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Published on Apr 01, 2024 Updated 0 Hours ago

वैसे तो उर्सुला वॉन डेर लेयेन, पिछले कई वर्षों के दौरान अपनी दिलेरी साबित कर चुकी हैं. लेकिन, अब आने वाला वक़्त ही बताएगा कि दोबारा चुनाव जीतने पर वो वो ग्रीन डील और डिजिटल परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में अपनी विरासत को बनाए रख पाएंगी या नहीं.

मुश्किल चुनावी स्थिति पर तालमेल बिठाने की कोशिश करतीं वॉन डेर लेयेन

दुनिया भर में तमाम चुनावों वाले इस साल में, 6 से 9 जून के दौरान यूरोपीय संसद के चुनाव भी होंगे. विदेशी और सुरक्षा मामलों के उच्च प्रतिनिधि और यूरोपीय संसद एवं परिषद के अध्यक्षों के साथ साथ यूरोपीय आयोग की अध्यक्षता का पद भी इन तमाम पदों में से एक है, जिसे सदस्य देशों, क्षेत्रों और समूहों के बीच आम सहमति वाले संतुलन के ज़रिए भरा जाना है.

इस पद के लिए रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (EPP) की कांग्रेस के दौरान, यूरोपीय आयोग की मौजूदा अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने यूरोपीय संसद के सबसे बड़े समूह EPP के उम्मीदवार के तौर पर अपने नामांकन पर मुहर लगवा ली थी. इसमें यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में पांच साल का एक और कार्यकाल है. यूरोपीय आयोग, यूरोपीय संघ (EU) का सबसे अहम संस्थान और कार्यकारी शाखा है.

इस बार जून 2024 तक वॉन डेर लेयेन को आयोग की अध्यक्ष और EPP के स्पिटज़ेनकांडिडट के तौर पर संतुलन बिठाते रहना होगा, जिससे उनका कार्यकाल इस साल अक्टूबर से आगे के लिए बढ़ सके.

2019 में जब जर्मनी की पूर्व रक्षा मंत्री उर्सुला को आयोग की पहली महिला अध्यक्ष के तौर पर नामांकित किया गया था, तो उनका नामांकन विवादों में घिर गया था. क्योंकि उस वक़्त यूरोपियन पीपुल्स पार्टी ने मैनफ्रेड वेबर को स्पिटज़ेनकांडिडट नामित किया था. ये वो प्रक्रिया है, जिसके तहत सियासी समूह प्रेसिडेंट के लिए अपना उम्मीदवार चुनते हैं. मैनफ्रेड वेबर इस वक़्त EPP के अध्यक्ष हैं. 747 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद में उर्सुला को 383 वोटों के मामूली बहुमत से आयोग का अध्यक्ष चुना गया था. यानी उन्हें सामान्य बहुमत के लिए ज़रूरी 374 से केवल 9 वोट ज़्यादा मिले थे. इस बार जून 2024 तक वॉन डेर लेयेन को आयोग की अध्यक्ष और EPP के स्पिटज़ेनकांडिडट के तौर पर संतुलन बिठाते रहना होगा, जिससे उनका कार्यकाल इस साल अक्टूबर से आगे के लिए बढ़ सके.

उर्सुला की अध्यक्षता में अब तक यूरोपीय संघ ने महाद्वीप को कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला किया है; जलवायु परिवर्तन, डिजिटलीकरण और अप्रवास से निपटने के लिए क़ानून बनाए हैं; चीन की चुनौती से निपटने के तरीक़ों पर सहमति बनाई है; और रूस को जवाब देने की अगुवाई की है. अपने प्रभावी नेतृत्व की वजह से फ़ोर्ब्स पत्रिका की 2023 के सबसे ताक़तवर महिलाओं की फ़ेहरिस्त में उर्सुला वॉन डेर लेयेन को नंबर वन की रैंक हासिल हुई थी.

