अमेरिका और ईरान के मध्य हुई परमाणु समझौता वार्ता, जून, 2022 में बगैर किसी नतीजे पर पहुंचे समाप्त हो गई. यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा दोनों देशों के बीच शुरू कराई गई यह समझौता वार्ता दो दिनों तक चली. इस वार्ता का उद्देश्य ट्रंप प्रशासन द्वारा वर्ष 2018 में संयुक्त व्यापक कार्ययोजना समझौते (जेसीपीओए), जिसमें फ्रांस, जर्मनी, यूके, रूस और चीन शामिल हैं, उसे एकतरफा रद्द करने से पैदा हुए तनाव का राजनयिक तरीके से समाधान निकालना था. समझौते को तोड़ने के अमेरिका के फैसले के बाद ईरान पर तमाम प्रतिबंध लगाए गए, जिसने समझौते के भविष्य को लेकर हितधारकों के तनाव और उनकी चिंताओं को बढ़ा दिया. वाशिंगटन के समझौते से हाथ खींच लेने के बाद ईरान ने यूरेनियम संवर्धन क्षमता को बढ़ाया, लेकिन साथ ही उसने यह भी सुनिश्चित किया कि उसकी परमाणु महत्वाकांक्षाएं शांतिपूर्ण रहें. ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि वो ईरान को एक “बेहतर” परमाणु समझौते के दायरे में लाएगा, लेकिन ट्रंप प्रशासन अपने कार्यकाल के दौरान इसे पूरा करने में विफल रहा.
वाशिंगटन के समझौते से हाथ खींच लेने के बाद ईरान ने यूरेनियम संवर्धन क्षमता को बढ़ाया, लेकिन साथ ही उसने यह भी सुनिश्चित किया कि उसकी परमाणु महत्वाकांक्षाएं शांतिपूर्ण रहें.
संयुक्त व्यापक कार्ययोजना समझौता यानी जेसीपीओए की बात करें, तो यह ईयू और उपरोक्त पी 5 देशों के साथ ईरान का एक समझौता था, जिसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर न केवल नियंत्रण लगाया, बल्कि उसके परमाणु ठिकानों की व्यापक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय निगरानी और निरीक्षण की भी अनुमति दी. इतना ही नहीं ईरान द्वारा अनिवार्य शर्तों को मानने पर उस पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की भी बात जीसीपीओए में शामिल थी. अमेरिका द्वारा इस समझौते को अचानक रद्द करने के निर्णय का प्रभाव यह हुआ कि जेसीपीओए के अन्य हितधारकों के मध्य संवाद खत्म सा हो गया. साथ ही तमाम मुद्दों जैसे कि किस प्रकार ईरान के परमाणु कार्यक्रमों पर अंतर्राष्ट्रीय निगरानी बनाई रखी जाए और कैसे परमाणु हथियार विकसित करने के ईरान के मंसूबों को रोका जाए, आदि को लेकर ख़ामोशी छा गई.
प्रमुख रुकावटें
वाशिंगटन और तेहरान के मध्य 2015 के परमाणु समझौते को समन्वित करने और उसे अंतिम रूप देने को लेकर बातचीत के कई दौर हो चुके हैं. हालांकि, लगता है कि इन वार्ताओं से इस गतिरोध को दूर करने में कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है. समझौते में शामिल अन्य देशों के साथ भी ईरान की बातचीत अप्रैल, 2021 से जारी है, लेकिन आमसहमति नहीं बन पाई है. पहले वियना में हुई वार्ता और हाल ही में कतर में हुई अप्रत्यक्ष बातचीत का भी कोई परिणाम सामने नहीं आया, क्योंकि इसमें कई बाधाएं हैं. ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) को अमेरिका द्वारा “विदेशी आतंकवादी संगठन” का दर्ज़ा देना, ईरान के लिए सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. ईरान ने अमेरिका की विदेशी अतंकवादी संगठनों की काली सूची से इसका नाम हटाने के लिए काफ़ी कोशिश की, लेकिन अमेरिका ऐसा करने के लिए कतई राजी नहीं है. इस समझौते की एक और बाधा इजरायल है, जो कि 2015 के इस परमाणु समझौते का धुर विरोधी है, साथ ही ईरान पर और अधिक दबाव चाहता है.
ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) को अमेरिका द्वारा “विदेशी आतंकवादी संगठन” का दर्ज़ा देना, ईरान के लिए सबसे बड़ा मुद्दा रहा है.
दोनों पक्षों के बीच टकराव की स्थित अमेरिका और ईरान वार्ता की सफलता की संभावना को बहुत कम कर देती है. इससे पहले जून महीने में ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु निगरानी संस्था, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) द्वारा लगाए गए कई कैमरों को हटा दिया. ईरान ने यह कार्रवाई उस प्रस्ताव के जवाब में की, जिसमें उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर उस पर दोष मढ़ने और उसकी निंदा करने की बात कही गई थी. ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं और तेहरान की तरफ से असहयोगी रवैये को लेकर अमेरिका और साझीदार यूरोपीय देशों ने चिंता व्यक्त करते हुए आईएईए को रिपोर्ट सौंपी थीं. ईरान द्वारा ऐसा करने की वजह से आईएईए के लिए ईरान के परमाणु ठिकानों पर चल रही गतिविधियों पर नज़र रखना मुश्किल हो गया है. हालांकि ईरान का कहना है कि उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है, जो आईएईए के साथ उसकी अनुपालन आवश्यकताओं यानी उसके द्वारा निर्धारित नियमों के विरुद्ध हो. हाल ही में, जुलाई में इस सप्ताह की शुरुआत में, बाइडेन प्रशासन ने प्रतिबंधों की एक नई कड़ी का ऐलान किया, जिसने “पूर्वी एशिया में अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित ईरानी पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उत्पादों” की बिक्री में शामिल ईरान के साथ-साथ ईरान के नागरिकों और संस्थाओं को भी प्रभावित किया है. जेसीपीओए को फिर से अमल में लाने का वादा, राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रपति चुनाव अभियान का मुख्य मुद्दा था. हालांकि, ईरान की हरकतों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया और बाइडेन प्रशासन ने ईरान पर नए-नए प्रतिबंध लगाने के साथ ही, ट्रंप प्रशासन द्वारा थोपे गए प्रतिबंधों को भी जारी रखा है.
जेसीपीओए को फिर से अमल में लाने का वादा, राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रपति चुनाव अभियान का मुख्य मुद्दा था. हालांकि, ईरान की हरकतों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया और बाइडेन प्रशासन ने ईरान पर नए-नए प्रतिबंध लगाने के साथ ही, ट्रंप प्रशासन द्वारा थोपे गए प्रतिबंधों को भी जारी रखा है.
ईरान परमाणु समझौता क्यों महत्वपूर्ण है?
जेसीपीओए एक ऐतिहासिक समझौता है, जो न सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमाओं में बांधता है, बल्कि आईएईए द्वारा उसके परमाणु ठिकानों की 24 घंटे निगरानी करने का रास्ता भी तैयार करता है. इसके अतिरिक्त, यह भी कहा गया था कि इस समझौते में ईरान की अर्थव्यवस्था को ताक़त देने की क्षमता है. इस समझौते ने एक तरफ ईरान द्वारा नियम और शर्तों के अनुपालन को प्रोत्साहित किया, तो दूसरी तरफ आर्थिक प्रतिबंधों जैसे कमज़ोर करने वाले नीतिगत कदमों को उठाए बगैर परमाणु शक्तियों के बीच जवाबदेही को बढ़ावा दिया. बातचीत की सफलता की प्रबल संभावनाओं ने वैश्विक बाज़ार में ईरान के तेल की वापसी का संकेत दिया, क्योंकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद इसकी मांग बढ़ गई थी.
जेसीपीओए एक ऐतिहासिक समझौता है, जो न सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमाओं में बांधता है, बल्कि आईएईए द्वारा उसके परमाणु ठिकानों की 24 घंटे निगरानी करने का रास्ता भी तैयार करता है.
