डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित जीत ने अमेरिका के एक ऐसे राजनीतिक वर्ग को सबके सामने लाकर खड़ा कर दिया है जिसे अंदाजा ही नहीं है कि मतदाताओं की सोच क्या है। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन अभिजात वर्ग (एलीट) सदमे में हैं लेकिन सच तो यह है कि शायद ये जीत उतनी हैरतअंगेज भी नहीं थी।
चुनाव से ठीक पहले ज्यादातर अमेरिकियों को लग रहा था कि देश गलत रास्ते पर जा रहा है और उन्हें एक ऐसा उम्मीदवार चाहिए था जो हांफती अर्थव्यवस्था में जान फूंक सके। ज्यादातर अमेरिकियों को यह भी लग रहा था कि इस खतरों से भरी दुनिया में अमेरिकी सुरक्षा कमजोर होती जा रही है। वे ओबामा के स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से जुड़ी सामाजिक पुनर्रचना(सोशल इंजीनयरिंग) को लेकर भी असुविधा महसूस कर रहे थे। एक ऐसे करिश्माई राष्ट्रपति, जो युवा और अल्पसंख्यक मतदाताओं में लोकप्रिय है, के नेतृत्व में डेमोक्रेट नेताओं ने आत्मतुष्ट होकर मन में ऐसा भ्रम पाल लिया था कि उनकी पार्टी ही भविष्य की पार्टी है और रिपब्लिकन इतिहास बन चुके हैं। लेकिन ये वक्त से पहले बना ली गई धारणा थी।
जनवरी 2017 में जब नई सरकार अपना काम संभालेगी तो पांच में से चार अमेरिकी उन राज्यों में रह रहे होगों जहां रिपब्लिकन गर्वनरों और राज्यों की विधायिकाओं में रिपब्लिकनों दबदबा होगा। वाशिंगटन में रिपब्लिकनों के नियंत्रण में व्हाइट हाउस, सीनेट और हाउस आॅफ रिप्रेजेंटेटिव्स होंगे। जब एक नए न्यायाधीश की नियुक्ति होगी तो उस समय सर्वोच्च न्यायालय में कंजरवेटिव्स का बहुमत होगा।
सच तो यह है कि ओबामा का कार्यकाल दौर डेमोक्रेट्स के लिए बहुत बुरा साबित हुआ। ओबामा के राष्ट्रपति बनने के दो साल के भीतर कांग्रेस से उनका नियंत्रण समाप्त हो गया था। ओबामा के आठ साल के शासनकाल में राज्यों की चुनी हुई विधायिकाओं में लगभग 900 डेमोक्रेट्स अपनी सीटें हार गए।
सच तो यह है कि ओबामा का कार्यकाल दौर डेमोक्रेट्स के लिए बहुत बुरा साबित हुआ।
ओबामा अगर जो बिडेन को समर्थन देते तो वह अमेरिका के तटीय क्षेत्रों से उदारवादी अभिजात्य वर्ग तथा मध्यपश्चिम के राज्यों से कामगारों को एक साथ ले आते जो उनके लिए विजयी साबित हो सकता था। पर ओबामा ने ऐसा नहीं किया, उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को अपने उत्तराधिकरी के तौर पर समर्थन देने का फैंसला किया। हिलेरी जीत के लिए जरूरी गठबंधन नहीं बना पाईं और कई ऐसे राज्यों में उनकी हार हुई जो खुद ओबामा ने जीते थे।
साल 2008 और 2012 में ओबामा के पक्ष में मतदान करने वाले कई डेमोक्रेट्स ने 2016 में ट्रंप के पक्ष में मतदान किया। मिशिगन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्यों में भी क्लिंटन हार गई जिनमें उनकी चुनाव अभियान टीम एकतरफा जीत सुनिश्चित मान रही थीं।
गौरतलब है कि 2012 में चुनाव हारे रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट् रोमनी की तुलना में डोनाल्ड ट्रंप को कम वोट मिले पर वह फिर भी जीत गए। डेमाक्रेटिक वोटर अपने उम्मीदवार को लेकर उतने उत्साहित नहीं थे और उनमें से कई वोट डालने घर से बाहर नहीं निकले।
वर्मोन्ट से आए समाजवादी बर्नी सैन्डर्स ने डेमोक्रेटिक प्राइमरी अभियान में वोटरों को जितना उत्साहित किया उतना क्लिंटन नहीं कर पाई थीं। हार से उबरने का प्रयास कर रहे डेमोक्रेट्स के लिए यह खतरे का संकेत है। खतरा इस बात का है कि पार्टी कहीं सैंडर्स और सीनेटर एलिजाबेथ वारेन के सुझाए रास्ते की ओर न मुड़ जाए। वामपंथी झुकाव वाले इस गुट का मानना है कि क्लिंटन इसलिए हारीं क्योंकि वह मध्यमार्गी थीं , मुक्त व्यापार तथा आक्रामक विदेश नीति की पक्षधर थीं और वॉल स्ट्रीट तथा बड़े उद्यमों के प्रति उनका रूख दोस्ताना था।
डेमोक्रेट ब्रिटेन की लेबर पार्टी के अनुभव से सीख सकते हैं जो कन्सरवेटिव पार्टी के हाथों लगातार हार के बाद अब जेरेमी कोर्बिन जैसे वामपंथी का नेतृत्व स्वीकार कर चुकी है। कोर्बिन के अतिवादी विचारों ने लेबर पार्टी को राजनीतिक शक्ति के इस्तेमाल से और दूर धकेल दिया है।
