Author : Manoj Joshi

Expert Speak War Fare
Published on Jul 18, 2023 Updated 0 Hours ago

अमेरिका (America) की राष्ट्रीय रक्षा रणनीति का बजट (National Defence Strategy Budget 2022) ज़्यादा है. उसमें चीन (China) से ख़तरे पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है और उन्नत तकनीकों (Advanced Technologies) को तेज़ी से विकसित करके उन्हें इस्तेमाल करने की ज़रूरत पर बल दिया गया है.

US National Defence Strategy 2022: अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा रणनीति 2022, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की किन हक़ीक़तों को बेपर्दा करती है?
US National Defence Strategy 2022: अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा रणनीति 2022, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की किन हक़ीक़तों को बेपर्दा करती है?

2022 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) की तरह ही, पिछले हफ़्ते अमेरिका की 2022- National Defence Strategy (NDS) के जिन हिस्सों को सार्वजनिक किया गया है, उससे यह एक बात बिल्कुल साफ़ ज़ाहिर होती है. पिछली बार 2018 में जारी की गई राष्ट्रीय रक्षा रणनीति और मौजूदा रणनीति के बीच बहुत सा वक़्त गुज़र चुका है और बहुत कुछ बदल चुका है. इन चार वर्षों में America में: a) President बदल चुके हैं; b) China से पैदा हुई चुनौती बढ़ गई है; c) Afghanistan में अपनी नाकामी के बाद, अमेरिका को middle-east से पीछे हटना पड़ा है; अमेरिका को ये समझ में आ गया है कि जंग के हालात में Space X, microsoft, amazon और gogle जैसी उसकी निजी कंपनियां कितनी क़ीमती साबित हो सकती हैं; और e) अचानक से तनाव पैदा होने का जोख़िम काफ़ी बढ़ गया है. फिर चाहे Europe हो या East Asia, ख़ास तौर से Taiwan.

अमेरिका हर साल अपनी रक्षा में जितनी रक़म ख़र्च करता है, वो चीन, रूस, भारत, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान के साझा रक्षा व्यय से भी ज़्यादा है.

ये शायद बदले हुए वक़्त का ही इशारा है कि अमेरिका के रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) अपने न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू (NPR) और मिसाइल डिफेंस रिव्यू (MDR) के साथ साथ पहली बार, राष्ट्रीय रक्षा रणनीति (NDS) के कुछ हिस्से आम जनता के लिए जारी किए हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका ने अपनी ये रणनीति यूक्रेन युद्ध के साये में जारी की है. यूक्रेन युद्ध ने जानकारी के मोर्चे पर दबदबे, कमांड कंट्रोल के संचार, लक्ष्य की पहचान और उस पर निशाना साधने और संसाधनों की आपूर्ति बनाए रखने की अहमियत फिर से उजागर कर दी है. इस युद्ध ने तनाव के लगातार बढ़ने से एक संभावित परमाणु युद्ध के ख़तरों को भी उजागर कर दिया है.

अमेरिका की मिसाइल, परमाणु हथियारों और रक्षा रणनीति को गोपनीय तरीक़े से इस साल मार्च में अमेरिकी संसद को भेजा गया था. इसके साथ साथ, बाइडेन प्रशासन ने 2023 के अमेरिकी रक्षा बजट में संसद से 773 अरब डॉलर के इज़ाफ़े की इजाज़त मांगी थी, जो पिछले साल की तुलना में चार प्रतिशत अधिक है. रक्षा मंत्रालय ने दो पन्ने की फैक्टशीट भी जारी की थी, जिसमें इस रणनीति की अहम बातें शामिल थीं. अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के शब्दों में कहें तो, इस रणनीति को सार्वजनिक करने का मक़सद, ‘हमारे संसाधनों का हमारे लक्ष्यों से तालमेल बिठाना’ था. वैसे भी, अमेरिका हर साल अपनी रक्षा में जितनी रक़म ख़र्च करता है, वो चीन, रूस, भारत, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान के साझा रक्षा व्यय से भी ज़्यादा है.

अमेरिका अपने मक़सद कैसे हासिल करेगा

अपनी रक्षा रणनीति को सार्वजनिक रूप से जारी करने के पीछे अमेरिका का असल मक़सद अपने रणनीतिक समुदाय को एक ही मंच पर लाना था. इस रक्षा रणनीति (NDS) में चार सर्वोच्च प्राथमिकताएं बताई गई हैं, जो इस तरह से हैं: 1) चीन से बढ़ते बहुआयामी ख़तरे से अपनी मातृभूमि की रक्षा करना; 2) अमेरिका और उसके सामरिक साझीदारों पर किसी देश द्वारा अचानक हमला करने से रोकने का भय पैदा करना; 3) रूस और चीन को किसी भी तरह की आक्रामक हरकत करने से रोकना और संघर्ष होने की सूरत में उन पर जीत हासिल करना; और 4) एक लचीले साझा सैन्य बल और डिफेंस इकोसिस्टम का निर्माण करना.