भविष्य के लिए इसके क्या मायने हैं?
यद्यपि कतर में हुई बातचीत किसी भी नतीजे तक नहीं पहुंची, लेकिन अमेरिका और ईरान दोनों वार्ता को जारी रखने पर सहमत हुए. यह बातचीत यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल की तेहरान यात्रा के बाद संभव हो पाई थी. अमेरिका और ईरान के साथ-साथ कई प्रमुख हितधारकों द्वारा यह बार-बार दोहराया गया है कि परमाणु समझौते का फिर से पटरी पर लाना बेहद ज़रूरी है. इस समझौते में शामिल सभी पक्षों के लिए भी यह सबसे अच्छा होगा. हालांकि, वर्ष 2015 में समझौते को मूर्तरूप देने लिए की गई लंबे दौर की बातचीत और अमेरिका के इस समझौते से हाथ खींच लेने के बाद इसे फिर से पूरा करने के लिए की गईं कई वार्ताएं विफल सिद्ध हुई हैं. इन अनुभवों से यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि भविष्य में भी एक ऐसा समझौता, जो सभी हितधारकों के निहित स्वार्थों के मुताबिक हो, उसकी सफलता की संभावना बहुत कम है. प्रतिबंधों का मुद्दा आज भी परमाणु समझौते की सबसे बड़ी अड़चन है और भविष्य में यह सबसे बड़ी बाधा साबित होगी. जहां तक अमेरिका की बात है तो ईरान के साथ परमाणु समझौता करने के मामले में उसकी प्रतिबंध लागू करने की नीति से कोई लाभ नहीं हुआ है. हालांकि दोनों पक्षों की बातचीत जारी रखने की इच्छा एक अच्छा संकेत है और इससे यह भी उम्मीद बंधती है परमाणु समझौते को फिर से अमल में लाना असंभव नहीं है. यह भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि समझौते में शामिल किसी भी पक्ष द्वारा बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए शांतिपूर्ण प्रयास नहीं करना, इस समझौते के सफल होने की संभावनाओं को बहुत कम कर देगा. ज़ाहिर है कि अमेरिका की तरफ से जैसे-जैसे ईरान पर अधिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं, ईरान की तरफ से जेसीपीओए दिशानिर्देशों के अनुपालन से दूर जाने की संभावना भी उसी हिसाब से बढ़ जाती है. ईरान परमाणु समझौते पर आम सहमति बनाने के लिए सभी पक्षों के लिए यह ज़रूरी है कि इस बातचीत में शामिल अमेरिका की भागीदारी और ईरान के अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए एक समान अधार बनाया जाए.
ईरान परमाणु समझौते पर आम सहमति बनाने के लिए सभी पक्षों के लिए यह ज़रूरी है कि इस बातचीत में शामिल अमेरिका की भागीदारी और ईरान के अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए एक समान अधार बनाया जाए.
किसी भी समझौते में शामिल प्रत्येक पक्ष का पहला लक्ष्य अपने निहित स्वार्थों की सुरक्षा और सफलता को सुनिश्चित करना होता है. हालांकि वैश्विक परमाणु ऑर्डर के मामले में इसका प्रमुख लक्ष्य परमाणु निरस्त्रीकरण पर जोर देना और विभिन्न देशों को परमाणु हथियारों की होड़ में शामिल होने से बचाना है. परमाणु क्षमता हासिल करने के लिए तत्पर उत्तर कोरिया के साथ-साथ, जिस प्रकार यूक्रेन पर रूस द्वारा हमला किया गया है, इस प्रकार की राजनीतिक आक्रामकता ने यह फिर साबित किया है कि वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण बहुत आवश्यक है और इसे गंभीरता के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए. एक और बात, वाशिंगटन और तेहरान के मध्य बिना किसी सफलता के यह वार्ता जितनी लंबी खिंचती जाएगी, जेसीपीओए के अप्रासंगिक होने या उसके अंत की संभावना भी उतनी बढ़ती जाएगी.
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