Author : Aishwarya Ramen

Published on Sep 13, 2023 Updated 0 Hours ago

सही क़ानून बनाए बग़ैर अगर तमाम देश, नॉन स्टेट एक्टर्स को साइबर युद्ध के लिए इस्तेमाल करते रहेंगे, तो इससे सरकारों, कारोबारों और व्यक्तियों के लिए बहुत ख़तरा होगा.

दुनिया के तमाम देशों द्वारा साइबर दुनिया में नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल!

आज की आपस में जुड़ी हुई दुनिया में साइबरस्पेस लगभग हर क्षेत्र के लिए अहम है. फिर चाहे वो स्वास्थ्य सेवा हो, कारोबार हो या फिर वित्त व्यवस्था और सुरक्षा ही क्यों न हो. साइबर दुनिया एक ऐसा वैश्विक क्षेत्र है, जहां हर वो इंसान पहुंच सकता है, जिसके पास एक कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन हो. इस दुनिया में दाख़िल होने की राह में बहुत कम बाधाएं हैं और लोग अपनी पहचान छुपाकर भी यहां आ सकते हैं. इसीलिए, साइबर दुनिया देशों और नॉन स्टेट एक्टर्स के लिए मुफ़ीद मोर्चा है, जहां पर वो विरोध, आक्रमण और युद्ध जैसी गतिविधियां चला सकते हैं और इसके एवज़ में उनके कोई नुक़सान उठाने का ख़तरा भी बहुत कम होता है. इसी वजह से आज साइबर दुनिया भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक दुश्मनियां निभाने का अहम मोर्चा बन गई है. मिसाल के तौर पर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे मौजूदा युद्ध में साइबर युद्ध की भी एक बड़ी हिस्सेदारी है.

सभी देशों के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वो अपनी साइबर फौज खड़ी कर सकें. इसीलिए, बहुत से देश ऐसे साइबर संगठनों की मदद ले रहे हैं, जिन्हें नॉन स्टेट एक्टर कहा जाता है.

आज बहुत से देशों की सरकारें, साइबर दुनिया में अपना दबदबा क़ायम करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन, किसी भी देश के लिए अपनी साइबर सेना तैयार करने में वक़्त भी लगता है और बहुत पैसा भी ख़र्च होता है. सभी देशों के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वो अपनी साइबर फौज खड़ी कर सकें. इसीलिए, बहुत से देश ऐसे साइबर संगठनों की मदद ले रहे हैं, जिन्हें नॉन स्टेट एक्टर कहा जाता है. इनकी मदद से ये देश साइबर दुनिया में अपनी कमज़ोरियों को दूर करने की कोशिश करते हैं. इस लेख में हम इस बात की पड़ताल करेंगे कि किस तरह देशों की सरकारें, साइबर स्पेस में नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल कर रही हैं. इस लेख में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि आख़िर सरकारें इन नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल क्यों कर रही हैं, और इनके क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक असर और नतीजे देखने को मिल रहे हैं.

नॉन स्टेट एक्टर्स को इस्तेमाल करने की वजह क्या है?

कोई साइबर नॉन स्टेट एक्टर ऐसी संस्था या संगठन या समूह है, जो किसी ख़ास ज़मीनी इलाक़े में काम नहीं करता. या वो साइबर दुनिया में किसी क्षेत्रीय संप्रभुता का पालन नहीं करता. ऐसे किरदारों में कोई इंसान हो सकता है. समूह हो सकता है या फिर कोई संगठन भी हो सकता है, जो स्वतंत्र रूप से या फिर अन्य लोगों अथवा संगठनों के साथ मिलकर काम करता है. नॉन स्टेट एक्टर्स में इस बात की क्षमता होती है कि उनसे सरकारों, कारोबारियों और व्यक्तियों को नुक़सान पहुंचे.