वो नीतियां जिनका श्रेय उर्सुला वॉन डेर लेयेन को जाता है

EU की मुखिया के तौर पर उर्सुला नेभू-राजनीतिक आयोगबनाने का प्रण लिया था. आज जब यूक्रेन का युद्ध तीसरे साल में दाख़िल हो गया है, तो यूक्रेन को अपने कट्टर समर्थन के साथ उर्सुला, मुश्किल भू-राजनीतिक माहौल में यूरोपीय संघ को नेतृत्व प्रदान कर रही हैं. उनकी अगुवाई में यूरोपीय आयोग ने रूस के आक्रमण का जवाब, प्रतिबंधों की 13 किस्तों के ज़रिए दिया है, और इसकी वजह से ऊर्जा की आपूर्ति में आई बाधाओं से पार पाने की कोशिश की है.

यूक्रेन को EU का सदस्य बनने के उम्मीदवार का दर्जा देकर यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय संघ के विस्तार को दोबारा एजेंडे का हिस्सा बनाया है. जैसा कि उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने दोहराया था कि, ‘आज की दुनिया में जब आकार और वज़न मायने रखते हैं, तो ये साफ़ है कि संघ को पूरा करना यूरोप की सामरिक और सुरक्षा हितों के अनुरूप है.’ ख़र्च बढ़ाकर और साझा ख़रीदारी के ज़रिए यूरोप की रक्षा क्षमताओं और औद्योगिक क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ, उर्सुला की योजना EU के लिए नया रक्षा आयुक्त नियुक्त करने की भी है

यूरोपीय संसद की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, उर्सुला ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में जो 610 पहलों करने का ऐलान किया था, उनमें से कम से कम 420 (69 प्रतिशत) को पेश किया जा चुका है. कोविड-19 महामारी के दौरान उन्होंने यूरोपीय संघ को जिस तरह का नेतृत्व दिया, उससे उन्हें संकट से निपटने में सक्षम एक असरदार नेत्री वाली प्रतिष्ठा हासिल हुई. उनकी कोशिशों में EU द्वारा एक साथ टीकाकरण की शुरुआत करना और 750 अरब यूरो का आर्थिक बहाली का पैकेज भी शामिल है. इसके अलावा, रूस के प्रति EU की नीति ने संघ की भूमिका को मज़बूत किया और यूरोप के एकीकरण की प्रक्रिया में भी गहराई ला दी है. उनके कार्यकाल के दौरान ब्रेग्ज़िट की प्रक्रिया भी पूरी की गई. 

रूस के प्रति EU की नीति ने संघ की भूमिका को मज़बूत किया और यूरोप के एकीकरण की प्रक्रिया में भी गहराई ला दी है. उनके कार्यकाल के दौरान ब्रेग्ज़िट की प्रक्रिया भी पूरी की गई. 

2019 में चीन को लेकर यूरोपीय संघ का सामरिक नज़रिया सामने रखा गया, और बाद मेंडी-रिस्किंगयानी जोखिम कम करने पर ज़ोर देते हुए वॉन डेर लेयेन के नेतृत्व ने इस मामले में स्पष्ट रुख़ अपनाया और सदस्य देशों द्वारा आक्रामक होते चीन के साथ अपने रिश्तों के पुनर्मूल्यांकन करने और यूरोपीय महाद्वीप की आर्थिक सुरक्षा का रास्ता खोला. इसके अलावा, EU अलग अलग वैश्विक साझेदारियों में निवेश कर रहा है, जिनमें भारत और लैटिन अमेरिकी देश भी शामिल हैं, ताकि वो चीन पर अपनी निर्भरता को कम कर सके. चीन की नाराज़गी मोल लेते हुए, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों के आयात के ख़िलाफ़ सब्सिडी विरोधी जांचों की भी शुरुआत की थी.

