुद्रास्फ़ीति और मौसमी घटनाओं पर इसका प्रभाव भीबढ़ रहा है.

We “Pledge” action, ‘संकल्प’ नहीं कार्रवाई: जलवायु संबंधित ग़लत सूचनाओं का प्रचार-प्रसार रोकना ज़रूरी!
We “Pledge” action, ‘संकल्प’ नहीं कार्रवाई: जलवायु संबंधित ग़लत सूचनाओं का प्रचार-प्रसार रोकना ज़रूरी!

ये लेख ‘समान’ लेकिन ‘विभिन्न’ उत्तरदायित्व निभाने का लक्ष्य: COP27 ने दिखाई दिशा! श्रृंखला का हिस्सा है.


संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने 27 अक्टूबर, 2022 (UN Environmental Protection Agency) को कहा, “तापमान बढ़ने की सीमा को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए यहां कोई विश्वसनीय मार्ग नहीं है”. इस साल के वैश्विक जलवायु सम्मेलन (Global Climate Conference), COP27 से कुछ हफ़्ते पहले, यह स्पष्ट संदेश था कि संकल्प लेना बंद करें और कार्रवाई शुरू करें.

हालात की गंभीरता को समझने के बावज़ूद मिलकर ज़िम्मेदारी से क़दम नहीं उठाना. इसकी सबसे बड़ी वजहों में एक है, जलवायु को लेकर ग़लत सूचनाएं. यानी ऐसे नैरेटिव और संदेश जो ना सिर्फ़ इस अहम मुद्दे से ध्यान भटकाते हैं, बल्कि एक प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप को बढ़ाते हैं

संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी ख़बरों की हेडलाइन्स पर एक के बाद नज़र डालेंगे, तो निश्चित तौर पर निराशा ही हाथ लगेगी. जलवायु संकट सभी को प्रभावित कर रहा है. शायद ही कोई इससे निपटने के लिए तैयार है. लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि एक वैश्विक आबादी के रूप में हम इतने बड़े संकट का सामने करने के लिए तैयारियों से चूक गए हैं?

जब भी यह सवाल उठता है, तो अक्सर दोहराया जाता है, “इसका जवाब बहुत जटिल है…”,यह सच्चाई है. लेकिन इस सबसे जो एक बात सामने आती है, वह है बिखरी हुई ज़िम्मेदारी, यानी हालात की गंभीरता को समझने के बावज़ूद मिलकर ज़िम्मेदारी से क़दम नहीं उठाना. इसकी सबसे बड़ी वजहों में एक है, जलवायु को लेकर ग़लत सूचनाएं. यानी ऐसे नैरेटिव और संदेश जो ना सिर्फ़ इस अहम मुद्दे से ध्यान भटकाते हैं, बल्कि एक प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप को बढ़ाते हैं और सवाल का जवाब देने और उस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए, विषय बदलकर उल्टा सवाल उठाना शुरू कर देते हैं.अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गंभीर चुनौती पर अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए, दूसरे पर उंगली उठाने की कोशिश. यह एक ऐसी स्थिति है, जिसके लिए अपेक्षाकृत अधिक किरदार दोषी हैं और बावज़ूद इसके वे इस परिस्थिति से निजात पाने की उम्मीद भी करते हैं.

अतीत में देखा जाए तो ऐसे हालात थे कि जलवायु संबंधी ग़लत सूचनाओं की भरमार थी और यहां तक कि जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे को ही ख़ारिज़ कर दिया गया था.समय के साथ-साथ इस विषय को टालने के लिए कई तरीक़े अपनाए जाने लगे, जैसे कि “जलवायु को लेकर कार्रवाई हमारी अर्थव्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है”, “एक गर्म जलवायु का मतलब है कि खेती/कृषि के लिए लंबी अवधि”, “नवीकरणीय ऊर्जा अपर्याप्त है या अविश्वसनीय है” आदि.यदि जलवायु से जुड़ी गलत सूचनाएं तरह-तरह से सामने नहीं आतीं, तो शायदआज हम नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन वाली दुनिया स्थापित करने की दिशा में ज़रूरी ट्रांसिजन को लेकर कहीं आगे होते.

सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह एक कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी है क्योंकि इसके लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करने और नवीकरणीय ऊर्जा एवं स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं की ओर झुकाव की ज़रूरत है.

हालांकि, कार्बन उत्सर्जन मेंआवश्यक कमी करने और इसके समाप्त करने के प्रयासों में ऊपर जो लिखा गया है, उसकी तुलना में अधिक देरी हुई है. इस मुद्दे पर निर्णायक भूमिका निभाने वालों द्वारा चुप्पी साधने और किसी दूसरे के क़दम उठाने की प्रतीक्षा करने वाली इस भावना को कम से कम चार स्तरों पर प्रसारित किया जाता है:

1.कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारियों के बजाए व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना

आश्चर्यजनक रूप से दोषी है जीवाश्म ईंधन इंडस्ट्री, जिसने व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी की ओर ध्यान आकर्षित करने में दशकों बिता दिए हैं. उसके यह प्रयास इतने अधिक सफल रहे हैं कि आपके पास के लोग आपको बताएंगे कि वे एक क्लाइमेट स्ट्राइक से खुद को अलग महसूस करते हैं, क्योंकि वे नवीनतम और सबसे टिकाऊ स्नीकर नहीं ख़रीद सकते हैं. यानी एक शक्तिशाली व्यक्तिगत अपराधबोध. जलवायु आपातकाल जैसी बड़ी और प्रणालीगत चुनौती के समक्ष यह व्यक्तिगत अपराधबोध पूरी तरह से ग़लत है. अब ऐसे में देखा जाए तो स्थायी पसंद अक्सर एक विशेष और महंगा विकल्प होती है. स्लो फैशन, स्थानीय रूप से विकसित, जैविक भोजन, हीट पंपया यहां तक ​​कि हवाई यात्रा के बजाए ट्रेन में सफर करना, इन सभी पसंद-नापंसद में पैसा एक बड़ी भूमिका निभाता है. हमारा पूरा सिस्टम और आपूर्ति श्रृंखलाएं जीवाश्म ईंधन के उपयोग को लेकर इतनी क़रीब से जुड़ी हुई हैं कि टिकाऊ उत्पाद जैसे कि प्राकृतिक कपड़ों से बने फैशन और मांग पर या बिना रासायनिक उर्वरकों के बारी-बारी से उगाए जाने वाले कृषि उत्पाद, मुश्किल से वैश्वीकृत और बड़ी सप्लाई चेन से बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जो जरूरत के मुताबिक़ नहीं बल्कि बहुतायत में चीज़ों को उपलब्ध कराती हैं. टिकाऊ विकल्प आसान विकल्प होना चाहिए. ऐसा करने के लिए मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत है. लेकिन सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह एक कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी है क्योंकि इसके लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करने और नवीकरणीय ऊर्जा एवं स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं की ओर झुकाव की ज़रूरत है.

