Published on Aug 22, 2023 Updated 0 Hours ago
कोल्ड कार्बन की अहमियत समझना: भारत में कोल्ड मेडिकल सप्लाई चेन को टिकाऊ बनाने की कम लागत वाली रूपरेखा

दुनिया में स्वास्थ्य व्यवस्था से काफ़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है. विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में स्वास्थ्य क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 5.2 प्रतिशत है, और इसमें हर साल पांच प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी होने का अंदाज़ा लगाया गया है. स्वास्थ्य क्षेत्र के कुल कार्बन उत्सर्जन में स्वास्थ्य की आपूर्ति श्रृंखलाओं से होने वाले उत्सर्जन का काफ़ी योगदान होता है. भारत में वैसे तो स्वास्थ्य क्षेत्र का कुल कार्बन उत्सर्जन दुनिया के औसत यानी दो प्रतिशत से काफ़ी कम है. लेकिन, स्वास्थ्य क्षेत्र के कुल उत्सर्जन में मेडिकल आपूर्ति श्रृंखलाओं की हिस्सेदारी चिंताजनक रूप से 81 प्रतिशत है.

भारत में जीवाश्म ईंधन से चलने वाली पारंपरिक कोल्ड चेन का इस्तेमाल किया जाता है. इन कोल्ड चेन के सामने अक्सर घटिया काम-काज, जलवायु पर काफ़ी असर जैसी चुनौतियां खड़ी होती हैं और इनसे पर्यावरण को भी काफ़ी नुक़सान होता है.

पर्यावरण के लिहाज़ से टिकाऊ व्यवस्था अपनाने को प्रोत्साहन देने की बड़ी वजह, मेडिकल सेक्टर के कार्बन उत्सर्जन के इस व्यापक चलन की ये समझ होना है. इसके लिए दुनिया भर में इको-फ्रेंडली बर्ताव करने वालों के साथ वैश्विक साझेदारी करना और उनके बीच सहयोग को बढ़ाते हुए ऐसी व्यवस्था स्थापित करने को बढ़ावा दिया जा रहा है. हालांकि, ये बात विकासशील देशों के मामले में पूरी तरह सही नहीं है. एक उदाहरण के तौर पर देखें तो भारत में जीवाश्म ईंधन से चलने वाली पारंपरिक कोल्ड चेन का इस्तेमाल किया जाता है. इन कोल्ड चेन के सामने अक्सर घटिया काम-काज, जलवायु पर काफ़ी असर जैसी चुनौतियां खड़ी होती हैं और इनसे पर्यावरण को भी काफ़ी नुक़सान होता है. दुनिया के चलन और भारत की प्रतिबद्धताओं को देखते हुए, एक हरित स्वास्थ्य सेवा की तरफ़ आगे बढ़ना ज़रूरी हो जाता है. इसमें तो कोई दो राय नहीं कि इस परिवर्तन को बिना ख़र्च के हासिल नहीं किया जा सकता है. इसके लिए फौरी और दूरगामी ख़र्च के साथ साथ इस परिवर्तन के फ़ायदों का आकलन करना ज़रूरी हो जाता है. तभी इससे जुड़े फ़ैसले और नीतिगत उपाय किए जा सकें और आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी इस बदलाव को लेकर पर्याप्त दिलचस्पी पैदा की जा सकेगी. इस लेख में भारत में कोल्ड मेडिकल सप्लाई चेन की प्रकृति, विस्तार और प्रासंगिकता के साथ साथ जलवायु पर उनके असर और नवीनीकरण योग्य ऊर्जा पर आधारित विकल्पों की तरफ़ आगे बढ़ने की संभावनाओं की पड़ताल की गई है. इसके साथ साथ हमने ऐसी तकनीकें अपनाने की लागत और मुनाफ़े का विश्लेषण और कार्बन फ्रेमवर्क के साथ जोड़ने की सामाजिक क़ीमत का भी आकलन किया है.