चुनाव की रात सट्टेबाज भी यही भविष्यवाणाी कर रहे थे कि अमेरिकी सीनेट पर डेमोक्रेट्स का कब्जा होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रिपब्लिकन सरकार में हर स्तर पर छाए रहे। पुननिर्वाचित सीनेटरों — फ्लोरिडा से मार्को रूबियो, ओहायो से रॉब पोर्टमैन तथा एरिजोना से जॉन मैक्केन तथा हाउस के स्पीकर पॉल रेशन — सहित कई अन्य स्वतंत्र विचार रखने वाले रिपब्लिकन हैं जिनकी दुनिया के बारे में सोच चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप द्वारा जाहिर की गई सोच से मेल नहीं खाती।
सवाल ये भी है कि वैचारिक अंतर्विरोधों को झेल रही रिपब्लिकन पार्टी क्या प्रभावी ढंग से शासन कर पाएंगी?ट्रंप सही मायने में पूरी तरहं से बाहरी व्यक्ति हैं। वे अब तक के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति से इस मायने में अलग हैं कि उन्होंने आज तक न कोई राजनीतिक पद संभाला और न अमेरिकी सेना में सेवांए दीं। वह रिपब्लिकन पार्टी के पिछलग्गुओं की जमात से नहीं आए हैं। इस मायने में उन्हें लाभ है कि वह किसी पुरानी परंपरा का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है और उन्हें लोक लुभावन तरीके से काम करने का दबाव कुछ हद तक नहीं झेलना होगा क्योंकि जनता इस घिसे — पिटे राजनीतिक ढर्रें से तंग आ चुकी है।
वे [डोनाल्ड ट्रंप] अब तक के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति से इस मायने में अलग हैं कि उन्होंने आज तक न कोई राजनीतिक पद संभाला और न अमेरिकी सेना में सेवांए दीं। वह रिपब्लिकन पार्टी के पिछलग्गुओं की जमात से नहीं आए हैं।
दूसरी ओर चूंकि उनका अपना प्रशासकीय अनुभव नहीं हैं और वाशिंगटन आने वाले उनके करीबी लोगों में भी बहुत ज्यादा लोग ऐसे नहीं होंगे, इसलिए राष्ट्रपति पद की यह पारी सफलतापूर्वक खेलने के लिए उन्हें रिपब्लिकन पार्टी की मदद की जरूरत पड़ेगी। उनके शक्तिशाली उप राष्ट्रपति माइक पेन्स हाउस आॅफ रेप्रेजेंटेटिव्स में वरिष्ठ समिति अध्यक्ष थे। नीतिगत मामलों नए राष्ट्रपति का एजेंडा बनाने के लिए पेन्स रिपब्लिकन कांग्रेस के साथ नजदीक से काम कर सकते हैं।
कैपिटल हिल पर पॉल रेयान के नेतृत्व में रिपब्लिकन नेतृत्व बजट, जन कल्याण और व्यय को लेकर विवकेपूर्ण सुधारों का पैकेज तैयार कर चुका है। अनुभवहीन ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने पर कांग्रेस उन विधेयकों को पारित करवाने में पूरा दम खम लगा सकती है जिससे आम अमेरिकी नागरिक की रोजमर्रा की जिंद्गी बेहतर हो सके। ओबामा के कार्यकाल में इतना गतिरोध था कि यह सब ठंड बस्ते में चला गया था। ऐसे में इस परिवर्तन का श्रेय राष्ट्रपति ट्रंप ले सकते हैं।
लेकिन गतिरोध दूर करने के लिए ट्रंप तथा कांग्रेस के अन्य रिपब्लिकन सदस्यों को डेमोक्रेट्स को साथ लेना होगा क्योंकि सीनेट में उनकी संख्या कम होने के बावजूद इस प्रक्रिया को रोकने के लिए वह पर्याप्त है। दिलचस्प बात यह है कि चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप की छवि ‘बांटने’ वाले व्यक्ति की रही है जबकि वास्तविकता ये है कि मौजूदा हालात में सबको साथ लेकर चलने के लिए वह ओबामा से ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। इसका एक कारण यह है कि वह अपनी स्वयं की राजनीतिक पार्टी की पैदाइश नहीं हैं।
स्वयं राष्ट्रपति ओबामा कह चुके हैं कि ट्रंप का विचाराधारा से कोई लेना देना नहीं है। अगर वह व्यवहारिक हैं तो चीजों को आगे बढ़ा सकते हैं। शेयर और बॉन्ड बाजार का अभी से ही पूर्वानुमान है कि अगर ट्रंप दमघोंटू व्यापार नियमों और करों को बदलने के साथ ही बुनियादी ढांचे और सुरक्षा में निवेश के अपने वायदे पर कायम रहते हैं तो अमेरिकी आर्थिक विकास की दर तेज होगी।
आम आदमी में गुस्से और बेचैनी की लहर पर सवार होकर ट्रंप सत्ता में आए हैं। अब पद संभालने के बाद उन्हें बदलाव लाने, सरकारी कामकाज को दुरूस्त करने और अर्थव्यवस्था के विकास के वायदे निभाने होंगे। इसके लिए उन्हें गठजोड़ करने होंगे। वाकई, इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक ऐसा व्यक्ति जो राष्ट्रपति पद के लिए इतना विभाजनकारी उम्मीदवार माना गया अब राष्ट्रपति बन कर एक खंडित देश को जोड़ने का माध्यम बनेगा।
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