2.तकनीकी समाधानों के मार्केटिंग संदेशों से ध्यान भटकाना

लगभग सभी तरह की जलवायु रिपोर्टिंग में प्रौद्योगिकी और डिजिटल उपकरणों का हवाला दिया जाता है. जैसे कि व्यापक तौर पर कही गई कुछ बातें भी कभी-कभी अस्पष्ट  लग सकती हैं. एक बहुत स्पष्ट भावना है कि हमें जलवायु संकट से निपटने के लिए तकनीकी समाधानों की ज़रूरत है. उदाहरण के लिए दक्षता और क्षमता बढ़ाने के लिए औद्योगिक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण, योजना और विश्लेषण के लिए डिजिटल ट्विन्स एवं बिजली की मांग और आपूर्ति का प्रबंधन करने के लिए स्मार्ट ग्रिड. तकनीकी समाधानों की यह सूची बहुत लंबी है. हालांकि, “जलवायु संकट का समाधान प्रौद्योगिकी है” पर ध्यान केंद्रित करने की वजह ने इस संकट को कम करने के गैर-तकनीकी प्रयासों के निरंतर विस्तार को धीमा कर दिया है. उदाहरण के तौर पर शहरी इलाकों में साइकिल चलाने वालों और पैदल यात्रियों के लिए बुनियादी ढांचे का विस्तार, आहारसंबंधी शिक्षा या सरकारी सब्सिडी के प्रभावों की समीक्षा करना. दूसरी ओर, जलवायु संकट के समाधान के लिए टेक्नोलॉजी ज़रूरी है, वाले विचार ने बड़ी टेक कंपनियों के हाथों में और अधिक शक्ति प्रदान की है. इन टेक कंपनियों की पहुंच और प्रभाव इन्हें चर्चा -परिचर्चा और धारणा को निर्धारित करने की अनुमति देता है. कई तकनीकी दिग्गज आवश्यक इंजीनियरिंग समाधानों की डिजिटल प्रक्रियाओं को सक्षम करने वाले कंपोनेंट और सॉफ्टवेयर का निर्माण करते हैं. चाहे वह इंजीनियरिंग समाधान शहरी नियोजन का मॉडल तैयार करने के लिए हो, क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर यानी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कंपोनेंट प्रदान करने या फिर पूरी प्रक्रिया के अनुकूलन के लिए डेटा एनालिटिक्स विकसित करने के लिए हो.इस सबसे यह ज़ाहिर होता है कि इन टेक्नोलॉजी दिग्गजों की मार्केंटिंग और कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी के संकल्पों का मकसद यह आश्वस्त करना है कि ये कंपनियां ना केवल इस अहम ज़िम्मेदारी को निभाएंगी, बल्कि एक जलवायु तटस्थ, कार्बन निगेटिव, नेट ज़ीरो रास्ता अपनाकर डिजिटल बदलाव को बढ़ावा देंगी. लेकिन अफसोस की बात यह है कि यह सब भ्रामक है. आज तक, शीर्ष टेक कंपनियों में से किसी ने भी अपने पूर्ण कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया है. ज़ाहिर है कि ज़िम्मेदारी निभाने के लिए और नेट-पॉजिटिव बदलाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए यह एक आवश्यक शर्त है.

हमने अक्सर देखा है कि स्थापित मीडिया जलवायु संकट से निपटने के लिए ज़रूरी कार्रवाई नहीं करने, सरकार की जलवायु नीतियों को लागू करने में कमी, और विकासशील देशों को समर्थन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत जलवायु कोष अभी तक अमल में नहीं लाने जैसी तमाम सच्चाई को सामने लाने के बजाए, जलवायु सक्रियता के ख़िलाफ़ नाराज़गी जताता है 

