Expert Speak Raisina Debates
Published on May 24, 2023 Updated 28 Days ago

लूला की विदेश नीति का नज़रिया "हेजिंग" से बढ़कर है और इसका मक़सद ये सुनिश्चित करना है कि ब्राज़ील दुनिया में अपने रुतबे को बढ़ाने वाली सीढ़ी पर चढ़े.

बचाव से कहीं आगे निशाना: लूला का ब्राज़ील खुलकर दांव खेल रहा

ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा की हाल में चीन की कूटनीतिक यात्रा और उसके बाद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाक़ात पर पश्चिमी ताक़तों का तुरंत जवाब आया. लूला की तरफ़ से की गई दो बातें ख़बर बनीं: अमेरिकी डॉलर के विकल्प में किसी करेंसी को लूला का समर्थन; और उनका यह बयान कि अमेरिका और नेटो यूक्रेन में युद्ध को बढ़ावा देते हैं. अमेरिका ने जहां रूस और चीन के प्रोपेगेंडा को रटनेके लिए ब्राज़ील की तीखी आलोचना की वहीं ब्राज़ील के राजनयिक यूरोप के साझेदारों के साथ संभावित झड़प को रोकने में नाकाम रहे क्योंकि मर्कोसुर (दक्षिण अमेरिकी आर्थिक संगठन) और यूरोपियन यूनियन (EU) के बीच व्यापार समझौते तक पहुंचना एक स्थायी राष्ट्रीय कूटनीतिक लक्ष्य है. ब्राज़ील के मीडिया संगठनों ने पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया को आगे बढ़ाते हुए ये दलील दी कि एक गुटनिरपेक्ष रुख़ अपनाने का दावा करने के बावजूद कथित रूप से रूस और चीन की तरफ़ झुकाव दिखाकर लूला ने बड़ी ग़लती की. 

“ब्राज़ील इज़ बैक” के लूला के लक्ष्य की व्याख्या तुरंत बोलसोनारो के शासन के दौरान गंवाई गई प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने को लेकर ब्राज़ील के झुकाव के रूप में की गई. इस सोच से हटकर लूला के द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ब्राज़ील को फिर से लाने के विचार का मतलब है इस देश को एक बार फिर से नियम बनाने वाली स्थिति में ले आना.

ब्राज़ील की नीति

समीक्षक अक्सर लूला के प्रशासन की कूटनीति को समझाने के लिए हेजिंगया बैलेंसिंगकी धारणा का इस्तेमाल करते हैं. इन शब्दों का मतलब एक तरह की व्यावहारिकता का उदाहरण देना है जिस पर ब्राज़ील सावधानी से काम करता है. इस तरह ब्राज़ील ये संकेत देकर दोनों पक्षों से रियायत हासिल कर सकता है कि वो उस पक्ष का समर्थन करेगा जो उसे ज़्यादा फ़ायदे की पेशकश करेगा. हम इस तरह के नज़रिये को पूरी तरह नहीं अपनाते हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि ये अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए लूला की रणनीति के मतलब को पूरी तरह नहीं बताता है. ये दावा करके कि भू-राजनीतिक विवादों का फ़ायदा उठाने के लिए ब्राज़ील गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर भरोसा करता है, समीक्षक ये मान लेते हैं कि दक्षिण अमेरिकी देश ब्राज़ील एक बीच की ताक़त है जो लड़ाई को रोकने और बाक़ी सुविधा हासिल करने के लिए महाशक्तियों के बीच संतुलन का काम करता है. इसके बदले हम लूला की रणनीति को वैश्विक अखाड़े में ब्राज़ील को एक नियम बनाने वाले के रूप में बदलने के एक अहम अभियान के तौर पर देखते हैं. अगर ज़्यादा विस्तार से कहें तो ब्राज़ील इज़ बैकके लूला के लक्ष्य की व्याख्या तुरंत बोलसोनारो के शासन के दौरान गंवाई गई प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने को लेकर ब्राज़ील के झुकाव के रूप में की गई. इस सोच से हटकर लूला के द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ब्राज़ील को फिर से लाने के विचार का मतलब है इस देश को एक बार फिर से नियम बनाने वाली स्थिति में ले आना. अतीत में राष्ट्रपति के तौर पर अपने दो कार्यकालों (2003-2011) के दौरान लूला दुनिया की व्यवस्था को निर्धारित करने वाली प्रक्रिया का विरोध करने के मक़सद से एक सक्रिय विदेश नीति पर तालमेल बिठाते थे. ये बातें थीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, आर्थिक समझौतों के लिए G7 के बदले G20 के मंच की वक़ालत और अन्य ब्रिक्स देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करना. 