इस रणनीति का तीसरा पहलू अंदरूनी सुधार के ज़रिए दुश्मन पर स्थायी रूप से बढ़त बनाना और ऐसे क्षेत्र में निवेश बढ़ाना शामिल है, जिससे अमेरिका का सैन्य मूलभूत ढांचा और मज़बूत व लचीला बन सके.

अमेरिका अपने मक़सद कैसे हासिल करेगा, इस बारे में 2022 की रक्षा रणनीति में तीन परिकल्पनाएं पेश की गई हैं. पहली, ‘एकीकृत प्रतिरोध’, जिसमें सेनाओं से ये अपेक्षा की गई है कि वो किसी भी मोर्चे पर दुश्मन की आक्रामक हरकत से निपटने के लिए आपसी एकजुटता और सामरिक साझीदारों के साथ पूरे तालमेल के साथ काम करेंगी. दूसरा ज़ोर, अपने प्रतिद्वंदियों की धमकाने वाली हरकतों का ‘जवाब देने के लिए अभियान चलाना’ और ‘राष्ट्रीय शक्ति के अन्य संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए’ भयंकर प्रतिद्वंदियों के ख़तरनाक दबाव से निपटना और उन्हें कमज़ोर करना और प्रतिद्वंदियों की ‘सैन्य तैयारियों’ में ख़लल डालना शामिल है. मोटे तौर पर इसका मतलब साइबर मोर्चे और उन इलाक़ों में अमेरिका का दबदबा क़ायम करना है, जिनके ज़रिए दुश्मन अमेरिका को निशाना बनाना चाहते हैं.

इस रणनीति का तीसरा पहलू अंदरूनी सुधार के ज़रिए दुश्मन पर स्थायी रूप से बढ़त बनाना और ऐसे क्षेत्र में निवेश बढ़ाना शामिल है, जिससे अमेरिका का सैन्य मूलभूत ढांचा और मज़बूत व लचीला बन सके.

2018 की रक्षा रणनीति में ही अमेरिका ने अपना ध्यान पश्चिमी एशिया और आतंकवाद से मुक़ाबले से हटाकर चीन और रूस को अपनी जुड़वां चुनौती बताया था. नई रणनीति में चीन को अमेरिका की ‘तेज़ी से ब़ रही चुनौती’ का नाम दिया गया है. ये हैरान करने वाला विशेषण, अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने पहली बार 2021 में संसद में अपनी नियुक्ति पर मुहर लगाने की सुनवाई के दौरान दिया था. कुल मिलाकर, इसका मतलब शायद ये है कि अमेरिका की रक्षा रणनीति की रफ़्तार, चीन की हरकतों के आधार पर तय होगी.

2023 के लिए अमेरिका के रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी की गुज़ारिश में 130 अरब डॉलर के एक फंड की मांग भी है, जिसे नई रिसर्च और तकनीकों के विकास में ख़र्च किया जाएगा. ये रक्षा मंत्रालय के इतिहास में रिसर्च और विकास का सबसे बड़ा फंड होगा.

ये तो तय ही है कि तकनीक अब, मुक़ाबले का सबसे अहम मोर्चा बन गई है. इसीलिए, अमेरिकी रक्षा रणनीति में सेनाओंके लिए नई तकनीकें ईजाद करना, उनका प्रयोग बढ़ाना और उनको मोर्चों पर तैनात करने पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय उन्नत क्षमताएं विकसित करने के लिए रिसर्च और विकास पर काफ़ी ज़ोर देगा. इसमें डायरेक्टेड एनर्जी, हाइपरसोनिक्स, इंटीग्रेटेड सेंसिंग और साइबर, यहां तक कि बायो-टेक, क्वांटम साइंस, उन्नत तत्वों और क्लियर एनर्जी तकनीक के क्षेत्र में रिसर्च के लिए पूंजी मुहैया कराना भी शामिल है.

इतिहास में रिसर्च और विकास का सबसे बड़ा फंड 

जैसा कि रक्षा मंत्री लायड ऑस्टिन ने कहा भी था कि अब नई रक्षा तकनीकों का आविष्कार ही सबसे बड़ा मुद्दा है. 2021 में अमेरिका ने एक रैपिड डिफेंस एक्सपेरिमेंटेशन रिज़र्व नाम से एक फंड बनाया था. इसके ज़रिए पेंटागन के अलग अलग रिसर्च कार्यक्रमों को मिलकर काम करने के लिए एकजुट करना था, ताकि युद्ध में दुश्मन के मुक़ाबले के लिए ‘तैयारियों की कमज़ोर कड़ियां दुरुस्त की जा सकें.’ 2023 के लिए अमेरिका के रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी की गुज़ारिश में 130 अरब डॉलर के एक फंड की मांग भी है, जिसे नई रिसर्च और तकनीकों के विकास में ख़र्च किया जाएगा. ये रक्षा मंत्रालय के इतिहास में रिसर्च और विकास का सबसे बड़ा फंड होगा.