3.समाधान खोजने के बजाए नाराज़गी को भड़काना

आदर्श परिस्थियों में देखा जाए तो मीडिया सुधारात्मक होने के साथ ही कहीं भी होने वाले गड़बड़झाले और आपराधों को उजागर करने वाले एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करता है. इसके बावज़ूद, मीडिया के कुछ हिस्से अभी भी बिगड़ते मौसम की घटनाओं, ऊर्जा या भोजन संकट के बारे जो ख़बरें प्रकाशित करते हैं, उनमें आधी-अधूरी जानकारी होती है और जलवायु संकट का उल्लेख नहीं होता है. इससे भी बदतर स्थित यह है कि हमने अक्सर देखा है कि स्थापित मीडिया जलवायु संकट से निपटने के लिए ज़रूरी कार्रवाई नहीं करने, सरकार की जलवायु नीतियों को लागू करने में कमी, और विकासशील देशों को समर्थन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत जलवायु कोष अभी तक अमल में नहीं लाने जैसी तमाम सच्चाई को सामने लाने के बजाए, जलवायु सक्रियता के ख़िलाफ़ नाराज़गी जताता है और जलवायु संकट का मुद्दा उठाने वालों के विरुद्ध हमलावर रवैया अपनाता है. हाल ही में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शनों और इस मुद्दे का समर्थन करने वाले अभियानों के ज़रिए अधिक सुर्खियां बटोर रहे हैं, जिसमें ट्रैफिक को रोकने के लिए सड़कों पर लेट जाना और महंगी पेंटिंगों (कांच द्वारा संरक्षित) पर टमाटर का सूप फेंकना शामिल है. इन कार्यकर्ताओं के कार्य एक हिसाब से कट्टरपंथी हैं और जलवायु संकट के मुद्दे को लेकर छाई चुप्पी को तोड़ने के लिए हैं, लेकिन यह सरकारों और सोसाइटियों के बीच फंस गए हैं. भले ही उनके विरोध प्रदर्शनों के बारे में कोई कैसा भी महसूस करे, लेकिन यह सच्चाई है कि वे एक वैश्विक संकट की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, जो देरी के कारण और एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराने के कारण बिगड़ गया है. मीडिया की ख़बरों में प्रदर्शनकारी “जलवायु कार्यकर्ताओं” को सज़ा की मांग की जाती है, इनमें सड़कों पर ट्रैफिक की वजह से कारों से होने वाली दुर्घटनाओं को दोष देने के बजाए, प्रदर्शनकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, यहां तक कि इनके लिए मौत की सज़ा की भी मांग की जाती है. यहां इस बात पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है कि मीडिया को भ्रामक और हानिकारक नैरेटिव नहीं फैलाना चाहिए. ज़ाहिर है कि जनता को जानकारी देने की ताक़त रखने वाले मीडिया की ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है.

 

4.अल्पकालिक राजनीतिक प्राथमिकताओं के लिए ज़रूरी निर्णयों को दरकिनार करना

अफसोस की बात यह है कि सरकारें चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इस अहम मुद्दे पर गंभीरता से कार्य नहीं करती हैं और ऐसे में एक-दूसरे की ओर ताकने का सिलसिला चलता रहता है कि पहल किसे करनी चाहिए. जबकि कागज पर, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और 1.5 डिग्री सेल्सियस के क़रीब रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. लेकिन ठोस कार्रवाई की कमी और राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन नहीं होने से इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान दर अनुमानित 2.8 डिग्री सेल्सियस है, जो बहुत ही विनाशकारी है. ऐसे में देखा जाए तो जलवायु संकट के प्रभावों को कम करने के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं सटीक नहीं हैं. फिर भी, कोई उम्मीद कर सकता है कि वर्तमान हालातों के मद्देनज़र तत्कालिक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दबाव एक अल्पकालिक प्राथमिकता में बदलाव को मज़बूर करेंगे और इससे होने वाले नुकसान की सही पहचान करने के लिए मिलजुलकर समाधान खोजने हेतु बातचीत का रास्ता खोलने का काम करेंगे. इस विषय पर आवश्यक निवेश और वित्तीय योगदान काफ़ी समय से लंबित हैं. औरकम से कम यूरोप मेंयूक्रेन पर आक्रमण और कोविड महामारी ने इस बात को उजागर किया है कि पैसा मिल सकता है और मिलेगा, बस हम सभी को राजनीतिक इच्छाके साथ बढ़ने की ज़रूरत है.

संक्षेप में कहा जाए, तो जलवायु के बारे में गलत और भ्रामक सूचनाएं व्यापक स्तर पर प्रचारित और प्रसारित हो रही हैं. विज्ञान हमें बताता है, हमें अपने समाज को बदलने की ज़रूरत है. यह परिवर्तन निश्चित तौर पर किसी को भी और किसी भी चीज़ को चुनौती देता है, जो आज के सिस्टम के भीतर सहज हैं और लाभ में हैं. ज़ाहिर है कि सबसे पहले परिवर्तन हमारे दिमाग में ही होगा. हम जो कहानियां सुनाते हैं और जिन नैरेटिव को हम आगे फैलाते हैं, उनमें बदलाव होगा. यही कारण है कि जब भी हम जलवायु से संबंधित गलत सूचनाओं और जानकारियों को देखें तो, उसके बारे में सच्चाई का पता लगाएं, उसकी आलोचना करें और जो लोग भी ऐसा कर रहे हैं, उनसे सवाल-जवाब करें.