यही नहीं, यूरोपीय संघ ने अप्रवासियों को लेकर भी एक समझौता किया, जिसमें यूरोप आने वालेअप्रवासियों के बदले में नक़द रक़मदेने की साझेदारियां भी शामिल हैं. अब इससे आगे बढ़ते हुए यूरोपियन पीपुल्स पार्टी के घोषणापत्र में EU के सीमा बल फ्रंटेक्स को बढ़ाकर तीन गुना करने का वादा किया गया है, और इसके साथ साथ, ब्रिटेन की रवांडा योजना की तर्ज पर यूरोपीय संघ के देशों में पनाह मांगने वालों की अर्ज़ी का निपटरा होने तक उन्हें तथाकथितसुरक्षिततीसरे देश भेजने की योजना का ज़िक्र भी EPP के घोषणापत्र में है. इन योजनाओं को लेकर EU के मूल्यों के सवाल उठ रहे हैं. इसके बावजूद, EU एक ऐसे नीतिगत क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, जो इस महाद्वीप के सबसे विवादित मसलों में से एक है.

एक कमज़ोर हरित समझौता

उर्सुला वॉन डेर लेयेन द्वारा लाए गए तमाम क़ानूनों में सबसे अहम और महत्वाकांक्षी तो यूरोपियन ग्रीन डील है, जिसका मक़सद EU को 2050 तक कार्बन निरपेक्ष बनाना है.

2019 के यूरोपीय चुनावों के दौरान जलवायु परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा था. पर्यावरण कार्यकर्ता नेताओं पर दबाव बनाए हुए थे और ग्रीन दलों की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई थी. उर्सुला की ग्रीन डील के तहत, यूरोपीय संघ केमानव के चांद पर पहुंचनेजैसे लम्हे का एलान किया गया था.. इनमें ऐसी कई फाइलों को मंज़ूरी दी गई, जिनमें नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने जैसी बातें हैं.

हालांकि, जब हम 2024 में आते हैं और देखते हैं कि भू-राजनीतिक परिदृश्य बुनियादी तौर पर बदल चुका है, जिसकी वजह से यूरोपीय आयोग आज रक्षा, होड़ लगाने की क्षमता में इज़ाफ़ा और महंगाई का मुक़ाबला करने जैसे मसलों को ज़्यादा तरज़ीह दे रहा है. ऐसे में ऐतिहासिक हरित समझौते का सियासी विरोध भी बढ़ता जा रहा है. केवल ख़ुद वॉन डेर लेयेन की अपनी यूरोपियन पीपुल्स पार्टी इसका विरोध कर रही है, बल्कि पोलैंड और फ्रांस जैसे देश भी अपने यहां किसानों के विरोध प्रदर्शन की वजह से इसके विरोधी बन गए हैं. ग्रीन डील के तहत तय नियमों के बारे में ये आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं कि इनसे औद्योगिक उत्पादन को ख़तरा होगा. इस वजह से दक्षिणपंथी इसका पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं. आने वाले चुनाव में उनके काफ़ी समर्थन जुटा लेने की संभावना है. इसके अलावा यूक्रेन से सस्ते आयात ने भी किसानों का ग़ुस्सा और भड़का दिया है.

ग्रीन डील के तहत तय नियमों के बारे में ये आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं कि इनसे औद्योगिक उत्पादन को ख़तरा होगा. इस वजह से दक्षिणपंथी इसका पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं. आने वाले चुनाव में उनके काफ़ी समर्थन जुटा लेने की संभावना है.

अगर हम पिछले साल सितंबर में उर्सुला के स्टेट ऑफ दि यूनियन संबोधन को कोई संकेत मानें, तो अब वो किसानों और कारोबारियों के हितों की रक्षा के लिए उन्हें विनियमन की रियायतें देने और उद्योगों के लिए अधिक मुफ़ीद नियमों को लागू करके एक मुश्किल संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हैं. आज पूरे यूरोप में दक्षिणपंथी सियासी ताक़तों का उभार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में अप्रवास जैसे मसलों पर रुख़ कट्टर होता जा है, तो जलवायु से जुड़े मसलों पर रियायतें भी बढ़ती जा रही हैं, ताकि जनता का वोट दक्षिणपंथियों के खाते में जाने से रोका जा सके. फिर भी वॉन डेर लेयेन को हरित और समाजवादी दलों से भी समर्थन की दरकार होगी, क्योंकि ये दल जलवायु के एजेंडे से पीछे हट रहे हैं.