किसी दूसरे देश के ख़िलाफ़ हैकिंग या साइबर युद्ध की स्थिति में अगर नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है, तो उन्हें ठेका देने वाला देश अपना पल्ला आसानी से झाड़ सकता है. इससे उस पर कोई अंतरराष्ट्रीय क़ानून लागू नहीं हो पाता और वो अपना मक़सद भी साध लेता है

कोई देश या उसकी सरकार जब साइबर दुनिया के लिए किसी नॉन स्टेट एक्टर की मदद लेती है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह तो अपनी हिफ़ाज़त करना होती है. साइबर दुनिया में पहले ही गुमनाम रहने की काफ़ी गुंजाइश होती है. इससे किसी भी कृत्य के लिए किसी को ज़िम्मेदार ठहराना बहुत मुश्किल हो जाता है. नॉन स्टेट एक्टर इस काम में और भी मददगार साबित होते हैं, ख़ास तौर से साइबर हमलों के दौरान. क्योंकि जब ऐसे लोग किसी सरकार के इशारे पर साइबर हमले करते हैं, तो वो सरकार बड़ी आसानी से इन हमलों में अपना हाथ न होने का दावा कर सकती है और इस तरह किसी जवाबदेही या फिर आलोचना से बच सकती है. इसीलिए, किसी दूसरे देश के ख़िलाफ़ हैकिंग या साइबर युद्ध की स्थिति में अगर नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है, तो उन्हें ठेका देने वाला देश अपना पल्ला आसानी से झाड़ सकता है. इससे उस पर कोई अंतरराष्ट्रीय क़ानून लागू नहीं हो पाता और वो अपना मक़सद भी साध लेता है, ख़ास तौर से तब और जब उसकी गतिविधियों को चोरी छुपे किए गए काम या अवैध करतूत कहा जा सके. मिसाल के तौर पर उत्तर कोरिया, ब्यूरो 121 नाम के एक हैकिंग समूह के जरिए मुख्य रूप से साउथ कोरिया के ख़िलाफ़ साइबर हमले कराता है, और फिर वो इन हमलों से ख़ुद को अलग रखकर इनके नतीजे भुगतने से भी बच जाता है.

इस टेबल में सरकारों द्वारा साइबर हमले करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नॉन स्टेट एक्टर्स की जानकारी दी गई है.

Table 1: साइबर दुनिया में नॉन स्टेट एक्टर्स की विविधता

इसके अतिरिक्त, देशों के लिए नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल बहुत फ़ायदे का सौदा होता है. क्योंकि इसमें हैकिंग के काबिल लोगों की ज़रूरत बहुत कम पड़ती है. बड़े उच्च स्तर की हैकिंग के लिए लोगों को प्रशिक्षण देने में वक़्त और पैसा दोनों ही बहुत लगता है. ऐसे में भाड़े के लोगों से ये काम कराने से ईरान जैसे देशों को इन संगठनों की मानवीय पूंजी और ज्ञान से मदद मिल जाती है. इससे वो अपनी स्वदेशी क्षमता की कमियों को भी दूर कर पाते हैं. ख़बरों के मुताबिक़, ईरान की सरकार, मडीवाटर जैसे भाड़े के साइबर योद्धाओं की मदद से दुनिया भर में सरकारी और कारोबारी वेबसाइटों पर हमला करने के लिए संसाधन और विशेषज्ञता हासिल कर लेती है.

ये नॉन स्टेट एक्टर विशेषज्ञों की मदद से तैयार योजनाएं बनाकर तेज़ी से साइबर हमले करते हैं, जिससे दो देशों की शक्ति के समीकरण बदल जाएं. पारंपरिक युद्ध में जिस देश के पास बेहतर सेना होती है, ज़्यादा धन होता है, या फिर बेहतर तकनीक होती है, उसको युद्ध के मैदान में बढ़त हासिल हो जाती है.