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का कहना है कि वो रक्षा रणनीति को मिसाइल और परमाणु हथियारों की रणनीति से जोड़कर, अपने संसाधनों का अपने लक्ष्यों से तालमेल और बेहतर बनाना चाहता है. लेकिन अमेरिका द्वारा अपने परमाणु हथियारों और मिसाइल रक्षा के मक़सदों को दोबारा जताने के पीछे ख़ास मक़सद है. असल में अमेरिका, यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस द्वारा बार-बार परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकियों के जवाब से पैदा हुए अनिश्चितता के माहौल को स्थिर बनाना चाहता है. अमेरिका के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नई समीक्षा (NPR) के मुताबिक़, ‘अमेरिका के परमाणु हथियारों का बुनियादी लक्ष्य, अमेरिका, उसके साथियों और साझीदारों पर कोई परमाणु हमला होने से रोकना है.’ अमेरिका ऐसे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल अत्यंत असाधारण परिस्थितियों में ही करेगा. वहीं, मिसाइल डिफेंस रिव्यू (MDR) का मक़सद इस बात को दोहराना है कि अमेरिका मिसाइल डिफेंस को किसी संभावित दुश्मन के अमेरिका और उसके दोस्त देशों पर कामयाब हमले के आत्मविश्वास को कमज़ोर करने के मक़सद से इस्तेमाल करेगा.

भारत के लिए अमेरिकी रक्षा रणनीति के मायने

अगर अमेरिका की नज़र में चीन, ‘तेज़ी से बढ़ रही चुनौती’ बन चुका है, तो ज़ाहिर भारत के लिए तो चीन और भी बड़ा ख़तरा है. दिसंबर 2019 में सरकार ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की नियुक्ति की थी. CDS की नियुक्ति का मक़सद, तीन साल के भीतर ‘अभियानों, संसाधनों और प्रशिक्षण में एकरूपता लाना’ था. हालांकि, पिछले तीन वर्षों में कोई ख़ास बदलाव देखने को मिला नहीं है. पहले CDS जनरल बिपिन रावत की त्रासद मौत तो इसके लिए मामूली रूप से ही ज़िम्मेदार है, क्योंकि सरकार ने उनकी जगह नया CDS नियुक्त करने में नौ महीने लगा दिए. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि तीनों सेनाओं की ‘थिएटर कमान’ बनाने की तुलना में ‘तालमेल बढ़ाने’ का लक्ष्य बहुत मामूली था. जबकि, जैसा कि एडमिरल (रिटायर्ड) अरुण प्रकाश ने कहा भी है कि, दोनों को एक दूसरे से जोड़कर देखने के कारण, भारतीय रक्षा तैयारियों में सुधार की प्रक्रिया की शुरुआत ही ग़लत हुई है.

अगर अमेरिका की नज़र में चीन, ‘तेज़ी से बढ़ रही चुनौती’ बन चुका है, तो ज़ाहिर भारत के लिए तो चीन और भी बड़ा ख़तरा है. 

हालांकि, भारत को इससे कुछ ख़ास राहत मिलने की संभावना नहीं है. क्योंकि एकीकृत करना और फिर उसके बाद थिएटर कमान बनाना, इस दौड़ का एक मामूली हिस्सा ही हैं. जैसा कि अमेरिका की रक्षा रणीति में कहा गया है कि दुश्मन से निपटने के लिए अपनी तैयारियां बेहतर बनाने का एक बड़ा मोर्चा नई तकनीकें ईजाद करना, प्रयोग करना और इस्तेमाल करना है. इसके अलावा ग्रे-ज़ोन और साइबर क्षेत्र समेत बहुआयामी मोर्चे पर जंग की तैयारियां भी ज़रूरी हैं और परमाणु हथियारों और मिसाइल डिफेंस भी इसी के दायरे में आते हैं. लेकिन, जैसा कि हम देख रहे हैं हमारा रक्षा बजट भारी दबाव में है. ऐसे में सेनाओं का आधुनिकीकरण काफ़ी सुस्त रफ़्तार से चल रहा है. और इन सबसे भी बड़ी चिंता ये है कि इसी समय सरकार ने अग्निवीर जैसी योजना का प्रयोग भी शुरू कर दिया है, जिसकी कुशलता और उपयोगिता साबित होनी अभी बाक़ी है.

इन हालात में भारत को जितना संभव हो सके, अमेरिका के क़रीब जाना चाहिए. या फिर वो अमेरिका से नज़दीकी नहीं बढ़ाना चाहता तो फिर, अपने लक्ष्यों और संसाधनों को हर मुमकिन हद तक एक धरातल पर ले आए और रक्षा सुधारों की कछुए जैसी चाल में कुछ तो तेज़ी लाए.

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