इस बार फिर जीतेंगी उर्सुला वॉन डेर लेयेन?

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उर्सुला की EPP आगे चल रही है, इससे उनको दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. उर्सुला को जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्स और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों जैसे अहम नेताओं का समर्थन तो हासिल है ही. इसके अलावा, अलग अलग सियासी नज़रिया रखने वाले कई यूरोपीय नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं. इनमें स्पेन के समाजवादी प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़, यूनान के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस, पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क और इटली की धुर दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी शामिल हैं. ये यूरोप के रूढ़िवादी और सुधारवादी समूह (ECR) की प्रमुख सदस्य हैं. उर्सुला को दोबारा चुनाव जीतना है, तो इस समूह का समर्थन जुटाना उनके लिए बेहद ज़रूरी होगा.

वहीं, अपने विरोधी हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का समर्थन हासिल करना उर्सुला के लिए एक चुनौती हो सकता है. वॉन डेर लेयेन को यूरोप की नई संसद से भी मंज़ूरी चाहिए होगी. ये आसान काम नहीं होगा, क्योंकि पिछली बार भी यूरोपीय संसद से उन्हें मामूली बहुमत ही मिल सका था, और इस बार तो संसद में दक्षिणपंथी झुकाव बढ़ने की भी संभावना है. अहम बात ये है कि इस बार वो मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होंगी.

आज जब यूरोपीय संघ यूक्रेन को लेकर अपनी सुरक्षा और समर्थन को मज़बूती दे रहा है, तो वहीं पर EU युद्ध से पश्चिमी खेमे में थकन और जंग के मैदान में अनिर्णय की स्थिति के बीच डॉनल्ड ट्रंप की अमेरिका की सत्ता में संभावित वापसी से निपटने के लिए भी ख़ुद को तैयार कर रहा है.

उर्सुला वॉन डेर लेयेन की अक्सर इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि वो ऊपर से थोपी जाने वाली निर्णय प्रक्रिया में विश्वास रखती हैं, और वो मुख्य रूप से अपने जर्मनी वाले सलाहकारों के समूहों से मशविरा करती हैं. इससे सदस्य देशों द्वारा नामित किए जाने वाले 27 आयुक्तों वाले उनके स्टाफ में नाराज़गी का माहौल है. यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल के साथ उनके नाकाम संबंध की वजह से यूरोपीय आयोग और यूरोपीय परिषद के बीच प्रतिद्वंद्विता एक नए स्तर तक पहुंचती देखी गई. यही नहीं, हमास के हमले के बाद वॉन डेर लेयेन ने जिस तरह ग़ज़ा पर इज़राइल के कई गुना बड़े अभियान के मानवीय पहलुओं की अनदेखी करते हुए इज़राइल का खुलकर समर्थन किया, उसके लिए भी उनकी कड़ी निंदा की गई थी. आज जब यूरोपीय संघ यूक्रेन को लेकर अपनी सुरक्षा और समर्थन को मज़बूती दे रहा है, तो वहीं पर EU युद्ध से पश्चिमी खेमे में थकन और जंग के मैदान में अनिर्णय की स्थिति के बीच डॉनल्ड ट्रंप की अमेरिका की सत्ता में संभावित वापसी से निपटने के लिए भी ख़ुद को तैयार कर रहा है.

EU और उसकी मौजूदा परिवर्तन प्रक्रिया के लिए एक मज़बूत नेतृत्व बेहद अहम है. वॉन डेर लेयेन ने मुश्किल दौर से संघ को उबारकर और अच्छे नतीजे देकर अपनी क़ाबिलियत का लोहा मनवा लिया है. अब ये तो वक़्त ही बताएगा कि ग्रीन डील और डिजिटल परिवर्तन जैसे अहम मसलों पर वो अपनी विरासत को बनाए रखने के साथ साथ अमेरिका के साथ संबंध को भी सामान्य बनाए रख सकेंगी या नहीं.

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