ये नॉन स्टेट एक्टर विशेषज्ञों की मदद से तैयार योजनाएं बनाकर तेज़ी से साइबर हमले करते हैं, जिससे दो देशों की शक्ति के समीकरण बदल जाएं. पारंपरिक युद्ध में जिस देश के पास बेहतर सेना होती है, ज़्यादा धन होता है, या फिर बेहतर तकनीक होती है, उसको युद्ध के मैदान में बढ़त हासिल हो जाती है. वहीं, साइबर दुनिया में नॉन स्टेट एक्टर्स ने इस खाई को पाट डाला है. अब सरकारों को दूसरे देशों के साइबर संसाधनों को निशाना बनाने के लिए अपने पास साइबर योद्धा तैयार करने की ज़रूरत नहीं होती. मिसाल के तौर पर, 2008 में जब रूस के साथ युद्ध चल रहा था, तब जॉर्जिया ने निजी अमेरिकी हैकर्स की मदद से रूस के साइबर हमलों का मुक़ाबला किया था. जबकि, रूस की तुलना में जॉर्जिया के पास साइबर संसाधन बेहद कम थे. इससे पता चलता है कि छोटे देश भी भाड़े के साइबर लड़ाकों की मदद से बड़े और ताक़तवर देशों के हमलों और उनकी साइबर क्षमता का मुक़ाबला कर सकते हैं.

नॉन स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल सिर्फ हमला करने की नीयत से नहीं होता. कई देशों की सरकारें इन्हें अपनी साइबर सुरक्षा का कवच और मूलभूत ढांचा मज़बूत करने के लिए भी प्रयोग करते हैं. साइबर दुनिया को सुरक्षित बनाकर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं. हर एक अपराध जो साइबर दुनिया में हो सकता है, वो असल ज़िंदगी में भी हो सकता है. हालांकि, तीन कारणों से वो ज़्यादा ख़तरनाक हो जाते हैं:

  • साइबर युद्ध का फैक्टर—हथियार बहुत आसानी से बनाए जा सकते हैं
  • दूरी का फैक्टर—दूरी कोई मायने नहीं रखती
  • सुरक्षा का फैक्टर—वास्तविक और मानसिक रूप से नहीं रहता

नॉन स्टेट एक्टर किसी देश की सुरक्षा को बेहतर बना सकते हैं. मिसाल के तौर पर यूक्रेन के उप प्रधानमंत्री और डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन के मंत्री माइखाइलो अल्बर्टोविच फेडोरोव ने स्वयंसेवी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का एक समूह IT आर्मी के नाम से बनाया है. इस समूह ने यूक्रेन के अहम मूलभूत ढांचे की साइबर सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

देश जिन नॉन-स्टेट एक्टर्स को भाड़े पर इस्तेमाल करते हैं, उनमें से एक सरकार प्रायोजित समूह भी होते है. उनका किसी देश की क्षमता से सीधा संपर्क होता है और वो उस  देश के राजनीतिक, सैन्य और कारोबारी लक्ष्य साधने में मदद करते हैं. अक्सर इन समूहों को सरकारों से मदद मिलती है. लेकिन, उनका मक़सद पैसे कमाना नहीं होता. इस वजह से वो स्वतंत्र रूप से काम करने वाले समूहों से अधिक ख़तरनाक होते हैं. इन संगठनों का इस्तेमाल जासूसी, दुष्प्रचार, बाधा डालने, नुक़सान पहुंचाने और दुश्मनों पर पलटवार करने के लिए किया जा सकता है. वैसे तो ऐसे हमलों का लिए ज़िम्मेदार ठहराना मुश्किल होता है. लेकिन, वो जिस तरह हमले करते हैं, उससे पता चल जाता है कि इन संगठनों के पीछे कौन है. अगर सरकार प्रायोजित साइबर हमलों का पता चल जाता है, तो इसे युद्ध माना जाता है और इससे गंभीर कूटनीतिक टकराव पैदा हो सकता है. फरवरी 2021 में APT42 नाम के एक ईरान प्रायोजित साइबर जासूसी समूह ने एक वरिष्ठ इज़राइली सरकारी अधिकारी के ईमेल  लॉगइन पेज की नक़ल जीमेल पर करके उसे निशाना बनाया था. ऐसे हमलों ने ईरान और इज़राइल के रिश्ते और भी ख़राब कर दिए थे.