मौजूदा चलन को जारी रखने की सामाजिक क़ीमत

अध्ययनों से पता चलता है कि मेडिकल कोल्ड चेन में जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा की सेवाएं लेने के कई विपरीत नतीजे निकलते हैं. इनमें ईंधन की उपलब्धता और आपूर्ति तक पहुंच और एक जगह रखे रहने वाले ठंडे भंडारण के रेफ्रिजरेटर्स को बिजली आपूर्त में कटौती शामिल है, जो सीधे तौर पर स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों के अहम सेवाएं देने पर असर डालती हैं और, इस तरह जीवन बचाने वाली सेवाएं देने में बाधा डालती हैं. जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भरता से ग्रीनहाउस गैसों (GHG) और वायु को प्रदूषित करने वाले तत्वों का उत्सर्जन बढ़ता है और ग्लोबल वार्मिंग  की स्थिति और बिगड़ती है. ठोस आंकड़ों के तौर पर देखें, तो दुनिया भर का स्वास्थ्य क्षेत्र जितना कार्बन उत्सर्जन करता है, भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग उसका सातवां सबसे बड़ा हिस्सेदार है. 2030 तक इसमें सालाना 13.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती रहेगी. इससे ऊर्जा की मांग और कार्बन उत्सर्जन में भी बढ़ोत्तरी होते जाने का इशारा मिलता है. हां अगर कम बिजली खाने वाले और हरित या स्वच्छ ईंधन के विकल्प अपनाते हैं, तो शायद इस वृद्धि की रफ़्तार कुछ कम हो जाए.

ग्लोबल वार्मिंग  का एक और बड़ा स्रोत, जो ख़ास तौर से कोल्ड सप्लाई चेन से निकलता है, वो रेफ्रिजरेट करने वाली ग्रीनहाउस गैसें जैसे कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) हैं, जिनमें ओज़ोन की परत को नुक़सान पहुंचाने और ग्लोबल वार्मिंग  को बढ़ावा देने की काफ़ी अधिक क्षमता होती है. इसी वजह से जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के दोराहे पर ये प्रभाव, हमारे पर्यावरण और समाज को होने वाले नुक़सान को बढ़ा देते हैं.

हमें परिवर्तन क्यों करना चाहिए?

नवीनीकरण योग्य स्रोतों पर आधारित विकल्पों को अपनाना ज़रूरी है, तभी स्थायित्व को बढ़ावा दिया जा सकेगा और कोल्ड मेडिकल सप्लाई चेन के जलवायु पर पड़ने वाले बुरे असर को कम किया जा सकेगा. सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत, कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं को चलाने और परिवहन के लिए टिकाऊ समाधान उपलब्ध कराते हैं. भंडारण केंद्रों के ऊपर सोलर पैनल लगाए जा सकते हैं, जिससे स्वच्छ ऊर्जा पैदा की जा सके. वहीं, ठंडे सामान लाने-ले जाने वाले वाहनों में पवन चक्की  लगाई जा सकती है, जिससे वाहनों को ऊर्जा मिल सके. इस परिवर्तन से न केवल ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा, बल्कि ऊर्जा की खपत कम होगी और स्वास्थ्य के क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन का सामना करने लायक़ बनाया जा सकेगा.

दुनिया भर का स्वास्थ्य क्षेत्र जितना कार्बन उत्सर्जन करता है, भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग उसका सातवां सबसे बड़ा हिस्सेदार है. 2030 तक इसमें सालाना 13.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती रहेगी. इससे ऊर्जा की मांग और कार्बन उत्सर्जन में भी बढ़ोत्तरी होते जाने का इशारा मिलता है.

पूरे भारत में कामयाब केस स्टडी और पायलट प्रोजेक्ट से पता चलता है कि नवीनीकरण योग्य ऊर्जा से चलने वाली कोल्ड चेन कम लागत वाली और फ़ायदेमंद हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर भारत के कई राज्यों ने सौर ऊर्जा से चलने वाली कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं जैसे की सोलर डायरेक्ट ड्राइव वैक्सीन रेफ्रिजरेटर सेवा लगू की है, जिससे दूर दराज के इलाक़ों तक ले जाई जाने वाले टीके और दवाएं ख़राब न हों. इसके अतिरिक्त, बी मेडिकल सिस्टम्स (BMS) जैसी वैश्विक कंपनियों ने सौर ऊर्जा से चलने वाले कोल्ड चेन के विकल्प उपलब्ध कराए हैं और सेल्को फाउंडेशन जैसे संगठनों ने कम संसाधनों वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के लिए ऐसी तकनीकों का सहारा लिया है. ये पहलें दिखाती हैं कि भारत में कोल्ड मेडिकल सप्लाई चेन को नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की मदद से किस तरह बदला जा सकता है.