जलवायु के बारे में गलत और भ्रामक सूचनाएं व्यापक स्तर पर प्रचारित और प्रसारित हो रही हैं. विज्ञान हमें बताता है, हमें अपने समाज को बदलने की ज़रूरत है. यह परिवर्तन निश्चित तौर पर किसी को भी और किसी भी चीज़ को चुनौती देता है, जो आज के सिस्टम के भीतर सहज हैं और लाभ में हैं.

अगर ऐसा सब करने में आपको आश्चर्य लगता है, तो फिर हम चीज़ों को किस प्रकार बदलेंगे?

इस सबके बाद भी यहां कई ऐसी चीज़ें हैं, जो उम्मीद जगाती हैं. देरी, ध्यान भटकाने और ग़लत जानकारियों को प्रसारित करने की रणनीति के बावज़ूद, जलवायु संकट के बारे में जागरूकता बढ़ रही है इसके साथ ही हमारे कई अन्य संकटों, जैसे कि ऊर्जा, भोजन, हिंसा, युद्ध, मुद्रास्फीति, मौसमी घटनाओं पर इसका प्रभाव भी बढ़ रहा है. इस बढ़ती जागरूकता के साथ, लोग खुद को, अपने परिवारों, दोस्तों एवं समुदायों को शिक्षित कर रहे हैं और मिलजुलकर जलवायु संकट की कठोर सच्चाई को समझ रहे हैं, इससे निपटने का उपाय तलाश रहे हैं. ज़ाहिर है कि परिचर्चा हमेशा सुचारू नहीं हो सकती है, फिर भी जलवायु संबंधी गलत सूचनाओं और ख़बरों से रसोई की मेज पर, सड़कों पर, वाटरकूलर की बातचीत के दौरान और निर्णय लेने वाले कमरों में निपटा जाता है. यह बातें छोटी ज़रूर लगती हैं, लेकिन यह जीवन शैली का फिर से मूल्यांकन करने, विकल्पों की मांग करने, संकल्पों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने की इच्छाशक्ति को बढ़ाती हैं. शोध के मुताबिक राजनीतिक आंदोलनों के ज़रिए व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए महज 3.5 प्रतिशत सार्वजनिक समर्थन की आवश्यकता होती है. हालांकि वैश्विक स्तर पर इसका आकलन करना कठिन हो सकता है. यूरोपीय संघ, अमेरिका और अफ्रीका में लोगों के बीच किए गए सभी सर्वेक्षण निर्णायक जलवायु कार्रवाई के लिए बढ़ते समर्थन का संकेत देते हैं. जलवायु आंदोलन की चुनौती को लेकर जो वैश्विक जागरूकता है, उसे स्थानीय और राष्ट्रीय प्रणालियों में लागू करना है. इससे जुड़ी सबसे हानिकारक नीतियों और प्रथाओं में आमूल-चूल परिवर्तन करना है. कुछ लोगों के लिए जीवाश्म ईंधन सब्सिडी समाप्त करने का मुद्दा अहम है, जबकि दूसरों के लिए कृषि नीतियां और जल संरक्षण का मुद्दा महत्त्वपूर्ण है. स्थानीय नेता पहले से जलवायु संकट के प्रभाव से जुड़े हर पहलू पर बहुत अच्छे से काम कर रहे हैं.देखने में यह एक गर्म पत्थर को पानी की कुछ बूंदों से ठंडा करने की कोशिश लग सकती है, यानी एक असंभव सा काम लग सकता है, लेकिन इससे स्पष्ट होता है कि इस मुद्दे के समाधान के लिए अब दुनिया भर में लोग जागरूक हो रहे हैं और जलवायु संकट से निपटने के उनके प्रयास गति पकड़ रहे हैं.

और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जुलाई 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें स्वच्छ, स्वस्थ और सतत पर्यावरण तक सभी की पहुंच को एक सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषित किया गया था.

 

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