Author : Shoba Suri

Published on Oct 26, 2023 Updated 0 Hours ago

पानी के अंतर्भूत मूल्य और हमारे अस्तित्व में इसकी केंद्रीय भूमिका को स्वीकार करके ही हम मौजूदा और भविष्य की पीढ़ियों के लिए अधिक लचीली और खाने के लिहाज़ से सुरक्षित दुनिया बनाने की उम्मीद कर सकते हैं.

जल ही जीवन है, जल ही खाना है: कोई पीछे न रह जाए

जीवन देने वाला अमृत पानी हमारी धरती पर हर तरह के जीव जंतुओं के अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पानी न केवल एक बुनियादी ज़रूरत है बल्कि ये एक मूलभूत मानव अधिकार भी है. विश्व खाद्य दिवस 2023 की थीम, ‘जल ही जीवन है, जल ही खाना है: कोई पीछे न छूट जाए’ हमारे अस्तित्व के स्रोत के तौर पर पानी की महत्ता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका को बख़ूबी बयान करता है.

जल और जीवन का आपसी संबंध हमारी मनोवैज्ञानिक समझ से भी काफ़ी दूर तक जाता है. पानी, धरती के इकोसिस्टम को मदद करता है. मौसम के उतार-चढ़ाव पर असर डालता है और धरती की भूगर्भीय प्रक्रियाओं को भी संचालित करता है.

जल का महत्व

पानी, धरती पर जीवन का एक मूलभूत तत्व है. मानव शरीर के वज़न का आधे से ज़्यादा भाग पानी होता है और धरती के कुल क्षेत्रफल का 71 प्रतिशत हिस्से पर पानी का राज है. इसमें से केवल 2.5 प्रतिशत पानी ही मीठा ताज़ा पानी है, जिसे पीने, खेती करने और उद्योगों में इस्तेमाल किया जाता है. जल और जीवन का आपसी संबंध हमारी मनोवैज्ञानिक समझ से भी काफ़ी दूर तक जाता है. पानी, धरती के इकोसिस्टम को मदद करता है. मौसम के उतार-चढ़ाव पर असर डालता है और धरती की भूगर्भीय प्रक्रियाओं को भी संचालित करता है. ‘साफ़ पानी और सैनिटेशन’ से जुड़ा टिकाऊ विकास का लक्ष्य (SDG) 6 ये बताता है कि 2.4 अरब लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां पानी पर आबादी का दबाव अधिक है; 2.2 अरब लोग सुरक्षित रूप से प्रबंधित पानी से महरूम हैं; 3.5 अरब लोगों के पास सुरक्षित साफ़-सफ़ाई यानी सैनिटेशन की व्यवस्था नहीं है; और. 2.2 अरब लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधा तक नहीं है. आबादी में तेज़ी से बढ़ोतरी , शहरों के विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, धरती के जल संसाधनों पर भारी दबाव डाल रहे हैं. दुरुपयोग, भूगर्भ जल के दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण, पिछले कुछ दशकों के दौरान विश्व में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता क़रीब 20 प्रतिशत तक कम हो गई है. दुनिया में लगभग 60 करोड़ लोग अपनी रोज़ी-रोज़गार के लिए एक हद तक पानी पर निर्भर हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, 2050 तक लगभग 5 अरब लोगों को साल में कम से एक महीने तक पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है. जलवायु परिवर्तन से ये समस्या और बढ़ जाती है, जिससे कुछ इलाक़ों में बार बार भयंकर सूखा पड़ता है

वैश्विक खाद्य सुरक्षा इस वक़्त बहुत बड़ी चुनौती है. जैसे जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से खेती की उपज पर असर पड़ रहा है, उस लिहाज़ से खाने के उत्पादन में पानी की अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता है. ताज़े पानी के संसाधनों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल खेती करने में होता है. ताज़े पानी के दोहन का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा खेती के काम में प्रयोग किया जाता है. खाद्य व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त मात्रा, गुणवत्ता और स्थिरता का प्रावधान करना होगा. पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध न होने पर खाद्य व्यवस्था के हर हिस्से पर असर पड़ता है. खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा को लेकर एकजुट नज़रिया न होने से स्थायी विकास के लक्ष्य 2 (भुखमरी खत्म करना) और 6 (पानी और साफ सफाई) हासिल करने में बाधा आती है. पानी, खाद्य सुरक्षा और पोषण की व्यवस्था के लिए पानी और खाद्य व्यवस्थाओं के बीच संबंध की प्रगति की निगरानी करना ज़रूरी है. हालांकि, खेती में पानी का कुशलता और टिकाऊ तरीक़े से इस्तेमाल करना एक चुनौती बना हुआ है. कुप्रबंधन, ज़रूरत से ज़्यादा दोहन और सिंचाई के पानी बर्बाद करने वाले तरीक़ों की वजह से बहुत से इलाक़ों में पानी की क़िल्लत पैदा हो गई है, जिससे खाद्य सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई है. इससे ख़ास तौर से खेती में पानी के ज़िम्मेदारी भरे प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ गई है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए पानी के संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके.