जीवाश्म ईंधन से चलने वाली पारंपरिक कोल्ड चेन के नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों वाले विकल्प अपनाने के लिए एक व्यापक लागत और मुनाफ़े वाले विश्लेषण पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है. इसके अहम पहलुओं में मूलभूत ढांचे के विकास के लिए शुरुआती पूंजी निवेश की ज़रूरत, चलाने का ख़र्च, कौशल की आवश्यकता, मेडिकल कचरे को कम करने, स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में सुधार, ऊर्जा में संभावित बचत, कार्बन उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करना शामिल है. हो सकता है कि शुरुआती निवेश की रक़म बहुत अधिक लगे. लेकिन, इस निवेश के बदले में होने वाले दूरगामी लाभ कहीं अधिक हैं.

नवीनीकरण योग्य स्रोतों पर आधारित कोल्ड चेन के आर्थिक, पर्यावरण संबंधी और सामाजिक लाभों का आकलन करना भी ज़रूरी है. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने से स्वच्छ हवा मिलती है और जनता की सेहत के बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं. इसके अलावा, समय के साथ साथ नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों को अगर बड़े आर्थिक स्तर पर लागू किया जाए, तो लंबी अवधि में संचालन की लागत कम हो जाती है. इससे दूर-दराज के इलाक़ों में भरोसेमंद स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच भी बेहतर होती है. इसके अतिरिक्त, इस परिवर्तन को बढ़ावा देने से नवीनीकरण योग्य ऊर्जा सेक्टर में रोज़गार के नए असर पैदा होते हैं, जिससे टिकाऊ आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने से ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती कम होती है और जलवायु परिवर्तन के दूरगामी पर्यावरण संबंधी और सामाजिक लागत में भी कमी आती है.

जीवाश्म ईंधन से चलने वाली पारंपरिक कोल्ड चेन के नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों वाले विकल्प अपनाने के लिए एक व्यापक लागत और मुनाफ़े वाले विश्लेषण पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.

लागत और मुनाफ़े की रूपरेखा : कार्बन की सामाजिक क़ीमत का एकीकरण

परिवर्तन की इस प्रक्रिया के ठोस लाभ और इससे जुड़े नुक़सान को समझने के लिए हम लागत और मुनाफ़े के विश्लेषण की एक व्यापक रूपरेखा  प्रस्तुत कर रहे हैं. जब हम जीवाश्म ईंधन से नवीनीकरण योग्य ऊर्जा पर आधारित मेडिकल कोल्ड सप्लाई चेन की तरफ़ बढ़ते हैं, तो इस रूप-रेखा के अंतर्गत हम उत्सर्जन में कमी और कार्बन के फ्रेमवर्क रूप-रेखा की सामाजिक क़ीमत को भी जोड़कर देखते हैं. इससे हमें कार्बन की सामाजिक क़ीमत (SCC) की ओर आना पड़ता है, जिसका आकलन एक टन कार्बन डाइऑक्साइड  से होने वाले नुक़सान की आर्थिक क़ीमत के आधार पर किया जाता है. दुनिया भर में कार्बन की सामाजिक क़ीमत की बात करें, तो भारत में प्रति कार्बन डाइऑक्साइड  के उत्सर्जन की क़ीमत 90 डॉलर है, जो सबसे ज़्यादा है. आर्थिक पैमाने पर ये लागत सालाना 243 अरब डॉलर बैठती है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट को प्राथमिकता देने से भारत, 2030 तक हर साल 5 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड  का उत्सर्जन कम कर सकता है. इससे हर साल 4.5 अरब डॉलर का नुक़सान घटाया जा सकता है. और, अगर हम इसके साथ छोटी कारोबारी इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) के बढ़ते उपयोग से 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में आने वाली 14 प्रतिशत की कमी को भी जोड़ दें, तो इसके दूरगामी आर्थिक लाभ स्पष्ट हो जाते हैं.