इसी बीच भाड़े के साइबर लड़ाकों की शक्ल में एक और नॉन स्टेट एक्टर साइबर दुनिया में उभरा है. किसी आम भाड़े के लड़ाके की तरह ये साइबर लड़ाके पैसे के बदले में अपने ग्राहक के दिए मिशन को पूरा करने की कोशिश करते हैं. ऐसे साइबर लड़ाकों को ख़ास मिशन के लिए भाड़े पर लिया जाता है, और उनका ठेका देने वाले देश से कोई राजनीतिक या वैचारिक संपर्क हो, ये ज़रूरी नहीं होता. इन भाड़े के साइबर लड़ाकों ने किसी हमले के लिए तुरंत हमलावर मुहैया करा के कमज़ोर देशों के लिए काबिल साइबर लड़ाकों की कमी को पूरा कर दिया है. ये भाड़े के हमलावर ज़्यादा बड़ा ख़तरा हैं, क्योंकि किसी भी देश का इन पर सीधा नियंत्रण नहीं होता और ये भाड़े के लड़ाके किसी ठेका देने वाले के प्रति कोई ख़ास वफ़ादारी नहीं रखते.

साइबर स्पेस और नॉनस्टेट एक्टर्स के बीच संतुलन कैसे बने?

साइबर दुनिया में ग़ैर सरकारी समूहों की सक्रियता का क्या मतलब है? उनकी गतिविधियों को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. क्योंकि ये ख़लल डालने और अस्थिरता फैलाने वाले होते हैं. वो देशों को अपने दुश्मनों के लिए ज़्यादा बड़ा ख़तरा बनाकर ताक़त देते हैं, ख़ास तौर से तब जब कोई क़ानूनी ढांचा न हो तो मिसाल के तौर पर भाड़े के साइबर लड़ाकों के समूह टीम जॉर्ज  का दावा है कि उसने दुनिया भर में हैंकिंग, ग़लत जानकारी फैलाकर और झूठी खुफिया ख़बरें प्लांट करके 27 राष्ट्रपति स्तर के चुनावों में बाधा डाली है ऐसे समूह लोकतांत्रिक देशों के कामकाज  में बाधा डालते हैं.

कुछ देशों ने क़ानून बनाकर इन हमलों का मुक़ाबला शुरू किया है. इस समय दुनिया के 80 प्रतिशत देशों ने ग़लत साइबर गतिविधियों से निपटने के लिए साइबर क्राइम के क़ानून बनाए हैं

चूंकि ये नॉन-स्टेट एक्टर क़ानून के दायरे में रहकर काम नहीं करते, इसलिए उनकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए क़ानून बनाना ज़रूरी है. कुछ देशों ने क़ानून बनाकर इन हमलों का मुक़ाबला शुरू किया है. इस समय दुनिया के 80 प्रतिशत देशों ने ग़लत साइबर गतिविधियों से निपटने के लिए साइबर क्राइम के क़ानून बनाए हैं; इसकी एक मिसाल यूरोपीय संघ का नेटवर्क एंड, इंफॉर्मेशन  सिक्योरिटी डायरेक्टिव है.

फिर भी ये बात भी सच है कि बहुत से देशों ने इन्हीं नॉन-स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल भी किया है. देशों के लिए उन्हें इस्तेमाल न करने की कोई ख़ास वजह मौजूद नहीं है, क्योंकि इसके नुक़सान बहुत कम हैं. आज जब समय के साथ साथ दुनिया में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता  बढ़ रही है, तो इन नॉन-स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल और बढ़ना तय है.

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