जल की कमी, एक समस्या

पानी की क़िल्लत पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, 2050 तक लगभग 5 अरब लोगों को साल में कम से एक महीने तक पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है. जलवायु परिवर्तन से ये समस्या और बढ़ जाती है, जिससे कुछ इलाक़ों में बार बार भयंकर सूखा पड़ता है, जबकि कुछ दूसरे इलाक़ों में भारी बारिश और बाढ़ आ जाती है. पानी की क़िल्लत का असर सभी जगहों पर एक जैसा नहीं है. और अक्सर कमज़ोर तबक़ों पर इसका सबसे बुरा असर देखने को मिलता है. साफ़ पानी तक पहुंच की कमी से न केवल लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि इससे आर्थिक विकास में भी बाधा आती है और लोग ग़रीबी के दुष्चक्र में फंसे रहते हैं. 2010 में संयुक्त राष्ट्र ने ‘पानी के अधिकार’ को एक ज़रूरी मानव अधिकार घोषित किया था, फिर चाहे कोई किसी भी इलाक़े में रहता हो और उसकी सामाजिक आर्थिक हैसियत कैसी भी हो. स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) के तहत 2030 तक सबको साफ़ पानी मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने के लिए सघन प्रयासों, निवेश और नए आविष्कारों की ज़रूरत होगी.

समाधान

पानी के संकट से उबरने के लिए हमें उन लोगों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देनी होगी, जो सबसे कमज़ोर और हाशिए पर पड़े हैं, ताकि सबको समान रूप से पानी उपलब्ध हो सके. छोटी काश्त वाले किसान, हाशिए पर पड़े समुदाय और कमज़ोर समूहों को अपनी खेती की ज़रूरत के लिए सुरक्षित रूप से पानी के उपयोग का बराबर अवसर मिलना चाहिए. प्रिसिज़न एग्रीकल्चर और ड्रिप इरीगेशन जैसी नई तकनीकों की मदद से किसान पानी की बर्बादी कम करके, अपनी उपज को बढ़ा सकते हैं. इससे न केवल उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है, बल्कि पानी के सीमित संसाधन भी सुरक्षित होते हैं. बारिश के बदलते पैटर्न और बढ़ते तापमान की वजह से जलवायु परिवर्तन के आगे सबसे कमज़ोर स्थिति खेती की ही है. इन बदलावों के हिसाब से ढलने के लिए पानी के टिकाऊ प्रबंधन की रणनीतियां बनाई जानी चाहिए, जिससे किसानों को पर्यावरण की चुनौतियों के बीच भी अपनी रोज़ी-रोटी बचाए रखने में मदद मिल सके. रिमोट सेंसिंग और डेटा एनालिटिक्स जैसे तकनीकी आविष्कार, जल संसाधनों  के असरदार प्रबंधन और निगरानी में अहम भूमिका अदा करते हैं.

पानी के अंतर्भूत मूल्य और हमारे अस्तित्व में इसकी केंद्रीय भूमिका को मंज़ूर करके ही हम वर्तमान और आगामी पीढ़ियों के लिए अधिक लचीली और खाने पीने के लिहाज़ से सुरक्षित दुनिया बना सकते हैं.

ये बराबरी हासिल करने के लिए ऐसी नीतियां, बर्ताव और प्रशासनिक ढांचा लागू करने की ज़रूरत है, जो समावेशीकरण को प्राथमिकता दें और पानी तक पहुंच में ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करें. हमारी धरती के टिकाऊ भविष्य और किसी को पीछे न छोड़ने के लिए हमें स्वच्छ और सुरक्षित पानी तक सबकी समान पहुंच को तरज़ीह देनी चाहिए. खेती के टिकाऊ तरीक़ों को बढ़ावा देना चाहिए, और पानी व खाद्य सुरक्षा की आपस में जुड़ी चुनौतियों का सामना करना चाहिए. पानी के अंतर्भूत मूल्य और हमारे अस्तित्व में इसकी केंद्रीय भूमिका को मंज़ूर करके ही हम वर्तमान और आगामी पीढ़ियों के लिए अधिक लचीली और खाने पीने के लिहाज़ से सुरक्षित दुनिया बना सकते हैं.

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