हम जिस गणितीय रूप-रेखा को प्रस्तावित कर रहे हैं, उसमें दो संभावनाओं पर ग़ौर किया गया है. पहला, जस का तस चलते देना और दूसरा परिवर्तन लाना. दोनों ही मामलों में क़ीमत का आकलन पूंजी के व्यय, संचालन और रख-रखाव की लागत और फिर कार्बन उत्सर्जन के अनुमान से इसकी सामाजिक क़ीमत का अंदाज़ा लगाया गया है. हमें कार्बन की सामाजिक क़ीमत का आकलन करने के लिए बचत की लागत का हिसाब लगाना होगा. इसके लिए, नेट प्रेज़ेंट वैल्यू (NPV) और 30 साल से ज़्यादा समय की योजना और प्रीमिय के साथ उसकी दर को अपने हिसाब में शामिल करना होगा. दोनों की परिस्थितियों में रोज़गार पैदा करने, लागत में बचत, ऊर्जा की बचत, वैल्यू चेन में कुशलता लाने से होने वाली बचत, राजस्व में बढ़ोत्तरी, मेडिकल कचरे में कमी और उसके निस्तारण की लागत में कमी को भी जोड़-घटाव में शामिल करना होगा. इसके अलावा, पूर्व में हमने जिन और बातों का ज़िक्र किया है, उनको भी इस हिसाब किताब का हिस्सा बनाना होगा और फिर लागत और मुनाफ़े को NPV के रूप में प्रस्तुत करना होगा, जिसमें पहले से तय योजना की समय सीमा और प्रीमियम या फिर छूट की दर भी शामिल हो. हर परिस्थिति के हिसाब से क़ीमत और कम कार्बन उत्सर्जन की वजह से परिवर्तन में आने वाली लागत में कमी और फिर इससे समाज पर कार्बन उत्सर्जन से पड़ने वाले बोझ में आने वाली कमी को देखतें, तो टिकाऊ मेडिकल कोल्ड सप्लाई चेन निश्चित रूप से मध्यम और दूरगामी अवधि में ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होती हैं.

निष्कर्ष क्या है?

नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों की दिशा में परिवर्तन को लागत और मुनाफ़े के ऐसे व्यापक विश्लेषण से मदद देनी चाहिए, जो आर्थिक, पर्यावरण संबंधी और सामाजिक कारकों पर आधारित हो. इसके लिए, निश्चित रूप से मूल्यांकन के हमने इस लेख में जो प्रस्ताव दिए हैं, उनसे बेहतर व्यवस्थाओं की ज़रूरत है. मूल्यांकन की व्यवस्था एक निरपेक्ष तरीक़ा उपलब्ध कराती है, जिससे नीति निर्माण और फ़ैसले लेने के स्तर पर ऊर्जा के परिवर्तन को तार्किक रूप दिया जा सके. इसके अलावा, कार्बन की सामाजिक क़ीमत (SCC) को इस तर्क वितर्क का हिस्सा बनाने से परिवर्तन की ये व्यवस्था, एक संकुचित नज़रिया पेश करने के बजाय मुनाफ़े की सामाजिक दर को शामिल करते हुए इसे ज़्यादा तार्किक बना देती है.

सरकार, निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे सारे भागीदार इस मामले में सहयोग करते हुए नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के मूलभूत ढांचे, नीतिगत मदद और तकनीकी आविष्कार के क्षेत्र में निवेश करें.

ज़रूरी ये है कि सरकार, निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे सारे भागीदार इस मामले में सहयोग करते हुए नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के मूलभूत ढांचे, नीतिगत मदद और तकनीकी आविष्कार के क्षेत्र में निवेश करें. इसके लिए SDG क्रेडिट और SDG बॉन्ड जैसे नए वित्तीय संसाधनों, और इन योजनाओं को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए टैक्स में छूट और सब्सिडी जैसे उपायों की ज़रूरत है. हो सकता है कि इनसे ज़्यादा निजी आर्थिक रिटर्न न प्राप्त हो, लेकिन, इनके सामाजिक फ़ायदे बहुत अधिक हैं. किसी भी सूरत में देखें, तो भारत में टिकाऊ मेडिकल कोल्ड सप्लाई चेन को अपनाने की ठोस वजहें साफ़ दिखती हैं. इनसे भारत की स्वास्थ्य सेवा को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद मिलेगी और फिर इंसानों के स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण की सेहत सुधारने में भी योगदान दिया जा सकेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Nilanjan Ghosh

Nilanjan Ghosh

Dr. Nilanjan Ghosh is a Director at the Observer Research Foundation (ORF), India. In that capacity, he heads two centres at the Foundation, namely, the ...

Read More +
Debosmita Sarkar

Debosmita Sarkar

Debosmita Sarkar is a Junior Fellow with the SDGs and Inclusive Growth programme at the Centre for New Economic Diplomacy at Observer Research Foundation, India. ...

Read More +