इस तरह ब्राज़ील की मौजूदा विदेश नीति पश्चिमी देशों के नेतृत्व में उदारवादी व्यवस्था में ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के ताक़त के तौर पर उभरने की कठिन महत्वाकांक्षा की फिर से पुष्टि करती है यानी नियम बनाने के बदले नियम का पालन करने जैसा बर्ताव करने वाली एक परंपरागत बीच की ताक़त की सामाजिक स्थिति को ठुकराना. जब अमेरिका और नेटो दलील देते हैं कि वो इस वजह से नाराज़ हैं कि ब्राज़ील ने बाइडेन के समिट फॉर डेमोक्रेसी (लोकतंत्र के लिए शिखर सम्मेलन) के घोषणा पत्र, जिसमें रूस की निंदा की गई और 5G सर्विस मुहैया कराने के लिए चीन की हाई-टेक कंपनियों के साथ मोलभाव किया गया, पर दस्तख़त करने से इनकार कर दिया तो पश्चिमी देश अपने मूल्यों और मानदंड संबंधी (नॉर्मेटिव) समझ के इर्द-गिर्द आधिपत्य (हेजेमोनिक) को जारी रखने की ऐतिहासिक प्रक्रिया को स्पष्ट करते हैं. एक विश्व व्यवस्था को सिर्फ़ ताक़त से लागू नहीं किया जाता है; आधिपत्य के प्रतिनिधियों को अपनी बातों को तटस्थ बनाने के लिए दूसरे प्रतिनिधियों को ये मनाना भी पड़ सकता है कि उनके हित और विचार सबकी भलाई के पक्ष में काम करते हैं. 

इस लेख के लेखक ये दावा नहीं करते हैं कि लूला को पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ दुश्मनी की नीति को अपनाना है. फिर भी, लूला ने ब्राज़ील की उस महत्वाकांक्षा को फिर से ज़िंदा किया है कि वो ऐसा देश बने जो सैन्य तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल किए बिना अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करता है.

ये कोई संयोग की बात नहीं है कि पश्चिमी ताक़तों ने व्यवस्थित ढंग से गुटनिरपेक्षता को दूसरे पक्ष की तरफ़ जाने के आसान रास्ते के रूप में निंदा की. उदाहरण के लिए, अमेरिका ने अक्सर भारत की गुटनिरपेक्षता पर ये कहकर सवाल उठाए कि उसका अनकहा झुकाव रूस की तरफ़ है. शीत युद्ध के दौरान मुख्य रूप से ऐसे सवाल उठाए जाते थे. पश्चिमी देशों के पूर्वाग्रह ने इस बात को समझने की इजाज़त नहीं दी कि भारत के नीति निर्माता ऐतिहासिक रूप से अपने देश के बारे में महाशक्ति के प्रतीक वाली समझ रखते हैं जिसे किसी दूसरे देश के पीछे-पीछे चलने की ज़रूरत नहीं है. इसी तरह पश्चिमी ताक़तों ने आम तौर पर दुनिया से जुड़े मुद्दों का समाधान मुहैया कराने की ग्लोबल साउथ की कोशिशों को बचकानाबताकर अवैध करार दिया- जैसे कि 2010 में तुर्किए और ईरान के साथ त्रिपक्षीय परमाणु समझौते पर बातचीत की ब्राज़ील की पहल को. इस तरह की पहल एक बार फिर की गई जब लूला ने एकतरफ़ा आर्थिक प्रतिबंधों और युद्ध जैसे साधनों को लागू करने से इनकार करते हुए रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध विराम के लिए बातचीत करने के मक़सद से क्लब ऑफ पीसका प्रस्ताव दिया

जब ब्राज़ील के मीडिया संगठनों ने ये बताकर लूला प्रशासन पर पश्चिम देशों के रुख़ का पालन करने के लिए दबाव डाला कि उनका रवैया सभ्यदुनिया को साकार करता है, तो ये इस तरह है मानो उन्होंने उस सामाजिक गतिशीलता (डायनेमिक) की याद दिलाई है जो ब्राज़ील के द्वारा एक महाशक्ति की भूमिका निभाने के विचार की संभावना को कम करती है. इस लेख के लेखक ये दावा नहीं करते हैं कि लूला को पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ दुश्मनी की नीति को अपनाना है. फिर भी, लूला ने ब्राज़ील की उस महत्वाकांक्षा को फिर से ज़िंदा किया है कि वो ऐसा देश बने जो सैन्य तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल किए बिना अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करता है. इस अर्थ में लूला के द्वारा वित्तीय संस्थानों में संरचनात्मक सुधार लाने की पहल या रूस-यूक्रेन संघर्ष के समाधान के लिए तीसरे तरीक़े का प्रस्ताव वास्तव में समर्थन के बदले में आर्थिक लाभ मुहैया कराने के लिए पश्चिमी देशों को ब्लैकमेल करने के मक़सद से एक हेज पॉलिसीनहीं है. ये एक ऐसे देश के द्वारा भू-राजनीतिक क़दम है जो ईमानदारी से दुनिया में रुतबे की सीढ़ी पर चढ़ने की हसरत रखता है. 


डॉवीसन बेलेम लोप्स फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ मिनास गेराइस में इंटरनेशनल एंड कम्परेटिव पॉलिटिक्स (अंतरराष्ट्रीय एवं तुलनात्मक राजनीति) के प्रोफेसर और ब्राज़ील में नेशनल काउंसिल फॉर टेक्नोलॉजिकल एंड साइंटिफिक डेवलपमेंट में रिसर्च फेलो हैं.

जोआ पाउलो निकोलिनी गैब्रिएल बेल्जियम में कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लूवेन में राजनीति विज्ञान की PhD कैंडिडेट हैं.

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